सर्व धर्म समभाव वाली रही अयोध्या
अयोध्या सप्तपुरियों में एक है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध कौन इस पर नहीं रींझा। सिखों का पवित्र ब्रह्मकुंड यही पर है। मुस्लिमों के हजरत नूंह का रिश्ता यही से बताया जाता है। शीश पैगंबर की मजार यहीं है। जैन धर्म के छह तीर्थांकरों की जन्मभूमि भी यहीं है। बौद्ध दार्शनिक अश्वघोष यहीं पैदा हुए थे। महात्मा बुद्ध ने कई चतुर्मास यहां व्यतीत किए थे। पतित पावनी मां सरयू और उनके पावन घाट की छटा ही निराली है। यही पर रामजन्मभूमि है, हनुमानगढ़ी है, कनक भवन है, दशरथ महल है, अशर्फी भवन है। मणि पर्वत, कुबेर टीला, सुग्रीव किला और मत गयन्द का स्थान आदि प्रमुख स्थान हैं। अपने धार्मिक महत्व के अलावा, अयोध्या एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य वाला शहर है। शहर ने विभिन्न सभ्यताओं को उभरते और गिरते देखा है, जो वास्तुकला और परंपराओं पर अपनी छाप छोड़ते हैं। गुप्त काल के प्राचीन खंडहरों से लेकर अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सुंदर मंदिरों और अन्य धर्मस्थलों तक।अयोध्या भारत के समृद्ध और विविध अतीत का उदाहरण है। न जाने कितने ऐसे स्थल है जों अपने में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सूची में एक साथ तीन स्मारकों को दर्ज किया गया है जिसमें पहला मणि पर्वत, दूसरा कुबेर पर्वत व तीसरा सुग्रीव पर्वत है। तीनों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है जिससे इन मंदिरों के आसपास समुचित पर्यटन का विकास हो सके और कोई वैधानिक अड़चन ना आने पाए।
बदल गया है मणि पर्वत का स्वरूप
अयोध्या धाम जंक्शन से 3 किमी की दूरी पर, मणि पर्वत अयोध्या के कामीगंज मोहल्ले में स्थित एक छोटी पहाड़ी है। इस टीले या पहाड़ी को मणि पर्वत के नाम से जाना जाता है। मणि पर्वत एक पौराणिक तीर्थ है। जो एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा, जिसने 1902 में अयोध्या के 148 तीर्थ स्थलों को चिन्हित किया था, जिसकी सूची में क्रम संख्या 52 पर इसे दर्ज कर रखा है।
( क्रम से मणि भगवान,राम, लक्ष्मण और सीता जी का वर्तमान स्वरूप) मणि पर्वत सुग्रीव किला (पर्वत) नामक एक अन्य पहाड़ी के करीब ही स्थित है। जो एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा, जिसने 1902 में अयोध्या के 148 तीर्थ स्थलों को चिन्हित किया था, जिसे सूची में क्रम संख्या 13 पर इसे दर्ज कर रखा है। उस समय कम आबादी के कारण ये दोनों स्थान बहुत दूर नहीं थे। गणेश कुंड, अयोध्या में मणि पर्वत के दक्षिण में स्थित एक पौराणिक तीर्थ है। एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा, जिसने 1902 में अयोध्या के 148 तीर्थ स्थलों को चिन्हित किया था, की सूची में क्रम संख्या 59 पर इसे दर्ज कर रखा है। यहां भी अनेक नई संरचनाएं बनती देखी जा सकती हैं।
मणि पर्वत है एक एतिहासिक धरोहर
यह 80 फिट ऊंचा मणि पर्वत ऐतिहासिक धरोहर है। जिसकी सुरक्षा और संरक्षण भारत सरकार द्वारा संचालित पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जाता है। इस क्षेत्र के 100 मीटर के परिधि के आसपास खुदाई या निर्माण कार्य भारत सरकार के द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं लेकिन इस जर्जर टीले की मिट्टी बरसात के दिनों में धसकने और उसके कारण दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। इस स्मारक का छत संरक्षण के अभाव में टूटा फूटा है और कटीले तार से प्रतिबंधित किया गया है। मन्दिर को और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से इस संरक्षित स्मारक को जिला प्रशासन की ओर से निर्माण वर्जित किया गया है। जिला प्रशासन ने भी मणि पर्वत को संरक्षित स्मारक की सूची से बाहर करने की अपनी संस्तुति भी पहले से दे रखी है। पर अभी सूची में नाम यथावत है।
मणिपर्वत का है पौराणिक महत्त्व
मणिपर्वत को भी त्रेतायुगीन माना जाता है। इसका इतिहास रुद्रयामल व सत्योपाख्यान में वर्णित है। उसके अनुसार भगवान राम जब शादी के लिए जनकपुर गए थे, तब कैैकेई मां ने कनक भवन बनवाने का हठ किया था। कैकेई ने कनक महल जानकी को उपहार में दे दिया था। उसने इंद्राणि से मिली मणि भगवान राम को दे दी। लेकिन राम या उनके अन्य किसी भाई ने इस मणि को धारण नहीं किया। बाद में यह मणि जानकी के चरणों में अर्पित कर दी गयी। मणि का जोड़ा न होने के कारण भगवान राम ने इसे ग्रहण नहीं किये थे। बाद में जानकी की इच्छा पूर्ति के लिए जनकपुर के राजा ने यहां मणियों का अंबार लगा दिया था । राजा जनक ने इसे पुत्री का धन मानते हुए अयोध्या भेज दिये थे । यही मणियां अयोध्या के रामकोट के दक्षिण दिशा में रख दी गईं। जो एक योजन ऊंचे पहाड़ जैसी बन गयीं। यही वर्तमान समय का मणिपर्वत कहलाता है। धीरे धीरे पहाड़ घिस कर छोटा होता गया।
जनक द्वारा दिया गया था
अकूत मात्रा में सोना
इस क्षेत्र में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं जो मणि पर्वत की उत्पत्ति का वर्णन करती हैं। इसका इतिहास त्रेतायुग के समय का है. वहां पर एक जनौरा नाम का गांव था जहां पर महाराज जनक ने निवास किया था. उस जगह को जनकौरा भी कहा जाता है क्योंकि महाराज जनक ने यहां पर कौर (भोजन) खाया था.उसी के उपहार स्वरूप महाराज जनक ने राजा दशरथ को बहुत सी मणियां भेंट की थीं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देवी सीता के पिता राजा जनक ने भगवान राम से विवाह करने पर सीता को बहुत सारा सोना और जवाहरात उपहार में दिए थे। यद्यपि राजा दशरथ सीता के साथ मिले धन के लालची नहीं थे और उन्होंने आदेश दिया कि इसे रामकोट के दक्षिण दिशा में विद्या कुंड के पास रखवा दिया था. मणि इतनी ज्यादा थीं कि वहां मणियों का धीरे-धीरे पहाड़ बन गया. आज उसी प्राचीन धरोहर को लोग मणि पर्वत के नाम से जानते हैं. रत्नों की मात्रा इतनी अधिक थी कि वे एक पहाड़ी की शक्ल में बदल गए और इस पहाड़ी को मणि पर्वत के रूप में जाना जाने लगा। मणि एक ऐसी धातु है जो अपने आप में विलक्षण है अपने आप में प्रकाशमान है।
सावन महीने में होता है
मणिपर्वत पर भव्य आयोजन
एसी मान्यता है कि इसी मणि पर्वत पर भगवान राम ने माता सीता के साथ सावन महीने में तृतीया तिथि के दिन झूला झूलते थे। त्रेतायुग की यह परंपरा आज भी कलयुग मे चलती आ रही है। मणि पर्वत पर भगवान झूला झूलते हैं तो वहीं हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में झूला उत्सव का आनंद लेते हैं, पूजा अर्चन व दर्शन करते हैं। वे अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कामना करते हैं।
यही से शुरू होता है सावन मेला
राम जन्मभूमि से एक किलो दूर मणि पर्वत पर सावन मेला आयोजित किया जाता है। रामनगरी का बहुप्रतीक्षित सावन झूला मेला का श्रीगणेश मणिपर्वत झूलनोत्सव से ही होता है। इस अवसर पर यहां प्रतिष्ठित कनक भवन, दशरथ राज- महल, बड़ा स्थान, रंगमहल, रामवल्लभा- कुंज, मणिराम छावनी, राम हर्षण कुंज, जानकी महल, हनुमत निवास, सद्गुरु सदन, विहुति भवन व रामसखी मंदिर सहित दर्जनों मंदिरों में विराजमान भगवान को यहां शोभायात्रा के रूप में लाकर झूले पर झुलाया जाता है और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और मणि पर्वत पर स्थित मंदिर में दर्शन करते हैं। आज भी अयोध्या और आसपास के गाँवों में मणिपर्वत से जुड़े लोकगीत महिलाओं द्वारा गए जाते हैं। इन्हीं में से एक लोकगीत के बोल हैं –
“झलुआ पड़ा मणि पर्वत पय।
हम सखि झूलय जाबय ना।”
अर्थात ‘मणिपर्वत पर झूला पड़ा है और मैं अपनी सहेलियों के साथ वहाँ झूलने जाऊँगी।’ इसे इस लिंक से और आसानी से देखा जा सकता है -
https://youtu.be/1kzdwv1IQKA?si=1f0HEdOVPI_BO2Qa
त्रेता युग में था मणियों का पहाड़
धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि भगवान राम जब विवाह के उपरांत माता सीता को अयोध्या लेकर आए थे, तब महाराज जनक ने महाराज दशरथ को उपहार स्वरूप मणियों की श्रृंखला उन्हें भेट की थी, जिसको राजा दशरथ ने विद्या कुंड के पास रखवा दिया था। मणि इतनी ज्यादा थीं कि वहां मणियों का धीरे-धीरे पहाड़ बन गया था। इसलिए इस टीले को आज भी मणि पर्वत के नाम से जाना जाता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मणि पर्वत पर भगवान राम ने माता सीता के साथ श्रावण मास में तृतीया तिथि (हरियाली तीज) के दिन झूला झूले थे। त्रेतायुग की यह परंपरा कलयुग में भी चली आ रही है।
एक अन्य संदर्भ में कहा गया है कि माता सीता ने एक बार प्रभु श्री राम से आग्रह किया कि वे उन्हें एक ऐसी जगह प्रदान करें जहाँ वे अपनी सखियों के साथ घूम सकें। बदले में, श्री राम ने गरुड़ से वैकुंठ पर्वत से एक पहाड़ी का एक हिस्सा लाने के लिए कहा। अपने गुरु के आदेश के अनुसार, गरुड़ वैकुंठ पर्वत से एक छोटी पहाड़ी लाए और उसे अयोध्या में रख दिया। इस पहाड़ी का उपयोग तब राजा जनक द्वारा सीता को उपहार में दिए गए सभी रत्नों को रखने के लिए किया गया था और इसे मणि (गहने) पर्वत (पहाड़ी) के रूप में जाना जाने लगा। यह स्थान सीता देवी की रुचि की बताई जाती है।
मणिपर्वत सीता देवी का रत्नपर्वत है
मणि पर्वत (एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा सूची क्रम संख्या 58 पर दर्ज) का निर्माण जनकपुर में सीता देवी के आशीर्वाद से प्राप्त मणियों से हुआ था। सीताकुंड (एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा क्रम संख्या 52 पर दर्ज)मणि पर्वत के पास ही अवस्थित है। जहां सीता जी स्नान किया करती थी। यह भी कहा जाता है कि भगवान राम को सीता देवी से विवाह के बाद रानी कैकेयी ने कुछ मणियाँ भेंट की थीं, लेकिन वे भी अप्रत्यक्ष रूप से सीता देवी तक पहुँच गईं। भगवान राम की सनातन पत्नी होने के नाते, भगवान राम की पूजा में सीता देवी का आशीर्वाद महत्वपूर्ण है। मणि पर्वत हमें सदैव सीता देवी और सभी जीवों पर उनकी कृपा की याद दिलाता है।
स्कंद पुराण में मणि पर्वत को महा रत्न तीर्थ के रूप में महिमा पंडित किया गया है। इस स्थान पर स्नान करने से महान आध्यात्मिक लाभ मिलता है। पवित्र पौराणिक तिलोदकी नदी मणि पर्वत के पास से ही गुजराती है।तिलोदकी नदी, जिसे प्राचीन तिलोदकी गंगा, त्रिलोचना या तिलैया गंगा भी कहा जाता है, अयोध्या में स्थित एक पौराणिक नदी है। यह ऋषि रमणक की तपोभूमि से निकली है, इसका उद्गम स्थल सोहावल के पास पंडितपुर गांव में ऋषि रमणक की तपस्थली को माना जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, ऋषि रमणक की तपस्या से इस नदी का आविर्भाव हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, राजा राम ने सिंधु देश के घोड़ों के पानी पीने के लिए इसका निर्माण कराया था। यह नदी लगभग 25 किलोमीटर लंबी है, और सरयू नदी में मिलती है। नदी के कई हिस्से लुप्त हो गए थे, लेकिन वर्तमान में इसके पुनरुद्धार का काम तेजी से चल रहा है।
बुद्ध से भी जुड़ा हुआ है ये स्थान
भगवान बुद्ध की प्रमुख उपासिका विशाखा ने बुद्ध के सानिध्य में अयोध्या में धम्म की दीक्षा यही पर ली थी। इसी के स्मृति स्वरूप में विशाखा ने अयोध्या में मणि पर्वत के समीप बौद्ध विहार की स्थापना करवाई थी। यह भी कहते हैं कि बुद्ध के महा परिनिर्वाण के बाद इसी विहार में बुद्ध के दांत रखे गए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान बुद्ध ने अयोध्या में अपने छह साल के प्रवास के दौरान मणि पर्वत से धर्म के नियम के बारे में अपने उपदेश दिए थे। इस पहाड़ी पर सम्राट अशोक द्वारा निर्मित एक स्तूप और एक बौद्ध मठ भी है।सनातन धर्म की महत्ता के कारण बुद्ध ने भी इस स्थान को महत्व दिया था और बाद में मुस्लिम आक्रांताओं ने भी अपने- अपने धर्म स्थल यहां बनाए हैं।
मणि पर्वत का सौंदर्यीकरण
सन् 1902 में अयोध्या धाम के ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिये एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा का गठन किया गया था, जिसने अयोध्या के 148 जगहों को चिह्नित कर उन पर एडवर्ड तीर्थ विवेचनी के पत्थर लगाए थे, ताकि भविष्य में इन धरोहरों को संरक्षित किया जा सके।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998-99 में उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने मणि पर्वत के सौंदर्यीकरण के लिये 88 लाख रुपए के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी थी, जिसके अंतर्गत रामकथा पार्क के लोकार्पण के साथ मणि पर्वत की सौंदर्यीकरण योजना का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने किया था, किंतु इस योजना पर काम नहीं हो सका और पर्यटन विभाग ने योजना की आवंटित धनराशि सरेंडर कर दिया।
मणि पर्वत की पौराणिकता को संरक्षित करने के लिये पुरातत्व विभाग द्वारा 45 लाख रुपए आंबटित किये गए हैं। जीर्णोद्धार के पहले चरण में मणि पर्वत के गर्भगृह तक पहुँचाने वाली सीढ़ियों का मिर्ज़ापुर के लाल पत्थरों से नवीनीकरण किया गया है। दूसरे चरण में मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर अन्य परिसरों की मरम्मत कब की जाएगी या नहीं की जाएगी ? इसका कोई अनुमान नहीं है।
मणिपर्वत पर भयंकर
जेहादी अतिक्रमण :-
इस लिंक से इतने महत्वपूर्ण स्थल का भूगोल बदलने की पूरी तैयारी षडयंत्र के रूप में काफी दिनों से हो रही है -
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तीन तरफ दरगाहों से घिर चुका है
यह पौराणिक स्थल
मणि पर्वत की चोटी के तीन तरफ दरगाहें, मजारे, और मस्जिदें दिनोबदिन बनती जा रही हैं। प्रतीत होता है श्री राम जन्म भूमि मामले में मात खाने के भय की प्रतिपूर्ति के लिए ये समाज काफी समय पूर्व से ही प्रयासरत हो गया था। उन्हें लग रहा था की एक न एक दिन उनका कमजोर पक्ष उन्हें दूर खड़ा कर देगा और भी अयोध्या में अपनी पकड़ कमजोर कर देंगे। इसी की पूर्ति के लिए कई सौ साल पहले से ही यहां लैंड जेहाद के नाम पर धार्मिक संरचनाएं मनमाने तरीके से बनाई जाने लगी हैं। वहां एक वर्ग विशेष के धार्मिक कार्यक्रम किए जाने लगे और लोगों को मन्नते और दुआएं देने का सिलसिला शुरू कर दिया गया। आम लोग उनके कार्यक्रम से जुड़ते गए उन्हें तत्काल लाभ भी मिला होगा और वे किसी तरह का विरोध भी नहीं कर सके। सरकारी तंत्र भी अयोध्या नगरी के मुख्य राम जन्मभूमि तथा आस पास के कुछ खास स्थानों तक ही अपनी पहुंच बना पाया । मणि पर्वत क्षेत्र यह एकांत और निर्जन में होने के नाते प्रशासन की पहुंच से दूर हटता गया। यद्यपि वह कागज में एक राष्ट्रीय संरक्षित धरोहर है लेकिन मौके पर उसका कुछ और ही नजारा देखा जा सकता है।
मणि पर्वत दरगाहों के निर्माण और दीवारों पर पेंट को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये इमारतें हाल ही में बनी हैं। इसके अलावा, हम देख सकते हैं कि कई नई कब्रों और दरगाहों का निर्माण भी चलता रहता है, जहां आस- पास की कई प्राचीन इमारतों पर कंक्रीट की कब्रें भी देखीं जा सकती हैं।
1.दक्षिण में हज़रत शीश अलैहिस्सलाम की दरगाह
हज़रत शीश अलैहिस्सलाम दरगाह मणि पर्वत में मंदिर के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। हजरत आदम ने 1050 साल की लंबी उम्र पाई थी। करीब सौ वर्ष वहां गुजारने के बाद वे परिवार सहित अयोध्या की पवित्र धरती पर पहुंचे और यहां करीब नौ सौ साल तक रहे। आदमियत के प्रचार- प्रसार के सिलसिले में उनका अंतिम समय तो अरब देशों में गुजरा, पर उनके पुत्र और दूसरे पैगंबर अयोध्या के ही होकर रहे और यहीं वे पर्दानशीं भी हुए। मणिपर्वत के पृष्ठ में हजरत शीश की मजार आज भी है। यह मजार छह गज लंबी है। इस्लामिक आख्यानों के अनुसार हजरत शीश 70 गज के थे और उनकी मजार भी इतनी ही लंबी थी। इस स्थान को प्राचीन दर्शाने के लिए हजरत शीश का समीकरण श्रीराम के पूर्वज और अयोध्या के अनादिकालीन राजा इक्ष्वाकु से स्थापित किया जाता है।
यह दरगाह इस पवित्र स्थल से सरकार द्वारा प्रतिबंधित सौ मीटर से भी कम दूरी पर है।यह स्थान मणि पर्वत मंदिर की चारदीवारी से लगभग सटा हुआ है। इसके अलावा मुख्य सड़क पर दरगाह का नाम और दिशा- निर्देश वाला साइनबोर्ड भी देखा जा सकता है।
2.बाउंड्री में आधे दर्जन से अधिक मजार
इन कब्रों पर हजरत बाबा जलील नक्शबंदी, नजीरुद्दीन कादरी , बगदादी की मजार, ईरान की राज कुमारी हजरत बीवी सैयदा जाहिदा की मजार, हजरत शीश मजार, हजरत शीश की बेगम और उनके बच्चों आदि के नाम खुदे हुए हैं। यह भी प्रतीत होता कि अरब देश का पैसा और मार्ग निर्देशन भी यहां के लोगों को मिल रहा है
हज़रत शीश की दरगाह को
प्राचीन संरचना कहा जा रहा है :-
मध्यकालीन इस दरगाह को सृष्टि के निर्माण के समय से ही जोड़ा जा रहा है। हज़रत शीश अपने पैगम्बर हज़रत आदम के तीसरे बेटे और मानव जाति के पहले इंसान हैं। हज़रत शीश की ऊंचाई सत्तर गज (210 फीट) थी जो मणि पर्वत से भी ढाई गुना बड़ा कहा जा रहा है। हजरत शीश की कब्र मणि पर्वत जितनी पुरानी भी कही जा रही है। दरगाह परिसर में हजरत शीश की पत्नी बीबी हुरैमा, उनके पांच बेटों और हजरत शीश की मुरीद ईरान की शाहजादी बीबी जाहिदी की भी मजार है।
3.पूरब में कोतवाल बाबा की दरगाह
मणिपर्वत के पूर्वी इलाके में एक और दरगाह बनी है । यह दरगाह एक पेड़ को ढँककर बनाई गई थी। उन्होंने एक ऊँचा चबूतरा बनाया था और उस पर कंक्रीट की कब्र रखी थी। कोतवाल बाबा की दरगाह नाम दिया गया था। कोतवाल बाबा एक भूतपूर्व पुलिस अधिकारी थे, जो अयोध्या कोतवाली में तैनात थे। ये अयोध्या के बड़ी बुवा के आंखों के सौंदर्य पर मोहित हो गए थे। फलस्वरूप बुवा जी ने अपनी आँखें निकाल इन्हें दे दी थी। इससे कोतवाल हैरान रह गया। बड़ी बुआ ने सावधान करते हुए कहा, “याद रखो कि फैज़ाबाद में अब ना कोई आलिम रहेगा ना जालिम।” कहते हैं उसी के बाद फैजाबाद से उजड़ाना शुरू हुआ और नवाब आसफुद्दौला फैजाबाद की जगह नोएडा को अपनी राजधानी बना लिया था यह महसूस करते हुए कि बीबी कोई साधारण महिला नहीं हैं, बल्कि खुदा की सच्ची भक्त हैं, कोतवाल साहब ने बड़ी बीबी के चरणों में गिर गए और दया की भीख माँगी। अजीबो-गरीब सी खामोशी पसरी नजर आई थी। तभी से फैजाबाद को दुर्दिन झेलने को मजबूर होना पड़ा था।
सूफी संत खातून 'बड़ी बुआ' की कब्र एवं यतीमखाना और मदरसा बेनीगंज इलाके में आईटीआई के सामने स्थित है । यह आचार्य नरेंद्र नगर रीड गंज के पुराने रेलवे स्टेशन से लगभग 1.12 किलोमीटर दूर है। जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा संरक्षित भी है।
4 . सैयद शाह बाबा
कोतवाल बाबा की दरगाह के बगल में सैयद शाह बाबा नाम से एक और मजार भी बनाई गई है। इस नाम के और मिलते जुलते नाम के अनेक धार्मिक संरचनाएं पूरे देश में देखी जा सकती हैं। मणि पर्वत अयोध्या स्थित इस दरगाह की देखभाल एक मुस्लिम महिला करती है। जो उत्तर प्रदेश सरकार की विधवा पेंशन होल्डर भी है।
5.उत्तरी किनारे शमशुद्दीन शाह बाबा
मणि पर्वत के उत्तरी किनारे पर हज़रत अली सैयद शमशुद्दीन शाह बाबा नामक एक और दरगाह है। यह दरगाह भी एक पेड़ के चारों ओर बनी हुई है। यह दरगाह मणि पर्वत से उतरने वाली सीढ़ियों के नीचे स्थित है। यह एक ऊँचे सीमेंटेड प्लेटफ़ॉर्म पर बनी है और इसे हरे रंग से रंगा गया है। ऊँचे सीमेंटेड प्लेटफ़ॉर्म तक जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं।
6.एक और अनाम दरगाह
एक ऊंचे ढांचे पर बने मकबरे को हरे रंग की चादर से ढका गया है। दरगाह हज़रत अली सैयद शमशुद्दीन शाह बाबा के बगल में खुली जगह में एक और दरगाह बनाई गई है। हालाँकि इस विशेष दरगाह का नाम बोर्ड दिखाई नहीं देता है, लेकिन यह अच्छी तरह से बनाए रखा हुआ दिखाई देता है।
7.सैकड़ों पक्की सामूहिक कब्रें
उपरोक्त तीनों दरगाह- शीष, शमशुद्दीन और कोतवाल बाबा के बीच में सैकड़ों कब्रें मौजूद हैं। इन कब्रों पर ऊपर हाल ही में पक्का निर्माण किया गया है। नीचे प्राचीन काल की ईंटें दिखाई देती हैं। पक्की कब्रों पर अरबी भाषा में कुछ लिखा गया है। नव निर्माणों को हरे रंग से कलर किया जा रहा है। पता चला है कि आज भी वहाँ आस पास के मुस्लिमों को दफनाया जाता है। मणि पर्वत के पश्चिमी और दक्षिणी कोने के हिस्सों में सामूहिक कब्रों का अम्बार लगा हुआ है।
पीएसी से निगरानी भी नहीं हो पा रही
मणि पर्वत प्रवेश द्वार के पास पीएसी की एक टुकड़ी कैंपिंग कर रही है, लेकिन उसकी कोई रुचि इस स्मारक और धरोहर को संरक्षित करने के लिए नहीं है। वह अपना समय पास कर रही है क्योंकि उसे कोई ऊपरी तरह से सरकारी निर्देश नहीं हैं। इस प्रकार मणि पर्वत तीन तरफ से मुस्लिम संरचनाओं से घिरता चला जा रहा है और आज भी उसे पर नए-नए अतिक्रमण होते जा रहे हैं। झाड़ियों के अंदर अभी और भी कई मजार देखे गए हैं। इन मजारों के पास गणेश कुंड और विद्याकुंड जैसे पवित्र और पौराणिक धर्मस्थल भी मौजूद हैं, जिनका संबंध सीधे भगवान राम और उनकी अयोध्या नगरी से है। ये सभी अयोध्या मुख्य तीर्थ क्षेत्र अथवा धर्मनगरी इलाके में ही आते हैं। इन मजारों से एकदम सटकर उत्तर प्रदेश पुलिस की PAC विंग का बड़ा-सा कैम्प है। इस कैम्प में जवानों के आवास, वाहनों की पार्किंग के साथ-साथ उनके हथियारों को भी रखा जाता है। तीन तरफ मजारों से घिरा यह क्षेत्र न सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी काफी संवेदनशील है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।(वॉट्सप नं.+919412300183)