द्वारका नगरी के लुप्त होने का रहस्य
डा. राधे श्याम द्विवेदी
भगवान कृष्ण की रहस्यमयी द्वारका नगरी 5000 साल पहले लुप्त हो गई थी। द्वारका का अर्थ कई द्वारों का शहर होता है। संस्कृत में इसे ‘द्वारवती’ कहा गया है। इसी कारण इसका नाम द्वारका पड़ा। यह भगवान कृष्ण की पौराणिक राजधानी थी, जिसकी स्थापना मथुरा से पलायन के बाद की थी। इस शहर के चारों तरफ ऊंची-ऊंची दीवारें थी, जिनमें कई सौ दरवाजे थे। द्वारका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित समुद्र किनारे चार धामों में से एक धाम और 7 पवित्र पुरियों (द्वारका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या) में से द्वारका एक पुरी है। वर्तमान समय में दो द्वारका हैं, एक गोमती द्वारका, दसूरी बेट द्वारका। गोमती द्वारका ‘धाम ‘है, जबकि बेट द्वारका ‘पुरी’ है। बेट द्वारका समुद्र के बीच एक टापू पर स्थित है।
प्राचीन द्वारका एक पूर्ण नियोजित शहर था:-
कहा जाता है कि शहर को छह विभागों (सेक्टरों) में विभाजित किया गया था, जिसमें आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्र, चौड़ी सड़कें, बड़े-बड़े चौक, 7,00,000 महल जो सोने, चांदी और कीमती पत्थरों से बने थे। साथ ही कई सार्वजनिक सुविधाएं शामिल थीं। इसके अलावा वनस्पति उद्यान और झील भी थी। द्वारका में एक बड़ा हॉल जिसे सुधर्मा सभा कहा जाता था, यह वह स्थान था जहाँ सार्वजनिक सभाएं होती थीं। द्वारका में विशालकाय सभा मंडप था। शहर पानी से घिरे होने के कारण पुलों और बंदरगाहों के माध्यम से मुख्य भूमि से जुड़ा था।
जैन सूत्र ‘अंतकृतदशांग’ में द्वारका के 12 योजन लंबे, 9 योजन चौड़े विस्तार का उल्लेख है तथा इसे कुबेर द्वारा निर्मित बताया गया है और इसके वैभव और सौंदर्य के कारण इसकी तुलना अलका से की गई है। बहुत से पुराणकार मानते हैं कि कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम, कृतवर्मा, सत्याकी, अक्रूर, उद्धव और उग्रसेन समेत 18 साथियों के साथ द्वारका आए थे। कृष्ण ने जब कंस का वध कर दिया, तब कंस के ससुर मगधिपति जरासंघ ने यादवों को खत्म करने का फैसला किया। वे मथुरा और यादवों पर बार-बार आक्रमण करते थे। इसलिए यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया। कृष्ण और उनके साथियों ने द्वारका आकर इस भूमि को रहने लायक बनाया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार महाराजा रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही द्वारका का नाम कुशस्थली हुआ था। हरिवंश पुराण के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी। विष्णु पुराण के अनुसार आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर राज्य किया। विष्णु पुराण से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी। महाभारत के अनुसार कुशस्थली रैवतक पर्वत से घिरी हुई थी-
‘कुशस्थली पुरी रम्या रैवतेनोपशोभितम्’।
द्वारका नष्ट कैसे हुई:-
द्वारका में श्रीकृष्ण ने 36 साल तक राज किया था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि द्वारका नष्ट हो गई? किसने किया द्वारका को नष्ट? क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई थी द्वारका? क्या किसी आसमानी ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारका को या किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया था द्वारका को?
आखिर ऐसा क्या हुआ था जो नष्ट हो गई द्वारका?
समुद्र की लहरों ने डुबोया:-
श्रीकृष्ण के विदा होते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई और यादव कुल नष्ट हो गया, मान्यता है कि उस समय समुद्र में इतनी ऊंची लहरें उठी थीं द्वारका को एक ही बार में पानी में डूबो दिया था। द्वारका के डूबने के कहानी कुछ वैसी ही है जैसी दुनियाभर में ग्रीक सभ्यता का शहर ‘अटलांटिस’ की कहानी है। अटलांटिस को भी एक बड़ी बाढ़ ने तबाह कर दिया था। ग्रीक के महान दार्शनिक और चिंतक प्लेटो ने दो हजार वर्ष पहले जिस प्राचीन अटलांटिस सभ्यता का वर्णन किया था उसमें अटलांटिस के डूबने का समय लगभग 9000 साल पहले का ही बताया गया है।
द्वारका कब समुद्र में विलीन हुई:-
अब सवाल उठता है कि द्वारका कब समुद्र में विलीन हुई थी?
इस पर इतिहासकारों, पुरातत्त्ववेत्ता, समुद्र विज्ञानियों में मतभेद है, कुछ का कहना है कि द्वारका लगभग 5000 साल पहले डूबी थी तो कुछ का कहना है कि 9000 से 9500 साल पहले डूबी थी। श्रीमद्भागवतम् पुराण और अन्य शास्त्रों के अध्ययन के अनुसार द्वारका वर्ष 3102 ई.पू. में डूबा था, जो आज से लगभग 5100 वर्ष है। 3102 ईसा पूर्व द्वापर युग का अंत और कलयुग का प्रारंभ हुआ था। सूर्य सिद्धांत के अनुसार, कलियुग 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व की मध्य रात्रि यानी 12 बजे से शुरू हुआ। धर्म ग्रंथों में यही वह तिथि मानी जाती है, जब श्रीकृष्ण बैकुंठ लोक लौट गए थे।
समुद्र में नीचे नगर जैसी सरंचना :-
राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के जांच दल ने दिसंबर 2000 में समुद्र में 800 फीट नीचे एक नगर जैसी सरंचना का अध्ययन किया है। उसके आधार पर 16 जनवरी 2002 को तत्कालीन हुमन रिसोर्स डेवेलोपमेंट, एंड साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री, डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि NIOT ने 9,500 साल पुरानी सभ्यता के अवशेषों की खोज की है। उन्होंने दावा किया कि हड़प्पा सभ्यता से भी पूर्व एक सभ्यता के अवशेष गुजरात के तट से दूर खंबात की खाड़ी में समुद्र के नीचे मिले हैं।
NIOT के शोध में दावा किया गया था कि यह एक बड़ा राज्य था- खंभात और कच्छ की खाड़ी नहीं थी। यहां जमीन थी। मौजूदा द्वारिका से लेकर सूरत तक पूरी समुद्र क्षेत्र में एक दीवार देखने में आती है। यह कृष्ण का राज्य था। सूरत के पास मिली रचना द्वारिका से मिलती है। डॉ. एस. कथरोली की अगुआई में हुई रिसर्च में नर्मदा नदी के मुख्य स्थल से 40 किमी दूर और तापी नदी के मुख्य स्थल के पास अरब सागर के उत्तर-पश्चिम में प्राचीन नगर के अवशेष मिले थे। तब 130 फीट गहराई में 5 मील लंबे और करीब 2 मील चौड़ाई वाला नगर मिला था। मरीन आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट ने 2 साल की रिसर्च में 1000 नमूने खोजे, जिनमें से 250आर्कियोलॉजिकल अहमियत रखते हैं।
अब दोनों थ्योरी को जानने के बाद संदेह उत्पन्न होता है कि कौन सी थ्योरी सच है और कौन सी गलत। अब महाभारत के अनुसार देखें तो द्वारका वर्ष 3102 ई.पू. में डूबी था, जो आज से लगभग 5100 वर्ष है और अगर हिमयुग के अंत वाली थ्योरी देखें तो द्वारका 9000 से 9500 साल पहले डूबी थी।
हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी:-
हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी सच लगती है। लेकिन बहुत से पुराणकार और इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका को कृष्ण के देहांत के बाद जान-बूझकर नष्ट किया गया था। यह वह दौर था, जबकि यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारिका पर समुद्र के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी।
वज्रनाभ द्वारका के यदुवंश के अंतिम शासक:-
द्वारका के जलमगन होने के बाद कृष्ण के परपोते वज्रनाभ द्वारका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यादवों के अंतिम युद्ध में जीवित रह गए। द्वारका के समुद्र में डूब जाने के बाद अर्जुन द्वारका आए और वज्रनाभ और अन्य जीवित यादवों को हस्तिनापुर ले आए। कृष्ण के वज्रनाभ को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से मथुरा क्षेत्र को वज्रमंडल भी कहा जाता है।
शाप के प्रभाव से नष्ट:-
द्वारका के नष्ट होने की कुछ और भी मान्यताए है। यह भी कहा जाता है कि धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी और ऋषि दुर्वासा ने यदुवंश के नष्ट होने का श्राप दिया था । जिसके चलते द्वारिका नष्ट हो गई थी। एक मान्यता यह भी है कि यह नगर अरबी समुद्र में 6 बार डुब चुका है और वर्तमान द्वारका 7वां शहर है जिसको पुराने द्वारिका के पास पुन: स्थापित किया गया। वर्तमान समय की द्वारका आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित है।
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