Monday, August 28, 2023

भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र और उसका स्वरूप आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

महामृत्युंजय-मन्त्र जप से मृत्यु को जीतने वाले महारुद्र प्रसन्न हो जाते हैं और मनुष्य को रोग, दु:ख व अकालमृत्यु से मुक्ति प्रदान करते हैं। काल के भी महाकाल भगवान मृत्युंजय शिव जी को जाना जाता है। सारा संसार जिस कालकूट विष व नागों से भयभीत रहता है उसे भगवान शिव अपने गले में धारण करते हैं। देवता अमृतपान कर भी अमर नहीं हुए किन्तु भगवान शिव ने कालकूट विष पीकर देवताओं को अभयदान दिया। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है, वे अमृत रूप हैं, इसलिए उन्हें ‘मृत्युंजय’ कहते हैं।
महामृत्युंजय भगवान का स्वरूप :-
भगवान मृत्युंजय (त्र्यम्बक) की आठ भुजाएं हैं। वे अपने ऊपर के दो हाथों से दो कलशों में अमृतरस लेकर उसे अपने मस्तक पर उड़ेल रहे हैं और दो हाथों से उन्हीं कलशों को थामे हुए हैं। सबसे नीचे के दो हाथों में भी दो अमृत कलश लेकर उन्हें अपनी गोद में रख लिया है। शेष दो हाथों में से एक में रुद्रा़क्षमाला और दूसरे में मृगमुद्रा धारण किए हुए है। वे श्वेत कमल पर बैठे हैं, मुकुट पर बालचन्द्र और मुख पर तीन नेत्र सुशोभित हैं। उनके सिर पर स्थित चन्द्र से निरन्तर अमृतवृष्टि होने के कारण उनका शरीर भीगा हुआ है। उन्होंने मृत्यु को जीत लिया है। उनके वामभाग में गिरिराज नन्दिनी उमा विराजमान हैं।भगवान शिव के गोदी में रखे हाथों में दो अमृत कलश हैं जिसका अर्थ है कि वे उपासक की साधना से प्रसन्न होकर उसे अमृतत्व (मोक्ष) प्रदान करते हैं और जिन दो अमृत कलशों को वे अपने ऊपर उड़ेल रहे हैं उसका अर्थ है कि वे स्वयं अमृत से सराबोर अमृत रूप ही हैं।
मृत्युंजय-जप का मूल मन्त्र:-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
(शुक्लयजु. ३।६०)
मृत्युंजय-मन्त्र का अर्थ :-
‘मैं परमब्रह्म परमात्मा त्रिनेत्रधारी शंकर की वन्दना करता हूँ, जिनका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है और जो विश्व के बीज हैं एवं उपासकों के धन-धान्य आदि पुष्टि को बढ़ाने वाले हैं। जैसे पके हुए ककड़ीफल (फूट) की उसके वृक्ष से मुक्ति हो जाती है; वैसे ही काल के आने पर इस मन्त्र के प्रभाव से हम कर्मजन्य पाशबंधन से और मृत्युबंधन से मुक्त हो जाएं और भगवान त्र्यम्बक हमें अमृतत्व (मोक्ष) प्रदान करें।’
       ॐकार रूप शिवलिंग पर दृष्टि स्थिर रखकर, महा मृत्युंजय-मन्त्र का जप करते हुए यदि अनवरत जलधारा प्रवाहित की जाए तो एक विलक्षण आनन्द की अनुभूति होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि साधक अपने- आप को श्रीत्र्यम्बकेश्वर के प्रति समर्पित कर रहा है। श्रीत्र्यम्बकेश्वर की कृपा की सुगन्ध फैल रही है और उपासक के रोम-रोम में स्फूर्ति होने लगती है।
सम्पुटित महामृत्युंजय-मन्त्र:-
‘ॐ हौं जूं स:, ॐ भूर्भुव: स्व:, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्व: भुव: भू: ॐ। स: जूं हौं ॐ।’
        यह सम्पुटित महामृत्युंजय मन्त्र है। भगवान मृत्युंजय का ध्यान करके रुद्राक्षमाला से मन्त्र का जप करना चाहिए। इसको ‘त्र्यम्बक-मन्त्र’ भी कहते हैं। इसका सवा लाख जप सभी कामनाओं की पूर्ति करता है। जप के अंत में दशांश हवन, उसका दशांश तर्पण, उसका दशांश मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन आदि कराना चाहिए। मृत्युंजय-मन्त्र के जप के बाद भगवान महारुद्र से प्रार्थना करनी चाहिए–
मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।
जन्ममृत्युजरारोगै: पीडितं कर्मबन्धनै:।।
अर्थात्–‘हे मृत्युंजय! महारुद्र! जन्म-मृत्यु, बुढ़ापा आदि विभिन्न रोगों एवं कर्मों के बन्धन से पीड़ित मैं आपकी शरण में आया हूँ, मेरी रक्षा करो।’
महामृत्युंजय-मन्त्र जप के लाभ :-
यह मन्त्र ‘संजीवनी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में जीवन को कोई भरोसा नहीं है। सड़क दुर्घटनाएं प्रतिदिन ही सुनने को मिलती हैं। इस मन्त्र के जप से बिजली, सड़क-दुर्घटना, सांप के काटने से व अन्य प्रकार की अकालमृत्यु से जीवन की रक्षा होती है।        
        यह मन्त्र रोगों से भी रक्षा करता है। यदि श्रद्धा-भक्तिपूर्वक विधि सहित इस मन्त्र का जप किया जाए तो जिन रोगों को डॉक्टर्स असाध्य कह देते हैं, उन रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है।
        इस मन्त्र के जप से दीर्घायु, शान्ति, धन, सम्पत्ति, तुष्टि तथा सद्गति प्राप्त होती है। यह मन्त्र मोक्षदायक है।
महादेवजी की पूजा करके त्र्यम्बक मन्त्र का जप करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है व अतुलनीय सौभाग्य प्राप्त करता है और पुत्र-पौत्रों के साथ सुखमय जीवन प्राप्त करता है।
     सबसे बड़ा लाभ इस मन्त्र-जप का यह है कि इससे भगवान शिव के श्रीचरणों में अखण्ड प्रेम प्राप्त हो जाता है।
महामृत्युंजय-मन्त्र की महिमा :-
भगवान मृत्युंजय के जप-ध्यान से मार्कण्डेयजी व राजा श्वेत आदि का कालभय निवारण हुआ। दशार्ण देश के राजा वज्रबाहु की सुमति नामक रानी जब गर्भवती थीं तो अन्य रानियों ने सौतिया-डाह के कारण उसे विष दे दिया। विष के प्रभाव से रानी और गर्भस्थ शिशु का शरीर घावों से भर गया। शिशु के जन्म के बाद भी उसका सारा शरीर व्रणयुक्त था। अन्य रानियों की सलाह पर राजा ने रानी सुमति को वन में छुड़वा दिया। वन में रानी बड़े ही कातरभाव से भगवान शंकर की प्रार्थना करने लगी। फलस्वरूप भगवान आशुतोष ‘शिवयोगी’ के रूप में प्रकट हो गए और उन्होंने सुमति को मृत्युंजय-मन्त्र का जप करने को कहा और बच्चे के शरीर पर लगाने के लिए भस्म दी। शिवयोगी ने बच्चे का नाम ‘भद्रायु’ रखा। रानी व बड़े होकर भद्रायु दोनों मृत्युंजय-मन्त्र का जप करने लगे। उधर राजा वज्रबाहु का राज्य शत्रुओं ने छीन लिया। एक दिन भद्रायु के मन्त्र जप से प्रसन्न होकर शिवयोगी पुन: प्रकट हो गए और उन्होंने उसे एक तलवार व शंख दिया और बारह हजार हाथियों का बल प्रदान किया। भद्रायु ने अपने पिता के शत्रुओं को मारकर राज्य पुन: प्राप्त कर लिया और मन्त्र जप के प्रभाव से सुख-शान्तिपूर्वक राज्य करते हुए अंत में वह शिवसायुज्य को प्राप्त हुआ।
          भगवान की शरण में आने पर वे सदैव रक्षा करते हैं। भगवान त्र्यम्बक के समान दयालु और सरलता से प्रसन्न होने वाला कोई देवता नहीं है। उनका मन्त्र भी वैसा ही है।


Saturday, August 26, 2023

भगवान शिव का जीता जागता अक्षय स्वरूप मृत संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र

मेरी पत्नी की स्वास्थ्य अस्थिर रहता है। विगत एक पखवारे से वायरल बुखार , रक्त शर्करा, अस्थमा - खांसी और स्वास - प्रस्वास की दशा बिगड़ने से वह परेशान रही है। मेरे पुत्र डा. सौरभ द्विवेदी ने कई बार उसे अपने देखरेख में अपने अस्पताल से निरोग किया है।इस बार उसे अन्य चिकत्सक और अस्पताल में भर्ती करा कर निरोग कराया है । मां के सानिध्य के लिए उसने अपने कुछ शुभ चिंतकों से विस्तृत ग्रह दशा का अध्ययन कराया तो मार्केश की दशा का संकेत मिला है। स्वास्थ्य सुधार को स्थाई करने के लिए काशी के सप्त सदस्यीय विद्वत मण्डली से महामृत्युंजय जप और पूजा का सप्त दिवसीय आयोजन बस्ती शहर स्थित कमला सदन नामक मेरे आवास पर विगत तीन दिन से चल रहा है। जिसका पूर्णाहुति दिनाक 31 अगस्त 2023 को सम्पन्न होगा। हमारे नोवा हॉस्पिटल और एपेक्स डायग्नोस्टिक्स के स्टाफ का सहयोग भी सराहनीय रहा है।
          भगवान शिव की आराधना करने से जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और इनके मंत्रों का जाप करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं. धार्मिक ग्रथों में भगवान शिव के कई स्वरूपों का वर्णन किया गया है. इसमें से भगवान शिव का एक स्वरूप महामृत्युंजय स्वरूप भी है. इस स्वरूप में भगवान शिव हाथों में अमृत लेकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. ऐसे में महामृत्युंजय मंत्र के जाप से व्यक्ति को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है.भगवान शिव के अनेक स्वरूपों में एक महामृत्युंजय स्वरूप भी है. इसलिए महादेव को मृत्युंजय भी कहा जाता है. वहीं महामृत्युंजय मंत्र में भगवान शिव के महामृत्युंजय स्वरूप से आयु की रक्षा प्रार्थना की गई है.महामृत्युंजय मंत्र कई प्रकार से जपे जाते हैं। सर्वाधिक लोकप्रिय मंत्र इस प्रकार है -
त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम पुष्टिः वर्धनम् ।
उर्वारुकम् इव बन्धनात् मृत्योः मुक्षीय मा अमृतात् ।
       इस मंत्र को जपने की कई सावधानियां और नियम बताए गए हैं. इन नियमों का पालन करके अगर महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाए तो ये ज्यादा प्रभावशाली होता है. महामृत्युंजय मंत्र का जाप सुबह और शाम दोनों समय किया जा सकता है. अगर कोई संकट की स्थिति है तो इस मंत्र का जाप कभी भी किया जा सकता है. इस मंत्र का जाप शिवलिंग के सामने या भगवान शिव की मूर्ति के सामने करना ज्यादा बेहतर होता है. महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए. ऐसा करना शुभ माना जाता है. मंत्र का जाप करने से पहले भगवान शिव को जल और बेलपत्र अर्पित करें और फिर मंत्र का जाप करें. ऐसा करना ज्यादा उत्तम होता है.
सावधानियां और नियम :-
जप से पूर्व गुरु आह्वाहन जरूर करें।
षट कर्म व घी का दीपक जलाएं।
जप घर के पूजन गृह या शिव मंदिर में ही करें।
जप के दौरान ब्रह्मचर्य पालन अनिवार्य है।
जप के दौरान स्वयं बनाया भोजन करें तो उत्तम है।
जप के बाद शांतिपाठ करके उठें।
मन्त्र उच्चारण शुद्ध हो यह ध्यान रखें।
मन्त्र होठ हिले मगर शब्द उच्चारण कोई सुन न सके ऐसा उपांशु जप करें।
जप में रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करें। यदि रुद्राक्ष में हो तो तुलसी की माला का प्रयोग करें।
जप ऊनी कम्बल के आसन में पूर्व या उत्तर दिशा में करें।
शांतिपाठ अवश्य करें।
पूर्ण मृत संजीवनी मन्त्र –
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्र्यंबकंयजामहे ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ।।
संक्षिप्त मृत संजीवनी मन्त्र –
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
ॐ स्व: भुव: भू: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।


Monday, August 14, 2023

विभाजन विभीषिका एक विदेशी षडयंत्र डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

 
14 अगस्त 1947 को आर्यावर्त भारत देश का विभाजन ही नही हुआ अपितु वैदिक सनातन संस्कृति की धज्जियां एक बहुत बडे़ षडयंत्र के तहत उड़ाई गई और ऐसा विष वृक्ष रोप दिया गया जिसका दंश आज भी देश झेल रहा है। अनेक जातीय और अल्पसंख्यक संस्थानों को अलग अलग विशेषधिकार पूर्ण संस्था बना कर विदेशी एजेंडा लागू किया गया। तथकथित पंडित जी तथा कथित राष्ट्रपिता और कोलोनोजियम सिस्टम सब इसी प्रकार के मनमाने सोपान बना दिए गए जिन्हें सामान्य करने में पूर्ण बहुमत की सरकार को चने चबाने पड़ रहे हैं।
विभाजन विभीषिका स्मरण एक राष्ट्रीय स्मारक दिवस :-
विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस भारत में 14 अगस्त को मनाया जाने वाला एक वार्षिक राष्ट्रीय स्मारक दिवस है , जो 1947 के भारत विभाजन के दौरान लोगों के पीड़ितों और पीड़ाओं की याद में मनाया जाता है । प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद इसे पहली बार 2021 में मनाया गया था । यह दिन विभाजन के दौरान कई भारतीयों की पीड़ा को याद करता है। विभाजन में कई परिवार विस्थापित हुए और कईयों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।इसका उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक विभाजन, वैमनस्य को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को और मजबूत करने की याद दिलाना है। विभाजन के कारण 10 से 20 मिलियन लोग विस्थापित हुए और 2 लाख से 2 मिलियन लोग मारे गए। 
विभाजन की पृष्ठभूमि:-
विभाजन ब्रिटिश भारत दो स्वतंत्र राष्ट्रों का विभाजन था जो भारत और पाकिस्तान के रूप में बने। तब से दोनों राज्य आगे पुनर्गठन से गुजरे हैं। भारत का राष्ट्र 1950 से भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है जबकि पाकिस्तान का राष्ट्र उस चीज़ से बना था जिसे 1956 से इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान और 1971 से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ बांग्लादेश के रूप में जाना जाता है। विभाजन में जिला-व्यापी गैर-मुस्लिम या मुस्लिम के आधार पर दो प्रांतों, बंगाल और पंजाब का विभाजन शामिल था। विभाजन में ब्रिटिश भारतीय सेना , रॉयल इंडियन नेवी , भारतीय सिविल सेवा , रेलवे और केंद्रीय खजाने का विभाजन भी हुआ । विभाजन की रूपरेखा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में दी गई थी और इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश राज , यानी भारत में क्राउन शासन का विघटन हुआ । भारत और पाकिस्तान के दो स्वशासी स्वतंत्र राष्ट्र 15 अगस्त 1947 की आधी रात को कानूनी रूप से अस्तित्व में आए।
धार्मिक आधार पर विभाजन :-
विभाजन के कारण धार्मिक आधार पर 10 से 20 मिलियन लोग विस्थापित हुए, जिससे नवगठित उपनिवेशों में भारी शरणार्थी संकट पैदा हो गया। बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, विवादित विभाजन के साथ या उससे पहले जानमाल के नुकसान का अनुमान कई लाख से दो मिलियन के बीच था। विभाजन की हिंसक प्रकृति ने भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता और संदेह का माहौल बनाया जो आज तक उनके संबंधों को प्रभावित करता है।
स्मरण दिवस का मानने का कारण :-
14 अगस्त 2021 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 1947 में विभाजन के दौरान भारतीयों के कष्टों और बलिदानों की याद दिलाने के लिए 14 अगस्त को प्रतिवर्ष विभाजन भयावह स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाएगा। "विभाजन के दर्द को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। हमारी लाखों बहनें और भाई विस्थापित हो गए और कई लोगों ने नासमझ नफरत और हिंसा के कारण अपनी जान गंवा दी। हमारे लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में, 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस हमें सामाजिक विभाजन, वैमनस्य के जहर को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को और मजबूत करने की याद दिलाता रहे।” 
इसके अगले साल 2022 में, दिल्ली मेट्रो ने एक प्रदर्शनी स्थापित करके विभाजन भयावह स्मृति दिवस का सम्मान किया जिसमें "लाहौर और अमृतसर में क्षतिग्रस्त इमारतों पर पैनल" शामिल थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2022 में सभी शैक्षणिक संस्थानों से विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस मनाने की योजना बनाने का आग्रह किया। कश्मीर विश्वविद्यालय ने " विभाजन के लाखों पीड़ितों की पीड़ा, पीड़ा और दर्द" को उजागर करने के उद्देश्य से एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन करके विभाजन भयावह स्मृति दिवस का सम्मान किया। 
यह भारत का विभाजन तो नही था:-
भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक श्री संजय तिवारी के अनुसार यह भारत का विभाजन तो नही था। अंग्रेज शासकों ने एक भारत के पूरब और पश्चिम एक एक रेखा खींच दी। कह दिया कि एक महादेश दो अलग अलग देशों में बांट रहे हैं। यानी एक हिस्सा पूरब, एक हिस्सा पश्चिम और बीच में हिंदुस्तान। पूरब और पश्चिम वाले को नाम दिया पाकिस्तान और कहा कि यह मुसलमान भाइयों के लिए है। बीच वाला हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई, यहूदी आदि के लिए छोड़ दिया। यह मोहम्मद अली #जिन्ना को भी समझ में नहीं आया कि इतनी जल्दी यह कैसे मिल रहा है जबकि उनकी खुद की सोच थी कि उनके जीते जी पाकिस्तान तो नहीं मिलने वाला। जिन्ना का सपना साकार हो गया और दोनों रेखाओं के भीतर एक एक राष्ट्र पिता मिल गए। बंटवारे के बाद के पिता। पाकिस्तान के कायदे आजम और हिंदुस्तान के राष्ट्र पिता। यह कोई भी बुद्धिमान बड़ी गहराई से सोच सकता है कि एक महान और महादेश को बांटने के बाद कोई उसका पिता क्यों बन जाता है? कहीं दुनिया में और ऐसा हुआ तो नहीं है।
मुसलमान समुदाय का बढ़ता अत्याचार:-
श्री संजय तिवारी के अनुसार अंग्रेज सरकार द्वारा खींची दोनों रेखाओं के बीच से मुसलमान समुदाय के लोगो ने दौड़ दौड़ कर घोषित पाकिस्तानी भूमि पर पहले से रह रहे लोगों को खदेड़ना और उनका कत्लेआम शुरू किया और खुद काबिज होने लगे। एक ही दिन पहले तक एक समग्र रहा भूभाग खंडित होकर लहू से लाल हो रहा था। पाकिस्तानी घोषित भूमि पर सदियों से रह रहे गैर मुसलमान समुदाय फसल की तरह काटा जाने लगा। बहू बेटियां माल़ असबाब बनाकर लूटी जाने लगीं। रेल गाड़ियों में भर भर कर लाशें बचे हुए भारत भूमि पर उतारी जाने लगीं। दोनो अंग्रेजी रेखाओं के पूरब और पश्चिम वाली भूमि पर कब्जे होने लगे। 
        हमारे इतिहासकारों ने जो पढ़ाया वह ही सब जन पाए।नई पीढ़ी को सही स्थिति की जानकारी नहीं है। हम जिसे आजादी कह रहे थे वह केवल देश का विभाजन भर था। लड़ तो रहे थे अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के लिए लेकिन परिणाम मिला कि धरती बांट कर अंग्रेजों ने वह सब कर दिया जिसकी किसी भारतीय ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। चक्रवर्ती सम्राटों का भारत वर्ष तीन टुकड़ों में बांट कर कहा गया कि अब भारत स्वाधीन हो गया।
पाकिस्तान अंग्रेजो का कटपुतली रहा:-
पाकिस्तान नाम पा लेने के बाद भी इस भूभाग पर अंग्रेज ही शासक रहे। कई प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बना कर समय गुजार देने वाले उस भूभाग के लिए नौ वर्षों तक कोई संविधान ही नहीं बना। बड़ी मशक्कत से बचे हुए भारत से जाकर वहां का संविधान बनाने वाले योगेंद्र मंडल किसी तरह वहां से जान बचा कर फिर भारत भाग कर आ गए और बंगाल में कहीं रह कर किसी दिन गुमनामी में मर गए। यदि यह वास्तव में कोई विभाजन होता तो उसका कोई प्रारूप भी होता। लोगो के जानमाल की चिंता के साथ स्थानांतरण की कोई व्यवस्था बनी होती। लोगों की सुरक्षा, उनके खेती, कारोबार आदि पर चिंता हुई होती। लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं। खास बात यह कि इसका औपचारिक इतिहास लिखने वालों ने कभी किसी सच को भी सामने नहीं आने दिया। 
      दे दी हमें आजादी, बिना खड्ग बिना ढाल, यह गा गा कर देश और पीढ़ियों को गुमराह किया जाता रहा। यह कभी बताया ही नहीं गया कि अंग्रेजो से आजादी मांगने वाली कथित राजनीतिक आंदोलनकारी अहिंसा वाली टीम ने 1931 के गोलमेज सम्मेलन के बाद कोई आंदोलन किया ही नहीं। 1942 का भारत छोड़ो, केवल नाम का था क्योंकि दुनिया विश्वयुद्ध लड़ रही थी और अंग्रेज शासक को भारतीय सैनिकों की आवश्यकता थी। नेताजी की आजाद हिंद फौज की शक्ति से व्याकुल और विश्वयुद्ध से दरिद्र हो चुकी ब्रिटिश राजशाही के सामने भारत के विशाल भूभाग पर शासन करने की शक्ति नहीं रह गई थी। उनको नेहरू और जिन्ना में अपने भविष्य की तस्वीर दिख गई थी। दोनो को ही अपनी शर्तों पर राज देकर मुक्त भी हो गए और अधीनता भी बनाए रखा। 14 अगस्त से जब विभाजित भारत के टुकड़ों पर सांप्रदायिक आधार पर कब्जे की अंग्रेजी अनुमति मिल गई तो क्या मंजर सामनेआया , उससे अब लगभग सभी परिचित हैं।
सनातन संस्कृति बिखर गई:-
स्वतंत्र चिंतक श्री बृजेश कुमार उपाध्याय ने अपने फेसबुक पेज पर फैज साहब की पंक्तियां इस प्रकार उद्धृत किया है 
" ये दाग़ दाग उजाला ये शब गुज़ीदा शहर 
वो इंतजार था जिसका ये वो शहर तो नहीं
 ये वो शहर तो नहीं जिसकी आरजू लेकर
 चले थे यार की मिल जाएगी कहीं न कहीं । "
फैज़ ने यह पंक्तियां इसी माहौल में लिखी थीं। स्वार्थ के लिए भारत मां की मूर्ति को खंडित किया जा रहा था। हिंगलाज में तुम्हीं भवानी महिमा अमित न जात बखानी गाने वाले ,हिंगलाज की आराधना करने वाले, भारतीय समाज से मां हिंगलाज का स्थान मां ढाकेश्वरी का स्थान, लव की नगरी लाहौर तक्षशिला पराया हो रहे थे। दुनिया के किसी भी आंदोलन में इतनी हिंसा नहीं हुई इतने लोग नहीं मारे गए जितने केवल विभाजन में मारे गए । वैसे माहौल में दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल के नारे लगाए जा रहे थे। परतंत्रता के समाप्त हो जाने की खुशी तो थी लेकिन यह कुछ वैसे ही जैसे बहुत प्रतीक्षा के बाद किसी बांझ को पुत्र तो पैदा हुआ हो किंतु प्रसव में मां की मृत्यु हो गई हो, कुछ ऐसा ही माहौल था देश में। खंडित मूर्ति की पूजा नहीं होती इसलिए अपने मन के मंदिर में उस संपूर्ण विग्रह को रखने की आवश्यकता है । महर्षि अरविंद ने कहा था कि यह विभाजन टिकेगा नहीं क्योंकि यह अप्राकृतिक है।



Friday, August 11, 2023

एक साल पूर्व हुए चोरी का कोई सुराग नहीं





बस्ती। आनन्द नगर कटरा में एक साल पूर्व डाॅक्टर के घर हुए चोरी का कोई सुराग नहीं लग सका है। आनन्द नगर कटरा में 10 - 12 अगस्त 2022 को हुए चोरी का कोई सुराग आज तक बस्ती पुलिस नहीं लगा सकी है। यह प्रकरण कटरा निवासी राधेश्याम द्विवेदी का है। जिनका दिनांक 15 अगस्त 2022 को अपराध संख्या 425/2022 पर एफआईआर दर्ज हुई थी। डा. राधे श्याम द्विवेदी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा के अवकाश प्राप्त पुस्तकालय सूचना अधिकारी रहे हैं । घटना के दिन घर पर कोई ना रहने के कारण दिनांक 10 से 12 अगस्त 2022 के मध्य बंद पड़े घर में ताला तोड़ कर चोरी हो गई थी, जिसमें नौ लाख रुपए नगदी की चोरी हो गई थी। पुलिस ने एफ आई आर 15 अगस्त 2022 को क्राइम नंबर 425 पर अज्ञात चोरों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 380 और 457 के अंतर्गत बस्ती कोतवाली में दर्ज की थी।
      घटना घटे लगभग एक साल बीत चुका है। अभी तक जांच किसी सार्थक परिणाम तक नहीं पहुंच सकी है। जांच अधिकारी श्री मुनींद्र त्रिपाठी तत्कालीन चौकी प्रभारी बड़े बन (कोतवाली) बस्ती रहे ,जिनका अब स्थानांतरण हो चुका है। डॉ राधेश्याम द्विवेदी ने बस्ती पुलिस द्वारा केस का अनावरण ना कर पाने के लिए अफसोस जाहिर किया है और सक्रियता से जांच के हर बिंदुओं को देखते हुए चोरों को पकड़ने की मंशा व्यक्त की है।

Monday, August 7, 2023

श्री महामंत्रराज जपविधि के विविध सोपान द्विवेदि आचार्य डॉ. राधे श्याम


तैयारी और वातावरण :-
सबसे पहले नहा धोकर शुद्ध वस्त्र पहन ले । इन वस्तुओं को सिर्फ पूजा के समय ही पहनने है। शुद्ध आसन पर बैठकर पूर्वाविमुख या उत्तरविमुख होकर बैठना चाहिए। किसी भी मकान का ईशान कोण पूर्व और उत्तर कोण पूरी तरह से साफ-सुथरा हवादार होना चाहिए। जहां पर जूते चप्पल नहीं हो, झूठा खाना पीना आदि जहां पर ना हो , किसी भी प्रकार की टीवी की हल्ला गुल्ला की कोई आवाज ना आती हो। हल्की सुगंध धूप अगरबत्ती हो और पीले रंग के ऊनी कपड़े का आसन हो, जिस पर बैठकर बैठकर मंत्र जाप करें। 
        पूजा पाठ धर्म-कर्म जब आदि शुभ कार्य करते समय हमारे शरीर से ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होने लग जाती है। यदि शरीर का कोई भी भाग हमारा पृथ्वी को छु रहा है तो हमारी सारी ऊर्जा की शक्ति पृथ्वी मे चली जायेगी। पूजा का जप का सारा लाभ पृथ्वी को मिलेगा । इसका हमें कोई फल नहीं मिलेगा। पूजा करते समय ध्यान रहे हमारे शरीर का कोई भी हिस्सा धरती को ना छुने पाये तभी मंत्र जाप का सही फल मिलता है। 
      जाप स्थान आप पसंद करें उस बैठने के स्थान को आसन को बदलना नहीं चाहिए। माला को हर रोज जाप करते समय आँखो से जरूर छुये और उस स्थान का वातावरण शुद्ध और शांत बनाया जाता है, तथा उस स्थान पर अध्यात्मिक तरंगे ,दिव्य, स्पनदंन उत्पन्न होने लग जाते हैं। उसी तरह उसी जगह जप करने से जाप का फल बढ़ता जाएगा। जाप समाप्ति के बाद भी उस जगह 5,6 मिनट चुपचाप बैठे रहना चाहिए। इस प्रकार वह शक्ति हमारे शरीर में समा जाती है। 
        अपने इष्ट देव और अपने पितरों की फोटो सुंदर तरीके से सजाकर सामने रखें फोटो प्रतिमा सफेद या लाल पीले वस्त्र बिछाकर उस पर रखे। धूप ,दीप, चंदन तिलक हररोज लगाएं और शुद्ध जल का पात्र भरकर रखें। गाय के घी का दीपक जलाकर रखें। मीठी सुगंध धुप जब तक जाप चालू है तब तक जरूर रखें। जिस नाम का मंत्र जप करें उसको पूर्ण भावना ,भक्ति और शान्त से करे। जाप करते समय इधर-उधर बातचीत ना किया जाए। जो व्यक्ति प्रत्येक नाम या मंत्र का पूर्ण अर्थ समझते हुए जाप करता है । सबसे उत्तम मानसिक जाप वही होता है। जाप करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। अंगूठे और अनामिका से जाप करने से सिद्धि मे सफलता प्राप्त होती है। जाप हमेशा अंगूठे एवं उगली के अग्रभाग से करना चाहिए।
                    प्रथम गुरुदेव श्री श्री 1008 
      पण्डित राम बल्लभ शरण जी महराज वेदांती जी 

                     द्वितीय गुरुदेव श्री श्री 1008 
          पण्डित राम पदारथ दास महराज वेदांती जी 

        मंत्र जाप किसी भी समय किया जा सकता है यदि मन अनियंत्रित है तो मंत्र जप उच्च स्वर में करना चाहिए। यह उपाय मन को शांत को नियंत्रित करने का एक चमत्कारी साधन है । 
        तृतीय गुरुदेव श्री हरिनामदास महाराज वेदांती
यदि मन शांत है तो मंत्र जाप मंद स्वर में करना चाहिए। मंत्र जाप हमेशा मानसिक रूप से करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।मंत्र जाप करते समय समर्पण की भावना के साथ गहन भक्तिभाव का भी होना आवश्यक है तभी ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। 
   परम पूज्य चतुर्थ (वर्तमान)गुरुदेव श्री शंकरदास जी                महाराज वेदांती जी, श्री राम बल्लभा कुंज                                     श्री अयोध्या जी

श्रीराम का षडक्षर मंत्र चिन्तामणि है:-

प्रभू राम का नाम स्वयं में एक महामंत्र है। राम नाम की महिमा अपरंपार और नैया को पार लगाने वाली है । राम नाम का मंत्र सर्व रूप मे ग्रहण किया जाता है । इसके जाप और केवल धयान से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति सहज हो जाती है। अन्य नामो कि अपेक्षा राम नाम हजार नामों के समान है । राम मंत्र को तारक मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी दुःखों का अंत होता है। प्रतिदिन भगवान श्रीराम के मंत्र का जाप करने से मनचाही कामना पूरी होती है। श्रीराम का षडक्षर मंत्र अति लाभकारी है। षडक्षर राम मंत्र 'राम रामाय नम:' है जिसे चिन्तामणि भी कहा जा सकता है, किसी भी कामना को पूर्ण करने के लिए इस राम मंत्र का साधक को, उपासक को अनुष्ठान करना चाहिए।

                  श्री महामंत्रराज जप विधि

पंडित श्री रामबल्लभाशरण जी महाराज द्वारा संपादित
                                  तथा
पंडित श्री राम शंकर दास जी वेदांती द्वारा अनुमोदित
                                  तथा
         द्विवेदि आचार्य डॉ. राधेश्याम द्वारा प्रस्तुति 

                 द्विवेदि आचार्य डॉ. राधेश्याम 

            श्री सीतारामाभ्याम नमः।
            श्रीमते रामानंदाय नमः।
             ॐ रामाय नमः।
             ॐ राम भद्राय नमः।
             ॐ रामचन्द्राय नम:।
ऊपर के मन्त्रों से तीन बार आचमन करके दाएं हाथ से जल लेकर बाएं हाथ से ढक कर आगे के मंत्र से अभिमंत्रित करें।
मंत्र का अभिमंत्रण :-
     ॐ नमो भगवते रघुनंदाय रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्न वदनाय अमित तेजसे बलाय रामाय विश्नवे नमः। ॐ क्लीं तेजसे राम तारक ब्रह्म स्वाहा।
 (( विनियोग : प्रत्येक देवी-देवता की साधना में मंत्र जप, कवच एवं स्तोत्र पाठ तथा न्यासादि करने से पहले विनियोग पढ़ा जाता है। इसमें देवी या देवता का नाम, उसका मंत्र, उसकी रचना करने वाले ऋषि, उस स्तोत्र के छंद का नाम, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम लेकर अपने अभीष्ट मनोरथ सिद्धि के लिए जप का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद न्यास किए जाते हैं। उपरोक्त विनियोग में जिन देवता, ऋषि, छंद, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम होता है, उन्हीं को अपने शरीर में प्रतिष्ठित करते हैं।))
पुनः अभिमंत्रित जल को बाएं हाथ में रख कर षड अक्षर राम मंत्र को पढ़कर आठ बार सिर पर छिड़कें। फिर दाएं हाथ से जल लेकर आगे के मंत्र को विनियोगः तक पढ़कर जल गिरा दें।
                           विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीराम षडअक्षरमन्त्रराजस्य ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छंद: श्री रामो देवता, रां बीजम, नमः शक्तिः, रामाय कीलकम श्री राम प्रीतयर्थे जपे विनियोग:। 
आगे के मंत्र को पढ़ पढ़ कर मंत्रोक्त नामानुसार प्रत्येक अंग का स्पर्श करते हुए ऋष्यादिन्यास करने चाहिए।
((न्यास विधि:-
न्यास कई प्रकार के होते हैं, किंतु ऋष्यादिन्यास, हृदयादिन्यास, अंगन्यास, करन्यास और दिगन्यास ही मुख्य हैं। 
ऋष्यादिन्यास:-
जब ‘नमः शिरसि’ बोला जाता है तो दाएं हाथ की पांचों उंगलियों को मस्तक से स्पर्श किया जाता है। ‘नमः मुखे’ कहकर होंठों के बीच में ग्रास मुद्रा बनाकर या वैसे ही उंगलियों से मुख का स्पर्श किया जाता है। इसी प्रकार ‘नमः हृदये’ कहकर हृदय का स्पर्श, ‘नमः गुह्ये’ कहकर जननेंद्रिय वाले स्थान का स्पर्श, ‘नमः पादयोः’ कहकर दोनों घुटनों या पंजों का स्पर्श और ‘नमः नाभौ’ कहकर नाभि-स्थल का स्पर्श किया जाता है, जबकि ‘नमः सर्वांगे’ कहकर दोनों हाथों से दोनों भुजाओं एवं समस्त शरीर का स्पर्श करने का विधान है।))
ऋष्यादिन्यास:-
श्री ब्रह्मने ऋषये नमः शिरसि। 
ॐ गायत्री छन्दसे नमः मुखे। 
ॐ श्री राम देवतायै नमः हृदि।
ॐ राम बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ नमः शक्तये नमः पादयो:।
ॐ रामाय कीलकाय नमः सर्वांगे।।
(( करन्यास : यह न्यास पद्मासन की मुद्रा में घुटनों पर हाथ रखते हुए किया जाता है। ‘अंगुष्ठाभ्यां नमः’ कहकर तर्जनी को मोड़कर, अंगूठे की जड़ से जहां मंगल का क्षेत्र है, वहां लगाते हैं। फिर ‘तर्जनीभ्यां नमः’ कहकर अंगूठे की नोक से तर्जनी के छोर का स्पर्श करते हैं। फिर ‘मध्यमाभ्यां नमः’ कहकर मध्यमा का अंतिम भाग, ‘अनामिकाभ्यां नमः’ कहकर अनामिका के अंतिम भाग और ‘कनिष्ठिकाभ्यां नमः’ कहकर कनिष्ठिका उंगली के अंतिम भाग से अंगूठे की नोक का स्पर्श करते हैं। फिर ‘करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः’ कहकर दोनों हाथों की हथेलियों को एक-दूसरे के ऊपर-नीचे दो बार करके एक-दूसरे के ऊपर-नीचे घुमाते हैं।))
करन्यास: -
ॐ राम अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ रीन तर्जनीभ्यां नमः। 
ॐ रुन मध्यमाभ्यां नमः। 
ॐ रैन अनामिकाभ्यां नमः। 
ॐ रौन कनिष्ठिकाभ्यां नमः। स
ॐ र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
(( हृदयादिन्यास :- 
हृदयादिन्यास के अंतर्गत मंत्राक्षरों को शरीर के मुख्य स्थानों- मस्तक, हृदय, शिखा-स्थान (जहां आत्मा का वास है), नेत्र तथा सर्वांग की रक्षा हेतु प्रतिष्ठित किया जाता है ताकि समस्त शरीर मंत्रमय हो जाए और शरीर में देवी या देवता का आविर्भाव हो जाए।))
अंगन्यास: -
ॐ रान हृदयाय नमः। 
ॐ रीन शिरसे स्वाहा।
ॐ रुन शिखायै वषट्। 
ॐ रैन कवचाय हुम्। 
ॐ रौन नेत्रत्रयाय वौषट्। 
ॐ र: अस्त्राय फट्।
ॐ राम नमः मुर्घनि।
ॐ रामाय नमः नाभौ।
ॐ नमो नमः पादयो:।
ॐ राम बीजाय नमः दक्षिणस्तने।
ॐ नमः शक्त्ये नमः वामस्तने।
ॐ रामाय कीलकाय नमः हृदि।।
(( प्राणायाम-
मन मे प्राणायाम करके सूर्यनारायण को मन ही मन नमस्कार करें । अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को दाएं हाथ के अंगूठे से दबाकर बाएं छिद्र से श्वसनों को धीरे-धीरे खींचते हुए राम इस बीज मंत्र को 16 बार पढ़ कर पूरक करें। फिर दूसरे प्रकार से जब सांस खींचना रुक जाए तब अनामिका और कनिष्ठिका अंगुली से नाक के बाएं छिद्र को भी दबा 64 बार बीज मंत्र को पढ़कर स्वास रोककर कुंभक करें। फिर अंगूठे को हटाकर दाहिने छिद्र से श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते हुए 32 बार बीज मंत्र पढ़ कर रेचक करें। विशेष जानकारी अपने सदगुरु या किसी जानकर आचार्य से प्राप्त ध्यान करें। अब आंखें बंद करके स्वयं निर्धारण संख्या को करें ऐसी संख्या का प्रत्येक दिन नियम से करें कम या ज्यादा ना करें । जप करते समय शुद्ध मन में अपने इष्ट देव के मनोहर रूप के दिव्य दर्शन आप को बंद आंखों से ही होने लग जाएंगे।आपको धिरे धिरे एक दिव्य परमानंद परम शांति सुख का अद्भुत आनंद प्राप्त होगा। इस दिव्यानंद को आप किसी दूसरे को बता नहीं पाएंगे आप के सभी प्रकार के कष्ट ,रोग, दोष आपके सभी प्रकार के गृह कलेश का नाश हो जाएगा। ))
                       ध्यान:-
वामे भूमिसुता पुरश्च हनुमान्पश्चात्सुमित्रा सुतः
शत्रुघ्नो भरतश्च पार्श्व दळयो राछ्वीय्यादि कोनेषुच।
सुग्रीवाश्चा, विभीषनश्चा युवराट तारासुतो जांबवान
मध्ये नील सरोज कोमल रुचिं रामं भजे श्यामलं ।।
                 पुनः
12 बार राम गायत्री मंत्र जपें
राम गायत्री मंत्र  
ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
         6 मन्त्रों को एक में मिलाकर 5 बार जपें।
ॐ लम लक्षमनाय नमः।
ॐ भम भरताय नमः।
ॐ शम शत्रुघ्नाय नमः।
ॐ श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
     पुनः युगल मंत्र 108 बार जपें।
श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
             फिर
रां रामाय नमः।
राम तारक मंत्र 6000 या यथा शक्ति जपे।
        पुनः युगल मंत्र 108 बार जपें।
श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
  इसके बाद 6 मन्त्रों को एक में मिलाकर 5 बार जपें।
ॐ लम लक्षमनाय नमः।
ॐ भम भरताय नमः।
ॐ शम शत्रुघ्नाय नमः।
ॐ श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
    पुनः 12 बार राम गायत्री मंत्र जपें।
राम गायत्री मंत्र :-
ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
पुनः पूर्ववत प्राणायाम करना चाहिए।
ॐ श्री राम: शरणं मम।
श्रीमद् राम चन्द्र चरणौ शरणं प्रपदये।
श्रीमते रामचन्द्राय नम:।
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते ।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद्व्रतं मम ॥
 (रामायण 12/ 20॥)
श्रीरामचन्द्र रघुनाथ जगच्छरण्य 
राजीव लोचन रघुत्तम रावणारे।
सीतापते रघुपते रघुवीरराम
त्रायस्व राघव हरे शरणागत माम।।
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(( राम जी के कुछ अन्य ध्यान मंत्र:-
इसे यथा संभव समय निकाल कर बार बार पढ़ना और दुहराना चाहिए।

ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम,
 लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम ।।

 श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे 
रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः ।।

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥ 

 आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो-भूयो नामाम्यहम्॥

 राम रामेति रामेति रामे मनोरमे ।
 सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने || ))
           
                  इति शुभम्।