Wednesday, May 10, 2017

नोटबन्दी का असर बरकरार-- डा. राधेश्याम द्विवेदी


नोटबंदी के 6 महीने के बाद भी बैंको में कैश व्यवस्था में कोई सुधार नही हुआ। अभी तक बैंको में भीड की लम्बी कतारे लगी रहती है। बैंक कर्मियों पर कैश् होने का बहाना आखिर कब तक ग्रामीणों और छोटे शहरों के लोगों को मिलेगा। लोगों को भाजपा से मोह भंग हो रहा है। एटीएम में पैसे डालने के बैंको के पास पैसा ही नहीं हैं। कुछ प्राइवेट वैंक तो कुछ मेन्टेन भी कर लेते हैं। नेशनलाइज वैंक तो यह भी जहमद उठाना पसन्द नहीं करता है। मुख्यमंत्री के पूर्वांचल में पैसों की सर्वाधिक किल्लत देखी गयी हैं बस्ती जिले का बहुत ही खराब स्थिति है। आज अपने ही पैसों के लिए जहां एक आम आदमी बैंकों की लाइन में मारा मारा फिर रहा है धक्के खा रहा, वहीं दूसरी ओर काले धन के सौदागरों से नए नोटों की लाखों करोड़ों की बरामदगी होने से सरकार की कार्यशैली और विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग चुका है। इन सब बातों से सिर्फ एक ही निष्कर्ष निकलता है कि सरकार की मशीनरी पर काले धन के सौदागरों का नेटवर्क भारी पड़ गया। क्राइम हुआ करने वाले इने गिने लोग ही पकड़े गए। सरकार ने तब तैयारी की थी और ना अब तक इसे सामान्य कर सकी है। सरकार की काले धन के सौदागरों को काले धन को सफेद करने का क्राइम करने का मौका दे दिया। यहां ये बात भी गौर करने वाली है कितना रुपया सफेद किया गया इस बात का भी कोई अंदाजा नहीं लगा सकता.कितना पकड़ा गया वो दिख रहा है  इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सरकार की नाक के नीचे क्राइम हुआ।


यहां इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एक आम आदमी के लिए इस नोटबन्दी को देशभक्ति की परिभाषा से गड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया गया। इस प्रकरण में कुछ उन लोगों की भी संलिप्तता पाई गई जो आम आदमी को नोटबन्दी प्रकरण में देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे। अपने हित साध रहे थे। सरकार सिर्फ ये कहकर हवा में तीर चला रही थी कि इस नोटबन्दी में पूरा देश साथ है जिसमे कुछ मिडिया के लोग भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर रिपोर्ट दिखाकर हवा में ही तीर चला रहे थे। सच्चाई इसके विपरीत थी। इसमें एक पक्ष और भी था वो गरीब किसान मजदूर और वो आम आदमी, जो रोज कुआं, खोदता रोज पानी पीता था। उसकी पीड़ा को उन चंद मिडिया के लोगों ने दिखाना उचित नहीं समझा क्योंकि सरकार की शान में बट्टा लग जाता। देश के सामने वो भयावह सच जाता कि इस नोटबन्दी की बदइंतजामी ने गरीब आदमी की रोजी रोटी पर भी ग्रहण लगा दिया सरकार कह रही है कि 50 दिन में हालात ठीक हो जायेंगे ये कहकर भी सरकार लोगों को नहीं सिर्फ अपने आपको बहला रही है। जबकि सरकार भी जानती है कि रायता बुरी तरह से फैला हुआ है जो कि 6 माह में नहीं समेटा जा सकता ।कुल मिलाकर इस नोटबन्दी प्रकरण का एक ही नतीजा निकलता है कि अपने अदूरदर्शी फैसले और बदइंतजामी ने आम आदमी को दर्द तकलीफ और मानसिक यंत्रणा के अलावा और कुछ नहीं दिया।



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