Wednesday, April 19, 2017

यमुना मां पर प्राणघातक प्रहार से बचाव डा. राधेश्याम द्विवेदी



जिस प्रकार समाज में नारी पर एसिड तथा अन्य प्रकार की प्रताड़ना की जाती है। ठीक उसी प्रकार हमारे पूज्य गंगा यमुना और उसकी सहायक नदियों पर भी विभिन्न प्रकार के प्रहार एवं ज्यादत्तियां की जा रही हैं। सबसे पहले तो नदी में अविरलता, निर्मलता, स्वास्थ्यपरता, शुद्धता एवं स्वतंत्रता बरकार रखी जानी चाहिए इसके किसी एक अंश को यदि बाधित किया गया तो सारी योजना दूषित तथा विपरीत बनती जाएगी और लक्ष्य से दूर होती जाएगी। इसके साथ ही साथ कुछ अन्य प्रकार के उपायों से भी नदी क्षेत्र को बचाया जा सकता है।
1.दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति - अब युद्ध स्तर पर नदियों के स्वच्छता तथा निर्मलीकरण के लिए प्रयास किये जाने आवश्यकता है। जैसी लन्दन की खूबसूरती बढ़ाती, टेम्स नदी एक मिशाल बन गयी है। ठीक उसी तरह यह यमुना भी दिल्ली मथुरा तथा आगरा की खूबसूरती में चार चाँद लगा सकती है। इससे यमुना के गौरवमयी अतीत की वापसी सुनिश्चित हो सकती है। इनके विना हमारी संस्कृति व कृषि निष्प्राण सी दिखती है। दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं है। अकेले टेम्स ही नहीं दुनिया की कई नदियां एसे ही साफ की गईं हैं। जर्मनी में राइन, दक्षिण कोरिया में हान और अमरीका में मिलवॉकी नदियों को दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के बल पर ही पुनर्जीवित किया जा सका है।
2.प्राचीन जलश्रोतों को पुनः जीवित करना:- हमें प्राचीन जलश्रोतों को पुनः जीवित करना होगा। पूरे देश में विशेष अभियान चलाकर इस दिशा में सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए। मनरेगा के माध्यम से तालाब पोखरों की खुदाई कराकर नदियों के किनारे तटबंध बनाकर हम अपनी सुरक्षा के साथ नदियों को रिचार्ज भी कर सकते हैं।
3.गंगा व यमुना विकास प्रधिकरण का गठन:- कई राज्यों में इन नदियों का प्रवाह होने के कारण ऊपर के क्षेत्र मनमानी करते रहते हैं। केन्द्र अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाता है क्योकि उसके अपने अलग वरीयताये होती हैं। यदि केन्दीय जल प्राधिकरण हर प्रमुख नदियों से सम्बन्धित गठन कर दिया जाएगा तो वह हर क्षेत्र के जल वितरण व प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रभावी मानीटरी हो सकेगा।
4.जल बंटवारा निष्पक्ष हो:- जितना अधिकार ऊपर के क्षेत्र को हो उससे जरा भी कम नीचे के क्षेत्र को नहीं होना चाहिए। एसा ना हो कि कोई सिंचाई का गंगा बहाये तो कोई प्यास के विना तरस जाये। आज की स्थिति इसी प्रकार है। ना तो भारत सरकार और ना तो हरियाणा सरकार अपना जल धर्म निभा पा रही हैं। इन दोनों सरकारो को दण्डित किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं बरसात के दिनों में ये बधे जल को एकाएक छोड़कर बहुत बड़े भूक्षेत्र की आबादी तथा फसलें नुकसान करने का जघन्य अपराध भी करती रहती हैं।
5. नदियों पर राष्ट्रीय कार्यक्रम महोत्सव आयोजित हों:- एसा देखा गया है कि केवल धार्मिक स्थलों पर नदी से सम्बन्धित राष्ट्रीय कार्यक्रम व महोत्सव आयोजित किये जाते हैं। शेष क्षेत्रों में कोई खास गतिविधिया एवं जन जागरुकता नहीं हो पाती है। इनके अभाव में नदी की सुरक्षा व महत्ता से लोग अनजान रहते हैं और उनके कृत्य नदी के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते देखे गये हैं।
6. शहरों व गांवों में नदी सुरक्षादल रक्षकदल का गठन हो:- ये दल कुछ सीमित अधिकार व संसाधनों से लैस होने चाहिए। इनकी विधिक मान्यता होनी चाहिए तथा इनके विचारों व प्रयासों को महत्व दिया जाना चाहिए। नदी के दोनों तरफ के गांवों व नगरों के लागों मे से इनका चयन किया जाना चाहिए। जिले के जिलाधिकारी व जिला न्यायाधीश कभी कभार इनके कार्य की समीक्षा करें तथा आवश्यकतानुसार सरकारी तंत्र को सही करने का प्रयास करें।
उपरोक्त कुछ प्रमुख सुझावों के अतिरिक्त समय समय पर गोष्ठियों और सेमिनारों के माध्यम से नये नये प्रयोग व विकल्प खोजे जा सकते हैं । इसे एक निरन्तर चलते तथा सुधारने वाली प्रकिया के रुप में जानी जानी चाहिए। यदि इस पर अमल लाया गया तो निश्चित ही हमारी ये पवित्र नदियां  अपना स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार रखने में सफल हो सकती हैं।


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