Tuesday, December 28, 2021

लिगामेंट एसीएल पीसीएल का आर्थोस्कोपी सर्जरी

घुटनों के सबसे महत्वपूर्ण लिगामेंट एसीएल पीसीएल टूटने का इलाज अब आर्थोस्कोपी के जरिए अतीत की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षित और बेहतर हो चुका है। वस्तुत: लिगामेंट्स रस्सीनुमा तंतुओं के ऐसे समूह हैं, जो हड्डियों को आपस में जोड़कर उन्हें स्थायित्व प्रदान करते हैं। इस कारण जोड़ सुचारु रूप से कार्य करते हैं। घुटने का जोड़ घुटने के ऊपर फीमर और नीचे टिबिया नामक हड्डी से बनता है। बीच में टायर की तरह के दो मेनिस्कस (एक तरह का कुशन) होता है। फीमर व टिबिया को दो रस्सीनुमा लिगामेंट (एनटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट और पोस्टेरियर क्रूसिएट लिगामेंट) आपस में बांध कर रखते हैं और घुटनों को स्थायित्व प्रदान करते हैं। साइड में यानी कि घुटने के दोनों तरफ कोलेटेरल और मीडियल कोलेटेरल लिगामेंट और लेटेरल कोलेटरल लिगामेंट नामक रस्सीनुमा लिगामेंट्स होते हैं। इनका कार्य भी क्रूसिएट की तरह दोनों हड्डियों को बांध कर रखना है।
ACL एसीएल सर्जरी:-
एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट (एसीएल) घुटने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्पोर्ट्स इंजरी में सबसे ज्यादा यही लिगामेंट टूटता है। इसे पुन: उखड़ी हुई जगह पर जोड़ना और नया लिगामेंट बनाने की प्रक्रिया को एसीएल रीकॉन्ट्रक्शन कहते हैं। लिगामेंट आपके शरीर में मजबूत टिश्यू का ऐसा समूह है, जो हड्डियों को आपस में जोड़ता है। घुटने के आर्थोस्कोपिक प्रोसीजर में एसीएल सर्जरी सबसे ज्यादा कारगर होती है। एसीएल सर्जरी घुटने को स्थिरता प्रदान करती है। जब घुटना ज्यादा स्ट्रेच हो जाता है तब एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि लिगामेंट खिंचते हुए टूट जाता है। ऐसे में घुटना सूज जाता है और उसमें दर्द होता है। घुटना अस्थिर हो जाता है और चलने में दिक्कत होती है।
PCL पोस्टीरियर क्रूसिएट लिगामेंट सर्जरी:-
घुटने के जोड़ के पास दो हड्डियों का मेल होता है, जिनमें फैमूर (थाईबोन) और तिबिया (शिनबोन) शामिल होते हैं। घुटने के ऊपर की हड्डी जोड़ को सुरक्षा प्रदान करती है। एक हड्डी दूसरी हड्डी से लिगामेंट के जरिए जुड़ी होती है। घुटने में कुल चार प्रमुख लिगामेंट्स होते हैं। यह हड्डियों को एक साथ पकड़े रखने के लिए एक मजबूत रस्सी की तरह काम करते हैं और घुटने को स्थिर बनाते हैं। पोस्टीरियर क्रूसिएट लिगामेंट शिनबोन को पीछे की ओर अत्यधिक सीमा तक मुड़ने में मदद करता है। यह एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट के मुकाबले अधिक मजबूत होता है और यह अक्सर कम घायल होता है। पोस्टीरियर क्रूसिएट लिगामेंट के दो भाग होते हैं जो मिलकर एक ढांचा निर्मित करते हैं, यह लगभग व्यक्ति की छोटी उंगली के सामान होता है।
आर्थोस्कोपी दूरबीन विधि से सर्जरी:-
आर्थोस्कोपी का शाब्दिक अर्थ है शरीर के जोड़ को किसी यंत्र से देखना। इसमें धातु की एक पतली नली का एक सिरा जोड़ के अंदर डाल दिया जाता है। इस नली में लेंस लगे होते हैं जो अंदर के भागों को बड़ा करके बाहर दिखाते हैं।आर्थोस्कोपी की प्रक्रिया के अंतर्गत पहले जोड़ में पानी भरकर उसे बड़ा कर लिया जाता है, जिससे जोड़ के अंदर की चीजें साफ दिखें और ऑपरेशन आसानी से किया जा सके। आर्थोस्कोपी से ऑपरेशन के दौरान किसी भी तरह के संक्रमण नगण्य हो जाता है।
आर्थोस्कोपिक विधि से इलाज:-
आर्थोस्कोपिक विधि से अब स्पोर्ट्स इंजरी का इलाज सफलतापूर्वक संभव है। चीरफाड़ किए बगैर आर्थोस्कोप से जो भी लिगामेंट टूट गया है, उसे रिपेयर कर दिया जाता है या फिर उसका दोबारा पुनर्निर्माण कर दिया जाता है। घुटने की लूज बॉडीज (चोट लगने के कारण लिगामेंट में टूट-फूट होने वाले भागों) को निकाल दिया जाता है। परिणामस्वरूप घुटने की अस्थिरता खत्म हो जाती है और दर्द दूर हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की दिनचर्या बहाल हो जाती है। यह आधुनिक विधि दर्दरहित और सफल है।
बस्ती मेडिकल कॉलेज की नई उपलब्धि :-
बस्ती के कैली अस्पताल में घुटने का सफल लिगामेंट सर्जरी
बस्ती (उ.प्र.)। महर्षि वशिष्ठ स्वशाषी चिकित्सा महाविद्यालय बस्ती की चिकित्सा इकाई ओपेक चिकित्सालय कैली बस्ती में तीस वर्षीय युवक के घुटने की सफल लिगामेंट सर्जरी युवा आर्थो सर्जन डॉ. सौरभ द्विवेदी एवं उनकी टीम द्वारा सफलता पूर्वक की गयी। इसके घुटने के एसीएल व पीसीएल दोनों लिगामेंट टूट गये थे। ऐसे आपरेशन बस्ती जैसे छोटे जिले के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस सफल आपरेशन के बाद युवक के परिजनों के चेहरे खिल गये और डॉ. सौरभ व उनकी टीम को खूब दुआएं देते देखे गए।
लालगंज बस्ती निवासी तीस वर्षीय युवक राजू को ढाई महीने पहले चोट लगने से घुटने के एसीएल और पीसीएल दोनों लिगामेंट टूट गए थे। वह चलने फिरने में असमर्थ हो गया था।उसने अनेक जगह डाक्टरो को दिखाया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। वह बस्ती मेडीकल कालेज कैली अस्पताल के डाक्टर सौरभ द्विवेदी से मिला। डा सौरभ द्विवेदी ने उसका एमआरआई कराया तो उसके घुटने के एसीएल और पीसीएल दोनों लिगामेंट टूटे हुए पाए गए।
28 दिसम्बर 2021 को कैली अस्पताल में डा सौरभ द्विवेदी और उनकी की टीम ने आर्थोस्कोपी दूरबीन विधि से युवक का आपरेशन करके उसके घुटने के एसीएल और पीसीएल दोनों लिगामेंट सफलता पूर्वक रिपेयर किए।इस तरह के आपरेशन केली अस्पताल में पहली बार हुआ है। बस्ती में पहले हुए आपरेशन सफल नहीं रहे। आज का कैलीअस्पताल में डा सौरभ द्विवेदी और उनकी की टीम द्वारा एक ही सिटिंग में यह सफल आपरेशन किया गया। मरीज अपने को बेहतर महसूस कर रहा है।





Monday, December 27, 2021

इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अंतरराष्ट्रीय 66 वां कॉन्फ्रेंस (LXVI) में बस्ती के आर्थोपेडिक सर्जन डा सौरभ द्विवेदी ने प्रतिभाग लिया


            इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन का अंतरराष्ट्रीय 66 वां कॉन्फ्रेंस (LXVI) संपन्न ।
            बस्ती के एकमात्र आर्थोपेडिक सर्जन डा सौरभ द्विवेदी ने सहभागिता निभाई।
           भारतीय आर्थोपेडिक एसोसिएशन 1955 में स्थापित किया गया था और 2013 इसमें 9,000 से अधिक सदस्य थे। वर्तमान समय इस संगठन में वर्तमान समय में कुल 12262 सक्रिय सदस्य हैं।इस सम्मेलन में भारत भर के 5,000 से अधिक आर्थोपेडिक सर्जनों ने भाग लिया।
            भारत में आर्थोपेडिक सर्जरी पर ध्यान केंद्रित करने वाले पहले सर्जन डॉ आर जे कटक , डॉ एन एस नरसिम्हा अय्यर और डॉ एस आर चंद्र थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, डॉ. मुखोपाध्याय और डॉ. के एस ग्रेवाल ने 1952 में वेल्लोर में एएसआई के वार्षिक सम्मेलन के दौरान एक एसोसिएशन बनाने का सुझाव दिया। 1953 में आगरा में कई अभ्यास करने वाले सर्जन मिले , जिनमें प्रमुख रूप से कटक, डॉ बी एन सिन्हा, ग्रेवाल, मुकोपाध्याय और डॉ एके गुप्ता। वे एएसआई का एक हड्डी रोग अनुभाग बनाने के लिए सहमत हुए। दिसंबर 1955 में एएसआई की बैठक में आधिकारिक तौर पर सोसायटी का गठन अमृतसर में किया गया था। डॉ बी एन सिन्हा और डॉ मुकोपाध्याय सर्वसम्मति से अध्यक्ष और सचिव चुने गए थे। डॉ. ए के तलवलकर ने IOA की ओर से जॉनसन एंड जॉनसन और स्मिथ एंड नेफ्यू ट्रैवलिंग फेलोशिप की शुरुआत की। वार्षिक किनी मेमोरियल ओरेशन 1958 में शुरू हुआ। सर हैरी प्लाट ने 1958 में पहले वक्ता के रूप में कार्य किया। एसोसिएशन के सदस्यों ने 1967 में प्रकाश चंद्र के संपादक के रूप में एक पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया। एक प्रवर समिति द्वारा तैयार किए गए संविधान को 1967 में आम सभा की बैठक में सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था। इसे बाद में भारतीय समाज अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था           इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन का हड्डीरोग चिकित्सकों की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस 66 वां (LXVI) 21से 25दिसंबर 2021को श्यामा प्रसाद मुखर्जी इंडोर स्टेडियम, गोवा विश्वविद्यालय, टेलीगोवा , गोवा में सम्पन्न हुआ।
            उतर प्रदेश के एसएन मेडिकल कालेज आगरा के असिस्टेंट प्रोफेसर आफ आर्थोपेडिक्स डा. रजत कपूर को इंडियन ओर्थपेडीक एसोसिएशन की गोवा में हुई 66वीं कांफ्रेंस आईओएकान-21 में आईओए फैलोशिप से नवाजा गया है। इसके साथ उन्हें 40 हजार रुपए का चेक देकर सम्मानित किया गया है। डा. कपूर को यह उपाधि इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. बी शिवशंकर, उपाध्यक्ष डा. अतुल श्रीवास्तव, सचिव डा. नवीन ठक्कर, पीजीआई चंडीगढ़ के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश सेन ने प्रदान की है। देहरादून स्थित पद्म श्री प्राप्तकर्ता ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ बीकेएस संजय को गोवा में 66 वें वार्षिक सम्मेलन के दौरान इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन (आईओए) द्वारा सम्मानित किया गया। डॉ संजय ने आई.ओ.ए. के अध्यक्ष डॉ. बी. शिवशंकर, सचिव डॉ. नवीन ठक्कर, सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. राम चड्डा तथा एसोशिएसन के अन्य पदाधिकारियों का आभार प्रकट किया।
          उतर प्रदेश के महर्षि बशिष्ठ राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय के अस्थि रोग के के सीनियर रेजीडेंट डा सौरभ द्विवेदी ने भी सम्मेलन में प्रतिभाग लिया है। उन्हें कोरोन
 वायरस के विरुद्ध लड़ाई में उत्तम कार्य के लिए भी सम्मानित किया गया है।
         इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से सीखे नई तकनीकियों का लाभ आगामी दिनों में बस्ती मंडल की आम जनता को भी मिलेगा। अब हड्डी रोग से संबंधित रोगियों को महा नगरों का चक्कर नही लगाना पड़ेगा। बस्ती में उच्च कोटि की तकनीकि भी सामान्य खर्चे में सुलभ हो सकेगा।
























































 






Saturday, December 25, 2021

तुलसी पूजन दिवस :एक शुद्ध सनातन परम्परा

  
25 दिसंबर का दिन पूरी दुनिया में क्रिसमस (Christmas) के त्योहार के रूप में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह ईसाई समुदाय (Christian Community) का सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन प्रभु यीशु (Lord Yeshu) का जन्म हुआ था। आज के ही दिन तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) भी काफी ट्रेंड हो रहा है। आइए जानते है आखिर क्रिसमस डे के दिन ही तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) क्यों मनाया जाता है?
ऐसे हुई थी तुलसी पूजन दिवस की शुरूआत
25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस आसाराम बापू (Asaram Bapu) के अनुयायी सेलिब्रेट कर रहे है, साथ ही सोशल मीडिया के जरिए इसे प्रमोट भी कर रहे है। आसाराम के अनुयायियों के लगातार पोस्ट करने से तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) अब काफी ट्रेंड हो रहा है। वर्ष 2014 में आसाराम बापू ने तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) की शुरुआत की थी। 
तुलसी धरा के लिए वरदान
 तुलसी केवल एक पौधा ही नहीं है बल्कि धरा के लिए वरदान है। जिसके कारण इसे हिंदू धर्म में पूजनीय और औषधि तुल्य माना जाता है ‘तुलसी पूजन करने से लोगों को चमत्कारिक लाभ मिलता है साथ ही लोगों को तुलसी से होने वाले लाभ की भी जानकारी मिलती है और देश में भारतीय संस्कृति का प्रसार भी होता है।
काफी कम लोग जानते है तुलसी पूजन दिवस
25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है, ये सभी जानते है, लेकिन 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) मनाया जाता है, ये बहुत कम लोग ही जानते है। तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है, और घर में सुख, शांति की कामना की जाती है। इस दिन लोग तुलसी के नए पौधे भी लगाते है। क्योंकि हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को अत्यधिक शुभ माना गया है।
आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया हैं
सालों से तुलसी के पौधे का उपयोग औषधीय रूप में किया जा रहा है। हिन्दू धर्म में इसे औषधीय मूल्य पौधा कहा गया है। वहीं आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया है, क्योंकि यह औषधि के रूप में काम आती है। कहा जाता है कि जिसके घर में तुलसी का पौधा होता है, उसके यहां हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। शास्त्रों में मिलता है कि भगवान श्री हरि भोग को स्वीकार नहीं कर रहे थे, क्योंकि उसमें तुलसी के पत्ते नहीं थे।
आयुर्वेद में तुलसी के पौधे के हर भाग को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताया गया है। सर्दी खांसी में कारगर हिन्दू धर्म में तुलसी पूजन की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. लेकिन 2014 से भारत में आज यानी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाई जाती है. इस सम्बंध में तुलसी के आठ नाम महत्त्व पूर्ण हैं।
       
                   तुलसी – नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||
भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है |जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)
तुलसी एक दिव्य औषधि तो है ही परंतु इससे भी बढ़कर यह भारतीय धर्म-संस्कृति में प्रत्येक घर की शोभा, संस्कार, पवित्रता तथा धार्मिकता का अनिवार्य प्रतीक भी है।
गरुड़ पुराण में आता है कि ‘तुलसी का पौधा लगाने, पालन करने, सींचने तथा उसका ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्वजन्मार्जित पाप जल कर विनष्ट हो जाते हैं।
पद्म पुराण के अनुसार ‘जो तुलसी के पूजन आदि का दूसरों को उपदेश देता और स्वयं भी आचरण करता है, वह भगवान श्री लक्ष्मीपति के परम धाम को प्राप्त होता है।’
अनेक गुण, अनेक लाभ
वेदों, पुराणों और औषधि-विज्ञान के ग्रंथों में तुलसी के गुणों के आधार पर से उसे विभिन्न नाम दिये गये हैं, जैसे – काया को स्थिर रखने से कायस्था, तीव्र प्रभावी होने से तीव्रा, देव गुणों का वास होने से देवदुंदुभि, रोगरूपी दैत्यों की नाशक होने से दैत्यघ्नि, मन, वाणी व कर्म से पवित्रतादायी होने से पावनी, इसके पत्ते पूत (पवित्र) करने वाले होने से पूतपत्री, सबको आसानी से मिलने से सरला, रस (लार) ग्रंथियों को सचेतन करने वाली होने से सुरसा आदि।
रोगों से रक्षा हेतु कवचः तुलसी मंजरी
तुलसी की मंजरी को भिगोकर शरीर पर छींटना रोगों से रक्षा के लिए कवच का काम करता है। इसके बीजों में पीले-हरे रंग का उड़नशील तेल होता है, जो त्वचा द्वारा शरीर में प्रविष्ट होकर विभिन्न रोगों से रक्षा करता है।
पूज्य श्री के श्रीमुख से तुलसी-महिमा
पूज्य बापू जी के सत्संग में आता है कि “तुलसी पत्ते पीसकर उसका उबटन बनायें और शरीर पर मलें तो मिर्गी की बीमारी में फायदा होता है। किसी को नींद नहीं आती हो तो 51 तुलसी पत्ते उसके तकिये के नीचे चुपचाप रख देवें, नींद आने लगेगी।
करें तुलसी माला धारणः तुलसी की कंठी धारण करने मात्र से कितनी सारी बीमारियों में लाभ होता है, जीवन में ओज, तेज बना रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति सुदृढ़ रहती है। पौराणिक कथाओं में आता है कि तुलसी माला धारण करके किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना फल देता है।
अभी विज्ञानी आविष्कार भी इस बात को स्पष्ट करने में सफल हुए हैं कि तुलसी में विद्युत तत्त्व उपजाने और शरीर में विद्युत-तत्त्व को सजग रखने का अदभुत सामर्थ्य है। जैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि तुलसी का इतना सेवन करने से कैंसर नहीं होता लेकिन हम लोगों ने केवल कैंसर मिटाने के लिए ही तुलसी नहीं चुनी है। हम लोगों का नज़रिया केवल रोग मिटाना नहीं है बल्कि मन प्रसन्न करना है, जन्म मरण का रोग मिटाकर जीते जी भगवद् रस जगाना है।"
सम्पूर्ण विश्व-मानव तुलसी की महिमा को जाने और इसका शारीरिक, मानसिक, दैविक और आध्यात्मिक लाभ ले इस हेतु ‘सबका मंगल सबका भला’ चाहने वाले पूज्य बापू जी ने 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनाने की सुंदर सौगात समाज को दी है। विश्वभर में अब यह दिवस व्यापक स्तर पर मनाया जाने लगा है।
गले में तुलसी की माला धारण करने से जीवनीशक्ति बढ़ती है, बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है। शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है।
तुलसी माला से भगवन्नाम जप करने एवं इसे गले में पहनने से आवश्यक एक्यूप्रेशर बिंदुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव में लाभ होता है, संक्रामक रोगों से रक्षा होती है तथा शरीर-स्वास्थ्य में सुधार होकर दीर्घायु में मदद मिलती है।
तुलसी को धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों का विद्युतशक्ति धारण करने का सामर्थ्य बढ़ता है।
गले में तुलसी माला पहनने से विद्युत तरंगे निकलती हैं जो रक्त संचार में रुकावट नहीं आने देतीं। प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर आभामंडल विद्यमान रहता है।
गले में तुलसी माला धारण करने से आवाज सुरीली होती है। हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला हृदय व फेफड़े को रोगों से बचाती है। इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है।
तुलसी की माला धारक के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। कलाई में तुलसी का गजरा पहनने से नाड़ी संबंधी समस्याओं से रक्षा होती है, हाथ सुन्न नहीं होता, भुजाओं का बल बढ़ता है।
तुलसी की जड़ें अथवा जड़ों के मनके कमर में बाँधने से स्त्रियों को विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है। कमर में तुलसी की करधनी पहनने से पक्षाघात (लकवा) नहीं होता एवं कमर, जिगर, तिल्ली, आमाशय और यौनांग के विकार नहीं होते हैं।
यदि तुलसी की लकड़ी से बनी हुई मालाओं से अलंकृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वे कोटि गुना फल देने वाले होते हैं। जो मनुष्य तुलसी लकड़ी से बनी माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुनः प्रसादरूप से उसे भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं।


Monday, December 6, 2021

कर्म - भोग : श्रीमद्भभगवतगीता के आधार पर बहुत ही उपयोगी विचार। (सोसल मीडिया Niyojan चिन्तन ग्रुप से साभार)

 
पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता - पिता , भाई - बहन , पति - पत्नि , प्रेमी - प्रेमिका , मित्र - शत्रु , सगे - सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं , सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है ।
सन्तान के रुप में कौन आता है ?
वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --
ऋणानुबन्ध  :-पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो , वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा , जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।
शत्रु पुत्र  :- पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता - पिता से मारपीट , झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।
उदासीन पुत्र  :- इस प्रकार की सन्तान ना तो माता - पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस , उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता - पिता से अलग हो जाते हैं ।
सेवक पुत्र  :- पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो  बोया है , वही तो काटोगे । अपने माँ - बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी , वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।
आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा।
इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे , उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये।
ज़रा सोचिये , "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये , वो कितना सोना - चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना - चाँदी , धन - दौलत बैंक में पड़ा रह गया , समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है , खुद ही खा - कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ , वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"
मैं , मेरा , तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा , कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ *नेकियाँ* ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके *नेकी* करो *सतकर्म* करो ।       
                 ( डा. ज्ञानेन्द्र नाथ श्रीवास्तव)
माता पिता के बारे में एक अनुभव जनित तथ्य -
कहते हैं कि माँ तो माँ ही होती है और पिता भी पिता होता है जो संतान के लिये कुछ भी तप  त्याग कर सकते हैं। यह बात सत्य है। किंतु ऐसा भी देखने में आया है कि एक समय आता है जब माँ बाप भी संतान के साथ पूर्वाग्रह एवं पक्षपात से भर जाते हैं और उनकी सदाशयता तथा सहानुभूति सब लुप्त हो जाती है। जो माता पिता इस स्थिति को प्राप्त होते हैं उनकी भावना संतान के भौतिक जीवन को बहुत नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है । ऐसे माता पिता अपना परलोक बिगाड़ते हैं या नहीं इसका तो कोई साक्ष्य नहीं होता है। 
बचपन में माता का दुलार और पिता का दंभ संतान के दुर्भाग्य का कारण बनता है । युवा एवं प्रौढ़ संतान के प्रति माता पिता की दुर्भावना संतान को दरिद्र बनाती है और उसके ऊपर विपत्तियाँ लाती है। 
बचने के साधन एवं उपाय:-
संतान को चाहिए कि वह माता पिता के गुण अवगुण का विश्लेषण किये विना उनके प्रति पूर्ण समादर एवं शिष्टाचार का भाव बनाये रखे। उनके दुर्वचनों को आशीर्वचन के रूप में देखे। उनकी निंदा न करे और अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग करते हुये उनकी इच्छा पूर्ति करे। उनकी मन से सेवा करे एवं उनके दुर्गुणों पर दृष्टिपात न करते हुये उनकी   मांस-मदिरा की चाहत को भी पूर्ण करे। ऐसी संतान हर बाधा विपत्ति को पार करने में समर्थ होगी। वह समृद्धिशाली होगा और उसका भौतिक जीवन परम सुखमय होगा एवं अध्यात्म में उसकी गति होगी। जिसने यह तप साध लिया वह महाविजयी होगा। उसे मंदिर या तीर्थ जाने और देवदर्शन की  आवश्यकता नहीं होगी।
जो संतान माता पिता पर एहसान जताती है वह दुख एवं विपत्तियों के सागर में निमग्न रहती है ।  बहू और दामाद के दुखों का कारण यही है कि वे अपने सास-ससुर को अपना नहीं पाते हैं और मानसिक दुरोभाव के कारण ही अनायास दुर्भाग्य को निमंत्रण दे बैठते हैं। यह संभव है कि बहू या दामाद के लिये सास-ससुर अच्छे न हो, वे अवसरवादी, स्वार्थी एवं दूषित मनोभाव वाले हो सकते हैं किंतु जिसे सौभाग्य चाहिए उसे इनके हर दुर्गुण को स्वीकारना ही पड़ेगा तभी प्रकृति प्रसन्न होकर सुख सौभाग्य का अवसर प्रदान करती है । यही धर्म है जिसे धारण करना है जिसका पालन करना है। 
विवाह एक सामाजिक प्रक्रिया है जो परिवार और समाज के लोग संपन्न कराते हैं। शारीरिक आकर्षण आयुजन्य होते हैं इसलिए प्रणय विवाह या गंधर्व विवाह भी संभव हैं और सामाजिक विधि विधान को संपन्न कर इनको सामाजिक मान्यता भी मिल जाती है। किंतु परस्पर समर्पण या विद्रोह का भाव बैपरने पर ही विकसित होता है। पति- पत्नी एक -दूसरे के गुण- दोष का विश्लेषण और विवेचन कर परस्पर क्षुब्ध या सुखी -संतुष्ट हो सकते हैं किंतु दोनों ही अपने माता-पिता या जन्मभूमि या पैतृक स्थान की निंदा नहीं सुन सकते हैं या सुनने के बाद प्रसन्न और अनुकूल नहीं रह सकते हैं। आप अपनी माता से भले ही कितना खीझते रहे हों या पिता से जेब खर्च के लिये कितना भी बहस करते रहे हों किंतु पत्नी उसका अंशमात्र भी करे तो आपको सहन नहीं होगा और पुन:श्च यही बात पत्नी के पैतृक संबंधों के प्रति लागू होती है वह भी अपनों के प्रति ऐसा कुछ भी सहन नहीं करेगी। इसलिये सुख का स्रोत है स्वीकार्यता । जो जैसा है उसको विना विश्लेषण के स्वीकार करें। इस तपस्या के द्वारा पति-पत्नी के मन का मिलन होता है। जिस गृहस्थी में पति-पत्नी के मन का मेल हो गया वहाँ लक्ष्मी-सरस्वती क्या ईश्वर स्वयं रहने लगता है।
गृहस्थ जीवन के लिये ये तप विवाह में सप्तपदी के सातवचनों के समय ( अग्नि प्रदक्षिणा करते समय सात भाँवर के साथ) सिखाये जाते हैं। किंतु समारोह के आडंबर, लेन देन के असंतोष, अतिथि एवं  संबंधियों के क्षुब्ध मन एवं आक्रोश (जो कि वर वधू की बारंबार न्योछावर से भी शांत नहीं होते) तथा धूम धाम से भंग-पवित्रता वाले वातावरण में वैसे ही अनसुने रह जाते हैं जैसे कृष्ण के शंखनाद से युधिष्ठिर के पूर्ण  सत्यवचन। अतएव  फल सुखद नहीं होता है और जीवन का सकारात्मक समय क्षुब्ध वातावरण में नकारात्मकता को निमंत्रण दे बैठता है। इसलिए आवश्यक है कि विवाह समारोह सादगीपूर्ण, आडंबरविहीन तथा लेन-देन की अपेक्षाओं से मुक्त हो, क्योंकि इसका उद्देश्य पवित्र है अत: वातावरण भी पवित्र होना चाहिए। अपेक्षाओं से सदा प्रदूषण बढता ही है।
               

Sunday, December 5, 2021

उत्तर प्रदेश में 68 से अधिक नदियों हुई पुनर्जीवित। डा. राधे श्याम द्विवेदी

आदि काल से भारत के लोगों का नदियों के साथ बेहद आत्मीय रिश्ता रहा है और यह हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का एक अविभाज्य अंग रही है ।प्रदेश से होकर बहने वाली गंगा, यमुना, घाघरा और सरयू को मिलाकर बड़ी नदियों की संख्या 31 है। इनकी सैकड़ों छोटी और सहायक नदियां हैं जो प्रदेश के सिंचाई और विकास में योगदान दे रही हैं। अधिकांश लोग नदियों के जल को पवित्र और उपचारात्मक शक्ति से युक्त मानते हैं। वर्तमान समय में कई नदियों का प्रवाह बेहद कम हो गया है । कई सूखने के कगार पर पहुंच गई हैं। कई प्रदूषण से भरा गंदा नाला बन चुकी हैं। नई जल नीति में कहा गया है कि नदियों में अविरल धारा सुनिश्चित किए बगैर निर्मल धारा का होना असंभव है। इसमें नदियों का अधिकार अधिनियम का मसौदा तैयार करने के लिए सभी हितधारकों के बीच गहन विचार-विमर्श की गई है ताकि नदियों को समग्र कानूनी संरक्षण मिल सके। इस तरह नदियों को प्रवाह बनाए रखने, इधर-उधर घुमावदार मार्ग से होते हुए बहने और समुद्र से मिलन का अधिकार दिया जा सकेगा। अक्सर तटबंध तोड़कर रिहायशी इलाकों तक बाढ़ का पानी पहुंच जाता है। नदी या समुद्र की तरफ जाने वाले प्राकृतिक मार्गों के नष्ट होने से बाढ़ की समस्या और भी बढ़ जाती है। प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ का पानी शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में हमारे घरों एवं कार्यस्थलों तक पहुंच जाता है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में उल्लिखित नदी नियमन क्षेत्रों का निर्धारण कर अधिसूचित कर देना चाहिए ताकि नदी-तटों एवं बाढ़ के मैदानों में विकास-जन्य हस्तक्षेपों को रोका जा सके। इस बात के ध्यान में रखकर देश के तीन भौगोलिक इलाकों- हिमालयी, वर्षा वाले क्षेत्र और तटीय क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब हम प्रकृति का संरक्षण करते हैं, तो बदले में हमें भी प्रकृति संरक्षण और सुरक्षा देती है। इस बात को हम अपने निजी जीवन में भी अनुभव करते हैं। यह बातें उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में रविवार को कहीं।
नदी जोड़ो योजना ने बदली तस्वीर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ों योजना की शुरुआत की थी। उत्तर प्रदेश की 19 नदियों को पुनर्जीवित करने का ब्लूप्रिट शासन द्वारा तैयार किया जा रहा है। मनरेगा के तहत नदियों को पुनर्जीवित करने के काम से जोड़ा जा रहा है। इस योजना में मीरजापुर सहित प्रदेश के 39 जिले शामिल हैं जहां से यह 19 नदियां गुजरती है। इस योजना में मीरजापुर सहित सोनभद्र, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, कानपुर व कानपुर देहात, बहराइच, गोंडा, बस्ती, औरैया, कन्नौज, लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, चित्रकूट, अयोध्या सहित कुल 39 जिले शामिल हैं। इस योजना के तहत इन जिलों के 189 विकास खंड व 1952 ग्राम पंचायतों को चिन्हित किया गया है। मनरेगा के तहत जिन नदियों को पुनर्जीवित किया जाना है उनकी कुल लंबाई 3600 किलोमीटर है। यह लंबाई गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली गंगा नदी की लंबाई दो हजार किमी से लगभग दोगुना है।
इन नदियों को बनाएंगे सदानीरा
2018 से नदियों के पुनरुद्धार का कार्य उत्तर प्रदेश सरकार करा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले साढ़े चार वर्षों में नदियों के संरक्षण की दिशा में बड़े पैमाने पर कार्य किया है। प्रदेश में विलुप्त हो चुकी 68 से अधिक नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। 
वर्ष 2018-19 में पुनर्जीवित हुई नदी:-
प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2018-19 मनरेगा के तहत विभिन्न नदियों के पुनरुद्धार का कार्य जा रहा है। छह नदी -अरिल नदी, मंदाकिनी नदी, कर्णावती नदी, वरुणा नदी, मोरवा नदी और गोमती नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। इन्हीं में से एक जालौन में विलुप्त हो चुकी नून नदी के पुनर्जीवित होने की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में की।
 वित्तीय वर्ष 2019-20 में 26 जिलों के 19 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। टेढी नदी, मनोरमा नदी, पांडु नदी, वरुणा नदी, ससुर खदेड़ी, सई नदी, गोमती नदी, अरिल नदी, मोरवा नदी, मंदाकिनी नदी, तमसा नदी, नाद नदी, कर्णावती नदी, बान नदी, सोत नदी, काली पूर्व नदी, डाढ़ी नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा नदी, नदियों को पुनर्जीवित किया गया है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में 36 जिलों की 25 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। टेढ़ी नदी, मनोरमा नदी, पांडु नदी, वरुणा नदी, ससुर खदेड़ी, सई नदी, गोमती नदी, अरिल नदी, मोरवा नदी, मंदाकिनी नदी, तमसा नदी, नाद नदी, कर्णावती नदी, बान नदी, सोत नदी, काली पूर्वी नदी, डाढ़ी नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा, कुंवर, कल्याणी, बेलन, सिरसा, किवाड़, ऊटगन को पुनर्जीवित किया गया है।
 कर्णावती नदी में लबालब पानी 
मीरजापुर जनपद में कर्णावती नदी को फिर से सदानीरा बनाने का प्रयास पिछले वर्ष शुरू किया गया। इस समय कर्णावती नदी में लबालब पानी बह रहा है। 
सोन और वरुणा नदी में प्रवाहित हुआ जल
इसी तरह ही सोनभद्र जिले में सोन व वाराणसी जिलेकी वरुणा नदी में भी जल प्रबाहित किया जा रहा है।
 अन्य अनेक नदियों की हालत सुधरी
उक्त नदियों के साथ ही सई, पांडु, मंदाकिनी, टेढ़ी, मनोरमा, ससुर खदेड़ी, अरेल, मोराव, तमसा, नाद, बाण, काली, दधि, इशान, बूढ़ी गंगा व गोमती नदी को योजना के तहत पुनर्जीवित किया जा रहा है।
टेढ़ी नदी 
 टेढ़ी नदी बहराइच के चित्तौरा से निकलकर गोण्डा में 192 लम्बी दूरी तय करते हुए सरयू नदी में मिल जाती है। यह गोण्डा के 7 ब्लाकों से होते हुए निकतली है जिसमें 66 ग्राम पंचायतें पड़ती हैं। टेढी नदी के जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 1317.87 लाख रूपए की धनराशि अवमुक्त की गई है। 
मनवर नदी 
उद्दालक ऋषि ने अपने यज्ञ स्थल पर सरस्वती नदी को प्रकट होने की इच्छा की थी। पुरानिक इनसाइक्लोपीडिया पृ. 48, 803 के अनुसार ऋषि के प्रभाव को देखते हुए सरस्वती नदी वहां प्रकट हुई थी। ऋषि ने मनोरमा नाम दिया था। यह भी कहा जाता है कि तिर्रे तालाब के पास उन्होंने अपने नख से एक रेखा खीचंकर गंगा का आहवान किया तो गंगा सरस्वती ( मनोरमा ) नदी के रूप में अवतरित हुई थीं। मनोरामा नदी तहसील हर्रिया, बस्ती से उत्तर-पश्चिम तक दक्षिण-पूर्वी दिशा में बह रही है। सरस्वती नदी को ब्रह्मा के चेहरे से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री भी कहा जाता है।उन्होंने ब्रहमाजी से अपना नाम पूछा तो ब्रह्मा जी ने बताया था- तुम्हारा नाम सरस्वती है। तुम तीन जगह रह सकती हो- 1. विद्वानों के जिह्वा के अग्रभाग पर तुम नृत्य करोगी। 2. पृथ्वी लोक में नदी के रुप समाज का कल्याण करोगी। 3. मेरे साथ निवास करोगी। सरस्वती ने इन शर्तों को स्वीकार कर लिया था। एक अन्य उल्लेख में आया है कि उद्दालक ऋषि के पुत्र नचिकेता ने मनवर नदी से थोड़ी दूर तारी परसोइया नामक स्थान पर ऋषियों एवं मनीषियों को नचिकेता पुराण सुनाया था। पुराणों में मनोरमा नदी को सरस्वती की सातवीं धारा भी कहा गया है। मूल सरस्वती अपने वास्तविक स्वरूप को खोकर विलुप्त हो चुकी हैं, परन्तु मनोरमा के रूप में आज भी हम लोगों को अपना स्वरूप दिखलाकर दर्शन कराती हैं। इसके नाम के बारे में यह जनश्रुति है कि जहां मन रमे वही मनोरमा होता है। जहां मन का मांगा वर मिले उसे ही मनवर कहा जाता है। चूंकि ऋषि के मन के संकल्प व इच्छा की पूर्ति करते हुए सरस्वती जी ने यहां अवतरण किया था। इसलिए उनका मनोरमा व मनवर नाम पूर्णतः उनके अवतरण की घटना की पुष्टि भी करता है। यह नदी बस्ती जिले की सीमा पर सीकरी जंगल के सहारे पूर्व दिशा में अनियमित धाराओं के रूप में बहती है। गोण्डा के चिगिना में नदी तट पर राजा देवी बक्स सिंह का बनवाया प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। गोण्डा परगना और मनकापुर परगना के बीच कुछ दूर यह पूर्व दिशा में बहने के बाद यह बस्ती जिले के परशुरामपुर विकास खण्ड के समीप बस्ती जिले में प्रंवेश करती है। इसके दोनों तरफ प्रायः जंगल व झाड़ियां उगी हुई हैं। बिंदिया नगर के पास इसमे मंद मंद बहने वाली चमनई नामक एक छोटी नदी मिल जाती है। यहां यह पूर्व के बजाय दक्षिण की ओर बहना शुरू कर देती है। जो मनकापुर और महादेवा परगना का सीमांकन भी करती है। इस मिलन स्थल से टिकरी जंगल के सहारे यह दक्षिण पश्चिम पर चलती है। यह नदी दलदली तथा गच के पौधों से युक्त रहा करती है। ये दोनो नदियां नबाबगंज उत्तरौला मार्ग को क्रास करती हैं जहां इन पर पक्के पुल बने है। इसकी एक अलग धारा छावनी होकर रामरेखा बनकर सरयू या घाघरा में मिलकर तिरोहित हो जाती है। और मूल धारा अमोढा परगना के बीचोबीच परशुरामपुर, हर्रैया, कप्तानगंज , बहादुरपुर एवं कुदरहा आदि विकासखण्डों तथा नगर पूर्व एवं पश्चिम नामक दो परगनाओं से होकर बहती हुई गुजरती है। यह हर्रैया तहसील के बाद बस्ती सदर तहसील के महुली के पश्चिम में लालगंज में पहुचकर कुवानो नदी में मिलकर तिरोहित हो जाती है। मनवर नदी जो कि 4 ब्लाकों से होते हुए निकलती है। इनके जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 711.45 लाख रूपए की धनराशि जारी की गई है। मनवर नदी के किनारे पडने वाली 41 ग्राम पंचायतों में 61 तालाबों का जीर्णोद्धार कराया गया। 
नीम नदी
नीम नदी हापुड़ से लेकर बुलंदशहर में जिला प्रशासन का सहयोग मिलने से पुनर्जीवित हो रही है। नीम नदी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वर्षा से पहले नदी का चौड़ीकरण कार्य कराया जा रहा है। नदी की जमीन का चिह्नांकन करा नदी के दोनों के किनारों पर मनरेगा से ट्रेंच बनवाया जा रहा है। 
सिरोही नदी 
सोनभद्र में सदर विकास खण्ड के कुसम्हा गांव से निकली सिरोही नदी लगभग 10 किलोमीटर की परिक्रमा करने के बाद बेलन नदी में मिल जाती है. इस नदी का स्वरूप उस वक्त खत्म हो गया जब ब्रिटिश शासन काल 1912 ई. में धंधरौल बांध का निर्माण हुआ और 1916 ई. में घाघर नहर निकाली गई जिसके निर्माण के बाद सिरोही नदी का अस्तित्व ही खत्म हो गया और समय के साथ-साथ नदी ने भी अपना अस्तित्व खो दिया. 
 पृथ्वी पर गंगा को भगीरथ अपने (पूर्वजों) पितरों के उद्धार के लिए लाये थे तो वहीं, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 105 वर्षों से अधिक समय पहले विलुप्त हो चुकी तथा अपने मूल स्वरूप को खो चुकी सिरोही नदी को पुनर्जीवित किया जा रहा है।घाघर मुख्य नहर से कुलावा देकर नदी में पानी छोड़ा गया जिसके बाद सिरोही नदी पुनर्जीवित हो गयी. दर्जनों गांवों का लगभग हजारों हेक्टेयर जमीन सिंचित होने के साथ ही भूगर्भ जल का स्तर बढ़ गया, इसके साथ ही धौबही गांव के कुल 9 तालाब नदी के पुनर्जीवित होने लबालब भर गए हैं। 
बस्ती जिले की 4 पौराणिक नदियों का अस्तित्व संकट में 
प्रशासन की उपेक्षा से जिले की 4 पौराणिक नदियों का अस्तित्व संकट में है। भीषण गर्मी का असर इन नदियों पर देखने को मिल रहा है। कभी लहराती-बलखाती बहने वाली ये नदियां आज अपनी पहचान बचाने को जूझ रही हैं। हर्रैया तहसील क्षेत्र की मनोरमा, रामरेखा और आमी सहित कठिनइयां नदी का बहाव कई स्थानों पर थम गया है, हालात ऐसे है कि अब इस नदियों का अस्तित्व भी खत्म होने को है।
नाले में तब्दील हुई रामरेखा नदी
अस्तित्व के लिए जूझ रही दूसरी नदी है रामरेखा। कभी इस नदी के जल से सीता जीने प्यास बुझाई थी, लेकिन आज अतिक्रमण की वजह से यह सिमटती जा रही है। साफ-सफाई के अभाव में नदी नाले में तबदील हो गई है। मान्यता है कि जनकपुर लौटते समय राम, सीता और लक्ष्मण ने इसी स्थान पर विश्राम किया था। माता सीता को प्यास लगने पर भगवान राम ने अपने बाण से रेखा खींच कर जल निकाला था, जिससे माता ने अपनी प्यास बुझाई थी। यहां से निकला जल आगे जाकर हर्रैया के पास मनवर नदी में मिला था। तभी से इसे रामरेखा नदी के नाम से जाना जाता है, रामरेखा नदी के तट पर बना रामजानकी मंदिर परिसर चौरासी कोसी परिक्रमा का प्रथम पड़ाव स्थल है। इतने महत्व के बाद भी रामरेखा नदी दुर्दशा झेल रही है। 
रेत में परिवर्तित हुई कठिनइया नदी
मुंडेरवा थाना क्षेत्र में बहने वाली कठिनईया नदी आज अपने अस्तित्व को लेकर संकट में है। सूखे की मार ने 80 किलोमीटर लंबी नदी को पूरी तरह से रेत में बदल दिया है। पानी के बजाय अब इस नदी में सिर्फ धूल और मिट्टी के सिल्क ही नजर आते हैं। खुद में पौराणिकता को समेटे यह नदी पहले लोगों के लिये कष्टहरणी नदी थी लेकिन आज सूखे की मार ने कठिनईया को जल विहीन कर दिया है। वैसे तो यह नदी सिद्वार्थनगर जिले से बहकर संतकबीर नगर जिले में कुआनो नदी में जाकर समाहित हो जाती है लेकिन इस प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया कि कठिनईया नदी अपने कठिन दौर से गुजरने को विवश हो गई।
कुवानो नदी
बलरामपुर के दक्षिणी छोर पर बहने वाली कुआनो नदी अपने आप में एक रहस्य है. इस नदी का कोई उद्गम स्थल नहीं है.
इसका उद्गम कोई पहाड़ ना होकर कुंवा है। इसे कूपवाहिनी भी कहते हैं। नदी की उत्पत्ति बहराइच जनपद में स्थित एक कुएं से हुई है, जिसके चलते इसका नाम कुआनों पड़ा। बहराइच जिले के पूर्वी निचले भाग में बसऊपुर गांव के पास एक सोते के रुप में इसका प्रवाह शुरु होता है. जो गोण्डा के बीचोबीच होकर रसूलपुर में बस्ती मण्डल को स्पर्श करती है। अपने उद्गम स्थल से लगभग 13 किमी तक नदी का स्वरूप नाले जैसा है। खुरगूपुर गांव से उत्तर गोंडा जनपद की सीमा में प्रवेश से 4 किमी इसका आकार नदी का हो जाता है। इस नदी के घाट सकरे व गहरे हैं। नदी का प्राचीन नाम कर्द भी बताया जाता है। यह नदी अपना पाट कभी नहीं बदलती। गोंडा जनपद के उत्तरी सीमा पर प्रवाहित होते हुए यह सिद्धार्थनगर व बस्ती जनपद में प्रवेश करती है। यह बस्ती पूर्व, बस्ती पश्चिम, नगर पश्चिम, नगर पूर्व, महुली पूर्व तथा महुली पश्चिम परगनों को पृथक भी करती है।कुवानों नदी तहसील बस्ती और भानपुर से बह रही है। गोरखपुर में यह घाघरा में विलीन होर स्वयं को समाप्त कर लेती है। कुवानों नदी से दूर दराज के इलाकों में नाव से सामान की ढुलाई भी होती थी। इसके दोनो ओर घने जंगल दिखाई पड़ते हैं. कंटीले बेंत के जंगलो से गुजरती हुई यह नदी अद्भुत दृश्य पैदा करती है.साल,सागौन के अतरिक्त दुर्लभ सिरस वृक्ष की प्रजाति यहां पाई जाती है. नदी के दोनो ओर झाडियों की लम्बी श्रंखला है जो दुर्लभ भी है. कुआनो नदी के कारण जैवविविधता की दृष्टि से यह इलाका काफी समृद्ध है. पूरब की दिशा में बढ़ते हुए कुआनो नदी बस्ती जिले की एक प्रमुख नदी बन जाती है और संतकबीर नगर में बूढी राप्ती में मिलकर घाघरा नदी में समा जाती है.
रवई नदी
 बभनान कस्बे से पश्चिम बभनजोगिया के पास श्रवण पाकड़धाम से चलकर 57 किलोमीटर दूर चुवाड़े के बगल कुआनों नदी में मिलने वाली ऐतिहासिक रवई नदी है। वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र ने इस नदी को बचाने की दिशा में पहल की और सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पास कर धन निर्गत किया। शासन की मंशा के अनुरूप इसे गहरा कर वाटर लागिंग समाप्त करने तथा इसके पानी का प्रदूषण समाप्त कर दोनो किनारे सड़क बनाने का प्रस्ताव रहा है। जन श्रुतियों में रवई नदी श्रवण कुमार के अंधे माता पिता के आंसुओं से उत्पन्न हुई थी। पहले इसका नाम भी रोई नदी था जो बाद में परिवर्तित होकर रवई नदी नाम से जाना जाने लगा।
आमी नदी
अमी उत्तर पूर्वी सीमा पर बहती है।उत्तर में, अमी नदी, जिला बस्ती और सिद्धार्थ नगर की सीमाएं बनाती है। सांप्रदायिक एकता के प्रतीक सद्गुरू कबीर स्थली मगहर के पूरब आमी नदी बहती है। आमी नदी मगहर नगर के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन दायिनी का रूप मानी जाती है। सद्गुरू कबीर इसे अमिया कहकर पुकारते थे। कबीर दर्शन को आने वाले श्रद्धालु आमी का जल भी प्रसाद स्वरूप अपने साथ ले जाते है।आमी नदी का जल यहां आने वाले श्रद्धालु शिव मंदिर में चढाते हैं और पूजन अर्चन करते है। आमी नदी तट पर बने प्राचीन मस्जिद के सामने बनी बौलिया में वजू करने के बाद श्रढ़ालु नमाज अदा करने के साथ ही सद्गुरु कबीर की मजार पर फातिहा भी पढ़ते हैं। सिद्धार्थनगर के सिकोहरा ताल से निकलकर गोरखपुर जिले में राप्ती नदी में मिलने वाली 135 किलोमीटर लंबी आमी नदी प्रवाहित होती है।
मछोई - गोरया नदी 
यह बस्ती जिले की एक छोटी नदी है। जो गर्मियों मे सूख जाती है। कहीं कहीं नदी के तलहटी में प्रकृति सोते होते हैं जो इसकी जीवंतता बनाए रखते हैं। कप्तानगंज के आगे यह चंदो ताल में समाहित हो जाती है और बस्ती कलवारी राजमार्ग पर झिरझिरवा पुल से आगे बहादुर पुर ब्लाक में गोरया नदी के रुप में प्रवाहित होती है। पूर्व में गोरया नदी जिला संत कबीर नगर की सीमा रेखा बनाती है और पूर्वी दिशा में तहसील बस्ती में बहती है।। गोरया कुछ दूरी पर जिले की पूर्वी सीमा को नियमित करती है। आगे चलकर यह मनोरमा नदी में और आगे लालगंज में कुवानों नदी में विलीन हो जाती है।










Thursday, December 2, 2021

भागवत प्रसंग (20) चतु:श्लोकी भागवत

भागवत पुराण हिंदुओं के 18 पुराण में से एक है। इसका मुख्य विषय भक्ति योग है। इस पुराण में भगवान श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में वर्णित किया गया है।
इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है।भागवत पुराण 12 स्कंद /खंडों के इस ग्रंथ में 335 अध्याय तथा 18 हजार श्लोक हैं। इसके 10वें अध्याय में श्रीकृष्ण का जीवन सार कुछ इस प्रकार वर्णित है क यह समस्त प्राणियों के लिए सांसारिक जीवन जीते हुए ज्ञान तथा मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
आपके पास इतना समय नहीं है कि पूरी भागवत का पाठ कर सकें और आप इसका पाठ करना चाहते हैं।तो अब परेशान मत होइये। ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है। यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है।
पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। आइये जानते हैं कौन हैं वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा।पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से मनुष्य के अज्ञान जनित मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और वास्तविक ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है।
॥चतु:श्लोकी भागवत॥
निम्नलिखित चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है।यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है।पुराणों के मुताबिक,ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था।इनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलता है॥

श्लोक- 1
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम।।
अर्थ- सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था। सत्, असत या उससे परे मुझसे भिन्न कुछ नहीं था। सृष्टी न रहने पर (प्रलयकाल में) भी मैं ही रहता हूं। यह सब सृष्टीरूप भी मैं ही हूँ और जो कुछ इस सृष्टी, स्थिति तथा प्रलय से बचा रहता है, वह भी मैं ही हूं।
श्लोक-2
ऋतेSर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो माया यथाSSभासो यथा तम:।।
अर्थ- जो मुझ मूल तत्त्व को छोड़कर प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता, उसे आत्मा की माया समझो। जैसे (वस्तु का) प्रतिबिम्ब अथवा अंधकार (छाया) होता है।
श्लोक-3
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥
अर्थ- जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) संसार के छोटे-बड़े सभी पदार्थों में प्रविष्ट होते हुए भी उनमें प्रविष्ट नहीं हैं, वैसे ही मैं भी विश्व में व्यापक होने पर भी उससे संपृक्त हूं।
श्लोक-4
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाSSत्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥
अर्थ- आत्मतत्त्व को जानने की इच्छा रखनेवाले के लिए इतना ही जानने योग्य है की अन्वय (सृष्टी) अथवा व्यतिरेक (प्रलय) क्रम में जो तत्त्व सर्वत्र एवं सर्वदा रहता है, वही आत्मतत्व है।

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम्॥5॥
अर्थ-जैसे पाँच महाभूत उच्चावच भौतिक पदार्थों में कार्य और कारण भाव से प्रविष्ट और अप्रविष्ट रहते हैं, उसी प्रकार मैं इन भौतिक पदार्थों में प्रविष्ट और अप्रविष्ट भी रहता हूँ (इस प्रकार मेरी सत्ता है)।
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा॥6॥
अर्थ-आत्मा के तत्त्व जिज्ञासु के लिए इतना ही जिज्ञास्य है,जो अन्वयव्यतिरेक सर्वत्र और सर्वदा रहे वही आत्मा है।
एतन्मत् समातिष्ठ परमेण समाधिना।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति कर्हिचित्॥7॥
अर्थ-चित्त की परम एकाग्रता से इस मत का अनुष्ठान करें,कल्प की विविध सृष्टियों में आपको कभी भी कर्तापन का अभिमान न होगा॥
॥इति श्रीमद्भागवते महापुराणेsष्टादशसाहस्त्रयां संहितायां वैयासिक्यां द्वितीयस्कन्धे भगवद् ब्रह्मसंवादे चतु:श्लोकी भागवतं समाप्तम्। 
                           भजन
॥छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए॥

छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
[एक गोपी दूसरी गोपी को क्या कहती है?]

छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए,
घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

सर पे मुकुट,काँधे काली कमरिया,
मीठी मीठी बांसुरी बजावे साँवरीया,बजावे साँवरीया।
काले से घुँघरारे बाल,आज मेरे घर आ गए।
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए॥
घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

नन्हा गोपाल मेरे मन को लुभाये,मन को लुभाये,
यमुना किनारे खड़ा गईया चराये, गईया चराये।
संग में हैं ग्वाल और बाल,आज मेरे घर आ गए हैं,
संग में हैं गोपी ग्वाल बाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
घर आ गए मेरे, घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

सब सखियों का जीवन खिवैया,जीवन खिवैया,
बृज वासियों का बंशी बजैया,बंशी बजैया।
सबसे निराली है चाल,सबसे निराली है चाल,
आज मेरे घर आ गए,घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे।
घर आ गए,दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं। 

Wednesday, December 1, 2021

नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर बस्ती में स्पाइन की न्यूरो सर्जरी

बस्ती। कलवारी थाना क्षेत्र के 22वर्षीय युवक रंजीत कमर के दर्द से पिछले दो साल से परेशान था। उसकी दवा लखनऊ में न्यूरो सर्जन द्वारा चल रही थी। जब तक वह दवा खाता था तब तक ही ठीक रहता था। बाद में उसे पुनः दर्द शुरु हो जाता था। लखनऊ के डाक्टर ने उसे न्यूरो सर्जरी की सलाह दी थी , जो काफ़ी महगी होने के कारण वह सर्जरी नहीं करा पाया था।
वह नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर बस्ती के युवा सर्जन डॉ सौरभ द्विवेदी के सम्पर्क में आया। जहां काफ़ी मामूली फीस लेकर डा सौरभ द्विवेदो ने लैमिनेक्टॉमी एण्ड डिस्केक्टॉमी विधि से जो न्यूरो सर्जरी के अंतर्गत आता है, के द्वारा 1 दिसंबर 2021को सफलता पूर्वक ऑपरेशन किया गया। इस तरह का आपरेशन बस्ती में नही होता था । इसे अमूमन न्यूरो सर्जन या सीनियर आर्थोपेडिक सर्जन ही कर पाते हैं। युवा आर्थोपेडिक सर्जन डा सौरभ द्विवेदी ने बड़ी दक्षता से इसे नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर बस्ती संपन्न किया है।
डा सौरभ द्विवेदी ने बताया कि लैमिनेक्टॉमी एण्ड डिस्केक्टॉमी एक तरह की सर्जिकल प्रक्रिया है जिसे विघटन सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है, इसमें लामिना को हटा दिया जाता है। लैमिना कशेरुका हड्डी का एक हिस्सा है, जो रीढ़ की हड्डी की पिछली दीवार बनाता है और इसे घेरता है। आमतौर पर स्पाइनल स्टेनोसिस का इलाज करने के लिए एक लैमिनेक्टॉमी किया जाता है, एक ऐसी स्थिति जो रीढ़ की हड्डी की नहर या रीढ़ की हड्डी के खुलने का कारण बनती है जिससे रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। इस आपरेशन में मरीज एक से डेढ़ माह का अपने पैर से चलने फिरने लगता है। दो तीन माह में मरीज पूर्ण रूप से ठीक हो जाएगा।





Friday, November 26, 2021

भागवत प्रसंग (19 ) भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की कथा

श्रीमद्भागवत पुराण की कथा भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की त्रिवेणी है। इस पावन कथा के श्रवण से प्रभु के चरित्र में अनुराग बढने से भक्ति व ज्ञान बढ़ता है और मन सहित दसों इन्द्रियों के नियंत्रण से उत्पन्न वैराग्य से जीवन की त्रिवेणी सहज ही पार कर लेता है। वह माता राधा से भक्ति की प्रेरणा लेकर भगवान कृष्ण की उपासना करें। श्रीकृष्ण जो जीव को सहज ही विषय वासनाओं से हटाकर परमात्मा तत्व की ओर आकर्षित कर लेता है। जैसा कि व्यासजी ने भागवत में वंदना में कहा है - कृष्णम् वन्दे जगत्पते।
कथा व्यास ने भगवद चरित्र की अमृत वर्षा करते हुए कलयुग के आगमन पर भक्ति के तरुणी रूप में आकर अपने पुत्र ज्ञान वैराग्य के बूढ़े अशक्त होने की व्यथा पर नारद मुनि से बिलखने और समाधान का उपाय पूछने के प्रसंग और कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित पर शाप के प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया। 
यहाँ हम जानेगे की – कलयुग की शुरुआत में कैसे मा एमकेता भक्ति तो एक युवती के रूप में है, लेकिन उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य वृद्ध हो गए है। जानने के लिए पढ़ते है। 
द्वापरयुग समाप्त होने के बाद, जब कलयुग का प्रारम्भ हुआ तो पृथ्वी पर चारो तरफ का बातावरण अशांत हो गया था। उस समय नारद ऋषि पृथ्वी का हाल जानने के लिए विचरने लगे। उन्होंने देखा की – बेचारे जीव पृथ्वी पर केवल पेट भरने के लिए जी रहे है। वे सब
असत्यभाषी, मंदबुद्धि, भाग्यहीन, आलसी, और उपदव्री हो गए है। जो साधु संत कहे जाते है वो पाखंडी हो गए है। इसलिए जो वास्तव में साधु संत है उन्हें कंदराओं और हिमालय में छुपना पड़ा है, लोग उन्हें भी हेय की दॄष्टि से देखने लगे है। और तो और कलयुग में लोगो के
सभी घरो में शकुनि की तरह साले सलाहकार बने हुए है। द्वापरयुग में एक शकुनि था पर कलयुग में घर घर शकुनि है जो बहन के घर खाता है। लोग पुत्रियों का विक्रय करने लगे, ब्राह्मण पैसा लेकर वेद पढ़ते है, स्त्रियाँ वैश्यावृति को भी समान कार्य समझती है।
इस तरह नारद ऋषि कलयुग के दोष देखते देखते दुखी हो रहे थे। और वे विचरते विचरते उसी यमुना तट पर पहुंचे जहाँ कभी श्री कृष्ण अपने सखायो के साथ बाल लीला किया करते थे। वहां उन्होंने एक बहुत ही बड़ा आश्चर्य देखा। वहां एक स्त्री बड़े खिन्न मन से बैठी हुयी
है। उसके पास दो वृद्ध पुरुष अचेत अव्स्था में पड़े जोर जोर से साँस ले रहे है। वह तरुणी स्त्री उनकी सेवा करते करते उन पुरुषो को कभी चेतना देना का प्रयास करती तो कभी उनके आगे रोने लगती। वह अपने रक्षक को दसो दिशाओं में बार बार ढूढ़ रही थी। उसके चारोओर
सेकड़ो स्त्रियाँ पंखा झूला रहा थी।
मै यह कौतुहल देखकर उसके पास चला गया, तो वह स्त्री मुझे देखते ही उठ खड़ी हुयी। और व्याकुल होकर बोली।
स्त्री बोली – महात्मन ! जरा रुकिए, और मेरी चिंता को दूर कीजिये। आपका दर्शन मनुष्य को दुर्लभ है, आज आपके दर्शन से कुछ शांति मिली है। आपके वचन सुनकर और भी शांति मिलेगी।
नारद ऋषि का देवी भक्ति से परिचय –
नारद जी कहते है – ये देवी ! आप कौन है ? ये दोनों पुरुष कौन है और ये सभी स्त्रियाँ कौन है ? तुम हमें विस्तार से अपने दुःख का कारण कहो!
स्त्री ने कहा – मेरा नाम भक्ति है। ये ज्ञान और वैराग्य नाम के मेरे पुत्र है। समय के प्रभाव से इनका ये हाल है। और ये देवियाँ सभी पवित्र नदियाँ है। जो मेरी सेवा कर रही है। लेकिन फिर भी मुझे सुख शांति नहीं है। क्युकी घोर कलयुग के प्रभाव से पाखंडियो ने मुझे अंग
भंग कर दिया है। इसी कारण में निर्बल और निस्तेज हो गयी हु और इसी कारण ये हाल मेरे पुत्रो का हुआ है। वृन्दावन ने मुझे फिर से एक स्त्री का रूप दिया है, लेकिन मेरे पुत्र अभी भी बूढ़े है। इसलिए कोई स्थान पर जाना चाहती हु जो इनको भी तेज़ दे सके। क्युकी होना
तो ये चाहिए था की माता बूढी हो और पुत्र तरुण पर यहाँ में तरुण हो गयी और पुत्र वृद्ध है, जो मेरे दुःख का कारण है।
तब नारद ऋषि बोले – साध्वी ! मेने ज्ञान दृष्टि से इस कलयुग में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का हाल जान लिया है। लेकिन तुम्हे विषाद नहीं करना चाहिए। श्री हरी तुम्हारा कल्याण करेंगे। में जानता हु तुम्हारे पुत्रो को इस कलयुग में कोई नहीं पूछता। इसलिए इनका बुढ़ापा
नहीं छूट रहा है। लेकिन इस वृन्दावन में इनको कुछ आत्मसुख मिल रहा है इसलिए ये सोते से जान पड़ते है।
भक्ति ने कहा – हे ऋषिवर! राजा परीक्षित ने इस पापी कलयुग को क्यों पृथ्वी पर स्थान दिया। इसके आते ही सभी वस्तुओं का सार न जाने का लुप्त हो गया। करुणामय श्री हरी से यह अधर्म कैसे देखा जाता है? कृपया संदेह को दूर करे।
नारद जी कहा – देवी सावधान होकर सुनो! यह दारुण कलयुग है। इसी से इस समय सदाचार, योगमार्ग, और तप आदि सभी लुप्त हो गए है। जिसका प्रमुख कारण सत्पुरषो का दुखी होना और दुष्ट सुखी हो रहे है।
ऐसे समय में जिस व्यक्ति के पास धैर्य है वही सबसे बुद्धिमान, ज्ञानी और पंडित है। पृथ्वी अब प्रति वर्ष शेष जी के लिए अब भार बन रही है। अब यह छूने योग्य तो क्या अब यह देखने योग्य भी नहीं रह गयी है। अब किसी को पुत्रो के साथ तुम्हारा दर्शन नहीं होता। मनुस्यो से उपेक्षित होकर तुम्हारा ये हाल है। वृन्दावन के सयोग से तुम फिर से तरुणी हो गयी हो, अतः यह वृन्दावन धाम धन्य है। जहाँ कण कण में भक्ति नृत्य कर रही है।
परन्तु तुम्हारा इन पुत्रो को यहाँ भी कोई ग्राहक नहीं है। इसलिए इनका बुढ़ापा नहीं छूट रहा है। यह तो इस युग का स्वाभाव ही है इसमें किसी का दोष नहीं है। इसी से श्री हरि भगवान् सब कुछ देखकर भी सब सह रहे है।
भक्ति ने कहा – पुत्रो की यह दशा जानकर बड़ा दुःख हुआ की कलयुग में अब लोग ज्ञान और वैराग्य को नहीं चाहते। इसलिए मेरे पुत्रो की यह दशा है वे वृद्ध है और में युवती।
देवर्षि आप धन्य है ! मेरा बड़ा सौभाग्य था की आपके दर्शन हुए। संसार में साधुओं का दर्शन बड़े भाग्य से होता है। अब मुझे कुछ शांति मिली है। आप सर्वमंगलमय ब्रह्मा जी के पुत्र है। में आपको नमस्कार करती हु।
                         (क्रमशः कड़ी 20 जारी )


भागवत प्रसंग (18) भक्ति का दुःख दूर करने के लिए नारद ऋषि का प्रयत्न

श्रीमदभागवत जी के महात्म के द्वितीय अध्याय में भगवान के परमप्रिय भक्त नारद जी नें भक्ति के कष्टों से निवारण के लिये जो प्रयास अथवा उद्योग किये उनका वर्णन है, अब तक की कथा इस प्रकार थी कि नारद जी जो परमात्मा का कीर्तन करते हुए समस्त लोकों में भृमण किया करते हैं वो नारद जी प्रथ्वी लोक में पहुंचते हैं और प्रथ्वी जहां युग परिवर्तित हो चुका था अर्थात द्वापर समाप्त हो चुका था और कलियुग का प्रारम्भ हो चुका था नारद जी पृथ्वी पर परिवर्तित स्थितियों से व्यथित हो गये, उन्होने देखा कि पृथ्वी पर अधर्म बढ चुका था मनुष्य भौतिकता से गृसित होकर सिर्फ़ भोग में आसक्ति से लिप्त हो चुका था, इन्द्रियों के आधीन होकर मनुष्य निकृष्ट से नीकृष्ट कर्म करने में आतुर था I 
नारद जी भृमण करते करते वृन्दावन पहुंच जाते हैं वहां वो भक्ति तथा उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य की दयनीय स्थिति देखते हैं और उनकी वार्ता भक्ति से होती है जो अपनी सारी व्यथा से उनको अवगत कराती है, नारद जी भक्ति से सब जान कर तथा ज्ञान और वैराग्य नामक उसके बेटों को मूर्छित तथा बृद्ध देखकर भक्ति से कहते हैं, "देवी तुम तो परमात्मा को परम प्रिय हो फ़िर तुम क्यों अपनी परिस्थिति से घबरा रही हो, क्या परमात्मा पर तुम्हें भरोशा नहीं रहा जो तुम इतनी चिन्तित और अधीर हो रही हो I तुम चिन्ता से मुक्त होकर भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों का चिन्तन करो I
यहां बहुत ही सावधानी पूर्वक इस बात को समझने की आव्श्यकता है कि नारद जी जो भक्ति मार्ग के परम आचार्य हैं ध्रुव और प्रहलाद जी के मार्गदर्शक हैं और उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यहां भक्ति के सम्मुख नारद जी एक परम रहस्य उद्घाटित कर रहे हैं कह रहे हैं, "जगत की चिन्ता छोड़ जगदीश श्रीकृष्ण का चिन्तन करना चाहिये I
नारद जी भक्ति से कह रहे हैं कि परमात्मा श्रीकृष्ण जिन्होने कौरवों के अत्याचारों से द्रोपदी की रक्षा की थी तथा गोपसुन्दरियों के प्रेम में उन्हें सनाथ किया था, देवी तुम तो भक्ति हो परमात्मा कृष्ण की अत्यन्त प्रिय हो वो तो अपने भक्त के प्रेम में नीच से नीच जगह पर भी चले जाते हैं I
नारद जी बोले देवी सतयुग, त्रेतायुग तथा द्वापर युग में ज्ञान और वैराग्य ही मुक्ति के साधन थे अर्थात इन तीनों युगों में मनुष्य ज्ञान और वैराग्य के माध्यम से मुक्ति अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर पाता था, परन्तु देवी आज इस कलियुग में सिर्फ़ परमात्मा की प्रेमा भक्ति ही मनुष्य को मोक्ष प्रदान कर सकती है, देवी आज इस कलियुग में सिर्फ़ तुम ही एक माध्यम हो मनुष्यों के मोक्ष प्राप्ति की इसी कारण परमात्मा ने तुम्हें अपने सत्य स्वरूप से निर्मित किया है, देवी तुम तो परमात्मा श्रीकृष्ण की परमप्रिय हो, देवी याद करो एक बार तुमने भगवान श्रीकृष्ण से पूचा था कि क्या करूं तो परमात्मा श्रीकृष्ण ने तुम्हे आदेश दिया था कि मेरे भक्तों का पोषण करो और देवी तुमने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा को स्वीकार कर लिया इससे भगवान तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हुए और भगवान ने मुक्ति को तुम्हारी सेवा के लिये एक दासी के रूप में नियुक्त किया और ज्ञान - वैराग्य तुम्हे पुत्र के रूप में प्रदान किये थे I तभी से हे देवी तुम अपने साक्षात स्वरूम में परमात्मा के वैकुण्ठ लोक में उनके भक्तों का पोषण करती हो इस धरती तो तो तुम मात्र भक्तों की पुष्टि के लिये छाया रूप में हो I
हे देवी तुम मुक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य के संग इस धरती पर सतयुग, त्रेता तथा द्वापरयुग में आनन्द पूर्वक रही परन्तु कलयुग के कारण तुम्हारी दासी मुक्ति दम्भ और पाखंड से गृसित हो गई जिसे तुमने स्वयं आज्ञा देकर वैकुण्ठ भेज दिया, आज भी तुम्हारी दासी मुक्ति इस धरती पर तुम्हारे स्मरण करने से आती है और चली जाती है, परन्तु तुमने अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य को आज भी अपने पास रख रखा है, आज कलयुग में तुम्हारे पुत्रों की उपेक्षा हो रही है जिससे उत्साहहीन हो गये हैं तथा इनकी शक्ति क्षीण हो गई है और ये बृद्ध से हो गये हैं परन्तु हे देवी तुम चिन्तित मत हो मैं तुम्हारे पुत्रों की पुष्टि के लिये उपाय का विचार करता हुं I
नारद जी ने पुनः भक्ति को सम्बोधित करते हुए कहा, "ये देवी कलि अत्यन्त महत्वपूर्ण युग है इसके समान कोई भी युग नहीं था, इस युग में मैं तुम्हें प्रत्येक मनुष्य के हृदय में स्थापित कर दुंगा और इस कलियुग में पापी भी यदि भक्ति करेंगे तो उन्हें भी परमात्मा की कृपा प्राप्ति होगी और वह भी वैकुण्ठ प्राप्त कर सकेंगे I जिनके हृदय में प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करेगी वे शुद्ध हृदय और शुद्ध अन्तःकरण वाले हो जायेंगे, ऐसे व्यक्ति स्वप्न में भी यमराज से भयभीत नहीं होते, जिनके हृदय में परमात्मा श्री कृष्ण की प्रेमाभक्ति होती है उन्हें भूत प्रेत पिशाच निशाचर आदि स्पर्श भी नहीं कर सकते I परमात्मा को कलियुग में यज्ञ, तप, वेदाध्यन, ज्ञान तथा कर्म से प्रसन्न नहीं किया जा सकता अपितु प्रेम भक्ति से परमात्मा को वश में किया जा सकता है, गोपियां इसका स्पष्ट प्रमाण हैं, शास्त्रों में प्रमाण है कि भक्त का तिरस्कार करने से ऋषि दुर्वासा को कष्ट भोगना पड़ा था I परमात्मा स्वयं कहते हैं, "मैं अपने भक्त के आधीन हुं" इसलिये व्रत, तीर्थ, योग, यज्ञ, और ज्ञानचर्चा आदि की आवश्यकता नहीं है सिर्फ़ एक मात्र भक्ति ही मुक्ति प्रदायनी है I
सूत जी शौनकादि से कह रहे हैं कि नारद के मुख से भक्ति की चर्चा सुनकर भक्ति के समस्त अंग पुनः पुष्ट हो गये, वो बिल्कुल स्वस्थ और युवा सी दिखने लगी और भक्ति ने नारद जी से कहना प्रारम्भ किया, "हे नारद जी आप परमात्मा के परम भक्त हैं और आपकी मुझमें अर्थात भक्ति में अनन्य प्रेम हैं आप अत्यंन्त कृपालू हैं आपने मेंरा समस्त दुःख क्षण मात्र में दूर कर दिया परन्तु महाराज मेरे पुत्र ज्ञान और वैराग्य अभी भी अचेत हैं मेरा आपसे पुनः निवेदन है आप इनकी चेतना के लिये प्रयास करें I 
भक्ति के इस प्रकार के वचनों को सुनकर नारद जी करुणा से भर गये उन्होने भक्ति के पुत्रों को अपने हांथ से हिलाडुला कर जगाने का प्रयास किया उन्हें वेदपाठ सुनाया, बार बार गीता पाठ भी किया, किन्तु ज्ञान और वैराग्य सिर्फ़ मात्र जम्हाई ही ले सके उन्होने अपने नेत्र तक नहीं खोले I
निरन्तर अचेत रहने के कारण वो दोनो अत्यंन्त दुर्बल हो गये थे उनकी दयनीय दशा देखकर नारद जी अत्यंन्त दुखी हुए और उन्हेने परमात्मा का स्मरण कर उनसे ज्ञान और वैराग्य के पुनरुद्धार के लिये निवेदन किया I
परमात्मा को नारद जी अत्यंन्त प्रिय हैं और प्रिय इसलिये हैं कि नारद जी सदैव दूसरों के कल्याण के लिये प्रयासरत रहते हैं दूसरों के लिये दया और करूणा के भाव से भरे रहते हैं, इसलिये परमात्मा ने नारद जी आकाशवाणी के माध्यम से कहा, "इनके कल्याण के लिये तुम एक सत्कर्म करों और वह सत्कर्म तुम्हे संतशिरोमणि बतलाएंगे"
आकाशवाणी सुनने के पश्चात नारद जी अत्यन्त दुबिधा में पड़ गये कारण यह कि उन्हें आकाशवाणी की बात स्पष्ट समझ में नहीं आई, नारद जी सोच में पड़ गये कि उन्हें वह सत्कर्म बताने वाले संतशिरोमणि कहां मिलेंगे I
इसके बाद नारद जी ज्ञान वैराग्य को अचेत अवस्था में छोड़ कर चल पड़्ते हैं और संतशिरोमणि की खोज में समस्त त्तीर्थों पर भृमण करते हैं परन्तु उन्हे ऐसा कोई संत नहीं मिला जो ज्ञान वैराग्य के कल्याण के लिये सत्कर्म बता पाता, नारद जी अत्यंन्त चिंन्तित थे और वो बद्रिकाश्रम गये वहां उन्हेने तप करने का निश्चय किया I तभी नारद जी वहां अत्यंन्त तेजश्वी सनकादि मुनिश्वर दिखाई दिये, सनादिमुनि देखने में पांच-पांच वर्ष के बालक से प्रतिक होते थे परन्तु वे परम ज्ञानी और परम तपश्वी थे, नारद जी ने उन्हें देख उनसे निवेदन किया, "हे महात्माओं मेरा परम सौभाग्य उदय हुआ है जिसके फ़लस्वरूप आप लोगों के दर्शन मुझे सुलभ हुए हैं, और नारद जी ने आकाशवाणी का पुण वृत्तंन्त उन्हें कह सुनाया, और बोले ये महात्माओं मैं आपके श्रीमुख से उस सत्कर्म के विषय में जानना चाहता हुं जिससे ज्ञान वैराग्य और भक्ति का कल्याण हो सके तथा जिससे सभी वर्णों में भक्ति की प्रतिष्ठा भी हो सके"
नारद जी वचनों को सुनकर सनकादि मुनियों ने कहा, "हे देवर्षि नारद, आप प्रसन्न हों चिन्ता से मुक्त रहें आपने दूसरों के उद्धार के हेतु से जिस सत्कर्म को जानने की इच्छा प्रकट वह एक सरल उपाय है और पूर्व ही विद्यमान है, आप तो संत शिरोमणि हैं विरक्तों में सूर्य के समान हैं, हे नारद जी, ऋषियों ने पूर्व से ही अत्यन्त मार्ग बताए हुए जो सिर्फ़ स्वर्ग मात्र की प्राप्ति कराते हैं अर्थात सभी साधन सिर्फ़ भोग की प्राप्ति तक सीमित हैं परन्तु परमात्मा की प्राप्ति जिस सत्कार्म से होती है वह गुप्त है और उसे आपके परम स्नेह के कारण हम बतलाते हैं आप प्रसन्न भाव से श्रवण करें I
सनकादि ने कहा. "नारद जी इस धरती पर जितने भी यज्ञ आदि अनुष्ठान लोग करते हैं वो सभी स्वर्ग अर्थात भोग की प्राप्तिका साधन मात्र हैं जैसे द्रव्य यज्ञ अर्थात धन द्वारा किये जाने वाल यज्ञ, तप यज्ञ, योग यज्ञ तथा स्वाध्याय ध्यान समाधि आदि ये सभी सिर्फ़ स्वर्ग आदि की उपलब्धि करा सकतेहैं श्री मदभागवत जी का पारायण अर्थात पाठ, श्रवण आदि से मनुष्य में भक्ति प्रगाढ होती है ज्ञान और वैराग्य की पुष्टि होती है, जिस प्रकार सिंह की गर्जना सुनकर लोमड़ी- भेड़िये आदि भाग जाते है उसी तरह कलियुग में भागवत जी सानिध्य में रहने वालों के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं I यहां एक बात स्पष्ट करना अत्यंन्त आवश्यक है, कि भागवत की का पाठ करने श्रवण करने तथा मनन करने से मनुष्य के हृदय में परमात्मा श्री कृष्ण के लिये भावभक्ति का प्रागट्य होता है और मनुष्य का पूर्ण प्रेम परमात्मा कृष्ण के प्रति हो जाता है वह निरन्तर परमात्मा कृष्ण के चिंतन में रहते हुए जीवन जीने लगता है, धीरे धीरे ज्ञान और वैराग्य उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं I
श्री मद्भागवत जी की कथा समस्त वेद-पुराण आदि के सार से निर्मित है जिस तरह फ़ल के अन्दर से प्राप्त होने वाला रस उस वृक्ष की जड़ से प्रारम्भ होकर तनों और डालियों के माध्यम से होता हुआ फ़ल में जाता है और फ़ल में जाकर वह रसता अथवा मधुरता को प्राप्त हो जाता है, परन्तु जड़ और तनों में मैजूद रस फ़ल के रस से मिन्न होता है उसी तरह समस्त वेद और पुराणादि वृक्ष के जड़ तनों आदि से हैं और भागवत जी उस मधुर फ़ल के समान हैं I
जिस तरह दूध में घी रहता है परन्तु दूध में घी का स्वाद अनुभव नहीं होता है, एक निश्चित और जटिल प्रक्रिया के पश्चात ही दूध से घी प्राप्त हो पाता है, जिस प्रकार चीनी गन्ने के अन्दर तो रहती है परन्तु एक प्रक्रिया के पश्चात ही चीनी ना निर्माण गन्ने के रस द्वारा ही किया जा सकता है श्रीमदभागवत जी समस्त वेदों और पुराणों के मूल तत्व द्वारा निर्मित घी अथवा शर्करा के समान हैं I
पूर्व काल का वृत्तांन्त है कि गीता- पुराणादि के रचनाकार श्री वेदाव्यास जी स्वयं महान गृन्थों की रचना करने के पश्चात भी संतुष्ट नहीं थे उनके अन्दर खिन्नता थी तथा अज्ञानता से दुखित थे उस समय नारद जी आपने स्वयं व्यास जी को चार श्लोकों के माध्यम से मार्गदर्शित किया था उन्हें आपने ही उपदेश दिया था जिसके सुनते ही व्यास जी चुन्तामुक्त हो गये थे, नारद जी श्री मदभागवत जी का श्रवण समस्त दुखों और शोकों से मुक्ति प्रदान कराने वाला है अतः आप उन्हें अर्थात ज्ञान वैराग्य को श्रीमदभागवत जी का श्रवण कराएं, जिसके श्रवण करने से अज्ञान रूपी मोह और मद का नाश होता है तथा वैराग्य प्रकट होता है ज्ञान और वैराग्य श्रीमदभागवत जी के श्रवण से पुनः पुष्ट होंगे I
                       ( क्रमशः कड़ी 19 जारी )


भागवत प्रसंग (17 ) धुंधुकारी और गोकर्ण के जन्म की कथा

प्राचीन काल में तुंगभद्रा नदी के तटपर बसे एक सुन्दर नगर में आत्मदेव नाम का एक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। उसका विवाह धुंधुली नामक एक उच्च कुल की सुन्दर कन्या से हुआ था। ‘विष रस भरा कनक घट जैसे’ की उक्ति को चरितार्थ करने वाली धुंधुली जितनी ही सुन्दर थी, उसका स्वभाव उतना ही दुष्ट, लोभी, ईर्ष्यालु व क्रूर था। कलहकारिणी पत्नी के साथ रहकर भी आत्मदेव अपनी गृहस्थी सन्तोषपूर्वक चला रहे थे। किन्तु विवाह के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी इस दम्पति को कोई सन्तान नहीं हुई। इसके लिए किये गये सभी उद्यम, यज्ञ- अनुष्ठान, व पुण्य-कर्म निष्फल रहे। अन्ततः हताश होकर प्राणत्याग की मंशा से आत्मदेव ने अपना घर छोड़ दिया।
अज्ञात दिशा में जा रहे आत्मदेव को मार्ग में एक सरोवर मिला। उसी के तटपर व्यथित हृदय बैठ गये। तभी एक तेजस्वी सन्यासी वहाँ से गुजर रहे थे। आत्मदेव को इसप्रकार दुःखी देखकर उन्होनें चिन्ता का कारण पूछा। आत्मदेव ने अपनी एकमात्र चिन्ता को सविस्तार बताया तो उस योगनिष्ठ तेजस्वी सन्यासी ने उसके ललाट को देखकर बताया कि – “निश्चित रूप से तुम्हारे मस्तक की रेखाएं बताती हैं कि तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार तुम्हें सन्तान की प्राप्ति नहीं हो सकती।इसलिए यह विचार छोड़कर सन्तोष कर लो, और भगवत् भजन करो।”
आत्मदेव ने जब हठपूर्वक यह कहा कि बिना सन्तान के जीवित रहने की उसे कोई इच्छा नहीं है तो उस तेजमय सन्यासी ने दयावश उसे एक दिव्य फल दिया और उसे पत्नी को खिला देने का निर्देश देकर चले गये।
आत्मदेव घर लौट आये और सारी कहानी बताकर वह फल पत्नी को खाने के लिए दे दिया; किन्तु उस दुष्टा ने सन्तानोत्पत्ति में होने वाले शारीरिक कष्ट, और उसके बाद पालन-पोषण की भारी जिम्मेदारी से बचने के लिए उस फल को खाने के बजाय कहीं छिपा दिया और आत्मदेव से झूठ में कह दिया कि उसने फल खा लिया है।
कुछ दिनों बाद धुंधुली की बहन मृदुली उससे मिलने आयी। हाल-चाल बताने में धुंधुली ने अपने झूठ के बारे में उसे बता दिया और भेद खुलने की चिन्ता भी व्यक्त करने लगी।
मृदुली ने अपनी बहन को चिन्तित देखकर एक योजना बना डाली। उसने कहा कि वह अपने गर्भ में पल रहे शिशु के पैदा होने के बाद उसे सौंप देगी। उस समय तक धुंधुली गर्भवती होने का स्वांग करती रहे। घर के भीतर पर्दे में रहते हुए ऐसा करना बहुत कठिन तो था नहीं। यह भी तय किया गया कि मृदुली अपने प्रसव के बारे में यह बता देगी कि जन्म के बाद ही उसका पुत्र मर गया।
योजना पर सहमति बन जाने के बाद मृदुली ने यह भी सलाह दिया कि उस दिव्य फल को तत्काल गोशाला में जाकर किसी गाय को खिला दिया जाय ताकि गलती से भी वह किसी के हाथ न लगे।
उसके बाद योजना के मुताबिक ही सबकुछ किया गया। मृदुली ने पुत्र-जन्म के तुरन्त बाद उसे अपने पति के हाथों ही धुंधुली के पास भेंज दिया और इधर उसकी मृत्यु हो जाने की सूचना फैला दी।
अपने घर में पुत्र के जन्म का समाचार पाकर आत्मदेव परम प्रसन्न हो गए और अन्न-धन इत्यादि का दान करने लगे। एक दिन धुंधुली ने अपनी दुर्बलता और खराब स्वास्थ्य, तथा अपनी सद्यःप्रसूता बहन के पुत्रशोक की कहानी एक साथ सुनाकर योजना के मुताबिक उसे घर बुलाने की मांग रख दी। आत्मदेव के समक्ष एक ओर बीमार और कमजोर पत्नी से उत्पन्न पुत्र को न मिल पाने वाला अमृत-तुल्य मातृ-सुख था तो दूसरी ओर पुत्र शोक में डूबी मृदुली का अतृप्त मात्रृत्व था। उन्हें पत्नी की मांग सहज ही उचित लगी और वे मृदुली को बुलाने स्वयं चले गये।
आत्मदेव ने मृदुली के घर जाकर अपने पुत्र के पालन-पोषण के लिए मृदुली को साथ ले जाने की याचना की। वह तो मानो तैयार ही बैठी थी। आत्मदेव का अनुरोध सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। मृदुली पुत्र का पालन पोषण करने आत्मदेव के साथ धुंधुली के पास आ गयी। बालक का नाम धुंधुली के नाम पर धुंधुकारी रखा गया।
उधर जिस गाय को वह दिव्य फल खिलाया गया था, उसके पेट से एक दिव्य बालक का जन्म हुआ जो अत्यन्त तेजस्वी था। आत्मदेव उस श्वेतवर्ण के बालक को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा स्वयं उसके पालन-पोषण का निश्चय किया। बालक के कान गाय के समान देखकर उसका नाम गोकर्ण रख दिया गया।इस प्रकार दोनो बालक एक ही साथ पाले गये। बड़ा होने पर एक ही साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल भेंजे गये; लेकिन वहाँ दोनो के संस्कार विपरीत दिशाओं में प्रस्फुटित हुए। विलक्षण प्रतिभा का धनी गोकर्ण गुरुकुल में अनुशासित रहकर वेदों और शास्त्रों का अध्ययन करते हुए परम ज्ञानी और तत्ववेत्ता बन गया; जबकि बुरे संस्कारों से उद्भूत धुंधुकारी अपनी उद्दण्डता और तामसिक प्रवृत्तियों के कारण निरन्तर अज्ञान के अन्धकार में समाता चला गया।
धुंधुकारी की मुक्ति कथा:-
भागवत कथा को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करने से जन्म जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है। श्रीमद भागवत कथा के श्रवण से महापापी का भी उद्धार हो गया। कथा व्यास ने बताया कि धुंधुकारी अति दुष्ट था। उसके पिता आत्मदेव भी उसके उत्पातों से दुखी होकर वन में चले गए थे। धुंधुकारी वेश्याओं के साथ रहकर भोगों में डूब गया और एक दिन उन्हीं के द्वारा मार डाला गया। अपने कुकर्मों के फलस्वरूप वह प्रेत बन गया और भूख प्यास से व्याकुल रहने लगा। एक दिन व्याकुल धुंधुकारी अपने भाई गोकर्ण के पास पहुंचा और संकेत रूप में अपनी व्यथा सुनाकर उससे सहायता की याचना की। इसलिए धुंधुकारी की मुक्ति के लिए गया श्राद्ध पहले ही कर चुके थे। लेकिन इस समय प्रेत रूप में धुंधुकारी को पाकर गया श्राद्ध की निष्फलता देख उन्होंने पुन: विचार विमर्श किया। अंत में स्वयं सूर्य नारायण ने गोकर्ण को निर्देश दिया कि श्रीमद्भागवत का पारायण कीजिए। उसका श्रवण मनन करने से ही मुक्ति होगी। श्रीमद् भागवत का पारायण हुआ। गोकर्ण वक्ता बने और धुंधुकारी ने वायु रूप होने के कारण एक सात गांठों वाले बांस के भीतर बैठकर कथा का श्रवण मनन किया। 
भागवत कथा में बांस की स्थापना :-
जब महात्मा गोकर्ण जी ने महाप्रेत धुंधुकारी के उद्धार के लिए श्रीमद् भागवत की कथा सुनायी थी, तक धुंधुकारी के बैठने के लिए कोई बांस की अलग से व्यवस्था नहीं की थी । बल्कि उसके बैठने के लिए एक सामान्य आसान ही बिछाया गया था ।महात्मा गोकर्ण जी ने धुंधुकारी का आह्वान किया और कहा -
"भैया धुंधुकारी ! आप जहाँ कहीं भी हों, आ करके इस आसान पर बैठ जाईये । यह भागवत जी की परम् पवित्र कथा विशेषकर तेरे लिए ही हो रही है । इसको सुनकर तुम इस प्रेत योनि से मुक्त हो जाओगे ।
 अब धुंधुकारी का कोई शरीर तो था नहीं, जो आसन पर स्थिर रहकर भागवत जी की कथा सुन पाते । वह जब जब आसन पर बैठने लगता, हवा का कोई झोंका आता और उसे कहीं दूर उड़ाकर ले जाता । ऐसा उसके साथ बार-बार हुआ ।वह सोचने
लगा कि ऐसा क्या किया जाये कि मुझे हवा उड़ा ना पाए और मैं सात दिन तक एक स्थान पर बैठकर भागवत जी की मंगलमयी कथा सुन पाऊँ, जिससे मेरा उद्धार हो जाये और मेरी मुक्ति हो जाये । वह सोचने लगा कि मेरे तो अब माता-पिता भी नहीं हैं, जिनके भीतर प्रवेश करके या उनके माध्यम से मैं कथा
सुन पाता । वो भी मेरे ही कारण मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं ।मेरे परिवार का तो कोई सदस्य भी नहीं बचा, जिनके माध्यम से मैं भागवत जी की मोक्षदायिनीकथा सुन पाऊँ । अब तो सिर्फ मेरे सौतेले भाई महात्मा गोकर्ण ही बचे हैं । जिनका जन्म गऊ माता के गर्भ से हुआ है । लेकिन उनके अन्दर मैं कैसे प्रवेश कर सकता हूँ, क्योंकि वो तो पवित्र व्यास पीठ पर बैठकर मुझे
परमात्मा की अमृतमयी कथा सुनाने के लिए उपस्थित हैं ।वह धुंधुकारी महाप्रेत ऐसा विचार कर ही रहा था कि उसने देखा जहाँ व्यास मंच बना हुआ है, वहाँ बांस का एक बगीचा भी है और उसकी नजर एक सात पोरी के बांस पर पड़ी । यह सोचकर कि बांस में हवा का प्रकोप नहीं होगा, सो वह बांस के अन्दर प्रवेश कर गया और बांस की पहली पोरी में जाकर बैठ गया ।पहले
दिन की कथा के प्रभाव से बांस की पहली पोरी चटक गयी । धुंधुकारी दूसरी पोरी में जाकर बैठ गया । दूसरे दिन की कथा के प्रभाव से दूसरी पोरी चटक गयी । धुंधुकारी तीसरी पोरी में जाकर बैठ गया । ऐसे ही प्रतिदिन की कथा के प्रभाव से क्रमशः बांस की एक-एक पोरी चटकती चली गयीऔर जब अन्तिम सातवें दिन की कथा चल रही थी तो धुंधुकारी महाप्रेत भी अन्तिम सातवीं पोरी में ही बैठा हुआ था । अब जैसे ही अन्तिम सातवें दिन भागवत जी की कथा का पूर्ण विश्राम हुआ तो बांस बीच में से दो फाड़ हो गया और धुंधुकारी महाप्रेत देवताओं के समान शरीर धारण करके प्रकट हो गया ।उसने हाथ जोड़कर बड़े ही विनय भाव से महात्मा गोकर्ण जी का धन्यवाद किया
और कहा - "भैया जी ! मैं आपका शुक्रिया किन शब्दों में करुँ ? मेरे पास तो शब्द भी नहीं हैं । आपने जो परमात्मा की मंगलमयी पवित्र कथा सुनाई, देखो उस महाभयंकर महाप्रेत योनि से मैं मुक्त हो गया हूँऔर मुझे अब देव योनि प्राप्त हो गयी है । आपको मेरा बारम्बार प्रणाम् तभी सबके देखते-देखते धुंधुकारी के लिए भगवान के धाम से सुन्दर विमान आया और धुंधुकारी विमान में बैठकर भगवान के धाम को चले गए ।सही मायने में सात पोरी का बांस और कुछ नहीं, हमारा अपना शरीर ही है । हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र हैं ।मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहद चक्र,विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र ।यदि किसी योग्य गुरु के सानिध्य में रहकर प्राणायाम का अभ्यास करते हुए मनोयोग से सात दिन की कथा सुनें तो उसको आत्म ज्ञान प्राप्त हो जाता है और उसकी कुण्डलिनी शक्ति पूर्णरुप से जागृत हो जाती है । इसमें कोई शक नहीं है । यह सात पोरी का बांस हमारा ही शरीर है। इसी प्रकार भागवत कथा में सात दिनों में एक-एक करके बांस की सातों गांठे फट गईं। धुंधुकारी भागवत के श्रवण मनन से सात दिनों में सात गांठे फोड़कर, पवित्र होकर, प्रेत योनि से मुक्त होकर भगवान के वैकुंठ धाम में चला गया।
                  ( क्रमशः कड़ी 18 जारी)

Thursday, November 25, 2021

महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज( कैली )बस्ती में डा. सौरभ द्विवेदी द्वारा प्रथम बार चमत्कारिक एलआरएस सर्जरी सम्पन्न

बस्ती। महसों के 40 वर्षीय युवक लल्लू का पैर चोट लगने से दो साल पहले खराब हो गया था। बस्ती के अनेक स्थानों पर कई सर्जरी कराने से यह ठीक नहीं हुआ। जब कैली महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कालेज बस्ती के युवा सर्जन डा. सौरभ द्विवेदी को पता चला तो उन्होंने इलीजारो रसियन टेक्नालॉजी से लिंब रीकांसट्रेक्सन सर्जरी( अंग पुनर्निर्माण सर्जरी ) सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। जो इस कालेज में प्रथम बार हुई है। रोगी को प्रधानमंत्री द्वारा संचालित आयुष्मान भारत योजना का लाभ उपलब्ध कराया गया है।इस उपचार में खराब अंग का सुधार और पुनः संरचना भी होती है। अगर अंग छोटा हो जाता है तो उसे पुनः पूर्ववत निर्मितकर बढ़ाया भी जाता है।

प्रमुख प्रक्रियाएं और सामान्य जानकारी :
‌यह शरीर के अंग के कार्य को बहाल करने के लिए की
‌जाने वाली एक प्रक्रिया है जिसे चोट, सर्जरी, चिकित्सा स्थिति, जन्म दोष या आघात के कारण काम करना बंद कर दिया गया है। सिर से पैर की अंगुली तक, इसका उपयोग कई प्रकार की स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है। सर्जरी प्रभावित शरीर के अंगों के कार्य को बहाल करने के बारे में है। ये सर्जरी मुख्य रूप से ऊतक को शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में स्थानांतरित करके क्षति को ठीक करने में मदद करती है।
पुनर्निर्माण सर्जरी के प्रकार:-
विभिन्न प्रकार की पुनर्संरचनात्मक सर्जरी से व्यक्ति को उस समस्या को सुधारने में मदद मिल सकती है जिससे वे पीड़ित हो सकते हैं।
1.पैरों और हाथों के लिए सर्जरी
हाथ और पैर दैनिक गतिविधि के लिए महत्वपूर्ण हैं और प्रत्येक रोगी के लिए सामान्य कार्य की बहाली महत्वपूर्ण है। यह सर्जरी आघात, ट्यूमर, जाल की उंगलियों या उंगलियों या जन्मजात असामान्यताओं के मामले में की जाती है।
2.घाव की देखभाल
यह सर्जरी उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो गंभीर रूप से जल गए हैं या कट गए हैं। यदि घाव गंभीर है, तो मरीज को पुनर्निर्माण सर्जरी से पहले मलबे (मृत ऊतक को हटाने) से गुजरना पड़ता है। मलबे के बाद, पुनर्निर्माण प्रक्रियाएं जैसे त्वचा ड्राफ्ट, आदि का प्रदर्शन किया जाता है।
पुनर्निर्माण शल्यचिकित्सा में फ्लैप प्रक्रियाएं (माइक्रोसर्जरी):-
इस सर्जरी में शरीर के एक स्थान से दूसरे क्षेत्र में स्वस्थ ऊतक का परिवहन शामिल है जो कुछ त्वचा या कंकाल का समर्थन खो चुका है। ये प्रक्रिया उन हिस्सों पर की जाती है जो चोट या पुरानी बीमारी से प्रभावित हुए हैं।
3.चेहरे की सर्जरी:-
चेहरे की पुनर्निर्माण सर्जरी एक व्यक्ति के चेहरे को बहाल करने में मदद करने के लिए की जाती है, जो उस गंभीर घटना के बाद उस व्यक्ति के चेहरे को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देता है।
4.स्तन पुनर्निर्माण:-
यह प्रक्रिया उन महिलाओं के लिए उपलब्ध है जो कुछ चिकित्सीय स्थितियों के कारण द्विपक्षीय मास्टेक्टॉमी (दोनों स्तनों को हटाने) से गुजर चुकी हैं। यह त्वचा, स्तन ऊतक और हटाए गए निप्पल को प्रतिस्थापित करके स्तनों को बहाल करने में मदद कर सकता है।
क्या पुनर्निर्माण सर्जरी प्लास्टिक सर्जरी से अलग है?
 पुनर्निर्माण सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी अक्सर एक दूसरे का उपयोग किया जाता है। हालांकि, दोनों के बीच कुछ अंतर हैं जो उन्हें अलग करते हैं। अपनी शारीरिक बनावट को सुधारने के लिए किसी व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं को बढ़ाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की जाती है। जबकि, पुनर्निर्माण संबंधी चिकित्सा शारीरिक विकृति को सुधारने के लिए की जाती है जो किसी दुर्घटना या जन्म के बाद से हो सकती है। प्लास्टिक सर्जरी एक मरीज की पसंद है, कोई है जो स्वेच्छा से उस संपूर्ण स्वरूप को प्राप्त करना चाहता है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। दूसरी ओर, डॉक्टर की सलाह पर पुनर्निर्माण सर्जरी की जाती है।
दूसरे प्रकार की सर्जरी की कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं, लेकिन अंत में, दोनों सर्जरी में शल्य क्रिया की आवश्यकता होती है और समान जटिलताएं हो सकती हैं।


Monday, November 22, 2021

कृषि कानून की वापसी कई नए सवाल भी डा. राधे श्याम द्विवेदी

 
      गुरुनानक जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की है।देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी ने किसानों से अब घर लौटने की अपील की और कहा कि इस कानून को खत्म करने प्रक्रिया शीतकालीन सत्र में शुरू हो जाएगी। पीएम मोदी ने कहा कि हमारी तपस्या में ही कमी रही होगी, जिसकी वजह से हम कुछ किसानों को नहीं समझा पाए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा 'पांच दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में मैंने किसानों की मुश्किलों, चुनौतियों को बहुत करीब से अनुभव किया है।'

            कृषि कानूनों के संदर्भ में पीएम मोदी ने कहा कि बरसों से ये मांग देश के किसान, देश के कृषि विशेषज्ञ, देश के किसान संगठन लगातार कर रहे थे। पहले भी कई सरकारों ने इस पर मंथन किया था। इस बार भी संसद में चर्चा हुई, मंथन हुआ और ये कानून लाए गए। किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि कानून लाए गए थे। मकसद ये था कि देश के किसानों को, खासकर छोटे किसानों को, और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले। लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया।   

               उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।

           पीएम मोदी ने कहा कि एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे। उन्होंने कहा कि आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फैसला लिया है। जीरो बजट खेती यानि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने के लिए।
          तीनों कृषि कानून वापसी के पीएम नरेंद्र मोदी के फैसले के बाद किसानों ने टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर जश्न मनाया। किसानों ने कहा कि गुरुपर्व पर यह उनके संघर्ष की जीत है। किसान संगठनों ने आंदोलन वापस होने पर कुंडली बॉर्डर पर लड्डू बांटे।
         भाकियू नेता शमशेर सिंह दहिया ने कहा कि यह किसानों की बहुत बड़ी जीत है। इसमें संयुक्त मोर्चे को बहुत बहुत बधाई है। एक साल बाद देर आए दुरुस्त आए प्रधानमंत्री ने आखिरकार किसानों की मांगें मान ली है, क्योंकि यह एक सच्ची लड़ाई थी।
नए उठते कुछ सवाल :-
1. जनाकांक्षाओं का नाम दे दबाव बनाया गया:-
    यह शुभ संकेत नहीं कि संसद से पारित कानून सड़क पर उतरे लोगों की जिद से वापस होने जा रहे हैं। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसा न हो, अन्यथा उन तत्वों का दुस्साहस ही बढ़ेगा, जो मनमानी मांगें लेकर सड़क पर आ जाते हैं। तुष्टिकरण और उन्माद हटे। अगर भारत माता के शरीर पर इतना बड़ा घाव करके भी हम कुछ नहीं सीख पाये, तो यह हम सबका दुर्भाग्य ही होगा। लोकतंत्र में लोगों की इच्छाओं का सम्मान होना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जोर-जबरदस्ती को जनाकांक्षाओं का नाम दे दिया जाए। यह बिल्कुल ठीक नहीं कि किसानों और खासकर छोटे किसानों का भला करने वाले कृषि कानून सस्ती राजनीति की भेंट चढ़ गए। इन कानूनों की वापसी आम किसानों की जीत नहीं, एक तरह से उनकी हार ही है, क्योंकि वे जहां जिस मुकाम जिस हाल में थे,आज भी वहीं खड़े दिखने लगे हैं।
2. किसान आन्दोलन सिर्फ विरोध के लिए खड़ा किया गया :-
    कृषिआन्दोलन को करीब से देखने और उसका विश्लेषण करने वाले बताते हैं कि यह किसान आन्दोलन सिर्फ सरकार के विरोध के लिए खड़ा किया गया था, जिसके लिए फंडिंग विदेशों से भी आती थी। पूरे आन्दोलन के दौरान कई बार देश में अस्थिरता लाने के कई प्रयास भी हुए, कुछ में आन्दोलनकारी सफल हुए तो कुछ में विफल। चाहे वो इस साल की शुरूआत में लाल किले में खालिस्तानी झंडा फहराने में कामयाब हुए तथाकथित किसानों का मामला हो, या फिर देश में टूलकिट के माध्यम से एक विशेष जंग छेड़ने की तैयारी। कई उतार-चढ़ाव आये पर किसान आन्दोलन पनपता रहा। और इसी की आड़ में सुलगती रही विपक्षी दलों की राजनीति की आग। अंततः इनका एक मकसद कनून वापसी से पूरा हो गया।अब वे अपने विरोध के नए नए प्रतिमान खोज लेंगे।
3.संविधान व राष्ट्र के संघीय ढांचे के विपरीत:-
     इस मामले को इतना समय देना और कुछ अलग तरह के किसानों के दबाव में आने के कारण ये निर्णय लेना पड़ा लगता है। कई राज्यों के चुनाव में भी यह फैक्टर प्रभाव कारी रहा। लगता है भाजपा उत्तर प्रदेश और पंजाब आदि पांच राज्यों के आसन्न चुनाव में डैमेज कंट्रोल बचाने के लिए यह निर्णय लेना पड़ा। सरकार पर आगे और तरह के दबाव भी आ सकते हैं। सीएए और यूएपीए का विरोध, संविधान बचाओ देश बचाओ और भी तरह तरह के नारे देकर विपक्ष अपनी जमीन बचाने में लगा है। टिकैत , जयंत सिंह, ममता,शरद पवार तथा शिवसेना आदि जिन्हें खोने के लिए कुछ भी नहीं है।इसलिए यह प्रयोग देश संविधान और राष्ट्र के संघीय ढांचे के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है। इस कानून की वापसी से भारतीय गणतंत्र, भारतीय संविधान और उन असंख्य जनता का अपमान हुवा है जिन्होंने भारी बहुमत से सरकार को अपना जनमत दिया था। जहां पूरी बहस और वैधानिक प्रक्रिया के ज़रिए कानून बना था।जिसे अक्षम विपक्ष ने काले कानून की संज्ञा देकर खुद का वजूद मिटा दिया है। अब संसद में सारे घटना क्रम की सफाई देकर विशेषज्ञों की राय से नया कानून निर्मित किया जा सकता है जिसमें टुकड़े टुकड़े गैंग,बार्डर सील करने और लाल किले पर देश का अपमान करने वाले तत्व को दूर रखना होगा।

             











Saturday, November 20, 2021

प्रकृति प्रेम को समर्पित बाल सोम गौतम कृत तरुमंगल लघुकाव्य/ समीक्षक डा. राधेश्याम द्विवेदी

स्व. बाल सोम गौतम का जन्म श्रावण शुक्ला द्वितीया संवत 1985 विक्रमी/1 दिसम्बर 1929 ., उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के सल्टौआ गोपालपुर व्लाक के खुटहन नामक गांव के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनकी ससुराल टिनिच के पास शिवपुर में है और वे वहां भी रहते थे। जीवन के अन्तिम दिनों में टिनिच में रहते हुए उन्होने साहित्य की साधना की है। उन्होने गन्ना विभाग में सुपरवाइजर पद की नौकरी कर बस्ती बहराइच तथा गोण्डा जनपद में काफी भ्रमण तथा कार्य किया है। वह 31मार्च 1984 को स्वेक्षा से सेवा मुक्त हुए थे। उन्होनेमौलश्रीनामक मासिक पत्रिका का संपादन भी किया है। वे उच्चकोटि के गीतकार थे तथा देश के अनेक ख्यातित कवियों के सानिध्य में रह चुके हैं।  नवोदितों को प्रायः मार्ग दर्शन करते रहते थे। 20 नवम्बर 2016 को टिनिच बाजार स्थित सरस्वती सदन में उन्होने जीवन की अंतिम सांसे ली। स्व. बालसोम जी के साथ ज्यादा तो नहीं मिला किन्तु श्रीचन्द की दुकान पर उठते बैठते तथा बस्ती जिले में विधि की पढ़ाई के दौरान हो जाया करती थी। उनके साथ कुछ कवि सम्मेलनों में भी जाने का अवसर मिला था। सरस्वती सदन टिनिच की गोष्ठी में भी भाग लेने का अनेक अवसर मिला। वे चाय की दुकान पर या अवकाश के दिनों में अपनी कुछ पंक्तियां घटनायें अवश्य सुनाया करते थे। उनके साथ खुनियाव इटवा सिद्धार्थ नगर, अठदमा राजा साहब तथा नौगढ़ वर्तमान सोनभद्र में जाने का अवसर अवश्य मिला था। आवास विकास कालोनी बस्ती स्थित उनके आवास पर अनेक बार उनका सानिध्य मिला। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों भ्रष्टाचार से आजिज होकर समय पूर्व अवकाश लेकर साहित्य साधना में लीन हो गये थे। वे अपने किसी शुभचिन्तक को कभी भी निराश नहीं करते थे। सरल तपस्यवियों की तरह जीवन यापन करने वाले बाल सोम जी बहुत ही सुलझे हुए इन्सान थे।   
                                                             

  मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम

बाल सोम गौतम का “तरुमंगल” एक लघु काव्य, जो अभी विगत दिनों प्रकाशित हुआ है, इसमें पर्यावरण से सम्बन्धित अनेक सरल गीतों का संकलन किया गया है। वे बहुत ही प्रकृति प्रेमी इन्सान थे। “मौलश्री” नामक पत्रिका का नाम भी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है। उनके टिनिच आवास एक सुन्दर उपवन में बना हुआ है। उन्होंने वैसे तो गीतों की बहुत बड़ी सीरीज लिख छोड़ी है। वह अनगिनत कविताओं के सुप्रसिद्ध रचनाकार रहे हैं। हम उनके पावन स्मृति को सादर नमन करते हैं । उनके कुछ की पक्तियां नमूना स्वरुप यहां प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हॅू –

 

हम चाहे रहें न रहें ये रहें, नित ही द्रुम द्वारे हरे हरे ये।
रहें द्वारे हमारे हमेशा बने, द्रुम देव दुलारे हरे हरे ये।
तने यों ही रहें सर ऊॅचां किये,सदियों तरु सारे हरे हरे ये।
सदा शीतल छांह गहाये रहें, तरु प्यारे हमारे हरे हरे ये।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
ये भले महरुम जबान से हैं, पर पूरित आंख से कान से हैं।
अनजान से ये दिखते हैं भले, नहीं वंचित किन्तु ये ज्ञान से हैं।
कम पूज्य न वेद कुरान से ये, घट के न किसी भगवान से हैं।
वरदान से हैं मिले प्राणियों को, तरु ये हमको प्रिय प्रान से हैं।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम 
जहां वृक्ष लता न सुखी सरिता, न ही शीतल मंद बयार जहां।
खगवृन्द करें न कलोल जहां, न ही गुंजित मेघ मल्हार जहां ।
न तो नाचते मोर न श्याम घटा, छटा सावन की न फुहार जहां ।
कहो कैसे भला वहां कोई टिके, न हो वृक्ष घना छतनार जहां।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
घर चाहे बने न बने अपना, कर लेंगे गुजारा इन्हीं के तले।
सच बोलते हैं हम लेंगे बिता, यह जीवन सारा इन्हीं के तले।
रह लेगा सुखी से मजे में यहीं,परिवार हमारा इन्हीं के तलें।
जो मरें तो इन्हीं विटपों के तले, जनमें जो दुबारा इन्हीं के तले।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
बसने को वहां मन क्यों न कहे,सुमनों का जहां सुनिवास रहे।
चरने को सदा हिरनों के लिए,चहु ओर हरी हरी घास रहे।
कभी धूप खुली कभी छांव घनी, नदी-ताल भी आस ही पास रहे।
मन क्यों न रमें उस ठौर जहां,तरु संग विहंग विलास रहे।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम 
ले टिकोरे खड़ी अमराई जहां, वहां न पिकी का निवास रहे।
कहो कूके न क्यों वहां प्यारी पिकी, जहां हाजिर हर्ष-हुलास रहे।
सुमनों से सजी हो दिशाए जहां,पसरा चहु ओर सुबास रहे।
मधुपों की जमात जमीं हो जहां, वहा क्यों न जमा मधुमास रहे।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
यदि चाहते वंशी रहे बजती, सुख चैन की रात उजाली रहे।
न हो खाली खजाना खुशी का कभी,नित खेलती होंठ पे लाली रहे।
मन की अमराई न सूनी रहे,सदा कूंकती कोयल काली रहे।
घरती को ढ़को तरु पललवों से, चहुं ओर सजी हरियाली रहे।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
चलो भागो कटेरों अभी यहां से, कभी लौट दुबारा न आना यहां।
तरुओं को तरेरता जो भी उसे, पड़ता दृग दोऊ गवाना यहां।
इस ओर न झांकना भूल के भी, मत सूरत स्याह दिखाना यहां।
कभी आना ही आना पड़े यदि तो,यह काला कुठारा न लाना यहां।।8II
tree के लिए इमेज परिणाम
पृथ्वी पर तत्व महत्व के ये, यह सत्य कदाचिद् जाना नहीं।
यह वृक्ष तुम्हारे भी तो हैं हितू, लगता है इन्हें पहचाना नहीं।
पर सेवा व्रती इन पादपों को, दुख दे अपकीर्ति कमाना नहीं।
कहलाना कृतघ्न नहीं निजको, इन्हें कष्ट कभी पहुंचाना नहीं।।9II
pakar tree के लिए इमेज परिणाम
हित हेतु सभी तनधारियों के, अवतार लिये अवनी पर ये।
विहगों को न केवल मात्र विहार,आहार भी देते विरादर ये।
बट पीपर गूलर पाकर ये, बनें यों ही रहे निशिवासर ये।
कटने नहीं देंगे कदापि इन्हें, कट जायें भले अपना सर ये।।10II
pakar tree के लिए इमेज परिणाम
चिर मौनव्रती सब योगी यती, तपधारी सभी तरु न्यारे हैं ये।
ऋषियों मुनियों को रहे प्रिय ये,नहीं केवल देव-दुलारे हैं ये।
प्रिय हैं इनके उनके सबके, नहीं मात्र हमारे तुम्हारे हैं ये।
धरती को सजाए संवारे हुए,बड़े भोले हैं ये बड़े प्यारे हैं ये।।11II
pakar tree के लिए इमेज परिणाम
सुख देते समान सदा सबको, महिपाल स्वरुप महीं पर ये।
प्रतिपालक कीट पतंग के भी, नभ चूम रहे बट-पीपर ये।
सदा देते ही देते रहे हैं हमें, हमसे कुछ लेते नहीं पर ये।
सुरलोक में भी प्रिय पूजित हैं, नहीं केवल पूज्य यहीं पर ये।।12II
fruit tree के लिए इमेज परिणाम
विश्राम के हेतु घड़ी दो घड़ी, सकुचाना नहीं चले आना यहां।
चले आना यहां बड़े शौक से तू,भरपूर छंहाना-जुड़ाना यहां।
पर घ्यान रहे इस बात का भी,मत ढ़ेला से हाथ छुआना यहां।
फल बीन के खाना मना नहीं है पर झोर के एक न खाना यहां।।13II
fruit tree के लिए इमेज परिणाम
सुनना चुपचाप पखेरुओं का , कलगायन शोर मचाना नहीं।
खुश होकर नाच भी लेना भले, पर ताली थपोड़ी बजाना नहीं।
हृदयंगम ये भी रहे कि यहां, कभी आकर जाल विछाना नहीं।

करना ना भयंकर भूल कभी, इन्हें गुल्ता-गुलेल दिखाना नहीं।।14II

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