Saturday, July 27, 2019

सांस्कृतिक अवशेषों को संजोती कुवानो नदी को बचाओ डा. राधेश्याम द्विवेदी



ऐतिहासिक दृष्टि से कुवानों नदी उत्तर कोशल के भूभाग में बहती है। इसका उद्गम कोई पहाड़ ना होकर एक सामान्य सा प्राकृतिक नाला है जो नदी के तलहटी के कुओं से जल को ग्रहणकर अपना अस्तित्व बनाये रखती है। यह घाघरा नदी की एक सहायक नदी है। प्रवाहित नदियों में यह घाघरा के बाद दूसरी प्रमुख नदी है। पूर्वकालीन बहराइच एवं वर्तमान श्रावस्ती जिले के पूर्वी निचले भाग के चिलवरिया नामक स्थल से एक ताल के सोते के रुप में प्रारम्भ होकर बसऊपुर में लगभग 13 किमी तक एक नाले के रुप में बहने वाला यह जल स्रोत बलरामपुर में पहुंचते-पहुंचते नदी का रुप ले लेता है। पश्चिम से पूरब की ओर जैसे-जेसे यह नदी आगे बढ़ती है। इसका फैलाव बढ़ने के साथ ही इसकी गहराई भी बढ़ती जाती है। इस नदी की विचित्रता जमीन के अन्दर से निकलने वाले वे हजारों छोटे-छोटे जलस्रोत हैं जो नदी में के रुप में बहने के लिए इसे जल उपलब्ध कराते हैं। यही कारण है कि चाहे जितना सूखा पडे कुआनो नदी में पानी कभी कम नहीं होता। यह खुरगूपुर गांव से उत्तर गोंडा जनपद की सीमा में प्रवेश से 4 किमी इसका आकार नदी का हो जाता है। इस नदी के घाट सकरे व गहरे हैं। नदी का प्राचीन नाम सुन्दरिका व कर्द भी बताया जाता है। इसे कूपवाहिनी भी कहते हैं। श्रावस्ती जनपद से निकली कुआनो व बिसुही नदी का संगम घघरिया घाट के समीप होता है। यहीं से कुआनों में शुरू होता है। यह नदी अपना पाट कभी नहीं बदलती।
यह गोण्डा के बीचोबीच होकर भानपुर तहसील की दक्षिण सीमा पर गुलरिहा रसूलपुर से बस्ती मण्डल को प्रवेश करती है। पूरब की दिशा में बढ़ते हुए कुआनो नदी बस्ती जिले की लगभग 130 किमी. की एक प्रमुख नदी बन जाती है। कुआनो बस्ती जिले के सल्टौवा, बस्ती सदर, बनकटी विकास खण्डों से होकर महुली होते हुए संत कबीर नगर में जाती है। यह बस्ती पूर्व, बस्ती पश्चिम, नगर पश्चिम, नगर पूर्व, महुली पूर्व तथा महुली पश्चिम परगनों को पृथक भी करती है। यह संतकबीर नगर के मुखलिसपुर कस्बे के पास बूढी राप्ती में मिलकर घाघरा नदी में समा जाती है।
आवागमन का प्रमुख साधन
प्राचीन समय यहां तक कि मुगल काल तक घाघरा व कुवानों आदि नदियां ही आवागमन का प्रमुख साधन हुआ करती थीं। कुवानों नदी से दूर दराज के इलाकों में नाव द्वारा सामान की ढ़ुलाई भी पहले होती थी। रवई, मनवर तथा कठनइया आदि इसकी अनेक सहायक नदियां हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के मूल निवासी कवि, पत्रकार तथा दिनमान पत्रिका के भूतपूर्व संपादक स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपने गांव के निकट बहने वाली ’’कुआनो नदी का दर्द’’ विषय पर कविताओं का एक सिरीज लिखकर उसे जीवंत बना दिया है। नदी के दोनों किनारों पर जामुन, बेंत व महुआ के जंगल पाए जाते हैं। इसका जल जमुना की भांति नीला है व सर्पाकार रूप में यह बहती है। पुराने समय में सरयू के किनारे बसे लालगंज सहित अन्य क्षेत्रों के लोग इसी नदी के माध्यम से नाव में बैठकर गांव से शहर व शहर से गांव पहुंचते थे। इस नदी में जब प्रवाह था तो यह व्यापार का साधन भी रही। नदी के रास्ते विभिन्न क्षेत्रों के लोग शहर आते थे और व्यापार करते रहे। तब यह नदी प्रवाह में काफी तेज थी और इसका पानी धोने व नहाने तथा पीने के उपयोग में था। पांच दशक से पहले इसकी चैड़ाई 48 मीटर से अधिक थी और गहराई 80 मीटर से भी ज्यादा। वर्तमान में इसमें काफी कमी आई है। चैड़ाई जहां पन्द्रह से बीस मीटर रह गयी है वहीं गहराई दस से बारह मीटर है। इसके दो मशहूर घाट बस्ती शहर के संस्कार और संस्कृति के इकलौते स्थल है। मूड़घाट पर जहां यहां के लोगों का अंतिम संस्कार होता है वहीं अमहट घाट पर सावन व छठ का मेला लगता है। जैसे-जैसे यह नदी आगे बढ़ती है इसके दोनो ओर घने जंगल दिखाई पड़ते हैं. कंटीले बेंत के जंगलो से गुजरती हुई यह नदी अद्भुत दृश्य पैदा करती है। कुआनो नदी अपने आप में एक रहस्य है. एक ऐसा रहस्य जिसे खुद प्रकृति ने बनाया है और जिस रहस्य तक पहुंचने में कोई अभी तक कामयाब नहीं हुआ है। इसके तट पर साल,सागौन के अतरिक्त दुर्लभ सिरस वृक्ष की प्रजाति यहां पाई जाती है। नदी के दोनो ओर झाडियों की लम्बी श्रंखला है जो दुर्लभ भी है। कुआनो नदी के कारण जैवविविधता की दृष्टि से यह इलाका काफी समृद्ध है। वनस्पतियों की एक लम्बी प्रजाति यहां पाई जाती है. कुछ दुर्लभ वस्पतियां भी नदी के तल में मौजूद हैं। जल का प्रवाह धीमा होने के कारण तमाम फ्लोटिंग प्लान्ट्स भी इस नदी में पाए जाते हैं। नदी का पानी जितना निर्मल है उतना ही पारदर्शी भी है। गहरे तल में स्थित वनस्पतियों को भी ऊपर से ही देखा जा सकता है। यही कारण है कि वन्यजीवों भी यहां पाए जाते हैं। कुआनो नदी के इस जंगल के सबसे प्रसिद्ध वन्यजीव फिसिंग कैट है जो यहां बहुतायत में पाए जाते हैं। तराई के अवशेष के रुप में अब यही एक नदी है जो प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की एक कड़ी है। सभी मानते हैं कि यह नदी अपने आप में एक शोध का विषय है
प्रमुख घाट
इसके प्रमुख घाट चोरघटा घाट बलरामपुर, अइला घाट, पनिभरवा घाट भैंसहवा घाट, मंसूर नगर का घाट,  शिवा घाट, चैरा घाट, महादेवा घाट ,बक्सई घाट, वराह क्षेत्र घाट चांदमारी घाट बस्ती , मूड़ घाट बस्ती अमहट घाट बस्ती, भदेश्वर नाथ का घाट बस्ती, कछुवाड़ घाट महादेवा, पिण्डिया घाट संतकबीर नगर हैं। श्रावस्ती जिले में घघरिया घाट कुवानो बिसुही नदी का संगम पर है। च्ंादोखा घाट वाल्टरगंज बस्ती में ऐतिहासिक घाट है। संतकबीर नगर के बनकटा घाट पक्का पुल की मांग होती रही है। गोरया घाट नाथ नगर संतकबीर नगर में है। इसके अलावा अनेक दर्जन छोटे बड़े घाट व पुल इस नदी की शोभा में चार चांद लगाते है।
सभ्यता और संस्कृति के अक्षुण्य प्रमाण
शान्त तथा स्थिर स्वभाव के कारण इस नदी के तटों पर सभ्यता और संस्कृति के अक्षुण्य प्रमाण आज भी देखे जाते हैं। प्राचीन टीले तथा प्राचीन संस्कृतियों के प्रमाण पर्याप्त मात्रा में यहां मिलते है। 1874- 76 में कनिघम के नेतृत्व में कार्लाइल ने यहां का सर्व प्रथम सर्वेक्षण किया था उसके बाद 1890 में ए फयूहरर ने तथा बाद में बनारस लखनऊ गोरखपुर विश्वविद्यालयों के पुराविदों, भारतीय पुराततव सर्वेक्षण तथा उत्तर प्रदेश पुरातत्व संगठन  लखनऊ के विद्वानों ने समय समय पर इस क्षेत्र के धरोहरों को खोजा ता संजोया है। कुछ छोटे मोटे परीक्षण के तौर पर उत्खनन भी हुए हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के डा. डी. के श्रीवास्तव तथा एस के चैधरी ने कुवानें के तटीय 33 साइटों का परीक्षण किया है जिनमें सात अति प्राचीन का विषद विश्लेषण प्रस्तुत किया है। ये स्थल हैं बड़ागांव, बराण्डा बांदा, चमरहुआ घाट,  सिसवनिया देवरांव , गहिरवारे , कोडरा तथा शकरौला आदि है। यदि इनका विषद उत्खनन कराया जाय तो संतकबीर नगर के लहुरादेवा तथा गोरखपुर के धुरियापार व इमिलिया खुर्द जैसी महत्वपूर्ण जानकारिया व प्रमाण यहां मिल सकते हैं। हर्रैया तहसील का खिरनीपुर घनघटा संतकबीर नगर का मुण्डियारी , बस्ती तहसील का ओरई , सुसीपार उत्तर व दक्षिण, ठोकवा, ताड़ी पचीसा,सिद्धोनी घाट,सिलहरा, गेरार या गेदार आदि भी पुरातात्विक स्थल कुवानें की शान्त व स्थिर चरित के कारण ही बच पाये हैं।
बस्ती जिले के हर्रैया तहसील का खिरनीपुर कुवानों के तट पर स्थित है जहां स्तुप का अवशेष होना बताया गया है। बस्ती तहसील का चमरहुआ घाट कुवानों के तट पर स्थित है जहां पूर्ववर्ती उत्तरी काले चमकीले पात्र धूसर पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। यहां ईंट के रोड़े भी पाये गये है। बस्ती/भानपुर तहसील का सिद्धोनी घाट कुवानों के तट पर स्थित है। यहां प्राचीन स्तूप पुराना नगर तथा प्राचीन ईंटे पायी गयी हैं । इसे गौतम बुद्ध के जीवन यात्रा से सम्बन्धित भी बताया जाता है। बस्ती तहसील का सिसवनिया गांव महुली महसो राजमार्ग पर कुवानो तट पर स्थित है जो बौद्धकालीन सेतव्या सिंसपावन विहार का अवशेष भी कहा जाता है। यहां अन्वेषण व उत्खनन दोनो हुआ है। उत्तरी काले चमकीले पात्र धूसर पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। मिट्टी की मोहरे पंचमार्क सिक्के 108 मृणमूर्तियों के अवशेष तथा 650 मृण कलाकृतियां भी यहां पायी गयी है। इसी प्रकार पास के देवरांव स्थल से ताम्र पाषाणकालीन द्वितीय मिलेनियम बीसी के प्रमाण भी प्राप्त हुए है। साथ ही उत्तरी काले चमकीले पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। यहां शुंग कुषाण व मध्यकालीन संरचनाये देची गयी है। बस्ती तहसील का ओरई नामक गांव कुवानो तट पर स्थित है जो कुषाणकालीन गुप्तकालीन संरचानायें प्राप्त हुई हैं। मुख्यतः लाल पात्र परम्पराओ वाले पात्र के साथ यहां मिट्टी की गुप्तकालीन मुहरें व पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। बस्ती तहसील का बड़ागांव कुवानो तट पर स्थित है जहां लघुअश्मक कोर स्फटिक बिल्लोर क्रिस्टल मनके चकमक चर्ट आदि पुरावशेषों के साथ उत्तरी काले चमकीले पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। बस्ती तहसील का बराण्डा या बांदा नामक गांव कुवानो तट पर स्थित है जहां उत्तरी काले चमकीले पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। यहां मनके मुणमूर्तियां ईंट के रोड़े तथा शुंग व कुषाण से लेकर मध्यकाल तक की संरचनायें भी पायी गयी हैं। बस्ती तहसील का गहिरवारे नामक गांव कुवानो तट पर स्थित है जहां उत्तरी काले चमकीले पात्र से लेकर पूर्व मध्यकालीन संरचानायें प्राप्त हुई हैं। बस्ती तहसील का कोडरा गांव कुवानों के तट पर स्थित है कुवानों के तट पर स्थित है। यहां ताम्र पाषाणकालीन पूर्व उत्तरी काले चमकीले पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। यहां कारलेनियन व मनके भी प्राप्त हुए है। बस्ती तहसील का शकरौला कुवानों के तट पर स्थित हंै। यहां प्रधानरुप से उत्तरी काले चमकीले पात्र भूरे पात्र काले व लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। बस्ती तहसील का सुसीपार उत्तर व दक्षिण महुली महसो राजमार्ग के कुवानों के तट पर स्थित है। उत्तरी सूसीपार में कुषाणकालीन संरचना देखी गयी है। जबकि दक्षिण सूसीपार में उत्तरी काले चमकीले पात्र नव पाषाणकाल ताम्रपाषाणकाल तथा लघुअश्मक पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। बस्ती तहसील का ठोकवा कुवानों के तट पर स्थित है। यहां मुख्यरुपसे लाल पात्र परम्परायें कुषाणकालीन संरचनायें मृणमुर्तियां कंगन के टुकड़े आदि प्राप्त हुए हैं। बस्ती तहसील का ताड़ी पचीसा कुवानों के तट पर स्थित है। यहां उत्तरी काले चमकीले पात्र भूरे पात्र काले व लाल पात्र परम्परायें तथा सिक्के हड्डियों के नोक आदि प्राप्त हुए हैं। बस्ती तहसील का सिलहरा कुवानों के तट पर स्थित है। यहां लाल पात्र चित्रित भूरे पात्र शीशा कंगन, शुंग कुषाण से मध्यकालीन संरचनायें प्राप्त हुई हैं। बस्ती तहसील का गेरार या गेदार कुवानों के तट पर स्थित है। यहां उत्तरी काले चमकीले पात्र काले ओपदार पात्र काले व लाल पात्र तथा लाल पात्र परम्परायें यहां पायी गयी है। छठी शताब्दी ई पू. से लेकर गुप्कालीन संरचनायें प्राप्त हुई है। शीशे के कंगन भी यहां प्राप्त हुए हैं। संतकबीर नगर के घनघटा तहसील का मुण्डियारी गांव कुवानों के तट पर स्थित है जहां काले लेपित पात्र, भूरे पात्र तथा लाल पात्र परम्पराओं  के पुरावशेष व कलाकृतियां पायी गयी है। धनी संस्कृतियों का यह भूक्षेत्र कुवानों नदी के शान्त चित्त स्वभाव के कारण संभव हो सका है। पानी के प्राकृति श्रोत इस नदी के गर्भ में होने के कारण संभवतः पानी की कमी इस नदी में नहीं आएगी। इसका प्राकृतिक दोहन तथा प्रदूषण रोकना अति आवश्यक है। इसमें फैक्ट्रियों के कचरे तथा गन्देपानी को तत्काल रोका जाना चाहिए। जलकुम्भी व अनावश्यक जंगली बनस्पतियों से इसे मुक्त किया जाना चाहिए।