Wednesday, June 21, 2023

हनुमान बाग अयोध्य में लगा हनुमानजी को छप्पन व्यंजन का भोग


श्री अयोध्या धाम के सिद्ध हनुमान बाग के पावन प्रांगण में महर्षि वशिष्ठ स्वशासी मेडिकल कॉलेज बस्ती के सह प्रोफेसर डा. तनु मिश्र और डा. सौरभ द्विवेदी के सुपुत्र बालक ध्रुव को अन्नप्राशन की प्रक्रिया सम्पन्न हुआ।अन्नप्राशन संस्कार परिवारी जन रिश्ते के मान्य जन तथा विद्वान आचार्यों के सानिध्य में सम्पन्न हुआ।। प्रभु श्री हनुमान जी को छप्पन भोग लगाया गया । हनुमान बाग मंदिर के विशाल सभा मंडप पर संत श्री ज्ञान प्रकाश उपाध्याय के श्री मुख से राम चरित मानस के बालकांड के श्री रामजी के जन्म की संगीतमय कथा का रस प्रवाह भी हुआ।
               छप्पन भोग के अनेक कथाएं :-
छप्पन भोग को लेकर पौराणिक ग्रंथों में कई कथाएं प्रचलित हैं. भगवान के इस भोग को अन्नकूट भी कहा जाता है. इसमें कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा ये छह रस या स्वाद होते हैं। इन छह रसों के मेल से अधिकतम 56 प्रकार के खाने योग्य व्यंजन बनाए जा सकते हैं.

छप्पन भोग की कहानी -1

इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था तब उन्हें लगातार सात दिन भूखा रहना पड़ा था। इसके बाद उन्हें सात दिनों और आठ पहर के हिसाब से 56 व्यंजन खिलाए गए थे। माना जाता है तभी से ये ’56 भोग’ परम्परा की शुरुआत हुई। 

छप्पन भोग की कहानी -2

गौ लोक में श्रीकृष्‍ण और राधा एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतों में 56 पंखुड़ियां होती हैं।प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और बीच में भगवान विराजते हैं। इसलिए 56 भोग लगाया जाता है। 

 छप्पन भोग की कहानी -3

56 बारातियों के समलित होने के कारण ये नाम:-

श्रीकृष्ण की बारात में बने थे 56 भोगभोग शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जब भगवान बारात लेकर श्रीराधा रानी को ब्याहने बरसाना गए थे तो उऩकी बारात के स्वागत- सत्कार के लिए श्रीवृषभानजी की ओर से 56 भोग बनाए थे. इस विवाह समारोह में शामिल होने वाले सभी मेहमानों की संख्या भी 56 थी. श्रीकृष्ण को विवाह समारोह में 56 भोग समर्पित करने वाले 9 नंद, 9 उपनंद, 6 वृषभानु, 24 पटरानी और सखाओं का योग भी 56 था.
 
 56 भोग में शामिल व्यंजनों के नाम:-
 
1) भक्त (भात),2) सूप (दाल),3) प्रलेह (चटनी),4) सदिका (कढ़ी),5) दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),6) सिखरिणी (सिखरन),7) अवलेह (शरबत),8) बालका (बाटी) 9) इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),10) त्रिकोण (शर्करा युक्त),11) बटक (बड़ा),12) मधु शीर्षक (मठरी),13) फेणिका (फेनी),14) परिष्टाश्च (पूरी),15) शतपत्र (खजला),16) सधिद्रक (घेवर)17) चक्राम (मालपुआ),18) चिल्डिका (चोला),19) सुधाकुंडलिका (जलेबी),20) धृतपूर (मेसू),21) वायुपूर (रसगुल्ला),22) चन्द्रकला (पगी हुई),23) दधि (महारायता),24) स्थूली (थूली)25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26. खंड मंडल (खुरमा), 27. गोधूम (दलिया), 28. परिखा, 29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30. दधिरूप (बिलसारू), 31. मोदक (लड्डू), 32. शाक (साग) 33. सौधान (अधानौ अचार), 34. मंडका (मोठ), 35. पायस (खीर) 36. दधि (दही), 37. गोघृत, 38. हैयंगपीनम (मक्खन), 39. मंडूरी (मलाई), 40. कूपिका 41. पर्पट (पापड़), 42. शक्तिका (सीरा), 43. लसिका (लस्सी), 44. सुवत, 45. संघाय (मोहन), 46. सुफला (सुपारी), 47. सिता (इलायची), 48. फल,
7. 49. तांबूल, 50. मोहन भोग, 51. लवण, 52. कषाय, 53. मधुर, 54. तिक्त, 55. कटु, 56. अम्ल.

भोग का समय :-

भोग के समय का खास ध्यान रखना चाहिए. जिस वक्त पूजा कर रहे हैं, उस वक्त भोग लगाना चाहिए. इसके लिए घर के सभी लोगों को साथ होना चाहिए. भोग लगाने के बाद भगवान के सामने कुछ देर तक उस भोग को रखें और फिर पूजा के बाद सभी लोगों में बांट देना चाहिए.

Tuesday, June 20, 2023

हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में अन्नप्राशन एक महत्वपूर्ण संस्कार

      सनातन हिन्दू धर्म एक शाश्वत और प्राचीन धर्म है। यह एक वैज्ञानिक और विज्ञान आधारित धर्म होने के कारण निरंतर विकास कर रहा है। माना जाता है कि इसकी स्थापना ऋषियों और मुनियों ने की है। इसका मूल पूर्णत: वैज्ञानिक होने के कारण सदियां बीत जाने के बाद भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। प्रारम्भिक काल में हिन्दू समाज में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अनुसार शिक्षा दी जाती थी, जो वैज्ञानिक होने के कारण विकासोन्मुख थी। सोलह संस्कारों को हिन्दू धर्म की जड़ कहें तो गलत नहीं होगा। इन्हीं सोलह संस्कारों में इस धर्म की संस्कृति और परम्पराएं निहित हैं जो निम्र हैं-
(1). गर्भाधान संस्कार, (2). पुंसवन संस्कार. (3). सीमन्तोन्नयन संस्कार, (4). जातकर्म संस्कार, (5). नामकरण संस्कार, (6). निष्क्रमण संस्कार, (7). अन्नप्राशन संस्कार, (8). चूड़ाकर्म संस्कार, (9). विद्यारम्भ संस्कार, (10). कर्णवेध संस्कार, (11). यज्ञोपवीत संस्कार, (12). वेदारम्भ संस्कार, (13). केशान्त संस्कार, (14). समावर्तन संस्कार, (15). विवाह संस्कार, (16). अंत्येष्टि संस्कार।
अन्नप्राशन संस्कारमें क्या होता है :-
इस संस्कार का उद्देश्य शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करना है। अन्नप्राशन का स्पष्ट अर्थ है कि शिशु जो अब तक पेय पदार्थो विशेषकर दूध पर आधारित था अब अन्न जिसे शास्त्रों में प्राण कहा गया है उसको ग्रहण कर शारीरिक व मानसिक रूप से अपने को बलवान व प्रबुद्ध बनाए रखना है। तन और मन को सुदृढ़ बनाने में अन्न का सर्वाधिक योगदान है। शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक आहार से ही तन स्वस्थ रहता है और स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। आहार शुद्ध होने पर ही अन्त:करण शुद्ध होता है तथा मन, बुद्धि, आत्मा सबका पोषण होता है। इसलिये इस संस्कार का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।
             हमारे धर्माचार्यो ने अन्नप्राशन के लिये जन्म से छठे महीने को उपयुक्त माना है। छठे मास में शुभ नक्षत्र एवं शुभ दिन देखकर यह संस्कार करना चाहिए। खीर और मिठाई से शिशु के अन्नग्रहण को शुभ माना गया है। अमृत: क्षीर भोजनम् हमारे शास्त्रों में खीर को अमृत के समान उत्तम माना गया है। शास्त्र मुहूर्त के अनुसार 21 दिसंबर 2022 को जन्मे जातक का 21 जून 2023 को छः मास पूरे होने पर अन्नप्राशन संस्कार कराया जा सकता है। 
       इसी बेला पर श्री अयोध्या धाम के वासुदेव घाट पर स्थित सिद्ध हनुमान बाग के पावन प्रांगण में मेरे कनिष्ठ पुत्र डा. सौरभ द्विवेदी- डा. तनु मिश्र के पुत्र मेरे पास रह रहे मेरे तृतीय पौत्र चिरंजीवी बालक ध्रुव का अन्नप्राशन संस्कार परिवारी जन , रिश्ते के मान्य जन तथा विद्वान आचार्यों के सानिध्य में सम्पन्न होने जा रहा है। प्रभु राम और हनुमान जी को छप्पन भोग लगाया जाएगा और तदुपरांत बालक को अन्नप्राशन की प्रक्रिया आचार्य आलोक मिश्र द्वारा सम्पन्न कराई जाएगी।मंदिर के विशाल सभा मंडप पर संत श्री ज्ञान प्रकाश उपाध्याय के श्री मुख से राम चरित मानस के बालकांड के श्री राम जी के जन्म की संगीतमय कथा का रसपान भी लोग कर सकेंगे।साथ ही साधु सन्यासी और उपस्थित गृहस्थ मंदिर प्रांगण में श्री प्रसाद भोग का रसास्वादन भी कर सकेगे।
अन्नप्राशन संस्कार में हिंदू धर्म में मनुष्य के पैदा होने से मरण तक 16 संस्कार किए जाते हैं। इन सभी का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है । ऐसे में हमारी कोशिश है कि हम आपको हिंदू धर्म के सभी संस्कारों के बारे में संक्षेप से बता पाएं। इन्हीं 16 संस्कारों में से 7वां संस्कार है अन्नप्राशन। अन्नप्राशन वह संस्कार है जब शिशु को पारंपरिक विधियों के साथ पहली बार अनाज खिलाया जाता है। इससे पहले तक शिशु केवल अपनी माता के दूध पर ही निर्भर रहता है। यह संस्कार बेहद महत्वपूर्ण है।
अन्नप्राशन संस्कार का महत्व:-
अन्नप्राशन संस्कृत के शब्द से बना है जिसका अर्थ अनाज का सेवन करने की शुरुआत है। इस दिन शिशु के माता- पिता पूरे विधि-विधान के साथ बच्चे को अन्न खिलाते हैं। कहा गया है "अन्नाशनान्यातृगर्भे मलाशालि शद्धयति" जिसका अर्थ होता है माता के माता के गर्भ में रहते हुए जातक में मलिन भोजन के जो दोष आ जाते हैं उनका नाश हो जाता है।
कब और कैसे किया जाता है अन्नप्राशन संस्कार:-
जब बालक 6-7 महीने का हो जाता है और पाचनशक्ति प्रबल होने लगती है तब यह संस्कार किया जाता है। शास्त्रों में अन्न को ही जीवन का प्राण बताया गया है। ऐसे में शिशु के लिए इस संस्कार का अधिक महत्व होता है। शिशु को ऐसा अन्न दिया जाना चाहिए जो उसे पचाने में आसानी हो साथ ही भोजन पौष्टिक भी हो। शुभ मुहूर्त में देवताओं का पूजन करने के पश्चात् माता-पिता समेत घर के बाकी सदस्य सोने या चाँदी की शलाका या चम्मच से निम्नलिखित मन्त्र के जाप से बालक को हविष्यान्न (खीर) आदि चटाते हैं। ये मंत्र इस प्रकार है --
शिवौ ते स्तां व्रीहियवावबलासावदोमधौ । 
एतौ यक्ष्मं वि वाधेते एतौ मुञ्चतो अंहसः॥ 
( अर्थात् हे 'बालक! जौ और चावल तुम्हारे लिये बलदायक तथा पुष्टिकारक हों। क्योंकि ये दोनों वस्तुएं यक्ष्मा-नाशक हैं तथा देवान्न होने से पापनाशक हैं।')
        इस संस्कार के अन्तर्गत देवों को खाद्य-पदार्थ निवेदित होकर अन्न खिलाने का विधान बताया गया है। अन्न ही मनुष्य का स्वाभाविक भोजन है। उसे भगवान का कृपाप्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिये।
अन्नप्राशन में पहली बार क्या होता है:-
अन्नप्राशन आपके बच्चे के स्वास्थ्य और खुशी के लिए पूजा या हवन के साथ शुरू होता है, इसके बाद प्रसाद का प्रतीकात्मक भोजन या ठोस भोजन का पहला निवाला होता है। यह उत्सव का अवसर है, और परिवार और दोस्तों को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
अन्नप्रासन में बच्चे को कौन खिलाता है:-
यह उत्सव का अवसर है, और विस्तारित परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। बंगाली हिंदू संस्कृति में, अन्नप्राशन एक विस्तृत समारोह है जिसे मुखाभात 'मुंह में चावल' या मांभात 'मातृ चावल' कहा जाता है, जहां बच्चे के मामा या नाना उन्हें चावल खिलाते हैं।यदि हम ज्योतिष या शास्त्रों की मानें तो इस समारोह का सबसे महत्वपूर्ण भोजन चावल की खीर या हलवा होता है।
      समारोह के बाद एक खेल होता है, जहाँ बच्चे को केले के पत्ते या चांदी की थाली दी जाती है जिसमें कुछ वस्तुएँ होती हैं: मिट्टी की एक छोटी मात्रा (संपत्ति का प्रतीक), एक किताब (सीखने का प्रतीक), एक कलम (ज्ञान) का प्रतीक), और सिक्के या पैसा (धन का प्रतीक)। पारंपरिक मान्यता यह है कि बच्चे द्वारा उठाई गई वस्तु उनके भविष्य में एक प्रमुख आकर्षण का प्रतिनिधित्व करती है। बच्चे का बड़ा रिश्ता और बड़े मेहमान बारी-बारी से बच्चे का छोटा सा हिस्सा खिलाते हैं। खीरऔर बच्चे के सिर पर धान (चावल के बीज) और डब्बा (घास के आकार का) उनका अधिशेष लें।










Sunday, June 18, 2023

अमेरिकी प्रभाव वाला नहीं भारतीय संस्कृति वाला पितृ दिवस मनाएं --- डा. राधे श्याम द्विवेदी

हमारा समाज और पिता की भूमिका :-
समाज केवल स्त्री को ही स्त्री नहीं बनाता बल्कि एक पुरुष को भी पुरुष बनने और बने रहने को बाध्य करता है। पुरुषत्व के कारण एक पुरुष दहाड़ मारकर रो नहीं सकता, सिसक नहीं सकता, गृहस्थी में हाथ बंटा नहीं सकता, बच्चों और अपनी पत्नी के प्रति प्रेम की अभिवयक्ति खुलकर नहीं कर सकता क्योंकि इसकी इजाजत उसे समाज नहीं देता। समाज पुरुष को कठोर बने रहने, भावनाओं को काबू मे करने, परिवार को, समाज को यहां तक की देश को नियंत्रण मे रखने की शिक्षा देता है। 
       पिता पेड़ की वो छाँव है जिसमे बच्चे आराम से पलते है। बाहर से सख्त और कठोर दिल के दिखने वाले पिता हमारे दोस्त और गुरु दोनों होते हैं। उनकी सलाह से हमेशा आगे बढ़ने की सीख मिलती है। पिता एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसकी तुलना किसी और रिश्ते से नहीं हो सकती है । बच्चा का पहला शब्द माँ हो सकता है लेकिन ऊँगली वो पिता का ही थामता है और उसकी बाँहों में रहकर बहुत सुकून पाता है।
365 दिन ताउम्र जिंदगी में पिता का स्थान अति उत्तम है:-
गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में लिखा है _
गुर पितु मातु बंधु सुर साईं। सेइअहिं सकल प्रान की नाईं॥
गुरु, पिता, माता, भाई, देवता और स्वामी, इन सबकी सेवा प्राण के समान करनी चाहिए। ये सेवा और त्याग को केवल एक दिन फादर्स डे में नही समेटा जा सकता है अपितु इसके लिए 365 दिन यानी ताउम्र जिंदगी भी कम है। हम पाश्चात्य अमेरिका का नकल कर एक दिन पिता को सम्मान देकर अपना कर्तव्य पूर्ण मान लेते हैं और अपने शास्त्र परंपरा और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं। अमेरिका के ईसाई परिवार ने इस परम्परा का शुरुवात किया था।
पाश्चात्य अमेरिका प्रभाव वाला फादर्स डे :-
फादर्स डे हर वर्ष भीषण गर्मी के जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है. यह दिन पिता और उनके प्यार और त्याग के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए समर्पित है. पिता परिवार के वह सदस्य होते हैं जिनके बच्चे के पालन-पोषण में योगदान की अक्सर अनदेखी की जाती है. बिना किसी शिकायत के वे हर वो काम करते हैं जो उनके बच्चों और परिवार के लिए जरूरी होता है. एक पिता अपने परिवारों को स्वस्थ और खुश रखने के लिए दिन-रात काम करते हैं। इन अनजाने प्रयासों को अक्सर हल्के में लिया जाता है और उनकी जिम्मेदारियों में बदल दिया जाता है.  
     फादर्स डे को सबसे पहले यूएसए में सोनोरा स्मार्ट डोड द्वारा प्रस्तावित किया गया था. साल 1909 में एक अमेरिकी लड़की सोनोरा स्मार्ट डोड ने पिता के सम्मान के लिए एक विचार का प्रस्ताव रखा. कई स्थानीय पादरियों ने इस विचार को स्वीकार किया, और 19 जून, 1910 को सोनोरा स्मार्ट डोड द्वारा स्पोकेन, वाशिंगटन में पहला फादर्स डे समारोह मनाया गया. 
     भारत में Father’s Day का मूल रिवाज नहीं है, बल्कि इसे पश्चिमी देशों के प्रभाव से मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई आदि जैसे कुछ बड़े शहरों में मनाया जाता है. दुनिया भर में Fathers Day अपने पिता को यह बताने के लिए होता है कि वे उनके जीवन में कितना महत्व रखते हैं साथ ही यह दिन पिता को धन्यवाद करने और उन्हें सम्मानित करने के मकसद से मनाया जाता है। अपने पापा को विशेष महसूस कराने के लिए, या मृत पिता को श्रध्दांजलि देने के लिए या उन्हें याद करते हुए भी पिता दिवस मनाया जा सकता है।
 भारत में सर्वपितृपक्ष अमावस्या को विसर्जनी या महालया अमावस्या भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, 16 दिन से धरती पर आए हुए पितर इस अमावस्या के दिन अपने पितृलोक में पुनः चले जाते हैं. पितृ विसर्जन के दिन पवित्र नदी में स्नान कर तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर कर पितरों को सम्मानपूर्वक विदाई दी जाती है. 
माता-पिता और गुरु तीनों का सर्वोच्च स्थान:-
हमारे सनातन ग्रन्थों में माता-पिता और गुरु तीनों को ही देवता माना गया है। जिस स्थूल जगत् में हम हैं, उसमें वही हमारे वास्तविक देवता हैं। इनकी सेवा और भक्ति में कसर रह जाए तो फिर ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं। और अगर हमने इनकी सेवा पूरे मन से की तो भगवान स्वयं कच्चे धागे से बंधे भक्त के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं। आखिर श्रवण कुमार में ऐसा क्या ख़ास था कि किसी भी भगवान से उनकी अहमियत कम नहीं है। माता-पिता की भक्ति और सेवा ने उसे भक्त प्रह्लाद और ध्रुव के बराबर का आसन दिलाया है।


Thursday, June 15, 2023

श्री शोभाराम दूबे जी की 95वीं जयंती पर सादर स्मरण

 
बचपन और शिक्षा :--
मेरे बाबूजी का नाम शोभाराम दूबे था, जिन्हें हम बचपन से बाबू ही कहकर पुकारा करते थे। इनका जन्म 15 जून 1929 ई. को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। खाते पीते घर में शिक्षा का माहौल अनुकूल नहीं था। परिवार का पालन पोषण तथा शिक्षा के लिए बाबूजी को उनके पिताजी पंडित मोहन प्यारे जी लखनऊ लेकर चले गये थे। उन्होने 1945 में लखनऊ के क्वींस ऐग्लो संस्कृत हाई स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा उस समय ‘प्रथम श्रेणी’ से अंग्रेजी, गणित, इतिहास एवं प्रारम्भिक नागरिकशास्त्र आदि अनिवार्य विषयों तथा हिन्दी और संस्कृत एच्छिक विषयों से उत्तीर्ण की है। इन्टरमीडिएट परीक्षा 1947 में कामर्स से द्वितीय श्रेणी में अंग्रेजी, बुक कीपिंग एण्ड एकाउन्टेंसी, विजनेस मेथेड करेसपाण्डेंस, इलेमेन्टरी एकोनामिक्स एण्ड कामर्सियल ज्याग्रफी तथा स्टेनो- टाइपिंग विषयों से उत्तीर्ण किया था। 
सरकारी सेवा में:-
बाबूजी सहकारिता विभाग में सरकारी सेवा में लिपिक पद पर नियुक्ति पाये थे। बाद में बाबूजी ने विभागीय परीक्षा देकर लिपिक पद से आडीटर के पद पर अपनी नियुक्ति करा लिये थे। अब बाबूजी का कार्य का दायरा बदल गया और अपने विभाग के नामी गिरामी अधिकारियों में बाबूजी का नाम हो गया था। बाबूजी अपने सिद्धान्त के बहुत ही पक्के थें उन्होने अनेक विभागीय अनियमितताओं को उजागर किया था इसका कोप भाजन भी उन्हें बनना पड़ा था। उस समय उत्तराखण्ड उत्तरप्रदेश का ही भाग था। बाबूजी को टेहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल भी जाना पड़ा था। वैसे वे अधिकांशतः पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही अपनी सेवाये दियें हैं। बस्ती तो वे कभी रहे नहीं परन्तु गोण्डा, गोरखपुर, देवरिया, बलिया, आजमगढ, बहराइच, गाजीपुर, जौनपुर तथा फैजाबाद आदि स्थानों पर एक से ज्यादा बार अपना कार्यकाल बिताया है। बाबूजी का आडीटर के बाद सीनियर आडीटर के पद पर प्रोन्नति पा गये थे। सीनियर आडीटर के जिम्मे जिले की पूरी जिम्मेदारी होती थी। बाद में यह पद जिला लेखा परीक्षाधिकारी के रुप में राजपत्रित हो गया था । इण्टर पास बाबूजी ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से 1975 में बी. ए. की उपधि प्राप्त की थी। 
उ.प्र. राज्य परिवहन में प्रतिनियुक्ति :-
 सहकारिता विभाग में अच्छी छवि होने के कारण बाबूजी को प्रतिनियुक्ति पर उ. प्र. राज्य परिवहन में भी कार्य करने का अवसर मिला था। ये क्षेत्रीय प्रबन्धक के कार्यालय में बैठते थे और उस मण्डल के आने वाले सभी जिला स्तरीय कार्यालयों के लेखा का सम्पे्रेक्षण करते थे। उनकी नियुक्ति कानपुर के केन्द्रीय कार्यशाला में 23.12.1982 को हुआ था। यहां से वे औराई तथा इटावा के कार्यालयों के मामले भी देखा करते थे। अपनी सेवा का शेष समय बाबूजी ने राज्य परिवहन में पूरा किया था। 1985 में वह कानपुर से गोरखपुर कार्यालय में सम्बद्ध हो गये थे। यहां से वे आजमगढ़ के कार्यालय के मामले भी देखा करते थे। गोरखपुर कार्यालय से वे 30.06.1987 में सेवामुक्त हुए थे। 
पारिवारिक जीवन :-
बाबूजी अपने पैतृक जन्मभूमि दुबौली दूबे पर कम तथा इस नेवासा वाले जगह मरवातिया पाण्डेय पर ज्यादा रहने लगे थे। वे बाहर भी अकेले रहते थे। माता जी को बहुत कम अपने पास रख पाते थे क्यो कि घर पर नानाजी भी तो अकेले थे। मेरे भाई साहब को बाबूजी के पास फैजाबाद, बहराइच, गाजीपुर तथा जौनपुर में रहकर पढ़ने का मौका मिल गया था। मुझे उनके साथ समय विताने का अवसर कम मिल पाया था। हमें जब भी अपने पढ़ाई तथा बच्चे के पढ़ाई से समय मिलता मैं उनके आवास यानी अपने ननिहाल स्वयं, पत्नी तथा बच्चे के साथ अवश्य जाता और वह बहुत ही प्रसन्न होते थे ।मैंने सोचा था कि जब मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हूंगा तो बाबूजी के साथ समय बिताउगां। उनके सुख दुख में भागी बनूंगा। पर ईश्वर ने एसा करने का अवसर नहीं दिया। हमें थोड़े-थोड़े समय के लिए उनके साथ रहने का अवसर ही मिल पाया। इस बात का मुझे बहुत मलाल रहा है।
एक सिद्धांतवादी सख्त अधिकारी :-
स्टेटऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर' केस के सूत्रधार:-
फैजाबाद में सहकारिता विभाग का एक बहुत बड़ा घोटाला जिसमें कांग्रेसी नेता विश्वनाथ कपूर संलिप्त थे,बाबूजी के द्वारा ही उजागर हुआ था। अयोध्या का क्षेत्र फैजाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र के तहत तब आता था।1967 के चुनाव में अयोध्या अलग विधान सभा सीट बना था। जहां 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर जीतने में कामयाब रहे। उनके द्वारा हुए घोटाले का स्थानीय और फिर उच्च न्यायालय में विचारण हुआ था। जिला सहकारी बैंक फैजाबाद, जिसमें श्री विश्वनाथ कपूर, अधिवक्ता प्रबंध निदेशक थे और श्री जोखन सिंह कैशियर थे और एलन खान कार्यवाहक प्रबंधक थे और महराज बक्स सिंह सामग्री सहायक लेखाकार थे। राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित एक निगम है और , इसलिए उक्त आरोपी व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन हाई कोर्ट में ''स्टेट ऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर'' और अन्य केस चला था। इसका निस्तारण 14 जनवरी 1980 को न्यायमूर्ति टी मिश्रा द्वारा हुआ था। इस संदर्भित प्रश्न का न्यायमूर्ति का उत्तर इस प्रकार रहा है- यूपी सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत एक सहकारी समिति एक केंद्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित निगम नहीं है ।इस उत्तर के साथ कागजात माननीय एकल न्यायाधीश के समक्ष रखे जाने का आदेश पारित किया गया था।उक्त आरोपी व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।वे इस घोटाले के जिम्मेदार बनाए गए।
सिस्टम ना सुधारने की नसीहत:-
इस प्रकार विभागीय घोटालों को प्रकाश में लाने पर मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी श्री अवधेश चंद्र दुबे ने बाबू जी को लखनऊ में बुलाकर सिस्टम को सुधारने को छोड़ अपना कार्यकाल सामान्य रूप में बिताने की नसीहत दी थी।
परम तत्व में समाहित :-
 17 जनवरी 2011 को वह महान आत्मा हमेशा हमेशा के लिए हमसे दूर होकर परम तत्व में बिलीन हो गया। उनकी प्रेरणा व स्मृतियां आज भी मेरे व मेरे परिवार को सम्बल प्रदान करती है। बाबूजी के 94वी साल गिरह जो 15 जून को मैं उन्हें सादर नमन करता हूं और स्मृतियों में उन्हे अपने साथ पाते हुए उनके बताये हुए रास्ते पर चलने का प्रयत्न करता हू।उनके पुण्य प्रताप से आज मेरा खुशहाल भरा पूरा परिवार उन्हें श्रद्धावनत हो रहा है। परम धाम से उनकी सदैव कृपा दृष्टि बनी रहे। बाबू जी को परमधाम गए ग्यारह वर्ष व्यतीत हो गए।उनकी जन्म तिथि पर श्रद्धा के प्रसून अर्पित करते हुए उनके शांतिमय पारलौकिक जीवन की परमपिता से प्रार्थना करता हूं।

 

 

 



 
  

Tuesday, June 13, 2023

दिन के उजाले में भी जलती रहती हैं रोड की लाइटें रात में होती रहती है लो वोल्टेज की आंख मिचौली


बस्ती जिला मुख्यालय का बिजली विभाग की करतूत किसी से छिपा नहीं है। दिन के उजाले में भी जलती रहती हैं रोड की लाइटें जलती देखी जा सकती है। इसके विपरीत रात में होती रहती है लो वोल्टेज की आंख मिचौली ।

दिन के उजाले में भी जलती रहती है रोड लाइटें:-
 
जहां एक ओर सरकारों द्वारा यह नारा दिया जाता है कि राष्ट्र हित में बिजली बचाओ वही दूसरी ओर विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के चलते दिन में भी रोड लाइट जलती रहती है। सरकार के आदेश व नियमों की विभाग की उदासीनता के चलते धज्जियां उड़ाई जा रही है, जिसमें सबसे बड़ी लापरवाही विभाग की कर्मचारियों की लगती है कि वह रोड पर दिन में जल रही लाइटों को बंद करने की सुध लेना भूल जाते हैं।

नगरपालिका क्षेत्र के हर वार्डों में दिन भर बिजली की रोड लाइट जलती रहती है। जिसका खर्चा आमजन को भुगतना पड़ता है।गौरतलब है कि नगरपालिका क्षेत्र की रोड लाइटों का बिजली खर्च बिजली उपभोक्ताओं के विद्युत बिलों में नगरीय उपकर के रूप में जोड़कर वसूला जा रहा है।

बिजली की आंखमिचौली व लो वोल्टेज ने बढ़ायी समस्या:-

शहर में बिजली की आंख मिचौली एक बार फिर शुरू हो गयी है। सुबह से रात तक बिजली के आने और जाने का सिलसिला जारी रहता है। बिजली की आंख मिचौली  के  बीच लो वोल्टेज की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है जिससे लोगों की समस्या बढ़ जाती है। विदित हो कि शहरी क्षेत्र में पिछले कई माह से बिजली की आंख मिचौली जारी है। इससे भीषण गर्मी में लोगों का घर में रहना मुश्किल हो जाता है। 

आनंद नगर कटरा बस्ती की हालत बहुत ही खराब:-

बिजली विभाग, पुराना डाकखाना वार्ड संख्या 17 के आनंद नगर कटरा की जनता को नहीं मिल रहा है लो वोल्टेज से निजात । पूरी रात बिजली की आंख मिचौली देखने को मिलती है। फ्रिज इनवर्टर और बिजली के उपकरण रोज के रोज फुक रहे हैं। बिजली के दुकानदारों और मिस्तारियों की मांग बढ़ गई है। बिजली विभाग के उच्चाधिकारियों की उदासीनता से वजह से बिजली का भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं को भी नहीं मिल पा रही है पूरी बिजली का लोड।

अवर अभियंता और एसडीओ की मदद से लाइनमैन और बिजली विभाग अपनी मनमानी कर रहे हैं और समय पर बिल भरने वाली जनता - उपभोक्ता इस चक्की में पिसती जा रही है ।प्रति माह बिजली का भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं को बिजली कटौती लो वोल्टेज का सामना करना पड़ रहा है।

कटिया कनेक्शन की मदद से बिजली विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारियों का घर चल रहा है। शासन के आदेश की बिजली विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारी धज्जियां सरेआम उड़ा रहे हैं।

जहां एक तरफ शासन कह रहा है जिन का बकाया उनकी बिजली कटौती वही लाइनमैन बिजली देने के नाम पर प्रतिमाह हफ्ता बांधकर वसूली भी कर रहे हैं ।

जिला प्रशासन नहीं ले रहा है संज्ञान :-

बिजली का भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं को लो वोल्टेज और कटौती का सामना कब तक करना पड़ेगा
बिजली विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारियों की वजह से बड़े बकायादार मौज कर रहे हैं। इस भीषण गर्मी में उपभोक्ताओं को गर्मी का सामना आखिर कब तक करना पड़ेगा? डीएम एसपी तथा विद्युत विभाग के अधिकारी रोज के रोज इन व्यवस्था से रूबरू होते हैं पर उनकी संवेदनाएं बिलकुल मर चुकी है।

जहां एक तरफ योगी सरकार कह रही है जीरो टॉलरेंस पर कर रहे हैं काम वही बिजली विभाग योगी सरकार के आदेशों की उड़ा रहा है धज्जिया। अच्छा हुआ बस्ती जिला मुख्यालय में ट्रिपल इंजन नही लगने पाया और नगर पालिका का अध्यक्ष विपक्ष के पाले में चली गई। मीटिंग पर मीटिंग हो रही है।एक महीने में बिजली वैसे ही रो रही है। सड़क गड्ढे से मुक्त नहीं हुआ और सीवर गंदगी पूर्ववत फैली दिखाई देती है। 

सड़को की हालत बदतर:-

मरम्मत व देखभाल न होने के चलते अधिकतर सड़कें गड्ढे में तब्दील हो गयी है लेकिन मरम्मत न होने से यह सड़कें बदहाल है। सड़क पर सफर सुविधाजनक होने की जगह कष्टप्रद हो गया है। इन दिनों इन सड़कों की हालत खराब होती गयी और अब यह जानलेवा बन गयी है। कारण कि जगह-जगह पर सड़क टूटकर गड्ढों में तब्दील हो गयी है और गिट्टियां सड़क पर फैल गयी है। जिससे आए दिन लोग इनमें फंसकर दुर्घटना का शिकार होते हैं। शहर की सड़कों पर चलना दूभर हो गया है। शहर के प्रमुख मार्गों पर जगह-जगह गड्ढे बन गए हैं। इससे छोटे-बड़े सभी वाहन हिचकोले खा रहे हैं। उबड़-खाबड़ सड़क पर अक्सर कोई न कोई राहगीर दुर्घटना का शिकार बन रहा है। यातायात का दबाव बढ़ते ही परेशानी और बढ़ जा रही है। वाहन चलाने वाले हर व्यक्ति की इसी उधेड़-बुन में रहता है कि सामने और दाएं-बाएं चल रहे वाहनों से सुरक्षित रहे या फिर सड़क पर बने गड्ढों में लड़खड़ाने से बचा जाए। इसी चक्कर में अक्सर वाहनों की भिड़ंत भी हो जा रही है। 

ब्लाक रोड और धर्मशाला रोड भी खस्ताहाल :-

शहर को सीधे हाईवे से जोड़ने वाला ब्लाक रोड भी खस्ताहाल हो चुका है। दो किलोमीटर लंबी यह सड़क बड़ेवन से लेकर रौता चौराहे तक जगह-जगह क्षतिग्रस्त होकर गड्ढों में तब्दील हो गई है। इससे बचने के चक्कर में दो पहिया, चार पहिया वाहन सवार अक्सर अनियंत्रित हो जा रहे हैं। इस मार्ग पर बहुत संभलकर यात्रा करनी पड़ रही है। यहीं हाल रौता चौराहा से धर्मशाला मार्ग का भी है। मुख्य बाजार गांधीनगर से जोड़ने वाली यह सड़क कई जगहों पर टूट चुकी है। यहां भी लोगों की सुगम यात्रा नहीं हो पा रही है। रिंग रोड और चार फॉर टू लेन केवल अखबार तक सीमित रह गया है। कलेक्ट्री से जेल रोड, मालवीय रोड जिला अस्पताल कैली रोड ज्यों का त्यों बना हुआ है।कोई सुधार नहीं दिख रहा है। 2024 आने में ज्यादा समय नहीं है। जनता तो हिसाब पूछेगी ही। माननीय कुछ तो करें।रोज के रोज इन नाजुक स्थिति को देखते ही होंगे। मोदी और योगी के नाम का सुरक्षा कवच स्थाई तो है नही। एक भुक्त भोगी परिवार की व्यथा आम मोहल्ले की तरफ से डबल इंजन की सरकार को जानकारी हेतु जन हित में प्रसारित की जा रही है।