Wednesday, April 12, 2017

हेरिटेज तथा पर्यावरण बचाने के लिए यमुना में पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल आने दिया जाय डा.राधेश्याम द्विवेदी

              
हेरिटेज तथा पर्यावरण बचाने के लिए यमुना में पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल आने दिया जाय

डा.राधेश्याम द्विवेदी


नदियों के किनारे प्राचीन सभ्यतायें :- प्राचीन सभ्यताओं का जन्म एवं उदगम नदियों के तटों से प्रारम्भ हुआ है। आदिम युग तथा पौराणिक काल में मानव तथा सभी जीवजन्तु प्रायः जंगलों एवं आरण्यकों में विचरण करते रहे हैं। सभी अपने-अपने आवास चुनते-बनाते, आखेट करते तथा उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों व कन्द-मूल फलादि से भोजन का प्रवंधन करते थे। विश्व की सभी प्राचीन सभ्यतायें नदियों के किनारे ही विकसित, पुष्पित और पल्लवित हुई है। नदियां जहां स्वच्छ जल का संवाहक होती हैं वहीं आखेट, कृषि, पशुपालन तथा यातायात का संवाहिका भी होती हैं। एशिया महाद्वीप का हिमालय पर्वत अनेक नदियों का उद्गम स्रोत हुआ करता है। गंगा, यमुना, सिन्धु, झेलम, चिनाव, रावी, सतलज, गोमती, घाघरा, राप्ती, कोसी, हुबली तथा ब्रहमपुत्र आदि सभी नदियों का उद्गम स्रोत हिमालय ही रहा है। ये सभी हिन्द महासागर में जाकर अपनी लीला समाप्त करती हैं। हिन्दू धर्म में नदियों को देवी के रूप में भी मानवीकरण कर पूजा जाता है। प्रतिमाविज्ञान तथा शिल्पशास्त्र के ग्रंथों, मन्दिरों, स्मारकों तथा संग्रहालयों में इनके अनेक स्वरुपों की परिकल्पना तथा कलात्मक चित्रण प्रस्तुत किया गया है। जबसे यमुना से नहरें निकाली गयी हैं, तब से इसका जलीय आकार छोटा हो गया है। केवल वर्षा ऋतु मे यह अपना पूर्ववर्ती रुप धारण कर पाती है। उस समय मीलों तक इसका पानी फैल जाता है। हमारे भारत का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार बाढ़ के वक्त खुद को फिर से साफ कर  देती है, पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा कर देते है, तो हमें नदी साफ करने की बजाय इसे गंदा करना बंद करना पड़ेगा। यही यमुना संगम में मिलती है। इलाहाबाद के कुंभ में लोग जिस पानी में स्नान कर रहे हैं वो कौन सा और कहाँ का है? क्योंकि दिल्ली के वजीराबाद के आगे तो यमुना है ही नही वो तो सिर्फनाला बनकर रह गई है। इसमें तो चम्बल जान डालती है जो आगे इसमें बिलीन होकर यमुना जल बन जाती है। 1960- 70 के दशक तक यमुना इतनी प्रदूषित नहीं थी और लोग इसे पीते भी रहे। वर्तमान समय में यह इतना प्रदूषित है कि इसमें आचमन तक नहीं किया जा सकता है, पीना और स्नान करना खतरे से खाली नहीं है। मथुरा के विश्रामघाट, गोकुलघाट, आगरा के रुनकताघाट, कैलाशघाट, बलकेश्वरघाट, रामबागघाट , जोहराबागघाट, एत्माद्दौलाघाट कचहरीघाट हाथीघाट, दशहराघाट, बटेसरघाट तथा चकलाघाट पर भरी मात्रा में श्रद्धालु स्नान किया करते थे। इन घाटों से जुड़े हुए अनेक प्रमुख एतिहासक व सांस्कृतिक स्थल अवस्थित भी हैं। इस ब्रज मण्डल के प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन से यह क्षेत्र सूखा होता गया तथा नदी प्रदूषित होती चली गयी।
यूपी के हिस्से का पानी नहीं मिल रहा:-  अपने उद्गम यमनोत्री से लेकर चम्बल के संगम तक यमुना नदी, गंगा नदी के समानान्तर बहती है। इसके आगे उन दोनों के बीच का अन्तर कम होता जाता है और अन्त में प्रयाग में जाकर वे दोनों संगम बनाकर मिश्रित हो जाती है। यहां यमुना पूर्णरुप से तिरोहित हो जाती हैं। चम्बल के पश्चात यमुना नदी में मिलने वाली नदियों में सेंगर, छोटी सिन्ध, बेतवा और केन उल्लेखनीय हैं। इटावा के पश्चात यमुना के तटवर्ती नगरों में काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रुप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध एतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। यमुना नदी की कुल लम्बाई उद्गम से लेकर प्रयाग संगम तक लगभग 1460 किमी. है। इसमें 30 प्रतिशत भाग पहाड़ी तथा 70 प्रतिशत भाग मैदानी क्षेत्रों से होकर गुजरता है। यमुना जल बंटवारे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलो को हरियाणा से बहुत कम पानी मिल रहा है। जिससे फसलें तो सूख जाती हैं, मानव तथा पशु पक्षियों को भी पीने का पानी नहीं मिल पाता है। इतना ही नहीं यमुना और उससे नहर-रजवाहे बरसाती नाला बनकर मात्र शोपीस रह गए हैं।हरियाणा-उत्तर प्रदेश की सीमा पर बह रही यमुना नदी दो दशक पूर्व पूरे साल पानी से लबालब रहती थी। बरसात के बाद यमुना में मुश्किल से कुछ माह तक पानी रहता है। इसके बाद गर्मी के मौसम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में यमुना सूख जाती है। इसका कारण यमुना जल बंटवारे माना जा रहा है। यमुना जल बंटवारे में दो तिहाई पानी हरियाणा और एक तिहाई पानी यूपी के हिस्से में आता है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों के मुताबिक यमुना में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर- शामली जिलों में दो सौ लेकर से तीन सौ क्यूसेक पानी बह रहा है। बागपत और गाजियाबाद जिले में जाते जाते पानी सूख जाता है। मौजूदा दौर में हथनीकुंड-ताजेवाला बैराज पर कुल 9 हजार 750 क्यूसेक पानी है। जिसमें से हरियाणा को 6500 क्यूसेक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ताजेवाला बैराज पर 2600 क्यूसेक पानी हिस्से में आ रहा है। ताजे वाला बैराज से मिले पानी को यमुना और उसकी सहायक नहरों में छोड़ा जा रहा है, जिससे खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है और फसलें बर्बाद हो रही हैं। हिंडन- कृष्णा, काठा, खोखरी आदि नदियां पानी के अभाव में सूख चुकी हैं। यमुना एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है. दिल्ली के वजीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है। इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही। चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और वो फिर से अपने रूप में वापस आती है। ऐसा नहीं है कि नदी कि हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए. सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाए गए पर हालात जस के तस रहे।
यमुना जल का आगरा में प्रवाह रोका गया है:- बात आगरा की करें तो व्रिटिस जमाने में यहां दो रेलवे पुल थे। बाद में एक और जवाहर पुल बना। बाद में इस पर भी यातायात का लोड बढ़ा तो अभी कुछ साल पहले एक और अंबेडकर पुल भी बना।यमुना किनारा रोड पर दिन भर जाम लगा रहता था। ताजमहल जाने वाले ज्यादातर पर्यटक भी इसी रास्ते से जाते हैं। यह पुल काम चलाऊ तो है परन्तु मजबूत नहीं है। इसके निर्माण में सावधानी ना रखकर बचत किया गया। इसके बनते समय पहले पूर्वी भाग को बांध कर पूर्वी भाग बनाया गया बाद में पश्चिमी भाग की धारा को बांध दिया गया और पश्चिमी भाग का पुल बना दिया गया। पुल बनने के बाद पश्चिमी भाग बंधा रहा और जां भी आधा अधूरा पानी नदी में आता है वह पूर्वी भाग से बहता जाता है। पश्चिम भाग में विशाल रेगिस्तान सा रेतों का अथाह भंडार जम गया है। ऊपर से शहर की सारी गन्दगी इसी भाग पर जमता जा रहा है। गन्दे नाले इसमें गिर कर इसे केवल गंदा करते जा रहे है।मूल शहर की फिजा को इस अवस्था ने खराब कर रखा है। नातो जन प्रतिनिधियों को इस तरफ सोचने या कुछ करने की फुरसत है और ना ही अधिकारी गण इस तरफ अपना निगाह दौड़ा पा रहे हैं। परिणामतः जल संस्थान जैसे सरकारी विभाग को पीने  के पानी की सप्लाई के लिए करोड़ों रुपये हर साल पूर्वी किनारे से पश्चिमी किनारे जल लाने में खर्च करना पड़ता है। आश्चर्य है विधान सभा चुनाव में किसी दल ने ना तो यह मुद्दा उठाया और ना ही किसी आडिट पार्टी को यह बेकार का खर्चा दिखाई पड़ा। उल्टे ताज महल में कीड़ों के प्रकोप को भी कम नही किया जा सका है और शोध तथा सफाई में बहुत बड़ा धन अपव्यय होता जा रहा है।
ताज महल पर गोल्डी काइरोनोमस कीड़ों का हमला:- यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दुनिया का सातवां अजूबा ताज महल बार बार गोल्डी काइरोनोमस कीड़ों का हमला झेल रहा है। यमुना नदी में पानी की कमी और सीवर के साथ गंदगी बढ़ने से काइरोनोमस फैमिली के कीड़े गोल्डी ने इस साल भी ताज की उत्तरी दीवार पर हमला बोल दिया है। कीड़े के साथ आ रही काई से ताज की सफेद दीवारों पर हरे और भूरे रंग के दाग पड़ने शुरू गए हैं। लगातार दूसरे साल अप्रैल की गर्मियों में ताज पर कीड़ों ने हमला बोला है। यमुना नदी के किनारे ताजमहल के उत्तरी दरवाजे की ओर चमेली फर्श और ऊपर मुख्य गुंबद की दीवार पर कीड़ों के निशान नजर आने लगे हैं। यमुना नदी में फैली गंदगी और सीवर के कारण कीड़ों का प्रजनन बढ़ गया है। नदी से नीची उड़ान ही भर पा रहे कीड़े गोल्डी काइरोनोमस ताज की संगमरमरी सतह पर स्राव छोड़ रहे हैं, जो बाद में हरे और भूरे रंग के निशान में बदल रहे हैं। एएसआई ने यद्यपि पानी से इनकी धुलाई कराई है लेकिन गर्मी बढ़ने के कारण इनका प्रकोप बढ़ता जाएगा। बीते साल दुनिया भर में ताज पर कीड़ों की चर्चा हुई तो मामले का स्वतः संज्ञान भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ले लिया लेकिन कीड़ों का हमला रोकने के लिए एडीएम सिटी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जांच के बाद जो कदम उठाने की संस्तुति की गई, वह मानी ही नहीं गई, जिसका असर ये है कि इस साल भी ताज पर कीड़े पहुंचकर दीवारों को हरे रंग में रंग रहे हैं। ताजमहल पर एक नहीं, बल्कि तीन प्रजातियों के कीड़े हमला कर रहे हैं। यमुना में फास्फोरस बढ़ने के कारण गोल्डी काइरोनोमस, पोडीपोडीलम और ग्लिप्टोटेन पहुंच रहे हैं। एएसआई को बीते साल की सैंपलिंग में ये तीनों कीड़े हरा रंग छोड़ते हुए मिले थे। हर दिन लाखों की तादात में यह हमला किया गया था। काइरोनोमस फैमली के यह कीड़े 35 डिग्री तापमान में प्रजनन शुरू करते हैं और 50 डिग्री तक के तापमान को झेल सकते हैं। काइरोनोमस मादा कीट एक बार में एक हजार तक अंडे देती है। लार्वा और प्यूमा के बाद करीब 28 दिन में पूरा कीड़ा बनता है। हालांकि कीड़े की मियाद महज दो दिन है लेकिन मादा कीट के अंडे यमुना नदी में भीषण गंदगी और फास्फोरस की मौजूदगी से बन रहे हैं।
यमुना में पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल आने दिया जायः- आगरा के गौरव को लौटाने के लिए यहां के विश्व विख्यात स्मारकों को बचाने के लिए बस एक ही विकल्प बचता है कि यमुना में पर्याप्त मात्रा में स्व्च्छ जल की आपूर्ति जारी रहे।हरियाण तथा दिल्ली से रोका जाने वाला पानी तुरन्त रिलीज किया जाय। सन् 1994 में दिल्ली हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मध्य हुए समझौते के अनुसार प्राकृतिक जल प्रवाह को बनाये रखने के लिए निरन्तर प्रयास किया जाना चाहिए। यमुना के दोनों तटों पर खली पड़ी भूमि पर सघन वृक्षारोपण कराया जाय। इन पर कदम्ब, गूलर, अर्जुन, पीपल, जामुन, बेल, आंवला व नीम  आदि बृक्षों को योजनाबद्ध रुप में रोपित कराया जाय। प्राचीन विलुप्त जल स्रोतों को पुनः जीवित तथा विकसित किया जाय। शहर से निगलने वाले नाले को नदी में पहुचने से पहले रोका जाय। उसे शोधितकर उद्यान की सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जाय। प्राकृतिक जल व बरसात के पानी को बीच में जगह जगह रोककर छोटे छोटे वैक डैम बनाकर भूतल जल के गिरते स्तर को रोका जाय तथा हार्वेस्टिंग द्वारा जल स्रोत को रिचार्जिग किया जाय। यमुना के किनारे बसे शहरों व उसके घाटों, उन पर पार्कों का निर्माण व सौन्दर्यीकरण कराया जाय।


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