Sunday, December 31, 2023

इक्कीसवीं सदी में भव्य आकार लेती पुरातन अयोध्या ✍️ डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद साल 2020 में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत हुई । रामजन्म भूमि परिसर कभी 70 एकड़ का था। आज रामजन्म भूमि परिसर करीब 100 एकड़ में विस्तारित हो चुका है। विशाल परिसर की पूरी तरह सफ़ाई कराने के बाद उसमें से दो एकड़ ज़मीन को मंदिर के लिए चुना गया । हज़ारों करोड़ की लागत से बनने वाले इस नए राम मंदिर के सज सज्जा अब अपने अंतिम चरण में है । 

दो लाख श्रद्धालुओं का प्रतिदिन आना जाना संभावित:-

इस समय करीब 30 हजार करोड़ की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। देश और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के रुकने के लिए 15 नए होटल बन रहे हैं। साथ ही 32 होटल लाइसेंस पाने की प्रकिया पूरी कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य छोटे होटल रेस्टोरेंट गेस्ट हाउस, होम स्टे और धर्मशालाएं भी बन रही हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा से पहले सारे काम पूरे हो जाएंगे। राममंदिर के निर्माण के साथ जिस तरह से अयोध्या में देर भर के श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ी है, उससे मंदिर ट्रस्ट और प्रशासन को अनुमान है कि अगले दो सालों में रोजाना डेढ़ से दो लाख श्रद्धालु अयोध्या पहुंचने लगेंगे।  बाहर से आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को सुविधाएं मुहैया कराने को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं।
डबल इंजन की सरकार में परिवर्तन की मुहिम :-

छः साल पहले योगी सरकार आने के बाद अयोध्या की तस्वीर बदलनी शुरू हुई। फैजाबाद जिला और कमिश्नरी हेडक्वार्टर का नाम हटा कर अयोध्या को यह दर्जा दे दिया गया। साथ ही अयोध्या के नाम पर निगम और विकास प्राधिकरण के नाम बदल दिए गए। यहां तक कि केंद्र सरकार के संस्थान फैजाबाद रेलवे स्टेशन और फैजाबाद डाकघर के नाम भी अयोध्या कैंट और अयोध्या डाकघर कर दिए गए। बीजेपी की डबल इंजन की सरकार के दौरान अयोध्या परिवर्तन की मुहिम यहीं नहीं रुकी। 

अयोध्‍या की बदल रही तस्‍वीर :-

अयोध्या के भव्‍य राम मंदिर के निर्माण के साथ अयोध्या की तस्वीर बदल रही है। केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार दोनों के फोकस में अयोध्या है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार मिलकर अयोध्या में 30,000 करोड़ से भी ज़्यादा के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू कर चुके हैं। जब से राम मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू हुआ है और एक अस्थाई स्थान पर राम लला की मूर्ति रखी गई है, तब से दर्शन करने वालों का तांता लगा हुआ है। अयोध्या को विश्वस्तरीय नगरी बनाने के काम के साथ पूरे पूर्वांचल का भी विकास हो रहा है। कुछ व्यापारी अव्यवस्थित हुए । उनका व्यापार प्रभावित हुआ फिर भी यहां के व्यापारी और नागरिक प्रसन्न है। दिन रात काम चल रहा है। नित नित नव अयोध्या का स्वरूप निखर रहा है। शहर में स्वच्छता बढ़ा है, गलियां साफ़ हैं। आए दिन प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आ रहे हैं, तो निश्चित रूप से उसका लाभ वहां के स्थानीय लोगों को मिल रहा है। हां बाहर के श्रद्धालुओं पर पाबंदियां जरूर खलती है । इक्कीसवीं सदी की नव अयोध्या रोज का रोज बदलती जा रही है।  

परिवर्तन को तरस रही अयोध्या का द्रुत गति से विकास :-

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी थी। देश का राजनीतिक परिदृश्य परिवर्तित कर देने वाली अयोध्या 500 साल से परिवर्तन को तरस रही थी। पीढ़ियों का संघर्ष अब मंदिर निर्माण के रूप में फलित हो रहा है। मात्र चार वर्ष में ही अयोध्या विकास के उस पथ पर अग्रसर है, जिसकी कल्पना मुदित करती है। संकरी गलियों के जाल से मुक्त राम लला के दरबार का विस्तार हो चुका है। कभी जेल नुमा रास्तों से राम लला के दरबार में पहुंचना पड़ता था। वर्तमान में 90 फीट चौड़ा आधुनिक सुविधाओं से युक्त पथ आस्था की राह सुगम कर रहा है। रामनगरी हर उस सुविधा से सुसज्जित हो रही है जो उसकी गरिमा के अनुकूल है। यहां के संत तो यहां तक कहते हैं कि अयोध्या का सुंदरीकरण या तो महाराज विक्रमादित्य ने कराया था, या फिर अब मोदी और योगी के युग में हो रहा है। 
राम के आगमन जैसा उल्लास :-

 रामचरित मानस की यह पंक्ति यहां साकार रूप ले रही है- 
अवधपुरी प्रभु आवत जानी, भई सकल सोभा कै खानी।
लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम जब अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके आगमन की खुशी में रामनगरी इस तरह सजाई गई कि शोभा की खान हो गई थी। 22 जनवरी को राम लला की नए मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा है। अयोध्या में इसका उल्लास भगवान राम के आगमन जैसा ही है।जिस अयोध्या को कभी श्रीराम ने वैकुंठ से भी प्रिय बताया था, उसने विकास की वैसी प्रतीक्षा की है, जैसी उसने त्रेता में वनवास पर गए अपने राम के लिए की थी। सरकार के प्रयासों से रामनगरी को इस तरह सजाया और संवारा जा रहा है, जो निकट भविष्य में पूरी दुनिया को आकर्षित करेगी। 

राम की भव्य पैड़ी:- 

गंदे नाले में तब्दील हो चुकी राम की पैड़ी को करीब 50 करोड़ रुपये की लागत से सजाया गया है। यह अब आस्था के साथ पर्यटन का केंद्र बन चुकी है। यहां के पंपिंग स्टेशनों की क्षमता बढ़ाई गई है। हर शाम लेजर शो व लाइट एंड साउंड सिस्टम शो के जरिये रामकथा की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र होती है। रोज की शाम कुछ नया लुक दे रही है।
मठ-मंदिरों की भी आभा लौट रही है :-

 रामनगरी की समृद्ध स्थापत्यकला व प्राचीनता के गवाह मठ-मंदिरों की भी आभा लौट रही है। करीब 65 करोड़ की लागत से रामनगरी के 37 प्राचीन मंदिरों का सुंदरीकरण कराया जा रहा है। अगले कुछ ही महीनों में ये मंदिर भक्तों को आकर्षित करते नजर आएंगे।

सौर ऊर्जा और पार्किंग में वृद्धि:- 

बदलती अयोध्या में रामनगरी की गलियों को भी चमकाया जा रहा है। 73 करोड़ की लागत से अयोध्या धाम के 15 वार्डों की गलियों को सौर ऊर्जा से जगमग करने की योजना पर काम शुरू हो चुका है। अयोध्या में कौशलेश कुंज पर एक, टेढ़ी बाजार में दो मल्टीलेवल पार्किंग का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। यहां भक्त अपने चारपहिया व दो पहिया वाहन पार्क कर सकेंगे।

लता मंगेशकर चौक नए रूप में :-

रामनगरी का नयाघाट चौराहा अब लता मंगेश्कर चौक के नाम से प्रसिद्ध है। नयाघाट चौराहा पहले मात्र 30 फीट चौड़ा हुआ करता था। मेलों के दौरान यहां भीड़ नियंत्रण में पसीना छूट जाता था। वर्तमान में यह चौराहा 100 फीट चौड़ा हो चुका है। लता मंगेश्कर की स्मृति में चौक पर स्थापित 40 फीट लंबी वीणा भक्तों को आकर्षित करती है। यहां हमेशा लता मंगेशकर के भजन गूंजते रहते हैं। हर कोई इसे अपने कैमरे में कैद कर रहा है।

रामकथा संग्रहालय की उपयोगिता बढ़ी :-

 नयाघाट स्थित रामकथा संग्रहालय वर्षों से निष्प्रयोज्य पड़ा था। अब इसे श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को समर्पित कर दिया गया है। ट्रस्ट इसका नए सिरे से सुंदरीकरण कराने जा रहा है। यहां मंदिर आंदोलन का इतिहास दर्शाया जाएगा। अन्य सांस्कृतिक व धार्मिक गतिविधियां संचालित होंगी।

अंतरराष्ट्रीय रामायण वैदिक शोध संस्थान की रिमॉडलिंग:-

अयोध्या शोध संस्थान का नाम भी सरकार ने बदल दिया है। अब अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान के नाम से इसे जाना जाएगा। 17 करोड़ की लागत से इसकी रिमॉडलिंग का काम चल रहा है। यहां भगवान राम से जुड़े साहित्य पर अध्ययन होंगे। रामलीला से जुड़े लोगों को रोजगार दिया जाएगा। संस्थान में विश्व के विभिन्न भाषाओं में रचित रामायण पर आधारित ग्रंथों, पुरातन परंपरा के वैदिक मंत्रों व इन पर लिखे गए विभिन्न टीकाओं पर अनुसंधान होगा। देश व विदेश के शोध छात्रों को जोड़ा जाएगा।
प्राचीन कुंडों की लौट रही गरिमा : -

रामनगरी की पौराणिकता के गवाह प्राचीन कुंडों का सुंदरीकरण कराया जा रहा है। इनमें से गणेश कुंड, हनुमानकुंड, स्वर्णखनि कुंड का अस्तित्व मिटने के कगार पर था। अब ये कुंड पर्यटन का केंद्र बन चुके हैं। सूर्यकुंड पर हर शाम लेजर शो देखने के लिए भीड़ उमड़ती है। इसी तरह दंतधावन कुंड, अग्निकुंड, खर्जुकुंड, विद्याकुंड की भी गरिमा लौट रही है। ये पर्यटन का केंद्र बन चुके हैं।

श्रीरामजन्म भूमि का श्रद्धा पथ सजा :- 

बिरला धर्मशाला वा सुग्रीव किले से श्रीराम जन्म भूमि मंदिर मार्ग तक .566 किमी का फोर लेन तैयार किया जा रहा है, जिसका नाम जन्म भूमि पथ रखा गया है। इसके निर्माण में जमीन खरीदने से लेकर अन्य निर्माण में 83.33 करोड़ का खर्च आ रहा है। राम भक्त अब अपने आराध्य का दर्शन जन्मभूमि पथ से कर सकेंगे।  90 फीट चौड़ा यह मार्ग आधुनिक सुविधाओं से सज्जित हो रहा है। मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार बन रहा है। यहां आधुनिक लाइटें लग रही हैं। मार्ग पर केनोपी का निर्माण हो रहा है। समस्त मूलभूत सुविधाएं भी विकसित की जा रही हैं। पथ के दोनों किनारों पर रामकथा के प्रसंगों से सजी दीवारें आकर्षित करेंगी।
रामपथ पर फर्राटा भरती गाडियां :-

सहादतगंज से नयाघाट तक 13 किलोमीटर के मार्ग को रामपथ के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह मार्ग कभी 40 फीट चौड़ा हुआ करता था। अब 80 फीट हो गया है। इस मार्ग पर सोलर लाइट व सूर्य स्तंभ लगाए जा रहे हैं। मार्ग के डिवाइडर पर हरियाली विकसित की जा रही है। इलेक्ट्रिक बसों के लिए बस स्टॉप और पांच स्थानों पर ई-चार्जिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं।

धर्मपथ का कुछ अलग ही लुक:-

लखनऊ- गोरखपुर हाईवे से अयोध्या में प्रवेश करते ही रामजन्मभूमि का अहसास होने लगता है। साकेत पेट्रोल पंप से लता मंगेश्कर चौक तक करीब दो किलोमीटर के रास्ते को धर्मपथ के रूप में विकसित किया जा रहा है। पहले यह मार्ग टूलेन था। अब फोरलेन हो चुका है। यहां 30 स्थानों पर सूर्य स्तंभ लगाए जा रहे हैं। धर्मपथ के दोनों ओर आठ-आठ मीटर पर दीवारों पर लिखे रामकथा के प्रसंग अयोध्या की महत्ता दर्शायेंगे।

सरयू नदी से लगा हुआ लक्ष्मण पथ:-

लक्ष्मण पथ गुप्तारघाट से राजघाट 12 किमी  की दूरी तक को जोड़ने के लिए भगवान राम के छोटे भाई और शेषावतार लक्ष्मण जी के नाम पर बनने वाले इस नये वैकल्पिक मार्ग निर्माण की भी पूरी कार्ययोजना तैयार है।   यह पथ फोरलेन होगा। यह पथ उदया हरिश्चंद्र घाट तटबंध के समानांतर प्रस्तावित है। तटबंध की चौड़ाई पहले छह मीटर थी जिसे एक मीटर बढ़ाकर सात मीटर कर दिया गया है। इधर लक्ष्मण पथ की चौड़ाई 18 मीटर तय की गयी है। इसके निर्माण पर लगभग 200 करोड़ की लागत आएगी। 

अंदरूनी मंदिरों को जोड़ने वाला भक्ति पथ :-

श्रृंगारहाट से राममंदिर (500 मीटर) श्रृंगार हाट बैरियर से लेकर राम जन्मभूमि तक भक्ति पथ का निर्माण हो रहा है।
 श्रृंगारहाट से राम जन्मभूमि पर भक्तिपथ मार्ग पर निर्माण कार्य तेजी से पूरा होने वाला है।श्रृंगार हाट से श्री राम जन्म भूमि मंदिर मार्ग तक .742 किमी का फोर लेन तैयार किया जा रहा है। इसका मार्ग का नाम भक्ति पथ रखा गया है। इसके चौड़ीकरण के लिए जमीन खरीदने समेत अन्य निर्माण कार्य के लिए 62.79 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है, जिसके सापेक्ष 32.10 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की जा चुकी है।  यह मार्ग 13 मीटर चौड़ा किया जा रहा है, जिसमें 5.50 मीटर चौड़ाई सीसी रोड की भी शामिल है। इसी मार्ग पर हनुमान गढ़ी, दशरथ महल कनक भवन अमावा मंदिर तथा अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं।

प्रस्तावित यात्रा/ भ्रमण पथ :-

उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में एक सड़क परियोजना, यात्रा पथ के निर्माण को मंजूरी दे दी है जो सरयू को राम मंदिर से जोड़ेगी।  यह सड़क भक्तों को राम मंदिर तक पहुंचने के लिए अधिक प्रतीकात्मक मार्ग प्रदान करता है। भ्रमण पथ राम की पैड़ी, राजघाट से गुजरेगा और राम मंदिर तक पहुंचेगा। सरयू में शामिल होने के बाद, भक्त सड़क के इस हिस्से का उपयोग करके सीधे राम मंदिर तक पहुंचेंगे ।

इंटरनैशनल एयरपोर्ट का काम आखिरी चरण में:-

महर्षि बाल्मीकि इंटरनैशनल एयरपोर्ट का निर्माण भी शुरू करवाया गया जो अब पूरा होने जा रहा है। एयरपोर्ट के डायरेक्टर के मुताबिक, दिसंबर 2023 से यहां से डोमेस्टिक उड़ानें शुरू हो रही हैं। कुछ के सिड्यूल भी आ गए हैं। कुछ की उड़ाने भी शुरू हो गई है। इसके अलावा अयोध्या से अन्य प्रदेशों और नगरों की कनेक्टिविटी बनाने के प्लान पर भी काम तेजी से चल रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इंटरनैशनल एयरपोर्ट बनाने के लिए भी राज्य सरकार ने 351 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया है, जिसके निर्माण कर
 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 30 दिसंबर को राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया।

अयोध्या धाम का भव्य रेलवे स्टेशन:-

श्रीराम की नगरी अयोध्या का भव्य रेलवे स्टेशन देश का सबसे खूबसूरत और आधुनिक सुविधाओं से संपन्न रेलवे स्टेशनों में से एक हो गया है। अयोध्या रेलवे स्टेशन के विस्तार का काम 2018 में शुरू हुआ है। इसकी बिल्डिंग 10 हजार वर्गमीटर में फैली है। नया रेलवे स्टेशन भी आकार ले रहा है। पहले चरण में अयोध्या स्टेशन के विस्तार को लेकर रेलवे 240 करोड़ रुपये खर्च किया जा रहा है। इसमें खूबसूरत भवन, पार्किंग, कर्मचारियों के लिए आवास, रेलवे पुलिस के लिए कार्यालय, तीन नए प्लेटफार्मों का निर्माण, रोड निर्माण, ड्रेनेज संबंधी कार्य हो हो रहे हैं. अयोध्या रेलवे स्टेशन का काम 31 दिसंबर 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा। नए भवन में फिनिशिंग का काम चल रहा है। यहां बुजुर्गों और महिलाओं की सुविधा के लिए लिफ्ट व एस्केलेटर, एसी वेटिंग रूम, वॉशरूम, पेयजल बूथ, फूड प्लाजा समेत अन्य सुविधाएं तैयार हो चुकी हैं। पूरे भवन को एसी बनाया गया है। दिव्यांगों के लिए रैंप की व्यवस्था होगी। स्टेशन करीब तीन किलोमीटर लंबा होगा। रेलवे स्टेशन के नए भवन का काम लगभग पूरा हो गया है। यहां लगी टाइल्स, पत्थर, शीशे, दरवाजे, लाइटिंग आदि इसकी भव्यता का एहसास कराते हैं। भवन के बीच में लगा भारी भरकम पंखा व ठीक उसके नीचे बनी फर्श की डिजाइन का आकर्षण यात्रियों का मन मोहने को तैयार है। स्टेशन का विशाल परिसर भी इसकी भव्यता का गवाह है। वंदे भारत ट्रेन अयोध्या से होकर लखनऊ तक चली है। इसके अलावा करीब आधा दर्जन नई ट्रेनें अयोध्या से होकर जाने लगी हैं। अयोध्या से रामेश्वरम के लिए भी ट्रेन चलाई गई है।

हाईवे पर बनेंगे भव्य गेट और नागरिक सुविधाएं:-

अयोध्या की बदली तस्वीर दिखे, इसे ध्यान में रखकर पर्यटन विभाग अयोध्या को जोड़ने वाले सुल्तानपुर, बस्ती, गोंडा, अंबेडकरनगर और रायबरेली हाईवे गेट का निर्माण कर रहा है। जहां पर्यटकों पहुंचते ही प्रभु राम के वंशज और सेवकों के नाम के बने गेट स्वागत करेंगे। जिन पाइंट पर ये गेट बन रहे हैं उसे यात्रियों के सुविधा केंद्र के तौर विकसित करने की योजना है। मसलन सस्ते होटल धर्मशाला गेस्ट हाउस के अलावा पार्किंग, चार्जिग स्टेशन और पेट्रोल पंप सब कुछ रहेगा वहां।
पर्यटकों को और लुभाने की योजना:-

अयोध्या में बाहर से आने वाले टूरिस्ट केवल रामलला और अयोध्या के मंदिरों में दर्शन तक ही सीमित न रह कर यहां कई दिनों तक रूकने का टूर पैकेज बनाएं। इसे ध्यान में रखकर भी कई प्राजेक्ट लांच किए जा रहे हैं। इसमें 84 कोसी परिक्रमा मार्ग पर स्थित 150से ज्यादा धार्मिक स्थलों को विकसित करने के साथ 37 कुंड और सरोवरों को टूरिस्ट सेंटर के तौर पर विकसित करने के प्लान पर काम चल रहा है। इसमें आधा दर्जन पर काम भी पूरा हो गया है। इसके साथ सरयू नदी में विहार के साथ मंदिरों के दर्शन के लिए क्रूज सेवा और रोमांचक वाटर स्पोर्ट्स सेवा भी शुरू हो गई है। अयोध्या में आइस पार्क और वैक्स म्यूजियम का प्राजेक्ट भी प्रस्तावित है जिस पर भी काम शुरू होने वाला है।

 अंतरराष्ट्रीय रामकथा म्‍यूजियम:-

अयोध्या में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र, अंतरराष्ट्रीय रामकथा म्‍यूजियम और मंदिर म्यूजियम भी बनने जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय अब राम मंदिर ट्रस्ट के अधीन हो गया है जिसे ट्रस्ट विकसित करने की योजना बना रहा है।

विश्व स्तर का बनेगा टेंपल म्यूजियम:-

राम मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर टेंपल म्यूजियम भी बनाने की तैयारी है. इसके लिए 25 एकड़ भूमि राम मंदिर के इर्द-गिर्द के चार स्थानों पर चिह्नित की गई है. यह टेंपल म्यूजियम निर्माण की अलग-अलग शैली समेत देशभर के विख्यात मंदिरों की शैली पर अध्ययन करने में मदद करेगा. इस संग्रहालय में अलग-अलग शैली के मंदिरों से जुड़े पहलुओं को प्रदर्शित किया जाएगा. जैसे- मंदिर का डिजाइन, विशिष्टता, वास्तुकला, निर्माण प्रक्रिया आदि को अलग-अलग माध्यमों से समझने के लिए दीर्घा बनाई जाएगी. 


चौड़ी सड़कें, रामायण काल की मूर्तियां:-

जो लोग कई साल बाद अयोध्या आ रहे हैं उनको इसमें प्रवेश करते ही इसका बदला स्वरूप दिखाई दे रहा है। राम मंदिर को जोड़ने वाले राम पथ भक्ति पथ और रामजन्म भूमि फोरलेन की तरह चौड़े हो गए हैं। इनके किनारे रामकथा से जुड़े म्युरल लग रहे हैं। लखनऊ गोरखपुर हाईवे पर अयोध्या बाई पास में प्रवेश करने पर डिवाइडर पर रामायण काल के पात्रों की खूबसूरत मूर्तियों के दर्शन मिलेगा। फ्लाईओवर की दीवारों पर राम कथा की पेंटिंग मिलेगी। फ्लाईओवर बनने से यहां पहुंचने पर ट्रैफिक जाम का सामना नहीं करना पड़ेगा। मेडिकल कॉलेज में 4 साल से एमबीबीएस की पढ़ाई चल रही है। यहां अब पीजी कोर्स भी शुरू हुआ हो जो एम डी के समकक्ष है। अगले सत्र से एमडी के कोर्स भी शुरू होने जा रहे हैं। कभी उपेक्षित पड़ी अयोध्या अब विश्व स्तरीय पर्यटन नगरी के रूप में बदलती दिख रही है।

नव्य अयोध्या योजना शुरू:-

अयोध्या में एक और बड़ा प्राजेक्ट तैयार हुआ है नाम है ग्रीन सिटी अयोध्या जिसको सीएम योगी आदित्यनाथ दीपोत्सव के अवसर पर लांच करेंगे। यह प्रोजेक्‍ट आधुनिक धार्मिक अयोध्या के रूप में विकसित हो रहा है। इसमें मठ-मंदिरों के साथ आवासीय भवन स्कूल कालेज विजनेस संस्थान व देश विदेश के गेस्ट हाउस भी बनेंगे। यह योजना 1400 एकड़ भूखंड पर प्रस्तावित है। जमीन का अधिग्रहण हो चुका है।

पूरे विश्व में है चर्चा का विषय :-

अयोध्या में कुछ ऐसे भी प्लान चल रहे हैं जिनकी चर्चा विश्व भर में है। ये हैं दीपोत्सव, फिल्मी कलाकारों की रामलीला और कोरियाई रानी हो का पार्क। अयोध्या आगे के दिनों में कैसी दिखेगी, इसका अनुमान बखूबी लगाया जा सकता है

अवध में गंगा-जमुनी तहजीब :-

सरयू के साथ ही अवध में गंगा-जमुनी तहजीब की धारा भी बहती है. मंदिर-मस्जिद के सदियों तक चले झगड़े के बाद अब बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे लोग भी चाहते हैं कि भव्य राम मंदिर जल्द बनकर तैयार हो, जिससे अयोध्या एक महत्वपूर्ण टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन सके। लगभग 5 वर्षों के अंतराल के बाद अयोध्या धाम पहुंचे हमारी टीम ने क्या देखा इसका ब्योरा आपके सामने है।

कई नए घाट बने:-

कई जगहों पर कूड़े-कचरे के बोझ तले दबी सरयू को अब कई नए घाट मिल गए हैं. पहले जहां प्रभु की लीला समापन की स्थली रहा गुप्तार घाट भी ‘गुप्त’ था वहां अब नया घाट बन गया है। लोगों के स्नान और सौंदर्यीकरण के लिए बनाई गई राम की पैड़ी नगर का प्रमुख पिकनिक स्पॉट है, जहां पर कहीं चटाई बिछाकर धूप सेंकने वाले नजर आते हैं, तो कहीं कड़ाही में पूड़ी भी तली जाती है।

कमल के फूल की आकृति वाला लोटस फाउंटेन परियोजना:-

विश्व पर्यटन मानचित्र पर अयोध्या को चमकाने के लिए डेढ़ सौ करोड़ की लागत से कमल के फूल की आकृति वाला मेगा फाउंटेन पार्क बनेगा. इस फाउंटेन पार्क की वास्तुकला(आकृति) भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल के फूल के जैसी होगी. जो भारतीय संस्कृति हिन्दू धर्म की सात प्रतिष्ठित पवित्र नदियों के रूप में फूल की सात पंखुड़िया बनती है.  इस पार्क की लागत राजस्व शेयरिंग मॉडल के तहत स्वयं एजेंसी द्वारा वहन किया जाएगा. इस प्रस्तावित मेगा फाउंटेन पार्क में पानी, प्रकाश और ध्वनि के मनोरम मिश्रण के माध्यम से आगंतुकों का आध्यात्मिक अनुभव बढ़ाया जाएगा. उन्होंने आगे बताया कि यह मेगा फाउंटेन पार्क नवीनता, भव्यता, श्रद्धा, आध्यत्मिकता और आधुनिकता का एक विशिष्ट प्रतीक होगा जो शहर के समग्र मूल्य को समृद्ध करेगा। अयोध्या के लिए एक कमल फाउंटेन प्रोजेक्ट की भी योजना है, जो अगले साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए ₹ 24 करोड़ की मंजूरी दी है, जिसके लिए ₹ 5 करोड़ जारी किए हैं। अयोध्या में चल रही परियोजनाओं में, कमल का फव्वारा मंदिर शहर में एक और अतिरिक्त परियोजना होगी। यह फव्वारा सरयू नदी के पास नया घाट और गुप्तार घाट के बीच 20 एकड़ भूमि पर लगाया जाएगा। प्रस्तावित फव्वारे में कमल के फूल की तरह सात पत्तियां होंगी और यह 50 मीटर तक पानी फेंकेगा। यह प्रोजेक्ट अगले साल के अंत तक पूरा हो जाएगा।जर्मन कंपनी ओसे ने फव्वारे का डिजाइन तैयार किया है। 

राजर्षि दशरथ स्वायत्त राज्य मेडिकल कॉलेज:-

राजर्षि दशरथ स्वायत्त राज्य मेडिकल कॉलेज, अयोध्या जिले के दर्शन नगर में स्थित है । कॉलेज बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड सर्जरी (एमबीबीएस) की डिग्री प्रदान करता है। मेडिकल कालेज में 200 बेड सुविधा इसी साल के अंत से मिलेगीl इसके लिए 21 करोड़ से नया भवन बनकर पूरी तरह तैयार है । यहां एक ही छत के नीचे मरीजों को सभी आधुनिक चिकित्सीय सुविधाएं मिलेगी और उन्हें भटकना नहीं पड़ेगाl मेडिकल कॉलेज 17 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और जिला अस्पताल अयोध्या से जुड़ा हुआ है। राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज, दर्शन नगर के केंद्रीयकृत प्रयोगशाला में अब खून की कई आधुनिक जांचें आसानी से हो सकेंगी। इसके लिए सीएसआर फंड (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) के जरिए करीब 30 लाख की लागत से तीन आधुनिक मशीनें प्राप्त हुई हैं। इनका शुक्रवार को उदघाटन एमपी अयोध्या श्री लल्लू सिंह द्वारा कर दिया गया।मेडिकल कॉलेज में तेजी से बढ़ रहे मरीजों के दबाव को देखते हुए कम समय में गुणवत्तापूर्ण खून की जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराने के लिए बायोकेमेस्ट्री एनाॅलाइजर समेत कई आधुनिक मशीनों की आवश्यकता थी। इसके लिए मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने सीएसआर फंड के जरिए कई निजी कंपनियाें से संपर्क साधा था। इन महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए कुछ कंपनियों ने हाथ बढ़ाया था। इसी कड़ी में सभी प्रक्रिया पूरी करते हुए तीन मशीन स्वीकृत हुई। प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने बताया कि इन तीन मशीनों को शुक्रवार से क्रियाशील किया जाएगा। इन मशीनों से मरीजों के खून की जांच में सहूलियत मिलेगी। 

सबसे बड़ी भगवान श्रीराम की प्रतिमा प्रस्तावित :-

दुनिया की सबसे बड़ी भगवान श्रीराम की प्रतिमा अयोध्या में सरयू तट किनारे बनेगी। यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची (251 मीटर) और गुजरात में लगी सरदार पटेल की प्रतिमा से बड़ी होगी। इसमें 181 मीटर ऊंची मूर्ति, उसके ऊपर 20 मीटर छत्र व 50 मीटर का बेस होगा। इस प्रकार मूर्ति की कुल ऊंचाई 251 मीटर है। यह मूर्ति पूरी तरह से स्वदेशी होगी और इसका निर्माण उत्तर प्रदेश में ही होगी, जो सबसे भव्य मूर्ति बनेगी। निर्माण कार्य प्रारम्भ होने के बाद उसके निर्माण में करीब साढ़े तीन साल का समय लगेगा। उम्मीद है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के बाद ही मूर्ति निर्माण का काम भी शीघ्र प्रारम्भ हो जाएगा।  मूर्ति 50 मीटर ऊंचे जिस बेस पर खड़ी होगी। उसके नीचे ही भव्य म्यूजियम होगा। जहां टेक्नोलॉजी के जरिये भगवान विष्णु के सभी अवतारों को दिखाया जाएगा। यहां डिजिटल म्यूजियम, फूड प्लाजा, लैंड स्केपिंग, लाइब्रेरी, रामायण काल की गैलरी आदि भी बनायी जायेंगी। इस मूर्ति के निर्माण के लिए अयोध्या में जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया भी चल रही है। अयोध्या के गांव मांझा बरहटा में ही श्रीराम की यह भव्य प्रतिमा लगेगी। जहां की 80 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की कार्रवाई वर्तमान में चल रही है। इसके लिए प्रदेश सरकार पैसा भी जारी कर चुकी है। 

                         लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व संस्कृति और अध्यात्म  पर अपना विचार व्यक्त करता रहता है।)

Saturday, December 30, 2023

श्रीअयोध्या शाश्वतसत्य, सनातन, अनादि, अनंत और सृष्टी का प्रारंभिक उद्गम स्थान है। ✍️ आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


       ब्रह्मा इस नगरी की बुद्धि से, विष्णु चक्र से और मैं स्वयं अपने त्रिशूल से अयोध्या की रक्षा करता हूं। अयोध्या शब्द में ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास है। कैलाश पर्वत पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अयोध्या की महिमा और इतिहास बताया। महादेव शिव ने बताया कि अयोध्यापुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे बसी हुई है। अयोध्या में जन्म लेने वाले प्राणी अजन्मा हैं, मानव सृष्टी सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।

आकारो ब्रह्म रूपस्य, घकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य, अयोध्या नाम राजते।।
एतद्वेशसृतस्य सकाशादगजन्मना।
स्व-स्वं चरितं शिक्षरेन पृथ्व्यिां सर्व मानवा:।। 
                  (मनुस्मृति)
       अद्भुत! अग्म्य! अनादि-अनंत पावन अयोध्या नगरी सृष्टी की उत्पत्ति की साक्षी है। सत्य-सनातन अयोध्या के गर्भनाल से जुड़ा है, जिसकी चर्चा इन दिनों पूरी दुनिया में है। भारतवर्ष के उत्थान-पतन की कहानी कहती है अयोध्या नगरी। अयोध्या के हनुमत निवास के महंत आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण महाराज के पास जो प्राचीन अयोध्या के शोधार्थी रहे हैं। वह बताते हैं कि 'जिस समय दुनिया में मानचित्र का भी आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय भारत भूमि पर सभ्यता का सूर्य अपनी किरणें बिखेर रहा था। उस समय भारत की राजधानी अयोध्या थी, जिसका प्रमाण है सृष्टि रचना का इतिहास।' आखिर इस दावे के पीछे सच्चाई क्या है? तो वह वेद-पुराणों से अनेक उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि 'इतिहासकरों ने वेद-पुराणों को भी इतिहास के स्रोत के रुप में स्वीकार किया है।'
अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र स्थानों में से एक रहा है। हिन्दू धर्म में मोक्ष पाने को बेहद महत्व दिया जाता है। पुराणों के अनुसार सात ऐसी पुरियों का निर्माण किया गया है, जहां इंसान को मुक्ति प्राप्त होती है। मोक्ष यानी कि मुक्ति, इंसान को जीवन- मरण के चक्र से मुक्ति देती है।
           अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका।
            पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः। ।
 हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर और जिला है। 
 अयोध्या में श्रीहरि विष्णु के सुदर्शन चक्र पर स्थित है। यहां सदैव पुण्य का वास रहता है। श्रीहरि स्वयं सदैव यहां विराजमान रहते हैं। 
       विष्णोस्ससुदर्शने चक्रेस्थिता पुण्यांकुरा सदा।
        यत्र साक्षात् स्वयं देवो विष्णुर्वसति सर्वदा।।
              अयोध्या की स्थापना :-
अयोध्या पूरी भगवान विष्णु के बाए पैर के अंगूठे से निकली सरयू नदी के दक्षिण तट पर बसी है। रुद्र्यामलोक्त 
अयोध्या महात्म्य के प्रथम अध्याय के श्लोक 17 के अनुसार- "अयोध्या नगरी सृष्टि के आदि में उत्पन्न हुई और इस त्रिलोकी में विराजमान है। परमेश्वर द्वारा ही इसका निर्माण पूर्व काल में किया गया था। रामायण के अनुसार अयोध्या नगर की स्थापना मनु द्वारा की गई थी।" माना जाता है कि देवताओं के कहने पर मनु राजा बनने के लिए तैयार हुए थे। धार्मिक मान्यता है कि मनु ब्रह्मा के पौत्र कश्यप की संतान थे। उन्हें भौतिक सृष्टि चलाने का दायित्व ब्रह्मा द्वारा मिला था। उसे वे अपनी क्षमता के अनुरूप निभा भी रहे था। रुद्र्यामलोक्त अयोध्या महात्म्य के प्रथम अध्याय के श्लोक 19 के अनुसार - " प्रजापालन में निरत मनु एक बार ब्रह्मा जी के सत्य लोक में गए। मनु ब्रह्रााजी के पास अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात को लेकर पहुंचे थे।" ब्रह्मा जी द्वारा वहां आने का प्रयोजन पूछने पर श्लोक 23 - 24 के अनुसार - "मनु ने सृष्टि बढ़ने और अपने रहने के लिए मनोहर स्थान बताने को कहा। जब ब्रह्मा से अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे विकुंठा के पुत्र द्वारा निर्मित बैकुंठ धाम में उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी वहां रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे।" ब्रह्मा जी द्वारा मनु को कोई उपयुक्त नगर देने की संस्तुति करने पर भगवान बासुदेव ने श्लोक 30 -36 के अनुसार - "वैकुंठ पूरी के मध्य स्थान पर स्थित जो सुन्दर और सर्व सम्मति देने वाला तथा अनेक प्रकार के आश्चर्य मय रचना से समन्वित अयोध्या नगर है, उसे ही मनु के हाथ में दिया। बह्मा जी ने इसका अनुमोदन किया था। विष्णु भगवान ने बह्मा और मनु को मृत्यु लोक वापस भेज दिया। उन्हें आज जहां साकेत अयोध्या धाम है , उस उपयुक्त स्थान बताया था । विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा और मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को भी भेजा था। उनकी सहायता और मार्ग दर्शन के लिए वशिष्ठ जी को भेजा गया था। इस प्रकार विष्णु जी के आदेश से वशिष्ठ जी द्वारा वर्तमान दिव्य शोभामय स्थल का चयन कर अयोध्या नगर पहली बार बसाई गई थी।"वशिष्ठ मुनि ने सरयू नदी के किनारे लीला भूमि का चुनाव किया था। भूमि चयन के बाद विश्वकर्मा ने नगर के निर्माण की प्रकिया आरंभ की थी।
       भूतशुद्धि तत्व के अनुसार - "अयोध्या राम के धनुष के अग्रभाग पर बसी मानी जाती है।" स्कंद पुराण कहता हैं - "अयोध्या में अ, य, ध को क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वाचक और संयुक्त स्वरूप माना जाता है। समस्त उपपटकों के साथ ब्रह्म हत्यादि भी इससे युद्ध नहीं कर पाते हैं। इसीलिए अयोध्या युद्ध में अपराजेय रही।" इसका उल्लेख स्कंद पुराण सहित कई ग्रंथों में हैं।
वाल्मीकि रामायण में अयोध्या का वर्णन :-
अयोध्या नगर के वैभव का वर्णन वाल्मीकि रामायण में विस्तार से आता है। ऋषि वाल्मीकि रामायण के ‘बालकांड’ में अयोध्या का वर्णन करते हुए कहते हैं –

कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् ।
निविष्ट सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान ।।

वाल्मीकि रामायण को देखने से यही लगता है कि अयोध्या दुनिया में मौजूद पहली राजधानी थी, जिसे महाराज मनु ने बसाया था। जिसकी लंबाई बारह योजन और विस्तार तीन योजन थी।
अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता ।
मनुना मानवेंद्रेण या पुरी निर्मिता स्वयंम् ।।
आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी ।
श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा सुविभक्तमहापथा ।।
         (वाल्मीकि रामायण, बालकांड)
अर्थात : सरयू नदी के तट पर एक खुशहाल कोशल राज्य था । वह राज्य धन और धान्य से भरा पूरा था । वहां जगत प्रसिद्ध अयोध्या नगरी है । रामायण के अनुसार इसका निर्माण स्वयं मानवों में इंद्र मनु ने किया था । यह नगरी बारह योजनों में फैली हुई थी । अयोध्या भगवान बैकुण्ठ नाथ की थी | इसे महाराज मनु पृथ्वी के ऊपर अपनी सृष्टि का प्रधान कार्यालय बनाने के लिए भगवान बैकुण्ठनाथ से मांग लाये थे । पृथ्वी पर सात मोक्षदायिनी नगरों में प्रथम नगरी अयोध्या को महाराजा मनु ने बसाया था। सरयू नदी के किनारे यह नगरी 12 योजन (144 किमी.) लंबी और तीन योजन (36 किमी.) चौड़ी थी। मान्यता है कि अयोध्या पहले भगवान बैकुंठनाथ की थी, इसे महाराजा मनु पृथ्वी पर अपना प्रधान कार्यालय बनाने के लिए उनसे मांगकर लाये थे। बैकुण्ठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की | उस विमल भूमि की बहुत काल तक सेवा करने के बाद महाराज मनु ने उस अयोध्या को इक्ष्वाकु को दे दिया | वह अयोध्या जहाँ पर साक्षात भगवान ने स्वयं अवतार लिया | सभी तीर्थों में श्रेष्ठ एवं परम मुक्ति धाम है |मुनि लोग विष्णु भगवान के अंगों का वर्णन करते हुए अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक बतलाते हैं ।समस्त लोकों के द्वारा जो वन्दित है, ऐसी अयोध्यापुरी भगवान आनन्दकन्द के समान चिन्मय अनादि है | यह आठ नामों से पुकारी जाती है अर्थात इसके आठ नाम हैं हिरण्या, चिन्मया, जया, अयोध्या, नंदिनी, सत्या, राजिता और अपराजिता । भगवान की यह कल्याणमयी राजधानी साकेतपुरी आनन्दकन्द भगवान श्रीकृष्ण के गोलोक का हृदय है | इस देश में पैदा होने वाले प्राणी अग्रजन्मा कहलाते हैं | जिसके चरित्रों से समस्त पृथ्वी के मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते हैं | मानव सृष्टि सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी |
        यह अयोध्यापुरी सभी बैकुण्ठों (ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, विष्णुलोक, गोलोक आदि सभी देवताओं का लोक बैकुण्ठ है) का मूल आधार है | तथा जो मूल प्रकृति है (जिसमें दुनिया पैदा हुई है) उससे भी श्रेष्ठ है | सदरूप जो है वह ब्रह्ममय है सत, रज, तम इन तीनों गुणों में से रजोगुण से रहित है | यह अयोध्यापुरी दिव्य रत्नरूपी खजाने से भरी हुई है और सर्वदा नित्यमेव श्रीसीतारामजी का बिहार स्थल है ।
        रामायण के अनुसार कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। युगों पुरानी इस नगरी ने जहां देश-दुनिया को आदर्श राजा और राज्य की राह दिखाई तो वहीं दिलीप, गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जैसे यशस्वी शासकों से भी विभूषित रही। वैदिक ग्रंथों के अनुसार अयोध्या आदर्श राजा और राज्य की परिकल्पना की पहली साकार नगरी है, जिसने दुनिया भर में मानवता का सूत्रपात किया, जो सदियों तक रघुवंशियों की राजधानी रही और जिसे सप्तपुरियों में अग्रणी माना गया है। मनु के बाद के राजाओं ने इसे निरंतर दिव्यता बरकरार रखी। इच्छवाकु, अनरनव , मान्धाता,प्रसेंजित, भरत, सगर, अंशुमान, दिलीप,भागीरथ , काकुत्स्य , रघु, अम्बरीष जैसे राजाओं की यह राजधानी रही है। महाराज दशरथ जी जैसे कई चक्रवर्ती सम्राट इसे अभिसिंचित करते रहे। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी के स्वर्गारोहण के वक्त यह पुनः उजाड़ हो गई थी। फिर महाराज कुश ने इसे पुनः बसाया।बाद में फिर उजाड़ होने पर राजा विक्रमादित्य ने इसका पुनरुद्धार किया, जिनके बनवाये भवन अभी तक मिलते रहे हैं। हम कह सकते हैं कि काल के प्रवाह में अयोध्या उजड़ती, बसती और बदलती रही है लेकिन अयोध्या की सत्य, सनातन अंर्तधारा अनादि है, अनंत है, सृष्टी का विधान है। श्री राम जन्म भूमि के पुनः निर्माण के अवसर पर पुरातन अयोध्या अपने मूल स्वरूप से हटती हुई जन सुविधाओं के अनुरूप निरंतर नए परिधान को धारण कर रही है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करता रहता है।)
 



Thursday, December 21, 2023

चिरंजीव ध्रुव की प्रथम वर्ष गांठ पर आशीर्वचन

21 दिसम्बर 2022 ,दिन - बुधवार ,विक्रम संवत् - 2079, शक संवत् - 1944 की सुबह 04:28 बजे लखनऊ के सहारा अस्पताल में डा सौरभ द्विवेदी और डा तनु मिश्रा को पुत्ररत्न बालक ध्रुव को जन्म दिया था। छः माह पूरा होने पर अयोध्या धाम के सिद्ध हनुमान बाग के पावन प्रांगण में बालक ध्रुव का अन्नप्राशन की प्रक्रिया सम्पन्न हुआ था।
एक साल पूरा होने पर 21 दिसम्बर 2023 को अयोध्या धाम में अपने स्वजनो और परिजनों के मध्य बहुत ही सादे रूप में ध्रुव की पहली वर्ष गांठ मनाई गई और हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर नर नारायण सेवा करते हुए यथोचित भोजन सामग्री और कम्बल वितरण किया गया। ध्रुव को ढेर सारा आशीर्वाद प्राप्त हो। ईश्वर इन्हें स्वस्थ और दीर्घायु प्रदान करें।

Tuesday, December 19, 2023

अयोध्या में सड़कों की बढ़ती सुविधाएं आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


रामनगरी अयोध्या कभी तंग सड़कों और बदहाल रास्तों के लिए जानी जाती थी, लेकिन जब से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके कायाकल्प का संकल्प लिया है तब से अयोध्या निरन्तर प्रगति कर रही है। सारे संपर्क के रास्ते चौड़े हो चुके हैं, आवागमन सुगम हो चुका है। यहां विकास की ऐसी झड़ी लगी है कि अयोध्या अलग रंग रूप में दिखाई देने लगी है। विदेश समेत देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले भक्तों के लिए प्रदेश सरकार ने शानदार कनेक्टिविटी प्रदान की और अब योगी सरकार का लक्ष्य यहां बन रहे भव्य राम मंदिर तक अलग-अलग स्थानों से डायरेक्ट रोड कनेक्टिविटी प्रदान करने का है। इससे राम जन्मभूमि तक आने जाने वाले सभी रास्ते चौड़े किए जा रहे हैं और इनका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है , ताकि भगवान राम के बाल स्वरूप का दर्शन करने आने वाले भक्तों को राम मय वातावरण प्रदान किया जा सके।
श्रद्धालुओं को नव निर्मित श्री राम जन्म भूमि मंदिर तक पहुंचाने के लिए अयोध्या में अनेक मार्ग तैयार किए जा रहे हैं। कुछ पूरे होने के करीब हैं और कुछ पर काम होना है। ये मार्ग आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे और इनका नाम भी भक्तों को आध्यात्मिकता का अनुभव कराएगा। अयोध्या में भक्तों को राम मंदिर तक पहुंचाने वाले इन मार्गों के नाम होंगे राम,लक्ष्मण,भक्ति, श्रद्धा ,धर्म और भ्रमण पथ। इन रास्तों पर चलने वाले श्रद्धालुओं को अहसास होगा कि वे किसी आध्यात्मिक नगर में हैं और रामलला के भव्य मंदिर तक पहुंचने का उनका सफर काफी सुखद और गौरव पूर्ण बन रहा है।

हाईवे व बाहरी सड़कों से जोड़े जा रहे अयोध्या के स्थल 

1. भरतकुंड नंदी ग्राम को जोड़ना :-

भगवान श्रीराम के भाई भरत की तपस्थली भरतकुंड को जोड़ने के लिए दो लेन मार्ग का निर्माण पूरा हो गया है । इसमें 54 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं ।रामनगरी से भरत की तपोस्थली तक का मार्ग नए सिरे से संवारा गया है। विद्याकुंड से नंदीग्राम तक 16.5 किमी.सड़क का निर्माण होगा। विद्याकुंड से दर्शननगर तक दस मीटर व दर्शननगर से भरतकुंड तक सात मीटर चौड़ा मार्ग बनेगा। विद्याकुंड से दर्शननगर तक दस मीटर व दर्शननगर से भरतकुंड तक सात मीटर चौड़ा बनेगा। भरतकुंड की दो किलोमीटर की आंतरिक सड़कों को भी संवारने की योजना बनाई गई है। अयोध्‍या से यह मार्ग विद्याकुंड, अचारी सगरा, इटौरा चौराहा होते हुए भरतकुंड तक जाता है। मौजूदा समय में यह सड़क सिर्फ तीन मीटर ही चौड़ी है। इसके निर्माण से अयोध्यावासियों को नंदीग्राम तक जाने का वैकल्पिक रास्ता भी मिल जाएगा। रास्ते में पडऩे वाली बाजारों में लाइटिंग भी की जाएगी। इसके साथ ही सड़क के दोनों ओर भी लाइटिंग होगी। 

2. गोरखपुर लखनऊ हाईवे से श्रीराम जन्मभूमि को जोड़ना:-

हाईवे से महोबरा बाजार होते हुए श्रीराम जन्मभूमि तक लगभग 45 करोड़ रुपये की लागत से फोरलेन का निर्माण पूरा होने वाला है।राष्ट्रीय राजमार्ग-27 पर काम किया जा रहा है। जिससे राम मंदिर तक पहुंचना सुगम हो जाएगा। फिलहाल इस फोर लेन का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। यह फोर लेन मार्ग दिसम्बर माह के अंत तक बनकर तैयार हो जाएगा। राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर-27 से मोहबरा व टेढ़ी बाजार होते हुए राम मंदिर तक बनाए जा रहे फोर लेन का कार्य भी तेजी से पूरा किया जा रहा है। भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पूर्व फोरलेन का निर्माण पूरा हो जाने की संभावना है।

3.बिल्वहरि घाट से अयोध्या को जोड़ना:-

रामनगरी को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए अयोध्या से पूरा बाजार तक नया फोरलेन विकसित करने की योजना है। यह सड़क अयोध्या-बिल्वहरि घाट बंधे पर बनाई जाएगी। सड़क नया घाट से दशरथ समाधि होते हुए पूरा बाजार तक पहुंचेगी। भगवान श्रीराम के पिता चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ की समाधि स्थल बिल्वहरि घाट से अयोध्या तक 400 करोड़ रुपये से फोरलेन हाईवे का निर्माण कराया जा रहा है।सड़क निर्माण के लिए अयोध्या बिल्वहरि घाट बंधे को 10 मीटर चौड़ा किया जाएगा। सड़क की लंबाई लगभग 15 किमी के आसपास होगी।

        अन्य प्रस्तावित अंदरूनी मार्ग और उनके नाम 

1.अयोध्या-जगदीशपुर एनएच-330 हाई वे :-

अयोध्या-जगदीशपुर हाईवे पर अब वाहन फर्राटा भरेंगे। इस हाईवे पर सड़क का 85 फीसदी काम पूरा हो गया है। ओवरब्रिज, अंडरपास जैसे काम भी अगले कुछ महीने में पूरे जाएंगे। अयोध्या धाम को आने जाने वाली सुविधाएं इन दिनों तेजी से विकसित की जा रही हैं। इन्हें विश्वस्तरीय बनाया जा रहा है। कई का चौड़ीकरण और सुदृढ़ीकरण भी किया जा रहा है। अयोध्या-रायबरेली मार्ग के अयोध्या-जगदीशपुर खंड का निर्माण इन दिनों तेजी पर है। इसे एनएच-330 के नाम से भी जाना जाता है। इसकी कुल लंबाई 40.80 किलोमीटर है। इसके चौड़ीकरण का काम लगभग 78 फीसदी पूरा हो गया है। सड़क का काम भी लगभग 85 फीसदी हो गया है। हाईवे पर जिले की सीमा में पहले कुमारगंज फ्लाईओवर (लंबाई 1560 मीटर) का 75 फीसदी कार्य पूर्ण हो गया है। रेलवे ओवरब्रिज का 82 फीसदी काम पूरा हो गया है। दो वाहन अंडरपास और मड़हा नदी पर पुल का काम पूरा हो गया है। इस हाईवे के निर्माण के लिए जिले के तीन तहसीलों के 37 गांवों की लगभग 50 हेक्टेयर जमीन ली गई। इसमें तहसील सदर के तीन गांव, सोहावल के आठ गांव व मिल्कीपुर के 26 गांव की कुल प्रस्तावित भूमि 39.94 हेक्टेयर और सरकारी भूमि कुल 10.36 हेक्टेयर का अधिग्रहण व पुनर्ग्रहण किया गया । 1500 करोड़ रुपये की लागत से अयोध्या-जगदीशपुर हाईवे का 90 फीसदी काम पूरा हो चुका है। 

2.अयोध्या-अकबरपुर-बसखारी फोरलेन हाईवे:-

अयोध्या से बसखारी तक फोरलेन सड़क का निर्माण तीन माह में पूरा हो जाने की उम्मीद है। लगभग साढ़े पांच अरब की लागत से 80 किलोमीटर लंबा मार्ग बनने से जिले के लोगों को आवागमन में काफी सहूलियत होगी। फोरलेन सड़क का निर्माण करीब एक वर्ष पहले शुरू हुआ था। निर्माण कार्य को दिसंबर 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लगभग डेढ़ अरब की लागत से निर्माणाधीन अकबरपुर बाईपास का निर्माण भी तेजी से पूरा करने का निर्देश दिया। 400 करोड़ की लागत से अयोध्या-अकबरपुर-बसखारी फोरलेन हाईवे का आधे से ज्यादा काम पूरा।

3. 84 कोसीय परिक्रमा मार्ग 67 किमी लंबा रिंगरोड:-

जाम से निजात दिलाने के लिए 67 किमी लंबे रिंगरोड का निर्माण कराया जा रहा है। 4000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला रिंगरोड अयोध्या, गोंडा और बस्ती से जाएगा। इसके लिए जमीन की खरीद अंतिम चरण में है।

4.शहर का मुख्य राम पथ ,:-

राम पथ नया घाट से सहादतगंज तक 13 किमी अयोध्या में राम पथ का निर्माण तेजी से हो रहा है । सहादतगंज से नया घाट तक हाईवे का आठ करोड़ रुपये से सुंदरीकरण किया जा रहा है। सहादतगंज से नया घाट के बीच 250 करोड़ की लागत से फोरलेन सडक़ बनाए जाने की घोषणा की गई है।इस मार्ग के चौड़ीकरण में जमीन खरीदने से लेकर अन्य निर्माण कार्य के लिए 797.69 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की जा चुकी है, जिसके सापेक्ष 290 करोड़ की धनराशि जारी की जा चुकी है। राम पथ के लिए 40765 वर्ग मीटर भूमि की जरूरत है, जिसके मुकाबले 4773 वर्ग मीटर भूमि का अर्जन कर लिया गया है।

5.सरयू नदी से सटा लक्ष्मण पथ:-

लक्ष्मण पथ गुप्तारघाट से राजघाट 12 किमी  की दूरी तक को जोड़ने के लिए भगवान राम के छोटे भाई और शेषावतार लक्ष्मण जी के नाम पर बनने वाले इस नये वैकल्पिक मार्ग निर्माण की भी पूरी कार्ययोजना तैयार है।   यह पथ फोरलेन होगा। यह पथ उदया हरिश्चंद्र घाट तटबंध के समानांतर प्रस्तावित है। तटबंध की चौड़ाई पहले छह मीटर थी जिसे एक मीटर बढ़ाकर सात मीटर कर दिया गया है। इधर लक्ष्मण पथ की चौड़ाई 18 मीटर तय की गयी है। इसके निर्माण पर लगभग 200 करोड़ की लागत आएगी। इस मार्ग की योजना उदय हरिश्चंद्र घाट तटबंध के समानांतर बनाई गई है।लक्ष्मण को परिक्रमा पथ से भी कनेक्ट किया जाएगा, ताकि अयोध्या में आने वाली भीड़ को डायवर्ट किया जा सके। इसके साथ ही कनेक्ट करने वाले तीन स्थानों पर 30 एकड़ जमीन पर पार्किंग की भी व्यवस्था की जा रही है ताकि श्रद्धालु किसी भी तरह से अयोध्या में प्रवेश करें तो उन्हें अपने वाहनों को पार्क करने में कोई दिक्कत महसूस ना हो।
       तटबंध की चौड़ाई पहले छह मीटर थी, लेकिन इसे बढ़ाकर सात मीटर कर दिया गया है। लक्ष्मण पथ को 18 मीटर की चौड़ाई के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस वैकल्पिक मार्ग की अनुमानित लागत लगभग 200 करोड़ रुपये है, और प्रस्ताव अनुमोदन के लिए सरकार को प्रस्तुत किया गया है। मंजूरी मिलते ही इस प्रोजेक्ट पर निर्माण शुरू हो जाएगा।

6. सरयू तट को हाईवे से जोड़ने वाला धर्म पथ :-

अयोध्या में लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-27) पर साकेत पेट्रोल पंप से लेकर लता मंगेशकर चौक 2 किमी तक के मार्ग को धर्म पथ का नाम दिया गया है। अयोध्या से गोंडा बहराइच, अयोध्या का श्रीराम जन्म भूमि,कनक भवन , हनुमान गढ़ी, राम की पौड़ी और सरयू नदी विभिन्न घाटों को हाईवे से जोड़ने वाला यही मुख्य रास्ता है।

7.अंदरूनी मंदिरों को जोड़ने वाला भक्ति पथ :-

श्रृंगारहाट से राममंदिर (500 मीटर) श्रृंगार हाट बैरियर से लेकर राम जन्मभूमि तक भक्ति पथ का निर्माण हो रहा है।
 श्रृंगारहाट से राम जन्मभूमि पर भक्तिपथ मार्ग पर निर्माण कार्य तेजी से पूरा होने वाला है।श्रृंगार हाट से श्री राम जन्म भूमि मंदिर मार्ग तक .742 किमी का फोर लेन तैयार किया जा रहा है। इसका मार्ग का नाम भक्ति पथ रखा गया है। इसके चौड़ीकरण के लिए जमीन खरीदने समेत अन्य निर्माण कार्य के लिए 62.79 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है, जिसके सापेक्ष 32.10 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की जा चुकी है। ऐसे में निर्माण मार्ग में आने वाली 350 दुकानों का मुआवजा दिया जा चुका है। वहीं चौड़ीकरण के लिए 290 दुकानों को ध्वस्त किया जा चुका है शेष पर कार्रवाई चल रही है। यह मार्ग 13 मीटर चौड़ा किया जा रहा है, जिसमें 5.50 मीटर चौड़ाई सीसी रोड की भी शामिल है। इसी मार्ग पर हनुमान गढ़ी, दशरथ महल कनक भवन अमावा मंदिर तथा अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं।

8.श्रद्धा पथ/राम जन्मभूमि पथ:-

बिरला धर्मशाला वा सुग्रीव किले से श्रीराम जन्म भूमि मंदिर मार्ग तक .566 किमी का फोर लेन तैयार किया जा रहा है, जिसका नाम जन्म भूमि पथ रखा गया है। इसके निर्माण में जमीन खरीदने से लेकर अन्य निर्माण में 83.33 करोड़ का खर्च आ रहा है, जिसको मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उच्च स्तरीय बैठक में हरी झंडी दे दी है। जिसका संचालन राम भक्तों के लिए शुरू कर दिया गया है। राम भक्त अब अपने आराध्य का दर्शन जन्मभूमि पथ से कर सकेंगे। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने कई वर्षों से चले आ रहे रामलला दर्शन के पुराने मार्ग को अब बंद कर दिया है. जिसके बाद अब राम भक्त अपने आराध्य का दर्शन जन्मभूमि पथ से करेंगे।अयोध्या में 850 मीटर लंबा जन्मभूमि पथ इस साल 30 जुलाई को भक्तों के लिए खोला गया था। यह विस्तार बिड़ला मंदिर से शुरू होता है और राम जन्मभूमि पर समाप्त होता है। राम जन्मभूमि पथ बिरला धर्मशाला के सामने से सुग्रीव किला के बगल से होते हुए अमावा मंदिर रंग महल के पीछे होते हुए सीधे राम जन्मभूमि मंदिर परिसर तक जाएगा। इस पर कुल 39.43 करोड़ रुपये की लागत आ रही है। इसमें से 23.79 करोड़ भूमि अधिग्रहण-पुनर्वास की लागत है। 390 मीटर लम्बाई में मार्ग की चौड़ाई 30 मीटर तथा शेष भाग में 24 मीटर है।  मार्ग पर 7 मीटर चौड़ाई में बिटुमिन्स मार्ग के साथ व 15 मीटर व 10 मीटर चौड़ाई में पैदल पथ का निर्माण हुआ है।

9.नव निर्मित यात्रा - भ्रमण पथ :-

उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में एक सड़क परियोजना, यात्रा पथ के निर्माण को मंजूरी दे दी है जो सरयू को राम मंदिर से जोड़ेगी।  यह सड़क भक्तों को राम मंदिर तक पहुंचने के लिए अधिक प्रतीकात्मक मार्ग प्रदान करता है। भ्रमण पथ राम की पैड़ी, राजघाट से गुजरेगा और राम मंदिर तक पहुंचेगा। सरयू में शामिल होने के बाद, भक्त सड़क के इस हिस्से का उपयोग करके सीधे राम मंदिर तक पहुंचेंगे ।



Sunday, December 17, 2023

अयोध्या की निशानी सीता जी की चूड़ामणि। आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

देवताओं और दानवों द्वारा अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र- मंथन से एक-एक करके चौदह रत्न—1. लक्ष्मी, 2. कौस्तुभमणि, 3. कल्पवृक्ष, 4. वारुणी सुरा, 5. धन्वन्तरि वैद्यक, 6. चंद्रमा, 7. कामधेनु, 8. ऐरावत हाथी, 9. अप्सरा रम्भा, 10. कालकूट विष, 11. उच्चै:श्रवा घोड़ा, 12. पांचजन्य शंख, 13. पारिजात वृक्ष, 14. अमृत-कलश निकला था।
        चूड़ामणि स्त्रियों के पहनने का एक आभूषण होता है समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले, उसी समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ – १– रत्नाकर नन्दिनी २– महालक्ष्मी रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया ! जब उनसे मिलने के लिए आगे बढीं तो सागर ने अपनी पुत्री को विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य रत्न जटित चूडा मणि प्रदान की ( जो सुर पूजित मणि से बनी) थी। महालक्ष्मी के प्राकट्य से पहले समुद्रतनया के समान रूप-रंग वाली अपूर्व सुंदरी 'रत्नाकरनंदिनी' जो कि समुद्रतनया थी, प्रकट रूप में। श्रीहरि को देखें ही रत्नाकर नंदिनी अपना हृदय भगवान को समर्पित कर दें। तभी भगवान की नित्य-शक्ति क्षीरोद तनया साक्षात् महामाया लक्ष्मी जी प्रकट हुईं। उन्हें देख कर ऐसा जान पड़ा मानो चमक उठी बिजली दिखाई देने लगी। उन्होंने अपने हाथों में सुशोभित सफेद, नीला, पीला, लाल और कर्बरी-इन पांच रंगों की कमल माला में समग्र के आश्रय और पवित्र भगवान नारायण को धारण किया और उनकी कृपा की प्रतीक्षा की, उनके निकट स्थित हो गए। 
समुद्र की ज्येष्ठ पुत्री रत्नाकर नन्दिनी मन मसोस कर कहीं खड़ी रह गयी। उनके मन के भावों को जान कर श्रीहरि स्वयं उनके निकटस्थ बोले-
'मैं मन के भावों को जानता हूं।' पृथ्वी का भार उठाने के लिए मैं जब-जब अवतार करुंगा, तब तुम मेरी संहारिणी शक्ति के रूप में अवतरित होगी। कलियुग के अंत में कल्कि रूप में जब मैं प्रकट होऊंगा, तब शत्रु पूरी तरह से अंगीकार करुंगा। अभी सत्ययुग है। त्रेता और द्वापर युग में आप त्रिकूट पर्वत शिखर पर वैष्णवी नाम से अपनी प्रेरणा के लिए तप करो।' यही देवी भगवान की आज्ञा से जंबू की वैष्णवी माता बन कर तपस्या कर रही हैं।
          रत्नाकर नन्दिनी के त्रिकूट पर्वत पर जंबू देश में जाने के बाद महालक्षमी का प्रादुर्भाव हो गया और लक्षमी जी ने विष्णु जी को देखा और मनही मन वरण कर लिया यह देखकर रत्नाकर नन्दिनी मन ही मन अकुलाकर रह गईं सब के मन की बात जानने वाले श्रीहरि रत्नाकर नन्दिनी के पास पहुँचे और धीरे से बोले – मैं तुम्हारा भाव जानता हूँ, पृथ्वी को भार- निवृत करने के लिए जब – जब मैं अवतार ग्रहण करूँगा , तब-तब तुम मेरी संहारिणी शक्ति के रूप मे धरती पे अवतार लोगी , सम्पूर्ण रूप से तुम्हे कलियुग मे श्री कल्कि रूप में अंगीकार करूँगा अभी सतयुग है तुम त्रेता , द्वापर में, त्रिकूट शिखर पर, वैष्णवी नाम से अपने अर्चकों की मनोकामना की पूर्ति करती हुई तपस्या करो। 
चूड़ामणि की कहानी 
तपस्या के लिए बिदा होते हुए रत्नाकर नन्दिनी ने अपने केश पास से चूडामणि निकाल कर निशानी के तौर पर श्री विष्णु जी को दे दिया वहीं पर साथ में इन्द्र देव खडे थे , इन्द्र चूडा मणि पाने के लिए लालायित हो गये, विष्णु जी ने वो चूडा मणि इन्द्र देव को दे दिया , इन्द्र देव ने उसे इन्द्राणी के जूडे में स्थापित कर दिया। 
          शम्बरासुर नाम का एक असुर हुआ जिसने स्वर्ग पर चढाई कर दी इन्द्र और सारे देवता युद्ध में उससे हार के छुप गये कुछ दिन बाद इन्द्र देव अयोध्या राजा दशरथ के पास पहुँचे सहायता पाने के लिए इन्द्र की ओर से राजा दशरथ कैकेई के साथ शम्बरासुर से युद्ध करने के लिए स्वर्ग आये और युद्ध में शम्बरासुर दशरथ के हाथों मारा गया। युद्ध जीतने की खुशी में इन्द्र देव तथा इन्द्राणी ने दशरथ तथा कैकेई का भव्य स्वागत किया और उपहार भेंट किये। इन्द्र देव ने दशरथ जी को ” स्वर्ग गंगा मन्दाकिनी के दिव्य हंसों के चार पंख प्रदान किये। इन्द्राणी ने कैकेई को वही दिव्य चूडामणि भेंट की और वरदान दिया जिस नारी के केशपास में ये चूडामणि रहेगी उसका सौभाग्य अक्षत–अक्षय तथा अखन्ड रहेगा , और जिस राज्य में वो नारी रहेगी उस राज्य को कोई भी शत्रु पराजित नही कर पायेगा। उपहार प्राप्त कर राजा दशरथ और कैकेई अयोध्या वापस आ गये। 
       रानी सुमित्रा के अदभुत प्रेम को देख कर कैकेई ने वह चूडामणि सुमित्रा को भेंट कर दिया। इस चूडामणि की समानता विश्वभर के किसी भी आभूषण से नही हो सकती। 
जब श्री राम जी का व्याह माता सीता के साथ सम्पन्न हुआ । सीता जी को व्याह कर श्री राम जी अयोध्या धाम आये सारे रीति- रिवाज सम्पन्न हुए। तीनों माताओं ने मुह दिखाई की प्रथा निभाई। सर्व प्रथम रानी कैकेई ने मुँह दिखाई में कनक भवन सीता जी को दिया। 
सीता जी को चूड़ामणि
सुमित्रा जी ने सीता जी को मुँह दिखाई में चूड़ामणि प्रदान की थी। अंत में कौशिल्या जी ने सीता जी को मुँह दिखाई में प्रभु श्री राम जी का हाथ सीता जी के हाथ में सौंप दिया। संसार में इससे बडी मुँह दिखाई और क्या होगी।
          वनवास के लिए सीता जी ने कषाय (गेरुआ) का सहारा लिया तो धारण कर ली; लेकिन कुलगुरु संगीतकार और उनकी पत्नी अरुंधति ने आभूषणों का त्याग नहीं किया। रावण हरण द्वारा जाने पर वह पुष्पक विमान से अपने आभूषणों को जगह-जगह डालती रहती है। लंका पहुँचे केवल चूड़ामणि ही उनके पास शेष रही थी। चूड़ामणि की महिमा के दर्शन के कारण ही उन्होंने उसे अपने शरीर से अलग नहीं किया था। 
 सीताहरण के पश्चात माता का पता लगाने के लिए जब हनुमान जी लंका पहुँचते हैं हनुमान जी की भेंट अशोक वाटिका में सीता जी से होती है। हनुमान जी ने प्रभु की दी हुई मुद्रिका सीतामाता को देते हैं और कहते हैं – 
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा,जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा।
चूडामणि उतारि तब दयऊ, हरष समेत पवन सुत लयऊ
        सीता जी ने वही चूडा मणि उतार कर हनुमान जी को दे दिया , यह सोंच कर यदि मेरे साथ ये चूडामणि रहेगी तो रावण का बिनाश होना सम्भव नही है। उसने कहा कि जब तक यह चूड़ामणि प्रभु श्रीराम के पास नहीं जाएगा; लंका का विनाश और रावण का पराजय संभव नहीं होगा। हनुमान जी लंका से वापस आकर वो चूडामणि भगवान श्री राम को दे कर माताजी के वियोग का हाल बताया। 

संसार का दिव्यतम स्त्री-आभूषण है चूड़ामणि

कुलगुरु वशिष्ठ ने को चूड़ामणि की महिमा और इतिहास में इस प्रकार कहा है -
चूड़ामणि जूड़े में पहने जाने वाला आभूषण है केवल श्रीमन्नारायण के हृदय पर शोभायमान कौस्तुभमणि ही कर सकती है। संसार के सभी आभूषण मिल कर भी इस चूड़ामणि की शोभा नहीं बढ़ा सकते। 
चूड़ामणि चौराहा मोहबरा अयोध्या :-
अयोध्या के मोहबरा चौराहे का नाम बदलकर चूड़ामणि चौराहा किया गया। मोहबरा में 12 फिट व्यास का चक्र की आकृति जूड़ा वाला चूड़ा लगा दिया गया। जिस पर सीताजी के चूड़ामणि का चिह्न प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया है। श्रीराम जन्मभूमि को जोड़ने वाले प्रमुख मार्ग के महोबरा बाजार चौराहे पर अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा सुन्दरीकरण के कार्यों के अन्तर्गत चक्र आकर की 12 फिट व्यास वाली (आकृति चूड़ा) लगाई गयी है।

अयोध्या की निशानी : चरण पादुका आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

           चरणपादुका का अर्थ खड़ाऊँ ,पाँवड़ी और पत्थर आदि पर बना हूआ चरण के आकार का चिह्न होता है। इसका पूजन होता है । इसे चरण चिह्न भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं में, चरण पादुका हिंदू देवताओं जैसे विष्णु, शिव, लक्ष्मी और अन्य धार्मिक गुरुओं के पैर प्रिंट का प्रतीक है जिनकी पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस सिल्वर चरण पादुका को अपने पूजा कक्ष, घर, कार्यालय, व्यावसायिक परिसर आदि में रखते हैं। इससे सौभाग्य, धन और समृद्धि की कामना की जाती है। श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसी दासजी ने मुख्य रूप से श्रीराम के पैर के 5 ही चिह्न का वर्णन किया है- ध्वज, वज्र, अंकुश, कमल और ऊर्ध्व रेखा। किंतु अन्य पवित्र ग्रंथों को मिलाकर देखा जाए तो 48 पवित्र चिह्न मिलते हैं। दक्षिण पैर में 24 और वाम पैर में 24। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि जो चिह्न श्रीराम के दक्षिण पैर में हैं वे भगवती सीता के वाम पैर में हैं। और जो चिह्न राम जी के वाम पैर में हैं वे सीता जी के दक्षिण पैर में हैं।

             श्रीराम के दक्षिण पैर के शुभ चिह्न-
 
1. ऊर्ध्व रेखा- इसका रंग गुलाबी है। इसके अवतार सनक, सनन्दन, सनतकुमार और सनातन हैं। जो व्यक्ति इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उन्हें महायोग की सिद्धि होती है और वे भवसागर से पार हो जाते हैं।

2. स्वस्तिक- इसका रंग पीला है। इसके अवतार श्रीनारदजी हैं। यह मंगलकारक एवं कल्याणप्रद है। इस चिह्न का ध्यान करने वालों को सदैव मंगल एवं कल्याण की प्राप्ति होती है। 

3. अष्टकोण- यह लाल और सफेद रंग का है। यह यंत्र है। इसके अवतार श्री कपिलदेवजी हैं। जो व्यक्ति इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उन्हें अष्ट सिद्धियां सुलभ हो जाती हैं।

4. श्रीलक्ष्मीजी- इनका रंग अरुणोदय काल की लालिमा के समान है। बहुत ही मनोहर है। अवतार साक्षात लक्ष्मीजी ही हैं। जो लोग इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उन्हें ऐश्वर्य तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।

5. हल- इसका रंग श्वेत है। इसका अवतार बलरामजी का हल है। यह विजयप्रदाता है। जो लोग इसका ध्यान करते हैं, उन्हें विमल विज्ञान की प्राप्ति होती है

6. मूसल- इसका रंग धूम्र-जैसा है। अवतार मूसल है। जो व्यक्ति इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उनके शत्रु का नाश हो जाता है।

7. सर्प (शेष)- इसका रंग श्वेत है। इसके अवतार शेषनाग हैं। जो लोग इस चिह्न का ध्यान करते हैं, वे भगवान की भक्ति तथा शांत‍ि प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं।

8. शर (बाण)- इसका रंग सफेद, पीला, गुलाबी और हरा है। इसका अवतार बाण है। इसका ध्यान करने वालों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं।

9. अम्बर (वस्त्र)- इसका रंग नीला और बि‍जली के रंग जैसा है। इसके अवतार वराह भगवान हैं। जो लोग इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उनके भय का नाश हो जाता है।

10. कमल- इसका रंग लाल गुलाबी है। इसका अवतार विष्णु-कमल है। इसका ध्यान करने वालों के यश में वृद्धि होती है तथा उनका मन प्रसन्न होता है।

11. रथ- यह चार घोड़ों का है। रथ का रंग अनेक प्रकार का होता है तथा घोड़ों का रंग सफेद है। इसका अवतार पुष्पक विमान है। जो व्यक्ति इसका ध्यान करते हैं, उन्हें विशेष पराक्रम की उप‍लब्धि होती है।

12. वज्र- इसका रंग बिजली के रंग जैसा है। इसका अवतार इंद्र का वज्र है। जो लोग इसका ध्यान करते हैं, उनके पापों का क्षय होता है तथा बल की प्राप्ति होती है।

13. यव- इसका रंग श्वेत है। अवतार कुबेर हैं। इससे समस्त यज्ञों की उत्पत्ति होती है। इसके ध्यान से मोक्ष मिलता है, पाप का नाश होता है। यह सिद्धि, विद्या, सुमति, सुगति और संपत्ति का निवास-स्थान है।

14. कल्पवृक्ष- इसका रंग हरा है। इसका अवतार कल्पवृक्ष है। जो व्यक्ति इसका ध्यान करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होता है और सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं। 

15. अंकुश- इसका रंग श्याम है। जो व्यक्ति इसका ध्यान करता है, उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। संसारजनित मल का नाश होता है और मन पर नियंत्रण संभव होता है।

16. ध्वजा- इसका रंग लाल है। इसे विचित्र वर्ण का भी कहा जाता है। इसके ध्यान से विजय तथा कीर्ति की प्राप्ति होती है।

17. मुकुट- इसका रंग सुनहला है। इसका अवतार दिव्य भूषण है। इसका ध्यान करने वालों को परम पद की प्राप्ति होती है।

18. चक्र- इसका रंग तपाए हुए स्वर्ण जैसा है। इसका अवतार सुदर्शन चक्र है। इसका ध्यान करने वाले के शत्रु नष्ट हो जाते हैं।

19. सिंहासन- इसका रंग सुनहला है। इसका अवतार श्रीराम का सिंहासन है। जो लोग इसका ध्यान करते हैं, उन्हें विजय एवं सम्मान की प्राप्ति होती है। 

20. यमदंड- इसका रंग कांसे के रंग के समान है। इसके अवतार धर्मराज हैं। इस चिह्न के ध्यान करने वालों को यम-यातना नहीं होती है और उन्हें निर्भयता प्राप्त होती है।

21. चामर- इसका रंग सफेद है। इसका अवतार श्री हयग्रीव हैं। जो लोग इसका ध्यान करते हैं, उन्हें राज्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ध्यान में निर्मलता आती है, विकार नष्ट होते हैं तथा चन्द्रमा की ‍चन्द्रिका के समान प्रकाश का उदय होता है।

22. छत्र- इसका रंग शुक्ल है। इसका अवतार कल्कि हैं। जो व्यक्ति इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उन्हें राज्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से उनकी रक्षा होती है और मन में दयाभाव आता है।

23. नर (पुरुष)- इसका रंग गौर है। इसके अवतार दत्तात्रेय हैं। इसका ध्यान करने से भक्ति, शांति तथा सत्व गुणों की प्राप्ति होती है।

24. जयमाला- यह बिजली के रंग का है अथवा इसका चित्र-विचित्र रंग भी कहा जाता है। जो व्यक्ति इसका ध्यान करते हैं, उनकी भगवद्-विग्रह के श्रृंगार तथा उत्सव आदि में प्री‍ति बढ़ती है।

         भगवान श्रीराम के वाम चरण के शुभ चिह्न

1. सरयू- इसका रंग श्वेत है। इसके अवतार विरजा-गंगा आदि हैं। जो व्यक्ति इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उन्हें भगवान श्रीराम की भक्ति की प्राप्ति होती है तथा कलि मूल का नाश होता है।

2. गोपद- इसका रंग सफेद और लाल है। इसका अवतार कामधेनु है। जो प्राणी इस चिह्न का ध्यान करते हैं, वे पुण्य, भगवद् भक्ति तथा मुक्ति के अधिकारी होते हैं। 

3. पृथि‍वी- इसका रंग पीला और लाल है। इसका अवतार कमठ है। जो व्यक्ति इस चिह्न का ध्यान करते हैं, उनके मन में क्षमाभाव बढ़ता है।

4. कलश- यह सुनहला और श्याम रंग का है। इसे श्वेत भी कहा जाता है। इसका अवतार अमृत है। इसका ध्यान करने वालों को भक्ति, जीवन्मुक्ति तथा अमरता प्राप्त होती है। 

5. पताका- इसका रंग विचित्र है। इसके ध्यान से मन पवित्र होता है। इस ध्वजा चिह्न से कलि का भय नष्ट होता है। 

6. जम्बू फल- इसका रंग श्याम है। इसके अवतार गरूड़ हैं। यह मंगलकारक होता है। इसका ध्यान करने वालों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

7. अर्धचन्द्र- इसका रंग उजला है। इसके अवतार वामन भगवान् हैं। जो व्यक्ति इसका ध्यान करते हैं, उनके मन के दोष दूर होते हैं, त्रिविध ताप नष्ट होते हैं, प्रेमाभक्ति बढ़ती है और भक्ति, शांति एवं प्रकाश की प्राप्ति होती है।

8. शंख- इसका रंग लाल तथा सफेद है। इसके अवतार वेद, हंस, शंख आदि हैं। इसका ध्यान करने से दंभ, कपट एवं मायाजाल से छुटकारा मिलता है, विजय प्राप्त होती है और बुद्धि का विकास होता है। यह अनाहत-अनहद नाद का कारण है। 

9. षट्कोण- इसका रंग श्वेत है, लाल भी कहा जाता है। इसके अवतार श्री कार्तिकेय हैं। इसका जो ध्यान करते हैं, उनके षटविकार- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मत्सर का नाश होता है। यह यंत्ररूप है। इसका ध्यान षट्संपत्ति- शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा एवं समाधान का प्रदाता है। 

10. त्रिकोण- यह भी यंत्र रूप है। इसका रंग लाल है। इसके अवतार परशुरामजी और हयग्रीव हैं। इसका ध्यान करने वालों को योग की प्राप्ति होती है।
. गदा- इसका रंग श्याम है। अवतार महाकाली और गदा हैं। इसका ध्यान करने से विजय प्राप्त होती है तथा दुष्टों का नाश होता है।

12. जीवात्मा- इसका रंग प्रकाशमय है और अवतार जीव है। इसका ध्यान शुद्धता बढ़ाने वाला होता है।

13. बिंदु- इसका रंग पीला तथा अवतार सूर्य एवं माया है। इसका ध्यान करने वाले के वश में भगवान हो जाते हैं, समस्त पुरुषार्थों की सिद्धि होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं। इसका स्थान अंगूठा है।

14. शक्ति- यह श्वाम-सित-रक्त वर्ण का होता है। इसे लाल, गुलाबी और पीला भी कहा जाता है। इसके अवतार मूल प्रकृति, शारदा, महामाया हैं। इसका ध्यान करने से श्री-शोभा और संपत्ति की प्राप्ति होती है। 

15. सुधा कुंड- इसका रंग सफेद एवं लाल है। इसका ध्यान अमरता प्रदान करता है।

16. त्रिवली- यह तीन रंग का होता है- हरा, लाल और सफेद। इसके अवतार श्री वामन हैं। इसका चिह्न वेद रूप है। जो व्यक्ति इसका ध्यान करते हैं, वे कर्म, उपासना और ज्ञान से संपन्न हो भक्तिरस का आस्वादन करने के अधिकारी होते हैं।

17. मीन- इसका रंग उजला एवं रुपहला होता है। यह काम की ध्वजा है, वशीकरण है। इसका ध्यान करने वाले को भगवान के प्रति प्रेम की प्राप्ति होती है।

18. पूर्ण चन्द्र- इसका रंग पूर्णत: श्वेत है तथा अवतार चंद्रमा है। इसका ध्यान करने से मोहरूपी तम तथा तीनों तापों का नाश होता है और मानसिक शांति, सरलता एवं प्रकाश की वृद्धि होती है। 

19. वीणा- इसका रंग पीला, लाल तथा उजला है। इसके अवतार श्री नारदजी हैं। इसका ध्यान करने से रा‍ग-रागिनी में निपुणता आती है और भगवान् के यशोगान में सफलता मिलती है। 

20. वंशी (वेणु)- इसका रंग चित्र-विचित्र है और अवतार महानाद है। इसका ध्यान मधुर शब्द से मन को मोहित करने में सफलता प्रदान करता है। 

21. धनुष- इसका रंग हरा-पीला और लाल है। इसके अवतार पिनाक और शार्ङ्ग हैं। इसका ध्यान मृत्युभय का निवारण करता है तथा शत्रु का नाश करता है।

22. तूणीर- यह चि‍त्र-विचित्र रंग का होता है और इसके अवतार श्री परशुरामजी हैं। इसके ध्यान से भगवान् के प्रति सख्य रस बढ़ता है। ध्यान का फल सप्त भूमि-ज्ञान है। 

23. हंस- इसका रंग श्वेत एवं गुलाबी और सर्व रंगमय है। अवतार हंसावतार है। इसके ध्यान से विवेक तथा ज्ञान बढ़ता है। संत-महात्माओं के लिए इसका ध्यान सुखद होता है। 

24. चन्द्रिका- इसका रंग सफेद, पीला और लाल है। इसका ध्यान कीर्ति बढ़ाने में सहायक होता है। 

      इस प्रकार भगच्चरणारविन्द के सभी चिह्न मंगलकारी हैं। भक्त श्री भारतेन्दु हरीश्चंद्रजी ने भी श्री रामचन्द्रजी के इन्हीं 48 चरण चिह्नों का अपने काव्य में वर्णन किया है और कहा है कि श्रीरामजी के दाएं चरण में जो चिह्न हैं, वे श्री जानकीजी के बाएं चरण कमल में हैं और जो चिह्न श्रीरामजी के बाएं चरण में हैं वे श्री जानकीजी के दाएं चरण में हैं।  

     वी ये चिह्न समस्त विभूतियों, ऐश्वर्यों तथा भक्ति-मुक्ति के अक्षय कोष हैं। जिन प्राणियों को भगवान श्रीराम के चरण-कमल चिह्नों का ध्यान एवं चिंतन प्रिय है, उनका जीवन वस्तुत: धन्य, पुण्यमय, सफल तथा सार्थक है। भगवान के चरणारविन्द की महिला उनके चिह्नों की कल्याणकारी विशिष्ट गरिमा से समन्वित है। ये चरण चिह्न संत-महात्माओं तथा भक्तों के लिए सदैव सहायक और रक्षक हैं। भक्तमाल में महात्मा नाभदासजी ने इस बात को रेखांकित किया है- 

सीतापति पद नित बसत एते मंगलदायका।
चरण चिह्न रघुबीर के संतन सदा सहायका।।

 ब्रह्म कुंड गुरुद्वारा पर चरण पादुका :-

ब्रह्म कुंड गुरुद्वारा पर चरण पादुका का चिह्न लगाया गया
है। इस पर श्रीराम के चरण पादुका का चिह्न स्थापित किया गया है । भगवान राम के प्रति भरत जी के समर्पण की प्रतीक चरण पादुका भी राम भक्तों के लिए श्रद्धा निवेदित करती नजर आएगी।

अयोध्या की निशानी : श्रीराम स्तंभ आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

         करीब दो दशक पूर्व व्यापक शोध के आधार पर राम गमन मार्ग पर आयकर विभाग के पूर्व सहायक आयुक्त डा. रामअवतार शर्मा ने 249 स्थलों को चिन्हित किया। जिन स्थलों से होते हुए श्रीराम वन में विचरण करते हुए आगे बढ़े थे। देश भर में राम के वन गमन मार्ग में और वाल्मीकि रामायण में वर्णित स्थानों पर जहां ये स्तंभ लगेंगे, वहां इन स्तंभों पर क्षेत्रीय भाषा में भी लिखा जाएगा. जनवरी में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले ऐसे 290 श्रीराम स्तंभ राम वन गमन मार्ग और अन्य स्थलों पर लगाए जा रहे हैं।
श्रीअशोक सिंहल फाउंडेशन और विश्व हिंदू परिषद के संयोजन में इन स्थलों पर श्रीराम स्तंभ स्थापित किया जाएगा। 15 फीट ऊंचा यह स्तंभ 100 से सवा सौ फीट वर्ग क्षेत्र में स्थापित किया जाएगा और इस पर वाल्मीकि रामायण के राम वन गमन से संदर्भित श्लोक के साथ इसका भावार्थ भी अंकित होगा। हिंदी भाषी क्षेत्र में यह भावार्थ हिंदी में अंकित होगा, जबकि हिंदी भाषी क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्र में भावार्थ आंचलिक भाषा सहित अंग्रेजी में अंकित होगा।
मणि पर्वत से शुरुवात हो रहा है :-
राम स्तंभ स्थापित किए जाने की प्रक्रिया रामनगरी से लगे मणि पर्वत नामक पौराणिक स्थल से शुरू होगी, जहां से श्रीराम ने त्रेता युग में वन के लिए प्रस्थान किया था। लाल बलुआ पत्थर के इन स्तंभों का निर्माण जयपुर में हो रहा है। अयोध्या नगर क्षेत्र में 25 श्रीराम स्तंभ भी लगाने का काम शुरू हो गया है। ये स्तंभ 15 फीट ऊंचा होगा. इसे अलग-अलग हिस्सों में अयोध्या लाया जा रहा है. श्रीराम स्तंभ पिंक स्टोन के बने हैं. इनकी चौड़ाई 3-4 फीट होगी। इसमें रामकथा से जुड़ा वही प्रसंग लिखा होगा, जो उस स्थान के बारे में होगा जहां वो स्तंभ लगेगा।

अयोध्या की निशानी सूर्य स्तम्भ आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

अपने 10 जनवरी 2023 के ब्लॉग में मैने अयोध्या के 
4 प्राचीन और छः प्रस्तावित प्रवेश द्वारों का परिचय दिया था , जो नये राम मंदिर निर्माण प्रक्रिया में निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर हैं। साथ ही मुख्य  राम मंदिर के अंदर प्रवेश के लिए प्रस्तावित पांच प्रवेश द्वार और दीपोत्सव 2022 के लिए बने 15 विविध पुरातन प्रतीक द्वारों का भी परिचय दिया था। आज के पोस्ट में अयोध्या में राम मन्दिर के अलावा सूर्य स्तंभ प्रतीकों से अयोध्या धाम को सजाने वा चित्रांकित करने की प्रगति आख्या पर विचार करेंगे।
सूर्य स्तंभ :-
अयोध्या सरयू तट के न्यू घाट से लगे हुए लता मंगेशकर चौक के पास, धर्म पथ पर आरंभ और समापन बिंदु के बीच नियमित अंतर पर सूर्य स्तंभ स्थापित किये जा रहे हैं। धर्मपथ पर लगने वाले 40 सूर्य स्तंभों से रामनगरी का आकर्षण और बढ़ जाएगा। 

सूर्य स्तंभ में क्या क्या दर्शाया जा रहा :-

अयोध्या में सूर्य का विशेष महत्व है। श्रीराम सूर्यवंशी थे। इसलिए सूर्य स्तंभ और सोलर सिटी के रूप में अयोध्या को विकसित करने का कार्य किया जा रहा है। अयोध्या में धर्म पथ पर रघुवंशियों के आराध्य भगवान सूर्य का प्रतिनिधित्व करते सूर्य स्तंभ बनाए जा रहे हैं। इन स्तंभों के माध्यम से सूर्य की जो महिमा है उसे प्रस्तुत कर श्रद्धालुओं के मन में श्रद्धा भाव आए इसके लिए सूर्य स्तंभ लग रहे हैं। धर्मपथ पर स्थापित किए जा रहे सूर्य स्तंभ में गदा और धनुष का चिह्न भी प्रतीक के रूप में दिखाई देगा। साथ ही स्तंभ पर गोल आकार की लाइट लगाई जाएगी, जो सूर्य के तरह प्रकाश मान होगी।                                    पूरी अयोध्या में 40 जगहों पर इनका निर्माण किया जा रहा है। इससे मुख्य मार्ग को और आकर्षण मिलेगा। लोक निर्माण विभाग नौ मीटर लंबी तथा चार मीटर ऊंची 85 दीवारों का निर्माण करा रहा है, जिन पर रामकथा के प्रसंगों का चित्रण होगा। 30-30 मीटर की दूरी पर इनका निर्माण किया जा रहा है। श्रीराम जब त्रेगायुग में वनवास काट कर अयोध्या पहुंचे थे तो उनका सूर्यवंशी परंपरा से स्वागत किया गया था। आज पुन: उसी दृश्य को दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए धर्मपथ पर 9 मीटर ऊंचे दोनों पटरियों पर 20-20 सूर्य स्तंभ लगाने का कार्य किया जा रहा है। स्तंभ के ऊपर लाइट इस तरह से लगाया जाएगा, जैसे सूर्य प्रकाश मान हो रहा हो। इस कार्य को इसी दिसंबर तक पूरा करने लक्ष्य है। स्तंभ 32 फीट ऊंचा होगा और इनके शीर्ष पर सूर्य की आकृति निर्मित होगी। लगभग 65 लाख रुपये से बनने वाले स्तंभों को स्थापित करने के लिए आधार का निर्माण किया जा रहा है। 
 


Wednesday, December 13, 2023

उत्तरी / आगरा मंडल में पुस्तकालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा मण्डल आगराडा राधे श्याम द्विवेदी

1902 में नार्थ वेस्टर्न प्राविंस का नाम यूनाइटेड प्राविंस आफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। आगरा में मुस्मिल स्मारकों के बहुलता के कारण इस मण्डल का मुख्यालय सितम्बर 1903 में लखनऊ से हटाकर आगरा बनाया गया। अधीक्षक का एक पद लाहौर मे पदास्थापित किया गया। उसका मुख्यालय लाहौर बनाया गया।

उत्तरी मंडल में पुस्तकालय की स्थापना:-यूनाइटेड प्राविंस आफ आगरा एण्ड अवध तथा पंजाब सर्किल का मुख्यालय आगरा हो ही गया था। प्रधान नक्शानवीस मुंशी गुलाम रसूल बेग के पास इस मण्डल का प्रभार आया जो 4 दिसम्बर 1903 तक पुरातत्व सर्वेक्षक कार्यालय के प्रभारी रहे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने डबलू एच निकोलस को 7 मार्च 1904 को आगरा के सर्वेक्षक का प्रभार लेने के लिए महानिदेशक कार्यालय कार्यमुक्त किया। इस अवधि में यूनाइटेड प्राविंस पंजाब का प्रभार महानिदेशक के पास रहा। 1904 -05 तक आर्कालाजिकल सर्वेयर यूनाइटेड प्राविंस  एवं पंजाब का पद नाम मिलता है। इस क्षेत्र को 1905-06 में उत्तरी नार्दन सर्किल के रुप में जाना जाने लगा। अब तक डबलू एच निकोलस यहां पर सर्वेयर पद पर बना रहा। इसी समय से उत्तरी मंडल में पुस्तकालय की स्थापना हेतु पुस्तकों का क्रय किया जाना शुरु हो गया था।
1905-10 तक यह भूभाग नार्दन सर्किल उत्तरी मंडल के रुप में प्रयुक्त होता रहा है। 1905-06 से 1910-11 तक यूनाइटेड प्राविंस एवं पंजाब का भूभाग नार्दन सर्कल के रुप में प्रयुक्त होता रहा। अभी तक मण्डल प्रमुख को आर्कालाजिकल सर्वेयर के रुप में जाना जाता था। 1911 की एनुवल प्रोगे्रस रिपोर्ट में आर्कालाजिकल सर्वेयर के साथ साथ सुप्रिन्टेन्डेन्ट का पद भी प्रयुक्त होने लगा। गार्डन सैण्डर्सन उत्तरी मंडल का अन्तिम सर्वेयर तथा प्रथम सुप्रिन्टेन्डेन्ट रहा। पुरातत्व सर्वेयर टक्कर साहब नें 1 जुलाई 1908 में कैन्ट के आपरेशन के दौरान एक पखवाड़े के अल्प समय के नोटिस पर आये उन्हें सिविल लाइन्स में दूसरा कार्यालय भवन खोजना था। उन्हे  एक अन्य मकान हेतु 55 रुपये प्रति डमदेमउ किराये की और स्वीकृति लेनी पड़ी। यद्यपि 1908 में सिविल लाइन्स में दूसरा किराये का मकान मिल गया था। एक तरफ सर्वेयर का पद नाम बदलकर 1911 में सुप्रिन्टेन्डेन्ट हो गया दूसरी ओर स्मारकों के प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण करके दो पृथक पृथक मण्डल बनाये गये। लाहौर मुख्यालय बनाते हुए नार्दन सर्किल का हिन्दू बोद्धिस्ट मोनोमेंट एक पृथक सर्किल बनाया गया। आगरा स्थित पुराना नार्दन सर्किल अब मुस्लिम एण्ड ब्रिटिस मोनोमेंट का मुख्यालय बन गया। वर्तमान 22 मालरोड भवन में कार्यरत रहा। पहले यह भवन किराये पर रहा और 1922 में उसे स्थाई रुप से क्रय करके भारत सरकार ने इसे अपना लिया।
वर्ष 1904-05 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 300 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1906-07 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 21 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 198 पांच आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1907-08 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1908-09 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 20 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 199 ग्यारह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। 10 पुस्तकें निःशुल्क प्राप्त हुईं। पायनियर नामक समाचार प़त्र खरीदा जाने लगा था। वर्ष 1909-10 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 32 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 217 चार आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया।इसके अलावा 11 पुस्तकें दान में तथा तीन पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं। इस साल भी पायनियर पेपर मंगवाया गया। वर्ष 19010-11 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 15 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 199 बारह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इस साल 19 पुस्तके दान स्वरुप प्राप्त हुईं। वर्ष 1911-12 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 24 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 48 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1912-13 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 18 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 297 चार आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 01 पुस्तक दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1913-14 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 35 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 160 तेरह आने 6 पैसे पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1914-15 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 05 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 371 पांच आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 12 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1915-16 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 03 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 147 तेरह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 24  पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1916-17 वर्ष 1917-19 तथा वर्ष 1918-19 का विवरण उपलब्ध नहीं है।1920-.21 में 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुई भी कही गयी हैं। वर्ष 1921-22 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 34 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय के लिए एलाट तथा रुपया  Rs. 125 Anas 15 खर्च किया गया। वर्ष 1922-23 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 03 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 एलाट तथा रुपया  Rs. 166 Anas 02 Paise 02 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 33 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1923-24 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 12 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 एलाट तथा रुपया  Rs. 215 Anas 11 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 42 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1924-25 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 27 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 700 एलाट तथा रुपया  Rs. 1259 Anas 12 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 22 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1925-26 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 300 एलाट तथा रुपया  Rs. 300 Annas 14 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 27 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1926-27 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 30 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 34 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1927-28 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 14 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1928-29 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1929-30  में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 06 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1930-31 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 74 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 41 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1931-32 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 09 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1932-33 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1933-34 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 15 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1934 -35 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 23 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1935-36 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 33 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 56 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1936-37 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 33 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1937-38 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 10 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 35 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं ।
पुस्तकालय मंदिर, पुस्तकें प्रभु के विग्रह तथा पाठक उस प्रभु के परम प्रिय भक्त होते हैं। मैं तो प्रभु और भक्त के बीच सेवक के रुप में एक कड़ी था। मुझे प्रभु और भक्तों दोनों का भरपूर सहयोग, प्यार और आशीर्वाद निरन्तर मिलता रहा। अब उस भौतिक मंदिर से बाहर रहते हुए अपने मन मंदिर के प्रभु से सभी भक्तों के प्रसन्न व आनंदिन रहने की प्रार्थना करता रहता हॅू। आप सबके प्यार और आशीर्वाद की सराहना करता हॅू ।

Wednesday, December 6, 2023

आर्थोपेडिक सर्जन डा.सौरभ द्विवेदी के आगरा कार्यकाल के कुछ चुने हुए आपरेशन कार्य

बस्ती जिले के मूल निवासी तथा केंद्रीय विद्यालय बस्ती और आगरा से अपनी शिक्षा शुरू करने वाले U.P. Rural Institute of Medical Sciences and Research (रिम्स )सैफई से एमबीबीएस और एस एन मेडिकल कॉलेज आगरा से आर्थोपेडिक विषय में एम एस चिकित्सा में गोल्ड मेडिलिस्ट युवा आर्थोपेडिक सर्जन के आगरा कार्यकाल के कुछ चुने हुए चिकित्सीय कार्य निम्न प्रकार हैं -

26 नवम्बर 2020
Revised total hip replacement of 80yr old lady with weight of 80kg with primary THR done elsewhere who was unable to bear weight since 5years, now able to walk with support 3rd day after surgery. 

5 दिसंबर 2020
60 Y male known case of chronic osteoarthritis with chronic hip pain for 10 years.CEMENTED HIP REPLACEMENT done
Excellent surgical outcome achieved, patient walking painlessly on day 3rd of surgery.

20 फरवरी 2021
Landmark achieved- Bilateral Uncemented total hip replacement done in 26 Yr male with avascular necrosis of both hip from 2 years.

5अप्रैल 2021
35 year poor ankylosed hip treated free of cost by Uncemented THR through Ayushman yojna scheme .Ayushman yojna is still functioning and people are getting benefits.
डा सौरभ द्विवेदी ने और भी बहुत बड़ी मात्रा में आपरेशन ओपीडी और चिकित्सीय कार्य किया है जिसका विवरण सहेजा नही गया। फलत: अतिरिक्त अन्य कार्यों का विवरण उपलब्ध नहीं है ।

             (यह श्रृंखला आगे भी जारी रहेगा।)