Saturday, October 30, 2021

अथ श्री तुलसी महात्म्य कथा

हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को अति पूजनीय माना गया है। तुलसी (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
तुलसी का पौधा
तुलसी का पौधा क्षुप (झाड़ी) के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है। इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी, जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी (या श्यामा तुलसी) जिसकी पत्तियाँ नीलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं।
रासायनिक संरचना
तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। ०.१ से ०.३ प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग ७१ प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग ८३ मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं २.५ मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग १७.८ प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग ०.२ प्रतिशत होती है।
तुलसी माला
तुलसी माला १०८ गुरियों की होती है। एक गुरिया अतिरिक्त माला के जोड़ पर होती है इसे गुरु की गुरिया कहते हैं। तुलसी माला धारण करने से ह्रदय को शांति मिलती है
तुलसी का औषधीय महत्व
भारतीय संस्कृति में तुलसी को पूजनीय माना जाता है, धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ तुलसी औषधीय गुणों से भी भरपूर है। आयुर्वेद में तो तुलसी को उसके औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया गया है। तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
तुलसी विटामिन और खनिज का भंडार है। इसमें मुख्य रुप से विटामिन सी, कैल्शियम, जिंक, आयरन और क्लोरोफिल पाया जाता है। इसके अलावा तुलसी में सिट्रिक, टारटरिक एवं मैलिक एसिड पाया जाता। जो विभिन्न रोगों के रोकथाम के लिए भी उपयोगी है।
तुलसी से लाभ
तुलसी की पत्तियों का प्रयोग तनाव दूर करने लिए 
आज के समय में तनाव बड़ी समस्या बन गई है और इससे आराम पाने के लिए लोग कई तरह की थेरेपी अपनाते हैं। तुलसी पत्ते इस समस्या को कम करने में उपयोगी पाए गए हैं। NCBI ( नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फोर्मेशन ) द्वारा प्रकाशित एक शोध में यह बताया गया है कि इसमें एंटीस्ट्रेस गुण होते हैं, जो स्ट्रेस से तुलसी के पत्ते आराम दिलवा सकते हैं।
हमारे शरीर में कॉर्टिसोल हॉर्मोन की मात्रा को नियमित कर सकते हैं, जो एक तरह का स्ट्रेस हार्मोन होता है। विशेषकर तुलसी की चाय का सेवन करने से तनाव से काफी राहत मिल सकती है । साथ ही साथ एंटीडिप्रेसेंट गुण जो आपकी याददाश्त बेहतर करने में भी सहायक हो सकते है ।
तुलसी सर्दी जुकाम के लिए उपयोगी
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है । सर्दी-जुकाम के साथ बुखार में भी फायदा पहुंचाती है। काली मिर्च और तुलसी को पानी में उबाल कर काढ़ा बनाएं साथ ही मिश्री डाल कर इसको पीने से बुखार से आराम मिलता है। जुकाम होने पर तुलसी को पानी में उबाल कर भाप लेने से भी फायदा होता है ।
चोट लगने पर तुलसी उपयोगी 
कहीं चोट लगने पर तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर घाव पर लगाने से तुरंत आराम जाता है । तुलसी में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल तत्व चोट के घाव को पकने नहीं देता और ठीक करने में मदद करता है । तुलसी पत्ते को तेल में मिलाकर लगाने से जलन भी कम होती है। क्योंकि एंटीस्ट्रेस एंटीडिप्रेसेंट एंटीबैक्टिरियल गुणों से युक्त है तुलसी के पत्ते ।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तुलसी के फायदे 
अगर आप इसकी पत्तियां चबाते हैं या फिर इससे हर्बल-टी बनाकर पीते हैं तो उससे शरीर को लाभ होता है। यदि आप की इंसान का इम्युनिटी सिस्टम मजबूत है तो आपको बीमारियां कम लगने के चांस रहने हैं ।
मृत्यु के समय तुलसी के पत्तों का महत्त्व
मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने में रुकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाड़ने का विशेष गुण होता है इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाये तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।
इस विधि से करें तुलसी की पूजा
रोज सुबह स्नान आदि करने के बाद तुलसी के पौधे को कुमकुम, हल्दी और चावल अर्पित करें।
तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाएं और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें।
इसके बाद तुलसी के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और परिक्रमा करें।
परिक्रमा करते समय ये मंत्र बोलें-
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
कम से कम 5 परिक्रमा करें। इसके बाद तुलसी की आरती करें-
जय जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥
सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर।
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता॥
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता॥
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित।
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता॥
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता॥
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता॥
हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता॥
जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥
कार्तिक माह में तुलसी पूजन के विशेष महत्व
कार्तिक माह में तुलसी के पौधे की पूजा करने का विशेष महत्व है. तुलसी के पौधे को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है. इसलिए श्री हरि की पूजा के समय उन्हें तुलसी अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. और भक्तों की सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं. 
चतुर्मास की शुरुआत में भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास की देवउठानी एकादशी के दिन जागते हैं. सालभर के सभी बड़े त्योहार कार्तिक मास में ही पड़ते हैं. कहते हैं कि इस माह में तुलसी की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. 
मान्यता है कि घर में तुलसी का पौधा होने पर नियमित रूप से उसकी पूजा करनी चाहिए. साथ ही रविवार और एकादशी के दिन तुलसी के पौधे को पानी नहीं देना चाहिए. कार्तिक मास में सुबह-शाम तुलसी के आगे दीपक जलाना चाहिए. और पूजा-पाछ करना शुभ माना जाता है. इससे घर में दरिद्रता और दुर्भाग्य नहीं आता. माना जाता है तुलसी के पौधे में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का निवास होता है. घर में तुलसी का पौधा रखने और पूजा करने से नकारात्मकता दूर होती है. मान्यता है कि कार्तिक मास में तुलसी के पौधे की पूजा के समय इस मंत्र का जाप किया जाए, तो मनचाहा फल प्राप्त होता है. 
तुलसी मंत्र का जाप इस प्रकार करें-:-
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, 
आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।
तुलसी के पत्तों को छूते हुए इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करना चाहिए. कहते हैं कि इससे व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं.
मंत्र से पहले रखें इन बातों का ध्यान रखें:-
1. तुलसी मंत्र का जाप करने से इस बात का ध्यान रखें कि पहले अपने ईष्टदेव की पूजा करें. इसके बाद ही तुलसी मंत्र का जाप करें. 
2. तुलसी मंत्र का जाप शुरू करने से पहले तुलसी को प्रणाम करना चाहिए और पौधे में शुद्ध जल अर्पित करने के बाद ही मंत्र का जाप शुरू करें.
3. इसके बाद तुलसी जी का शृंगार हल्दी और सिंदूर चढ़ा कर करें. इसके बाद तुलसी जी के आगे घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं.
4. इन सब के बाद तुलसी जी के पौधे की 7 बार परिक्रमा लगाएं. इसके बाद ऊपर बताए गए मंत्र का जाप करें. जाप के बाद तुलसी जी को छूकर सभी मनोकामनाएं बोल दें. 


Thursday, October 28, 2021

माधव प्रसाद त्रिपाठी चिकित्सा महाविद्यालय सिद्धार्थनगर का शुभारम्भ --- डा. राधेश्याम द्विवेदी



माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कालेज की स्थापना:- राजकीय मेडिकल कालेज सिद्वार्थ नगर का नाम माधव बाबू के नाम पर पड़ रहा है। इसका शुभारम्भ माननीय प्रधान मंत्री मोदी जी 25 अक्तूबर 2021 को कर रहे हैं। इस कालेज का निर्माण प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अन्तर्गत किया जा रहा हैं। मेडिकल कालेज में अस्पताल, छात्रावास,  स्टाफ आवास और सभी फैकल्टी होगी। 100 छात्रों का एम बी बी एस में प्रवेश होगा। इस कालेज के खुलने से ना केवल सिद्वार्थ नगर जिले अपितु पड़ोसी जिले बलरामपुर, महराजगंज तथा नेपाल के लोंगों को इससे लाभ मिलेगा।

समर्पित व्यक्तित्व :- भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य और भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रथम अध्यक्ष माधव प्रसाद त्रिपाठी माधव बाबूसमाज और संगठन के प्रति आजीवन समर्पित रहे। वर्ष 1940 में नानाजी देशमुख की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ग्रहण करने के बाद परिवार का मोह त्याग कर राष्ट्र सेवा का व्रत ले लिया। बांसी विधानसभा क्षेत्र आजादी के बाद से ही भाजपा (जनसंघ) का गढ़ माना जाता है और माधव बाबू उस गढ़ के रचनाकार। उनके इस किले को आजादी के बाद से कांग्रेस केवल चार बार ही जीत पाई। जिसमें दो चुनाव आजादी के तत्काल बाद यानी सन 1952 और 1957 के थे, जब कांग्रेस को हराने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। बाद के 13 चुनावों में भी सिर्फ दो बार ही कांग्रेसी जीतने में कामयाब हो सके। 1962 के चुनाव में कांग्रेस का बांसी में जोर तो था, लेकिन यहां जनसंघ (भाजपा) ने माधव प्रसाद त्रिपाठी को युवा नेता के तौर पर तैयार कर लिया था। माधव बाबू एलएलबी करके राजनीति में आये थे। उन्होने कांग्रेस के प्रभुदयाल विद्यार्थी को हराया था। 1967 के विधान सभा के चैथे आम चुनाव में प्रभुदयाल विद्यार्थी ने माधव बाबू को हरा दिया। इसके बाद 1969 और 1974 के चुनाव में माधव बाबू लगातार जीते। 1977 में माधव बाबू की जगह भाजपा कोटे के हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव उर्फ हरीश जी ने चुनाव जीता। 1980 में हरीश को हराते हुए कांग्रेस के दीनानाथ पांडेय ने जीत हासिल की, लेकिन 1985 के चुनाव में हरीश जी ने कांग्रेस विधायक दीनानाथ पांडेय को हरा कर हिसाब बराबर कर लिया।

माधव बाबू का संक्षिप्त जीवन परिचय :- पं. माधव प्रसाद त्रिपाठी का जन्म 12 सितम्बर 1917 को पूर्व बस्ती ( वर्तमान सिद्धार्थनगर) जिले के बांसी शहर के निकट तिवारीपुर नामक गांव में हुआ था। इनका जन्म जन्माष्टमी ( 5 अगस्त 1912) को हुआ था और मृत्यु भी जन्माष्टमी को हुई थी.उनके पिता का नाम पं. सुरेश्वर प्रसाद त्रिपाठी था, जो एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। इनके दो बड़े और एक छोटे भाई भी थे। बड़े भाई कमलादत्त त्रिपाठी ने डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद बस्ती में चिकित्सा सेवा शुरू की तो दूसरे भाई वशिष्ठ दत्त त्रिपाठी ने व्यवसाय। छोटे भाई उमेश मणि त्रिपाठी ने काशी को अपनी कर्म भूमि बनाई वहीं, वे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में उपाचार्य बने। माधव बाबू ने काशी विश्वविद्यालय से स्नातक और विधि स्नातक की उपाधि हासिल की। बाद में बस्ती में वकालत शुरू कर दी। माधो बाबू भारतीय जनसंध महत्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने पार्टी को खड़ा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वह दार्शनिक, समाजशास्त्री, इतिहासकार तथा राजनीतिक विचारक थे। वह भारतीय जनता पार्टी के आजीवन अध्यक्ष रहे। जब वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के 1937 में विद्यार्थी थे तो राष्ट्रीय सेवक संघ के सम्पर्क में आये। वह संघ के संस्थापक के. बी. हेडगवार से मिले तो उन्हे एक शाखा का बौद्धिक विमर्श के लिए काम दे दिया गया। घुड़सवारी के शौकीन माधव बाबू की 1940 में आरएसएस गोरखपुर के विभाग प्रचार प्रमुख नानाजी देशमुख से हुई। नानाजी की प्रेरणा से संघ में शामिल हुए और 1941 में नगर संघ चालक बना दिया गया। कुछ ही वर्षों में जिला संघ चालक जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी गई। 1942 से वह पूर्णकालिक संघ के समर्पित हो गये। उन्होने नागपुर में 40 दिन का  ग्रीष्म शिविर में भाग लिया था। यही पर उन्हें संघ के प्रशिक्षण की शिक्षा मिली थी। संघ के शैक्षिक शाखा के द्वितीय साल के प्रशिक्षण के पूरा करने के उपरान्त उन्हे आजीवन प्रचारक बना दिया गया। उन्हें लखीमपुर जिले का कार्य भार दिया गया था। 1955 से उन्हें उत्तर प्रदेश के संयुक्त प्रान्त प्रचारक की जिम्मेदारी दी गयी। वह संघ के एक आदर्श स्वयंसेवक रहे। उन्होंने संघ के विचारों को अपने जीवन में अक्षरशः आत्मसात कर लिया था। 1951 में श्यामा प्रसाद मुकर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना किया था। पं. दीन दयाल को संघ परिवार की ओर से द्वितीय संस्थापक के रुप में जिम्मदारी दी गयी थी। संगठन के प्रति निष्ठा से प्रभावित होकर 1951-52 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी टीम में शामिल कर लिया। पहले आम चुनाव में वे भारतीय जनसंघ से चुनाव मैदान में उतरे, मगर वे चुनाव जीत नहीं सके लेकिन 1958-62 में उन्हें विधान परिषद सदस्य चुना गया। वर्ष 1962 में वे पहली बार विधायक बने। सरकार में वह एक बार कृषि मंत्री भी रहे। वह 1962-66 तथा 1969-77 के मध्य भारतीय जनसंघ की तरफ से उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य थे। वह उत्तर प्रदेश विधान सभा के विपक्ष के नेता तथा उत्तर प्रदेश के कैविनेट मंत्री थी रहे। आपातकाल के दौरान उन्हें करीब 19 माह तक जेल में गुजारना पड़ा। आपातकाल के बाद भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी का विलय हुआ तो वे 1977 में डुमरियागंज के सांसद चुने गए। वह डुमरियागंज लोक सभा क्षेत्र के 1977 के सदस्य चुने गये थे। वह पूर्वाचल उत्तर प्रदेश के अनेक वरिष्ठ सदस्य मा. राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, डा. महेन्द्रनाथ पाण्डेय, स्व. हरीश श्रीवास्तव के साथ काम किये थे। वह पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी वाजपेयी के बहुत करीबी तथा विश्वासपात्र रहे। यद्यपि माधो बाबू भाजपा के नेता थे परन्तु अन्य राजनीतिक दलो के नेता जैसे चैधरी चरणसिंह तथा मुलायम सिंह आदि भी उनको बहुत सम्मान देते थे। एक बार माधो बाबू विधान सभा चुनाव हार गये थे तो चैधरी चरण सिहं ने अपने पाटी के विधायको से कहकर उन्हे विधान परिषदकी सदस्यता दिलवायी थी।

उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष :- छह अप्रैल 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तो शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष की कमान सौंप दी। 1980 के दशक माधो बाबू का चरमोत्कर्ष का समय था। उन्हे लोग जन नेता के रुप में मानते थे। विपक्ष के नेता के रुप में उनके सलाह का पूर्ण सम्मान दिया जाता था। अपने राजनीतिक जीवन के दौरान वह  वह उ. प्र. हाउसिंग डेवलपमेंट कांउंसिल के अध्यक्ष तथा डेलीमिटेशन कमीशन के सदस्य आदि भी रहे। पं. दीन दयाल उपाध्याय की तरह उनका भी विवास्पद मृत्यु 19 अगस्त 1884 में हुआ था। जन्माष्टमी के दिन संगठन के कार्यक्रम में जाते समय लखनऊ में उनकी मौत हुई।  उनके पौत्र सिद्धार्थ त्रिपाठी अपने दादा जी के पथ का अनुसरण करते हुए पार्टी की सेवा में सक्रियता से योगदान कर रहे है। 1980 में माधव प्रसाद त्रिपाठी पहले प्रदेश अध्यक्ष बने थे। वह चार वर्ष इस पद पर रहे।

तिवारीपुर गांव मे हर्षोल्लास :-
सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बांसी तहसील के तिवारीपुर के लोगों के लिए आज का दिन किसी महापर्व से कम नहीं है. इस गांव के निवासी और भारतीय जनता पार्टी के प्रथम प्रदेश अध्यक्ष स्व.माधव प्रसाद त्रिपाठी के नाम पर स्थापित मेडिकल कॉलेज का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उद्घाटन किया. गांव के लोग खुश हैं कि माधव बाबू का नाम एक बार फिर से सिद्धार्थनगर समेत समूचे तराई पट्टी में गूंजेगा. लोग कह रहे हैं कि यह पहला मौका है जब उनके नाम के साथ न्याय हुआ है और उनके नाम पर कोई बड़ा काम हुआ है. 

एम.बी.बी.एस. प्रथम सत्र शीघ्र चलेगा :-

एम.बी.बी.एस. प्रथम शिक्षा सत्र के लिए सभी आवश्यकताएं पूर्ण कर ली गई हैं। दो लेक्चर थियेटर, लाइब्रेरी, स्टडी रूम, अधिकारियों और स्टाफ के लिए कमरे तैयार हो चुके हैं। डायरेक्टर आवास, प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के आवास, गर्ल्स-ब्वायज हॉस्टल, जूनियर-सीनियर रेजिडेंट आवास, नर्स हॉस्टल, सेंट्रल मेस सहित जरूरी सभी इमारतें पूर्ण हो चुकी हैं।  प्रथम सत्र में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई होती है।  एमबीबीएस की सौ सीट पर आवंटन होना है। शिक्षक-चिकित्सक के 51, सीनियर रेजीडेंट के 24, जूनियर रेजीडेंट के 50, स्टाफ नर्स के 218, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (आउट सोर्सिंग) के तीन सौ, तकनीकी संवर्ग के 32, लिपिकीय के 30, प्रशासनिक के 10 और चतुर्थ श्रेणी के 36 पद पर नियुक्ति की स्वीकृति मिली है। इनपदों पर नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है उसमें चिकित्सा -शिक्षक के 45, सीनियर रेजीडेंट के 18, जूनियर रेजीडेंट 42, नर्सिंग संवर्ग के 173, पैरामेडिकल तकनीकी संवर्ग के 32 सहित कुल 386 पद शामिल है। चतुर्थ श्रेणी के 32 पदों पर आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियुक्ति की जाएगी। ओ.पी.डी. चालू हो गया है। जल्द ही सभी आवश्यक तायें पूर्ण हों जा रही हैं। 

Wednesday, October 27, 2021

अवतरण और जन्म एक नही , अलग अलग संज्ञा डा. राधे श्याम द्विवेदी


सोसल मीडिया फेसबुक ट्वीट और वर्डसैप पर जन्म दिवस को लोग अवतरण दिवस के रुप में दर्शा कर विद्वता का बोध कराने का प्रयास करते हैं जो किंचित सत्य नहीं अपितु भ्रामक है। आज मैं इस सूक्ष्म भ्रम के आवरण को हटाने का इक छोटा प्रयास या संकेत दे रहा हूं। आशा है कि विद्वत जन इससे अनुप्राणित होकर सुधार।का प्रयास करेंगे।
अवतार का अर्थ अवतरित होना या उतरना है, हिन्दू मान्यता के अनुसार जब-जब दुष्टों का भार पृथ्वी पर बढ़ता है और धर्म की हानि होती है तब-तब पापियों का संहार करने तथा भक्तों की रक्षा करने के लिये भगवान अपने अंश अथवा पूर्णांश से पृथ्वी पर शरीर धारण करते हैं। हम कह सकते हैं कि ईश्वर का अपनी कलाओं के साथ (पूर्णत: या अँशत:) धरती पर मानव रूप में आता है तो अवतार कहा जाता है।अवतार का अर्थ होता है उतरना अवतरित होना ,आना अर्थात जो पहले से ना हो वह आए। भगवान अर्थात वह सर्वोच्च सत्ता शक्ति किसी शरीर विशेष पर अवतरित हो उसे अवतार कहते हैं l भगवान दो रूपों में होता है साकार और निराकार l साकार शरीर का जन्म होता है और वह निराकार सर्वोच्च सत्ता शक्ति उस शरीर पर अवतरित होती है , उसके माध्यम से कार्य करती है l 
इन सबसे भिन्न जन्म की अवधारणा है। ईश्वर का तत्व (आत्मा) पंचभौतिक रूप मे जैविक शरीर ग्रहण करना जन्म लेना कहा जाता है। जन्म शरीर का होता है दुनिया में जो भी आता है वह जन्म लेकर आता है l 


Monday, October 25, 2021

राजनेताओं की नई चहल कदमी

उतर प्रदेश राज्य विधान सभा चुनाव 2022 के टिकट की चाहत और राजनीतिक विरासत बचाने के लिए नेताओं घर वापसी का नाटक शुरू हो गया है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में स्वर्गीय रामविलास पासवान जी, स्वर्गीय अजीत सिंह जी, श्री नरेश अग्रवाल जी और कई एसे दिग्गज को लोग सदा इसी क्रम में याद ही रखेंगे। बस्ती इसमें पीछे नहीं रहा है।कोई भी दल इस रोग से मुक्त नहीं है। सभी अपने अपने राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष ये नाटक कर आम जनता की आंखों में धूल झोकते हैं।
 अभी हाल ही में दलबदलुओं को समेटने में सपा अव्वल रही है।
इसी क्रम में बहादुरपुर ब्लाक प्रमुख रामकुमार सपा में शामिल हो गए है। सपा के शासन में थान्हो की राजनीति करने वाले
त्रयम्बक नाथ पाठक कहा अवसर चुकने वाले हैं। उनकी दाल भाजपा में नही गली तो उनकी भी घर वापसी हुई है। गौर के महेश सिंहजी सपा में फिर समायोजित हो गए हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 में चुनावी सुगबुगाहट शुरू होते ही नेताओं का अपने दलों से मोहभंग होने लगा है. दम घुटने की शिकायतों में हुई बढ़ोत्तरी को देखते हुए उनके समर्थकों के सामने नये दल की पैरोकारी करने में पसीना छूट रहा है. बस्ती में इस साल मई में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में ही त्रयम्बक नाथ पाठक, महेश सिंह के दल बदलने की नींव  पड़ गयी थी।
सत्ताधारी भाजपा के नाव पर सवार रहे दोनों नेताओं को ब्लॉक प्रमुख बनने की पूरी आस थी. मगर ऐन मौके पर टिकट बंटवारे में दोनों पूर्व ब्लॉक प्रमुखों के नाम गायब होते ही दोनों नेताओं और उनके समर्थकों ने जमकर हंगामा किया था . इसके बावजूद दोनों नेताओं के क्षेत्र में कोई परिवर्तन न करके परसरामपुर और गौर ब्लॉक में उनके धुरविरोधियों को तरजीह दी गई थी। गौर ब्लॉक में महेश सिंह के सामने  जटाशंकर शुक्ल और परसरामपुर में त्रयम्बक नाथ पाठक के सामने श्रीष पाण्डेय को पार्टी द्वारा टिकट देकर उतारा गया था. भाजपा द्वारा आशीर्वाद प्राप्त नेताओं को ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भले ही विजयश्री मिल गयी मगर उन दोनों ब्लॉकों में जीते हुए प्रत्याशियों और पार्टी के  सामने दो बड़े स्थानीय नेताओं के विरोध की पटकथा लिखी जा चुकी थी. दोनों नेताओं के पुराने दल में जाने के कयास लगाये जा रहे थे. जिसे अमली जामा अब पहनाया गया. समाजवादी पार्टी जिलाध्यक्ष श्री महेन्द्रनाथ यादव ने बीते  रविवार को सांसद हरीश द्विवेदी के  प्रतिनिधि केके दुबे के करीबी बहादुरपुर ब्लॉक प्रमुख रामकुमार को समाजवादी पार्टी में शामिल करा दिया. सपा द्वारा चली गयी इस चाल से भाजपा मठाधीशों में हड़कंप मच गया. भाजपा  के ब्लॉक प्रमुख द्वारा सपा की सदस्यता लेते ही लखनऊ से बस्ती तक के राजनीतिक घटनाक्रम में गर्मी आ गयी. सपा जिलाध्यक्ष के बढ़ते कद को देखते ही दूसरे दिन पूर्व कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चैधरी के नेतृत्व में त्रयम्बक नाथ पाठक, महेश सिंह कलहंस समेत अन्य नेताओं ने अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ले ली. सूत्रों की मानें तो चुनाव पूर्व  दल बदलने की होड़ में और नेता लाइन में लगे हुए है. टिकट की चाहत और राजनीतिक विरासत बचाये रखने के चक्कर में नेताओं का अब अपने पुराने दलों से मोहभंग होकर दम घुटने का सिलसिला शुरू हो चुका है. देखना दिलचस्प होगा की और कितने नेता घुटन के शिकार होकर पार्टियों को बाय-बाय कह रहे हैं। ये आगामी चुनाव में कितना कामयाब होंगे ये समय ही बताएगा। जनता तो इनके कारनामे देखने और भोगने के लिए अभ्यस्त हो गई है।



Wednesday, October 20, 2021

शरद पूर्णिमा महोत्सव की खीर डा.राधे श्याम द्विवेदी

शरद पूर्णिमा को जागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं; हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा पड़ती हैं। पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।हिन्दू धर्म में इस दिन को जागर व्रत या कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
एक परंपरागत कहानी
एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी।दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से कपडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
 पूजा का विधान  
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक ग़रीबों को इस प्रसाद रूपी खीर को बांटे और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं वह मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
यह व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और माता लक्ष्मी के पूजन का विधान है। इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन मुख्य रूप से फलदायी होता है। इसलिए पूरे श्रद्धा भाव से माता का पूजन करें और उन्हें खीर का भोग अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी के पूजन का अलग महत्‍व है। यह समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है। इस दिन चंद्रमा की किरणों से निकलने वाले अमृत से मिलकर बनी खीर का भोग व्यक्ति को निरोगी करने के साथ कई कष्टों से मुक्ति दिलाता है। इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि भर भ्रमण करती हैं और इनके पूजन से घर में धन-संपदा का आगमन होता है।
माता लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस
समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन मां लक्ष्मी का आविर्भाव समुद्र से हुआ था। इसलिए इस दिन को माता लक्ष्मी के अवतरण दिवस और प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। मां लक्ष्‍मी के जन्‍मदिन पर इन उपायों को करने से आपके घर में होगी धनवर्षा
खीर का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात में चांद की किरणों में खीर रखने की परंपरा है। रात्रि के समय जब चंद्रमा अपनी संपूर्ण कलाओं से युक्त हो उस समय खीर से भरा बर्तन चांद की रोशनी में रखकर उसे भोग के रूप में ग्रहण करें। चंद्रमा की रोशनी में रखी हुई खीर खाने से मन और तन को शीतलता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि यह खीर अमृत से युक्त होती है। इसलिए इसे घर के सभी लोगों को खाना चाहिए और प्रसाद के रूप में सभी को वितरित करना चाहिए।
धार्मिक दृष्टिकोण
शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। जिसकी अमृत वर्षा से खीर भी अमृत के समान हो जाती है। सुबह इसका सेवन करने से रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस दिन खीर चंद्रमा की रोशनी में रखने से उसमें खास तरह के विटामिन आ जाते हैं है। इसलिए यह खीर बहुत स्वास्थ्यवर्धक होती है। दूध में लैक्टिक नामक ऐसिड पाया जाता है। इसके साथ ही चावल में स्टार्च पाया जाता है हैं। जिस वजह से खीर में कई तत्व मिल जाते हैं और इसे स्वास्थवर्धक बना देते हैं।
त्वचा रोग में फायदेमंद
स्किन रोग से परेशान लोगों को शरद पूर्णिमा की खीर खाने से काफी फायदे मिलते हैं। मान्यता है कि अगर किसी भी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो वो इस दिन खुले आसमान में रखी हुई खीर खाएं। इसे खाने से कफ और श्‍वांस संबंधी बीमारी भी दूर होती है।
इस प्रकार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन, लक्ष्मी पूजन और खीर के भोग का अलग महत्‍व है। इसलिए इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पूजन विशेष रूप से फलदायी होगा। वर्ष के बारह महीनों में शरद पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को यह देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें यह सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।
आयुर्वेद में महत्व:-
जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेद-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानि औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।
खीर से रोग होते हैं दूर :-
शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। हालांकि, इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।
कृष्ण का रास:-
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृंदावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।


Sunday, October 17, 2021

शरद पूर्णिमा की रात में ताजमहल में चमकी। डा.राधेश्याम द्विवेदी

ये चमकी - वो चमकी।
अबे यार कहां चमकी ?
अरे यार, वो चमकी।
आँखें या बटन ?
 ध्यान से देख, वो चमकी।
अरे हां, वो चमकी।।‘
ताजमहल पर हरियाणा के प्रख्यात कवि उदयभानु हंस की एक रुबाई देखिए
“ये ताज नहीं रूप की अंगड़ाई है। 
या गालिब ने गजल पत्थरों पर गाई है।।
या चांद की अलबेली दुल्हन चुपके से। 
यमुना में नहाने को उतर आई है।।“
शरद पूर्णिमा की रात में ताज के पत्थरों का झिलमिलाना :-
ताजमहल में कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। यूं तो पूर्णमासी हर बार आती है। ताजमहल के ऊपर चन्द्रमा हर बार अपनी चमक बिखेरता है, परन्तु इस बार की पूर्णमासी खास हैं।। कहते हैं कि इस रात्रि में चांद पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है। अपनी
सोलह कलाओं के साथ चमकता है। चन्द्रमा की किरणें जब ताज के श्वेतसंगमरमर के पत्थरों को स्पर्श करती हैं, वे चमक उठते हैं। इसे ही 'चमकी'कहा जाता है। एक समय था जब ताजमहल में हजारों पर्यटक चमकी काआनंद उठाया करते थे। सुरक्षा कारणों से यह सम्भव नहीं हो पाता है। अब चुनिन्दा पर्यटक ही जा सकते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन पूरे चांद में ताजमहल का दीदार करना अपने आप में एक अलग अनुभव है। हर साल इस दिन ताजमहल परिसर में दिखने वाली रोशनी जिसे ‘चमकी’ भी कहा जाता है, इसका दीदार करने की चाह में लोग दीवाने हो गए हैं। ताजमहल को वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा से दो दिन पहले औार दो दिन बाद रात में खोला जाता है।
“ये चमकी, वो चमकी” कुछ ऐसे ही संवाद ताजमहल में गूंजते थे । शरदपूर्णिमा की रात में ताजमहल में चमकी की गूंज होती रहती थी। ‘चमकी’यानी चांद की चांदनी में पत्थरों का चमकना या झिलमिलाना। अद्भुत नजारा यहां होता था। ताजमहल के मुख्य गुंबद पर हजारों लोग होते थे। हाथ की अंगुली के इशारे से बताते थे कि कहां पर चमक रहा है ताजमहल। जैसे-जैसे चंद्र का प्रकाश ताजमहल के इर्द गिर्द परिभ्रमण करता था, चमकी का स्थान भी बदलता जाता था। इसके साथ ही लोग भी घूमते जाते थे। उत्तर दिशा की ओर लोग नहीं होते थे,क्योंकि उधर चांद नहीं पहुंचता है। बाकी तीनों दिशाएं चहल कदमी से भरी रहती थी।
वे भी क्या दिन थे:-वे दिन भी क्या दिन थे। लोग कई दिनों से चमकी देखने का इन्तजार करते थे। अपने रिश्तेदारों को बुलाते थे। तब सर्दी बहुत पड़ती थी। कानों से मफलर बांधकर और स्वेटर पहनकर ताजमहल पहुंचे थे। सुरक्षा का कोई ताम-झाम नहीं रहता था। कोई टिकट भी नहीं था। पर्यटन व्यवसायी
अभिनव जैन बताते हैं कि ताजमहल के द्वार पर ही मूंगफली और नान खटाई की ठेलें लगती थीं। लोग ताजमहल में जाते समय और आते समय मूंगफली खाते थे। सड़कें बहुत अच्छी नहीं थीं, लेकिन लोगों में उमंग और उत्साह देखते ही बनता था। इसे चमकी मेला कहा जाता था। ताजगंज का तो बच्चा-
बच्चा उमड़ पड़ता था।
न जाने कब लौंटेंगे वे दिन:-ताजगंज निवासी और भाजपा नेता अश्वनी वशिष्ठ बताते हैं कि ताजमहल में चमकी देखने की बात ही निराली थी। हर समय भीड़ रहती थी। हर कोई उत्साहित रहता था। आसपास की दुकानें पूरी रात खुली रहती थीं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी ताजमहल के मुख्य
गुंबद पर आने और जाने के लिए लकड़ी की रैम्प बनाते थे। अपनी सोलह कलाओं के साथ जब चन्द्रमा अपनी आभा बिखेरता था, तब ताजमहल झिलमिला उठता था। न जाने वे दिन कब लौटकर आएंगे।
 वर्षों से यहां लगता था मेला:-चमकी देखने के लिए दूरदराज से लोग आते थे। पूरी रात ताजमहल खुलता था। पर्यटकों को आने-जाने के लिए लकड़ी के रैम्प बनाए जाते थे। खेल-तमाशे वाले आते थे। पूरी रात आवागमन चलता रहता था। ये चमकी, वो चमकी की गूंज होती रहती थी। कोई समस्या नहीं थी। हां, भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस के पसीने छूट जाते थे।
अब क्या होता है:- इस दौरान रात 8.30 से 12.30 बजे तक आठ स्लॉट में ताज का दीदार होता है। प्रत्येक स्लॉट आधा-आधा घंटे का होता है। सैलानियों को रेड सैंड स्टोन प्लेटफार्म तक जाने की अनुमति दी जाती है।चार घंटे में आठ स्लॉट में देखे जाने वाले ताज के लिए सभी 400 टिकटें बिक
जाती हैं। अब तो ताजमहल रात्रि में 8.30 बजे से 12.30 बजे तक खुलता है। अधिकतम 400 लोग ताजमहल देख सकते हैं। उन्हें भी मुख्य द्वार के प्लेटफार्म तक जाने की अनुमति है। यहां से चमकी दिखेगी ही नहीं। हां,पूर्णमासी का रात में ताजमहल जरूर दिखता है लेकिन धुंधला सा। स्पष्टआकृति नजर नहीं आती है।
1984 में आतंकवादी धमकी के बाद बंद:-1984 में ताजमहल को बम से उड़ाने की धमकी मिली। तब आतंकवाद चरम पर था। इसके बाद ताजमहल को रात्रि में बंद कर दिया गया। चमकी पर भी रोक लगा दी गई। 
20 साल बाद रात्रि में खोला गया ताज:-पर्यटन व्यवसायी लगातार दबाव बना रहे थे कि ताजमहल को रात्रि में खोला जाए, ताकि पर्यटकों का रात्रि प्रवास बढ़ सके। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 20 साल बाद 27 नवम्बर, 2004 को ताजमहल रात्रि में खोला गया। पहली रात 684 पर्यटकों ने ताजमहल का
अवलोकन किया। इसके बाद प्रत्येक पूर्णिमा और इससे दो रात्रि पहले व बाद में ताजमहल खोल दिया गया।
शिल्पग्राम से बैटरचलित बस में जाएंगे,ये बरतें सावधानी:- सैलानियों को ताजमहल का दीदार कराने के लिए शिल्पग्राम से पूर्वी गेट तक बैटरीचलित बस से ले जाया जाएगा। वहां पर सघन चेकिंग के बाद उन्हें प्रवेश दिया जाएगा। आधा घंटा पूरा हो जाने के बाद दूसरे स्लॉट के लोगों को इसी प्रक्रिया के तहत ताज भेजा जाएगा। पर्यटक को निर्धारित समय से 30 मिनट पहले शिल्पग्राम पहुंचना होगा। वहां सुरक्षा जांच के बाद आगे जाने दिया जाएगा। मुख्य प्रवेश द्वार के प्लेटफार्म तक पर्यटकों को जाने दिया जाता है। ताजमहल में स्टिल कैमरा या बायनोकुलर ले जा सकते हैं।
विशेष परिस्थित में रात्रि दर्शन निरस्त भी किया जा सकता है। पर्यटक चाहे तो अपना टिकट दोपहर 12 बजे तक निरस्त करा सकता है। ऐसी परिस्थिति में 25 फीसदी धनराशि काटकर वापस की जाएगी।
कहां मिलता है टिकट:- ताजमहल का टिकट भारतीय पर्यटकों के लिए 510 रुपये और विदेशी पर्यटकों के लिए 750 रुपये का है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कार्यालय 22, माल रोड, आगरा पर टिकट मिलता है। टिकट लेने के लिए एक फार्म भरना होगा। अपना फोटो पहचानपत्र देना होगा। एक दिनपहले टिकट लेना होता है। जो पहले आता है, उसे पहले टिकट मिलता है।