Wednesday, October 31, 2018

सरदार पटेल 143वीं जयंती-राष्ट्रीय एकता दिवस डॉ. राधे श्याम द्विवेदी 'नवीन'


                                'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' के अनावरण पर बोला सरदार पटेल का परिवार- PM मोदी ने बड़ा काम किया, पूरी दुनिया देख रही

भारत की आजादी एक लंबे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्‍कृतिक संघर्ष का नतीजा थी। इसे हासिल करने के लिए महात्‍मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू , भगत सिंह से लेकर सुभाषचंद्र बोस सभी ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया है । आम जनता ने भी आजादी की जंग में अपना खून पसीना एक किया। सभी किसी न किसी तरह से भारत की सत्‍ता पर स्‍वदेशी हुकूमत देखना चाहते थे। 15 अगस्‍त 1947 को भारत आजाद हो गया। देश पर एकीकरण का एक भयावह खतरा मंडरा रहा था जिसे न जवाहर लाल नेहरू कर पाते और न राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी। सरदार बल्‍लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्‍छा शक्‍ति, लौह जैसे इरादे के बूते भारत आजाद और संगठित हुआ। आज जिस अखंड और एक भारत को हम देख रहे हैं यह पूरा भारत हम सबको इसी शख्‍स का दिया हुआ ऐसा अनमोल तोहफा है, जिसकी हम कभी कल्‍पना भी नहीं कर सकते। लौह जैसे इरादों के चलते पटेल लौह पुरूष के नाम से पूरे भारत में लोकप्रिय रहे। दरअसल, भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण काम था रियासत में खंड-खंड रूप से बंटे, राजे-रजवाड़ों के छोटी-छोटी सल्‍तनों की हुकूमतों के अहंकार में डूबे हिंदुस्‍तान को एक करना कोई आसान काम नहीं था। अंग्रेज भारत को आजाद तो कर गए, लेकिन उन्‍होंने देश का बंटवारा भी कर दिया । पाकिस्‍तान के बनाने का निर्णय अंग्रेजों द्वारा अधिकृत लार्ड माउंटबेटन कर गए, लेकिन वे हिंदुस्‍तान को अखंड बनाने वाली 536 छोटी-बड़ी रियासतों को लेकर चुप्‍पी साध गए। उस समय नेहरू के लिए भी रियासतों को एक करना सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती थी, जिसकी जिम्‍मेदारी उन्‍होंने सरदार बल्‍लभ भाई पटेल को सौंपी । इस तरह एक दृढ़ इच्‍छाशक्‍ति के कुशल संगठक, शानदार प्रशासक, पटेल के लिए 500 से ज्‍यादा राजाओं को आजाद भारत में शामिल करना आसान नहीं था। वे उन्‍हें नई कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करना चाह रहे थे कि वे भारत की कांग्रेस सरकार के अधीन आ जाए। जिस तरह से उन्‍होंने हैदराबाद, जूनागढ़ जैसी रियासतों को एक किया वह काबिले तारीफ था।
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सन् 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भारत स्वतंत्र रियासतों में बंटा हुआ था। 15 अगस्त 1945 को जापान आत्म समर्पण कर दिया था, तब माउण्टबैटन सेना के साथ बर्मा के जंगलों में थे। इसी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए माउण्टबैटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था। वास्तव में, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, या यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए। भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। तब सरदार पटेल ने कोई 600 देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। एक कुशल प्रशासक होने के कारण कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें ’लौह पुरुष‘ के रूप में भी याद करता है।सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के  गृहमंत्री थे। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा।  भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, काश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को भारत सरकार की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष प्रिवीपर्स दिया गया।                                 भोपाल का विलय:- भोपाल स्टेट की नींव रखी  मुग़ल फ़ौज के एक अफ़ग़ान पश्तून फौजी दोस्त मोहम्मद खान ने।  आगे चलकर 1818 में यह अंग्रेज़ो के अधीन आगया और 1818 से 1947 तक यह अंग्रेज़ो की सुरक्षा में रहा। 1857 को भोपाल स्टेट के मौलवियों ने स्टेट की नीतियों के खिलाफ जाकर अंग्रेज़ो के खिलाफ जिहाद का फतवा देदिया और लगातार तात्या तोपे, टोंक के नवाब  और रानी लक्ष्मी बाई से संपर्क में रहे।  यह मौलवी घर घर में अपनी बात पहुंचाने के लिए चपाती पर सन्देश लिखने लगे। उस वक़्त की रानी सिकंदर जहां बेगम को जब पता लगा तो उन्होंने चपातियों के वितरण पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मार्च 1948 में यह स्टेट भी इंडिया में ले लिया गया।भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था।                                                                  
जूनागढ़: जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा    से  जूनागढ़   में नवाब के विरुद्ध बहुत विद्रोह हो गया वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया।  जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया।
हैदराबाद:- हैदराबाद:- 1798 में हैदराबाद के तहत एक राजसी राज्य बन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य में जाना जाता है । एक सहायक गठबंधन करके यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए अपनी विदेश का नियंत्रण सौंप दिया था। 1903 में बरार राज्य के क्षेत्र अलग और मध्य प्रांतों में विलय कर दिया गया था। 1948 में हैदराबाद के लिए तो बाकायदा उन्‍हें सेना की एक टुकड़ी भेजनी पड़ी। पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया।
कश्‍मीर समस्‍या:- कश्मीर रियासत पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु इतिहासकारों की मानें तो सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे, और हम कम से कम इस बात में यकीं कर सकतेहैं कि पटेल होते तो कश्‍मीर समस्‍या का आज इस तरह से विकराल नहीं हो सकती थी। बावजूद नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"
सरदार पटेल की जयंती:-31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत में वर्ष 2014 में पहली बार राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया गया। देश के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष खड़ा करने के अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।इसी क्रम में सरकार ने सरदार पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दिन देशभर में एकता दौड़ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री खुद भी दौड़ लगा सकते हैं।इसके अलावा ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री इसी दिन आकाशवाणी के जरिए मन की बात के तहत जनता से अपना दूसरा संवाद भी कर सकते हैं। केंद्र की सत्ता में आने से पहले से ही पीएम मोदी सरकार पटेल की विरासत को लेकर कांग्रेस से दो दो चार हाथ कर रहे हैं। उन्होंने गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने के लिए बाकायदा हर गांव से लोहा इकट्ठा करने का अभियान छेड़ा था।उन्होंने प्रस्ताव रखा है कि सरदार पटेल की इस प्रतिमा को दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा के तौर पर स्थापित किया । मोदी ने कांग्रेस पर सरदार पटेल के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया था। साथ ही जवाहर लाल नेहरू पर भी सवाल खड़े किए थे।
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन :- पीएम मोदी ने इस विशाल प्रतिमा का उद्घाटन आज सरदार वल्लभभाई पटेल की 143वीं जयंती के मौका पर किया है। इस मूर्ति की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि यह संसार की सबसे ऊंची प्रतिमा है। ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ के नाम से मशहूर इस प्रतिमा की उचाई 182 मीटर है। यह प्रतिमा गुजरात के केवड़िया में सरदार सरोवर बांध के नजदीक स्थित है। पीएम मोदी इस विशाल प्रतिमा का उद्घाटन करने के लिए आज प्रातः काल नौ बजे ही इस जगह पर पहुंच गए थे। इस प्रतिमा के उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने अहमदाबाद में वैली ऑफ फ्लावर्स व टेंट सिटी का भी उद्घाटन किया था।‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ नाम की इस विशालकाय प्रतिमा के अनावरण के वक्त पीएम मोदी के साथ गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, राज्यपाल ओमप्रकाश कोहली, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह व मध्यप्रदेश की गवर्नर आनंदीबेन पटेल भी शामिल थी। इस दौरान यहाँ पर कई रंगारंग सांस्कृतिक प्रोग्राम भी आयोजित किये जा रहे है।भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये मेरा सौभाग्य कि मुझे बतौर प्रधानमंत्री सरदार पटेल की इस प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को देश को समर्पित करने का मौका मिला। देश को एक सूत्र में बांधने वाले आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के अवसर पर गुजरात के गवर्नर, सूबे के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, भाजपा के अध्यक्ष अमित भाई शाह और कुछ विदेशी अतिथि भी मौजूद थे। लोकार्पण कार्यक्रम की शुरुआत सरदार पटेल की विशाल मूर्ति की डिजिटल प्रस्तुति से हुई. इसके बाद भारतीय वायु सेना के विमानों ने प्रतिमा के ऊपर से फ्लाई पास्ट किया। नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत को एक भारत, अखंड भारत बनाने का पुण्य काम किया।



Tuesday, October 30, 2018

न्यायपालिका की मंशा पर सवाल डा. राधेश्याम द्विवेदी



सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर अब सवाल खड़े होने शुरू हो रहे हैं। अयोध्या के राम मंदिर बाबरी मामले में पहला फैसला 1949 में आया था। अभी तक इस मामले में कुल 2 ही फैसले आए हैं। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का पहला विवाद 1822 में फैजाबाद कोर्ट के कागजों में दर्ज मिलता है। दूसरा 2010 में आया था। अप्रैल 2002 से राम जन्मभूमि बाबरी विवाद के मामले के अदालती प्रक्रिया में तेजी आई और विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। 2002 esa gkbZdksVZ us Hkkjrh; iqjkrRo losZ{k.k dks bl ckr dh tkap djus dks dgk fd 1528 ls igys ogka efLtn Fkh ;k ughaA 2003 esa bykgckn gkbZ dksVZ us Hkkjrh; iqjkrRo losZ{k.k dks v;ks/;k esa [kqnkbZ dk funsZ'k fn;k] rkfd eafnj ;k efLtn dk çek.k fey ldsA 2003 के मार्च से अगस्त माह के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल के इर्द-गिर्द के भूभाग में खुदाई कराई और प्रमाणित किया कि जिस भूमि पर मस्जिद बनी थी, उसके नीचे मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 22 vxLr 2003 dks Hkkjrh; iqjkrRo losZ{k.k us v;ks/;k esa [kqnkbZ ds ckn bykgckn gkbZ dksVZ esa fjiksVZ is'k dh- blesa dgk x;k fd efLtn ds uhps 10oha lnh ds eafnj ds vo'ks"k çek.k feys gSa- eqfLyeksa esa bls ysdj vyx&vyx er Fks- bl fjiksVZ dks v‚y bafM;k eqfLye ilZuy y‚ cksMZ us pkSysat fd;k 30 सितंबर 2010 को हाईकोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ ने विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, रामलला वं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर बांटे जाने का आदेश पारित किया था, पर यह फैसला किसी को मान्य नहीं हुआ और प्रायःसभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इससे पूर्व 27 सितंबर को तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने 1994 के अपने उस फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया था। फैसले में कहा गया था जिसमें कहा गया था किमस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं  है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। देखना है कि क्या अब न्यायालय इसका समाधान कर सकेगा अथवा जनता के दबाव प्रभाव में आकर कानून बनाकर सरकार इसका रास्ता निकाल सकेगी ।बीजेपी के चुनावी घोषणा में भी राम मंदिर  होने के बावजूद इस विषय पर संजीदा दिखाई नहीं देता है।
2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा  :-
2019 का लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाला है।एक तरफ सुप्रीम कोर्ट आस्था को लेकर राम मंदिर में घुसने नहीं देती और दूसरी तरफ सबरीमाला मंदिर में आस्थाओं,प्रथाओं को नुक्सान पहुंचाकर जबरदस्ती घुसाने में लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने दही हांड़ी, उज्जैन मंदिर, सबरीमाला मंदिर, दिवाली के पटाखे बाकी सब मुद्दों पर आस्था और धर्म की परवाह किये बगैर तुरंत फैसला जाता है। हिन्दू महिलाओं की समानता के नाम पर आस्था का गला घोंटते हुए कोर्ट ने फैसला सुनाया था लेकिन जब मुस्लिम महिलाओं को समानता का हक दिलवाने के लिए मस्जिद में प्रवेश को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गयी तो जज ने उसे ठुकरा दिया था। जब राम मंदिर जिससे करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है उसपर फैसला सुनाने की बात आती है तो जज उसे आस्था का विषय ना बताकर भूमि विवाद बता देते हैं संत समाज , उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत तथा शिव सेना बार बार कहती रही है कि इस मामला का जल्द समाधान हो।यह करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में सकारात्मक पहल होगा। कुछ विरोधी त्था राजनीतिक तत्व नई-नई चीजें पेश कर न्यायिक प्रक्रिया में दखल दे रहे हैं और फैसले में रोड़े अटका रहे हैं। राष्ट्रहित के इस मामले में स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक राजनीति करने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं।इसलिए राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण में देरी हो रही है।
     

कांग्रेस की योजना सफल :-
अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है। इस मामले में सुनवाई के लिए अब जनवरी 2019 में तारीखें तय होगी। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने सुनवाई की तारीखों की घोषणा भी नहीं की है। इससे राम मंदिर पर कांग्रेस की योजना सफल हो गयी। जो कांगे्रसी वकील कपिल सिब्बल चाहते थे सुप्रीम कोर्ट के मीलार्ड ने 3 मिनट में सुनवाई टालने से वही लग रहा है। जैसे पहले से मन बनाकर आये थे, सब कुछ पहले से ही तय कर लिया गया था। पिछले साल ही कांग्रेसी वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट के सामने ये प्रस्ताव रखा था कि राम मंदिर पर कोई सुनवाई ना की जाय बल्कि सीधा 2019 चुनाव के बाद सुनवाई की जाय वरना राम मंदिर बनने का चुनावी फायदा बीजेपी को मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के पास सिर्फ हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने के लिए टाइम है, आतंकियों के लिए रात के 3 बजे कोर्ट खोलने का टाइम है। सिर्फ राम मंदिर के लिए ही टाइम नहीं है बेंच ने पुराने फैसले को बदलते हुए यह भी कहा कि अब फैसला नई पीठ करेगी। कोर्ट के इस आदेश के बाद अब सुनवाई कब से होगी, रोजना होगी या नहीं इस पर नया बेंच ही फैसला लेगा। कोर्ट ने कहा कि बेंच जनवरी में तय करेगा कि सुनवाई जनवरी में हो कि फरवरी या मार्च में। जल्द सुनवाई की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी अपनी प्राथमिकता है ये उचित बेंच तय करेगा कि सुनवाई कब से हो। मतलब स्पष्ट है कि इसे 2019 के चुनाव के बाद ही विचार किये जाने की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। लगता है इस विवाद को 2019 के चुनाव के बाद शायद ही फैसला हो। यह भी हो सकता है कि न्यायालय फैसला करना ही नहीं चाहता। जिस प्रकार वावरी ढहा था उसी प्रकार जब हिन्दुओं के सब्र का बांध टूटेगा तो जनता व सरकारे स्वयं निर्णय लेकर कुछ भी कर सकती है ।