Friday, May 26, 2017

परिश्रम वेकार नहीं होता डा. राधेश्याम द्विवेदी

लखनऊ । आल इण्डिया मेडिकल पीजी परीक्षा का नाम नीट हो गया है। पूरे देश में केवल एक ही प्रवेश परीक्षा करायी जाती है। यह साल में एक बार दिसम्बर के आस पास होती है। इससे भारत सरकार के मेडिकल कालेज के 50 प्रतिशत सीटों का चयन तथा राज्यों के 50 प्रतिशत तथा व्यक्तिगत तथा सरकारी कालेजों के चयन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। साथ ही पूरे देश की डी एन बी प्रवेश के चयन की परीक्षायें भी नीट के जरिये होता है। 6 माह के इस बहुत ही जीउबाऊ प्रकिया से जुड़ना पड़ता है। अच्छे अंक वाले डाक्टर एक साथ कई अच्छे अच्छे कालेज घेर लेते हैं। आरक्षित वर्ग भी अच्छी अच्छी जगह लेते हैं। बाद में एक को रोककर शेष उन्हें छोड़ना पड़ता है। भारतीय चिकित्सा परिषद तथा उच्च व उच्चतम न्यायालय इसकी निगरानी रखता है। इसके काउन्सिलिंग के अनेक दौर आन लाइन तथा आफ लाइन चलते हैं। कई विकल्प भरकर देने पड़तें हैं इनमें सिर्फ एक ही लाक हो पाती है। वाकी छोड़ना पड़ता है और वह बचे हुए अगले चिकित्सक के काम में आता है। भारत सरकार तथा कई राज्य सरकारों की काउन्सिलिंग पूरी हो चुकी थी। सभी को लगभग 31 मई तक यह कार्य पूरे करने होते हैं। यदि विलम्ब होता है तो उसका स्पष्टीकरण भी देना पड़ता है।
24 मई 2017 को प्रातः उत्तर प्रदेश के माक काउन्सिलिंग की सूचना निकाली गयी जिसमें 1000 रुपये का डिमाण्ड ड्राफ्ट मांगा गया । चिकित्सा छा़त्रों ने जैसे सुना अपनी रुचि के अनुसार तैयारी किया। शाम 4 बजे एक और सूचना आयी कि 5000 रुपये का एक और ड्राफ्ट लगाना होगा । बैंक वालों से जान पहचान करके कुछों ने यह औपचारिकता पूरा कर लियें, कुछ नहीं भी कर पाये। यह माक काउन्सिलिंग इस बार लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में होना था। प्रातः 8 बजते ही चिकित्सा छात्र व उनके अभिभावकों का जमावड़ा बढ़ता ही गया। अन्दर व्यवस्थाये मन्द गति से चल रही थी। भीड़ बढ़ने से लोगों में व्यग्रता तथा अनिश्चितता बढ़ने लगी। अन्दर की अलग दुनिया थी। बहुत सारी औपचारिकता बाकी थी। प्रशासन मेरिट तैयार करने तथा काउन्सिलिंग शुरु करने में बहुत देरी कर दी थी। पहले आरक्षित वर्ग की काउन्सिलिंग पूरी की गयी । बाद में अनारक्षित वर्ग की। कइयों को उम्मीद से ज्यादा अच्छे विकल्प मिलें तो कइयों को मन माफिक विकल्प ना मिलने से मन मसोककर कर रहना पड़ा।  पूरी रात काउन्सिलिंग चलती रही। अन्दर के लोगों को सारी सहूलियतें थी। बाहर लोग परेशान थें। दुकानं,े सवारियां ,यहां तक कि खाने पीने के सामान भी नहीं मिल पा रहें थे। खैर बड़ी जद्दो जहद के बाद अनेक बुझे हुए चेहरों पर मुस्कान आ गयी। और कुछ की उदासी ज्यों की त्यों बनी रही। इस आरक्षण तथा आनलाइन युग में किसी को मेरिट में अच्छा स्थान मिलने के बाद भी सीट मन माफिक नहीं मिला था, तो कुछ आसानी से माक काउन्सिलिंग में अच्छी सीट हासिल कर लिये।

सब मिलाकर यही कहा जाता है कि अगर सरकार के तंत्र में कही किसी के साथ न्याय नहीं मिलता हैं तो ऊपर वाले के यहां एसा नहीं हैं। वह सबमें सन्तुलन करता हैं और घोर उदासी को हर्ष में बदल देता है। एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि चाहे समाज सरकार किसी को महत्व दे या ना दे। प्रतिफल दे या ना दें परन्तु यह बात निश्चित है कि परिश्रम कभी वेकार नहीं होता हैं और कभी ना कभी उसका सकारात्मक पक्ष अवश्य ही देखने को मिलता है।

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