Monday, April 17, 2017

प्रवासियों का पूर्वजों की मिट्टी पर स्वागत डा. राधेश्याम द्विवेदी


गिरमिटिया मजदूरों के रुप में विदेश में बसे:- भारत के बाहर भारत का होना बहुत अच्छा लगता है।भारत के बाहर कुछ ऐसे देश है जहां भारतीय धर्म और संस्कृति फल-फूल रही है। उन्हीं देशों में से हैं- सूरीनाम त्रिनिदाद और टोबैगो। त्रिनिदाद और टोबैगो द्वीपों का इतिहास अमरीकी मूल निवासियों की बस्तियों के साथ शुरू होता है। दोनों द्वीपों से क्रिस्टोफर कोलंबस का साक्षातकार अपनी तीसरी यात्रा पर 1948 की जुलाई में हुआ था। यह नाम भी उसी का दिया हुआ है। त्रिनदाद द्वीप कोलंबस के आगमन से लेकर 18 फरवरी 1797 में स्पैनिश गवर्नर के ब्रिटेन को आत्मसमर्पण तक स्पेन के अधीन था। इस दौरान टोबैगो द्वीप पर स्पैनिश ब्रिटिश फ्रेंच डच कौरलैंड का शासन रहा। सन 1802 मई त्रिनिदाद और टोबैगो को एमिएन्ज की संधि के तहत ब्रिटेन को सौंप दिया गया था। उक्त द्वीप समूह अमेरिकन समुद्र के तटवर्ती द्वीप है। दक्षिण अमेरिका द्वीप में भारतीय मूल के लोग करीब 200 वर्ष पूर्व गिरमिटिया मजदूर के रूप में सूरीनाम त्रिनिदाद और टोबैगो गए थे। त्रिनिदाना और टोबैगो के लोग भारतीय संस्कृति और सभ्यता से आज भी गहराई से जुड़े हुए हैं। इस द्वीप समूह की जनसंख्या लगभग 13 लाख है। त्रिनिदाद और टोबैगो ने 1962 में ब्रिटिश साम्राज्य से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की और 1976 में एक गणराज्य बना। ट्रिनिडैड में नीग्रो और भारतीयों ने आर्थिक मामलों में एक दूसरे पर आश्रित होते हुए भी अपनी सांस्कृतिक भिन्नता को नहीं मिटने दिया है। अंतर्विवाहों की संख्या नगण्य है। यह सांस्कृतिक और जातीय अंतर राजनीति में भी भूमिका अदा करता है। नीग्रो प्राय नगरों में तथा ट्रिनिडौड के उत्तरी पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी स्थानों पर जहाँ कृषि के लिये अच्छी सुविधाएँ नहीं हैं बसे हुए हैं। भारतीय अच्छी कृषियोग्य भूमि में बसे हुए हैं और नीग्रो लोगों की अपेक्षा व्यापार उद्योग आदि में अधिक संपन्न हैं। समीपस्थ द्वीप टोबैगो में सबसे पहले अंग्रेज 1616 में बसने के लिए पहुँचे किंतु वहाँ के इंडियनों ने उन्हें वहाँ नहीं रहने दिया। अगले 200 वर्षों तक वहाँ अनेक जगहों से लोग आते जाते रहे। अंततोगत्वा 1814  में वहाँ अंग्रेजों का अधिकार हो गया जो लगभग 150 वर्ष तक बना रहा। इस समय तक टोबैगो पृथक् उपनिवेश के रूप में शासित था 1888  में ट्रिनिडैड के साथ इसे मिला दिया गया। दोनों साथ ही साथ एक राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र हुए।
विदेशों में जा बसे अपने कुटुम्बियों का दिलखोलकर स्वागत :- आज से लगभग 127 साल पहले उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के हरैया विकास खण्ड तथा तहसील के हरिहरपुर गांव केअंग्रजों के समय में गिरमिटिया मजदूरों का एक दल त्रिनिदाद देश चला गया था। यह जिला मुख्यालय बस्ती तथा तहसील मुख्यालय से18 .18 किमीण् की दूरी पर बसा हुआ है। 2009 से यह सिरसिया ग्राम पंचायत का एक गांव लगता है। इस गांव का क्षेत्रफल 50.36 हेक्टेयर है। इस गांव में 66 घर हैं। यहां 441 लोगों की आबादी है। हरिहरपुर में राममुनि पांडेय के विदेशी वंशज 127 साल बाद मिले तो सभी की आंखें छलक गईं। भाषा की दिक्कत तो हुई पर प्रसन्नता की भाषा दोनो तरफ एक ही रही। पांडेय परिवार के त्रिनिदाद से आए वंशज कहना तो बहुत कुछ चाहते थे पर भाषा की दीवार आड़े जा रही थी। उनकी धारा प्रवाह अंग्रेजी और इनकी ठेठ भोजपुरी। फिर भी दुभाषिये की मदद से जो कुछ बात हुई वह दोनों पक्ष के दिलों को छूने के लिए काफी थी। 15.04.2017 को जब नील आनंद महाराज हरिहरपुर पहुंचे थे तो किसी को अहसास नहीं था कि पांच पीढ़ी पूर्व गांव से गए उनके भाई बंधुओं के वंशज अचानक जाएंगे। 16.04.2017  को जब भारत वंशीय गांव में पहुंचे तो पांडेय परिवार सहित गांव के लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया। दिन में करीब ग्यारह बजे नील आनंद के साथ शर्मा भागवत महाराज, उनकी पत्नी सावित्री महाराज पुत्री अरूणा महाराज पहुंचीं तो चंदन का तिलक लगा आरती उतारी गई। एक-दूसरे से गले मिलते आंखें छलक गईं। गांव के सबसे बुजुर्ग भगवती प्रसाद मिश्र, राममुनि पांडेय, रामअजोर पांडेय, साधूशरण पांडेय, त्रिलोकीनाथ, विष्णू कुमार ने शांती, गायत्री, सीमा, रीता, सुषमा, किरन, वंदना के साथ अगवानी की। मेहमानों ने मेजबानों को मिठाई उपहार भेंट किए। राममुनि पांडेय ने पुराने अभिलेखों के जरिए बताया कि महाराज परिवार के वंशज रामसहाई, सूर्यनारायण हरिप्रसाद यहीं से त्रिनिदाद गए थे। इन लोगों ने गांव का कोना-कोना निहारा, खंडहरों की भी जानकारी हासिल की। दो घंटे में लोग एक दूसरे काफी करीब से जान लेने को उत्सुक रहे। शर्मा महाराज ने बताया कि पूर्वजों के 1890 में त्रिनिदाद जाने के बाद पहली बार वह 1989 में भारत आए और कोलकाता के बंदरगाह पर 1890 में जाने वाले यात्रियों की सूची खोजवाई तो उन्हें अपने पूर्वजों के पैतृक गांव का पता चला। तभी से यहां आने की इच्छा थी। गांव में घूमते समय शर्मा भागवत महाराज, उनकी पत्नी, पुत्री लोगों से काफी हिलमिल गईं।
त्रिनिदाद में ब्राह्मण मतलब बाबा महाराज:- त्रिनिदाद से आये सावित्री महाराज ने बतया कि भारत वर्ष की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत उसकी अलग पहचान है। त्रिनिदाद में रहने वाले 25 फीसद भारतीय वहां भी इसी के बल पर अपनी पहचान बनाए हुए हैं। त्रिनिदाद भारत की अपेक्षा बहुत छोटा देश है लेकिन वहां भारतीय संस्कृति इतनी प्रभावशाली है कि यहां के लोग वहां पर ब्राह्मण, पंडितजी, बाबा महाराज के नाम से जाने जाते हैं। वहां शिव मंदिरों की विशेष पहचान है।वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना रखने वाली हिन्दू संस्कृति वहां विकास की इबारत लिख रही है। वहां हिन्दुओं के दिन की शुरुआत अंत पूजा-पाठ से होती है। वहां यही काफी है कि हम भारतीय वंशज हैं। दस भाई-बहनों वाली सावित्री महाराज सेवानिवृत्त प्रधानाचार्या हैं। उनके आठ अन्य भाई बहन भी शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। कुछ वर्षो से विश्व में लगातार बढ़ रही भारत की धाक को वह नागरिक जागरूकता राजनैतिक इच्छाशक्ति का परिणाम मानती हैं। भारत सरकार का विदेश विभाग जब से सक्रिय हुआ है और माननीय मोदी जी की अन्तरराष्टरीय छवि बनी है तब से एसे भावुक छण गाहे बगाहे देखने को मिलते .

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