Thursday, September 30, 2021

कर्म फल भोगना ही पड़ता है डा. राधे श्याम द्विवेदी

यह बात हमारे मन में बार बार उठती है कि क्या हम पिछले जन्म के पाप भोगते है या फिर इस जन्म के कर्म का फल मिलता है? 
 हम सभी ये देखते आये है कि कुछ लोग अच्छा काम करके भी दुखी रहते है जबकि कुछ लोग गलत काम करके भी खुश रहते है. अच्छे बुरे कर्मो का फल हमे कब मिलता है ये जानना हम सब के लिए बेहद जरुरी है. 
क्या इस जन्म के कर्मो का फल इसी जन्म में मिलेगा ?
आज हम इसी पर चर्चा करेंगे. हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में अटूट विश्वास रखता है. हिन्दू धर्म कर्मवादी धर्म है. श्री कृष्ण ने कहा है – कि वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार की प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते है. जो कार्य और कारन की एक श्रृंखला है. महाभारत में खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था – हे अर्जुन तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके है. फर्क सिर्फ इतना है कि मुझे अपने सारे जन्मो की याद है लेकिन तुम्हे नही है. तुम्हे अपने पिछले जन्म याद नही होने के कारण तेरे लिए ये संसार नया है.लोगो को इस बात से शिकायत रहती है कि मैंने तो कभी किसी के साथ बुरा नही किया तो मेरे साथ गलत क्यों होता है. वहीँ कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि कुछ लोग गलत कर्म करके भी अच्छे से अपना जीवन जीते है. ऐसे लोग कई बार सबसे ज्यादा खुश भी होते है. गलत कर्म करने वाले इतने ज्यादा खुश क्यों रहते है इसको समझने के लिए आपको भगवान कृष्ण द्वारा कही गई भीष्म पितामह की एक कथा पढना जरुरी है.
भीष्म पितामह की कथा:-
भीष्म पितामह को क्यों रहना पड़ा था बाणों की शैय्या पर:-
महाभारत के युद्ध का दसवे दिन जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे. युद्ध समाप्ति के बाद श्री कृष्ण पांड्वो के साथ भीष्म पितामह का आशीर्वाद लेने पहुंचे. तब भीष्म ने कृष्ण से प्रश्न करते हुए पूछा – हे वासुदेव मुझे बताइए कि ये मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं 18 दिन से यहाँ पड़ा हूँ. ये बात सुनकर कृष्ण हंसने लगे और उन्होंने भीष्म से पूछा – पितामह क्या आपको अपने कर्मो से जुड़े हुए पुनर्जन्म का ज्ञान है. भीष्म ने कहा हां मुझे अपने 100 पूर्वजन्मों का ज्ञान है. मैंने इन 100 जन्मो में कभी भी किसी व्यक्ति का अहित नही किया.
कृष्ण ने कहा कि आपने सही कहा आपने 100 बार कोई गलत काम नही किया लेकिन जब 101 बार आपने आज जन्म लिया और आप एक राजवंशी घराने में जन्मे हो. एक बार जब आप शिकार खेलते समय लौट रहे थे उस समय आपके घोड़े के उपर एक केकड़ा आ गया. जिसे आपने अपने बाण से उठाकर पीछे की तरफ फैंक दिया. वो जीव एक कांटेदार पौधे पर जा गिरा. जीव पीठ के बल जाकर गिरा था इसलिए उस पौधे के कांटे उसकी पीठ में चुभ गये. इस वजह से जीव की तड़प तड़प कर मृत्यु हुई.
आपके कर्म अच्छे थे और उसके श्राप का असर आप पर नही हुआ. लेकिन जिस समय द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो आपका मौन रहना ही आपके अच्छे कर्मो को खत्म कर गया और उस जीव का श्राप आपको लग गया. उसी श्राप के कारण आपकी आज ये दशा है. इस कहानी से ये बात समझ आती है कि कर्म का फल आज नही तो कल हमे जरुर भुगतना पड़ता है. कर्मो के अनुसार ही जन्म मिलता है.
गरुड पुराण में बुरे कर्म का उल्लेख :-
गरुड पुराण में बुरे कर्मो के बारे में विस्तार से बताया गया है. किसी पुजारी को मारना, दिए गये वचन को तोडना, कमरे की सफाई को खराब करना गरुड पुराण के अनुसार बहुत बड़ा पाप माना जाता है. यदि कोई ऐसा करता है तो उसे सजा पाने के लिए तैयार रहना पड़ता है. स्त्री को कष्ट पहुंचाना या फिर उसके साथ मारपीट करना सीधा आपको नर्क पहुंचाता है. किसी के साथ विश्वासघात करना और किसी की हत्या के लिए षड्यंत्र रचना इसका रास्ता भी सीधा नर्क की तरफ जाता है.
जो लोग असहाय लोगो को सहारा नही देता, कमजोर लोगो को सताता है वो भी सीधे नर्क में जाता है. इसके साथ ही अपने जीवनसाथी को धोखा देने वाला, शराब की विक्री करने वाला या फिर जानवरों को अपने लाभ के लिए मारने वाले इंसान को नर्क में कई तरह की सजाएं मिलती है. जहाँ अच्छे कर्म व्यक्ति के जीवन को उन्नति की तरफ ले जाते है वहीँ बुरे कर्म अवन्नती की तरफ. जो जैसा कर्म करता है उसका वैसा ही फल मिलेगा. अच्छे कर्म करने पर सुख समृद्धि मिलती है और बुरे कर्म करने वालो को दुःख और परेशानी ही मिलती है. इसलिए अपने पूरे प्रयास से सत कर्म केवल सत कर्म ही करने का प्रयास करना चाहिए.


 


 




1 अक्तूबर विश्व वृद्ध दिवस डा. राधे श्याम द्विवेदी

वृद्धजन श्रद्धा के पात्र :-
बढ़ती जनसंख्या के प्रति विश्वव्यापी चिंता के कारण इस समय विश्व भर में शिशु-जन्म दर में कुछ कमी हो रही है, लेकिन  स्वास्थ्य और चिकित्सा संबंधी बढ़ती सुविधाओं के कारण औसत आयु में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह औसत आयु अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। भारत में सन 1947 में यह औसत आयु केवल 27 वर्ष थी, जो 1961 में 42 वर्ष, 1981 में 54 वर्ष और अब लगभग पैंसठ वर्ष तक पहुंच गयी है। साठ से अधिक आयु के लोगों की संख्या में वृद्धि हमारे यहां विशेष रूप में 1961 से प्रारम्भ हुई, जो चिकित्सा सुविधाओं के प्रसार के साथ-साथ निरन्तर बढ़ती चली गयी। हमारे यहां 1991 में 60 वर्ष से अधिक आयु के 5 करोड़ 60 लाख व्यक्ति थे। जो 2007 में बढ़कर 8 करोड़ 40 लाख हो गये। वृद्धजन सम्पूर्ण समाज के लिए अतीत के प्रतीक, अनुभवों के भंडार तथा सभी की श्रद्धा के पात्र हैं। समाज में यदि उपयुक्त सम्मान मिले और उनके अनुभवों का लाभ उठाया जाए तो वे हमारी प्रगति में विशेष भागीदारी भी कर सकते हैं। इसलिए बुजुर्गों की बढ़ती संख्या चिंतनीय नहीं है। चिंता केवल इस बात की होनी चाहिए कि वे स्वस्थ, सुखी और सदैव सक्रिय रहें।
वृद्धोंकी समस्या पर पहल:-
वृद्धों की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में सर्वप्रथम अर्जेंटीना ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया था। तब से लेकर अब तक वृद्धों के संबंध में अनेक गोष्ठियां और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं। वर्ष 1999 को अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग-वर्ष के रूप में भी मनाया गया है। इससे पूर्व 1982 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘वृद्धावस्था को सुखी बनाइए’ जैसा नारा दिया और ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ का अभियान प्रारम्भ किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रथम अक्तूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध-दिवस’ के रूप में घोषित किया हुआ है और इस रूप में विश्वभर में इसका आयोजन भी किया जाता है। इन सब बातों से वृद्ध व्यक्तियों के प्रति लोगों में सम्मान और संवेदना के भाव जागे और उनके स्वास्थ्य तथा आर्थिक समस्याओं के समाधान पर विशेष ध्यान दिया गया। वृद्धावस्था की बीमारियों के लिए अनेक औषधियों का आविष्कार किया गया और अनेक स्थानों पर अस्पतालों में उनके लिए विशेष व्यवस्था की गयी। लगभग सभी पश्चिमी देशों में आर्थिक समस्या से जूझते वृद्धों के लिए पर्याप्त पेंशन की व्यवस्था की गयी है, जिससे उनका खर्च आराम से चल जाता है। वहां के बुजुर्गों के सामने अब सामान्यत: आर्थिक संकट नहीं है। उनके सामने स्वास्थ्य के अतिरिक्त मुख्य समस्या अकेलेपन की है। वयस्क होने पर बच्चे अलग रहने लगते हैं और केवल सप्ताहान्त या अन्य विशेष अवसरों पर ही वे उनसे मिलने आते हैं। कभी-कभी उनसे मिले महीने या वर्ष भी गुजर जाते हैं। बीमारी के समय उन्हें सान्त्वना देेने वाला सामान्यत: उनका कोई भी अपना उनके पास नहीं होता।
भारत में बुजुर्गों की स्थिति:-
हमारे यहां प्राचीन भारत में बुजुर्गों के प्रति विशेष सम्मान और आदर की भावना थी। वे सदैव परिवार के मुखिया रहते और उन्हीं के मार्ग-निर्देशन में परिवार की गतिविधियां आगे बढ़तीं। छोटों के द्वारा बड़ों के चरणस्पर्श और बड़ों के द्वारा छोटों को आशीर्वाद की पंरपरा ने अपनत्व की इस भावना को सदैव मजबूत बनाये रखा। संयुक्त परिवार की प्रथा ने आबाल वृद्ध नर-नारी सभी को आपसी प्रेम की माला में पिरोये रखा। किन्तु कालान्तर में संयुक्त परिवार की प्रथा चरमराने लगी और धीरे-धीरे वह समाप्त प्राय हो गयी है। चरण छूने और आशीर्वाद की परंपरा भी अब औपचारिकता बनकर रह गयी हैं। पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हमारे नवयुवक भी विवाह के उपरान्त अपना-अलग घर बसाने लगे हैं। इससे समाज में वृद्धों की स्थिति दयनीय होती चली गयी। अनेक राज्य सरकारों ने अपने यहां बेसहारा वृद्धों के लिए पेंशन की व्यवस्था की हुई है, मगर वह इतनी कम है कि उससे दो वक्त का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो जाता है। फिर व्यवस्था की उलझनों के कारण उस पेंशन को प्राप्त करना भी टेढ़ी खीर है। राज्यसेवा में रहे व्यक्तियों को अवश्य ही अपनी पेंशन के कारण आर्थिक संकट की आशंका नहीं रहती, मगर बीमारी के समय उनके लिए भी किसी अपने के अभाव में भयानक परेशानी हो जाती है। जिन परिवारों में थोड़े बहुत पुराने संस्कार शेष हैं, वहां के बुजुर्ग अपने इस अकेलेपन की पीड़ा से एक सीमा तक मुक्त रह पाते हैं।
वृद्धावस्था सामाजिक अभिशाप :-
वृद्धावस्था के अभिशाप के दो पहलू हैं। एक सामाजिक और दूसरा व्यक्तिगत। सामाजिक पहलू यह है कि समाज में उन्हें यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं होता। उन्हें अनुपयोगी और निरर्थक माना जाता है। उनके पास समय बिताने का या मनोरंजन का कोई साधन नहीं है। नवयुवक उन्हें अपनी प्रगति के मार्ग में बाधा मानते हैं और उनके साथ किसी प्रकार का वैचारिक सामंजस्य नहीं रख पाते।
वृद्धावस्था व्यक्तिश:अभिशाप :-
इस समस्या का व्यक्तिगत पहलू और भी अधिक दुरूह है। समाज की उपेक्षा से वे अपने को कुंठित और निराश महसूस करते हैं। मौत अवश्यम्भावी है, यह वे भी जानते हैं। मगर वह मौत कब, कैसे और किन तकलीफों के साथ होगी, इस बारे में तरह-तरह की आशंकाएं उन्हें सदैव घेरे रहती हैं। उनकी शारीरिक और मानसिक शक्ति का निरंतर क्षय होता जाता है, जिससे वे स्वयं अपने शरीर का काम भी भली प्रकार नहीं कर पाते। दूसरों पर निर्भरता काफी अधिक बढ़ जाती है। आमदनी का कोई साधन न होने पर आर्थिक संकट उन्हें सबसे अधिक तंग करता है।
वृद्ध महिलाए ज्यादा उपेक्षित:-
वृद्ध महिलाओं के लिए कुछ विशेष समस्याएं भी होती हैं। पुरुष प्रधान समाज होने के कारण हमारे यहां सामान्यत: वृद्ध पुरुष को ही परिवार का मुखिया माना जाता है और इसी रूप में परिवार से बाहर वालों के सामने उसे प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए कम से कम दिखावे के लिए वृद्ध पुरुषों के प्रति सम्मान की औपचारिक प्रथा कमोबेश रूप में बनी रहती है। यदि वह वृद्ध पुरुष पेंशन या अन्य किसी साधन से कुछ कमाता है, तब उसका सम्मान भी बढ़ जाता है। पेंशन प्राप्त करने वाली या अन्य किसी उत्पादक कार्य अथवा गृहकार्य में योगदान करने वाली महिला के साथ भी सम्मान की यह भावना कमोबेश रूप में जुड़ी रहती है। लेकिन अन्य महिलाओं की स्थिति बेहद खराब होती है। बहू-बेटे का व्यवहार अधिकांशत: उसके प्रति अभद्र और आपत्तिजनक होता है। हमारे यहां विधवाओं की स्थिति तो बेहद दयनीय है। किसी भी शुभ कार्य में उन्हें अपशकुन माना जाता है और उन्हें ऐसे कार्यों से दूर रखकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जाता है।
वृद्ध व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान :-
हमें सर्वप्रथम तो उन्हें आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनाने पर ध्यान देना होगा। इस संदर्भ में मुख्य समस्या उन लोगों की हैं, जो न तो किसी उत्पादक कार्य में लगे हैं और न उन्हें कोई पेंशन मिलती है। इनमें कुछ लोग इतने शक्तिहीन और निर्बल हो चुके हैं कि वे कोई काम कर ही नहीं सकते। ऐसे बेसहारा वृद्ध व्यक्तियों के लिए सरकार की ओर से आवश्यक रूप से और सहज रूप मे मिल सकने वाली पर्याप्त पेंशन की व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसे वृद्ध व्यक्ति जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ हैं, उनके लिए समाज को कम परिश्रम वाले हल्के-फुल्के रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिये।
वृद्ध कल्याणपरक कार्यक्रम पर जोर:-
वृद्धों के कल्याण के लिए इस प्रकार के कार्यक्रमों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए, जो उनमें जीवन के प्रति उत्साह उत्पन्न करे। इसके लिए उनकी रुचि के अनुसार विशेष प्रकार की योजनाएं भी लागू की जा सकती हैं। स्वयं वृद्धजन को भी अपने तथा परिवार और समाज के हित के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए। उदाहरणार्थ युवा परिजनों के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें और उन्हें अपने ढंग से जीवन जीने दें। उन्हें अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सदैव हल्का, सादा और स्वास्थ्यवर्धक लेना चाहिए। अपने को सदैव तनाव से दूर रखें और यथासंभव नित्यप्रति हल्का और नियमित व्यायाम करें। प्रात: और संध्या को नित्य घूमना उनके लिए विशेष उपयोगी है। अपने को यथासंभव व्यस्त रखें और निराशा को कभी भी अपने पास न फटकने दें। सदैव शांत, संतुष्ट और संयमित जीवन बितायें। समाज के लिए कुछ उपयोगी कार्य करने का सदैव प्रयत्न करें।




Monday, September 27, 2021

अंतरराष्ट्रीय पर्यटन दिवस - डॉ० राधेश्याम द्विवेदी


1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र से शुरुआत :- तरह-तरह के दिवस शायद इसीलिए मनाए जाते हैं कि लोग उस दिन किसी ख़ास मुद्दे पर अच्छी-अच्छी बातें करें, आदर्श-नीति-सिद्धांत वग़ैरह पर ज़ोर दिया जाए। अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस (अंग्रेज़ी: World Press Freedom Day) प्रत्येक वर्ष '3 मई को मनाया जाता है। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। प्रेस की आज़ादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। यही खबरें हमें दुनिया से जोड़े रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुंचाने का सबसे बेहतरीन माध्यम है। शुरुआत 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस' मनाने का निर्णय वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर किया था। इससे पहले नामीबिया में विन्डंहॉक में हुए एक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया था कि प्रेस की आज़ादी को मुख्य रूप से बहुवाद और जनसंचार की आज़ादी की जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए। तब से हर साल '3 मई' को 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वीतंत्रता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। प्रेस की आज़ादी 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' ने भी '3 मई' को 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वातंत्रता' की घोषणा की थी।

1993 में प्रस्ताव स्वीकार :- यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है, जैसे- प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर देना और बंद कर देना आदि। इनके अलावा पत्रकारों, संपादकों और प्रकाशकों को परेशान किया जाता है और उन पर हमले भी किये जाते हैं। यह दिन प्रेस की आज़ादी को बढ़ावा देने और इसके लिए सार्थक पहल करने तथा दुनिया भर में प्रेस की आज़ादी की स्थिति का आकलन करने का भी दिन है। अधिक व्यावहारिक तरीके से कहा जाए, तो प्रेस की आज़ादी या मीडिया की आज़ादी, विभिन्न इलैक्ट्रोनिक माध्यमों और प्रकाशित सामग्री तथा फ़ोटोग्राफ़ वीडियो आदि के जरिए संचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी है। प्रेस की आज़ादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दख़लंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य क़ानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आज़ादी की रक्षा जरूरी है। मीडिया की आज़ादी का मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी राय कायम करने और सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर करने का अधिकार है। इस आज़ादी में बिना किसी दख़लंदाजी के अपनी राय कायम करने तथा किसी भी मीडिया के जरिए, चाहे वह देश की सीमाओं से बाहर का मीडिया हो, सूचना और विचार हासिल करने और सूचना देने की आज़ादी शामिल है। इसका उल्लेख मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के 'अनुछेद 19' में किया गया है। 'सूचना संचार प्रौद्योगिकी' तथा सोशल मीडिया के जरिए थोड़े समय के अंदर अधिक से अधिक लोगों तक सभी तरह की महत्वपूर्ण ख़बरें पहुंच जाती हैं। यह समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया की सक्रियता से इसका विरोध करने वालों को भी स्वयं को संगठित करने के लिए बढ़ावा मिला है और दुनिया भर के युवा लोग अपनी अभिव्यक्ति के लिए और व्यापक रूप से अपने समुदायों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के लिए संघर्ष करने लगे हैं। इसके साथ ही यह समझना भी जरूरी है कि मीडिया की आज़ादी बहुत कमज़ोर है। यह भी जानना जरूरी है कि अभी यह सभी की पहुंच से बाहर है। हालांकि मीडिया की सच्ची आज़ादी के लिए माहौल बन रहा है, लेकिन यह भी ठोस वास्तविकता है कि दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच बुनियादी संचार प्रौद्योगिकी तक नहीं है। जैसे-जैसे इंटरनेट पर ख़बरों और रिपोर्टिंग का सिलसिला बढ़ रहा है, ब्लॉग लेखकों सहित और अधिक इंटरनेट पर पत्रकारों को परेशान किया जा रहा है और हमले किये जा रहे हैं। प्रत्येक लोकतांत्रिक और जागरुक देश में मीडिया या प्रेस की भूमिका सबसे अहम रहती है। शासक और सत्तासीन सरकारों का हमेशा यह प्रयत्न रहता है कि वह सूचना के उसी पहलू को जनता के सामने लाएं जो उनके पक्ष में हो ताकि उनके शासन को कोई चुनौती ना दे पाए। ऐसे में प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा होना लाजमी है। यही वजह है कि हर वर्ष 3 मई को प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक यह संदेश पहुंचाना है कि प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे मौलिक अधिकारों में से एक है जिस पर किसी भी प्रकार का अवरोध या बंदिश सहन नहीं की जाएगी वर्तमान हालातों के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज का मनुष्य सामाजिक और राजनैतिक दोनों ही तरह से पहले से कहीं अधिक जागरुक और सचेत हो गया है। वह अपनी जानकारी के दायरे को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील तो है लेकिन समय की कमी होने के कारण वह इस उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता। ऐसे में उसके जीवन में सूचना प्रसारित करने वाले माध्यमों की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है।

भारत में प्रेस की स्थिति:- प्रेस की स्वतंत्रता पर अप्रिय बातें करने का रिवाज़ नहीं है लेकिन खरी-खरी बातें तो कभी भी हो सकती हैं। दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में प्रेस को चौथा खंभा माना जाता है, कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को जनता से जोड़ने वाला प्रेस को चौथा खंभा माना जाता है।भारत जैसे विकासशील देशों में मीडिया पर जातिवाद और सम्प्रदायवाद जैसे संकुचित विचारों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने और ग़रीबी तथा अन्य सामाजिक बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा और अनभिज्ञ है, इसलिये यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाएं और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए, ताकि वे सजग भारत का हिस्सा बन सकें। इस दृष्टि से मीडिया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पत्रकारों को कई सुविधाएँ मिलती हैं जैसे कई जगहों पर आने-जाने की आज़ादी, कार्यक्रमों में बेहतर कुर्सी, टेलीफ़ोन ख़राब होने पर जल्दी ठीक करवाने की व्यवस्था, रेल के आक्षरण के लिए अलग खिड़की वग़ैरह, ताकि वे अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह ठीक से कर सकें। ठीक उसी तरह जैसे सांसदों को टेलीफ़ोन, आवास, मुफ़्त यात्रा आदि की सुविधा दी जाती है। सांसद अपना काम ठीक से नहीं करते तो मीडिया उन पर टिप्पणी करने के लिए आज़ाद है. लेकिन जब मीडिया अपना काम ठीक से न करे तो ? दरअसल, जिन लोगों की ज़िम्मेदारी दूसरों के कामकाज की निगरानी, टीका-टिप्पणी और उस पर फ़ैसला सुनाने की होती है उनकी जवाबदेही कहीं और ज़्यादा हो जाती है। न्यायपालिका और मीडिया इसी श्रेणी में आते हैं। पत्रकारों और जजों की ग़ैर-ज़िम्मेदारी पर चर्चा बहुत कम होती है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उनकी ग़लतियों और उनके अपराधों की गंभीरता कम है। पत्रकार भी समाज का ही हिस्सा हैं, समाज में भ्रष्टाचार, बेईमानी और सत्ता के दुरुपयोग की जितनी बीमारियाँ हैं उनसे पत्रकारों के बचे रहने की उम्मीद करना नासमझी है। बीच-बीच में स्टिंग ऑपरेशनों से घबराई विधायिका मीडिया नियमन लागू करने की बात करती है, प्रेस को यह अपनी आज़ादी पर ख़तरा लगता है, पत्रकार कहते हैं कि हम ख़ुद अपना नियमन कर लेंगे। नाज़ुक मसला ये है कि कोई भी पत्रकार बाहर से किसी नियंत्रण को स्वीकार करने को तैयार नहीं होगा, उसे होना भी नहीं चाहिए, स्वतंत्र मीडिया न हो तो उसका कोई अर्थ ही नहीं है. भारत में संविधान के अनुच्छेद 19 (1 ए) में "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार" का उल्लेख है, लेकिन उसमें शब्द 'प्रेस' का ज़िक्र नहीं है, किंतु उप-खंड (2) के अंतर्गत इस अधिकार पर पाबंदियां लगाई गई हैं। इसके अनुसार भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता, राष्ट्र की सुरक्षा, विदेशों के साथ मैत्री संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के संरक्षण, न्यायालय की अवमानना, बदनामी या अपराध के लिए उकसाने जैसे मामलों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाई जा सकती हैं।भारत में अक्सर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा होती रहती है। 3 मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता पर बातचीत होना लाजिमी है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। विश्व स्तर पर प्रेस की आजादी को सम्मान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया, जिसे विश्व प्रेस दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यूनेस्को द्वारा 1997 से हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज भी दिया जाता है। यह पुरस्कार उस व्यक्ति अथवा संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो।

सूचना का अधिकार क़ानून :- इस क़ानून में सरकारी सूचना के लिए नागरिक के अनुरोध का निश्चित समय के अंदर जवाब देना बहुत जरूरी है। इस क़ानून के प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी नागरिक सार्वजनिक अधिकरण (सरकारी विभाग या राज्य की व्यवस्था) से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है और उसे 30 दिन के अंदर इसका जवाब देना होता है। क़ानून में यह भी कहा गया है कि सरकारी विभाग व्यापक प्रसारण के लिए अपने आँकड़ों तथा दस्तावेज़ों का कम्प्यूटरीकरण करेंगे और कुछ विशेष प्रकार की सूचनाओं को प्रकाशित करेंगे, ताकि नागरिकों को औपचारिक रूप से सूचना न मांगनी पड़े। संसद में 15 जून, 2005 को यह क़ानून पास कर दिया था, जो 13 अक्टूबर, 2005 से पूरी तरह लागू हो गया। संक्षेप में, यह क़ानून प्रत्येक नागरिक को सरकार से सवाल पूछने, या सूचना हासिल करने, किसी सरकारी दस्तावेज़ की प्रति मांगने, किसी सरकारी दस्तावेज़ का निरीक्षण करने, सरकार द्वारा किये गए किसी काम का निरीक्षण करने और सरकारी कार्य में इस्तेमाल सामग्री के नमूने लेने का अधिकार देता है। 'सूचना का अधिकार क़ानून' एक मौलिक मानवाधिकार है, जो मानव विकास के लिए महत्वपूर्ण है तथा अन्य मानवाधिकारों को समझने के लिए पहली जरूरत है। पिछले 7 वर्षों के अनुभव से, जब से यह क़ानून लागू हुआ है, पता चलता है कि सूचना का अधिकार क़ानून आवश्यकता के समय एक मित्र जैसा है, जो आम आदमी के जीवन को आसान और सम्मानजनक बनाता है तथा उसे सफलतापूर्वक जन सेवाओं के लिए अनुरोध करने और इनका उपयोग करने का अधिकार देता है।

श्रद्धांजलि का दिन:- संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस' प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है। आज हमारा मीडिया अपना दायित्व ठीक तरीके से नहीं निभा रहा है। कुछ लोगों को छोड़कर श्रद्धांजलि देने का काम भी हमारा मीडिया शायद ही ठीक से कर रहा है। जबकि होना तो ये चाहिए की कम से कम इस दिन तो सारे देश का मीडिया एकजुट होकर इस दिन की सार्थकता को अंजाम देता। कम से कम आज के दिन तो ख़बरों में तड़का लगाने से परहेज करता, किंतु ये भी नहीं होता। ऐसा होने पर टी आर पी पर असर पड़ सकता है, जो की हरगिज बर्दास्त नहीं है। जनता का आइना हालांकि प्रेस जहाँ एक तरफ़ जनता का आइना होता है, वहीं दूसरी ओर प्रेस जनता को गुमराह करने में भी सक्षम होता है इसीलिए प्रेस पर नियंत्रण रखने के लिए हर देश में अपने कुछ नियम और संगठन होते हैं, जो प्रेस को एक दायरे में रहकर काम करते रहने की याद दिलाते हैं। प्रेस की आज़ादी को छीनना भी देश की आज़ादी को छीनने की तरह ही होता है। चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आज़ादी नहीं है। यहां की प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है। इस लिहाज से हमारा भारत उनसे ठीक है। आज मीडिया के किसी भी अंग की बात कर लीजिये, हर जगह दाव-पेंच का असर है। खबर से ज्यादा आज खबर देने वाले का महत्त्व हो चला है। लेख से ज्यादा लेख लिखने वाले का महत्तव हो गया है। पक्षपात होना मीडिया में भी कोई बड़ी बात नहीं है, जो लोग मीडिया से जुड़ते हैं, अधिकांश का उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना न होकर अपनी धाक जमाना ही अधिक होता हैं। कुछ लोग खुद को स्थापित करने लिए भी मीडिया का रास्ता चुनते हैं। कुछ लोग चंद पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर अपने समाज के प्रति अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं। छदम नाम से भी मीडिया में लोगों के आने का प्रचलन बढ़ा है। सत्य को स्वीकारना इतना आसान नहीं होता है और इसीलिए कुछ लोग सत्य उद्घाटित करने वाले से बैर रखते हैं। लेकिन फिर कुछ लोग मीडिया में अपना सब कुछ दाव पर लगाकर भी इस रास्ते को ही चुनते हैं और अफ़सोस की फिर भी उनकी वह पूछ नहीं होती, जिसके की वे हक़दार होते हैं।


Tuesday, September 21, 2021

नोवा हॉस्पिटल बस्ती की एक और उपलब्धि

नोवा हॉस्पिटल बस्ती की एक और उपलब्धि: देखी गई।
तीन साल से टेढ़ी उंगली को चट पट में सीधी की गई।
गोरखपुर से वापस आईं लखनऊ रिफर केस का बस्ती में इलाज कर कीर्तिमान स्थापित किया गया।
बस्ती। खलीलाबाद ( संतकबीर नगर )निवासनी एक 20 वर्षीय लड़की की तर्जनी उंगली तीन साल से टेढ़ी हो गई थी , जिसे पहले गोरखपुर दिखाया गया था, जहां उसे प्लास्टिक सर्जरी से ठीक करने के लिए लखनऊ रेफर किया गया था।
नोवा हॉस्पिटल के सर्जन डाक्टर सौरभ द्विवेदी के संपर्क में विगत दिनों इस मरीज को लाया गया। डाक्टर द्विवेदी ने इसका इलाज जेड प्लास्टी और  टेंडन ट्रांसफर द्वारा करके उंगली सीधी की । 
सर्जरी के दौरान ही उंगली सीधी तरह से मुड़ती और सीधी होती देखी गई है। अपने किस्म का बस्ती के अस्थि रोग के इतिहास में यह एक अनूठा प्रयास और चिकित्सा है।

नोवा हॉस्पिटल का तृतीय निःशुल्क चिकित्सा शिविर सम्पन्न

नगर बाजार बस्ती।नोवा हॉस्पिटल और एपेक्स डायग्नोस्टिक कैली रोड बस्ती का तृतीय निःशुल्क चिकित्सा शिविर राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय सरस की स्मृति में नगर पंचायत नगर बाजार बस्ती के सरस हॉस्पिटल झिरझिरवा पुल पर आज दिनांक 15 सितंबर 2021को सम्पन्न हुआ। जिसमे नोवा हॉस्पिटल बस्ती जो अस्थि रोग के लिए समर्पित है ,के साथ विविध प्रकार के स्वास्थ्य परीक्षण कोविद 19 के मानकों का पालन करते हुए सम्पन्न हुआ। 
अस्थि रोग, मानव हड्डियों को प्रभावित करने वाली कोई भी बीमारी या चोट होती है. अस्थि रोग या हड्डियों के रोग और चोटें मानव कंकाल प्रणाली के असामान्यताओं के प्रमुख कारण हैं. हालांकि शारीरिक चोट, फ्रैक्चर का कारण बनती है, यह चोट बीमारी का रूप ले लेती है और इंसान पर हावी हो जाती है. फ्रैक्चर हड्डियों की बीमारी के कई सामान्य कारणों में से एक है।नगर बाजार गौतमों बुद्ध से संबंधित तथा 14वी सदी की गौतामों एक प्रसिद्ध राज्य हुआ करता था। यहां के प्राचीन टीले और चंद्र नगर का चंदो ताल अपनी एतिहासिकता का खुद बखान किया करते हैं। वर्तमान समय में यह नगर पंचायत के रूप में बस्ती और टांडा के बीच प्रमुख वाणिज्य संस्थान हो गया है। चन्दो ताल से सटे हुए मछोई गोरई नदी के पुल से सटे हुए उपाध्याय एस्टेट में स्थित डाक्टर सरस हॉस्पिटल के विशाल प्रांगण पर यह निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन हुआ है। 
                  डाक्टर उमेश कुमार उपाध्याय
महर्षि वशिष्ठ राजकीय मेडिकल कालेज बस्ती के सह प्रोफेसर डॉ सौरभ द्विवेदी, इसी संस्था में कार्यरत उनकी  पत्नी डाक्टर तनु मिश्रा तथा हरैया बस्ती सीएचसी पर कार्यरत डाक्टर उमेश कुमार उपाध्याय और एस आर एल डायग्नोस्टिक सेंटर कैली रोड बस्ती की परीक्षण लाइन में अपार जन सैलाब देखा गया।
                  स्वर्गीय डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय सरस
डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय सरस हॉस्पपिटल नगर बाजार बस्ती के संस्थापक डाक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय ने पूरी शिविर की हर व्यवस्था पर नजर रखते हुए नगर पंचायत नगर बाजार बस्ती के लोगों को भरपूर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई।इस अवसर पर उपाध्याय एस्टेट झिरझिरवा पुल पर जन मानस की अपार भीड़ देखी गई।
 इस टीम ने 400 से अधिक मरीजों का इलाज किया था। अनेक गंभीर मरीजों को रियायती दर पर नोवा हॉस्पिटल में आने के लिए बोला गया। आधे दर्जन मरीज जिनके शरीर में स्टील के रॉड डले पड़े हैं और पैसे के अभाव में वे निकले नही जा सके हैं, उन्हें डाक्टर सौरभ द्विवेदी ने अपने हॉस्पिटल में निःशुल्क निकालने का आश्वासन दिया है। भीनी बरसात की खुशबू और शीतल हवाओंके झोकों के बीच में सभी व्यवस्थाएं बहुत ही चुस्त और दुरुस्त थीं।           आयोजक डाक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय
आज के कार्यक्रम में एस आर एल डायग्नोस्टिक सेंटर कैली रोड बस्ती के माध्यम से शरीर के कम्पोजीशन एनालिसिस (बीसीए) टेस्ट का परीक्षण किया गया जिसमे 16प्रकार का परीक्षण किया गया जिसके सहयोग से बड़ी बड़ी रोगों का पूर्वानुमान किया जा सकता है।।इस परीक्षण के प्रमुख पैरामीटर टोटल बॉडी फैट का प्रतिशत, टोटल बॉडी वाटर का प्रतिशत, स्केल्टन मसल्स का प्रतिशत, विसरल फैट इंडेक्स, बॉडी वेट, टोटल स्कोर , डिग्री फॉर जजमेंट फॉर द अबॉव पैरामीटर, वेट कंट्रोल एडवाइज, बायोलॉजिकल एज, अनालसीस ऑफ लीन बॉडी एंड फैट मास, अनालसिस ऑफ लिंब बैलेंस, हेल्थ इवेल्यूशन ऑफ बॉडी कम्पोजीसनऔर हेल्थ रिस्क वार्निग आदि है।

नोवा हॉस्पिटल का द्वितीय निःशुल्क चिकित्सा शिविर सम्पन्न

बस्ती। नोवा हॉस्पिटल और एपेक्स डायग्नोस्टिक कैली रोड बस्ती का द्वितीय निःशुल्क चिकित्सा शिविर श्री राजेश दूबे स्मृति समारोह दुबौली दूबे जिला बस्ती में विविध प्रकार के आयोजनो के साथ  दिनाँक 27 जुलाई 2021 को कोविद 19 के मानकों का पालन करते हुए भव्यता के साथ सम्पन्न हुवा था। अस्थि रोग पर समर्पित नोवा हॉस्पिटल बस्ती की सहभागिता उल्लेखनीय रही है।अस्थि रोग, मानव हड्डियों को प्रभावित करने वाली कोई भी बीमारी या चोट होती है. अस्थि रोग या हड्डियों के रोग और चोटें मानव कंकाल प्रणाली के असामान्यताओं के प्रमुख कारण हैं. हालांकि शारीरिक चोट, फ्रैक्चर का कारण बनती है, यह चोट बीमारी का रूप ले लेती है और इंसान पर हावी हो जाती है. फ्रैक्चर हड्डियों की बीमारी के कई सामान्य कारणों में से एक है। 

बस्ती जिले के ग्रामीण क्षेत्र दुबौली दूबे में एक विशाल चिकित्सा शिविर आयोजित किया गया। सबसे अधिक भीड़ इसी गांव के मूल निवासी तथा महर्षि वशिष्ठ राजकीय मेडिकल कालेज बस्ती के सह प्रोफेसर डॉ सौरभ द्विवेदी, इसी संस्था में कार्यरत उनकी  पत्नी डाक्टर तनु मिश्रा तथा हरैया जिला बस्ती सीएचसी पर कार्यरत डाक्टर उमेश कुमार उपाध्याय की लाइन में देखा गया। ये तीनों नोवा हॉस्पिटल और एपेक्स डायग्नोस्टिक कैली रोड बस्ती का प्रतिनिधित्व भी कर रहे थे। इस टीम ने 200 से अधिक मरीजों का निशुल्क इलाज किया था। भीनी बरसात की खुशबू में सभी व्यवस्थाएं बहुत ही चुस्त और दुरुस्त थीं। कार्यक्रम में भाग लेने वाले संबंधित जनों को भाजपा के जिला अध्यक्ष श्री महेश शुक्ला द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित भी किया गया था। यह गांव 26.81अक्षांश और 83.82 देशांतर के मध्य स्थित है।यह बस्ती जिले के कप्तानगंज विकास खंड के 222 ग्राम पंचायतों में पठखौली राजा पंचायत का एक विकसित गांव है। इस पंचायत में 190 घर 1114 जन संख्या 587 पुरुष 527 महिला तथा 66 प्रतिशत साक्षरता वाला है।

नोवा हॉस्पिटल बस्ती का प्रथम निःशुल्क चिकित्सा शिविर सम्पन्न

कुशी नगर, उत्तर प्रदेश। अस्थिरोग के लिए समर्पित नोवा हॉस्पिटल और एपेक्स डायग्नोस्टिक कैली रोड बस्ती का प्रथम निःशुल्क चिकित्सा शिविर ग्राम सुमही खुर्द फाजिल नजर जिला कुशी नगर में दिनाक 4 जुलाई 2021को सम्पन्न हुआ था ।
अस्थि रोग, मानव हड्डियों को प्रभावित करने वाली कोई भी बीमारी या चोट होती है। अस्थि रोग या हड्डियों के रोग और चोटें मानव कंकाल प्रणाली के असामान्यताओं के प्रमुख कारण हैं। हालांकि शारीरिक चोट, फ्रैक्चर का कारण बनती है, यह चोट बीमारी का रूप ले लेती है और इंसान पर हावी हो जाती है। फ्रैक्चर हड्डियों की बीमारी के कई सामान्य कारणों में से एक है। सुमही कुशी नगर के ग्रामीण क्षेत्र के इस शिविर मेंमें 60 लाभार्थियों ने अपना चेकअप  करवाते हुए दवाएं प्राप्त किया था।सुमही खुर्द उत्तर प्रदेश के कुशी नगर जिले के ग्रामीण इलाके में फाजिल नजर विकास खंड के 125 गांवों में एक गांव के रुप में स्थित है।  107 घर वाले इस गांव की जन संख्या 842है। यहां काम करने वाले 199 और 643 बेरोजगार लोग रहते हैं

Monday, September 20, 2021

माया महाठगनी नही सृष्टि की संवाहिका भी

माया महाठगनी नही सृष्टि की संवाहिका भी

माया को महा ठगनी कहना जितना उचित है उतना इससे  इतर गरिमामय स्थान माया और महामाया विषयक अवधारणा हमारे सृष्टि और ब्रह्मांड में मिलता है। भगवती आदि शक्ति दुर्गा मां के वैसे तो अनन्त रूप है, अनन्त नाम है, अनन्त लीलाएं हैं। जिनका वर्णन कहने-सुनने की सामर्थ्य मानवमात्र की नहीं है, लेकिन देवी मां के प्रमुख नौ अवतार  आम जन मानस में प्रचलित है। जिनके नाम महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, शाकम्भरी, श्रीदुर्गा, भ्रामरी व चंडिका या चामुंडा है।

योगमाया किसे कहा गया है :-

द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, ठीक उनके पहले मां दुर्गा ने योग माया के रूप में जन्म लिया था। मां दुर्गा का यह दिव्य अवतार कुछ समय के लिए था। योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था। इनके जन्म  के समय यशोदा गहरी नींद में थीं और उन्होंने इस बालिका को देखा भी नहीं था। गर्गपुराण के अनुसार देवकी के सप्तम गर्भ को योगमाया ने ही संकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में पहुँचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ था।  इन्हीं योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर और मुष्टिक आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया, जो कंस के प्रमुख मल्ल माने जाते हैं।।यह कथा प्रायः सब जानते हैं कि प्राचीन काल में महाबली कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह बड़ी धूमधाम से वसुदेव के साथ किया। बहन के विदाई के समय प्रेमवश स्वयं रथ के घोड़ों को हांककर पहुंचाने जा रहा था। उसी समय आकाशवाणी हुई- हे कंस जिस बहन को तू इतने प्रेम पूर्वक पहुंचाने जा रहा है, उसी के आठवे पुत्र के हाथों तेरा वध होगा। आकाशवाणी सुनते ही कंस ने रथ हो रोक दिया। उसकी आंखें क्रोध से रक्त वर्ण (लाल) हो गईं। उसने देवकी को मारने के लिए तत्क्षण म्यान से अपनी तलवार खींच ली। देवकी भय से थर-थर कांपने लगी।

तब वसुदेव ने कंस को समझाते हुए कहा- हे मित्र कंस! इस अबला नारी का वध करने से तुम अपयश के भागी बनोगे। आकाशवाणी के अनुसार तुम्हें इसके आठवे पुत्र से भय है। मैं तुम्हे विश्वास दिलाता हूं कि देवकी का आठवां पुत्र जब जन्म लेगा उसे मैं तुम्हे सौंप दूंगा।कंस को मालूम था कि वसुदेव कभी असत्य नहीं बोलते।  उसने देवकी का वध नहीं किया। उसी क्षण देवर्षि नारद ने जब आकर अनेक प्रकार से कंस को समझाते हुए पृथ्वी पर लकीरें खींचकर बताया कि रेखाओं में से कोई भी रेखा आठवीं हो सकती है।इसी प्रकार देवी का कोई भी पुत्र आठवां हो सकता है।

मूढ़मति कंस ने नारद के वचनों को सुनकर वसुदेव और देवकी को कारागृह में बंद कर दिया और कड़ा पहरा लगा दिया। देवकी के गर्भ से जब प्रथम पुत्र की उत्पत्ति हुई तो पहरेदारों ने जाकर कंस को सूचना दी। कंस उसी समय आया और बालक को ले जाकर पत्थर की शिला पर पटककर मार डाला। इस तरह एक-एक कर उसने देवकी और वसुदेव के छह बालकों की हत्या कर डाली। जब देवकी का सातवां गर्भ हुआ तो भगवती योगमाया ने संकर्षण शक्ति से उस गर्भ को खींचकर गोकुल में निवास कर रही रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। वह बालक पैदा होकर बादमे ‘बलराम’ के नाम से जगत विख्यात हुआ। तदुपरान्त जब आठवें गर्भ के रूप में भगवान श्री कृष्ण जी देवकी के गर्भ में प्रकट हुए, उधर गोकुल में नन्दबाबा के घर भगवती योगमाया कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय कारागृह के सभी पहरेदार योगमाया के वशीभूत होकर गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव की हथकड़ी बेडिय़ां स्वत: खुल गईं। कारागार के दरवाजे अपने आप खुल गये। जब वे बालक कृष्ण को लेकर काली घटाटोप काली अंधियारी रात में यमुना पार करके गोकुल पहुंचे और कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उनके पास सोई कन्या को लेकर लौट आए जो कि उसी समय उत्पन्न हुई थी। जिसका ज्ञान यशोदा को भी नहीं था।

कारागार में पहुंचने पर वसुदेव की हथकड़ी बेडिय़ां पुन: अपने आप लग गईं और जो भगवती योगमाया की दिव्य माया थी। वह कन्या जोर-जोर से रोने लगी। बालिका के रोने की आवाज सुनकर सभी पहरेदार जग गए।  उसी क्षण वे जाकर कंस का सूचना दी। यह सुनकर कि देवकी के गर्भ से कन्या उत्पन्न हुई है। वह भागा हुआ आया। तब देवकी कहने लगी हे भैया इसे मत मारो यह तो कन्या है । मृत्यु भय से आक्रान्त कंस ने देवकी की एक न सुनी और कन्या को उसके हाथ से छीन लिया।।तत्पश्चात उसने उस कन्या को पत्थर पर पटकने के लिए हाथ ऊपर उठाया। आकस्मात वह कन्या उसके हाथ से छूट गई और आकाश में जाकर अष्टभुजी देवी रूप धारण कर अट्टहास करती हुई बोली- अरे मूर्ख! तुझे मारने वाला इस धरती पर जन्म ले चुका है। यह कहकर वह देवी अंतरध्यान हो गयी। वहीं देवी योगमाया के नाम से जगत में विख्यात  हुई है ।

विंध्यवासिनी या योगमाया माँ दुर्गा के एक परोपकारी स्वरूप का नाम है। उनकी पहचान आदि पराशक्ति के रूप में की जाती है। उनका मंदिर उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल में स्थित है।माँ विन्ध्यासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जो की महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं। मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता है।

भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है।

श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ।मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी।

शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है। शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी (नंद बाबा की पुत्री) कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं । इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा है।










Friday, September 10, 2021

दुर्लभ - जटिल शंख लिपि में गुप्त कालीन अभिलेख मिला डाक्टर राधे श्याम द्विवेदी

एटा का एतिहासिक पुरास्थल
एटा के एतिहासिक और भारत सरकार द्वारा संरक्षित बिलसड़ पुरास्थल है जहां से दुर्लभ और जटिल शंख लिपि में गुप्त कालीन अभिलेख मिला है। बिलसड  भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा जिले के अलीगंज प्रखंड का एक गाँव है । यह जिला मुख्यालय एटा से पूर्व की ओर 62 किमी दूर स्थित है।  यह स्थान एटा जिले और फर्रुखाबाद जिले की सीमा में है।
कुमार गुप्त प्रथम का सबसे प्राचीन अभिलेख 415-16 ई. के लाल बलुआ पत्थर के अखंड बिलासड़ पर मिला था। बिलसड उत्तर प्रदेश के एटा जिले में तीन भागों से मिलकर बना एक गाँव है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिलसड में दो उत्कीर्ण स्तंभों का एक मंदिर से सीधा संबंध था, जो अब बर्बाद हो चुका है। शिलालेख का उद्देश्य कार्तिकेय के मंदिर की सिद्धि , उसकी प्रतोली और एक सत्र की स्थापना को रिकॉर्ड करना है । यह गुप्त शासक की वंशावली भी देता है ।बिलसड़ में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त के शासन काल 96 गुप्तसंवत का एक स्तंभ-लेख प्राप्त हुआ था। जिसमें ध्रुवशर्मन द्वारा, स्वामी महासेन (कार्तिकेय) के मंदिर के विषय में किए गए कुछ पुण्य कार्यों का विवरण है- सीढ़ियों सहित प्रतोली या प्रवेशद्वार का निर्माण, सत्र या दान-शाला की स्थापना और अभिलेख वाले स्तंभ का निर्माण किया गया था।।संभवत: चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस स्थान का 'विलोशना' या 'विलासना' नाम से उल्लेख किया है। जो इस स्थान पर 642 या 643 ई. में आया था।
दुर्लभ और जटिल शंख लिपि:-
शंख लिपि प्राचीन लिपियों में से एक है, जो आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। इनमें लिखित अभिलेख आज तक नहीं पढ़े जा सके हैं। भारत तथा जावा और बोर्निया में प्राप्त बहुत से शिलालेख शंख लिपि में हैं। इस लिपि के वर्ण 'शंख' से मिलते-जुलते कलात्मक होते हैं। इसीलिए इसे शंख लिपि कहते हैं। शंख लिपि को विराटनगर से संबंधित माना जाता है। उदयगिरि की गुफाओं के शिलालेखों और स्तंभों पर यह लिपि खुदी हुई है। इस लिपि के अक्षरों की आकृति शंख के आकार की है। प्रत्येक अक्षर इस प्रकार लिखा गया है कि उससे शंखाकृति उभरकर सामने दिखाई पड़ती है। इसलिए इसे शंख लिपि कहा जाने लगा। राजस्थान के जयपुर में स्थित बिजार अथवा बीजक की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में ऐसी कंदराएं हैं, जिनमें एक रहस्यमय लिपि उत्कीर्ण है। इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। शंख लिपि के नाम से जानी जाने वाली इस लिपि के लेख बड़ी संख्या में बीजक की पहाड़ी, भीम की डूंगरी तथा गणेश डूंगरी में बनी गुफाओं में अंकित हैं। इन लेखों के अक्षर शंख की आकृति के हैं। वैज्ञानिकों को इस लिपि के अभिलेख भारतीय उपमहाद्वीप के भारत, इण्डोनेशिया, जावा तथा बोर्निया आदि देशों से मिले हैं, जिनसे यह धारणा बनती है कि जिस तरह किसी कालखंड में सिंधु लिपि जानने वाली सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई थी, उसी तरह शंख लिपि जानने वाली कोई सभ्यता किसी काल खण्ड में भारतीय उपमहाद्वीप में फली-फूली। ये लोग कौन थे? इनका कालखंड क्या था? आदि प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं दिया जा सका है। भारत में शंख लिपि के अभिलेख उत्तर में जम्मू- कश्मीर  के अखनूर से लेकर दक्षिण में सुदूर कर्नाटक तथा पश्चिमी बंगाल के सुसुनिया से लेकर पश्चिम  गुजरात  के  जूनागढ़ तक उपलब्ध हैं । ये अभिलेख इस लिपि के अब तक ज्ञात विशालतम भण्डार हैं। राजगीर की प्रसिद्ध सोनभंडा की गुफाओं में लगे दरवाजों की प्रस्तर चौखटों पर एवं भित्तियों पर शंख लिपि में कुछ संदेश लिखे हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। बिहार में मुण्डेश्वरी मंदिर तथा अन्य कई स्थानों पर यह लिपि देखने को मिलती है। मध्य प्रदेश में उदयागिरि की गुफाओं में, महाराष्ट्र में मनसर से तथा बंगाल एवं कर्नाटक से भी इस लिपि के लेख मिले हैं। इस लिपि के लेख मंदिरों एवं चैत्यों के भीतर, शैल गुफाओं में तथा स्वतंत्र रूप से बने स्तम्भों पर उत्कीर्ण मिलते हैं।
आगरा सर्किल की नवीन उपलब्धि:-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा सर्किल के अधिकारियों की टीम ने एटा के बिलसड़ में वैज्ञानिक ढंग से उत्खनन में गुप्त कालीन 5वीं सदी के मंदिर के अवशेष खोज निकाले हैं। लाल बलुई पत्थर की मंदिर की सीढ़ियां और शंख लिपि में लेख प्राप्त हुआ है, जिस पर सम्राट कुमार गुप्त के लिए श्री महेंद्रादित्य लिखा हुआ है। बिलसड़ के टीले पहले से ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित साइट है, लेकिन वैज्ञानिक ढंग से उत्खनन में मिले इन अवशेषों से बिलसड़ का समृद्धशाली इतिहास सामने आ पाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार के नेतृत्व में पुरातत्वविदों की टीम ने गुप्तकालीन 5वीं सदी के अवशेषों को जमीन के नीचे से निकाला है। यहां लाल पत्थर का फर्श और पांच सीढ़ियां मिली हैं, जो मंदिर की हैं। गुप्तकालीन सम्राट कुमार गुप्त ने 415 ई. से 455 ई. तक शासन किया था। उसी दौरान उन्हें श्री महेंद्रादित्य की उपाधि दी गई थी। अति प्राचीन शंख लिपि में इस उत्खनन के दौरान शिलालेख पर यही श्री महेंद्रादित्य लिखा हुआ मिला है।
पुरातत्वविदों के मुताबिक बिलसड़ में और भी वृहद इतिहास जमीन में दबा हुआ है। साइंटिफिक क्लीयरेंस में टीले के आसपास और भी अवशेष मिल सकते हैं। इससे पहले 1960 के दशक में बिलसड़ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उत्खनन किया था, जिसमें लाल बलुई पत्थर के स्तंभ और उस पर लेख मिले थे। 

Tuesday, September 7, 2021

हमारे परिवार के तीन शिक्षक गुरु


हमारे परिवार के तीन शिक्षक गुरु हुए हैं इनमे प्रथम मोहन प्यारे द्विवेदी  "मोहन" द्वितीय डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय "सरस" और तृतीय पंडित घन श्याम दूबे जी हुए । उनके कुशल निर्देशन मे आज एक सम्मान जनक स्थिति में अपने परिवार का पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा दे सके हैं। आज शिक्षक दिवस पर प्रथम दो स्वर्गीय आत्माओं को नमन करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। तीसरे हमारे अग्रज भ्राता का आशीर्वाद हम अपने दिन ब दिन के अपने जीवन में अनुभव करते हैं।

1.मोहन प्यारे द्विवेदी  "मोहन"

सुकवि आचार्य पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी "मोहन" एक सुप्रसिद्ध आशु कवि थे। उन्होंने प्राइमरी विद्यालय दुबौली दूबे और  करचोलिया का निर्माण कराया। इस क्षेत्र में शिक्षा की पहली किरण इसी संस्था के माध्यम से फैली थी। पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी का जन्म संवत 1966 विक्रमी (1 अप्रॅल 1909 ई.) में उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। पंडित जी ने कप्तानगंज के प्राइमरी विद्यालय में प्राइमरी शिक्षा तथा हर्रैया से मिडिल स्कूल में मिडिल कक्षाओं की शिक्षा प्राप्त की। बाद में संस्कृत पाठशाला विष्णुपुरा से संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रथमा तथा संस्कृत पाठशाला सोनहा से मध्यमा की पढ़ाई पूरी किया था।

द्विवेदी जी परिवार का पालन पोषण तथा शिक्षा के लिए  लखनऊ चले गये थे। उन्होंने छोटी मोटी नौकरी करके अपने बच्चों का पालन पोषण किया था। पंडित जी ट्यूशन पढ़ाकर शहर का खर्चा चलाते थे। पंडित जी ने लखनऊ के प्रसिद्ध डी. ए. वी. कालेज में दो वर्षों तक अध्यापन भी किया था। घर की समस्याएँ बढ़ती देख उन्हें लखनऊ को छोड़ना पड़ा। गांव आकर पंडित जी अपने गांव दुबौली दूबे में एक प्राथमिक विद्यालय खोला जिसका स्थानीय स्तर पर विरोध होने से उसे करचोलिया स्थानतरित करवा लिया था।

2.डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय सरस

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के सदर तहसील के बहादुर पुर बलाक में नगर क्षेत्र में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के आस पास  इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में  भारद्वाज गोत्रीय में इस वंश के पूर्वजों का आगमन के हुआ था  नगर के राजा उदय प्रतापसिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त एक फौजी अफसर थे।इसी कुल परम्परा में सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था बाद में डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टरकालेज मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में  पहली नियुक्ति पाये थे वह जून 1965 तक अध्यापन किये थे  इसी बीच मार्च1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों की एक  बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ था ।डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधान अध्यापक हुए 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का  निर्वहन भी किये।अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से  एम. ए. करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किये थेवे अच्छे विद्वान कवि , शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक  5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका  है। उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुई है। उन्होंने 'बाल त्रिशूल' विधा का प्रवर्तन किया।वह बाल पत्रिका ' बालसेतु' (मासिक हिंदी बालपत्र);का संपादन औरप्रकाशन किया. वे बाल साहित्यकारों के लिए भी एक सेतु जैसे थे .अपने खर्चे पर बस्ती में बाल साहित्यकार सम्मलेन  किया करते थे.बहुत मिलनसार और सह्रदय इंसान थे ।वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहेअगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही हैसेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या केनयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर रहने  लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह   निरन्तर भगवत् नाम व चर्चा से जुड़े रहे।70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 31 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। 1 अप्रैल 2012 को राम नवमी के दिन सरयू के पावन तट पर उनकी अन्त्येठि सम्पन्न हुई थी । उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी। 

मैंउनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं। श्रद्धेय सरस जी के 80वें जयन्ती के पावन अवसर पर10 अप्रैल 2021को डा. सरसजी का दौहित्र डा.सौरभ द्विवेदी ने महर्षि  वशिष्ठ चिकित्या महाविद्यालय बस्ती में सीनियर रेजिडेन्ट के रुप में अपना योगदान ज्वानिंग दिया है और प्रथम दिन ही एक दुष्कर शल्य चिकित्सा करके अपने वरिष्ठों को प्रभावित किया है। साथ ही नोवा हॉस्पिटल के माध्यम से आम जन मानस की सेवा में लगे हैं। 

3 . पंडित घन श्याम दूबे

उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खंड के दुबौली दूबे गांव के पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी जी के एक कुलीन परिवार में पंडित घन श्याम दूबे जी का जन्म 24अप्रैल 1954ई में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा प्राइमरी पाठशाला करचोलिया, जूनियर शिक्षा फैजाबाद  जीआईसी में हाई स्कूल शिक्षा गाजीपुर सिटी जीआईसी में इंटर शिक्षा किसान इंटर कालेज मरहा कटया बस्ती बी ए जौनपुर के टीडी कालेज और फैज़ाबाद के साकेत कालेज से, एम ए  और पीजी डीपीए की डिग्री गोरखपुर विश्व विद्यालय से तथा बीएड डिग्री किसान डिग्री कालेज बहराइच में हुआ था। आप जनता उच्चतर माध्यमिक नगर बाजार बस्ती में 1979 से 2016 तक सहायक अध्यापक के रूप में अपनी सेवा प्रदान की थी।

Saturday, September 4, 2021

भाव - - - - प्रवाह: डाक्टर राधे श्याम द्विवेदी

❤️🎈🥳💗😆💟👄🏃🚴🏋️
संयुक्त परिवार की सनातन संस्कृति पर
एकल परिवार का स्वार्थ भारी पड़ता है।
शिव के शिवत्व की असीम सृष्टि पर 
शत चंडी का प्रकोप भारी पड़ता है।
पलपल जिन्दगी दिया ऊपर वाले ने
नीचेवालों का किलकिल भारी पड़ता है।
तिनका तिनका जोड़कर महालय बनाया जो
रूम फ्लैट वालो का रहना भारी पड़ता है।।1।।
🍣🧁🍧🚨⚓🧭🛑🚦
चंचल चित्त स्थिर नहीं रहता 
दुनिया को सत्य मानता है।
ममता मोहफास में भ्रमता 
चित्त ना चैतन्यता लाता है।
वेदना व्यक्त नही हो सकती 
संवेदना संवेदन ना करती है।
हर प्राणी का प्रारब्ध अलग है 
रब भी हेरफेर ना करती है।।2।।
❤️🖤♈♓♐❌☑️
वो हमें खुश रखें यदितो आशीष पाएंगे
वो हमें दुख भी दें बददुवा नहीं पाएंगे।
हम तो शिव अंश है गरल भी पी जाएंगे
कितना भी दर्द मिले आह ना कह पाएंगे।
हर अच्छे की पहचान सबको होती नहीं
हर एक चमक में रोशनी ही होती नही।
उनकी खुशी में दिल खुशनुमा हो जाता
उनके दुःख में भी आह निकल जाता।।3।।

Thursday, September 2, 2021

माया महा ठगनी हम जानी।

मेरी भगिनी का नाम मेरे पिता जी ने माया क्यों रखा था? यह हम नहीं जानते हैं। हां उनके द्वारा बार बार माया महा ठगनी हम जानी ,कहने को हम जरुर असामान्य मानते थे। इसे उनका भगिनी को दिया जाने वाला लाड प्यार भी मानते थे। चूंकि अब जब भगवान ने पिता जी तरह मेरी भगिनी को हम लोगों से छीन कर अपने श्री चरणों में स्थान दे दिया है तो कबीरदास जी के इस वचन की सत्यता परखने का बिचार आया है। सर्व प्रथम हम कबीरदास जी के मूल पद को उद्धृत कर रहे है । तत्पश्चात उस पद के उद्देश्य परअपना विचार करेंगे।

माया महा ठगनी हम जानी।

तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।।

केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।

पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।

योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।

काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।।

भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा  के ब्रह्माणी।।

कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।

भावार्थ:-माया है क्या ? जो अभी है और अभी नहीं है ,नित बदलती रहती है हमारे शरीर की तरह ,जो म्यूटेबिल है वह माया है। जो सत्य भी नहीं है असत्य भी नहीं है और यह दोनों भी नहीं है ,वह माया है।

जगत को मिथ्या कहा गया है जगत मिथ्या नहीं है ,उसके साथ हमारा लेन देन  है ट्रांजेक्शन है वह मिथ्या कैसे हो सकता है। जगत स्वयं परमात्मा की अभिव्यक्ति है। उससे अलग नहीं है।

माया परमात्मा की शक्ति है लेकिन जीव को विमोहित किये रहती है। माया को ही प्रकृति (त्रिगुणात्मक प्रकृति , सतो -रजो- तमो गुणी सृष्टि )कहा गया है। 

ईश्वर , जीव और माया अनादि हैं। जीव माया के अधीन है। जीव और माया दोनों ईश्वर के अधीन है। माया से हमारे विमोहित होने का कारण हमारा अहंकार है। हम तो कृत हैं परमात्मा की औरअपने को कर्ता मानने बूझने लगते है।  हम न कर्ता हैं न भोक्ता ,भुक्त हैं। कर्ता प्रकृति के तीनों गुण हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ अपने विषयों में आसक्त हो जाती हैं। हम आनंद को बाहर ढूंढने लगते हैं।जबकि आनंद तो हम स्वयं है।  आनंद अंदर की यात्रा है हम इसे बाहर ढूंढ रहे हैं।  यही हमारे आत्म -विमोह का कारण है। जबकि  सृष्टि भी कृत है और हम भी इससे जुदा नहीं हैं । माया के वशीभूत समस्त सृष्टि है और ब्रह्म से प्रेरित माया सब को अपने जाल में फंसाकर रखता है। कबीरदास जी को इसका सत्य पता चल गया था । वह जगत को आगाह किए फिरभी मानव चेतना उसे अंगीकार करने में हिचक दिखा रहा है।





मानवता की अवनति : डॉक्टर राधे श्याम द्विवेदी

 
आज हम जिस आधुनिक समय जी रहे हैं उसमे दुनिया के हर हिस्से में जबरदस्त प्रगति हो रही है। यांत्रिक संसाधनों का एक नेटवर्क हर जगह फैला हुआ है। हर कोई आगे निकलने के लिए अंधाधुंध भागदौड़ कर रहा है, लेकिन क्या इंसान सुखी हो रहा है?  नहीं, बल्कि मनुष्य अपनी जड़ों से दूर जा रहा है। मनुष्य एक तनावपूर्ण वातावरण में भटक रहा है। मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह अपने फायदे के लिए किसी को भी नुकसान पहुँचाता और खुद को सही ठहराने का प्रयास करता रहता है। यदि हमारे पास मानवता नहीं है, तो हमें मानव कहलाने में शर्म आनी चाहिए। हम इंसान नहीं हैं अगर हमारी आंखों के सामने किसी निर्दोष मासूम के साथ बुरा होता है और हमारे मन में करुणा पैदा नहीं होती है।
आज के आधुनिक समय में इंसान अपने कपड़ों, पैसों से जाना जाता है, अपने कर्मों से नहीं, क्यों?  मासूम निष्पाप मुस्कान अब सिर्फ एक छोटे बच्चे के चेहरे पर ही देखी जा सकती है। सम्मान और संस्कार समाप्त हो रहे हैं। एक इंसान, जीतना शिक्षित, सभ्य और उन्नत दिखता है उतना ही वह हैवानियत से भरा हुआ होता है। आज हम किसी भी मीडिया के माध्यम से समाचार सुनते या देखते हैं, तो पता चलता हैं कि समाज में कितनी अमानवीय घटनाएं हो रही हैं। कई गंभीर घटनाओं को तो समाज के सामने कभी उजागर ही नहीं किया जाता है। मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है । प्रकृति कभी भी मनुष्य के साथ भेदभाव नहीं करती है लेकिन मनुष्य करता है। पैसा आजकल भगवान की तरह हो गया है। भ्रष्टाचार, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और कमजोरों पर अत्याचार, जातिगत भेदभाव, धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराध हर दिन बड़ी संख्या में हो रहे हैं। आज की मानवजाति वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही है। हम चाँद पर भी पहुँच चुके हैं, लेकिन हमें यह नहीं पता कि हमारे पड़ोस में कौन है।
नौकरियों में भ्रष्टाचार, हर जगह राजनीतिक हस्तक्षेप, सिफारिश, भेदभाव, अमीर और गरीब के बीच की बढ़ती खाई,  समाज में असंतोष को बढ़ावा देती है। एक भ्रष्ट व्यक्ति पूरे समाज को संक्रमित करता है, कितने ही जीवन बस संघर्ष करके ही  हमारी आंखों के सामने खत्म होते दिखते हैं। यहां आम आदमी को अपने अधिकारों के बारे में भी जानकारी नहीं है, जिसका फायदा धुर्त लोग उठाते हैं।
समाज में अज्ञानता मुख्य समस्याओं में से एक है, कई बार ऐसी समस्याओं की अनदेखी करने के कारण गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। एक ओर, होटल, शादी और कार्यक्रमों में बड़ी मात्रा में बचे हुए भोजन को फेंक दिया जाता है, और दूसरी ओर, आज बहुत बड़ी आबादी भूख से मर रही है। कुछ लोग लक्जरी जीवन के लिए करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करते हैं, कुछ लोगों को बुनियादी आवश्यकताओं के लिए अर्थात थोडे-से पानी के लिए हर दिन कई किलोमीटर चलना पड़ता है, कुछ लोग पानी के महत्व को नहीं समझते हैं और पानी को बर्बाद करते हैं। 
 सडक़ के किनारे एक दुर्धटनाग्रस्त बीमार असहाय व्यक्ति मदद के लिए पुकारता रोता है लेकिन कोई मदद नहीं करता है, बल्कि वे वीडियो बनाने और उसकी तस्वीरें लेने में व्यस्त हो जाते हैं । समाज में लगातार अनाथालय, वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं और लोगों के संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और छोटे घरों में बदल रहे हैं।
श्रेष्ठत्व और ईष्र्याभाव मानवता के दुश्मन: - आज के मनुष्य में, मैं और मेरा, केवल यह सोच दिखती हैं, अर्थात्, जो स्वयं के लिए सोचते हैं, उनमें दूसरों के प्रति ईष्र्याभाव बढ़ गया है। दूसरों की सफलता का तिरस्कार करने और दूसरों के दुखों में खुशी मनाने और दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है। रिश्तों, दोस्ती, परिवार, आस-पड़ोस, कार्यस्थल, कार्यालय, हर क्षेत्र में कहीं भी यही बात होती है, आपस में गुटबाजी करके शीत युद्ध लड़ते रहते हैं, आखिर लोग ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? यदि किसी व्यक्ति में मानवता नहीं है, तो वह किस प्रकार का मानव है? अधिकांश अपराध ईष्र्या और श्रेष्ठता की भावना से किए जाते हैं जिसमें सज्जन उलझ जाते हैं, बेईमान सफल हो जाते हैं और ईमानदार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते ही रह जाता हैं। माता-पिता दस बच्चों की देखभाल कर सकते हैं लेकिन दुनिया में इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि दस बच्चे एक साथ अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकते। 
इंसानियत मर रही है:- आज कई जगहों पर तो इंसानों की ज़िंदगी जानवरों से भी बदतर है।जितने जानवर एक दूसरे से नहीं लड़ते उससे अधिक इंसान छोटी-छोटी बातों पर लड़ते- मरते हैं। मानवता, समझाने की नहीं बल्कि स्वयं को समझने की बात है। सभी प्रकार के भेदभाव, जातिवाद, श्रेष्ठता से ऊपर उठकर मानवता के दृष्टिकोण से मानवजाति को देखें।
मानवता से बढकर दुनिया में कुछ नही: - कोई भी धर्म मनुष्य को दूसरे धर्मों से घृणा करना नहीं सिखाता, अर्थात् सभी धर्म न्याय, शांति और सद्भाव सिखाते हैं। लेकिन केवल इंसान ही धर्म-धर्म में अंतर देखते हैं। हम इंसान सब एक समान हैं, तो यह भेदभाव क्यों? दुनिया भर के गांवों और शहरों में जातिगत भेदभाव की गंभीर घटनाएं हो रही हैं, जिससे कई बच्चे अनाथ और बेघर हो गए हैं। आज का मनुष्य मानवता की ओर रुख न करते हुए दानवता की ओर बढ़ रहा है। दुनिया में हर जगह अच्छे कामों की सराहना करनी चाहिए और बुरे कामों को रोकना चाहिए। सभी प्राणियों में मनुष्य के सोचने और समझने की क्षमता अधिक होती है, लेकिन फिर भी इंसान कभी-कभी जानवरों से भी बदतर घटीया  काम करता है। प्रेम से लोगों का मन जितना, दया, करुणा और निस्वार्थ सेवा दुनिया में मानवता का आधार है। दुनिया में मानवता से बढकर में कुछ नही है।
मानवता अभी भी जीवित है: - हमारे देश की भूमि महान समाज सुधारकों, वीर क्रांतिकारियों और महान व्यक्तित्वों से भरी हुई है। डॉ. अंबेडकर, मदर टेरेसा, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, स्वामी विवेकानंद, संत समाज के कई लोगों ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। आज भी, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में डॉ. आमटे परिवार, मेलघाट (अमरावती महाराष्ट), में डॉ. कोल्हे दंपत्ति, सिंधुताई सपकाल, मेधा पाटकर जैसे कई सामाजिक कार्यकर्ता मानवता को कई वास्तविक अर्थों में जीवित रखे हुए हैं, चाहे तो ये व्यक्तिगण दुनिया में समृद्धि और विलासिता का जीवन जी सकते हैं लेकिन उन्होंने समाजसेवा के लिए जीवन जीने का फैसला किया। रोते हुए चेहरे पर मुस्कान लाना ही असली खुशी है, जो आध्यात्मिक खुशी किसी भूखे व्यक्ति को भोजन देने से मिलती है, आप उस खुशी को कही खरीद नहीं सकते। 
मानव होने के कर्तव्य को पूरा करें: - हम महान नहीं तो कम से कम मानव तो बन सकते हैं। आज, डॉ.ए. पी.जे. अब्दुल कलाम हमारे बीच नहीं हैं, उन्होंने अपने जीवन में कोई बडा धन अर्जित नहीं किया लेकिन देश के लिए, समाज के लिए, मानवता के लिए उन्होंने जो किया, उसे हम कभी नहीं भूल सकते, वह हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे। आइए हम सभी आज शपथ लें कि हर दिन जितना संभव हो, इंसानियत के लिए कुछ जरूर करेंगे। कभी भी अपने पद का दुरुपयोग न करेंगे, अन्याय का विरोध करेंगे और न्याय का साथ देंगे, हमेशा नियमों का पालन करेंगे, सर्वधर्म समभाव, एकता अखंडता, एक देश एक समाज के लिए काम करेंगे, आप कभी किसी का हक नहीं छीनेंगे, भ्रष्ट व्यवहार और मिलावटखोरी से दूर रहेंगे एंव हर सप्ताहांत में अपने स्वयं के व्यवहार संबंधी कार्यों का मूल्यांकन करेंगे। हमारी छोटी सी मदद देश में बहुत बडी सफलता दिला सकती है और कई लोगों की जान बचाकर जीवन को खुशहाल बना सकती है। 
हम क्या करें :- कर्तव्यनिष्ठ बनें, जिम्मेदारी को समझें, हमेशा स्वाभिमान के साथ रहें, अभिमान के साथ नहीं, किसी के प्रति कभी भी घृणा की भावना न रखें, किसी व्यक्ति को उसके व्यवहार, कर्म, गुणों से पहचानें न कि उसके धन या महंगी उपस्थिति से। आज भी आपको समाज के हजारों लोग मिल जाएंगे जो देश और विदेश में अपनी सफलता का बिगुल बजाने के बावजूद अब ग्रामीण क्षेत्र में एक गुमनाम और बहुत सादा जीवन जीकर पर्यावरण और असहाय लोगों की मदद कर रहे हैं। जीवन में हमेशा उच्च आदर्श का पालन करें, मानव जन्म मिला  है, तो मानव के रूप में जिएं। सभी प्रकार के आडंबर से ऊपर उठकर मानवता को समझें और अपने जीवन में ढालने का प्रयास करें।