Saturday, April 29, 2017

आरएसएस : विश्व का एकमात्र लोकोपकारी सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन डा. राधेश्याम द्विवेदी

स्थापना के 90 वर्ष :- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 90 साल का हो चुका है. 1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी.सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी और इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते हुए भी संघ को कम से कम 9 दशक हो चुके हैं.दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी, वह भी बिना किसी आधार के. संघ के ख़िलाफ़ लगा हर आरोप आख़िर में पूरी तरह कपोल-कल्पना और झूठ साबित हुआ है. स्वतंत्र भारत में आरएसएस ही ऐसा संगठन है जो इतने दुष्प्रचार और हमलों के बावजूद निरंतर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा हुआ है. ये देश का दुर्भाग्य है कि यहां फर्जी महात्मा व चाचा को हमारी पहचान पर थोप दिया गया है. वहीं वर्षो से राष्ट्र के नाम जीवन अर्पण कर कार्य करने वाले राष्ट्र भक्तो की कही कोई चर्चा नही होती, बल्कि उल्टा उन्हे विघटनकारी ताकते ठहरा दिया जाता है। आरएसएस एक ऐसा महासागर है जिसके अन्दर दोगले लोगो की गन्दी मानसिकता को अपने अन्दर समाने की शक्ति है।
देश और समाज को संगठित करने के लिए आरएसएस की स्थापना:- जब संघ की स्थापना हुई , उस समय अपने हिंदू समाज की स्थिति ऐसी थी कि जो उठता था वही हिंदू समाज पर आक्रमण करता था और यह दृश्य बना हुआ था कि जब कभी भी कोई आक्रमण होगा तो हिंदू मरेगा, हिंदू लूटेगा .यह एक परम्परा बन गयी थी हिंदू यानि दब्बू, हिंदू यानि सहनशील, हिंदू यानि गौ जैसा बड़ा ही शांत रहने वाला प्राणी. इसका तुम अपमान करो तो वह प्रतिकार नहीं करता, सब कुछ सहन करता है. इसको मारो तो चुप-चाप मार खाता है . अब दूसरे भले ही इसे उदारता या सहनशीलता का गुण कहें, लेकिन इस प्रकार का आत्मविश्वास शून्य, शक्ति शून्य, रीढ़विहीन समाज इस दुनिया में ससम्मान रह नहीं सकता . इसलिए देश और समाज को संगठित रखने के लिए आर एस एस की स्थापना हुई,क्योकि अगर आज आरएसएस न होता तो इस देश में सेक्युलरिज्म का फायदा उठाकर इतने अलगाववादी सगंठन और शक्तियां पनप जाती ,की उनको संभालना मुश्किल हो जाता.
गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण :- सन 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया और सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये.ये वो ही आरएसएस है जिसने 84 में हजारों सिक्खों को कांग्रेस के गुंडों से बचाया था। यह वो ही आरएसएस हैं जिसने भागलपुर के हिन्दू -मुस्लिम दंगो में इंसानों की सेवा की थी.  आरएसएस वो संगठन है जिसके अन्दर भारत की आत्मा बसी है, देश प्रेम और सेवा इसका मुख्य आधार है .ये कांग्रेस और कथित सेक्युलरो के दुष्प्रचार से कभी भी आहत नहीं हुआ है. आरएसएस तो जहर को अपने अन्दर आत्मसात करके लोगो को अमृत देता है। आज भी देश के किसी भी हिस्से में कोई आपदा आती है -तो सबसे पहले आरएसएस लोगो की सहायता के लिए पहुचता है और बिना किसी भेदभाव के इंसानों की सेवा करता है. आरएसएस दुनिया का सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन है .और जब तक आरएसएस है ,तब तक भारत अखंड है. अगर आरएसएस की स्थापना 10 साल देर से होती तो पाकिस्तान की सीमा आगरा तक होती.
माननीय श्री मोहन भागवत वर्तमान सर संघ चालक

संघ के कुछ उल्लेखनीय कार्य

1. कश्मीर सीमा पर निगरानी, पीड़ितों को आश्रय:- संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी. यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार. उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे. विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे.

2. 1962 का युद्ध :-सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी  सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता. जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए. निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा- “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया.”

3. कश्मीर का विलय:- कश्मीर के महाराजा हरि सिंह विलय का फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के भेस में पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार तो - हम क्या करें वाली मुद्रा में - मुंह बिचकाए बैठी थी. सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर से मदद मांगी. गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया. क्या बाद में महाराजा हरिसिंह के प्रति देखी गई नेहरू की नफ़रत की एक जड़ यहां थी?

4. 1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली:-पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके. घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था.

5. गोवा का विलय:- दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई. संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे. गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला. हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ.

6. आपातकाल:-1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है. सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया. आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं –नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला. जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से चल सकी थीं.

7. मूलविचारधारा से अनेक सेवा संस्थायें कार्यरत :- 1955 में बना भारतीय मज़दूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मज़दूर आंदोलन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था. कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही शुरू किया था. आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन है. राष्ट्रीय सेवा भारती के द्वारा देशभर में चलाये जा रहे सेवा कार्योंका एक संख्यात्मक आलेख तथा उल्लेखनीय आयामों का शब्दचित्र पुणे स्थित सेवा वर्धिनी के सहयोग से 1995 में प्रथम बार यह संकलन एक देशव्यापी सर्वेक्षण के आधार पर प्रस्तुत किया गया था। उसके बाद 1997,2004, और अभी 2009 में प्रकाशित ‘सेवा दिशा’, देशभर में फैल रहे सेवाकार्यों की बढो़त्री को नापने का एक अद्भुत प्रयास रहा है। राष्ट्रीय सेवा भारती के साथ-साथ वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिन्दु परिषद, भारत विकास परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्या भारती, दीनदयाल शोध संस्थान, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इन संगठनों के द्वारा प्रेरित अलग-अलग सेवा संस्थाओं के सेवा कार्यों को भी इस में संकलित किया जाता है। भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना. विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है. केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं. संख्या बल से भी बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैं. अकेला सेवा भारती देश भर के दूरदराज़ के और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाख से ज़्यादा काम कर रहा है. लगभग 35 हज़ार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज़्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं. उदाहरण के तौर पर सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से अनाथ हुए 57 बच्चों को गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू बच्चे हैं.1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक - संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है. भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में.

 



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