Wednesday, April 26, 2017

यमुना का पानी जहर बीमारियों का खतरा - डा. राधेश्याम द्विवेदी

                           

800 किमी लंबी यमुना की आगरा में बहुत दुर्दशा हो रही है। दिल्ली से निकलने के बाद ही यह नदी नाले में            तब्दील हो जाती है। मथुरा और आगरा में भी 150 से अधिक नाले यमुना को सीवर की दुर्गंध से भर रहे हैं।
यमुना का पानी जहर हो गया है। यमुना  में जहर उगलते कारखानों और गंदे नालों की वजह से मैली हो गई है। यमुना की निर्मलता और स्वच्छता को बनाए रखने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन इस पर कायदे से अब तक अमल नहीं हो पाया है। नजफगढ़ का नाला इसमें गिरता है और फिर पानी का रंग बदल कर काला हो जाता है। एक तरफ यमुना में कचरे का अंबार दिखता है तो दूसरी तरफ काला स्याह पानी। ओखला में कूड़े से खाद बनाने के कारखाने से निकलने वाली जहरीली गैस से आसपास के लोगों का जीना दूभर हो गया है। ऐसा ही संयंत्र दशकों पहले वजीराबाद पुल के पास बना था। उत्तर प्रदेश में भी मथुरा और आगरा जैसे शहरों के गंदे नाले सीधे यमुना में गिरते हैं। इन्हें रोकने के लिए अब तक गंभीर कोशिश नहीं हुई है। आज की यमुना अपने उद्गम से लेकर संगम तक कहीं भी गंदगी से मुक्त नहीं है। यमुना नदी में खतरनाक बैक्टीरिया का हमला हो गया है। यह बैक्टीरिया सीवर की गंदगी से पनपा है और नदी तक पहुंच गया है। यह खुलासा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में किया है। मार्च 2017 में 21 बार यमुना जल के नमूनों की जांच रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली स्थिति आई है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का आकड़ा :- उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने यमुना की डाउन स्ट्रीम, अपर स्ट्रीम और जीवनी मंडी पर 21 बार नियमित अंतराल पर जल परीक्षण किए। परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार जिन खतरनाक सीवर बैक्टीरिया का मानक 500 से 5000 एमपीएन/100 एमएल होना चाहिए, उनकी संख्या ताजमहल के पास यमुना जल में 1,10000 से 1,40000 एमपीएन/100 एमएल है। जल संस्थान का ट्रीटमेंट सिस्टम भी इन बैक्टीरिया को काबू नहीं कर पा रहा है। इनका उपचार सिर्फ बायॉलोजिकल ट्रीटमेंट ही है। इस लिहाज से यमुना का पानी शोधन के बाद भी पीने लायक नहीं है। यूपीपीसीबी ने एक महीने तक यमुना जल की गुणवत्ता का परीक्षण किया। सभी परीक्षण स्थलों पर बैक्टीरिया की संख्या मानकों से कई गुना अधिक मिली। जहां अपर स्ट्रीम कैलाश घाट पर बैक्टीरिया की संख्या 28,000 से 33,000 एमपीएन/100 एमएल रही, वहीं जीवनी मंडी पर इन बैक्टीरिया की संख्या 37,000 से 47,000 एमपीएन/100 एमएल दर्ज की गई है।
ताज महल पर गोल्डी काइरोनोमस कीड़ों का हमला:- यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दुनिया का सातवां अजूबा ताज महल बार बार गोल्डी काइरोनोमस कीड़ों का हमला झेल रहा है। यमुना नदी में पानी की कमी और सीवर के साथ गंदगी बढ़ने से काइरोनोमस फैमिली के कीड़े गोल्डी ने इस साल भी ताज की उत्तरी दीवार पर हमला बोल दिया है। कीड़े के साथ आ रही काई से ताज की सफेद दीवारों पर हरे और भूरे रंग के दाग पड़ने शुरू गए हैं। लगातार दूसरे साल अप्रैल की गर्मियों में ताज पर कीड़ों ने हमला बोला है। यमुना नदी के किनारे ताजमहल के उत्तरी दरवाजे की ओर चमेली फर्श और ऊपर मुख्य गुंबद की दीवार पर कीड़ों के निशान नजर आने लगे हैं। यमुना नदी में फैली गंदगी और सीवर के कारण कीड़ों का प्रजनन बढ़ गया है। नदी से नीची उड़ान ही भर पा रहे कीड़े गोल्डी काइरोनोमस ताज की संगमरमरी सतह पर स्राव छोड़ रहे हैं, जो बाद में हरे और भूरे रंग के निशान में बदल रहे हैं। एएसआई ने यद्यपि पानी से इनकी धुलाई कराई है लेकिन गर्मी बढ़ने के कारण इनका प्रकोप बढ़ता जाएगा। बीते साल दुनिया भर में ताज पर कीड़ों की चर्चा हुई तो मामले का स्वतः संज्ञान भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ले लिया लेकिन कीड़ों का हमला रोकने के लिए एडीएम सिटी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जांच के बाद जो कदम उठाने की संस्तुति की गई, वह मानी ही नहीं गई, जिसका असर ये है कि इस साल भी ताज पर कीड़े पहुंचकर दीवारों को हरे रंग में रंग रहे हैं। ताजमहल पर एक नहीं, बल्कि तीन प्रजातियों के कीड़े हमला कर रहे हैं। यमुना में फास्फोरस बढ़ने के कारण गोल्डी काइरोनोमस, पोडीपोडीलम और ग्लिप्टोटेन पहुंच रहे हैं। एएसआई को बीते साल की सैंपलिंग में ये तीनों कीड़े हरा रंग छोड़ते हुए मिले थे। हर दिन लाखों की तादात में यह हमला किया गया था। काइरोनोमस फैमली के यह कीड़े 35 डिग्री तापमान में प्रजनन शुरू करते हैं और 50 डिग्री तक के तापमान को झेल सकते हैं। काइरोनोमस मादा कीट एक बार में एक हजार तक अंडे देती है। लार्वा और प्यूमा के बाद करीब 28 दिन में पूरा कीड़ा बनता है। हालांकि कीड़े की मियाद महज दो दिन है लेकिन मादा कीट के अंडे यमुना नदी में भीषण गंदगी और फास्फोरस की मौजूदगी से बन रहे हैं। सबसे खतरनाक स्थित ताजमहल के पास है। यहां सीवर का बैक्टीरिया बहुत घातक है। एसएन मेडीकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायॉलोजी के हेड डॉ. अंकुर गोयल ने बताया कि सीवर से उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया का नाम 'इश्चेरियाई कोलाई' है। यह तमाम बीमारियां फैलाता है। मानक से दस गुना अधिक है।
यमुना में ऑक्सीजन नहीं :- यमुना जल में ऑक्सीजन नहीं रहा। यूपीपीसीबी ने मार्च 2017 में बैक्टीरिया के अलावा यमुना जल में मौजूद घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) और बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का परीक्षण किया। कैलाश घाट पर यमुना में बीओडी 7.1 पीपीएम मिली। ताजमहल के पास बीओडी 4.1 पीपीएम रही। बीओडी 4 पीपीएम से कम होने पर मछलियां मरने लगती हैं। इस बैक्टीरिया का ट्रीटमेंट मुमकिन नहीं है। जीवनी मंडी प्लांट से शहर में प्रतिदिन 150 एमएलडी (15 करोड़ लीटर) पानी की सप्लाई होता है। बैक्टीरिया के ट्रीटमेंट के लिए जलकल विभाग क्लोरीन मिलाता है। परंतु इतनी अधिक संख्या में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया का ट्रीटमेंट बिना विधि के संभव नही। सिकंदरा पर 148 करोड़ रुपये की लागत से एमबीबीआर (मूविंग बैड बायॉलॉजिकल रिएक्टर) स्थापित किया गया। यमुना जल में मौजूद बैक्टीरिया को ये प्लांट बॉयोलोजिकल रिएक्टर की मदद से नष्ट कर देता है। जीवनी मंडी जल संस्थान में इस तरह के ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है।
लोगों पर बीमारियों का खतरा:- इस पानी से लाखों लोगों पर असाध्य रोगों को खतरा मंडरा रहा है। बैक्टीरिया युक्त पानी से तरह-तरह के सक्रमण हो सकते हैं। ये पानी शरीर के जिस हिस्से में जाएगा, उसे संक्रमित कर देगा। इसके प्रभाव से एंटी बायोटिक भी रोग से लड़ने में काम नहीं करतीं।  बैक्टीरिया का मानक 500 से 5000 है । बैक्टीरिया संख्या- 47,000 से 1,40000 एमपीएन/100 एमएल है।  यमुना में 250 से अधिक नाले गिरते हैं । नालों का यमुना में डिस्चार्ज 600 क्यूसेक है । 800 किमी यमुना नदी की कुल लंबाई है। शहरों का सीवर खुले नालों में बहता है । यमुना को 2000 क्यूसेक पानी रोज चाहिए ।


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