Tuesday, December 28, 2021

लिगामेंट एसीएल पीसीएल का आर्थोस्कोपी सर्जरी

घुटनों के सबसे महत्वपूर्ण लिगामेंट एसीएल पीसीएल टूटने का इलाज अब आर्थोस्कोपी के जरिए अतीत की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षित और बेहतर हो चुका है। वस्तुत: लिगामेंट्स रस्सीनुमा तंतुओं के ऐसे समूह हैं, जो हड्डियों को आपस में जोड़कर उन्हें स्थायित्व प्रदान करते हैं। इस कारण जोड़ सुचारु रूप से कार्य करते हैं। घुटने का जोड़ घुटने के ऊपर फीमर और नीचे टिबिया नामक हड्डी से बनता है। बीच में टायर की तरह के दो मेनिस्कस (एक तरह का कुशन) होता है। फीमर व टिबिया को दो रस्सीनुमा लिगामेंट (एनटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट और पोस्टेरियर क्रूसिएट लिगामेंट) आपस में बांध कर रखते हैं और घुटनों को स्थायित्व प्रदान करते हैं। साइड में यानी कि घुटने के दोनों तरफ कोलेटेरल और मीडियल कोलेटेरल लिगामेंट और लेटेरल कोलेटरल लिगामेंट नामक रस्सीनुमा लिगामेंट्स होते हैं। इनका कार्य भी क्रूसिएट की तरह दोनों हड्डियों को बांध कर रखना है।
ACL एसीएल सर्जरी:-
एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट (एसीएल) घुटने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्पोर्ट्स इंजरी में सबसे ज्यादा यही लिगामेंट टूटता है। इसे पुन: उखड़ी हुई जगह पर जोड़ना और नया लिगामेंट बनाने की प्रक्रिया को एसीएल रीकॉन्ट्रक्शन कहते हैं। लिगामेंट आपके शरीर में मजबूत टिश्यू का ऐसा समूह है, जो हड्डियों को आपस में जोड़ता है। घुटने के आर्थोस्कोपिक प्रोसीजर में एसीएल सर्जरी सबसे ज्यादा कारगर होती है। एसीएल सर्जरी घुटने को स्थिरता प्रदान करती है। जब घुटना ज्यादा स्ट्रेच हो जाता है तब एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि लिगामेंट खिंचते हुए टूट जाता है। ऐसे में घुटना सूज जाता है और उसमें दर्द होता है। घुटना अस्थिर हो जाता है और चलने में दिक्कत होती है।
PCL पोस्टीरियर क्रूसिएट लिगामेंट सर्जरी:-
घुटने के जोड़ के पास दो हड्डियों का मेल होता है, जिनमें फैमूर (थाईबोन) और तिबिया (शिनबोन) शामिल होते हैं। घुटने के ऊपर की हड्डी जोड़ को सुरक्षा प्रदान करती है। एक हड्डी दूसरी हड्डी से लिगामेंट के जरिए जुड़ी होती है। घुटने में कुल चार प्रमुख लिगामेंट्स होते हैं। यह हड्डियों को एक साथ पकड़े रखने के लिए एक मजबूत रस्सी की तरह काम करते हैं और घुटने को स्थिर बनाते हैं। पोस्टीरियर क्रूसिएट लिगामेंट शिनबोन को पीछे की ओर अत्यधिक सीमा तक मुड़ने में मदद करता है। यह एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट के मुकाबले अधिक मजबूत होता है और यह अक्सर कम घायल होता है। पोस्टीरियर क्रूसिएट लिगामेंट के दो भाग होते हैं जो मिलकर एक ढांचा निर्मित करते हैं, यह लगभग व्यक्ति की छोटी उंगली के सामान होता है।
आर्थोस्कोपी दूरबीन विधि से सर्जरी:-
आर्थोस्कोपी का शाब्दिक अर्थ है शरीर के जोड़ को किसी यंत्र से देखना। इसमें धातु की एक पतली नली का एक सिरा जोड़ के अंदर डाल दिया जाता है। इस नली में लेंस लगे होते हैं जो अंदर के भागों को बड़ा करके बाहर दिखाते हैं।आर्थोस्कोपी की प्रक्रिया के अंतर्गत पहले जोड़ में पानी भरकर उसे बड़ा कर लिया जाता है, जिससे जोड़ के अंदर की चीजें साफ दिखें और ऑपरेशन आसानी से किया जा सके। आर्थोस्कोपी से ऑपरेशन के दौरान किसी भी तरह के संक्रमण नगण्य हो जाता है।
आर्थोस्कोपिक विधि से इलाज:-
आर्थोस्कोपिक विधि से अब स्पोर्ट्स इंजरी का इलाज सफलतापूर्वक संभव है। चीरफाड़ किए बगैर आर्थोस्कोप से जो भी लिगामेंट टूट गया है, उसे रिपेयर कर दिया जाता है या फिर उसका दोबारा पुनर्निर्माण कर दिया जाता है। घुटने की लूज बॉडीज (चोट लगने के कारण लिगामेंट में टूट-फूट होने वाले भागों) को निकाल दिया जाता है। परिणामस्वरूप घुटने की अस्थिरता खत्म हो जाती है और दर्द दूर हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की दिनचर्या बहाल हो जाती है। यह आधुनिक विधि दर्दरहित और सफल है।
बस्ती मेडिकल कॉलेज की नई उपलब्धि :-
बस्ती के कैली अस्पताल में घुटने का सफल लिगामेंट सर्जरी
बस्ती (उ.प्र.)। महर्षि वशिष्ठ स्वशाषी चिकित्सा महाविद्यालय बस्ती की चिकित्सा इकाई ओपेक चिकित्सालय कैली बस्ती में तीस वर्षीय युवक के घुटने की सफल लिगामेंट सर्जरी युवा आर्थो सर्जन डॉ. सौरभ द्विवेदी एवं उनकी टीम द्वारा सफलता पूर्वक की गयी। इसके घुटने के एसीएल व पीसीएल दोनों लिगामेंट टूट गये थे। ऐसे आपरेशन बस्ती जैसे छोटे जिले के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस सफल आपरेशन के बाद युवक के परिजनों के चेहरे खिल गये और डॉ. सौरभ व उनकी टीम को खूब दुआएं देते देखे गए।
लालगंज बस्ती निवासी तीस वर्षीय युवक राजू को ढाई महीने पहले चोट लगने से घुटने के एसीएल और पीसीएल दोनों लिगामेंट टूट गए थे। वह चलने फिरने में असमर्थ हो गया था।उसने अनेक जगह डाक्टरो को दिखाया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। वह बस्ती मेडीकल कालेज कैली अस्पताल के डाक्टर सौरभ द्विवेदी से मिला। डा सौरभ द्विवेदी ने उसका एमआरआई कराया तो उसके घुटने के एसीएल और पीसीएल दोनों लिगामेंट टूटे हुए पाए गए।
28 दिसम्बर 2021 को कैली अस्पताल में डा सौरभ द्विवेदी और उनकी की टीम ने आर्थोस्कोपी दूरबीन विधि से युवक का आपरेशन करके उसके घुटने के एसीएल और पीसीएल दोनों लिगामेंट सफलता पूर्वक रिपेयर किए।इस तरह के आपरेशन केली अस्पताल में पहली बार हुआ है। बस्ती में पहले हुए आपरेशन सफल नहीं रहे। आज का कैलीअस्पताल में डा सौरभ द्विवेदी और उनकी की टीम द्वारा एक ही सिटिंग में यह सफल आपरेशन किया गया। मरीज अपने को बेहतर महसूस कर रहा है।





Monday, December 27, 2021

इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अंतरराष्ट्रीय 66 वां कॉन्फ्रेंस (LXVI) में बस्ती के आर्थोपेडिक सर्जन डा सौरभ द्विवेदी ने प्रतिभाग लिया


            इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन का अंतरराष्ट्रीय 66 वां कॉन्फ्रेंस (LXVI) संपन्न ।
            बस्ती के एकमात्र आर्थोपेडिक सर्जन डा सौरभ द्विवेदी ने सहभागिता निभाई।
           भारतीय आर्थोपेडिक एसोसिएशन 1955 में स्थापित किया गया था और 2013 इसमें 9,000 से अधिक सदस्य थे। वर्तमान समय इस संगठन में वर्तमान समय में कुल 12262 सक्रिय सदस्य हैं।इस सम्मेलन में भारत भर के 5,000 से अधिक आर्थोपेडिक सर्जनों ने भाग लिया।
            भारत में आर्थोपेडिक सर्जरी पर ध्यान केंद्रित करने वाले पहले सर्जन डॉ आर जे कटक , डॉ एन एस नरसिम्हा अय्यर और डॉ एस आर चंद्र थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, डॉ. मुखोपाध्याय और डॉ. के एस ग्रेवाल ने 1952 में वेल्लोर में एएसआई के वार्षिक सम्मेलन के दौरान एक एसोसिएशन बनाने का सुझाव दिया। 1953 में आगरा में कई अभ्यास करने वाले सर्जन मिले , जिनमें प्रमुख रूप से कटक, डॉ बी एन सिन्हा, ग्रेवाल, मुकोपाध्याय और डॉ एके गुप्ता। वे एएसआई का एक हड्डी रोग अनुभाग बनाने के लिए सहमत हुए। दिसंबर 1955 में एएसआई की बैठक में आधिकारिक तौर पर सोसायटी का गठन अमृतसर में किया गया था। डॉ बी एन सिन्हा और डॉ मुकोपाध्याय सर्वसम्मति से अध्यक्ष और सचिव चुने गए थे। डॉ. ए के तलवलकर ने IOA की ओर से जॉनसन एंड जॉनसन और स्मिथ एंड नेफ्यू ट्रैवलिंग फेलोशिप की शुरुआत की। वार्षिक किनी मेमोरियल ओरेशन 1958 में शुरू हुआ। सर हैरी प्लाट ने 1958 में पहले वक्ता के रूप में कार्य किया। एसोसिएशन के सदस्यों ने 1967 में प्रकाश चंद्र के संपादक के रूप में एक पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया। एक प्रवर समिति द्वारा तैयार किए गए संविधान को 1967 में आम सभा की बैठक में सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था। इसे बाद में भारतीय समाज अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था           इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन का हड्डीरोग चिकित्सकों की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस 66 वां (LXVI) 21से 25दिसंबर 2021को श्यामा प्रसाद मुखर्जी इंडोर स्टेडियम, गोवा विश्वविद्यालय, टेलीगोवा , गोवा में सम्पन्न हुआ।
            उतर प्रदेश के एसएन मेडिकल कालेज आगरा के असिस्टेंट प्रोफेसर आफ आर्थोपेडिक्स डा. रजत कपूर को इंडियन ओर्थपेडीक एसोसिएशन की गोवा में हुई 66वीं कांफ्रेंस आईओएकान-21 में आईओए फैलोशिप से नवाजा गया है। इसके साथ उन्हें 40 हजार रुपए का चेक देकर सम्मानित किया गया है। डा. कपूर को यह उपाधि इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. बी शिवशंकर, उपाध्यक्ष डा. अतुल श्रीवास्तव, सचिव डा. नवीन ठक्कर, पीजीआई चंडीगढ़ के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश सेन ने प्रदान की है। देहरादून स्थित पद्म श्री प्राप्तकर्ता ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ बीकेएस संजय को गोवा में 66 वें वार्षिक सम्मेलन के दौरान इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन (आईओए) द्वारा सम्मानित किया गया। डॉ संजय ने आई.ओ.ए. के अध्यक्ष डॉ. बी. शिवशंकर, सचिव डॉ. नवीन ठक्कर, सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. राम चड्डा तथा एसोशिएसन के अन्य पदाधिकारियों का आभार प्रकट किया।
          उतर प्रदेश के महर्षि बशिष्ठ राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय के अस्थि रोग के के सीनियर रेजीडेंट डा सौरभ द्विवेदी ने भी सम्मेलन में प्रतिभाग लिया है। उन्हें कोरोन
 वायरस के विरुद्ध लड़ाई में उत्तम कार्य के लिए भी सम्मानित किया गया है।
         इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से सीखे नई तकनीकियों का लाभ आगामी दिनों में बस्ती मंडल की आम जनता को भी मिलेगा। अब हड्डी रोग से संबंधित रोगियों को महा नगरों का चक्कर नही लगाना पड़ेगा। बस्ती में उच्च कोटि की तकनीकि भी सामान्य खर्चे में सुलभ हो सकेगा।
























































 






Saturday, December 25, 2021

तुलसी पूजन दिवस :एक शुद्ध सनातन परम्परा

  
25 दिसंबर का दिन पूरी दुनिया में क्रिसमस (Christmas) के त्योहार के रूप में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह ईसाई समुदाय (Christian Community) का सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन प्रभु यीशु (Lord Yeshu) का जन्म हुआ था। आज के ही दिन तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) भी काफी ट्रेंड हो रहा है। आइए जानते है आखिर क्रिसमस डे के दिन ही तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) क्यों मनाया जाता है?
ऐसे हुई थी तुलसी पूजन दिवस की शुरूआत
25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस आसाराम बापू (Asaram Bapu) के अनुयायी सेलिब्रेट कर रहे है, साथ ही सोशल मीडिया के जरिए इसे प्रमोट भी कर रहे है। आसाराम के अनुयायियों के लगातार पोस्ट करने से तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) अब काफी ट्रेंड हो रहा है। वर्ष 2014 में आसाराम बापू ने तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) की शुरुआत की थी। 
तुलसी धरा के लिए वरदान
 तुलसी केवल एक पौधा ही नहीं है बल्कि धरा के लिए वरदान है। जिसके कारण इसे हिंदू धर्म में पूजनीय और औषधि तुल्य माना जाता है ‘तुलसी पूजन करने से लोगों को चमत्कारिक लाभ मिलता है साथ ही लोगों को तुलसी से होने वाले लाभ की भी जानकारी मिलती है और देश में भारतीय संस्कृति का प्रसार भी होता है।
काफी कम लोग जानते है तुलसी पूजन दिवस
25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है, ये सभी जानते है, लेकिन 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) मनाया जाता है, ये बहुत कम लोग ही जानते है। तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Diwas) में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है, और घर में सुख, शांति की कामना की जाती है। इस दिन लोग तुलसी के नए पौधे भी लगाते है। क्योंकि हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को अत्यधिक शुभ माना गया है।
आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया हैं
सालों से तुलसी के पौधे का उपयोग औषधीय रूप में किया जा रहा है। हिन्दू धर्म में इसे औषधीय मूल्य पौधा कहा गया है। वहीं आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया है, क्योंकि यह औषधि के रूप में काम आती है। कहा जाता है कि जिसके घर में तुलसी का पौधा होता है, उसके यहां हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। शास्त्रों में मिलता है कि भगवान श्री हरि भोग को स्वीकार नहीं कर रहे थे, क्योंकि उसमें तुलसी के पत्ते नहीं थे।
आयुर्वेद में तुलसी के पौधे के हर भाग को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताया गया है। सर्दी खांसी में कारगर हिन्दू धर्म में तुलसी पूजन की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. लेकिन 2014 से भारत में आज यानी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाई जाती है. इस सम्बंध में तुलसी के आठ नाम महत्त्व पूर्ण हैं।
       
                   तुलसी – नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||
भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है |जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)
तुलसी एक दिव्य औषधि तो है ही परंतु इससे भी बढ़कर यह भारतीय धर्म-संस्कृति में प्रत्येक घर की शोभा, संस्कार, पवित्रता तथा धार्मिकता का अनिवार्य प्रतीक भी है।
गरुड़ पुराण में आता है कि ‘तुलसी का पौधा लगाने, पालन करने, सींचने तथा उसका ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्वजन्मार्जित पाप जल कर विनष्ट हो जाते हैं।
पद्म पुराण के अनुसार ‘जो तुलसी के पूजन आदि का दूसरों को उपदेश देता और स्वयं भी आचरण करता है, वह भगवान श्री लक्ष्मीपति के परम धाम को प्राप्त होता है।’
अनेक गुण, अनेक लाभ
वेदों, पुराणों और औषधि-विज्ञान के ग्रंथों में तुलसी के गुणों के आधार पर से उसे विभिन्न नाम दिये गये हैं, जैसे – काया को स्थिर रखने से कायस्था, तीव्र प्रभावी होने से तीव्रा, देव गुणों का वास होने से देवदुंदुभि, रोगरूपी दैत्यों की नाशक होने से दैत्यघ्नि, मन, वाणी व कर्म से पवित्रतादायी होने से पावनी, इसके पत्ते पूत (पवित्र) करने वाले होने से पूतपत्री, सबको आसानी से मिलने से सरला, रस (लार) ग्रंथियों को सचेतन करने वाली होने से सुरसा आदि।
रोगों से रक्षा हेतु कवचः तुलसी मंजरी
तुलसी की मंजरी को भिगोकर शरीर पर छींटना रोगों से रक्षा के लिए कवच का काम करता है। इसके बीजों में पीले-हरे रंग का उड़नशील तेल होता है, जो त्वचा द्वारा शरीर में प्रविष्ट होकर विभिन्न रोगों से रक्षा करता है।
पूज्य श्री के श्रीमुख से तुलसी-महिमा
पूज्य बापू जी के सत्संग में आता है कि “तुलसी पत्ते पीसकर उसका उबटन बनायें और शरीर पर मलें तो मिर्गी की बीमारी में फायदा होता है। किसी को नींद नहीं आती हो तो 51 तुलसी पत्ते उसके तकिये के नीचे चुपचाप रख देवें, नींद आने लगेगी।
करें तुलसी माला धारणः तुलसी की कंठी धारण करने मात्र से कितनी सारी बीमारियों में लाभ होता है, जीवन में ओज, तेज बना रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति सुदृढ़ रहती है। पौराणिक कथाओं में आता है कि तुलसी माला धारण करके किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना फल देता है।
अभी विज्ञानी आविष्कार भी इस बात को स्पष्ट करने में सफल हुए हैं कि तुलसी में विद्युत तत्त्व उपजाने और शरीर में विद्युत-तत्त्व को सजग रखने का अदभुत सामर्थ्य है। जैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि तुलसी का इतना सेवन करने से कैंसर नहीं होता लेकिन हम लोगों ने केवल कैंसर मिटाने के लिए ही तुलसी नहीं चुनी है। हम लोगों का नज़रिया केवल रोग मिटाना नहीं है बल्कि मन प्रसन्न करना है, जन्म मरण का रोग मिटाकर जीते जी भगवद् रस जगाना है।"
सम्पूर्ण विश्व-मानव तुलसी की महिमा को जाने और इसका शारीरिक, मानसिक, दैविक और आध्यात्मिक लाभ ले इस हेतु ‘सबका मंगल सबका भला’ चाहने वाले पूज्य बापू जी ने 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनाने की सुंदर सौगात समाज को दी है। विश्वभर में अब यह दिवस व्यापक स्तर पर मनाया जाने लगा है।
गले में तुलसी की माला धारण करने से जीवनीशक्ति बढ़ती है, बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है। शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है।
तुलसी माला से भगवन्नाम जप करने एवं इसे गले में पहनने से आवश्यक एक्यूप्रेशर बिंदुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव में लाभ होता है, संक्रामक रोगों से रक्षा होती है तथा शरीर-स्वास्थ्य में सुधार होकर दीर्घायु में मदद मिलती है।
तुलसी को धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों का विद्युतशक्ति धारण करने का सामर्थ्य बढ़ता है।
गले में तुलसी माला पहनने से विद्युत तरंगे निकलती हैं जो रक्त संचार में रुकावट नहीं आने देतीं। प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर आभामंडल विद्यमान रहता है।
गले में तुलसी माला धारण करने से आवाज सुरीली होती है। हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला हृदय व फेफड़े को रोगों से बचाती है। इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है।
तुलसी की माला धारक के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। कलाई में तुलसी का गजरा पहनने से नाड़ी संबंधी समस्याओं से रक्षा होती है, हाथ सुन्न नहीं होता, भुजाओं का बल बढ़ता है।
तुलसी की जड़ें अथवा जड़ों के मनके कमर में बाँधने से स्त्रियों को विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है। कमर में तुलसी की करधनी पहनने से पक्षाघात (लकवा) नहीं होता एवं कमर, जिगर, तिल्ली, आमाशय और यौनांग के विकार नहीं होते हैं।
यदि तुलसी की लकड़ी से बनी हुई मालाओं से अलंकृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वे कोटि गुना फल देने वाले होते हैं। जो मनुष्य तुलसी लकड़ी से बनी माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुनः प्रसादरूप से उसे भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं।


Monday, December 6, 2021

कर्म - भोग : श्रीमद्भभगवतगीता के आधार पर बहुत ही उपयोगी विचार। (सोसल मीडिया Niyojan चिन्तन ग्रुप से साभार)

 
पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता - पिता , भाई - बहन , पति - पत्नि , प्रेमी - प्रेमिका , मित्र - शत्रु , सगे - सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं , सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है ।
सन्तान के रुप में कौन आता है ?
वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --
ऋणानुबन्ध  :-पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो , वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा , जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।
शत्रु पुत्र  :- पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता - पिता से मारपीट , झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।
उदासीन पुत्र  :- इस प्रकार की सन्तान ना तो माता - पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस , उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता - पिता से अलग हो जाते हैं ।
सेवक पुत्र  :- पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो  बोया है , वही तो काटोगे । अपने माँ - बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी , वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।
आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा।
इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे , उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये।
ज़रा सोचिये , "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये , वो कितना सोना - चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना - चाँदी , धन - दौलत बैंक में पड़ा रह गया , समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है , खुद ही खा - कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ , वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"
मैं , मेरा , तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा , कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ *नेकियाँ* ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके *नेकी* करो *सतकर्म* करो ।       
                 ( डा. ज्ञानेन्द्र नाथ श्रीवास्तव)
माता पिता के बारे में एक अनुभव जनित तथ्य -
कहते हैं कि माँ तो माँ ही होती है और पिता भी पिता होता है जो संतान के लिये कुछ भी तप  त्याग कर सकते हैं। यह बात सत्य है। किंतु ऐसा भी देखने में आया है कि एक समय आता है जब माँ बाप भी संतान के साथ पूर्वाग्रह एवं पक्षपात से भर जाते हैं और उनकी सदाशयता तथा सहानुभूति सब लुप्त हो जाती है। जो माता पिता इस स्थिति को प्राप्त होते हैं उनकी भावना संतान के भौतिक जीवन को बहुत नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है । ऐसे माता पिता अपना परलोक बिगाड़ते हैं या नहीं इसका तो कोई साक्ष्य नहीं होता है। 
बचपन में माता का दुलार और पिता का दंभ संतान के दुर्भाग्य का कारण बनता है । युवा एवं प्रौढ़ संतान के प्रति माता पिता की दुर्भावना संतान को दरिद्र बनाती है और उसके ऊपर विपत्तियाँ लाती है। 
बचने के साधन एवं उपाय:-
संतान को चाहिए कि वह माता पिता के गुण अवगुण का विश्लेषण किये विना उनके प्रति पूर्ण समादर एवं शिष्टाचार का भाव बनाये रखे। उनके दुर्वचनों को आशीर्वचन के रूप में देखे। उनकी निंदा न करे और अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग करते हुये उनकी इच्छा पूर्ति करे। उनकी मन से सेवा करे एवं उनके दुर्गुणों पर दृष्टिपात न करते हुये उनकी   मांस-मदिरा की चाहत को भी पूर्ण करे। ऐसी संतान हर बाधा विपत्ति को पार करने में समर्थ होगी। वह समृद्धिशाली होगा और उसका भौतिक जीवन परम सुखमय होगा एवं अध्यात्म में उसकी गति होगी। जिसने यह तप साध लिया वह महाविजयी होगा। उसे मंदिर या तीर्थ जाने और देवदर्शन की  आवश्यकता नहीं होगी।
जो संतान माता पिता पर एहसान जताती है वह दुख एवं विपत्तियों के सागर में निमग्न रहती है ।  बहू और दामाद के दुखों का कारण यही है कि वे अपने सास-ससुर को अपना नहीं पाते हैं और मानसिक दुरोभाव के कारण ही अनायास दुर्भाग्य को निमंत्रण दे बैठते हैं। यह संभव है कि बहू या दामाद के लिये सास-ससुर अच्छे न हो, वे अवसरवादी, स्वार्थी एवं दूषित मनोभाव वाले हो सकते हैं किंतु जिसे सौभाग्य चाहिए उसे इनके हर दुर्गुण को स्वीकारना ही पड़ेगा तभी प्रकृति प्रसन्न होकर सुख सौभाग्य का अवसर प्रदान करती है । यही धर्म है जिसे धारण करना है जिसका पालन करना है। 
विवाह एक सामाजिक प्रक्रिया है जो परिवार और समाज के लोग संपन्न कराते हैं। शारीरिक आकर्षण आयुजन्य होते हैं इसलिए प्रणय विवाह या गंधर्व विवाह भी संभव हैं और सामाजिक विधि विधान को संपन्न कर इनको सामाजिक मान्यता भी मिल जाती है। किंतु परस्पर समर्पण या विद्रोह का भाव बैपरने पर ही विकसित होता है। पति- पत्नी एक -दूसरे के गुण- दोष का विश्लेषण और विवेचन कर परस्पर क्षुब्ध या सुखी -संतुष्ट हो सकते हैं किंतु दोनों ही अपने माता-पिता या जन्मभूमि या पैतृक स्थान की निंदा नहीं सुन सकते हैं या सुनने के बाद प्रसन्न और अनुकूल नहीं रह सकते हैं। आप अपनी माता से भले ही कितना खीझते रहे हों या पिता से जेब खर्च के लिये कितना भी बहस करते रहे हों किंतु पत्नी उसका अंशमात्र भी करे तो आपको सहन नहीं होगा और पुन:श्च यही बात पत्नी के पैतृक संबंधों के प्रति लागू होती है वह भी अपनों के प्रति ऐसा कुछ भी सहन नहीं करेगी। इसलिये सुख का स्रोत है स्वीकार्यता । जो जैसा है उसको विना विश्लेषण के स्वीकार करें। इस तपस्या के द्वारा पति-पत्नी के मन का मिलन होता है। जिस गृहस्थी में पति-पत्नी के मन का मेल हो गया वहाँ लक्ष्मी-सरस्वती क्या ईश्वर स्वयं रहने लगता है।
गृहस्थ जीवन के लिये ये तप विवाह में सप्तपदी के सातवचनों के समय ( अग्नि प्रदक्षिणा करते समय सात भाँवर के साथ) सिखाये जाते हैं। किंतु समारोह के आडंबर, लेन देन के असंतोष, अतिथि एवं  संबंधियों के क्षुब्ध मन एवं आक्रोश (जो कि वर वधू की बारंबार न्योछावर से भी शांत नहीं होते) तथा धूम धाम से भंग-पवित्रता वाले वातावरण में वैसे ही अनसुने रह जाते हैं जैसे कृष्ण के शंखनाद से युधिष्ठिर के पूर्ण  सत्यवचन। अतएव  फल सुखद नहीं होता है और जीवन का सकारात्मक समय क्षुब्ध वातावरण में नकारात्मकता को निमंत्रण दे बैठता है। इसलिए आवश्यक है कि विवाह समारोह सादगीपूर्ण, आडंबरविहीन तथा लेन-देन की अपेक्षाओं से मुक्त हो, क्योंकि इसका उद्देश्य पवित्र है अत: वातावरण भी पवित्र होना चाहिए। अपेक्षाओं से सदा प्रदूषण बढता ही है।
               

Sunday, December 5, 2021

उत्तर प्रदेश में 68 से अधिक नदियों हुई पुनर्जीवित। डा. राधे श्याम द्विवेदी

आदि काल से भारत के लोगों का नदियों के साथ बेहद आत्मीय रिश्ता रहा है और यह हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का एक अविभाज्य अंग रही है ।प्रदेश से होकर बहने वाली गंगा, यमुना, घाघरा और सरयू को मिलाकर बड़ी नदियों की संख्या 31 है। इनकी सैकड़ों छोटी और सहायक नदियां हैं जो प्रदेश के सिंचाई और विकास में योगदान दे रही हैं। अधिकांश लोग नदियों के जल को पवित्र और उपचारात्मक शक्ति से युक्त मानते हैं। वर्तमान समय में कई नदियों का प्रवाह बेहद कम हो गया है । कई सूखने के कगार पर पहुंच गई हैं। कई प्रदूषण से भरा गंदा नाला बन चुकी हैं। नई जल नीति में कहा गया है कि नदियों में अविरल धारा सुनिश्चित किए बगैर निर्मल धारा का होना असंभव है। इसमें नदियों का अधिकार अधिनियम का मसौदा तैयार करने के लिए सभी हितधारकों के बीच गहन विचार-विमर्श की गई है ताकि नदियों को समग्र कानूनी संरक्षण मिल सके। इस तरह नदियों को प्रवाह बनाए रखने, इधर-उधर घुमावदार मार्ग से होते हुए बहने और समुद्र से मिलन का अधिकार दिया जा सकेगा। अक्सर तटबंध तोड़कर रिहायशी इलाकों तक बाढ़ का पानी पहुंच जाता है। नदी या समुद्र की तरफ जाने वाले प्राकृतिक मार्गों के नष्ट होने से बाढ़ की समस्या और भी बढ़ जाती है। प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ का पानी शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में हमारे घरों एवं कार्यस्थलों तक पहुंच जाता है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में उल्लिखित नदी नियमन क्षेत्रों का निर्धारण कर अधिसूचित कर देना चाहिए ताकि नदी-तटों एवं बाढ़ के मैदानों में विकास-जन्य हस्तक्षेपों को रोका जा सके। इस बात के ध्यान में रखकर देश के तीन भौगोलिक इलाकों- हिमालयी, वर्षा वाले क्षेत्र और तटीय क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब हम प्रकृति का संरक्षण करते हैं, तो बदले में हमें भी प्रकृति संरक्षण और सुरक्षा देती है। इस बात को हम अपने निजी जीवन में भी अनुभव करते हैं। यह बातें उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में रविवार को कहीं।
नदी जोड़ो योजना ने बदली तस्वीर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ों योजना की शुरुआत की थी। उत्तर प्रदेश की 19 नदियों को पुनर्जीवित करने का ब्लूप्रिट शासन द्वारा तैयार किया जा रहा है। मनरेगा के तहत नदियों को पुनर्जीवित करने के काम से जोड़ा जा रहा है। इस योजना में मीरजापुर सहित प्रदेश के 39 जिले शामिल हैं जहां से यह 19 नदियां गुजरती है। इस योजना में मीरजापुर सहित सोनभद्र, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, कानपुर व कानपुर देहात, बहराइच, गोंडा, बस्ती, औरैया, कन्नौज, लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, चित्रकूट, अयोध्या सहित कुल 39 जिले शामिल हैं। इस योजना के तहत इन जिलों के 189 विकास खंड व 1952 ग्राम पंचायतों को चिन्हित किया गया है। मनरेगा के तहत जिन नदियों को पुनर्जीवित किया जाना है उनकी कुल लंबाई 3600 किलोमीटर है। यह लंबाई गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली गंगा नदी की लंबाई दो हजार किमी से लगभग दोगुना है।
इन नदियों को बनाएंगे सदानीरा
2018 से नदियों के पुनरुद्धार का कार्य उत्तर प्रदेश सरकार करा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले साढ़े चार वर्षों में नदियों के संरक्षण की दिशा में बड़े पैमाने पर कार्य किया है। प्रदेश में विलुप्त हो चुकी 68 से अधिक नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। 
वर्ष 2018-19 में पुनर्जीवित हुई नदी:-
प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2018-19 मनरेगा के तहत विभिन्न नदियों के पुनरुद्धार का कार्य जा रहा है। छह नदी -अरिल नदी, मंदाकिनी नदी, कर्णावती नदी, वरुणा नदी, मोरवा नदी और गोमती नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। इन्हीं में से एक जालौन में विलुप्त हो चुकी नून नदी के पुनर्जीवित होने की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में की।
 वित्तीय वर्ष 2019-20 में 26 जिलों के 19 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। टेढी नदी, मनोरमा नदी, पांडु नदी, वरुणा नदी, ससुर खदेड़ी, सई नदी, गोमती नदी, अरिल नदी, मोरवा नदी, मंदाकिनी नदी, तमसा नदी, नाद नदी, कर्णावती नदी, बान नदी, सोत नदी, काली पूर्व नदी, डाढ़ी नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा नदी, नदियों को पुनर्जीवित किया गया है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में 36 जिलों की 25 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। टेढ़ी नदी, मनोरमा नदी, पांडु नदी, वरुणा नदी, ससुर खदेड़ी, सई नदी, गोमती नदी, अरिल नदी, मोरवा नदी, मंदाकिनी नदी, तमसा नदी, नाद नदी, कर्णावती नदी, बान नदी, सोत नदी, काली पूर्वी नदी, डाढ़ी नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा, कुंवर, कल्याणी, बेलन, सिरसा, किवाड़, ऊटगन को पुनर्जीवित किया गया है।
 कर्णावती नदी में लबालब पानी 
मीरजापुर जनपद में कर्णावती नदी को फिर से सदानीरा बनाने का प्रयास पिछले वर्ष शुरू किया गया। इस समय कर्णावती नदी में लबालब पानी बह रहा है। 
सोन और वरुणा नदी में प्रवाहित हुआ जल
इसी तरह ही सोनभद्र जिले में सोन व वाराणसी जिलेकी वरुणा नदी में भी जल प्रबाहित किया जा रहा है।
 अन्य अनेक नदियों की हालत सुधरी
उक्त नदियों के साथ ही सई, पांडु, मंदाकिनी, टेढ़ी, मनोरमा, ससुर खदेड़ी, अरेल, मोराव, तमसा, नाद, बाण, काली, दधि, इशान, बूढ़ी गंगा व गोमती नदी को योजना के तहत पुनर्जीवित किया जा रहा है।
टेढ़ी नदी 
 टेढ़ी नदी बहराइच के चित्तौरा से निकलकर गोण्डा में 192 लम्बी दूरी तय करते हुए सरयू नदी में मिल जाती है। यह गोण्डा के 7 ब्लाकों से होते हुए निकतली है जिसमें 66 ग्राम पंचायतें पड़ती हैं। टेढी नदी के जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 1317.87 लाख रूपए की धनराशि अवमुक्त की गई है। 
मनवर नदी 
उद्दालक ऋषि ने अपने यज्ञ स्थल पर सरस्वती नदी को प्रकट होने की इच्छा की थी। पुरानिक इनसाइक्लोपीडिया पृ. 48, 803 के अनुसार ऋषि के प्रभाव को देखते हुए सरस्वती नदी वहां प्रकट हुई थी। ऋषि ने मनोरमा नाम दिया था। यह भी कहा जाता है कि तिर्रे तालाब के पास उन्होंने अपने नख से एक रेखा खीचंकर गंगा का आहवान किया तो गंगा सरस्वती ( मनोरमा ) नदी के रूप में अवतरित हुई थीं। मनोरामा नदी तहसील हर्रिया, बस्ती से उत्तर-पश्चिम तक दक्षिण-पूर्वी दिशा में बह रही है। सरस्वती नदी को ब्रह्मा के चेहरे से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री भी कहा जाता है।उन्होंने ब्रहमाजी से अपना नाम पूछा तो ब्रह्मा जी ने बताया था- तुम्हारा नाम सरस्वती है। तुम तीन जगह रह सकती हो- 1. विद्वानों के जिह्वा के अग्रभाग पर तुम नृत्य करोगी। 2. पृथ्वी लोक में नदी के रुप समाज का कल्याण करोगी। 3. मेरे साथ निवास करोगी। सरस्वती ने इन शर्तों को स्वीकार कर लिया था। एक अन्य उल्लेख में आया है कि उद्दालक ऋषि के पुत्र नचिकेता ने मनवर नदी से थोड़ी दूर तारी परसोइया नामक स्थान पर ऋषियों एवं मनीषियों को नचिकेता पुराण सुनाया था। पुराणों में मनोरमा नदी को सरस्वती की सातवीं धारा भी कहा गया है। मूल सरस्वती अपने वास्तविक स्वरूप को खोकर विलुप्त हो चुकी हैं, परन्तु मनोरमा के रूप में आज भी हम लोगों को अपना स्वरूप दिखलाकर दर्शन कराती हैं। इसके नाम के बारे में यह जनश्रुति है कि जहां मन रमे वही मनोरमा होता है। जहां मन का मांगा वर मिले उसे ही मनवर कहा जाता है। चूंकि ऋषि के मन के संकल्प व इच्छा की पूर्ति करते हुए सरस्वती जी ने यहां अवतरण किया था। इसलिए उनका मनोरमा व मनवर नाम पूर्णतः उनके अवतरण की घटना की पुष्टि भी करता है। यह नदी बस्ती जिले की सीमा पर सीकरी जंगल के सहारे पूर्व दिशा में अनियमित धाराओं के रूप में बहती है। गोण्डा के चिगिना में नदी तट पर राजा देवी बक्स सिंह का बनवाया प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। गोण्डा परगना और मनकापुर परगना के बीच कुछ दूर यह पूर्व दिशा में बहने के बाद यह बस्ती जिले के परशुरामपुर विकास खण्ड के समीप बस्ती जिले में प्रंवेश करती है। इसके दोनों तरफ प्रायः जंगल व झाड़ियां उगी हुई हैं। बिंदिया नगर के पास इसमे मंद मंद बहने वाली चमनई नामक एक छोटी नदी मिल जाती है। यहां यह पूर्व के बजाय दक्षिण की ओर बहना शुरू कर देती है। जो मनकापुर और महादेवा परगना का सीमांकन भी करती है। इस मिलन स्थल से टिकरी जंगल के सहारे यह दक्षिण पश्चिम पर चलती है। यह नदी दलदली तथा गच के पौधों से युक्त रहा करती है। ये दोनो नदियां नबाबगंज उत्तरौला मार्ग को क्रास करती हैं जहां इन पर पक्के पुल बने है। इसकी एक अलग धारा छावनी होकर रामरेखा बनकर सरयू या घाघरा में मिलकर तिरोहित हो जाती है। और मूल धारा अमोढा परगना के बीचोबीच परशुरामपुर, हर्रैया, कप्तानगंज , बहादुरपुर एवं कुदरहा आदि विकासखण्डों तथा नगर पूर्व एवं पश्चिम नामक दो परगनाओं से होकर बहती हुई गुजरती है। यह हर्रैया तहसील के बाद बस्ती सदर तहसील के महुली के पश्चिम में लालगंज में पहुचकर कुवानो नदी में मिलकर तिरोहित हो जाती है। मनवर नदी जो कि 4 ब्लाकों से होते हुए निकलती है। इनके जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 711.45 लाख रूपए की धनराशि जारी की गई है। मनवर नदी के किनारे पडने वाली 41 ग्राम पंचायतों में 61 तालाबों का जीर्णोद्धार कराया गया। 
नीम नदी
नीम नदी हापुड़ से लेकर बुलंदशहर में जिला प्रशासन का सहयोग मिलने से पुनर्जीवित हो रही है। नीम नदी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वर्षा से पहले नदी का चौड़ीकरण कार्य कराया जा रहा है। नदी की जमीन का चिह्नांकन करा नदी के दोनों के किनारों पर मनरेगा से ट्रेंच बनवाया जा रहा है। 
सिरोही नदी 
सोनभद्र में सदर विकास खण्ड के कुसम्हा गांव से निकली सिरोही नदी लगभग 10 किलोमीटर की परिक्रमा करने के बाद बेलन नदी में मिल जाती है. इस नदी का स्वरूप उस वक्त खत्म हो गया जब ब्रिटिश शासन काल 1912 ई. में धंधरौल बांध का निर्माण हुआ और 1916 ई. में घाघर नहर निकाली गई जिसके निर्माण के बाद सिरोही नदी का अस्तित्व ही खत्म हो गया और समय के साथ-साथ नदी ने भी अपना अस्तित्व खो दिया. 
 पृथ्वी पर गंगा को भगीरथ अपने (पूर्वजों) पितरों के उद्धार के लिए लाये थे तो वहीं, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 105 वर्षों से अधिक समय पहले विलुप्त हो चुकी तथा अपने मूल स्वरूप को खो चुकी सिरोही नदी को पुनर्जीवित किया जा रहा है।घाघर मुख्य नहर से कुलावा देकर नदी में पानी छोड़ा गया जिसके बाद सिरोही नदी पुनर्जीवित हो गयी. दर्जनों गांवों का लगभग हजारों हेक्टेयर जमीन सिंचित होने के साथ ही भूगर्भ जल का स्तर बढ़ गया, इसके साथ ही धौबही गांव के कुल 9 तालाब नदी के पुनर्जीवित होने लबालब भर गए हैं। 
बस्ती जिले की 4 पौराणिक नदियों का अस्तित्व संकट में 
प्रशासन की उपेक्षा से जिले की 4 पौराणिक नदियों का अस्तित्व संकट में है। भीषण गर्मी का असर इन नदियों पर देखने को मिल रहा है। कभी लहराती-बलखाती बहने वाली ये नदियां आज अपनी पहचान बचाने को जूझ रही हैं। हर्रैया तहसील क्षेत्र की मनोरमा, रामरेखा और आमी सहित कठिनइयां नदी का बहाव कई स्थानों पर थम गया है, हालात ऐसे है कि अब इस नदियों का अस्तित्व भी खत्म होने को है।
नाले में तब्दील हुई रामरेखा नदी
अस्तित्व के लिए जूझ रही दूसरी नदी है रामरेखा। कभी इस नदी के जल से सीता जीने प्यास बुझाई थी, लेकिन आज अतिक्रमण की वजह से यह सिमटती जा रही है। साफ-सफाई के अभाव में नदी नाले में तबदील हो गई है। मान्यता है कि जनकपुर लौटते समय राम, सीता और लक्ष्मण ने इसी स्थान पर विश्राम किया था। माता सीता को प्यास लगने पर भगवान राम ने अपने बाण से रेखा खींच कर जल निकाला था, जिससे माता ने अपनी प्यास बुझाई थी। यहां से निकला जल आगे जाकर हर्रैया के पास मनवर नदी में मिला था। तभी से इसे रामरेखा नदी के नाम से जाना जाता है, रामरेखा नदी के तट पर बना रामजानकी मंदिर परिसर चौरासी कोसी परिक्रमा का प्रथम पड़ाव स्थल है। इतने महत्व के बाद भी रामरेखा नदी दुर्दशा झेल रही है। 
रेत में परिवर्तित हुई कठिनइया नदी
मुंडेरवा थाना क्षेत्र में बहने वाली कठिनईया नदी आज अपने अस्तित्व को लेकर संकट में है। सूखे की मार ने 80 किलोमीटर लंबी नदी को पूरी तरह से रेत में बदल दिया है। पानी के बजाय अब इस नदी में सिर्फ धूल और मिट्टी के सिल्क ही नजर आते हैं। खुद में पौराणिकता को समेटे यह नदी पहले लोगों के लिये कष्टहरणी नदी थी लेकिन आज सूखे की मार ने कठिनईया को जल विहीन कर दिया है। वैसे तो यह नदी सिद्वार्थनगर जिले से बहकर संतकबीर नगर जिले में कुआनो नदी में जाकर समाहित हो जाती है लेकिन इस प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया कि कठिनईया नदी अपने कठिन दौर से गुजरने को विवश हो गई।
कुवानो नदी
बलरामपुर के दक्षिणी छोर पर बहने वाली कुआनो नदी अपने आप में एक रहस्य है. इस नदी का कोई उद्गम स्थल नहीं है.
इसका उद्गम कोई पहाड़ ना होकर कुंवा है। इसे कूपवाहिनी भी कहते हैं। नदी की उत्पत्ति बहराइच जनपद में स्थित एक कुएं से हुई है, जिसके चलते इसका नाम कुआनों पड़ा। बहराइच जिले के पूर्वी निचले भाग में बसऊपुर गांव के पास एक सोते के रुप में इसका प्रवाह शुरु होता है. जो गोण्डा के बीचोबीच होकर रसूलपुर में बस्ती मण्डल को स्पर्श करती है। अपने उद्गम स्थल से लगभग 13 किमी तक नदी का स्वरूप नाले जैसा है। खुरगूपुर गांव से उत्तर गोंडा जनपद की सीमा में प्रवेश से 4 किमी इसका आकार नदी का हो जाता है। इस नदी के घाट सकरे व गहरे हैं। नदी का प्राचीन नाम कर्द भी बताया जाता है। यह नदी अपना पाट कभी नहीं बदलती। गोंडा जनपद के उत्तरी सीमा पर प्रवाहित होते हुए यह सिद्धार्थनगर व बस्ती जनपद में प्रवेश करती है। यह बस्ती पूर्व, बस्ती पश्चिम, नगर पश्चिम, नगर पूर्व, महुली पूर्व तथा महुली पश्चिम परगनों को पृथक भी करती है।कुवानों नदी तहसील बस्ती और भानपुर से बह रही है। गोरखपुर में यह घाघरा में विलीन होर स्वयं को समाप्त कर लेती है। कुवानों नदी से दूर दराज के इलाकों में नाव से सामान की ढुलाई भी होती थी। इसके दोनो ओर घने जंगल दिखाई पड़ते हैं. कंटीले बेंत के जंगलो से गुजरती हुई यह नदी अद्भुत दृश्य पैदा करती है.साल,सागौन के अतरिक्त दुर्लभ सिरस वृक्ष की प्रजाति यहां पाई जाती है. नदी के दोनो ओर झाडियों की लम्बी श्रंखला है जो दुर्लभ भी है. कुआनो नदी के कारण जैवविविधता की दृष्टि से यह इलाका काफी समृद्ध है. पूरब की दिशा में बढ़ते हुए कुआनो नदी बस्ती जिले की एक प्रमुख नदी बन जाती है और संतकबीर नगर में बूढी राप्ती में मिलकर घाघरा नदी में समा जाती है.
रवई नदी
 बभनान कस्बे से पश्चिम बभनजोगिया के पास श्रवण पाकड़धाम से चलकर 57 किलोमीटर दूर चुवाड़े के बगल कुआनों नदी में मिलने वाली ऐतिहासिक रवई नदी है। वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र ने इस नदी को बचाने की दिशा में पहल की और सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पास कर धन निर्गत किया। शासन की मंशा के अनुरूप इसे गहरा कर वाटर लागिंग समाप्त करने तथा इसके पानी का प्रदूषण समाप्त कर दोनो किनारे सड़क बनाने का प्रस्ताव रहा है। जन श्रुतियों में रवई नदी श्रवण कुमार के अंधे माता पिता के आंसुओं से उत्पन्न हुई थी। पहले इसका नाम भी रोई नदी था जो बाद में परिवर्तित होकर रवई नदी नाम से जाना जाने लगा।
आमी नदी
अमी उत्तर पूर्वी सीमा पर बहती है।उत्तर में, अमी नदी, जिला बस्ती और सिद्धार्थ नगर की सीमाएं बनाती है। सांप्रदायिक एकता के प्रतीक सद्गुरू कबीर स्थली मगहर के पूरब आमी नदी बहती है। आमी नदी मगहर नगर के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन दायिनी का रूप मानी जाती है। सद्गुरू कबीर इसे अमिया कहकर पुकारते थे। कबीर दर्शन को आने वाले श्रद्धालु आमी का जल भी प्रसाद स्वरूप अपने साथ ले जाते है।आमी नदी का जल यहां आने वाले श्रद्धालु शिव मंदिर में चढाते हैं और पूजन अर्चन करते है। आमी नदी तट पर बने प्राचीन मस्जिद के सामने बनी बौलिया में वजू करने के बाद श्रढ़ालु नमाज अदा करने के साथ ही सद्गुरु कबीर की मजार पर फातिहा भी पढ़ते हैं। सिद्धार्थनगर के सिकोहरा ताल से निकलकर गोरखपुर जिले में राप्ती नदी में मिलने वाली 135 किलोमीटर लंबी आमी नदी प्रवाहित होती है।
मछोई - गोरया नदी 
यह बस्ती जिले की एक छोटी नदी है। जो गर्मियों मे सूख जाती है। कहीं कहीं नदी के तलहटी में प्रकृति सोते होते हैं जो इसकी जीवंतता बनाए रखते हैं। कप्तानगंज के आगे यह चंदो ताल में समाहित हो जाती है और बस्ती कलवारी राजमार्ग पर झिरझिरवा पुल से आगे बहादुर पुर ब्लाक में गोरया नदी के रुप में प्रवाहित होती है। पूर्व में गोरया नदी जिला संत कबीर नगर की सीमा रेखा बनाती है और पूर्वी दिशा में तहसील बस्ती में बहती है।। गोरया कुछ दूरी पर जिले की पूर्वी सीमा को नियमित करती है। आगे चलकर यह मनोरमा नदी में और आगे लालगंज में कुवानों नदी में विलीन हो जाती है।










Thursday, December 2, 2021

भागवत प्रसंग (20) चतु:श्लोकी भागवत

भागवत पुराण हिंदुओं के 18 पुराण में से एक है। इसका मुख्य विषय भक्ति योग है। इस पुराण में भगवान श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में वर्णित किया गया है।
इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है।भागवत पुराण 12 स्कंद /खंडों के इस ग्रंथ में 335 अध्याय तथा 18 हजार श्लोक हैं। इसके 10वें अध्याय में श्रीकृष्ण का जीवन सार कुछ इस प्रकार वर्णित है क यह समस्त प्राणियों के लिए सांसारिक जीवन जीते हुए ज्ञान तथा मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
आपके पास इतना समय नहीं है कि पूरी भागवत का पाठ कर सकें और आप इसका पाठ करना चाहते हैं।तो अब परेशान मत होइये। ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है। यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है।
पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। आइये जानते हैं कौन हैं वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा।पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से मनुष्य के अज्ञान जनित मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और वास्तविक ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है।
॥चतु:श्लोकी भागवत॥
निम्नलिखित चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है।यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है।पुराणों के मुताबिक,ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था।इनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलता है॥

श्लोक- 1
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम।।
अर्थ- सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था। सत्, असत या उससे परे मुझसे भिन्न कुछ नहीं था। सृष्टी न रहने पर (प्रलयकाल में) भी मैं ही रहता हूं। यह सब सृष्टीरूप भी मैं ही हूँ और जो कुछ इस सृष्टी, स्थिति तथा प्रलय से बचा रहता है, वह भी मैं ही हूं।
श्लोक-2
ऋतेSर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो माया यथाSSभासो यथा तम:।।
अर्थ- जो मुझ मूल तत्त्व को छोड़कर प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता, उसे आत्मा की माया समझो। जैसे (वस्तु का) प्रतिबिम्ब अथवा अंधकार (छाया) होता है।
श्लोक-3
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥
अर्थ- जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) संसार के छोटे-बड़े सभी पदार्थों में प्रविष्ट होते हुए भी उनमें प्रविष्ट नहीं हैं, वैसे ही मैं भी विश्व में व्यापक होने पर भी उससे संपृक्त हूं।
श्लोक-4
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाSSत्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥
अर्थ- आत्मतत्त्व को जानने की इच्छा रखनेवाले के लिए इतना ही जानने योग्य है की अन्वय (सृष्टी) अथवा व्यतिरेक (प्रलय) क्रम में जो तत्त्व सर्वत्र एवं सर्वदा रहता है, वही आत्मतत्व है।

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम्॥5॥
अर्थ-जैसे पाँच महाभूत उच्चावच भौतिक पदार्थों में कार्य और कारण भाव से प्रविष्ट और अप्रविष्ट रहते हैं, उसी प्रकार मैं इन भौतिक पदार्थों में प्रविष्ट और अप्रविष्ट भी रहता हूँ (इस प्रकार मेरी सत्ता है)।
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा॥6॥
अर्थ-आत्मा के तत्त्व जिज्ञासु के लिए इतना ही जिज्ञास्य है,जो अन्वयव्यतिरेक सर्वत्र और सर्वदा रहे वही आत्मा है।
एतन्मत् समातिष्ठ परमेण समाधिना।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति कर्हिचित्॥7॥
अर्थ-चित्त की परम एकाग्रता से इस मत का अनुष्ठान करें,कल्प की विविध सृष्टियों में आपको कभी भी कर्तापन का अभिमान न होगा॥
॥इति श्रीमद्भागवते महापुराणेsष्टादशसाहस्त्रयां संहितायां वैयासिक्यां द्वितीयस्कन्धे भगवद् ब्रह्मसंवादे चतु:श्लोकी भागवतं समाप्तम्। 
                           भजन
॥छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए॥

छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
[एक गोपी दूसरी गोपी को क्या कहती है?]

छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए,
घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

सर पे मुकुट,काँधे काली कमरिया,
मीठी मीठी बांसुरी बजावे साँवरीया,बजावे साँवरीया।
काले से घुँघरारे बाल,आज मेरे घर आ गए।
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए॥
घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

नन्हा गोपाल मेरे मन को लुभाये,मन को लुभाये,
यमुना किनारे खड़ा गईया चराये, गईया चराये।
संग में हैं ग्वाल और बाल,आज मेरे घर आ गए हैं,
संग में हैं गोपी ग्वाल बाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
घर आ गए मेरे, घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

सब सखियों का जीवन खिवैया,जीवन खिवैया,
बृज वासियों का बंशी बजैया,बंशी बजैया।
सबसे निराली है चाल,सबसे निराली है चाल,
आज मेरे घर आ गए,घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे।
घर आ गए,दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं। 

Wednesday, December 1, 2021

नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर बस्ती में स्पाइन की न्यूरो सर्जरी

बस्ती। कलवारी थाना क्षेत्र के 22वर्षीय युवक रंजीत कमर के दर्द से पिछले दो साल से परेशान था। उसकी दवा लखनऊ में न्यूरो सर्जन द्वारा चल रही थी। जब तक वह दवा खाता था तब तक ही ठीक रहता था। बाद में उसे पुनः दर्द शुरु हो जाता था। लखनऊ के डाक्टर ने उसे न्यूरो सर्जरी की सलाह दी थी , जो काफ़ी महगी होने के कारण वह सर्जरी नहीं करा पाया था।
वह नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर बस्ती के युवा सर्जन डॉ सौरभ द्विवेदी के सम्पर्क में आया। जहां काफ़ी मामूली फीस लेकर डा सौरभ द्विवेदो ने लैमिनेक्टॉमी एण्ड डिस्केक्टॉमी विधि से जो न्यूरो सर्जरी के अंतर्गत आता है, के द्वारा 1 दिसंबर 2021को सफलता पूर्वक ऑपरेशन किया गया। इस तरह का आपरेशन बस्ती में नही होता था । इसे अमूमन न्यूरो सर्जन या सीनियर आर्थोपेडिक सर्जन ही कर पाते हैं। युवा आर्थोपेडिक सर्जन डा सौरभ द्विवेदी ने बड़ी दक्षता से इसे नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेंटर बस्ती संपन्न किया है।
डा सौरभ द्विवेदी ने बताया कि लैमिनेक्टॉमी एण्ड डिस्केक्टॉमी एक तरह की सर्जिकल प्रक्रिया है जिसे विघटन सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है, इसमें लामिना को हटा दिया जाता है। लैमिना कशेरुका हड्डी का एक हिस्सा है, जो रीढ़ की हड्डी की पिछली दीवार बनाता है और इसे घेरता है। आमतौर पर स्पाइनल स्टेनोसिस का इलाज करने के लिए एक लैमिनेक्टॉमी किया जाता है, एक ऐसी स्थिति जो रीढ़ की हड्डी की नहर या रीढ़ की हड्डी के खुलने का कारण बनती है जिससे रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। इस आपरेशन में मरीज एक से डेढ़ माह का अपने पैर से चलने फिरने लगता है। दो तीन माह में मरीज पूर्ण रूप से ठीक हो जाएगा।