Tuesday, May 30, 2017

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के शाखा-उपशाखाओं का गठन - डा. राधेश्याम द्विवेदी

(भा. पु. स. परिचायिका सिरीज -3 )

भा.पु.. के शाखाओं-उपशाखाओं का समय समय पर गठन हुआ है। 1882 में मेजर जनरल कनिंघम की सलाह से भारत सरकार के सचिव ने एपिग्राफिकल सर्वे आफ इण्डिया का गठन 3 साल के लिए किया था। एफ.जे. फ्लीट इसके प्रभारी रहे थे। इस समय 3 संगठन कार्य कर रहे थे।
1. अर्कालीजिकल सर्वे
2. क्यूरेटर आफ एनसेन्ट मोनोमेंट
3. एपिग्राफिकल सर्वे
इनमें 2 3 के विभाग मात्र 3-3 साल चले। अन्त में क्रम सं. 1 अर्कालीजिकल सर्वे में सब विलीन हो गये। 1885 में पुरातत्व विभाग के दो भाग थे। उत्तर भारत मे यह कार्य कनिंघम देखता था तथा दक्षिण में वर्गेस वर्गेस 1873-81 तक बाम्बे प्रेसीडेन्सी का पुरातत्व रिपोटर तथा 1881-85 तक पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत का पुरातत्व सर्वेयर रहा। 1885-89 तक कनिंघम के बाद वर्गेस भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का महानिदेशक बना। वर्गेस 1जून 1889 को सेवा मुक्त हुआ था। 1 अक्तूबर 1885 को कनिंघम सेवा मुक्त हुआ था। कनिंघम ने उत्तर भारत को 3 मण्डलों में बांटने की संस्तुति दी थी। प्रत्येक मण्डल का प्रमुख अर्कालाजिकल सर्वेयर बनाया जाता रहा। उसको सहायता हेतु दो मानचित्रकार तथा दो सहायक ही मिलते रहें हैं। उस समय ये मण्डल निम्न थे-
1. पंजाब सिंध एवं राजपूताना।
2. नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) विद सेंट्रल इण्डिया एजेन्सी एण्ड सेंट्रल प्राविंस।
3. बंगाल (वर्तमान बिहार उड़ीसा) तथा छोटा नागपुर
दक्षिण भारत में बम्बई मद्रास तथा हैदराबाद वर्गेस के अधीन ही पड़ा रहा। यह व्यवस्था 1885 से प्रारम्भ होकर 1890 तक चली यह प्रणाली वहुत उलझनपूर्ण रही और प्रभावी नहीं बन सकी।
पुनः विभाजन 5 मण्डलों का गठन :- 1885 में विभाजित हुए उत्तर भारत के 3 प्रमुख मण्डलों को 1899 में 5 मण्डल कार्यालय बनाये गये। इनके ही माध्यम से संरक्षण, अनुरक्षण, पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा उत्खनन सुनियोजित पद्धति से प्रारम्भ किये गये। प्रत्येक मण्डल को एक सर्वेयर (सर्वेक्षक) के अधीन रखा गया। उस समय ये मण्डल निम्न थे-
1. मद्रास और कुर्ग,
2. बाम्बे, बेरार और सिंध,
3. पंजाब , बलूचिस्तान एवं अजमेर,
4. नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड सेंट्रल प्राविंस और
5. बंगाल तथा आसाम।
1899 . में लार्ड कर्जन भारत का वायसराय नियुक्त हुआ। इसी समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई ) को उसका औपचारिक स्वरुप प्राप्त हुआ। उन्होनें ही सर जान मार्शल को 22 फरवरी 1902 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का महानिदेशक बनाया था। सर जॉन मार्शल के मार्गनिर्देशन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में विकसित हुआ, जिसके प्रयासों के परिणाम स्वरूप हमारे प्राचीन इतिहास को सुरक्षित एवं संरक्षित बनाए रखने के लिए अलग से एक कानून की घोषणा की गई। उनके कार्यकाल में सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज की गई जिसने हमारे इतिहास को ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी में पीछे तक खोज निकाला। इसके बाद यह संगठन काफी तेजी से विकसित हुआ। उन्होंने तक्षशिला, सांची, सारनाथ आदि पुरास्थलों का उत्खनन कराया था।1904 में प्राचीन स्मारक तथा अनुरक्षण अधिनियम बनाया गया। इसके अधीन स्मारकों को संरक्षित घोषित किया जाने लगा। इसके द्वारा शासन को प्राचीन स्मारकों को परिरक्षण, पुरावशेषों के व्यापार तथा कुछ खास प्राचीन स्थलों के नियंत्रण के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर पुरातत्व इतिहास एवं कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण बस्तुओं एवं स्मारकों की सुरक्षा एवं अधिग्रहण का अधिकार भी प्राप्त हो गया। 28 अप्रैल 1906 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एक स्थाई विभाग बना दिया गया और इसी समय से भारत के देशी रियासतें भी अपने अपने राज्य में स्वतंत्र पुरतत्व विभाग स्थापित किये। मार्शल 1902 से 1928 तक महानिदेशक के पद पर रहा। 1922 में उन्होंने कंजरवेशन मैनुवल के संरक्षण से सम्बन्धित नियम, उपनियम बनाये। जो आज भी विभाग के संरक्षण कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं। वह 19 मार्च 1931 तक कुछ रिपोर्ट आदि के लिए पुनः नियुक्त हुआ था। अंततः 15 जनवरी 1934 को मार्शल भारत से प्रस्थान कर गया था।
मार्शल के अवकाश ग्रहण करने  के बाद एच. हरग्रीव्ज ने महानिदेशक का पद संभाला था। सिंध में सफल खोज इस समय की प्रमुख उपलव्धि रही है। 29 जुलाई 1931 को राय बहादुर दयाराम साहनी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का महानिदेशक का पद भार ग्रहण किया था। विश्व में मंदी के दौर के कारण पुरातत्व के खर्चे में कटौती तथा कर्मचारियों की छटनी की गयी थी। खोज शाखा समाप्त कर दी गयी थी। 1904 का पुराना पुरातत्व अधिनियम 1932 मेंएन्सेंट मोनोमेंट प्रिजर्वेशन एक्ट’ संशोधित रुप में प्रकाशित हुआ था। खनन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण शक्तियां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग को प्राप्त हुए। साथ ही स्मारक के चारो ओर संरक्षित क्षेत्र का प्राविधान किया गया। संरक्षण कार्यों को नियमित किया गया। यद्यपि प्रान्तीय सरकारों पर ही संरक्षण भार रहा।
बहुआयामी प्रगति  काल :- 1 जून 1935 को जे.एफ ब्लैकस्टोन को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक पद पर नियुक्ति हुई थी। इसी समय के भारत सरकार के 1935 के अधिनियम के अनुसार  पुरातत्व विभाग को केन्द्रीय अनुसूची में रखा गया। डी.टेरा तथा टी. पेटरसन ने हिमालय क्षेत्र सिन्धु की सहायक नदी सोन की घाटी तथा मध्य भारत की नर्मदा घाटी में महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किये। 21 मार्च 1937 को राय बहादुर के. एन. दीक्षित ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक का कार्यभार ग्रहण किया। इनके कार्यकाल के दौरान 1940-44 के मध्य अहिछत्र का उत्खनन एक विस्तृत पैमाने पर किया गया। इसके बाद वर्ष 1944 में डा. आर. . मॉर्टीमर व्हीलर को सेना से वापस बुलाकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का महानिदेशक नियुक्त किया गया। सर मॉर्टीमर व्हीलर के मार्ग दर्शन में हमारे प्राचीन इतिहास की खोज में वैज्ञानिक आधार को शामिल किया। उन्होंने एएसआई में पूर्ण रूप से विकसित संरक्षण, रसायनिक संरक्षण और बागवानी शाखाओं की भी शुरूआत की। उनका विभिन्न प्रकार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके अलावा व्हीलर ने भारतीय छात्रों को विस्तृत क्षेत्रीय प्रशिक्षण प्रदान किया और अंग्रेजों के देश छोड़ने के बाद इन छात्रों के लिए इस संस्थान का नेतृत्व अपने हाथ में लेने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कुछ छात्रों ने एएसआई के महानिदेशक का पद हासिल किया जो व्हीलर द्वारा दिए गए सुव्यवस्थित एवं उत्कृष्ट प्रशिक्षण को दर्शाता है। यह काल भापुस के इतिहास में महान परिवर्तन और बहुआयामी प्रगति का काल माना जाता है। उत्खनन की आधुनिक तकनीकि को अपनाया गया। तक्षशिला, अरिकमेडु तथा हड़प्पा में विभागीय कर्मचारियों को उत्खनन, प्रागैतिहासिक, संग्रहालय, पुरालिपि, उद्यान, तथा प्रकाशन शाखा-अनुभाग अस्तित्व में आये। इतना ही नहीं 1945 में केन्द्रीय पुरातत्व सलाहकार परिषद का गठन भी किया गया। इनके परामर्शों तथा  दिशा निर्देशों को महत्ता प्रदान की जाने लगी। केन्दीय पुरातत्व विभाग का विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, शैक्षिक समितियों, तथा केन्द्र पुरातत्व विभागों का अद्भुत समन्वय दिखने लगा था। 30 अप्रैल 1948 को ह्वीलर महोदय सेवामुक्त हुए और एन. पी. चक्रवर्ती ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक का कार्यभार ग्रहण किया।

( क्रमशः)

No comments:

Post a Comment