Monday, May 1, 2017

भूतो का भानगढ़ किला : राजकुमारी व तांत्रिक की रहस्यमय कहानी डा. राधेश्याम द्विवेदी

भानगढ़ का किला,एक परिचय :- भानगढ़ का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है।  इस किले सी कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान है।  भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। सामरिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के यह उपयुक्त स्थान है। सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है। सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। इसके पश्चात बाजार प्रारंभ होता है, बाजार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है। इसके पश्चात राज महल स्थित है। इस किले की यात्रा के लिए अलवर व जयपुर से सड़क मार्ग द्वारा जाया जा सकता है रेल मार्ग से भी दौसा रेल्वे स्टेशन से उतर कर सड़क मार्ग से इस जगह पहुंचा जा सकता है दौसा से भानगढ़ की दुरी 22 किलोमीटर है जबकि जयपुर व अलवर दोनों जगहों से लगभग 80 किलोमीटर है लोग इस नगर व किले को 500 वर्ष पहले उजड़ा बताते है किले से मिले विभिन्न राजाओं के शिलालेखों की तारीख देखने के बाद उसके उजड़ने की समय सीमा काफी कम हो जाती हैएक मंदिर के गर्भगृह के द्वार पर लगी एक बड़ी शिला पर संवत 1902 लिखा देखाइस हिसाब से उस मंदिर के निर्माण का काल संवत 1902 है आज से 167 वर्ष पुर्व यह नगर आबाद था
भानगढ़ का इतिहास :-भानगढ़ क़िले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573  में बनवाया था। भानगढ़ के बसने के बाद लगभग 300 वर्षों तक यह आबाद रहा।  मुग़ल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल और भगवंत दास के छोटे बेटे व अम्बर(आमेर ) के महान मुगल सेनापति, मानसिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने बाद में (1613) इसे अपनी रिहाइश बना लिया।  माधौसिंह के बाद उसका पुत्र छत्र सिंह गद्दी पर बैठा।  विक्रम संवत 1722 में इसी वंश के हरिसिंह ने गद्दी संभाली।इसके साथ ही भानगढ की चमक कम होने लगी। छत्र सिंह के बेटे अजब सिह ने समीप ही अजबगढ़ बनवाया और वहीं रहने लगा। यह समय औरंगजेब के शासन का था। औरंगजेब कट्टर पंथी मुसलमान था। उसके दबाव में आकर हरिसिंह के दो बेटे मुसलमान हो गए, जिन्हें मोहम्मद कुलीज एवं मोहम्मद दहलीज के नाम से जाना गया। इन दोनों भाईयों के मुसलमान बनने एवं औरंगजेब की शासन पर पकड़ ढीली होने पर जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह ने इन्हे मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया तथा माधो सिंह के वंशजों को गद्दी दे दी।
                        
 भूतो का भानगढ़ किला :- राजस्थान के भानगढ़ का उजड़ा किला व नगर भूतों के डरावने किले के नाम से देश विदेश में चर्चित है। भानगढ़ का किला बोलचाल में “भूतो का भानगढ़” नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है।भानगढ की कहानी बड़ी ही रोचक है।16वि शताब्दी में भानगढ़ बसता है।  300 सालो तक  भानगढ़ खूब फलता फूलता है।  फिर यहाँ कि एक सुन्दर राजकुमारी पर काले जादू में महारथ तांत्रिक सिंधु सेवड़ा आसक्त हो जाता है। वो राजकुमारी  को वश में करने लिए काला जादू करता है पर खुद ही उसका शिकार हो कर मर जाता है।  मरने से पहले भानगढ़ को बर्बादी का श्राप दे जाता है और संयोग से उसके एक महीने बाद ही पड़ौसी राज्य अजबगढ़ से लड़ाई में राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ वासी मारे जाते है और भानगढ़  वीरान हो जाता है। तब से वीरान हुआ भानगढ आज तक वीरान है। कहते है कि उस लड़ाई में मारे गए लोगो के भूत आज भी रात को भानगढ़ के किले में भटकते है।  तांत्रिक के श्राप के कारण उन सबकी  मुक्ति नहीं हो पाई थी।

रानी रत्नावती व तांत्रिक की 2 कहानी:- भानगढ़ के किले व नगर की उजड़ने की कई कहानियां प्रचलित है जिनमें रानी रत्नावती व एक तांत्रिक की कहानी प्रमुख है प्रचलित जनश्रुतियों में किसी में रत्नावती को भानगढ़ की रानी बताया गया है किसी कहानी में भानगढ़ की सुन्दर राजकुमारी पर दोनों ही कथाओं में इस पात्र के साथ सिंधु सेवड़ा नामक तांत्रिक का नाम व उसका कुकृत्य जरुर जुड़ा है
प्रथम प्रचलित कहानी के अनुसार-  सिंधु देवड़ा महल के पास स्थित पहाड़ पर तांत्रिक क्रियाएँ करता था वह रानी रत्नावती के रूप पर आसक्त था एक दिन भानगढ़ के बाजार में उसने देखा कि रानी कि एक दासी रानी के लिए केश तेल लेने आई है सिंधु सेवड़ा ने उस तेल को अभिमंत्रित कर दिया वह तेल जिस किसी पर लगेगा उसे वह तेल उसके पास ले आएगा कहते है रानी ने जब तेल को देखा तो वह समझ गई कि यह तेल सिंधु सेवड़ा द्वारा अभिमंत्रित है रानी भी बहुत सिद्ध थी इसलिए उसने पहचान कर ली और दासी से उस तेल को तुरंत फैंकने को कहा| दासी ने उस तेल को एक चट्टान पर गिरा दिया अभिमंत्रित तेल ने चट्टान को उडाकर सिंधु सेवड़ा की और रवाना कर दिया सिंधु सेवड़ा ने चट्टान देखकर अनुमान लगाया कि रानी उस पर बैठकर उसके पास आ रही उसने अभिमंत्रित तेल को रानी को सीधे अपनी छाती पर उतारने का आदेश दिया जब चट्टान पास आई तब तांत्रिक को असलियत पता चली उसने आनन् फानन में चट्टान उसके ऊपर गिरने से पहले भानगढ़ नगर उजड़ने का शाप दे दिया और खुद चट्टान के नीचे दबकर मर गया सिद्ध रानी को यह सब समझते देर ना लगी और उसने तुरंत नगर खाली कराने का आदेश दे दिया इस तरह यह नगर खाली होकर उजड़ गया और रानी भी तांत्रिक के शाप की भेंट चढ गई| इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्‍सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्‍त बहुत ही सन्‍नाटा रहता है अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है।
द्वितीय प्रचलित कहानी के अनुसार- भागगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था। वो काले जादू का महारथी था। बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था , उनसे प्रगाढ़ प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को  कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्‍लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं। हजारों लाशों का ढेर, आज रूहों का बसेरा किलें में सूर्यास्‍त के बाद प्रवेश निषेध है।
किलें में रूहों का कब्‍जा:-  इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।
अजबगढ़ का किला:- राजस्थान के अलवर जिले में स्थित अजबगढ़ का किला घुमने लायक है यह भानगढ़ और प्रतापगढ़ किले के बीच स्थित है और सरिस्का के काफी करीब है। यह किला भानगढ़ किले तथा शहर के इतिहास और पौराणिक कथाओं के साथ जुड़ा हुआ है। छत्रसिंह का एक पुत्र अजबसिंह भी था जिसने भानगढ़ के पास ही अजबगढ़ नाम से एक नगर बसाया और वहां किला बनवाया अजबसिंह ने बलख युद्ध में अप्रत्याशित वीरता दिखाई थी  यह किला, माधो सिंह के पुत्र अजब सिंह राजावत द्वारा बनवाया गया था और यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इस किले से अजबगढ़ टाउन और उसके आसपास के क्षेत्र साफ दिखाई पड़ते हैं।
 
भानगढ़ किले के सभी मंदिर सुरक्षित:- इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बाबड़ी  है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं इन मंदिरो कि एक यह विशेषता है कि जहाँ किले सहित पूरा भानगढ़ खंडहर में तब्दील हो चूका है वही भानगढ़ के सारे के सारे मंदिर सही है अलबत्ता अधिकतर मंदिरो से मुर्तिया गायब है। सोमेश्वर महादेव मंदिर में जरूर शिवलिंग है।दूसरी बात भानगढ़ के सोमेशवर महादेव मंदिर में सिंधु सेवड़ा तांत्रिक के वंशज ही पूजा पाठ कर रहे है।

भारत सरकार(एएसआई) द्वारा देखरेख :-इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। भारतीय पुरातत्व के द्वारा इस खंडहर को संरक्षित कर दिया गया है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्‍त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्‍त के बाद इस इलाके किसी भी व्‍यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्‍त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है। जहाँ पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाये है वहीँ इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से दूर बनाया है।




  

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