Saturday, February 23, 2019

विश्वेश्वर वत्स पाल बस्ती के छन्दकार ( 14 ) डा. राधेश्याम द्विवेदी


विश्वेश्वर वत्स पाल का जन्म सन्तकबीर नगर ;उत्तर प्रदेशद्ध के नगर पंचायत हरिहरपुर में फागुन कृष्ण 13 संवत 1880 विक्रमी को हुआ था।  विश्वेश्वर वत्स पाल राजा महसों के राज्य के वंशज थे। वे एक समृद्धशाली तालुक्केदार थे। विश्वेश्वर वत्स पाल साहित्यिक वातावरण में पले थे । विश्वेश्वर वत्स पाल जी के लड़के का नाम रंगपाल था। रंगपालजी अपने पिताजी व कुल के बारे में बीर विरुद में इस प्रकार लिखते है -
क्षत्रिय प्रवर सूर्यवंश राम चन्द्र कुल
ठाकुर प्रसाद पाल वीर वर दानिये।
ईश्वरी प्रसाद पाल तिनके तनय अरु
तिनके विश्वेश्वर बक्श पाल जानिये।
तिनको है सुत रंगपाल नाम धाम ग्राम
हरिहरपुर सरवार देश मानिये।
ग्रंथ बीर विरुद बखान्यो विक्रमीय शुभ
सम्बत उन्नीस सौ उन्यासी सुख खानिये।।
विश्वेश्वर वत्स पाल का रहन सहन रजवाड़ों जैसा था। उपहार नामक संदर्भ ग्रंथ में उनके बारे में लिखा है बाबू विश्वेश्वर वत्स पाल ब्रज भाषा के प्राचीन शैली के अपने समय के श्रेष्ठ कवि थे।वे सभी रसाों में रचना करते थे। आपकी भाषा प्रसाद गुण पूर्ण एवं मनोहारी तथा अलंकारिक होती थी।
आप श्रृंगार रस के मर्मी कवि थे। संगीत के प्रति उनका अटूट अनुराग था।जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उनके पुत्र रंगपाल पर पड़ा  उनका एक मात्र श्रृंगार शतक रचना मिलती हैं इसमें लगभग 125 छन्द बताये जाते है। “उपहार” में प्रकाशित एक छन्द इस प्रकार है -
कहिये क्यों विसेसर और ई और छनै छन तौ छवि छैली परै।
सहजैसीं सिंगारन व नियरे जू निकाई रती मुरझैली परै।
विहरैं सखियां संग आंगना मैं विहंस दुति दामिनी मैली परै
बलिचन्द की चांदनी पै छिटकी मुख चंद की चांदनी फैली परै।।
“बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान” नामक शोध प्रवंध में बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि डा. मुनिलाल उपाध्याय ”सरस” ने  लिखा है लिखा है  “ विश्वेश्वर वत्स पाल सुकवि ऊंचे हैं। ब्रज भाषा का शव्द शव्द अपने में सरस और रसासिक्त है। छन्दों की सुधराई और कथ्य कला का शिल्प विधान बड़ा ही मनोहारी है। बाबू विश्वेश्वर वत्स पाल का ही प्रभाव रहा कि रंगपालजी बस्ती छन्द परम्परा के मानक स्तम्भ के रुप में प्रकाशित हुए।“




Friday, February 22, 2019

रामलोचन भट्ट बस्ती के छन्दकार डा. सरस की दृष्टि में (भाग 13)


समीक्षक : डा. राधे श्याम द्विवेदी नवीन 
रामलोचन भट्ट का जन्म1885 विक्रमी में ग्राम सिंगरामऊ धनघटा संतकबीर नगर उत्तर प्रदेश में हुआ था। मलोली वंश के कवि राम गरीब चतुर्वेदी आपके समकालीन कवि थे। वे एक ख्यातिप्राप्त पंण्डित भी थे। राजे रजवाड़े तथा हाकिम हुक्काम के स्वागत तथा मंगलिक अवसरों पर वे हास्य और श्रृंगार रस की सुन्दर कविता पढ़ते थे। वे रीति परम्परा के अच्छे छन्दकार थे। उनकी भाषा ब्रज तथा राजदरबारी थी। उनकी कोई रचना ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। कुछ फुटकर छन्द अवश्य मिले है। इनमें भक्ति रस प्रधान छन्द भी मिले है। उन्होने कवि सेनापति की कवित्त रत्नाकर की तरह रामचरित रत्नाकर नामक ग्रंथ का प्रणयन किया था। इसमें 108 घनाक्षरी एवं मनहरण छन्द थे। इनकी इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि को बस्ती के प्रसिद्ध कवि लक्षिराम ने भी देखा था। रामचरित रत्नाकर का एक छन्द प्रस्तुत है-
दीजै जौ सलाह वोरि वारिद विदारि डारौ
मारौं बागवान जातुधान प्रतिकूल को।
लपकि लंगूर से त्रिकूट के कंगूरो सबै
फोरी डारौ अबै जैसो तूमरी मजूर को।
मेघनाद आदि राम लोचन बूझैं बद
जारि डारौं लंका जो पै हुकुम हुजुर कौ।
नखन नकोट नोथि चोथि डारौं दांतन सो
रद्दी करि डारौं आज गद्दी बेस हूर कौ।।
रामचरित रत्नाकर छन्द परम्परा की एक शसक्त रचना है। राम लोचन जी लोक जीवन के अधिक सन्निकट रहते थे। उनके छन्दों में लोक पक्ष का चित्रण स्वाभाविक है। कवि रामलोचन का जीवन यायावरी था। जीवन के बहुमुखी पक्षों का उन्हें प्रयोगात्मक ज्ञान था। मौसम के अनुसार छन्द बनाने में वे पटु थे। सभा सोसाइटियों में आदर पाने के कारण वे अपना सम्पर्क सूत्र राजाओं से बनाये रखते थे। उनकी रचना में नीति परम्परा भी देखने को मिलता है।ब्रह्म भट्ट होने के कारण चाारण परम्परा के प्रकृति जनों के गुणगान के साथ उनमें भक्ति भाव भरी आस्था है। उनका एक फुटकर छन्द इस प्रकार है-
बाजे -बाजे सज्जन सप्रेम परमेश्वर के
सेवा में रहत बाजे त्रिविध  समीर को।
बाजे धर्म कर्म में पवित्र रहौ आठो याम
बाजै परस्वारथ में राखत शरीर को।
बाजै राम लोचन कुरान औ पुरान पढौ
 बाजे - बाजे काहू के न गुरु के न पीर के।
बाजे द्विजदेव जानैं मानैं कवि कोविद को
ज्ञान उर आनै बाजे रचित उसीर को।।
“बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान” नामक शोध प्रवंध में बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि डा- मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस” ने सुकवि रामलोचन भट्ट का विशद वर्णन प्रस्तुत कर उन्हें साहित्य क्षितिज पर उद्घाटित किया है। डा. सरस जी के अनुसार “ सुकवि रामलोचन भट्ट जनपदीय छन्द परम्परा के आदिचरण के बहुचर्चित कवि थे। “उपहार “आदि जनपदीय अभिलेखों में उनका नाम आया है। ब्रज भाषा के कवि के रुप में अपने समय में इन्हें अच्छा स्थान मिला है।“