Thursday, August 8, 2019

श्रावण मास में प्रिय तुम्हारास्वागत है


हिंदू धर्म में श्रावण मास का बहुत बड़ा महत्व है। यह बहुत ही पवित्र मास माना गया है। जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।  अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया था। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही यह माह महादेव के लिए यह विशेष हो गया।  श्रावण मास में भोले शंकर की पूजा का विशेष महत्व दिया गया है। इसी महीने में आने वाले सोमवार के व्रत को अहमियत दी गई है। भक्तजन इस महीने में व्रत रखते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथ शिव पुराण के मुताबिक जो व्यक्ति सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखता है, उसी हर मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं। यही वजह है कि सावन के महीने में शिव भक्त ज्योर्तिलिंगों के दर्शन करने के लिए जाते हैं। इसमें  हरिद्वार काशी नासिक और उज्जैन समेत कई धार्मिक स्थान शामिल हैं। सावन के महीने में बहुत सारे अन्य त्योहार भी होते हैं। जैसे संकष्टी चतुर्थी मंगला गौरी व्रत कालाष्टवमी कामिका एकादशी रोहिणी व्रत मासिक दुर्गाष्ट्मी सावन पुत्रदा एकादशी प्रदोष व्रत तथा श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन गायत्री जयंती आदि।
भगवान शिव की प्रेरणा व संयोग से हमारे परिवार का इस माह से बहुत ही गहरा सम्बंध रहा है। मेरे पितामह मेरे अग्रज तथा मेंरा जन्म मास सावन ही रहा है। मुझे यह शिक्षा दी गयी थी कि इस मास में बाल नहीं कटाना चाहिएं जब तक निभ पाया हमने इसे निभाया । संयोग से महादेव व मां पार्वती जी की कृपा से इस माह के शुक्ल पक्ष के षष्टी तिथि को मुझे पौत्ररत्न की प्राप्ति हुई है। जिसके लिए हम परम पिता परमेश्वर के अत्यन्त आभारी है।
आज के दौर में रोजगार के अच्छे अवसरों की तलाश में लोग छोटे शहरों से महानगरों की तरफ रुख करने लगे हैं। हमारी युवा पीढी बुजुर्ग माता-पिता को पुराने घर में छोडकर अपने लिए नई दुनिया की तलाश में निकल पडते हैं। शुरुआत में यह आजादी उन्हें बेहद खुशी दतीे है लेकिन घर में नन्हे शिशु के आगमन के साथ जब उनकी जिम्मेदारियां बढने लगतीं हैं तब उन्हें यह एहसास होने लगता कि बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए परिवार में ग्रैंडपेरेंट्स का साथ कितना जरूरी है। बदलते वक्त की जरूरत कल तक जिस युवा पीढी को ऐसा लगता था कि बुजुर्गों का साथ उनकी आजादी में खलल पैदा करता है खुद माता-पिता बनने के बाद उन्हें इस बात का एहसास होने लगता है कि बच्चों के व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए दोनों पीढियों का साथ बहुत जरूरी है। आज के कडी प्रतिस्पर्धा और व्यस्तता के इस दौर में कामयाबी के लिए लोगों को दिन-रात कडी मेहनत करनी पडती है।
दादा-दादी नाना-नानी का साथ न केवल बच्चों का अकेलापन दूर करता है बल्कि इससे उनके पेरेंट्स भी तनावमुक्त होकर अपने करियर पर पूरा ध्यान दे पाते हैं। भले ही अब संयुक्त परिवार अपने परंपरागत ढांचे में नजर न आते हों, फिर भी आज के बुजुर्ग माता-पिता अपनी युवा संतान के घर पर रहकर उनके बच्चों की देखभाल में सहर्ष सहयोग देते हैं। अच्छे संस्कारों की बुनियाद अगर परिवार में दादा-दादी साथ रहते हों तो अपनी परंपराओं और संस्कृति के साथ बच्चों का सहज ढंग से जुडाव होता है। इसके लिए पेरेंट्स को अतिरिक्त रूप से प्रयास करने की जरूरत नहीं होती है।
बच्चों में सहज रूप से बुजुर्गों के प्रति सम्मान और सेवा की भावना दिखाई देती है। वे अपने दादा-दादी व नाना नानी की वजह से वे सभी रिश्तेदारों को पहचानते हैं। घर में बुजुर्गों की मौजूदगी से त्योहारों पर बहुत रौनक रहती है। बच्चे बडे उत्साह से दशहरा-दीपावली की तैयारियों में अपने दादा-दादी व नाना नानी की मदद करते हैं।
 बच्चों की परवरिश के संबंध में आमतौर पर यही धारणा प्रचलित है कि नानी-दादी के लाड-प्यार की वजह से बच्चे बिगड जाते हैं। पुराने समय में भले ही ऐसा होता हो पर आज के जागरूक ग्रैंडपेरेंट्स परवरिश के मामले में अनुशासन की अहमियत को समझते हैं और वे उन्हें मनमानी करने की छूट नहीं देते। आज के माता-पिता इतने व्यस्त होते हैं कि उनके पास अपने बच्चों की बातें सुनने का भी वक्त नहीं होता। ऐसे में दादा-दादी का साथ घर में खुशनुमा माहौल बनाए रखता है। उनके साथ ढेर सारी बातें करने, बोलने और शाम को पार्क में घूमने जाने जैसी सामान्य गतिविधियों से बच्चों का समाजीकरण बेहतर ढंग से होता है। सामंजस्य की मजबूत कडी परिवार में बुजुर्गों की मौजूदगी रिश्तों के बीच पुल का काम करती है। उनके पास जीवन के अमूल्य अनुभवों के साथ पर्याप्त समय भी होता है, इसलिए वे बच्चों की सारी बातें ध्यान से सुनते हैं और उनके मनोविज्ञान को आसानी से परख लेते हैं। बच्चे भी उनसे भावनात्मक जुडाव महसूस करते हैं। कई बार तो माता-पिता से अधिक उनकी शेयरिंग दादा-दादी या नाना-नानी से होती है।
 अति व्यस्त जीवनशैली आजकल ज्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों को अनुशासित करने पर तो पूरा ध्यान देते हैं पर उनके पास लाड-प्यार के लिए समय नहीं होता। बच्चे भले ही पेरेंट्स की हर बात मानते हों पर दादा-दादी के साथ उनका रिश्ता बेहद दोस्ताना होता है। वे उनके साथ कई तरह के इंडोर गेम खेलते हैं। जहां बुजुर्ग बच्चों को परंपराओं और संस्कृति का ज्ञान देते हैं, वहीं बच्चे उन्हें मोबाइल के नए एप्लीकेशंस का इस्तेमाल सिखा रहे होते हैं। यही परस्पर निर्भरता उनके रिश्ते को मजबूती देती है। नैतिक मूल्यों का विकास ग्रैंडपेरेंट्स के साथ पलने वाले बच्चों में परिवार और रिश्तों के प्रति सम्मान की भावना सहज रूप से विकसित होती है। वे दादा-दादी को अपने परिवार का अटूट हिस्सा मानते हैं। ऐसे बच्चे परिवार के प्रति जिम्मेदार और केयरिंग होते हैं। उन्हें यह मालूम होता है कि बाद में मुझे भी इसी तरह मम्मी-पापा का खयाल रखना होगा। बडे होने के बाद ये रिश्तों को बेहतर ढंग से निभाने में सक्षम होते हैं।
आज के दौर में बच्चे व बुजुर्ग एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं और इनकी वजह से परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहता है। दोनों को एक-दूसरे का साथ सुकून देता है। दादा-दादी नाना-नानी के दिल में अपने नाती-पोतों के लिए बेइंतेहा प्यार होता है लेकिन आपको बच्चे की आदतों पर भी नजर रखनी चाहिए और किसी भी गलती पर उसे डांटने में कोई गुरेज न बरतें। समय के साथ नवजात शिशु के लालन-पालन के तरीके में काफी बदलाव आ गया है। इसे सहजता से स्वीकारने की कोशिश करें और बेवजह रोक-टोक न करें। हर परिवार में माता-पिता अपने बच्चों के लिए अनुशासन के कुछ नियम बनाते हैं। इसलिए आपको भी इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि वे उनका पालन कर रहे हैं या नहीं। अगर माता-पिता किसी गलती पर बच्चों को डांट रहे हों तो आप उन्हें बीच में न टोकें, इससे वे अनुशासन की गंभीरता को समझ नहीं पाते। आप चाहें तो छोटी उम्र से ही अपने नाती-पोतों की फूड हैबिट सुधार सकते हैं क्योंकि वे आपके साथ ज्यादा वक्त बिताते हैं। आप उन्हें शुरू से ही फलों, हरी सब्जियों और मिल्क प्रोडक्ट्स के फायदों के बारे में बताएं और खुद भी हेल्दी डाइट लें। अगर आपके ग्रैंड चिल्ड्रेन टीनएजर हैं तो उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हुए प्यार भरी बातचीत करें। साथ ही उन्हें थोडा पर्सनल स्पेस भी दें। बच्चों को उपदेश देने के बजाय उन्हें कोई भी बात रोचक ढंग से समझाएं। बच्चों को शुरू से यह समझाएं कि वे आपके मम्मी-पापा हैं। इसलिए उन्हें भी हर हाल में उनका सम्मान करना चाहिए। माता-पिता ,सास-ससुर के साथ आपके व्यवहार में भी शालीनता होनी चाहिए क्योंकि बच्चे भी बडों से ही सीखते हैं। बच्चों के रूटीन की जानकारी बुजुर्गों को भी दें ताकि इस मामले में वे भी वक्त की पाबंदी का ख्याल रखें। दादा-दादी से आग्रह करें कि आपकी अनुपस्थिति में अगर बच्चे अनुशासनहीन व्यवहार करते हैं तो वे न केवल उन्हें रोकें बल्कि आपको भी इस बात की जानकारी दें।