Monday, December 31, 2018

हैपी न्यू ईयर 2019 -- डा. राधेश्याम द्विवेदी


                               
2018 को अलविदा कहकर, पुराने साल के गिले शिकवे मिटाकर, नए साल का स्वागत करने का समय आ गया है। नए साल का बांहे फैलाकर स्वागत करने का एक्सपीरियंस अपने आप में अनोखा होता है और हर कोई अपने अलग-अलग अंदाज में नए साल का स्वागत करता है। अब 2019 का पदार्पण होगा। आइए नयी ऊर्जा, आशा और उत्साह के साथ इसका स्वागत करें। हर ओर नया और सकारात्मक देखें। सभी चेहरे को नयी नजर से देखें। हर चीज में नयापन तलाशें। नयी प्रेरणा से देखें। नयी आशा से देखें। नयी राह की ओर देखें। नये सपने देखें, मार्ग बनाएं और उस ओर चलना शुरू करें। इच्छाशक्ति को प्रबल करें। पाखंड का त्याग करें। भरोसा करें, भरोसे लायक बनें। विश्वास करें, विश्वास जीतें। अपनी गरिमा समझें, दूसरे की अहमियत समझें। 
नये साल में क्या करें :- प्रकृति का विधान ऐसा है कि हर नये में सृजनात्मक संवेदना रची-बसी होती है। नया सौंदर्यबोध होता है। अंधकार के बाद उजाले की तरह, रात के बाद सुबह की तरह। अपने वाट्सएप्प और एसएमएस के बॉक्स से हर बुरे संदेशों और तस्वीरों को डिलिट करें और अच्छे संदेशों को मेमोरी बैंक में समाहित करें। लाख कोशिश के बाद भी मानव मस्तिष्क में स्मृतियां शेष रह ही जाती हैं। फिर भी कोशिश करें कि मात्र अच्छी स्मृतियां ही शेष रहें। अपनी स्मृतियों से पूर्वाग्रहों को मुक्त करें। यह कठिन तपस्या है, फिर भी प्रयास करें। स्मृतियों को बोझ न बनने दें। स्मृतियों को प्रेरक बनाएं। अच्छी यादें प्रेरणा देती हैं, सुख देती हैं। दुखदायी स्मृतियों को मिटा दें। जिन दुर्गुणों को पिछले वर्ष झेला, उन्हें आज भूल जाएं। चंद दिनों बाद हम नये वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे। इसलिए सब कुछ नया हो। सब कुछ अच्छा हो। हर ओर शुभ हो। हर काम का शुभ आरंभ हो।
नये संकल्प :-नये वर्ष के लिये संकलप लें सच्चाई का पर्यावरण के निर्माण का, नया समाज और नया भारत के निर्माण का, स्वस्थ्य एवं सुंदर समाज के निर्माण का एवं संगठित परिवार का। सृजन की योजना बनाएं। 2019 आम चुनाव का वर्ष है। साल की शुरूआत से ही सत्ता परिवर्तन का संघर्ष होगा। इस लिहाज से यह वर्ष परिवर्तन के जद्दोजहद में रहेगा। संकल्प लें कि इस जद्दोजहद में सब अच्छा हो। युवाओं के रोजगार का मार्ग प्रशस्त हो। व्यापार में चल रहा उथल-पुथल समाप्त हो। किसानों के लिए सकारात्मक माहौल बने। स्वच्छ भारत बने। कला-संस्कृतियों की रक्षा हो। विकास का मॉडल बाजारवाद पर हावी न हो। शहरी-ग्रामीण जीवन स्तर, अमीर-गरीब के बीच खाई चैड़ी न होने पाये। सबके सम्मान, आत्मनिर्भरता की रक्षा हो। 
शारीरिक गतिविधियां :- प्रातः काल टहलने अवश्यक जाएं एवं इसके उपरांत योग करें। इससे अनेक शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं। दोनों कार्यों के लिए समय सीमा अवश्य निर्धारित करें। रात में सोने से पूर्व भी ब्रश अवश्य करें। साथ ही कुछ भी खाने के पश्चात कुल्ला अवश्य करें। रात्रि का भोजन सोने के दो घंटे पूर्व करें। जीवन में कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं, विचलित होने की अपेक्षा मानसिक संबल बनाए रखें। किसी को अपशब्द न कहें। इससे स्वयं को ही अधिक पीड़ा होती है। न ही किसी कार्य से बेफ्रिक रहें, न ही अत्यधिक चिंताग्रस्त हों। जीवन का कोई एक निश्चित लक्ष्य बनाकर उसे पाने के लिए प्रयत्नशील रहें। निराशा जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। अतः उसे कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दें। घर में यदि कोई बुजुर्ग हो तो उसके प्रति तन-मन-धन से समर्पित रहें। परिवार में एक दूसरे के प्रति मान सम्मान एवं आपसी प्रेम-भावना सदैव बनाकर रखें।
परिवारिक गतिविधियां :-
बच्चे को प्रारम्भ से ही सुसंस्कारित बनाएं। परिवार छोटा हो अथवा बड़ा, रात्रि भोजन सभी साथ में लेने की कोशिश करें। परिवार में विवाद की स्थिति में कभी भी मनमुटाव न रखें। स्पष्ट बोलकर समस्या का समाधान करें। परिवार में जितनी भी आय होती है, उसमें से कुछ न कुछ बचत अवश्य करें। गैरजरूरी सामानों में अनावश्यक खर्च न करें। सुबह उठकर ईश्वर को प्रणाम करें। सूर्य को नमस्कार करें। यदि ईश्वर से कोई मन्नत मांगी हो तो कार्य पूर्ण होने पर इसे ध्यान में रखें।
नयी उम्मीदों के साथ बढ़ें लक्ष्य की ओर 
नये साल का अर्थ है नई उम्मीद नए सपने और नए लक्ष्य। फिर से कुछ अच्छे प्रयास किए जाएं ताकि घर परिवार और समाज खुशहाल हो सके। हम सभी नया साल नई उम्मीदों, नई इच्छाओं, नई आशाओं तथा नई संभावनाओं को तलाशने के एक खूबसूरत मौका होता है।हमे बीते हुए साल में क्या सफलताएं तथा असफलताएं मिली ये सभी चीजें भूलकर हमे नए साल का दिल से स्वागत करना चाहिए। नया साल हमे यही सीख देता है कि हमे पिछले समय को भूलकर हमेशा आगे के बारें में सोचना चाहिए तथा आगे के समय को बेहतर बनाने के लिए कोशिश करनी चाहिए। हम पुराने साल में की गई गलतियों को ना दोहराए। हमेशा अपने पुराने समय की गलतियों तथा असफलताओं से एक सीख लेते हुए हमें जिन्दगीं में आगे कदम बढ़ाना चाहिए तथा अपनी सफलताएं सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए। हर नया साल सीख लेने के साथ ही उल्लास तथा खुशियों को मनाने का भी एक खास मौका होता है। देश बदल रहा है। भारत बदलाव के जंक्शन पर खड़ा है। इसलिए संकल्प लें कि देश के भविष्य की दिशा सही हो। इस बदलाव पर निगाहें टिकाए रखें। हर परिवर्तन पर पकड़ बनाये रखें। हर अच्छे बदलाव के साथ स्वयं को भी बदलें और हर नुकसानदायक बदलाव को रोकने की कोशिश करें। हर दिन, हर सप्ताह, हर महीना सकारात्मक हो। ऊर्जादायक हो। स्वस्थ्य हो। सामथ्र्यवान हो। हर घड़ी शुभ फलदायी होगी, तो पूरा वर्ष यादगार बन जायेगा। आज से अपने को बदलें। बदलते वक्त से साथ बदलें। बदलते तकनीक के साथ बदलें। हर दिन अपटूडेट हों। एक नई सुबह इस नए साल में हमारे स्वागत के लिए खड़ी हो बस इसी आशा के साथ आपके लिए ढेर सारी खुशियां, जीवन में नए लक्ष्य और नई सफलताएं लेकर आए। आप सभी को नए साल के नई सुबह की हार्दिक शुभकामनाएं। बीते साल की अच्छी यादों को संजोए, बुरी यादों को भूलकर नई यादें बनाएं, जीवन में आपके भरकर खुशियां आएं,  हैपी न्यू ईयर 2019 



Sunday, December 9, 2018

बुजुर्ग माता पिता की उपेक्षा समाज के लिए शुभ नहीं -- डा. राधेश्याम द्विवेदी


आधुनिक युग में जितनी तेजी से भौतिक और वैज्ञानिक जीवन में विकास हुआ है ,उतनी ही तेजी से व्यक्ति का नैतिक और सांस्कारिक पतन भी हुआ है। दूसरों ,गुरुओं ,बड़ों ,बुजुर्गों की तो बात ही क्या अब तो माता -पिता तक के प्रति समर्पित ,सम्मान करने वाले और आज्ञाकारी बच्चे मिलने कम होते जा रहे। इतनी तेज भौतिक लिप्सा ,स्वस्वार्थ की भावना पनप रही की सम्मान ,संस्कार ,संस्कृति ,परंपरा इन्हें पिछड़ेपन की निशानी ,उन्नति में बाधा लगती है ।
बहू और बेटियां परिवार की धुरी होती है। यदि उन्हें अच्छे संस्कार दिये जांय। तो वे परिवार को अच्छी तरह से समझकर और प्रयास करें तो सारी पारिवारिक समस्याओं का निदान कर सकती हैंा। आज के जमाने में कोई भी अपने बेटी को यह नहीं सिखाता कि वह जब अपने ससुराल जाए तो सबको साथ लेकर चले । हर ,माता -पिता , विशेषकर माता ,अपनी बेटी को वही सब अधिक सिखा रही जिससे एकल परिवारवाद का उदय हो और उसका सुख ही सर्वोपरि हो । बेटा हो या बेटी ,जब तक माता -पिता के सहारे हैं ,शारीरिक रूप से कम सक्षम हैं तब तक तो बहुत आज्ञाकारी हैं ।टेलीविजन ,इंटरनेट ,सोशल मिडिया पर उपलब्ध सामग्री इन्हें परिवार के संस्कारों से अलग ले जाती है और इनके सपने ,कल्पनाएँ उधर घूमने लगती हैं । अधिकतर परिवार आज कमाने -खाने की आकांक्षा में बाहर निकल अलग रहते हैं। जहाँ बच्चों को बुजुर्गों अथवा बड़ों अथवा अपने संस्कार से सम्बन्धित लोगों का साथ नहीं मिल रहा इसलिए वे भिन्न सोच वाले होते जा रहे हैं। जब बचपन से ही बच्चा स्वतत्र और खुद के बारे में सोचता हो तो बड़ा होने पर उससे अपने देखभाल की उम्मीद करना बेकार है ,वह तो अपने मन की ही करेगा और जहाँ उसका अधिक स्वार्थ होगा वहां ही झुकेगा ।
आज 90 प्रतिशत मामलों में यह पाया गया है कि सीधी लकड़ी को हर कोई काटना चाहता है। बेटा -बहू भी इस सिधाई का नाजायज फायदा उठाते हैं।  परिवार और नजदीक के लोग भी फायदा उठाते हैं और अंततः जब वह कमजोर ,असहाय होते हैं तो उन्हें उपेक्षित कर देते हैं । नौकरी पेशा लोगों को उपेक्षा का दंश अधिक झेलना पड़ता है । इसके दो कारण हैं - एक तो उनका रूटीन बिगड़ा होता है जो उन्होंने जीवन भर बनाया था । दूसरा वे अपने नौकरी के समय पर्याप्त समय और ध्यान अपने बच्चों पर नहीं दे पाते हैं। उनके पास ,पेंशन आदि हो सकता है पर परिवार का साथ मिल हो जाए जरुरी नहीं है। जो कुछ नहीं बचा पाते अपने जीवन में और सबकुछ अपने बच्चों पर ही भविष्य की उम्मीद में लगा देते हैं ,वह सबसे अधिक उपेक्षा और तिरस्कार झेलते हैं ,क्योंकि स्वार्थी दुनिया में देने को उनके पास कुछ नहीं होता है। उन्हें भी बहुत तिरस्कार ,अपमान भुगतना होता है जिनके पति अथवा पत्नी का साथ छूट गया हो या दोनों में से एक ही बचा होता है।
हर माता -पिता की उम्मीद होती है की बेटे का विवाह करेंगे तो बहू आएगी और घर -परिवार के साथ उनकी भी देखभाल करेगी । खानदान -परंपरा -संस्कार को बनाए रखेगी । नाती -पोते होंगे और घर खुशहाल होगा । पर बहुत कम ऐसा हो पाता है। जहाँ संयुक्त परिवार है वहां तो ऐसा हो सकता है पर जहाँ केवल बेटे ,बेटी और माता -पिता हैं वहां ऐसा कम देखने को मिलता है । बहुत जल्दी विसंगति और दिक्कते शुरू हो जा रही है। बहू आई और पति को अपने अलग लेकर जाने के बारे में सोचने लगती है । खुद के स्वार्थ के बारे में पहले सोचने लगती है । बेटे के माता -पिता बोझ लगने लगते हैं । कुछ मामलों में सास -ससुर -ननद से उसे कष्ट होता है ,फिर वह ऐसा करती है पर ,अधिकतर पहले की सोच ही उसपर हावी रहती है कि ,अपने पति के साथ रहना है ,खुद के बारे में ही सोचना है । इसमें बहुत कुछ उसके मायके से सिखाया हुआ भी हो सकता है अथवा कही किसी संगत से वह यह ज्ञान अर्जित की हुई होती है। बेटे की स्थिति कुछ दिन त्रिशंकु सी होती है और माता -पिता तथा पत्नी के बीच झूलते हुए पत्नी की तरफ मुड़ जाता है । वह पत्नी की बात मानने लगता है और माता -पिता के प्रति पत्नी बुरे भाव भर देती है जिससे वह अपने माता -पिता को भी अपने सुख में बाधक मानने लगता है । पत्नी की ओर झुकता बेटा ,अपने माता -पिता की उपेक्षा करने लगता है और असहाय बुजुर्ग माता -पिता बेबस ,लाचार ,मजबूर हो जाते हैं।माता -पिता चाह ही लें तो बेटे -बहू को सुधारा जा सकता है । उन्हें सबक दिया जा सकता है । आखिर बाप बाप ही रहेगा ,बेटा कितना भी बड़ा हो जाए । यहाँ जरूरत है ,सक्षम बनने की ,आत्मविश्वास ,आत्मबल बढाने की ,समय के सदुपयोग की ,अवचेतन को सुधारने की ,सोच को बदलने की ,निराशा ,हताशा से निकल आशा और शक्ति पाने की ।
भारत में जहां कभी संतानें पिता के चेहरे में भगवान और मां के चरणों में स्वर्ग देखती थीं, आज उसी देश में संतानों की उपेक्षा के कारण बड़ी संख्या में बुजुर्ग माता-पिता की स्थिति दयनीय होकर रह गई है। अत चैरीटेबल संगठन ‘हैल्पएज इंडिया’ द्वारा देश के 23 शहरों में बुजुर्गों की स्थिति बारे करवाए गए नए शोध में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि बुजुर्गों के साथ दुव्र्यवहार किस सीमा तक, कितना, किस रूप में और कितनी बार होता है तथा इसके पीछे कारण क्या हैं ? शोध में पता चला कि 82 प्रतिशत पीड़ित बुजुर्ग अपने परिवार के सम्मान के चलते इसकी शिकायत नहीं करते और या फिर उन्हें मालूम नहीं कि इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है।
‘विश्व बुजुर्ग दुव्र्यवहार जागरूकता दिवस’ के अवसर पर 14 जून को हैल्पएज इंडिया के सी.ई.ओ. मैथ्यू चेरियन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘हर वर्ष हम अपने बुजुर्गों के विरुद्ध किए जाने वाले इस घिनौने अपराध को समझने और इसके विरुद्ध लोगों में जागरूकता पैदा करने की कोशिश करते हैं। दुर्भाग्य से बुजुर्गों का उत्पीडन घर से शुरू होता है और इसे वे लोग अंजाम देते हैं जिन पर वे सर्वाधिक विश्वास करते हैं।’’ हमारे लिए न सिर्फ अपने बुजुर्गों के सम्मानजनक जीवन-यापन के लिए बहुत कुछ करना बाकी है बल्कि बच्चों में अपने माता-पिता और बुजुर्गों का सम्मान करने के संस्कार भरना भी अत्यंत आवश्यक है। लिहाजा बच्चों को बचपन से ही इसकी शिक्षा देनी चाहिए।’’ इसी को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने ‘अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण’ संबंधी चंद कानून बनाए हैं परंतु इन कानूनों तथा अपने अधिकारों की ज्यादा बुजुर्गों को जानकारी नहीं है। अत इन कानूनों के व्यापक प्रचार की जरूरत है ताकि बुजुर्गों को अपने अधिकारों का पता चले और उन्हें जीवन की संध्या में अपनी ही संतानों की उपेक्षा का शिकार होकर अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए तरसना न पड़े। आवश्यकता इस बात की भी है कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु सम्पत्ति उनके नाम ट्रांसफर न करें। ऐसा करके ही वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं।   
जमाना बदल गया है:- बाल मनोचिकित्सक डॉक्टर उमा बनर्जी कहती हैं, ‘आजकल के माता-पिता और बच्चों के बीच का व्यवहार मुझे असामान्य सा लगता है। माता-पिता अपने बच्चे को भगवान सा दर्जा दे कर उन्हें सिर पर बिठा कर रखते हैं। यही बच्चे जब अपनी मनमानी करने लगते हैं, तो माता-पिता हमारे पास आते हैं अपनी समस्या लेकर।’ आज के अभिभावक अपने समय में बिलकुल अलग जिंदगी जीते थे। मां की भूमिका मूलत घर संभालने की ही होती थी। बच्चों की परवरिश में उनका दखल न के बराबर रहता था। उस समय के अधिकांश पिता अपने बच्चों के साथ एक दूरी बना कर चलते थे। घर में एक अनुशासन बना रहता था। बच्चे अपनी रोजमर्रा की दिक्कतें या उलझनें अपने दोस्तों या अपने हमउम्र बच्चों से बांटते। माता-पिता और बच्चों के बीच एक अनकही सी दूरी आज के समय में एकदम मिट गई है। आज के दौर के माता-पिता अपने आपको बच्चों का दोस्त कहलवाना पसंद करते हैं। बच्चों और माता-पिता के बीच दोस्ताना रिश्ते अगर एक दायरे में रहे, तो संबंधों में दरार नहीं आती। लेकिन ऐसा नहीं होता। बच्चे कब हद पार कर जाते हैं, इस बात का अभिभावकों को पता ही नहीं चलता। ‘बच्चे का दोस्त बनने के लिए उनकी हर जिद पूरी करना जरूरी नहीं है। बल्कि शुरू से उन्हें सही मूल्य और संस्कार देना चाहिए। उन्हें तर्क के साथ बताएं कि बड़ों के साथ मार-पीट या डांट फटकार क्यों गलत है। बच्चों को सेंसिटिव बनाना स्कूल का नहीं, माता-पिता का दायित्व है। अगर शुरू से उन्हें पैसे से कोई चीज ले दे कर बहलाया जाएगा, तो मानवीय मूल्यों की इज्जत नहीं कर पाएंगे।’यह सही है कि आज परिवार में माता-पिता और बच्चों के बीच दूरियां रही ही नहीं। शिक्षित मांएं बच्चों की बेहतरीन परवरिश चाहती हैं। वहीं आधुनिक पिता की भूमिका भी ‘ब्रेड अर्नर’ से कहीं ज्यादा की है। वह बच्चों का फ्रेंड, फिलॉसफर और गाइड है। माता-पिता चाहते हैं कि घर के निर्णयों में भी बच्चों की भागीदारी हो।
हर दौर में माता-पिता और बच्चों के बीच के रिश्ते बदलते रहे हैं। हर दौर के अभिभावक मानते हैं कि वे अपने माता-पिता से बेहतर अपने बच्चों की परवरिश कर सकते हैं। अगर आज की पीढ़ी कम संवेदनशील है या उनके मूल्य बदल रहे हैं, तो कहीं न कहीं इसमें उनकी सोच से ज्यादा उनके अभिभावकों की सोच शामिल है। परिवार की उष्मा को बनाए रखने के लिए बच्चों को शुरू से ईमानदारी, सच्चाई, धैर्य और अनुशासन सिखाया जाना चाहिए। उनके सामने खुद उदाहरण बनें। उनकी प्रशंसा का कोई अवसर ना चूकें। उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं। उन्हें जीने की कला सिखाएं। जानवरों से प्यार करना सिखाएं, इससे वे संवेदनशील होंगे। बच्चों के दोस्त बनें, लेकिन हमेशा एक हलकी दूरी बनाए रखें। पर हमेशा संवाद बनाए रखें।




Tuesday, November 27, 2018

हाथीघाट में यमुना आरती, धूमधाम से मनाई देव दीपावली धरती पर आते हैं देवता ----डा. राधेश्याम द्विवेदी

आगरा : हाथीघाट पर शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा पर पंच आकाशदीप देव दीपावली महोत्सव मनाया गया। यमुना मैया की आरती उतारी गई। इसमें देश के शहीदों को दीप प्रज्ज्वलित कर श्रद्धांजलि दी गई। भारत में कई त्योहार मनाए जाते हैं. इन त्योहारों के पीछे कई मान्यता भी छुपी होती है. इसी क्रम में दीपावली के त्योहार के बाद देव दीपावली का पर्व भी खूब धूमधाम के साथ मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक देव दीपावली के दिन भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर सभी को उत्पीड़ित करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था. जिसके उल्लास में देवताओं ने दीपावली मनाई. इसी कारण इसे देव दीपावली के रूप में जाना जाता है. इस बार चौमासी चौदस और कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा पर देव दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा है मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने काशी के अहंकारी राजा दिवोदास के अहंकार को नष्ट कर दिया था. वहीं कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर काशी के घाटों पर दीप जलाकर भी इस त्योहार को काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन पूजन का भी विशेष महत्व रहता है. इस पर्व को देवताओं के दिन के रूप में भी जाना जाता है. इस त्योहार को ऋतुओं में श्रेष्ठ शरद, मासों में श्रेष्ठ कार्तिक और तिथियों में श्रेष्ठ पूर्णमासी के दिन मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने काशी के अहंकारी राजा दिवोदास के अहंकार को नष्ट कर दिया था. वहीं कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर काशी के घाटों पर दीप जलाकर भी इस त्योहार को काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है.इस त्योहार को लेकर मान्यता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं. वहीं इस माह को काफी पवित्र भी माना जाता है. इस माह में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्वों को प्रमाणित किया है. इसके साथ ही इस माह में उपासना, स्नान, दान, यज्ञ आदि का भी अच्छा परिणाम मिलता है. माना जाता है कि देव दीपावली के मौके पर विशेष पूजन और उपायों से व्यक्ति तरक्की के मार्ग पर अग्रसर होता है और जीवन में खुशहाली आती है.- 23 नवम्बर 2018 को आगरा में पहली बार गंगा तट, बनारस में होने वाले *देव दीपावली महोत्सव* के अनुरूप ही आरती स्थल, यमुनाँचल, हाथीघाट पर *पंच आकाश दीप एवं देव दीपावली महोत्सव* का आयोजन *गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति* के तत्वावधान में *पं. अश्विनी कुमार मिश्रा जी (संस्थाध्यक्ष एवं यमुना सत्याग्रही)* एवं टीम के नेतृत्व में किया गया। इस कार्यक्रम में देश के सभी समस्त शहीद वर्दीधारी वीर जवानों को हजारों दीप प्रज्ज्वलित कर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई एवं रंगोली प्रतियोगिता, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, सम्मान समारोह एवं माँ यमुना की पूजा-अर्चना कर महाआरती कर *देव दीपावली महोत्सव* बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।यह कार्यक्रम दिनांक:- 25 अक्टूबर 2018 से कार्तिक मास के पावन मास के प्रथम दिन से प्रतिदिन *पंच आकाश दीप प्रज्ज्वलित* कर मनाया जा रहा है इस *पंच आकाश दीप एवं देव दीपावली महोत्सव* को पाँच सोपानों में किया गया है। जिसमें आज का सोपान समस्त शहीद वर्दीधारी वीर जवानों को समर्पित किया गया।आज के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सर्वश्री महेश शर्मा, हरीदत्त गौतम, अजय अग्रवाल, मुरारी लाल फतेहपुरिया, श्रीमती मंजू गुप्ता एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में सर्वश्री केदारनाथ अग्रवाल, बालबोध मिश्र, अशोक चौबे, राधाकृष्ण उपस्थित रहे।कार्यक्रम का संचालन एड. श्री मुकेश शर्मा जी ने सुचारू रूप से किया। आज के इस कार्यक्रम को सफलता प्रदान करने में निम्नलिखित सदस्यों की भूमिका सराहनीय रही.....
सर्वश्री बालबोध मिश्र, डॉ. धीरज मोहन सिंघल,राजीव खण्डेलवाल, सुधीर पचौरी,पं. राजेश कुमार शुक्ला,मानबहादुर सिंह, प्रदीप पाठक, अनिल अग्रवाल, एड. राघवेन्द्र सिंघल, गोवर्धन सुनेजा, राहुल कुमार,पी.के.गुप्ता, राजकुमार चौबे, राहुल बंसल, राजेश यादव, जीवन साहू, हरीशंकर पांडे, प्रमोद शर्मा, रामभरत उपाध्याय इत्यादि . दीप एवं देव दीपावली महोत्सव, बनारस  के अनुरूप कार्तिक मास के इस पावन मास में संस्था द्वारा आगरा में ऐतिहासिक कार्यक्रम की पहली बार शुरुआत की गई।,यमुनाँचल,हाथीघाट,आगरा पर सायं 5:30 बजे गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति के तत्वावधान में पं. अश्विनी कुमार मिश्रा जी (संस्थाध्यक्ष एवं यमुना सत्याग्रही) एवं समस्त टीम के नेतृत्व में पंच आकाश दीप एवं देव दीपावली महोत्सव के इस भव्य कार्यक्रम की श्रंखला में आज चर्तुथ सोपान के अन्तर्गत समाज के चौथे स्तम्भ कलम सैनिक शहीदों (शहीद पत्रकार, लेखक कवि,कलाकार एवं अन्यान समाजसेवी) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। आज के इस कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता श्री हरिदत्त गौतम (पूर्व पुलिस उपाधीक्षक) इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में  डॉ. मनीष मिश्र (अध्यक्ष:- केयर एण्ड अवेयर सोसायटी एवं चेयरमैन नये समीकरण मासिक पत्रिका) एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. ओमप्रकाश दीक्षितसूर्य”(वीररस कवि), श्री शिवशंकर सहज (कवि), डॉ. राजकुमार रंजन (गीतकार), डॉ. बिन्दु अवस्थी (चित्रकार), श्री मती मीना शर्मा (कवित्री), दीपाशं सिंह सिकरवार (उर्दू ग़ज़ल गायक)सभी सम्मानित अतिथियों ने अपने वक्तव्य में संस्था द्वारा पहल की जा रहे कार्यक्रम की सराहना करते हुए अपना पूर्ण सहयोग देने की बात की। इस कार्यक्रम का संचालन एड. मुकेश शर्मा जी ने सुचारू रूप से किया।इस कार्यक्रम में निम्नलिखित सदस्यों एवं सम्मानित जनों की उपस्थिति सराहनीय रही सर्वश्री डॉ.धीरज मोहन सिंघल, पं. राजेश कुमार शुक्ला, राजीव खण्डेलवाल, सुधीर पचौरी, मानबहादुर सिंह, गोवर्धन सोनेजा, श्रीमती सरिता यादव, श्याम यादव, श्री कृष्ण अग्रवाल (एडवोकेट), प्रताप सिसोदिया, राहुल बंसल, इत्यादि।