Saturday, April 29, 2017

शेख अब्दुला का परिवार की रानीतिक सियासत -डा. राधेश्याम द्विवेदी




पूर्वज कश्मीरी पंडित फिरभी भारत विरोधी :- कश्मीरी मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे। शेख़़ मुहम्मद अब्दुल्लाह के पूर्वज कश्मीरी पंडित थे और परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था। श्रीनगर के निकट सूरह नामक बस्ती में शेख़़ मुहम्मद अब्दुल्लाह का जन्म हुआ था। उनके पूर्वज मूलतः सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे। अफग़ानों के शासनकाल में उनके एक पूर्वज रघूराम ने एक सूफी के हाथों इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। परिवार पश्मीने का व्यापार करता था और अपने छोटे से निजी कारख़ाने में शाल और दुशाले तैयार कराके बाज़ार में बेचता था। इनके पिता शेख़़ मुहम्मद इब्राहीम ने आरंभ में एक छोटे पैमाने पर काम शुरू किया किन्तु मेहनत और लगन के कारण शीघ्र मझोले दर्जे के कारख़ानेदार की हैसियत तक पहुँच गए। शेख़़ साहब के परिवार की स्थिति एक औसत दर्जे के घराने की थी। इसके बावजूद भारत के प्रति शेख अब्दुल्ला का रवैया भारत विरोधी कैसे हो गया यह बात समझ से परे है। शेख अब्दुल्ला के पुत्र डा. फारुख अब्दुल्ला स्वयं कई बार कश्मीर के बाहर दिए गए साक्षात्कार और भाषणों में अपने पूर्वजों के हिंदू होने का जिक्र कर चुके हैं। उन्हें कई बार मंदिरों में पूजा करते हुए भी देखा गया है। जवाहर लाल नेहरू कोई धार्मिक व्यक्ति नही थे फिर भी उन्होने देश के विभाजन की मांग नही की , जबकि शेखअब्दुल्ला कश्मीर को एक मुस्लिम देश बनाने की इच्छा रखते थे, जो उनकी अभिलाषा पूरी नही हो सकी आज भी उनकी संताने फारूख अब्दुला और उनके भी पुत्र उमर जी कश्मीर के सर्वे सर्वा नेता है और धारा 370 के विषय मेबात करने पर उबल जाते है बहुत से कश्मीरी मुस्लिम पाकिस्तान से बहुत ज्याद हमदर्दी रखते है.
काशी के बाद कश्मीर ज्ञान की नगरी :- नीलमत पुराण में कश्मीर किस तरह बसा, उसका उल्लेख है। कश्यप मुनि को इस भूमि का निर्माता माना जाता है। उनके पुत्र नील इस प्रदेश के पहले राजा थे। चौदहवीं सदी तक बौद्ध और शैव मत यहां पर बढ़ते गए। काशी के बाद कश्मीर को ज्ञान की नगरी के नाम से जाना जाता था। जब अरबों की सिंध पर विजय हुई तो सिंध के राजा दाहिर के पुत्र राजकुमार जयसिंह ने कश्मीर में शरण ली थी। राजकुमार के साथ सीरिया निवासी उसका मित्र हमीम भी था। कश्मीर की धरती पर पांव रखने वाला पहला मुस्लिम यही था। अंतिम हिंदू शासिका कोटारानी के आत्म बलिदान के बाद पर्शिया से आए मुस्लिम मत प्रचारक शाहमीर ने राजकाज संभाला और यहीं से दारूल हरब को दारूल इस्लाम में तब्दील करने का सिलसिला चल पड़ा।
ज्यादा मुस्लिमो के पूर्वज हिन्दू :-इस देश के करीब 90 % से ज्यादा मुस्लिमो के पूर्वज हिन्दू समुदाय के है.  वहा अगर हिन्दू रहते तो इस देश का विभाजन नही होता . वह मूसली बन गये तो देश के प्रति भी उनकी मानसिकता बदल गयी और पाकिस्तान बन गया करीब 10 लाख से ज्यादा मनुष्यो की हत्याए भी हुई. जो हिन्दू मुस्लिम बन गये उसमे सबसे बड़ी गलती हिन्दू समुदाय की है, उनके विद्वानो की है, उनके राजनैतिक नेताओ की है,उनकी गलत मानसिकता की है . करीब 150 साल पहले तक जो हिन्दू समुदाय से हट जाता था उसको पुन: हिन्दू समुदाय मे शामिल करने की मानसिकता नही थी,उसी का परिणाम यह हुआ की देश का विभाजन भी स्वीकार करना पड़ा औरपूरा कश्मीर भी अभी तक विवादित चल रहा है और दशको सालो से अशान्ति का दौर चल रहा है. करीब 50 हजार से ज्यादा मनुष्यो की हत्या कश्मीर मे हो चुकी है. एक कश्मीरी नेता यह कहते है की कश्मीर मे कोई हिन्दू मुख्य मंत्री हर्गिज नही बन सकता ! आज जरूरत है की सबसे पहले हिन्दू समुदाय कीमानसिकता “पूर्ण रूप से ” मानवताकी हो, जन्मना जातीबवाद को तिलांजलि दी जाये, साथ मे भारी मात्रा मे मानवता के संदेश का प्रचार किया जाये, अन्य समुदायो को हिन्दू समुदाय मे शामिल किया जाये. ताकि आने वाले देश विभाजन के खतरेको समाप्त किया जाये .
जम्‍मू-कश्‍मीर को लेकर चार तरह की थ्‍योरी :-सन् 1947 में जम्‍मू-कश्‍मीर को लेकर चार तरह की थ्‍योरी चलन में थीं. यह थ्‍योरी तो खैर तब भी पूरी तरह से "आउट ऑफ कंसिडरेशन" थी कि जम्‍मू-कश्‍मीर पाकिस्‍तान में जाएगा. पहले महाराजा हरि सिंह और उसके बाद शेख अब्‍दुल्‍ला दोनों ही इस पर एकमत थे कि जम्‍मू-कश्‍मीर पाकिस्‍तान के साथ नहीं जाएगा. हरि सिंह एक डोगरा हिंदू होने के नाते ऐसा मानते थे और शेख अब्‍दुल्‍ला पाकिस्‍तान को कठमुल्‍लों का देश समझते थे. लिहाजा, शेख अब्‍दुल्‍ला प्रो-पाकिस्‍तान नहीं थे, यह तो साफ है, लेकिन क्‍या वे प्रो-इंडिया भी थे, इसको लेकर इतिहासकारों के बीच पर्याप्‍त मतभेद रहे हैं.जो चार कश्‍मीर थ्‍योरी सन् 1947 में चलन में थीं, वे थीं –
1. राज्‍य में जनमत-संग्रह हो और उसके बाद वहां के लोग ही यह तय करें कि उन्‍हें किसके साथ जाना है. जूनागढ़ में इससे पहले यह प्रयोग हो चुका था और वहां के लोगों ने भारत के पक्ष में वोट दिया था. कश्‍मीर में इससे पीछे हटने की कोई वजह भारत के पास नहीं थी और नेहरू भी इसके लिए तत्‍पर थे.
2. कश्‍मीर एक संप्रभु स्‍वतंत्र राष्‍ट्र बने और भारत और पाकिस्‍तान दोनों ही उसकी सुरक्षा की गारंटी लें. 3. राज्‍य का बंटवारा हो, जम्‍मू भारत को मिले और शेष घाटी पाकिस्‍तान के पास चली जाए, और     
4. जम्‍मू और कश्‍मीर भारत के पास ही रहें, केवल प्रो-पाकिस्‍तानी पुंछ पाकिस्‍तान के पास चला जाए.
शेख अब्‍दुल्‍ला का स्‍टैंड :-इनमें शेख अब्‍दुल्‍ला का स्‍टैंड क्‍या था? शेख अब्‍दुल्‍ला अलीगढ़ में शिक्षित लिबरल, सेकुलर, प्रोग्रेसिव व्‍यक्ति थे. उनके दादा एक हिंदू थे और उनका नाम राघौराम कौल था. शेख के जन्‍म के महज 15 साल पूर्व ही यानी 1890 में उन्‍होंने इस्‍लाम स्‍वीकार किया था. (शेख की जीवनी 'आतिश-ए-चिनार' में इसका उल्‍लेख किया गया है) नेहरू से शेख की गहरी मित्रता थी. सन् 1946 में जब महाराजा हरि सिंह ने शेख को जेल में डाल दिया था तो नेहरू इससे इतने आंदोलित हो गए थे कि अपने दोस्‍त का पक्ष रखने कश्‍मीर पहुंच गए थे. 1949 में कश्‍मीर में दो 'प्रधानमंत्रियों' का मिलन हुआ था, जब 'भारत के प्रधानमंत्री' नेहरू 'जम्‍मू-कश्‍मीर के प्रधानमंत्री' शेख के यहां छुट्टियां मनाने पहुंचे और दोनों ने झेलम में घंटों तक साथ-साथ नौका विहार किया था. हर लिहाज से शेख को प्रो-इंडिया माना जा सकता था, वे भारत के संविधान में दर्ज धारा 370 के प्रावधानों में गहरी आस्‍था रखते थे, कश्‍मीर को विशेष दर्जे के पक्षधर थे और पाकिस्‍तान से घृणा करते थे.
अलगाववादी स्‍वर :- क्‍या शेख के भीतर अलगाववादी स्‍वर भी दबे-छुपे थे? कश्‍मीर समस्‍या की नियति गहरे अर्थों में शेख अब्‍दुल्‍ला के व्‍यक्तित्‍व के साथ जुड़ी हुई है. 40 के दशक में शेख कश्‍मीर के सबसे कद्दावर नेता थे और उस सूबे की पूरी अवाम उनके पीछे खड़ी हुई थी. उनकी नेशनल कांफ्रेंस का एजेंडा सेकुलर था, यानी केवल मुस्लिम ही नहीं, बल्कि जम्‍मू-कश्‍मीर में रहने वाले हर समुदाय के व्‍यक्ति के अधिकारों और हितों का संरक्षण. ऐसे में शेख के निर्णयों को कश्‍मीर के अवाम का निर्णय मानने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. और यह शेख का निर्णय था कि कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग बना रहेगा. फिर दिक्कतें कहां थीं? नेहरू और गांधी दोनों ने ही शेख को कश्‍मीर का वजीरे-आजम बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया था और महाराजा हरि सिंह को चुपचाप हाशिये पर कर दिया गया था, फिर आखिर क्‍या कारण था कि ये ही शेख 1950 का साल आते-आते खुलेआम अलगाववादी तेवर दिखाने लगे थे? और क्‍या कारण था कि अगस्‍त 1953 में शेख के जिगरी दोस्‍त नेहरू ने ही उन्‍हें गिरफ्तार करवाकर उनके स्‍थान पर बख्‍शी गुलाम मोहम्‍मद को नया प्रधानमंत्री बनवा दिया था?
शेख अब्‍दुल्‍ला की अनियमित रुख और विराट महत्‍वाकांक्षा :- कश्‍मीर समस्‍या की जड़ें अगर इस राज्‍य की विशेष रणनीतिक स्थिति, उसकी मुस्लिम बहुल जनसांख्यिकी और नेहरू की भ्रामक मनोदशा में छुपी हैं तो शेख अब्‍दुल्‍ला के अनियमित रुख और उनकी विराट महत्‍वाकांक्षाओं को भी क्‍या इसके लिए इतना ही जिम्‍मेदार नहीं माना जाना चाहिए? आखिरकार वे "शेरे-कश्‍मीर" थे, कश्‍मीर के अवाम की आवाज़ थे और कश्‍मीर के मामले में उन्‍हें जो फैसला लेना था, उसे इतिहास में कश्‍मीर के अवाम के फैसले की ही तरह याद रखा जाना था.
फारुख अब्दुल्ला का प्रेम विवाह :- डा. अब्दुल्ला ने भी प्रेम विवाह किया था। जब वे लंदन में रहकर एमबीबीएस कर रहे थे तो उनकी एक ईसाई नर्स मौली से दोस्ती हो गई और दोनों ने शादी कर ली। हालांकि मौली बहुत कम ही हिंदुस्तान में रही। फारुख ने भी अपना ज्यादातर समय विदेश में ही बिताया। उनके चार बच्चे है। तीन बेटियां व एक बेटा। सबसे बड़ी बेटी साफिया श्रीनगर में पढ़ाती है। दूसरी बेटी हिना मां के साथ लंदन में रहती है जबकि तीसरी बेटी सारा की सचिन पायलट के साथ शादी हुई है। उमर अब्दुल्ला का जन्म भी ब्रिटेन में हुआ था। फारुक और मौली के संबंध बहुत अच्छे नहीं है। इसके बावजदू जब साल भर पहले उन्हें किडनी की जरुरत पड़ी तब मौली ने उन्हें अपनी किडनी दे दी। लंदन में उसका प्रत्यारोपण हुआ।
उमर अब्दुल्ला व संजय गांधी का प्रेम विवाह :-उमर ने भी संजय गांधी की तर्ज पर सिक्ख परिवार की पायल के साथ प्रेम विवाह किया । पायल मूलतः सिख है जो कि दिल्ली में रहती थी। उनके पिता मेजर जनरल रामनाथ लाहौर से थे। उनका नाम पहले पायल सिंह था। उमर व पायल की मुलाकात तब हुई जबकि वे दोनों आईटीसी ग्रुप के होटल में काम कर रहे थे। उमर मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव थे। दोनों में प्यार हो गया और 1994 में उनकी शादी हो गई। पायल खुद को घर तक ही सीमित रखती थी। दोनों ने 17 साल तक वैवाहिक जीवन बिताने के बाद 2014 में एक दूसरे से अलग होने का फैसला लिया। बताते हैं कि उन दोनों के संबंध खराब होने की वजह दिल्ली के एक जाने माने चैनल की एंकर रही। जो कि उमर अब्दुल्ला के काफी करीब आ गई थी। वह खुद भी कश्मीर से ही है। वैसे इस चैनल की एक और एंकर ने भी इसी राज्य के एक मंत्री से शादी की है।उनके दो बच्चे जमीर व जाहिर है जो कि अपनी मां के साथ ही रहते हैं। पायल की हिमाचल प्रदेश में जैरु नेचुरेल नामक मिनरल वाटर की कंपनी है।
पायलट व अब्दुल्ला परिवारों में साम्य:- शेख अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर जहां गूजर थी। इसी रिश्ते के चलते दिवंगत राजेश पायलट ने गूजर होने के नाते डा. फारुख अब्दुल्ला से दोस्ती निभायी। यह दोस्ती इन दोनों नेताओं तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उसके तार दोनों के बच्चों तक पहुंच गए। फारुख अब्दुल्ला की सबसे छोटी बेटी सारा और राजेश पायलट के बेटे सचिन की भी दोस्ती हो गई जो कि बाद में वैवाहिक बंधन में तब्दील हुई। जब उमर ने हिंदू पायल से शादी की तब विरोध नहीं हुआ। उस समय यह दलील दी गई कि इस्लाम में दूसरे धर्म की लड़की से शादी करने की इजाजत है पर जब उसकी बहन सारा ने हिंदू सचिन से शादी की तो पूरा परिवार इतना नाराज हो गया कि परिवार का कोई भी सदस्य उन्हें आशीर्वाद देने नहीं आया।
नेहरू व अब्दुल्ला परिवारों में साम्य:-  वर्षों से एक बात कही सुनी जाती रही है कि कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार व नेहरू परिवार के बीच कुछ न कुछ रिश्ता है, जिसके चलते ही नेहरू जी ने हमेशा शेख अब्दुल्ला को तरजीह दी. भले ही उसका खामियाजा भारत आजतक भुगत रहा हो. अब हकीकत तो ऊपर वाला ही जाने, किन्तु दोनों परिवारों में साम्य अवश्य है . जिस प्रकार जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी व राजीव गांधी, इन तीन पीढ़ियों ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में राज कर इतिहास बनाया, उसी प्रकार शेख अब्दुल्ला, उनके बेटे डा. फारुख अब्दुल्ला और उनके पोते उमर अब्दुल्ला तीनों ही जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे। इतना ही नहीं तो इन परिवारों के विवाह संबंधों में भी साम्य है . जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं को हिन्दू बताया, वो वस्तुतः थे या नहीं, यह विवाद का विषय हो सकता है . उनकी बेटी इंदिरा जी ने मुस्लिम फिरोज से विवाह किया, एक नाती ने ईसाई सोनिया और दूसरे नाती ने सिख मेनका से विवाह किया. लगभग वही कहानी अब्दुल्ला परिवार की भी है .

राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला में दोस्ती की जड़ें पुरानी :- आपको याद होगा कि अमेठी के चुनाव प्रचार में तथा रोड शो में कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अव्दुल्ला कई बार शिरकत कर चुके हैं। इसका कोई तत्कालिक कूटनीति ना होकर पीढ़ी दर पीढ़ी दोनों परिवारों के सियासती रिश्ते का होना कहा जा सकता है। इन दोनों परिवार का एक ही लक्ष्य है कि भारत की सत्ता पर काबिज होना तथा मुल्क के सनातनी चरित्र पर निरन्तर प्रहार करते हुए इस्लामिक राज्य की तरफ आगे बढ़ना। हाल ही में कश्मीर के उप चुनाव फारुख साहब की जीत उनके कार्यों की नहीं उनके कारनामों की जीत हुई है, जहां पत्थरमार कश्मीरियों को भड़काकर व अलगाववाद की नीति पर चलकर देश की अश्मिता पर प्रश्न चिन्ह उठ खड़े हो रहे हैं। यदि इसे जल्द से जल्द नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत को नुकसान उठाना पड़ सकता है और कश्मीर की स्थिति भयावह हो सकती है।















आरएसएस : विश्व का एकमात्र लोकोपकारी सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन डा. राधेश्याम द्विवेदी

स्थापना के 90 वर्ष :- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 90 साल का हो चुका है. 1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी.सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी और इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते हुए भी संघ को कम से कम 9 दशक हो चुके हैं.दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी, वह भी बिना किसी आधार के. संघ के ख़िलाफ़ लगा हर आरोप आख़िर में पूरी तरह कपोल-कल्पना और झूठ साबित हुआ है. स्वतंत्र भारत में आरएसएस ही ऐसा संगठन है जो इतने दुष्प्रचार और हमलों के बावजूद निरंतर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा हुआ है. ये देश का दुर्भाग्य है कि यहां फर्जी महात्मा व चाचा को हमारी पहचान पर थोप दिया गया है. वहीं वर्षो से राष्ट्र के नाम जीवन अर्पण कर कार्य करने वाले राष्ट्र भक्तो की कही कोई चर्चा नही होती, बल्कि उल्टा उन्हे विघटनकारी ताकते ठहरा दिया जाता है। आरएसएस एक ऐसा महासागर है जिसके अन्दर दोगले लोगो की गन्दी मानसिकता को अपने अन्दर समाने की शक्ति है।
देश और समाज को संगठित करने के लिए आरएसएस की स्थापना:- जब संघ की स्थापना हुई , उस समय अपने हिंदू समाज की स्थिति ऐसी थी कि जो उठता था वही हिंदू समाज पर आक्रमण करता था और यह दृश्य बना हुआ था कि जब कभी भी कोई आक्रमण होगा तो हिंदू मरेगा, हिंदू लूटेगा .यह एक परम्परा बन गयी थी हिंदू यानि दब्बू, हिंदू यानि सहनशील, हिंदू यानि गौ जैसा बड़ा ही शांत रहने वाला प्राणी. इसका तुम अपमान करो तो वह प्रतिकार नहीं करता, सब कुछ सहन करता है. इसको मारो तो चुप-चाप मार खाता है . अब दूसरे भले ही इसे उदारता या सहनशीलता का गुण कहें, लेकिन इस प्रकार का आत्मविश्वास शून्य, शक्ति शून्य, रीढ़विहीन समाज इस दुनिया में ससम्मान रह नहीं सकता . इसलिए देश और समाज को संगठित रखने के लिए आर एस एस की स्थापना हुई,क्योकि अगर आज आरएसएस न होता तो इस देश में सेक्युलरिज्म का फायदा उठाकर इतने अलगाववादी सगंठन और शक्तियां पनप जाती ,की उनको संभालना मुश्किल हो जाता.
गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण :- सन 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया और सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये.ये वो ही आरएसएस है जिसने 84 में हजारों सिक्खों को कांग्रेस के गुंडों से बचाया था। यह वो ही आरएसएस हैं जिसने भागलपुर के हिन्दू -मुस्लिम दंगो में इंसानों की सेवा की थी.  आरएसएस वो संगठन है जिसके अन्दर भारत की आत्मा बसी है, देश प्रेम और सेवा इसका मुख्य आधार है .ये कांग्रेस और कथित सेक्युलरो के दुष्प्रचार से कभी भी आहत नहीं हुआ है. आरएसएस तो जहर को अपने अन्दर आत्मसात करके लोगो को अमृत देता है। आज भी देश के किसी भी हिस्से में कोई आपदा आती है -तो सबसे पहले आरएसएस लोगो की सहायता के लिए पहुचता है और बिना किसी भेदभाव के इंसानों की सेवा करता है. आरएसएस दुनिया का सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन है .और जब तक आरएसएस है ,तब तक भारत अखंड है. अगर आरएसएस की स्थापना 10 साल देर से होती तो पाकिस्तान की सीमा आगरा तक होती.
माननीय श्री मोहन भागवत वर्तमान सर संघ चालक

संघ के कुछ उल्लेखनीय कार्य

1. कश्मीर सीमा पर निगरानी, पीड़ितों को आश्रय:- संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी. यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार. उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे. विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे.

2. 1962 का युद्ध :-सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी  सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता. जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए. निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा- “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया.”

3. कश्मीर का विलय:- कश्मीर के महाराजा हरि सिंह विलय का फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के भेस में पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार तो - हम क्या करें वाली मुद्रा में - मुंह बिचकाए बैठी थी. सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर से मदद मांगी. गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया. क्या बाद में महाराजा हरिसिंह के प्रति देखी गई नेहरू की नफ़रत की एक जड़ यहां थी?

4. 1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली:-पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके. घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था.

5. गोवा का विलय:- दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई. संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे. गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला. हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ.

6. आपातकाल:-1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है. सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया. आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं –नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला. जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से चल सकी थीं.

7. मूलविचारधारा से अनेक सेवा संस्थायें कार्यरत :- 1955 में बना भारतीय मज़दूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मज़दूर आंदोलन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था. कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही शुरू किया था. आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन है. राष्ट्रीय सेवा भारती के द्वारा देशभर में चलाये जा रहे सेवा कार्योंका एक संख्यात्मक आलेख तथा उल्लेखनीय आयामों का शब्दचित्र पुणे स्थित सेवा वर्धिनी के सहयोग से 1995 में प्रथम बार यह संकलन एक देशव्यापी सर्वेक्षण के आधार पर प्रस्तुत किया गया था। उसके बाद 1997,2004, और अभी 2009 में प्रकाशित ‘सेवा दिशा’, देशभर में फैल रहे सेवाकार्यों की बढो़त्री को नापने का एक अद्भुत प्रयास रहा है। राष्ट्रीय सेवा भारती के साथ-साथ वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिन्दु परिषद, भारत विकास परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्या भारती, दीनदयाल शोध संस्थान, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इन संगठनों के द्वारा प्रेरित अलग-अलग सेवा संस्थाओं के सेवा कार्यों को भी इस में संकलित किया जाता है। भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना. विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है. केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं. संख्या बल से भी बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैं. अकेला सेवा भारती देश भर के दूरदराज़ के और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाख से ज़्यादा काम कर रहा है. लगभग 35 हज़ार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज़्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं. उदाहरण के तौर पर सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से अनाथ हुए 57 बच्चों को गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू बच्चे हैं.1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक - संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है. भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में.

 



सनातन धर्म को हिन्दू धर्म ने ही शतप्रतिशत अंगीकार किया (भाग 2) - डा. राधेश्याम द्विवेदी



शाश्वत सनातन हिन्दू धर्म ही एकमात्र सबसे पुराना व स्थाई धर्म  (भाग 1 का शेष भाग )
सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहा जाता हैभारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव:कोटी वैष्णव,शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे।गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव:कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु शिव औरशक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ,उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है। कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
सनातन धर्म का स्वरूप:- सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है। सनातन में आधुनिक और समसामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें समय समय पर बदलाव होते रहे हैं, जैसे कि राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद आदि ने सती प्रथा, बाल विवाह, अस्पृश्यता जैसे असुविधाजनक परंपरागत कुरीतियों से असहज महसूस करते रहे। इन कुरीतियों की जड़ो (धर्मशास्त्रो) में मौजूद उन श्लोको -मंत्रो को "क्षेपक" कहा या फिर इनके अर्थो को बदला और इन्हें त्याज्य घोषित किया तो कई पुरानी परम्पराओं का पुनरुद्धार किया जैसे विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा आदि। यद्यपि आज सनातन का पर्याय हिन्दू है पर बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी अपने आप को सनातनी कहते हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं।यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं। बस वह सनातनधर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है। सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते हुए कई बार इसे कठिन और समझने में मुश्किल धर्म समझा जाता है। हालांकि, सच्चाई तो ऐसी नहीं है, फिर भी इसके इतने आयाम, इतने पहलू हैं कि लोगबाग कई बार इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण इसका यह कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है, न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक दृष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता।
सनातन धर्म का मार्ग:-विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
सनातन धर्म का सत्य:- सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था-
।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।- (वृहदारण्य उपनिषद)
 ( अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।)
जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं। उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है। वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते। मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है। अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।
।।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- (ईश उपनिषद)
सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है।जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं। वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है। जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं। जड़ पाँच तत्व से दृश्यमान है- आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी। यह सभी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। यह अपना रूप बदलते रहते हैं किंतु समाप्त नहीं होते। प्राण की भी अपनी अवस्थाएँ हैं: प्राण, अपान, समान और यम। उसी तरह आत्मा की अवस्थाएँ हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति और तुर्या। ज्ञानी लोग ब्रह्म को निर्गुण और सगुण कहते हैं। उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक ‍कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले। यही सनातन धर्म का सत्य है। ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। आत्मा का मोक्ष परायण हो जाना ही ब्रह्म में लीन हो जाना है इसीलिए कहते हैं कि ब्रह्म सत्य है जगत मिथ्‍या यही सनातन सत्य है। और इस शाश्वत सत्य को जानने या मानने वाला ही सनातनी कहलाता है।हिन्दू एकता के लिए एक ही रास्ता बचा है :- जडों की ओर लौटे क्योंकि जडे सूख गई है | सनातन धर्म के मजबूत आधार ये है गायत्री, यज्ञ, गीता, गंगा, गौमाता, ज्योतिर्विद्या (जन्म कुंडली) जिसे वेदों का नेत्र कहा गया है और सद्गुरु | इन्हें अपनाने से भाग्य की उन्नति होती है और दुर्भाग्य का शमन होता है | आज 99% हिन्दू ये नहीं करते इसीलिए पतन के गर्त में पहुँच गए है | अतः आज से ही सनातन धर्म के इन सिद्धांतो का पालन करना शुरू कर दे क्योंकि धर्म आचरण करने पर ही ईश्वर रक्षा करता है | धन, जन से भरपूर बनाता और विपत्ति हरता है | आओ मिलकर करे साधना, दिव्य शक्ति (गायत्री) के मंत्र की | गूंजे फिर जयकार धरा पर, सत्य सनातन धर्म की |

(शेष अगले भाग 3 में)