Saturday, April 10, 2021

डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' के 80वें जयन्ती

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर व्लाक में नगर क्षेत्र में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के आस पास इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में भारद्वाज गोत्रीय में इस वंश के पूर्वजों का आगमन के हुआ था नगर के राजा उदय प्रतापसिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त एक फौजी अफसर थे। इसी संस्कारयुक्त कुल परम्परा में सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था। बाद में डा.मुनिलाल उपाध्यायसरसजी का जन्म 10.04.1942 . में सीतारामपुर में श्री नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टर कालेज मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति पाये थे। जहां वह जून 1965 तक अध्यापन किये थे। इसी बीच मार्च 1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों की एक बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ था डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक हुए । 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये। अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एम. . करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किये थे। वे अच्छे विद्वान कवि तथा शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है। उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित. 'बाल त्रिशूल' विधा का प्रवर्तन किया. बाल पत्रिका 'बालसेतु' (मासिक हिंदी बालपत्र);का संपादन-प्रकाशन किया. वे बाल साहित्यकारों के लिए भी एक सेतु जैसे थे .अपने खर्चे पर बस्ती में बाल साहित्यकार सम्मलेन किया करते थे.बहुत मिलनसार और सह्रदय इंसान थे. बालसाहित्यविवेकानंद, साहित्य परिक्रमा; बाल बताशा  विवेकानंद बालखंडकाव्य, नेहा-सनेहा, जलेबी, झँइयक झम, चरण पादुका; आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से दर्जनों प्रसारण। पुरस्कार-सम्मान-बाल कल्याण संस्था कानपुर,नागरी बालसाहित्य संस्थान बलिया वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहे। अगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही है। सेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या के नयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर रहने लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर भगवत् नाम चर्चा से जुड़े रहे। 70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 31 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। 1 अप्रैल 2012 को राम नवमी के दिन सरयू के पावन तट पर उनकी अन्त्येठि सम्पन्न हुई थी। उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी। मैं उनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हॅू और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेता हू


    श्रद्धेय सरस जी के 80वें जयन्ती के पावन अवसर पर डा. सरसजी का दौहित्र डा.सौरभ द्विवेदी ने आज महर्षि बशिष्ट चिकित्या महाविद्यालय बस्ती में सीनियर रेजिडेन्ट के रुप में अपना योगदान ज्वानिंग दिया है और प्रथम दिन ही एक दुष्कर शल्य चिकित्सा करके अपने वरिष्ठों को प्रभावित किया है।