Spirituality, Dhruv Tara, Mythological story and Scientific Facts: हिंदू धर्म में सूर्य, चंद्रमा, आकाश, तारे, नदी, पर्वत आदि सभी से पौराणिक और आध्यात्मिक कहानियां जुड़ी हुई है. ध्रुव तारा का वर्णन भी पौराणिक कथाओं मे मिलता है. जिसमें बताया गया है कि कैसे साधारण सा बालक ध्रुव तारा बन जाता है.


ध्रुव तारा की पौराणिक कथा


विष्णु पुराण के अनुसार, प्राचीन समय में उतान्पाद नाम का एक राजा था, जिसकी दो पत्नियां थी. एक का नाम सुनीति और दूसरी का नाम सुरुचि था. बालक ध्रुव सुनीति का संतान था और सुरुचि के पुत्र नाम उत्तम था. सुरुचि चाहती थी कि उसका पुत्र उत्तम ही उत्तराधिकारी बने. इस कारण सुरुचि ध्रुव और सुनीति दोनों से ईर्ष्या करती थी. सुनीति, सुरुचि से बड़ी थी और उसका बेटा ध्रुव भी उत्तम से बड़ा था.ऐसे में उत्तराधिकारी बनने का अधिकार भी ध्रुव को था. लेकिन सुरुचि अपने बेटे उत्तम को उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी, जोकि संभव नहीं था.


एक दिन जब ध्रुव अपने पिता की गोद में जाकर बैठा तो सुरुचि ने यह कहकर उसे गोद से उतार दिया कि तुम इसके लायक नहीं हो! इससे ध्रुव को अत्यंत दुखा हुआ. ध्रुव ने यह बात अपनी मां सुनीति को बताई और कहा- हे माते! मुझे पिता की गोद में बैठने क्यों नहीं दिया गया? तब सुनीति ने कहा, बेटा अगर गोद में ही बैठना है तो नारायण की गोद में बैठो. वे सबके पिता हैं.


ध्रुव ने कहा- मां वो कहां मिलेंगे. मां सुनीति ने उत्तर की ओर दूर पहाड़ी की तरफ इशारा किया. यह सुनकर ध्रुव उत्तर की ओर अकेले ही निकल पड़ा. वहां उसे नारदमुनि मिले. उन्होंने ध्रुव को आगे जाने से रोका, लेकिन वो नहीं माने. ध्रुव ने नारदमुनि से भगवान नारायण से मिलने का रास्ता पूछा.


नारदमुनि बोले- तुम धैर्य रखो बालक, नारायण तुम्हें अवश्य मिलेंगे. इसके बाद नारदमुनि ने ध्रुव को ध्यान करने का तरीका बताया. ध्रुव उसी समय वहां भगवान नारायण के ध्यान के लिए बैठ गया. ध्रुव के दृढ़ मनोबल से आसपास के विस्तार में ऊर्जा बढ़ने लगी. ऊर्जा के बढ़ने का आभास आसपास के ऋषिमुनियों को भी हो गया. ऋषिमुनियों को लगा कि कोई महान व्यक्ति ध्यान में लीन है. लेकिन जब सभी वहां पहुंचे तो ध्रुव को देखकर हैरान रह गए.


ध्रुव के साथ सात ऋषिमुनियों ने भी किया ध्यान


नारदमुनि ने ध्रुव को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र के जाप की विधि बताई थी. ध्रुव ने पूरे छह माह तक कठिन तपस्या की. बालक ध्रुव के साथ सात ऋषिमुनि भी भगवान नारायण का ध्यान करते रहे. अंत में भगवान नारायण ने ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए. भगवान ने कहा- ‘है बालक! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं, क्या चाहिए तुम्हे?’


ध्रुव के साथ सात ऋषिमुनियों को भी मिला आकाश में स्थान


ध्रुव ने कहा- ‘मुझे मेरे पिता की गोद में बैठने नहीं दिया जाता है. मेरी मां कहती है आप इस सृष्टि के पिता हैं. मैं आपकी गोद में बैठना चाहता हूं.’ भगवान नारायण बोले- ‘आकाश ही मेरी गोद है मैं तुम्हे हमेशा के लिए अपनी गोद में स्थान देता हूं.’ इसके बाद भगवान नारायण ने ध्रुव को अपनी गोद में बिठाया और मरणोपरांत ध्रुव तारा बनने का वरदान दिया.


इसी के साथ भगवान नारायण ने उन सात ऋषिमुनियों को भी ध्रुव की रक्षा के लिए आसमान में उसके आसपास स्थान दिया, जिन्होंने ध्रुव के साथ तपस्या की. ध्रुव के दृढ़ मनोबल के कारण ही आसमान में ध्रुव तारा (dhruv tara) स्थिर है और कभी भी अपनी जगह से नहीं हिलता.


यह तो थी साधारण से बालक ध्रुव के ध्रुव तारा बनने की आध्यात्मिक व पौराणिक कहानी. लेकिन ध्रुव तारा को लेकर विज्ञान क्या कहता है, आइये जानते हैं.

ध्रुव तारा और विज्ञान:-

  • ध्रुव तारा, जिसका बायर नाम ‘अल्फ़ा उर्साए माइनोरिस’ है. यह तारा मंडल का 45 वां सबसे रोशन तारा है.

  • अंग्रेजी में इसे ‘पोल स्टार’ कहा जाता है. आसमान में उत्तर की ओर दो सबसे चमकता हुआ तारा दिखता है, उसे ध्रुव तारा कहा जाता है.

  • ध्रुव तारा पृथ्वी से लगभग 390 प्रकाशपर्व की दूरी पर है. उत्तरी पोल यानी ध्रुव से यह एक जगह स्थिर प्रतीत होता है.

  • ध्रुव तारा खगोलीय गोले के उत्तरी ध्रुव के निकट स्थित है. इसलिए दुनिया के अधिकतर जगहों से ध्रुव तारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ऊपर स्थित दिखाई देता है.

  • पृथ्वी से आपको ध्रुव एक छोटा सा तारा प्रतीत होता होगा, लेकिन यह सूर्य से भी बड़ा है.

  • वैज्ञानिक के अनुसार ध्रुव तारे का व्यास सूर्य से 30 गुना अधिक है और भार में भी यह सूर्य से 7.50 गुना अधिक है. वहीं इसकी चमक सूर्य से 22 सौ गुना अधिक है.  

  • वैज्ञानिकों का मानना है कि 26 हजार साल में एक बार ध्रुव तारे का स्थान परिवर्ति होता है.