Sunday, March 31, 2019

111वीं मोहन जयन्ती के अवसर पर पण्डित मोहन प्यारे द्विवेदी को श्रद्धान्जलि डा. राधेश्याम द्विवेदी ’नवीन’



पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी ’’मोहन’’ का जन्म संवत 1966 विक्रमी तदनुसार 01 अप्रैल 1909 ई. में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। पंडित जी को पड़ोस के गांव करचोलिया में 1940 ई. में वहां के प्रधानजी के सहयोग तथा शिक्षा विभाग में भाग दौड़कर एक दूसरा प्राइमरी विद्यालय खोलना पड़ा था। जो आज भी चल रहा है। 1955 में वह प्रधानाध्यापक पद पर वहीं आसीन हुए थे। इस क्षेत्र में शिक्षा की पहली किरण इसी संस्था के माध्यम से फैला था। वेसिक शिक्षा विभाग के अन्य जगहों में भी उन्हे स्थान्तरण पर जाना पड़ा था। वर्ष 1971 में पण्डित जी प्राइमरी विद्यालय करचोलिया से अवकाश ग्रहण कर लिये थे। उनके पढ़ाये अनेक शिष्य अच्छे अच्छे पदों को सुशोभित कर रहे हैं।
 अपने गांव के बीरों के बारे में उनकी लोकप्रिय कविता इस प्रकार थी -
सुनो भाई अद्भुत गांव जहाना । दुबौली दूबे विदित महाना ।
गांव की शान पर एक हो जाना। गोमती सिंह से भी लड़़ जाना।
चढ़े हाथी पर वह ललकारा । सुने ना तब उनका कोई पुकारा।
गांव के युवक उठे दररारा । कहें का हमसे है भयकारा ।
अस्त्र शस्त्रों से सज्जित कर, किया जब धावा पैगापुर।
गांव के लोग भगे घर में, भदेसर रहि गय मोरचे पर।
काल ने उसको अपनाया, स्वर्ग में उसको पहुंचाया।
हुई दल बंदी इसमें खूब, चले सब नोक झोंक डट के।।
सन्त जीवन:-राजकीय जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद वह देशाटन व धर्म या़त्रा पर प्रायः चले जाया करते थे। उन्हांने श्री अयोध्याजी में श्री वेदान्ती जी से दीक्षा ली थी। उन्हें सीतापुर जिले का मिश्रिख तथा नौमिष पीठ बहुत पसन्द आया था। वहां श्री नारदानन्द सरस्वती के सानिध्य में वह रहने लगे थे। एक शिक्षक अपनी शिक्षण के विना रह नही सकता है। इस कारण पंडित जी नैमिषारण्य के ब्रहमचर्याश्रम के गुरूकुल में संस्कृत तथा आधुनिक विषयों की निःशुल्क शिक्षा देने लगे थे। उन्हें वहां आश्रम के पाकशाला से भोजन तथा शिष्यों से सेवा सुश्रूषा मिल जाया करती थी। गुरूकुल से जाने वाले धार्मिक आयोजनों में भी पंडित जी भाग लेने लगे थे। अक्सर यदि कही यज्ञानुष्ठान होता तो पण्डित जी उनमें जाने लगे थे। वह अपने क्षेत्र में प्रायः एक विद्वान के रूप में प्रसिद्व थे। ग्रामीण परिवेश में होते हुए घर व विद्यालय में आश्रम जैसा माहौल था। घर पर सुबह और शाम को दैनिक प्रार्थनायें होती थी। इसमें घड़ी धण्टाल व शंख भी बजाये जाते थे। दोपहर बाद उनके घर पर भागवत की कथा नियमित होती रहती थी । उनकी बातें बच्चों के अलावा बड़े बूढे भी माना करते थे। वह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वे वड़े धूमधाम से अपने गांव में ही मनाया करते थे। वह गांव वालों को खुश रखने के लिए आल्हा का गायन भी नियमित करवाते रहते थे। रामायण के अभिनय में वे परशुराम का रोल बखूबी निभाते थे। 15 अपै्रल 1989 को 80 वर्ष की अवस्था में पण्डित जी ने अपने मातृभूमि में अतिम सासें लेकर परम तत्व में समाहित हो गये थे।
स्वाध्याय तथा चिन्तन पूर्ण जीवन:-उनका जीवन स्वाध्याय तथा चिन्तन पूर्ण था। चाहे वह प्राइमरी स्कूल के शिक्षण का काल रहा हो या सेवामुक्त के बाद का जीवन वह नियमित रामायण अथवा श्रीमद्भागवत का अध्ययन किया करते थे। संस्कृत का ज्ञान होने के कारण पंडित जी रामायण तथा श्रीमद्भागवत के प्रकाण्ड विद्वान तथा चिन्तक थे। उनहें श्रीमद्भागवत के सौकड़ो श्लोक कण्ठस्थ थे। इन पर आधारित अनेक हिन्दी की रचनायें भी वह बनाये थे। वह ब्रज तथा अवधी दोनों लोकभाषाओं के न केवल ज्ञाता थे अपितु उस पर अधिकार भी रखते थे। वह श्री सूरदास रचित सूरसागर का अध्ययन व पाठ भी किया करते रहते थे। उनके छन्दों में भक्ति भाव तथा राष्ट्रीयता कूट कूटकर भरी रहती थी। प्राकृतिक चित्रणों का वह मनोहारी वर्णन किया करते थे।
आशु कवि:- वह अपने समय के बड़े सम्मानित आशु कवि भी थे। भक्ति रस से भरे इनके छन्द बड़े ही भाव पूर्ण है। उनकी भाषा में मुदुता छलकती है। कवि सम्मेलनों में भी हिस्सा ले लिया करते थे। अपने अधिकारियों व प्रशंसको को खुश करने के लिए तत्काल दिये ये विषय पर भी वह कविता बनाकर सुना दिया करते थे। उनसे लोग फरमाइस करके कविता सुन लिया करते थे। जहां वह पहुचते थे अत्यधिक चर्चित रहते थे। धीरे धीरे उनके आस पास काफी विशाल समूह इकट्ठा हो जाया करता था। वे समस्या पूर्ति में पूर्ण कुशल व दक्ष थे।
रचनायें:-राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता बस्ती जनपद के महान साहित्यकार डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस‘ ने अपने शोध प्रवन्ध ’’बस्ती जनपद के छन्दकार’’ के द्वितीय खण्ड में सुकवि पण्डित मोहन प्यारे का संक्षिप्त जीवन परिचय तथा कुछ छन्दों को उद्धृत किया है। जिसके आधार पर पण्डित जी का परिचय दे पाना सुगम हो सका है। आज पण्डित जी के 111 वे जन्म तिथि के अवसर पर हम उनको सादर नमन करते हैं और उनके आदर्शों पर चलने की प्रतिज्ञा करते है।
 मोहनशतकः- यह ग्रंथ प्रकाशनाधीन है। इस ग्रंथ का एक छन्द इस प्रकार है –
नन्दजी को नन्दित किये खेलें बार-बार , अम्ब जसुदा को कन्हैया मोद देते थे।
कुंजन में कूंजते खगों के बीच प्यार भरे , हिय में दुलार ले उन्हें विनोद देते थे।
देते थे हुलास ब्रज वीथिन में घूम घूम, मोहन अधर चूमि चूमि प्रमोद देते थे।
नाचते कभी ग्वालग्वालिनों के संग में, कभी भोली राधिका को गोद उठा लेते थे।।


Friday, March 29, 2019

राजा शीतला बक्श सिंह ‘महेश’ (बस्ती के छन्दकार ( 15 ) डा. राधेश्याम द्विवेदी


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :- अवध के नबाब सआदत खां के समय सितम्बर 1722 . में बस्ती राज्य का राजा जयसिंह बने। वह बहुत दिनों तक जीवित रहे। उसके बाद उनका पौत्र पृथ्वीपाल उत्तराधिकारी बने। उनके पुत्र राजा जयपाल सिंह बस्ती के राजा बने। इस समय यह राज्य अंग्रजों को स्थानान्तरित हुआ था। इसके बाद राजा शिवबक्स सिंह राजा बने। इसके बाद राजा इन्द्र दमन सिंह बने। ये जवानी में ही दिवंगत हो गये तो राज्य की सम्पत्ति उनके शिशु पुत्र शीतला बक्श में निहित हुई। इस राज्य का देखरेख राजा इन्द्र दमन की विधवा के अधीन था। वह स्वतंत्रता संग्राम की अवधि तक इस राज्य की संरक्षिका थी। 1857 को राजविद्रोह में यूरोपीय रेजीडेंट और उसके प्रतिनिधि को रानी बस्ती द्वारा संरक्षण दिया गया तथा उन्हें अपने घर में शरण देकर रखा गया था। जब और खतरा बढ़ा तो उन्हें गोरखपुर सुरक्षित पहुंचा दिया गया। रानी की इस संवेदना के कार्य ने अंग्रेजों को और अधिक मजबूत कर दिया। 5 जनवरी 1858 को गोरखपुर के नाजिर मोहम्मद हसन ने अपने अधिकारियों को जनपद के विभिन्न राज्यों में तैयार कर रखा था। रानी बस्ती ने मुहम्मद हसन के अधिकारी को अपने क्षेत्र में जाने के लिए इनकार कर दिया था। साथ ही हसन के पुलिस अधिकारी को आवास देने से भी मना कर दिया था। अंत में अपने रवैये से विरोध भी जताया था।
राजा इन्द्र दमन की विधवा रानी के पुत्र शीतला बक्श एक कवि भी थे औरमहेश’ उपनाम से कविता लिखते पढ़ते थे। बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि डा. मुनिलाल उपाध्यायसरसकी  बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान नामक शोध प्रवंध के अनुसार उनका जन्म 1875 विक्रमी  (1818 ) में हुआ था। उनका लालन पालन बढ़े लाड़ प्यार में हुआ था। कहा जाता है कि वह अपने फिजूलखर्ची के चलते राज्य की सम्पत्ति का विनाश कर डाले थे। जब वह राजा बने थे तो उनकी पैतृक सम्पत्ति 233 गांव थी। इसके अलावा 114 गांव व्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें मिला था। कर्ज अदायगी में यह सम्पत्ति बंचने की स्थिति में गये थे 1875 के यूपी आगरा अवध तालुकादारों की  सूची में राजा शीतला बक्श सिंह का नाम अवध की सूची में दर्ज है। राजा की पत्नी इस योग्य रही कि अनेक गांवों को खरीद लिया था। राजा की मृत्यु  1890 में हुई थी। उनके दो पुत्र थे। बड़े पटेश्वरी प्रताप नारायण राजा बने। इनकी सम्पत्ति सिमटकर 26 गांव ही रह गई थी। रानी की वसीयत के अनुसार यह राजा पटेश्वरी प्रताप नारायण की पत्नी तथा भाइयों को गई। उन्हीं की तरफ से यह सम्पत्ति कौर्ट आफ बोर्ड के प्रबन्धन में गई। राजा केवल उसके व्यवस्थापक ही बने। कर्ज की राशि 80, 000 से ज्यादा हो गयी थी। यह आशा की जाती थी कि अगले 12 वर्षों में यह चुकता हो जाएगी। इसी बीच राजा अपनी शाखा में गये और कुछ गांव उसके अधीन पुन गये। प्रथा के अनुसार उचित वारिस के अभाव में एसी सम्पत्ति पुनः पैतृक घराने में जाती है। राजा बस्ती के मानद द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट भी रहे। पुरानी बस्ती स्थित राजभवन में वर्तमान राजा ऐश्वर्यराज सिंह ने महाराजा शीतला बक्श सिंहमहेशकी स्मृति में एक पुस्तकालय एवं वाचनालय का संचालन करा रहे हैं।
शीतला बक्श सिंहमहेश का कवि रुप : - राजा शीतला बक्श सिंहमहेश’ का कवि रुप अत्यन्त आदरणीय रहा। उनका कई राजघरानों उनके दरबारी कवियों से मधुर संबंध थे। अवध प्रान्त के कवियों में उनका विशेष महत्व था। मिश्र बंधुओं ने अपने ” मिश्र- बन्धु- विनोद” में महेश कवि की चर्चा की है। बस्ती के महान कवि लछिराम में अपने ग्रंथ कवित्त रत्नाकर में महेश कवि के बारे में लिखा है--
समरबीर साहसबली श्री कलहंस नरेश।
इन्द्रदौन सिंह भूप मो सबही को सिरमौर।
सुवनतासु को दानिया राजन को सिरताज।
वे ब्रज भाषा के सरस कवि थे। छन्द परम्परा के विकास में उनका बड़ा योगदान था। जनपद से प्रकाशित पत्रिका उपहार’ में उनके बारे में लिखा गया है- “संगीत साहित्य और कला की त्रिवेणी में महाराज शीतलाबक्श आजीवन अवगाहन करते रहे। यौवन काल आते आते इनका ओजपूर्ण सरस व्यक्तित्व काव्य निर्झरणी के अबाध स्रोत से प्रस्फुटित हुआ। नर्तकियों और संगीतज्ञों की भाव लहरियों से अभिसिंचित महाराज का कलाकार एकान्त में कबि बन बैठता और वहीं से छन्द अपने आप बह निकलते। स्वान्तःसुखाय काव्य रचना के अतिरिक्त आपका यश कला के संरक्षण और कलाकारों के आश्रयदाता के रुप में सबसे अधिक सौरभित हुआ है। सुकवि लछिराम की प्रारम्भिक रचनायें आपकी ही छत्रछाया में प्रणीत हुआ है।“
साहित्यिक योगदान - श्रृंगार शतक एकमात्र रचना  :- महाराजा शीतला बक्श सिंहमहेशने श्रृंगार शतक नामक उत्कृष्ट ग्रंथ का प्रणयन किया है। इस ग्रंथ की चर्चा मिश्र बंधुओ केमिश्र बंधु विनोद’ में किया गया है। राजा होने के साथ साथ वे उत्कृष्ट कोटि के कवि भी थे। उनके दन्द बहुत ही सारगर्भित होते थे। उनके द्वारा सौकड़ों छन्द लिखा गया है परन्तु कोई संग्रह नहीं छप सका है। राज परिवार को अपने पूर्वज की कृतियों को खोजवाकर प्रकाशित करवाना चाहिए इससे इस जनपद के साहित्यिक इतिहास में नये आयाम जुड़ सकते हैं। उनकी कुछ फुटकर रचनाये इस प्रकार हैं-
सुनि बोल सुहावन तेरी अटा यह टेकि हिये मैं धरौं पै धरौं।
सुख पीजरि पालि पढ़ाय घने गुन औगुन कोटि हरौं पै हरौं।
बिछरे हरि मोहि महेश मिलै मुक्ताहल गूंथि भरी पै भरौं।
मढ़ि कंचन चोंच परौवन मैं तोहि काग ते हंस करौं पै करौं।।
एक और छन्द इस प्रकार है  -
पौढ़त पौढ़त पौढ़े मही, जननी संग पौढि कै बाल कहायो,
पौढि त्रिया संग सोईमहेश’ सुसारी निशा बृथा सोई गॅवायो।
छीर समुद्र के पौढ़न हार को ध्यान दियोन कबौं चित्त लायो।
                                      पौढ़त पौढ़त पौढि गये सु चिता पर पौढ़न के दिन आयो।।      
एक छन्द और इस प्रकार है  -
अब पातक भेष कहां पिछड़ै विछुडै बिन कीच कचारन मैं।
डारिहौं नहि तोसो महेश कहै चलतो भला गंग की धारन मैं।
यमराज बेचारे कहां करिहैं धरिहैं पग मेरो हजारन मैं।
लहरी लहरी लहरी सी फिरै यह मुक्ति बिचारी करारन मैं।।
आश्रयदाता के रुप में  : - राजा महेश एक कवि के साथ ही साथ आश्रयदाता भी थे।एक बार राजा साहब के यहां पुत्रोत्सव चल रहा था। उसी समय आचार्य कवि लछिराम जी बस्ती दरबार में पधारे थे। लछिराम जी ने ये छन्द पढ़ा था -
मंगल मनोहर सकल अंग कोहर से आनन्द मगन पैछटान अधिकाती है।
हेरनि हरनि कर पद की चलनि सुरभांग ठुनकानि पै पीयूष सरसाती है।
लक्षिराम शीतलाबक्स बाल लाल जाते भाल की ललाई पै उकति अधिकाती है।
मेषराशि प्रथम मुहूरत प्रभात मढ्यो कुज लै दिनेश उदयाचल की राति है।।
 बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदाननामक शोध प्रवंध में बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि डा. मुनिलाल उपाध्यायसरस ने  लिखा है -  महाराजा शीतला बक्श सिंहमहेश’ श्रृंगार रस के बड़े ही सुहृदयी कवि थे। कवि कवियों को गौरव देने में अपने को धन्य मानते थे। इनके सवैया और घनाक्षरी छन्द जो रीतिकालीन भावधारा में लिखे गये हैं बस्ती जनपद के छन्द परम्परा के विकास के मनोरम सोपान हैं। जनपदीय छन्द परम्परा के विकास में महेश शीतला बक्स का स्थान आदिचरण के विकास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जनपद के कवियों को महसो राजवंश के बाद उसी ही राजवंश से संरक्षण और सुख सुविधा मिली।