Wednesday, May 17, 2023

मुगल शहर फतेहपुर सीकरी एवं वहां का संग्रहालय डा. राधेश्याम द्विवेदी

जल से ग्रहण करने वाले इस क्षेत्र में स्थित घने घने और शिकार योग्य पर्याप्त जंगली पशु-पक्षियों के कारण आदि मानव ने इस स्थल को अपने आवास के लिए उपयुक्त पाया| झील के किनारे-किनारे शैल चित्र और पाषाण युग के उपकरण भी मिले हैं गैरिक मृदभांड दलाल (लगभग 2000 ई0पू0) और चित्रित धूसर मृदभांड दलाल (लगभग 1200 से 800 इंसा पूर्व) के तथ्य भी यहा से प्राप्त हुए हैं|यह स्थित वीरछबीली टीला के उत्खनन से प्राप्त जैन सरस्वती (1010 ई0) की छवि पर अभिलेख में संकारिया स्थान का उल्लेख है जो सैक्स्य से साम्य रखता है| उत्खनन से प्राप्त दसवीं और ग्याहरवीं शताब्दी की जैन शपथपत्र से विदित होता है कि यह पूर्व ऐतिहासिक काल से निरन्तर आवादी थी| इस स्थान पर राजपूतों की जिस शाखा का शासन था वह भी सिकरवार ही कहलायी, यह नाम भी शाक्य-सेकरिया के क्रम में आता है| यह स्थल वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रिया-कलापों का केंद्र था, विंध्य पर्वतमाला के ऊंचे छोर पर स्थित, लाल बलुए पत्थरों से निर्मित, फतेहपुर सीकरी स्मारक समूह मूल रूप से एक विशाल प्राकृतिक झील के किनारे बसाया गया था| संस्कृत साहित्य एवं बैंकॉक में सीकरी का उल्लेख महाभारत काल है जिसमें पाण्डवों के राजसूय यज्ञ के अवसर पर सहदेव के दक्षिण विजय अभियान के सन्दर्भ में साक्य के नाम से हुआ है जिसका अर्थ जल से सिंचित प्रदेश है| इसी से निष्पादित होकर सीकरी शब्द बना होगा|विश्व विरासत स्मारक फतेहपुर सीकरी एक नगर है जो कि आगरा जिले का एक नगर वरीयता बोर्ड है| यह हिंदू और मुस्लिम वास्‍तुशिल्‍प के मिश्रण का सबसे अच्‍छा उदाहरण है| फतेहपुर सीकरी ज़िले के बारे में कहा जाता है कि यह मक्का का ज़िक्र है और इसकी रूपरेखा हिंदू और पारसी वास्तुशिल्प से लिए गए हैं| मस्जिद का प्रवेश द्वार 54 मीटर ऊंचा बुलंद दरवाजा है जिसका निर्माण 1570 ई0 में किया गया था मस्जिद के उत्तर में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है जहां नि: संतति महिलाएं दुआएं होती हैं| आंखें मिचौली, दीवान-ए-खास, रोशन दरवाजा, पांच महल, ख्वाबगाह, अनूप तालाब फतेहपुर सीकरी के प्रमुख स्मारक हैं|
इतिहास :- सीकरी ऊपरी विंध्य पर्वतमाला का विस्तार एक बड़ी प्राकृतिक झील है, जो अब ज्यादातर सूख गई है, के तट पर स्थित है| यह एक पूर्व ऐतिहासिक स्थल और ढेर सारी मात्रा में जल, जंगल और सितारों के मालिक के साथ है, यह आदिम मनुष्य के निवास के लिए आदर्श था| छवियों के साथ रॉक शरणों झील की सीमा पर मौजूद हैं| पाषाण युग के उपकरण इस क्षेत्र में पाए गए हैं|गेरू रंग के धब्बे (सी. 2 सहस्रब्दी ई.पू.) और रंगीन ग्रे वेयर (सी.1200-800 ईसा पूर्व) भी यहां से खोजे गए हैं| सीकरी 'साइक' के रूप में महाभारत में उल्लिखित है| शब्दकोशों में पानी से घिरा एक क्षेत्र के रूप में 'साइक' को परिभाषा| एक शिलामणि सरस्वती (दिनांक 1067 विक्रम संवत = 1010 ईस्वी) की पत्थर की मूर्ति पर 'सेक्रिक्या' पाया गया है, इसका उल्लेख इस स्थान पर किया गया है जो एक समान रूप से उत्पन्न हुआ है यह सब पता चलता है कि सीकरी लगातार प्रागैतिहासिक काल से बसा हुआ था| बाबर ईस्वी 1527 में खानवा युद्ध की पूर्व संध्या पर इस स्थान पर गया और अपने संस्मरणों में 'सीकरी' के रूप में इसका उल्लेख किया है| उन्होंने यहां एक बाग और एक जल-महल झील के पानी से घेर लिया है, और एक बावली (बावड़ी) खानवा की लड़ाई में उनकी जीत के लक्ष्य की स्थापना की गई है| मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को सीकरी नमक स्थान पर हराया था, जो कि वर्तमान आगरा से 40 कि0मि0 है| बाबर के पोते अकबर (1556-1605) ने अपने निवास और अदालत को 1585 के लिए 1572 से सीकरी आगरा से स्थानांतरित कर दिया, 13 साल की अवधि के लिए, पर एक शिक्षा में सूफी संत सलीम चिश्ती, जो यहां बसता | अकबर उन्हें बहुत ज्यादा के रूप में संत का एक बेटा है जो 1569. में सलीम का नामकरण किया गया था वह जनता के लिए उनके उपयोग के लिए दीप्तिमान छतों और घरों को उठाए हुए के साथ आशीर्वाद दिया था श्रद्धेय| इस प्रकार का विकास हुआ है, आकर्षण आकर्षण और दर्शनीय स्थलों के साथ एक बड़ा शहर है| अकबर का यह फतहाबाद का नाम दिया गया है और जो बाद के दिनों में के रूप में “फतेहसीकरी” में जाना जाने लगा| फिर अकबर ने इसे मुख्यालय बनाने का दावा यहां किला बनवाया, लेकिन पानी की कमी के कारण राजधानी को आगरा का किला में स्थानांतरित करना पडा| आगरा से 37 कि.मी. दूर फतेहपुर सीकरी का निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने दावा किया था| एक सफल राजा होने के साथ-साथ वह कलाप्रेमी भी था| 1570 -1585 तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्ञी की राजधानी भी रही| इस शहर का निर्माण अकबर ने अपनी निगरानी में लिया था अकबर नि: संत था| सभी संकल्प के उपाय विफल होने पर वह सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से प्रार्थना की इसके बाद बेटे जन्मम से खुश और उत्‍साहित अकबर ने यहां अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया| लेकिन यहां पानी की बहुत कमी थी इसलिए केवल 15 साल बाद ही राजधानी को पुन: आगरा ले जाना पड़ा| आगरा से 22 मील दक्षिण, मुगल सम्राट अकबर के बसाए हुए भव्य नगर के दरवाजे आज भी अपने प्राचीन वैभव की झाँकी प्रस्तुत करते हैं| अकबर से पूर्व यहां फतेहपुर और सीकरी नाम के दो गांव बसे थे जो अब भी हैं इन्हें अंग्रेजी शासक पुराने विलेजेज के नाम से पुकारते थे सन 1527 ई॰ में चित्तौड़-नरेश राणा संग्रामसिंह और बाबर में यहाँ से लगभग दस मील दूर कनवाहा नामक स्थान पर भारी युद्ध हुआ था जिसकी स्मृति में बर ने इस गाँव का नाम बातेहपुर कर दिया था| उसी से यह स्थान फतेहपुर सीकरी है| कहा जाता है कि इस ग्राम के निवासी शेख शेख चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर सलीम (जहाँगीर) का जन्म हुआ था| जज़ीर की माता जोधाबाई (आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री) और अकबर, सलीम के कहने से यहां 6 मास तक लोडे थे जिसके प्रसादस्वरूप उन्हें पुत्र का मुख देखने का स्वर प्राप्त हुआ| फतेहपुर सीकरी की वास्तुकला एक निश्चित अखिल भारतीय चरित्र है सीकरी में एक सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती कर रहे थे उनका शोहरत अकबर को सुनकर, एक बेटे की दुआ लेकर उनके पास संदेश और जब अकबर को हुआ तो अकबर ने अपने बेटे का नाम सलीम रख लिया| सीकरी में जहां सलीम चिश्ती रहते थे उसी के पास अकबर ने सन 1571 में एक क़िला बनवाना जोड़ा| अकबर की कई रानियाँ और बेगम थीं, ऐसा करके उनसे किसी का भी बेटा नहीं हुआ था अकबर पीरों एवं फ़कीरों से पुत्र प्राप्ति के लिए दुआएँ माँगता फिरता था सलीम चिश्ती ने अकबर को दुआ दी| दैवयोग से अकबर की बड़ी रानी जो कछवाहा राजा बिहारीमल की पुत्री और भगवानदास की बहिन थी, प्रेक्षित हो गई थी, और उसने पुत्रों को जन्म दिया| उनके नाम के नाम पर सलीम रखा गया, जो बाद में जहांगीर के नाम से अकबर का उत्तराधिकारी हुआ अकबर से बहुत प्रभावित था| उसने अपनी राजधानी सीकरी में ही धारण का निश्चय किया| सन 1571 में राजधानी का स्थानांतरण किया गया उसी साल अकबर ने गुजरात को फ़तह किया| इस कारण नई राजधानी का नाम फतेहपुर सीकरी रखा गया|
             सन 1584 से लगभग 14 साल तक फतेहपुर सीकरी ही मुगल साम्राज्य की राजधानी रही| अकबर ने कई निर्माण कार्य कराये, जिससे वह आगरा के बड़े नगरी बन गया था फतेहपुर सीकरी पूरे देश की जंपिंग एक्टिविटीज का प्रमुख केंद्र था| सन 1584 में एक अंग्रेज़ व्यापारी अकबर की राजधानी में आया, उसने लिखा है- 'आगरा और फतेहपुर दोनों बड़े शहर हैं| उनमें से हर एक लंदन से बड़ा और अधिक जनसंकुल है सारे भारत और ईरान के व्यापारी यहां रेशमी और दूसरे कपड़े, कीमती रत्न, लाल, हीरा और पर्ल बेचने के लिए ला रहे हैं| संत सलीम शेख चिश्ती के सम्‍मान में सम्राट अकबर ने इस शहर की छाया रखी| कुछ वर्षों के अंदर सुजुबंयी नौकरी में पंजीकृत, धार्मिक और धार्मिक संस्थान आस्था में आए| इस किले के भीतर पंचमहल है जो एक पांच मंज़िला इमारत है और बौद्ध समुद्री शैली में बनी है इसकी पांचवी मंज़िल से मीलों दूर तक का व्यू दिखाता है| जामा आवासीय परिसर पहला भवन था, जो बनाया गया| लगभग 5 साल बाद बनवाया गया दरवाजा| अन्‍य महत्‍वबल पूर्ण आशंका में दी शेख चिश्‍ती की दरगाह, नौबत-उर-नक्‍कारखाना, स्टीरियोटाइप, कारज़ना, खज़ाना, हकीम का घर, ए-आम मरियम का आवास, जिसे सुनरा मकान भी कहते हैं, जोधाबाई का निवास, बीर का निवास आदि शामिल हैं|
            भक्ति में अकबर ने बिना विचार ही सीकरी को राजधानी बना दिया था इस जगह में पानी की बड़ी कमी थी, ग्लॉस पूरा करने के लिए पहाडी पर कपट बना कर एक झील बना दिया गया था उसी की जल राजधानी में आता था| अगस्त 1582 में टूट गया, जिससे काफी नुकसान हुआ| 14 साल तक सीकरी में राजधानी रखने पर अकबर ने अनुभव किया कि यह स्थान उपयुक्त नहीं है, अत: सन् 1584 में पुन: राजधानी महानगर बना दिया गया| राजधानी के हटते ही फतेहपुर सीकरी का खतरा होने लगा है कि वह एक छोटा सा कस्बा बना हुआ है|

Monday, May 8, 2023

प्राचीन नगरक से नगर पालिका परिषद की कहानी डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

नगर राज्य एक एतिहासिक इकाई:-
नगरक निगम,नगर बाजार,नगर खास, कपिल नगर एवं औरंगाबाद नगर आदि इतिहास के पन्नों में विविध नामों से पुकारा जाने वाला यह ग्राम पंचायत बस्ती जिले व मण्डल की दूसरी सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है। जिले व मण्डल की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत इसी तहसील तथा पुराने नगर राज्य क्षेत्र का अंश गनेशपुर है। नगर खास के नाम से राजस्व रिकार्डों में दर्ज इस स्थान को वर्तमान रूप में नगर बाजार के नाम से जानते हैं।यह जिला मुख्यालय से दक्षिण कलवारी टाण्डा राजमार्ग पर 8 किमी की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में नगर पालिका परिषद के होने वाले चुनाव के पहले यह पंचायत प्रधान द्वारा ही स्थानीय प्रशासन चलाया जाता है। नगर राज्य के पुरोहित वंश के प्रतिनिधि एवं समाज सेवी डा. सत्य प्रकाश उपाध्याय ने इस ग्राम पंचायत के प्रधान के रूप में तीन कार्यकाल व्यतीत कर इसे एक समृद्ध एवं विकसित एवं आदर्श ग्राम पंचायत के रूप में प्रतिष्ठापित किया है। गांव के पश्चिम में एक प्रसिद्ध चन्दो ताल है जो कभी कोई ऐतिहासिक स्थल रहा था और किसी भूगर्भिक हलचलों के कारण एक झील के रूपमें परिवर्तित हो गया है। यहां एक विशाल तथा एक लघु किले के अवशेष पहचाने गये है। इसे शाक्यों के दस नष्ट हुए शहरों में एक के रूप मे पहचाना जाता है। जिसे कोशल के राजकुमार विडूदभ द्वारा नष्ट किया गया था।
गौतम बाहुल्य क्षेत्र:-
नगर और अमोढ़ा दोनों गौतम वंशियों के वंशज आज भी इस क्षेत्र में अनेक गांवों में फैलकर बस गये हैं। नगर के साथ ‘खास‘ शब्द अवध के अधिकारियों ने कहना शुरूकर दिया था। यहां गौतम वंश के मुखिया या राजाओं का मूल शासन और आवास हुआ करता था। बाद में यह राजस्व इकट्ठा करने का केन्द्र बन गया तथा सरकारी अभिलेखों में ‘नगर खास’ कहा जाने लगा। इसे ‘औरंगाबाद नगर’ या ‘चन्दो नागरा’ भी कहा जाने लगा था। यद्यपि इन राजाओं का कोई प्रमाण संगत साक्ष्य तथा उनके आगमन का विस्तृत विवरण नहीं मिलता है, पर अनुश्रूतियां कहती हैं कि राजपूतों के आगमन के पूर्व यहां हिन्दू राजा शासक हुआ करते थे। कुछ आदिवासी जातियां जैसे- भर ,थार,डोम व डोमकटारों द्वारा मूल हिन्दू राजा सत्ताच्युत हो गये थे। गौतमों ने भरो एवं डोमकठारों के लगभग 24 पीढियो को बाहर निकाला था। उन्होंने स्थानीय रौहिला राजाओं को मार डाला था। परगना महुली बहुत दिनों तक इनके क्षेत्र का भाग रहा। उनकी पकड़ इतनी कमजोर रही कि वे 16वीं शताव्दी में सूर्यवंशियों द्वारा भगा दिये गये। नगर के आस पास के क्षेत्र को राजस्व अभिलेख में नगर खास कहा गया है परन्तु आम बोलचाल की भाषा में इसे नगर या नगर बाजार ही कहा जाता है।
ऐतिहासिक साक्ष्य:-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अपर महानिदेशक ने अपने सर्वेक्षण (पुरातत्व वुलेटिन 21 पृ. 45 प्राग्धारा बुलेटिन नं. 8 1995-97 पृ. 110) अध्ययन में बौद्ध साहित्य के आख्यानों के आधार पर कोशल के प्राचीन नगरों व निगमों को पहचानते हुए बस्ती शहर के दक्षिण क क्षेत्र को नगरक निगम का भाग बताया है। उसके मुख्यालय को नगर में होना बताया है। बौद्ध साहित्य (मज्झिम निकाय तृतीय पृ. 104) में वर्णित इस घटना का उल्लेख किया है कि नगरक निगम में भगवान बुद्ध तथा कोशल के राजा प्रसेनजित तथा दीर्घ कारायण ने विश्राम किया था। उस समय नगरक निगम हुआ करता था और यह कोसल राज्य के अधीन था।
चंदो ताल में दफन है प्राचीन सभ्यता के रहस्य :-
इस नगर के पश्चिम स्थित 3 मील लम्बा तथा एक मील चैड़ा चन्दो ताल अपने ढंग का वेजोड़ है। यह कार्लाइल द्वारा व्यक्त भूइला ताल से भी बड़ा है। यह यह भी सोचने को विवश कर देता है कि कहीं यही तालाब तो कपलवस्तु तो नहीं है। एसा होने पर कोई प्राचीन नगर सभ्यता इस तालाब के अंचल में समाई हुई प्रतीत हो सकती है।
                त्रिस्तरीय सभ्यता के प्रमाण:-
1.प्रथम: शासकीय राजधानी: नगर खास:-
अपने गुरू एवं अधिष्ठाता कपिल मुनि के जप तप और की पूजा में व्यवधान से बचने के लिए यह नगर बसाया गया था। बाद में यहां से शासकीय कार्य भी किये जाने लगे। वर्तमान नगर बाजार के पश्चिम एक बड़ा एवं नीचा टीला जो वर्तमान में पूर्व से पश्चिम में 800 मी. तथा उत्तर से दक्षिण में 600 मी. भूभाग पर लगभग एक से दो मीटर ऊंचाई पर फैला हुआ है। यहां मृदभाण्डों , ईंटों के रोड़े, सर्वत्र दिखाई देते हैं। खेती की गहन जुताई से टीले का स्वरूप पूर्णतः विगड़ चुका है। इसे लोगे ने समतल बना रखा है। कार्लाइल महोदय ह्वेनसांग द्वारा बताये गये ( समुवल , बील: बुद्धिस्ट रिकार्ड आफ द वेस्टर्न वल्र्ड भाग 2 पृ. 14) दस ध्वस्त नगरों में इसे भी एक मानते हैं। ये अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचने के बाद ध्वस्त हुए थे। यह पूर्ण संभावना है कि शाक्य या कौशल का यह कोई केन्द्र रहा हो, परन्तु कोई साहित्यिक या पुरातात्विक अभिलेख या साक्ष्य इसकी कोई पुष्टि नहीं करते हैं। ब्रिटिशपुराविद् कार्लाइल ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि यहां गौतमों से पूर्व ही में आबाद थे। ये गौतम ईक्ष्वाकु या शाक्य गौतम थे या बाद के थे ? इसमें भी संदेह है। लोंगों ने इन्हे बताया कि यहां थारूओं या भरों का कब्जा था। गौतमों ने उन्हे जीतकर कब्जा लिया है। यह टीला पहले से ही आबाद रहा है।
डा. मुनि लाल उपाध्याय सरस का शोध :-
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त इस क्षेत्र के महान साहित्यकार एवं इतिहासविद् डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘‘सरस’’ ने अनुश्रुतियों के आधार पर लिखा है कि तेरहवीं शताव्दी के आरम्भ में अलाउद्दीन खिलजी के विजय अभियान के समय में अरगल राज्य के गौतम गोत्री नृपति घोलराव अपना पैतृक राज्य त्याग कर उत्तर कोशल के घाघरा एवं मनोरमा नदी के उत्तर कुवानों नदी पर्यन्त तक के इस भूभाग पर यहां आकर बसे थे। धीरे धीरे यहां एक लघुराज्य की स्थापना किये थे। जो नगर में अपनी राजधानी बनाये थे।
सरकारी रिकार्ड:-
कुछ अन्य श्रोत( बस्ती ए डिस्टिक गजेटियर आफ दी यूनाइटेड प्राविंसेज आफ आगरा एण्ड अवध लेखक एच. आर. नेविल, 1907, पृ. 94.95) से पता चलता है कि इस वंश के संस्थापक जगदेव थे जो गौतमवंशी थे तथा फतेहपुर के अर्गल नामक स्थान से यहां आये हुए थे। इन्हे दहेज में 12 गांव मिले थे। इनकी पत्नी विसेन क्षत्रिय वंश की कन्या थी। उस समय नगर पर डोम कटार जाति के अधीन रहा था। इन्हें रोहिला भी कहा जाता था। इनका नाम रइहलपारा नामक परगना के रूप में सुरक्षित है। ये लोग गौतमो द्वारा भगा दिये गये थे। गौतमों ने चन्दो तालाब के किनारे अपना किला बनवाया था। बाद में जगदेव के पौत्र राजा भगवन्त राव का एक अफगान गवर्नर ने हत्या कर दी। उनके पुत्र या पौत्र ने उस अपहरणकर्ता को भगाकर अपना राज्य वापस पा लिया था। इसके पांच पीढ़ी राजा गजपति राव ने अपना मुख्यालय गनेशपुर ले गये। उनके भाइयों के उत्तराधिकारी अभी भी ग्राम पौंदा, भैंनसी तथा हर्रैया व बस्ती तहसील के कुछ गांवों में बसे हुए हैं। राजा गजपतिराव के छोटे चार पुत्रों ने पिपरा तालुका के 60 गांवों तथा चार अन्य पुत्रों ने गनेशपुर के 54 गांव प्राप्त किये थे।
                       राजा उदय प्रताप सिंह
नगर राज की मूल इकाई:-
नगर के राजा गजपतिराव सिंह के वारिस उनके बड़े पुत्र हरवंश सिंह हुए जिन्होने अपने छोटे पुत्र को 60 गांव दिया। इसके पांच पीढ़ी के बाद राजा अम्बर सिंह के समय 60 और गांव या तो निकल गये या तो वेंच दिये गये। जिससे लगान की भरपाई की गई थी । यद्यपि राजा ने अपने आदमियों से बराबर के गांवों को जप्त कर लिया था। अम्बर सिंह के पौत्र निःसंतान थे। सम्पत्ति पुनः पैतृक शाखा में वापस चली आयी।
व्रिटिस काल के शुरूवात में 1801 ई. में राजा राम प्रकाश सिंह नगर राज्य पर काविज हुए। उस समय उनके पास 114 गांव थे। इसके अलावा 62 अन्य गांवों का मालिकाना भी उन्हें प्राप्त हुआ। उनके पौत्र राजा जय प्रताप सिंह डेंगरपुर के मिल्कियत के लिए हुए दंगे में मारे गये थे। फिर उनके भाई उदय प्रताप सिंह राजा बने।
दिल्ली के बादशाह ने 1857 में अग्रेंजों के खिलाफ लड़ाई का आह्वान किया तो राजा उदय प्रताप सिंह भी इस जंग में कूद पड़े। उदय प्रताप सिंह ने अंग्रेज सैनिकों के जल मार्ग को बाधित करने का निर्णय लिया। अपने राज से होकर गुजर रही सरयू नदी के तट पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया। 
फैजाबाद की तरफ से गोरखपुर की तरफ जा रहे अंग्रेज सैनिकों की नाव पर धावा बोल कर उनके अधिकारियों की हत्या कर दी। किसी तरह एक अंग्रेज सैनिक अपनी जान बचाकर गोरखपुर पहुंचा। उसके बाद गोरखपुर से अंग्रेज सेना नगर बाजार राज पर हमला करने के लिए कूच कर गई। 
घुसुरिया में लगा था अंग्रेजों का बेड़ा:-
अंग्रेजी सेना ने राजा नगर के किले से एक किमी दूर घुसुरिया गांव के पास अपनो बेड़ा लगाया। सितम्बर 1857 में हुई लड़ाई के दौरान अंग्रेजों ने गोला-बारूद के साथ तोपों का प्रयोग किया। राजा नगर की सेना बारूद व तोपों के आगे नहीं टिकी। अंग्रेजी सेना ने किले पर हमला कर ध्वस्त कर दिया, जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। अंग्रेजों ने उनकी रियासत को जब्त कर लिया और दो हिस्से में बांट दिया। गर्भवती रानी को एक शुभचिंतक के यहां शरण दिला दिया। अंग्रेज अधिकारियों ने राजा नगर के विश्वासपात्रों को फोड़ लिया। उनकी निशानदेही पर अंग्रेजों ने धोखे से सिकरी नामक स्थान पर गिरफ्तार कर लिया। 
गोरखपुर की जेल में किए गए बंद:-
गिरफ्तार राजा नगर को गोरखपुर की जेल पहुंचाया गया। उन पर केस चला कर अंग्रेज अधिकारियों के हत्या के जुर्म में फांसी की सजा दी गई। अंग्रेजों के हाथ मौत मिले, यह उन्हें गवारा नहीं था। फांसी के एक दिन पहले बैरक के बाहर तैनात संतरी से पानी मांगा। इसी बहाने उसकी राइफल को छीन उसमें लगी कटार को अपने गले में भोंक कर जीवनलीला समाप्त कर ली। 
नगर बाजार किले के पास स्थापित है प्रतिमा:-
नगर बाजार में ध्वस्त किले के पास राजा उदय प्रताप नरायन सिंह की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित है। नगर चौराहे पर भी एक प्रतिमा लगी है। उनके छठीं पीढ़ी के वंशज लाल वीरेन्द्र प्रताप नारायण सिंह ने कहा कि राजा नगर के बलिदान को देश कभी भुला नहीं सकता है।
 स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्होने अपनी पदवी और जागीर दोनों खो दी थी। नगर के राजा एवं उनके आदमियों ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध अपने वंश परिवार तथा सारी सम्पत्ति को दांव पर लगा दिया। वे पराजित हुए उन्हें कैद कर गोरखपुर के जेल में डाल दिया गया। वहां उन पर अत्याचार कर करके उन्हें तोड़ने का प्रयास किया गया। जब अंग्रेज कामयाब नहीं हुए तो जेल में उनकी हत्या कर दी गयी और बाहर यह खबर फैलाई गई कि राजा साहब ने जेल में क्षुब्ध होकर आत्म हत्या कर ली। उनके पुत्र का नाम विश्वनाथ सिंह था। उनके पुत्र लाला रूपेन्द्र नारायण सिंह की सारी सम्पत्ति जप्त कर ली गई और अंग्रेजों का साथ देने के कारण इस सम्पत्ति को इसी जिले के एक दूसरे राजा बांसी को पारितोषिक रूप में बांट दिया गया। 
नगर से हटकर पोखरनी में शरण:-
बांसी के राजा से इन्हें गुजारा के लिए पोखरनी आदि 5 पैतृक गांव ही मिले हुए थे।अंग्रेजो ने इस परिवार को नेस्सनाबूत कर दिया तो यहां की महारानी साहिबा नगर के निकट के पोखरनी गांव की शरण ली। वहां मकान बनवाकर रहने लगी। इस वंश का जब कोई उत्तराधिकारी नहीं बचा तो इसी वंश के पोखरा बाजार में अवस्थित एक स्ववंशी को गोद लेकर इस राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया था। यह परिवार एक संभ्रान्त नागरिक की तरह सम्मानजनक सामाजिक जीवन आज भी बिता रहे हैं। रानी साहिबा का अयोध्या में सुन्दर भवन नामक एक विशाल मंदिर भी बना हुआ है।
नगर को नगरक निगम मानने में कोई अड़चन नहीं है। चूंकि यह गांवों का देश है और यदि कहीं नगर जैसी कोई अलग बसावट या सभ्यता दिखेगी तो वह भी विशिष्ट स्थान अवश्य पायेगी। ईक्ष्वाकु, शाक्य या गौतम सूर्यवंशी प्राचीन रूप में एक ही वंश वृक्ष से निकले हैं। ये यहां के मूल निवासी भी हो सकते हैं और संकट के समय अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कहीं अन्य़ जाकर या आकर बस भी सकते हैं। पुनः अपनी स्थिति मजबूत होने पर अपनी मातृभूमि वापस आकर बस भी सकते हैं। वे अपनी सम्पत्ति तथा राज्य पर कब्जा जमाये लोगों को भगाकर अपनी पुरानी ख्याति व परम्पराओं की पुर्नस्थापना भी कर सकते हैं।
गोैतम राजपूत बहुत कुछ संभव है कि शाक्य वंशी हों। परन्तु उनके वंशजों ने अपने मूल व पवित्र इतिहास को ना जानने का प्रयास किया और ना ही कोई प्रमाण संजोकर रखा ,परन्तु यह बात सत्य है कि यदि यहां के राजपूत शाक्यवंशी होते तो उनके वंश का कोई ना कोई अवश्य अपने को शाक्य वंश के विमल इतिहास से अवश्य सम्बद्ध करता । ज्यादा संभव है कि ये गौतम राजपूत गौतमीपुत्र शातकर्णि से ही सम्बन्धित हों। कनिंघम, कार्लाइल एवं फयूहरर के अध्ययन के लगभग सौ वर्षों के अन्तराल पर स्वतंत्र भारत में जब इतिहास का पठन-पाठन शुरू हुआ तो इतिहासकारों एवं पुराविदों न इस क्षेत्र पर अपनी नजर डाली ।
पुरावशेष:- 
1962-63 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डा. ए. के. नरायण एवं डा. पी. सी. पंत (भारती 8 (। ) पृ. 119 ) ने इस स्थल का सर्वेक्षण किया था। उन्होंने यहां लाल पा़त्र तथा दुर्गा मंदिर का उल्ल्ेख किया है। भारत कला भवन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डा. श्रीकान्त भट्ट( पुरातत्व बुलेटिन नं. 3 पृ. 82 ) ने 1964-65 में इस स्थल का सर्वेक्षण किया था। उन्होंने यहां लाल पा़त्र परम्परा के प्रमाण प्राप्त किये हैं। वे इसे बौद्ध धर्म का पुराना नगर मानते हैं। 1995 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के उत्खनन शाखा के अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. बी. आर. मणि ( प्राग्धारा बुलेटिन नं. 8 , पृ. 110) ने यहां का अपेक्षाकृत विस्तृत एवं सघन अध्ययन व विवरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने मृदभाडों के अवशेषों एवं ईंटों के रोड़े यहां प्राप्त होने की सूचना दी है। साथ ही पात्रावशेषों के आधार पर लाल पात्र उद्योग का विस्तार बताया है। यहां एकत्र किये गये ठीकरे या तो वहुत प्रारम्भिक काल के हैं या मध्य काल के हैं , किन्तु इनकी मात्रा अत्यल्प है। आरम्भिक काल के प्रमाणों में लाल पात्र के बाहर की तरफ ढ़ले बारी तथा कोर युक्त कंघे के कलश के 2 ठीकरे, लाल पात्र में रस्सी के छाप का एक ठीकरा मिला है। काले लेपित पात्र में एक ठीकरे में लेप बाहर है एक में अन्दर है। ये सुन्दर बनावट से युक्त हैं। जानवरों की मिट्टी की बनी हुई आकृतियां, ज्यादातर पैर तथा हापस्कोच लाल पात्र परम्परा के बने हुए हैं। अन्य लाल पात्रों में पत्ती की छाप, अन्दर की तरफ बनी हुई अलंकरण, कलश की टोटियां ,ढक्कन, समतल आधार वाली छिछली थालियां, कूटकी हाण्डियां जिनके पैर कृूकर बनाये गये हैं, भंडारण पात्र, मध्यम आकार के कलश तथा विना गले की कूटकी पात्र आदि प्राप्त हुए हैं।
द्वितीय: नगर का सुरक्षापूर्ण स्थल:-
शासकीय नगर खास के स्थल से लगभग आधा किमी. दक्षिण गोरया नाला पार करके चन्दो ताल के पूर्वी छोर पर तथा पोखरनी से एक किमी. उत्तर एक छोटा टीला 300 मी. गुणे 300 मी. आकार का 4 मी. ऊंचाई वाला स्थित है। यह एक नाले द्वारा सुरक्षित मध्यम श्रेणी का आश्चर्य जनक टीला तथा चक्राकार है। इसके चारो ओर बांस झाड़ियां उगी हुई है। यह दो पतली खाइयों से घिरा हुआ है। एसा लगता है कि इस स्थल को सुरक्षा की दृष्टि से धन छिपाने, औरतों को शरण देने आदि के लिए बनाया गया है। बादमें इस स्थान पर लोग स्थाई रूप से रहने लगे। फयूहरर ( मोनोमेन्टल एन्टीक्वटीज पृ. 225 ) इसे किसी स्तूप का अवशेष मानते है।
यहां की सांस्कृतिक अवशेष इसे मध्यकालीन टीले ( प्राग्धारा बुलेटिन नं. 8 , पृ. 111) का स्वरूप प्रदर्शित करती है। इसे स्थानीय जन ‘‘ समय मां का स्थान’’ के रूप में मानते है। इसे ‘‘बरसाती माई’’ भी कहा जाता है।
पुरावशेष:-
यहां के पात्रावशेष मध्यकालीन लाल पात्र हैं। यहां से प्राप्त ढ़क्कनों में कोई लेप नहीं है। कुटकी हाण्डी, पैरों को कूटकर बनायी गयी हाण्डी, अभ्रक का चूर्ण से सज्जित पात्र, पत्ती के छापवाली मृदभाण्ड, मध्यम आकार की बारी वाले कलश, मध्यम आकार के बारी वाले हौज प्राप्त हुए हैं। कांचित पात्र में नीले रंग का कटोरा यहां से प्राप्त हुआ है।
3. तृतीय:नगर खास का कोट या किला:-
नगर गौतम वंश के राजा का आवास स्थल भी था और सुरक्षित किला भी। इस कारण इसे समान्य नगर ना कहके नगर खास कहा गया है। कालाईल ने इसे औरंगाबाद नगर अथवा चन्दोनगर भी कहा है। नगर में जो किला या कोट वर्तमान समय में मिलता है वह ज्यादा पुराना नहीं है। यह मध्यकाल अथवा आधुनिक काल का बना हुआ प्रतीत होता है। इसे किसी गौतम राजा ने बनवाया था। 1857 के स्वतंत्रता आन्दोलन में यहां के राजा द्वारा भाग लेने के कारण व्रिटिस सरकार ने इस मिट्टी के किले को नष्ट करवाकर समतल करवा दिया था। यहां के राजा को कैद कर लिया गया था। उन्हें देश से निकाल दिया गया था। उनकी सारी जागीर सरकार ने जप्त कर ली गयी थी। इस कष्ट तथा अपमान को सहन ना कर पाने के कारण राजा साहब या तो मार डाले गये या स्वयं आत्म हत्या कर लिये थे।
पुरावशेष:-
किले का भूभाग नगर प्रथम के शासकीय नगर के उत्तर पश्चिम में स्थित है। इसके अवशेष, ईंटों की दीवालें, तथा वुर्जियां देखी जा सकती हैं। यह 50 मी. लम्बे तथा 50 मी. चैड़े में देखा जा सकता है। इसके मध्य भाग में दुर्गा मंदिर बना हुआ है। इस किले में 19 गुणे 16.5 गुणे 5 सेमी. आकार के ईंटें लगे हुए हैं। जब यह किला बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया तो यहां के राज परिवार के लोग पास के पोखरनी गांव में अपना आशियाना बनाकर रहने लगे।
1973 ई. में स्थानीय राजा का एक स्मारक उत्तर पूर्वी बुर्जी पर 1857 के युद्ध के घटनाओं का वर्णन करते हुए, उन्हें गोरखपुर जेल में निरूद्ध करने तथा फांसी पर लटकने तथा आत्म हत्या करने के कुप्रचार की बातें लिखी गयी है। दुर्गा मंदिर में उनका एक चित्र भी लगा हुआ है। किले के अवशेष से लाल पात्र परम्परा के औसत बनावट के पैर वाले कूटकी हाण्डी, दीप हौज, मध्यम आकार के कलश, भंडारण पात्र, भारी हत्थेवाली कड़ाही तथा उत्तर मध्य काल के टाइल्स प्राप्त हुए हैं।
आजादी के बाद पंचायती व्यवस्था:-
नगर पालिका परिषद नगर बाजार बस्ती इस बार प्रथम बार गठित होने वाली है। आरक्षण चक्र में महिला सीट घोषित हुई है। आम आदमी पार्टी ने सुनीता मिश्रा को कांग्रेस पार्टी ने आशा मिश्रा तथा रामकृपाल यादव की पत्नी पूर्व प्रधान 2015-- 2020 विद्या यादव ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है। अभी बीजेपी नेअपना उम्मीदवार नहीं
घोषित किया है।
         पंचायत नगर बाजार क्षेत्र के सबसे जनप्रिय एवं लोकप्रिय समाजवादी पार्टी के नेता ,किसानों के साथ हमेशा खड़े रहने वाले ,गरीबों, असहायों दीन दुखियों एवं सभी परिस्थितियों में लोगों के साथ हमेशा खड़े रहने वाले डाक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय को कौन नहीं जानता है? सरस साहित्य कुटीर, भारतीय स्टेट बैंक सेवा, शानू पैलेस एण्ड मैरेज हाल, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, समाजवादी आंदोलन से जुड़े अनेकों कार्यक्रम , राम जन्मभूमि आंदोलन,सरस हॉस्पिटल द्वारा चिकित्सीय सेवा, कैश फॉर माइक्रो क्रेडिट का निःशुल्क चिकित्सा सेवा, छठ के अवसर पर सूर्य महापर्व की पूजा, हनुमान जन्मोत्सव, शानू पैलेस के माध्यम से सामाजिक सरोकार आदि के माध्यम से क्षेत्र की आम खास सबसे जुड़े रहने वाले डाक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय का और कोई विकल्प यहां नही रहा है। उन्होंने खुद पूनम उपाध्याय और अपने प्रतिनिधि के माध्यम से ग्राम सभा नगर खास का कई बार प्रतिनिधित्व और सेवा किया है। क्रीडा जगत और अन्य सामाजिक आयोजनों में उन्हें आसानी से जुड़ा देखा जा सकता है।
        समाजवादी पार्टी के तरफ से नगर पंचायत अध्यक्ष नगर बाजार (बस्ती) हेतु श्रीमती पूनम उपाध्याय पत्नी डा. सत्यप्रकाश उपाध्याय जी को उम्मीदवार बनाया गया है । समाजवाद शीर्ष नेतृत्व, यशश्वी राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव जी , प्रदेश अध्यक्ष माननीय श्री उत्तम चन्द जी , जिला अध्यक्ष माननीय महेंद्र यादव द्वारा घोषित प्रत्याशियों में नगर पालिका परिषद नगर बाजार बस्ती अध्यक्ष के लिए श्री मती पूनम उपाध्याय का चयन किया जाना जनता की मांग के अनुरूप ही है
       डा. सत्यप्रकाश उपाध्याय जी की सामाजिक सरोकार से जुड़ने में उनकी धर्म पत्नी की भूमिका कम नहीं है। कहा जाता है हर पुरुष की कामयाबी के पीछे किसी ना किसी महिला का हाथ होता है। श्रीमती पूनम उपाध्याय किसी मायने में अपने पति से कम नही है। वह बहुत ही सरल स्वभाव की कर्मठ और दयालु हृदयी महिला हैं। नगर पालिका परिषद नगर बाजार बस्ती के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पूनम उपाध्याय को भारी मतों से विजई बनाएं। उपाध्याय वंश के गौरवशाली परम्परा द्वारा दीर्घ समय तक आगे पुष्पित पल्लवित होने में अपना सहयोग वा आशीर्वाद प्रदान करें।






Friday, May 5, 2023

वाशिष्ठ नगर नाम के बहुत कुछ किया जा सकता है डा. राधेश्याम द्विवेदी

 
वसिष्ठ यानी सर्वाधिक पुरानी पीढ़ी का निवासी:- महर्षि वसिष्ठ का निवास स्थान से सम्बन्धित होने के कारण बस्ती का नामकरण उनके नाम के शब्दों को समेटा जा रहा है। प्राचीन काल में यह अवध की ही इकाई रही हैं। वसिष्ठ मूलतः ‘वस’ शब्द से बना है जिसका अर्थ - रहना, निवास, प्रवास, वासी आदि होता है । इसी आधार पर ‘वस’ शब्द से 'वास' का अर्थ निकलता है। वरिष्ठ, गरिष्ठ, ज्येष्ठ, कनिष्ठ आदि में जिस 'ष्ठ' का प्रयोग है, उसका अर्थ - 'सबसे ज्यादा' यानी 'सर्वाधिक बड़ा' होता है। ‘वसिष्ठ’ का अर्थ 'सर्वाधिक पुराना निवासी' होता है। महर्षि वशिष्ठ के 'तपस्या स्थल' को वशिष्ठ कहा गया है।
वसिष्ठ के मुख्य आश्रम :-
महर्षि वसिष्ठ के अनेक आश्रम थे। कुछ ज्ञात हैं तो कुछ अज्ञात। ऋग्वेद के 7वें अध्याय में ये बताया गया है कि सर्वप्रथम महर्षि वशिष्ठ ने अपना आश्रम सिंधु नदी के किनारे बसाया था। लूनी नदी अरावली श्रेणी की पुष्कर घाटी में निकलती है, थार मरुस्थल के दक्षिण-पूर्वी हिस्से से गुजरती है, और कच्छ के रण में समाप्त होती है। इस नदी के तट पर बसा पुष्कर तीर्थ पर भी वशिष्ठ जी का आश्रम था। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू-मनाली में ब्यास नदी के किनारे भी महर्षि जी का आश्रम था। असम में गौहाटी के पास ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे महर्षि वसिष्ठ का आश्रम था। वामन पुराण में उल्लेख है कि एक दिन ऋषि वशिष्ठ सरस्वती के पूर्व-तट पर स्थित अपने आश्रम में तपस्यालीन थे (आज का विश्वामित्र टीला)। महर्षि विश्वामित्र ने सरस्वती को आदेश दिया कि वह ऋषि वशिष्ठ को उनके पास उठा लाए। इन्होने उत्तराखंड में गंगा नदी के तट ऋषिकेश से लगभग 18 किलोमीटर दूर शिवपुरी गंगा के किनारे वशिष्ठ गुफा में अपना शीट कालीन आश्रम बनाया था । बाद में अयोध्या में सरयू को अपने आश्रम से ही प्रवाहित कराया था। इसी क्रम में बस्ती या श्रावस्ती या मख क्षेत्र की भी परिकल्पना की गई है।
 1. पहला हिमाचल प्रदेश के कुल्लू मनाली से करीब चार किलोमीटर दूर लेह राजमार्ग पर कुल्लू जिले के वशिष्ठ गांव में है, जो अपने दामन में पौराणिक स्मृतियां छुपाये हुए है। महर्षि वशिष्ठ ने इसी स्थान पर बैठकर तपस्या किये थे। कालान्तर में यह स्थल उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा। ऋषि का यहां भव्य प्राचीन मन्दिर बना है। 
2. दूसरा राजस्थान के पुष्कर में जहां यज्ञ कराकर उन्होने अनेक क्षत्रियों की उत्पत्ति किया था। माउंट स्थित गौमुख जहां गुरु वशिष्ठ का आश्रम है, यहां पर राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न को शिक्षा दी गई थी। बाल्यकाल की प्रारंभिक शिक्षा चारों भाइयाें को यहीं से मिली है। यह क्षत्रिय वंशजों की शिक्षा का केंद्र भी हुआ करता था। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा पर इस आश्रम का काफी महत्व है।
3. तीसरा गौहाटी आश्रम-असम के गुवाहाटी में महर्षि वशिष्ठ को समर्पित एक भव्य मंदिर और आश्रम है। यह गुवाहाटी शहर से दक्षिण में असम-मेघालय सीमा के करीब स्थित है और गुवाहाटी का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
4. चौथा उत्तराखंड के ऋषिकेश से लगभग 18 किलोमीटर दूर शिवपुरी गंगा के किनारे वशिष्ठ गुफा है। इसे स्थानीय निवासी वशिष्ठ का शीतकालीन निवास मानते है। नज़दीक ही अरुंधति गुफा और शिव मंदिर है,जिसमे भगवान शिव की कई प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हैं।
5. पांचवां 40 एकड़ में फ़ैला अयोध्या का आश्रम, वशिष्ठ कुंड और मंदिर अयोध्या धाम (उत्तर प्रदेश, भारत) में रहा। यह धनायक्ष (एक पवित्र कुंड) और रुक्मिणी कुंड के उत्तर में राम जन्मभूमि के पास स्थित है । यह कुंड ऋषि वशिष्ठ को बहुत प्रिय है। स्कंद पुराण के अयोध्या महात्म्य में कहा गया है कि ऋषि वशिष्ठ हमेशा अपनी पवित्र पत्नी अरुंधति और ऋषि वामदेव के साथ यहां रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि कुंड में स्नान करने वाले व्यक्ति के पापों का नाश होता है। उन्हें भगवान ब्रह्मा द्वारा सूर्यवंश के कुल-गुरु या आध्यात्मिक गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था। ऐसा इसलिए था क्योंकि भगवान रामचंद्र सौर वंश में प्रकट होंगे और वशिष्ठ मुनि उनकी सेवा करना चाहते थे। भगवान रामचंद्र ने अपने भाइयों के साथ वशिष्ठ कुंड यानी वशिष्ठ मुनि के आश्रम में अपनी पढ़ाई पूरी की।जब वे हिमाचल स्थित आश्रम से वे कोशल राज्य में आये थे जहां अयोध्या राज्य में उन्होंने अपना एक आश्रम और बनाया था। वे ईक्ष्वाकु वंश के राजगुरु बने थे। मंदिर गुरु वशिष्ठ की सुंदरता, वात्सौर ओर राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की छवियाँ हैं। संपूर्ण को वशिष्ठ वाटिका के रूप में विकसित किया गया है। ️ तहखाने में प्राचीन काल के परिवर्तन (सप्तऋषियों) को भी शामिल किया गया है।
6. छठा सरयू के उत्तर बस्ती या श्रावस्ती का क्षेत्र
यह आश्रम उत्तर प्रदेश के बस्ती या श्रावस्ती के आसपास के क्षेत्र में कही स्थित हो सकता है। वसिष्ठ से सम्बन्धित होने के कारण यह क्षेत्र बस्ती और श्रावस्ती के नाम से प्रसिद्ध हो सकता है। उस समय बस्ती या श्रावस्ती स्वतंत्र क्षेत्र ना हो कर अवध का क्षेत्र ही रहा होगा।अफगान और मुगलों के आक्रमण से ये आश्रम पूर्णतः विलुप्त हो चुके होंगें। इस विषय में गहन शोध की जरुरत है।
वशिष्ठ नगर (बस्ती) में बहुत कुछ किया जा सकता है:-
उत्तर प्रदेश की माननीय आदित्यनाथ योगी जी की सरकार वाशिष्ठ जी सम्मानित करते हुए बस्ती का नाम बदलने वाली है।अंतः करण से इसका स्वागत करते हैं परंतु "बस्ती का पुरातत्व" विषयक शोध के दौरान तथा अपने चार दशक के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवा काल में बस्ती में ना ही कोई मंदिर या आश्रम उस महान मुनि की स्मृति में उल्लेख पाया और न ही उसके ध्वंश अवशेष । या यूं कहें हमे कोई किवदंती तक इस बाबत नही मिली। बस्ती की पहचान को एक पुरातन ऋषि के नाम तक समेटना वहां के लोगों के बसने खेती बारी करने के तथा सभ्यता के विस्तार को समेटने जैसा है। बस्ती जिले में महर्षि वशिष्ठ की आश्रम हो सकता है लेकिन महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के अंदर बस्ती को समेटना उचित नही प्रतीत होता है। कुछ सज्जन मख क्षेत्र को वाशिष्ठ जी से जोड़ते हैं पर वहां केवल मख या यज्ञ का विवरण वा अवशेष दिखता है। ना तो वशिष्ठ जी आश्रम है और ना ही मंदिर। मैंने स्वयम वहां अयोध्या दशरथ महल और हनुमान गढ़ी के बनवाए दो राम दरबार से युक्त मंदिर का अवलोकन किया है। वशिष्ठ को समर्पित एक भी मंदिर मुझे वहां नही दिखा। चूंकि बस्ती शीघ्र ही वशिष्ठ नगर होने वाली है , इसलिए इस नगर में उनके प्रतीकों और स्थलों का ने सिरे से विस्तार किया जाना जरूरी है। फिर हाल मखौड़ा में वशिष्ठ मंदिर, बस्ती मेडिकल कालेज परिसर और कैली अस्पताल में और शहर के अन्य सार्वजनिक स्थल पार्क चौराहों पर था महा मुनि का प्रतीक चिन्ह मूर्ति,मन्दिर या पार्क उद्यान आदि विकसित किया जाना चाहिए। यदि यहां का शासन प्रशासन महामुनि के सम्मान को बढ़ाने और क्षेत्र वासियों की भावनाओ को सम्मान देना ही चाहती है तो इस तरफ कुछ और सक्रिय कार्य करना होगा। महर्षि वाशिष्ठ गुरुकुल विश्व- विद्यालय,शोध संस्थान , अध्यात्म और संस्कार केंद्र आदि भी विकसित किया जाना चाहिए।
लेखक/ ब्लागर 

बस्ती रिंग रोड विकास की नई इबारत डा.राधे श्याम द्विवेदी


बस्ती की स्थिति , सीमा और विस्तार :-
बस्ती जिला 26° 23' और 27° 30' उत्तर अक्षांश तथा 82° 17' और 83° 20' पूर्वी देशांतर के बीच उत्तर भारत में स्थित है। इसका उत्तर से दक्षिण की अधिकतम लंबाई 75 किमी है और पूर्व से पश्चिम में लगभग 70 किमी की चौड़ाई है। बस्ती जिला पूर्वी में नव निर्मित जिला संत कबीर नगर और पश्चिम में गोंडा के बीच स्थित है, दक्षिण में घाघरा नदी इस जिले को फैजाबाद जिला और नव निर्मित अंबेडकर नगर जिला से अलग करती है, जबकि उत्तर में सिद्धार्थ नगर जिला से घिरा है। यह जिला तलहटी - संबंधी मैदान में पूरी तरह से फैला है। 2011 में बस्ती की जनसंख्या 24,64,464 और घनत्व 917/किमी² रहा है।
इसका क्षेत्रफल 2688 वर्ग किलोमीटर में फैला है । इसकी आबादी 2011 में 2464464 है ।कुल गांवों की संख्या 3348 है ,जिसमे पुरुष 1255272 और महिला 1209192 है।बस्ती शहरी की आबादी 138097 है।2022 की अनुमानित जन संख्या 2,855,328 है।
राष्ट्रीय राजमार्ग सड़क मार्ग : -- 
1. बस्ती राष्ट्रीय राजमार्ग सं० - 27 (पुराना 28) पर स्थित है जो लखनऊ से मोकामा (बिहार) तक जाता है। लखनऊ और गोरखपुर के चार लेन का बहुत ही साफ़ सुथरी सड़क है। जिसके दोनों तरफ घेरा है जानवरो या अन्य वाहनो को प्रवेश मुख्य मार्ग पर सरल नहीं है जिससे वाहनो कि गति में कोई फर्क नहीं पड़ता वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की (लगभग) 300 बसें जिले में 27 मार्गों पर चल रही है।
2. राष्ट्रीय राजमार्ग -72 राम जानकी मार्ग -यह मार्ग मूलतः अयोध्या से शुरू होती है लेकिन इसकी अपनी पहचान बस्ती जनपद के छावनी बाज़ार से होती है । ये सड़क छावनी सेे शुरू होकर अमोढ़ा बाज़ार, विशेशरगंज , रमवापुर ,दुबौलिया बाज़ार , चिलमा बाज़ार, अगौना बाज़ार , कलवारी बाज़ार को जोड़ती हुई संतकबीर नगर जनपद से होती हुई गोरखपुर जनपद तक जाती है ।
3- बस्ती-मेंहदावल-कैंपिरयगंज-परतावल रोड : बस्ती के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27/ 28 के जंक्शन से शुरू होकर मेंहदावल, करमैनी, कैंपियरगंज को जोड़ते हुए परतावल के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 730 के जंक्शन पर समाप्त होगा। अब यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 328 के नाम से जाना जाता है।
 4. सिद्धार्थ नगर- बस्ती- कलवारी, वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग 233 है। यह वाराणसी से शुरू होता है और टांडा होते हुए लुंबिनी तक चलता है।
      इसके अलावा बस्ती - डुमरिया गंज रोड भी इसके विकास को गति देते हैं। कई छोटे छोटे संपर्क मार्ग भी इसके निवासियों को सहूलियत प्रदान करते हैं।
बस्ती रिंग रोड विकास की नई शुरुवात :-
बस्ती रिंग रोड विकास की नई इबारत रचने के लिए तत्पर है। इसके लिए क्षेत्रीय सांसद माननीय श्री हरीश द्विवेदी, सड़क परिवहन मंत्री माननीय नितिन गड़करी जी 
 बधाई के पात्र हैं। बस्ती जिले में शहर के चारों ओर रिंग रोड बन जाने से अब तक सात किमी की दूरी में बसे मंडल मुख्यालय का विस्तार 42 किमी के दायरे में हो जाएगा। वहीं इसकी कहीं दूर की सीमा में दर्ज विकास प्राधिकरण के तहत आने वाले रोशन 219 ग्रामीण इलाकों के विकास का रास्ता साफ हो जाएगा। 20 जनवरी 2015 को पहुंच में आए भूतल एवं सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने बैठने को रिंग रोड की सौगात दिया था। इस रिंग रोड के बन जाने से जनपद के बाहर आने वालों को शहर की भीड़ से जुड़ जाएगा और वह बेरोकटोक आवाजाही कर सकते हैं। इससे बाहर के लोगों को कम समय में अपने गंतव्य को जा सकेंगे। धर्मिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी जरूरते आसन हो जायेगी। भदेसर नाथ, बारा छतर ,तिलक पुर और कड़र खास आदि शिव मंदिरों पर पहुंचने में सुविधा बढ़ जाएगी। अयोध्या से आने वाली बोल बम शिव पूजन को कांवर यात्रा भी सुगम हो सकेगी।
हड़िया चौराहा और गोटवा दो कनेक्टिंग स्पॉट :-
लखनऊ-गोरखपुर फोरलेन को दो स्पॉट पर जोड़ेगा रिंग रोड: बस्ती में बनने वाला यह रिंग रोड लखनऊ-गोरखपुर फोरलेन को दो प्रमुख स्थानों पर जोड़ेगा। 
उत्तरी परिपथ :-
 गोरखपुर से लखनऊ फोरलेन एन एच 27 पर बस्ती के हड़िया चौराहे से मेहदावल रोड स्थित कोड़रा चौराहा होकर बस्ती-बांसी रोड स्थित गौरा चौराहे को जोड़ने वाली सड़क पर निर्माणाधीन भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी पुस्तकालय से होकर रिंग रोड का मानचित्र तैयार किया गया है। वहीं से यह रिंग रोड वाल्टरगंज, गनेशपुर व गोटवा होकर दोबारा बस्ती-लखनऊ फोरलेन एन एच 27 से मिलेगा।
दक्षिणी परिपथ :-
 यहीं से सांसद के पैतृक गांव कटया - तेलियाजोत से बकैनियादीप, पिपरा गौतम, सोनूपार, मेडिकल कॉलेज, कड़र खास, ओड़वारा को देखते हुए रिंग रोड का निर्माण प्रस्तावित है। इससे बस्ती शहर का फैलाव 42 किमी की दूरी मेें हो जाएगा। इस रिंग रोड से शहर के प्रमुख स्थानों पर पहुंचने के लिए सर्विस लेन विकसित किए जाएंगे, ताकि बिना किसी अवरोध के दिन-रात आवागमन बहाल रहे। 
प्रथम फेज की शुरुवात:-
भारत सरकार ने इस परियोजना के पहले फेज के तहत 21 किमी फोरलेन रिंग रोड की स्वीकृति दी है और 657 करोड़ रुपये दिए भी जा चुके हैं। इस सम्बंध में धरातल पर सर्वे का काम भी शुरू हो गया है। इससे बस्ती मंडल मुख्यालय के चौमुखी विकास होगा।

Tuesday, May 2, 2023

नगर बाजार पंचायत चुनाव रोमांचक

नवनिर्मित नगर पंचायत नगर बाजार अध्यक्ष पद की लड़ाई रोमांचक हो गई है। सभी प्रत्याशी जीत के दावों के साथ मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं ।

सपा भाजपा का मुख्य मुकाबला

मुख्य मुकाबला सपा की पूनम उपाध्याय पत्नी डॉ. सत्य प्रकाश उपाध्याय और बीजेपी की नीलम सिंह पत्नी राणा दिनेश प्रताप सिंह और  के बीच है । इसे दलबदलू सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी विधायक दूध राम जो सपा के समर्थन से चुनाव जीतकर सपा में भीतराघात करने की कोशिश में लगे हैं। सपा समर्थित होकर जीतने वाले विधायक पति दूधराम अपनी पत्नी लता देवी को बसपा के पाले में डालकर दो - दो नावों की सवारी में लगे हुए हैं। अभी वह दूधराम सपा समूह के विधायक हैं जो सपा समर्थित सुहेलदेव भारतीय समाज  पार्टी से जीते हैं । वह अपनी पत्नी लता देवी को बहुजन समाजवादी पार्टी से लड़वा रहे हैं। 

निर्दलियों का कोई वजूद नहीं

निर्दलीय विद्या देवी ( पूर्व प्रधान नगर बाजार) पत्नी पूर्व जिला पंचायत सदस्य रामकृपाल यादव और निर्दलीय प्रत्याशी मंजू यादव पत्नी मनोज यादव भी इस लड़ाई में अपना वजूद बचाने में लगे हैं । कांग्रेस प्रत्याशी आशा मिश्रा पत्नी गंगा प्रसाद मिश्र, सुनीता मिश्रा पत्नी दिनेश मिश्र, निर्दलीय प्रत्याशी उर्मिला पत्नी रमेश सोनकर, नुसरत जहां, और भीम आर्मी की कमरुन्निसा भी पूरे दमखम के साथ मैदान में है । 
         निर्दलीय चुनाव लड़ रही विद्या यादव पत्नी रामकृपाल यादव अपने 5 साल के बतौर प्रधान कार्यकाल एवं रामकृपाल यादव के 5 साल जिला पंचायत सदस्य रहने के दौरान किए गए विकास कार्यों को के साथ मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
      निर्दलीय प्रत्याशी मंजू यादव अपने पति मनोज यादव के युवाओं के बीच लोकप्रियता और मिलनसार स्वभाव के चलते युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय होकर सपा के स्थाई वोटों को भेदने में लगे हैं। इन सभी उम्मीदवारों का कोई खास वजूद नहीं है।


सपा प्रत्याशी की पीढ़ी दर पीढ़ी जनता की सेवा की है

सपा प्रत्याशी पूनम उपाध्याय और उनके पति डॉक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय जहां अपने 17 सालों के प्रधान एवं प्रधान प्रतिनिधि के रूप में किए गए कार्यों के साथ मैदान में है। नगर बाजार पंचायत चुनाव के समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार पूनम उपाध्याय के ससुर स्वर्गीय डा.मुनिलाल उपाध्याय 'सरस' जी ने नगर बाजार में नये विद्यालय का श्री गणेश करके शिक्षा का अलख जगाकर लगभग 40-42वर्ष तक प्राचार्य पद का निर्वहन किया है। जनता इण्टर कॉलेज नगर बाजार के प्राचार्य पद की गरिमा बनाए रखने वाले स्वर्गीय डा. 'सरस' को कौन सा बुद्धिजीवी नही जानता है? वे बस्ती दक्षिणांचल के मालवीय रहे। पूर्वांचल उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के शिक्षाविदों में डाक्टर 'सरस' जी का नाम बड़े ही श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने दर्जनों महाकाव्य नाटक और गीतकाव्य की रचना की है।भारत के हर क्षेत्र की यात्रा भी उन्होंने की है। उनके पांडित्य को  देखकर भारत सरकार के तत्कालीन महामहिम डा.अब्दुल कलाम साहब ने उन्हें राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया है। डा. सरस जी के पढ़ाए बच्चे न केवल नगर पंचायत क्षेत्र अपितु पूरे प्रदेश के यत्र- तत्र- सर्वत्र देखे जा सकते हैं। 

डा.सत्य प्रकाश उपाध्याय 'सत्य' कवि चिकित्सक और जमीन से जुड़े समाजसेवी

डा.'सरस' जी के जयेष्ठ पुत्र डा. सत्य प्रकाश उपाध्याय 'सत्य' एक कवि हृदय और प्रतिष्ठित चिकित्सक के रूप के जिले में अपना नाम कमा चुके हैं । इस क्षेत्र में कोई गांव ,परिवार और व्यक्ति नहीं होगा जो डाक्टर साहब की चिकित्सीय सेवा ना लिया हो। आम जन से जुड़ने और सेवा की भावना के साथ जन - जन से जुड़ने के लिए डा. साहब ने अपना चिकित्सीय व्यवसाय स्थगित करते हुए जनता जनार्दन को भगवान मानते हुए समाजवादी विचारधारा को अंगीकार करते हुए नगर ग्राम पंचायत चुनाव में पार्टी लाइन को अपनाते हुए जिले में अपना गौरव पूर्ण स्थान बनाया है। 'शानू पैलेस एण्ड मैरेज हाल' के माध्यम से वे ना केवल कम से कम पैसे में वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न करवाते अपितु समाज से सरोकार अन्य आयोजनों के संरक्षक वा प्रेरक रहे हैं। पंचायत नगर बाजार क्षेत्र के सबसे जनप्रिय एवं लोकप्रिय समाजवादी पार्टी के नेता , किसान,गरीबों, असहायों,दीन - दुखियों एवं सभी परिस्थितियों में लोगों के साथ हमेशा खड़े रहने वाले डाक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय को कौन नहीं जानता है? सरस साहित्य कुटीर, भारतीय स्टेट बैंक सेवा, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, समाजवादी आंदोलन से जुड़े अनेकों कार्यक्रम , राम जन्मभूमि आंदोलन,सरस हॉस्पिटल द्वारा चिकित्सीय सेवा, कैश फॉर माइक्रो क्रेडिट का निःशुल्क चिकित्सा सेवा, छठ के अवसर पर सूर्य महापर्व की पूजा, हनुमान जन्मोत्सव, शानू पैलेस के माध्यम से सामाजिक सरोकार आदि के माध्यम से क्षेत्र की आम खास सबसे जुड़े रहने वाले डाक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय का और कोई विकल्प यहां नही रहा है।

प्रचार का अभियान जोरों पर:-

नवसृजित नगर बाजार पंचायत अध्यक्ष का टिकट मिलने के तुरंत बाद ही उम्मीदवार ने अपने प्रचार का सघन अभियान चला रखा है। इस उम्मीदवार ने एक ही नहीं तीन तीन बार इस पूर्व ग्राम पंचायत के प्रमुख का पद और जिम्मेदारी पूरी तन्मयता और कुशलता पूर्वक निभा रखा है। उन्होंने पिछले कार्यकाल में नाली ,खड़ंजा ,स्ट्रीट लाइट ,सोलर लाइट, बिजली के ट्रांसफार्मर,हर घर - घर बिजली पहुंचाने का काम किया है। 

चुनाव कार्यालय का उद्घाटन :-

नवगठित नगर पंचायत नगर बाजार की समाजवादी पार्टी उम्मीदवार पूनम उपाध्याय पत्नी डॉक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय के चुनाव कार्यालय का उद्घाटन 30 अप्रैल 2023 को उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री माननीय श्री राम प्रसाद चौधरी के कर कमलों द्वारा बड़े उत्साह तरीके से सम्पन्न हो गया है। इस अवसर पर पूर्व कैबिनेट मंत्री राम प्रसाद चौधरी ने कहा कि समाजवादी पार्टी जीतेगी तो ही नगर पंचायत,नगर बाजार का विकास होगा । मुख्य अतिथि राम प्रसाद चौधरी ने विधि विधान के साथ समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष /विधायक महेंद्र नाथ यादव, कप्तानगंज विधायक कविंद्र चौधरी उर्फ अतुल चौधरी, रुधौली विधायक राजेंद्र प्रसाद चौधरी के साथ कार्यालय का उद्घाटन किया। चुनाव कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर जोखू लाल यादव ने आए हुये अतिथियों का स्वागत लोकगीत गाकर सबको आत्मविभोर कर दिया ।
पूनम उपाध्याय को विजई बनाने कीअपील:-

सभा में उपस्थित प्रायः सभी नेताओं ने अपने उद्बोधन में स्थानीय उम्मीदवार श्री मती पूनम उपाध्याय पत्नी डा.सत्य प्रकाश उपाध्याय को भारी मतों से विजयी बनाने की अपील की। नगर बाजार का संपूर्ण विकास के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को भारी मतों से जितने पर ही  संभव है ।
उद्घाटन के अवसर पर सभी सभासद प्रत्याशी , पार्टी कार्यकर्ता एवं भारी संख्या में आमजन श्रोता के रूप में उपस्थित रहे ।

 रसूखदार उम्मीदवार से मुकाबला :-

भारत वर्ष के प्रायः हर क्षेत्र की भांति ( प्राचीन नगर राज्य) वर्तमान नगर बाजार नगर पंचायत जिला बस्ती में राजशाही तो संविधान और कानून के आधार पर समाप्त हो गई है पर अनधिकृत तरीके अपनाकर उनके प्रभाव का असर आज भी शिक्षा उद्योग , विद्यालय उद्योग, खनन उद्योग,बस टैक्सी संचालन वा बस टैक्सी स्टैंड संचालनआदि का वैध या अवैध संचालन आदि में एकल या संगठित समूह के रूपों में देखा जा सकता है। इन्हीं रसूखदार परिवार से संबंधित पूर्व ब्लॉक प्रमुख नीलम सिंह राणा को भाजपा ने टिकट दिया है। राणा दिनेश प्रताप सिंह की पत्नी नीलम सिंह राणा पिछली बार नगर पालिका परिषद से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ी थी। बाहुबली राणा कृष्ण किंकर जी के परिवार से संबद्ध ये भी राजनीति में सक्रिय हैं। इन्होंने 2013 में बहादुरपुर ब्लाक की निर्विरोध चुनाव जीता है। इनके विरुद्ध किसी प्रत्यासी  उतरने की हिम्मत नहीं दिखा सका है। उक्त चुनाव में श्रीमती नीलम सिंह को छोड़ अन्य किसी ने नामांकन नहीं किया था। इस बार भाजपा ने इन्हे अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया है।बीजेपी प्रत्याशी नीलम सिंह पत्नी राणा दिनेश प्रताप सिंह उर्फ सुड्डू सिंह पूर्व ब्लाक प्रमुख बहादुरपुर भी काम करने के वादे को लेकर चुनाव प्रचार में जुटे हैं । यद्यपि कुछ व्यवसाई इनसे भय बस विरोध करने मे डरते हैं।

सपा के पूनम उपाध्याय एक सशक्त उम्मीदवार :-

डॉक्टर सत्य प्रकाश उपाध्याय की पत्नी पूनम उपाध्याय और डा सत्य प्रकाश उपाध्याय जी ने स्वयं और अपने प्रतिनिधि के माध्यम से ग्राम सभा नगर खास का कई बार प्रतिनिधित्व और सेवा किया है। क्रीडा जगत और अन्य सामाजिक आयोजनों में उन्हें आसानी से जुड़ा देखा जा सकता है। नगर पंचायत परिषद नगर बाजार बस्ती के नगर पंचायत के अध्यक्ष और सदस्यों पद के 2023 के आसन्न चुनाव में पूरी सावधानी पूर्वक अपने मतों का प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि का चयन कर लोकशाही को मजबूत करें। सबसे बेहतर सपा प्रत्याशी श्रीमती पूनम उपाध्याय को भारी मतों से विजयी बनाएं।