Saturday, April 29, 2017

सनातन धर्म को हिन्दू धर्म ने ही शतप्रतिशत अंगीकार किया (भाग 2) - डा. राधेश्याम द्विवेदी



शाश्वत सनातन हिन्दू धर्म ही एकमात्र सबसे पुराना व स्थाई धर्म  (भाग 1 का शेष भाग )
सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहा जाता हैभारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव:कोटी वैष्णव,शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे।गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव:कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु शिव औरशक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ,उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है। कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
सनातन धर्म का स्वरूप:- सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है। सनातन में आधुनिक और समसामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें समय समय पर बदलाव होते रहे हैं, जैसे कि राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद आदि ने सती प्रथा, बाल विवाह, अस्पृश्यता जैसे असुविधाजनक परंपरागत कुरीतियों से असहज महसूस करते रहे। इन कुरीतियों की जड़ो (धर्मशास्त्रो) में मौजूद उन श्लोको -मंत्रो को "क्षेपक" कहा या फिर इनके अर्थो को बदला और इन्हें त्याज्य घोषित किया तो कई पुरानी परम्पराओं का पुनरुद्धार किया जैसे विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा आदि। यद्यपि आज सनातन का पर्याय हिन्दू है पर बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी अपने आप को सनातनी कहते हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं।यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं। बस वह सनातनधर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है। सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते हुए कई बार इसे कठिन और समझने में मुश्किल धर्म समझा जाता है। हालांकि, सच्चाई तो ऐसी नहीं है, फिर भी इसके इतने आयाम, इतने पहलू हैं कि लोगबाग कई बार इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण इसका यह कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है, न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक दृष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता।
सनातन धर्म का मार्ग:-विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
सनातन धर्म का सत्य:- सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था-
।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।- (वृहदारण्य उपनिषद)
 ( अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।)
जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं। उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है। वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते। मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है। अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।
।।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- (ईश उपनिषद)
सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है।जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं। वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है। जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं। जड़ पाँच तत्व से दृश्यमान है- आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी। यह सभी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। यह अपना रूप बदलते रहते हैं किंतु समाप्त नहीं होते। प्राण की भी अपनी अवस्थाएँ हैं: प्राण, अपान, समान और यम। उसी तरह आत्मा की अवस्थाएँ हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति और तुर्या। ज्ञानी लोग ब्रह्म को निर्गुण और सगुण कहते हैं। उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक ‍कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले। यही सनातन धर्म का सत्य है। ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। आत्मा का मोक्ष परायण हो जाना ही ब्रह्म में लीन हो जाना है इसीलिए कहते हैं कि ब्रह्म सत्य है जगत मिथ्‍या यही सनातन सत्य है। और इस शाश्वत सत्य को जानने या मानने वाला ही सनातनी कहलाता है।हिन्दू एकता के लिए एक ही रास्ता बचा है :- जडों की ओर लौटे क्योंकि जडे सूख गई है | सनातन धर्म के मजबूत आधार ये है गायत्री, यज्ञ, गीता, गंगा, गौमाता, ज्योतिर्विद्या (जन्म कुंडली) जिसे वेदों का नेत्र कहा गया है और सद्गुरु | इन्हें अपनाने से भाग्य की उन्नति होती है और दुर्भाग्य का शमन होता है | आज 99% हिन्दू ये नहीं करते इसीलिए पतन के गर्त में पहुँच गए है | अतः आज से ही सनातन धर्म के इन सिद्धांतो का पालन करना शुरू कर दे क्योंकि धर्म आचरण करने पर ही ईश्वर रक्षा करता है | धन, जन से भरपूर बनाता और विपत्ति हरता है | आओ मिलकर करे साधना, दिव्य शक्ति (गायत्री) के मंत्र की | गूंजे फिर जयकार धरा पर, सत्य सनातन धर्म की |

(शेष अगले भाग 3 में)

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