Thursday, July 3, 2025

ब्राह्मण ही भागवतकथा सुनाने का अधिकारी है # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी



इटावा का मामला क्या है :- 
यादव कथावाचक वाली घटना इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव की है, जहां 21 जून को एक भागवत कथा का आयोजन किया गया था। 
यादव कथावाचक क्या व्यासपीठ की गरिमा के योग्य था :- 
कार्यक्रम में कथावाचक मुकुट मणि यादव और आचार्य संत सिंह यादव कथा वाचन कर रहे थे। इनका कथा वाचन कथा कम हास्य और फूहड़ नौटंकी ज्यादा लग रही थी। 
कथावाचक हेमराज यादव को जरा उनके वीडियो में सुनिए, देखिए कैसे कथा के नाम पर व्यास पीठ की गरिमा पर बट्टा लगा रहे हैं।भगवा पहने हैं गले में रामनामी दुपट्टा लगाए हैं। जैसे कथा नहीं नौटंकी चल रही हो। इसे इस लिंक से देखा जा सकता है – 
https://www.facebook.com/EkSwaymsevak/videos/1061926582103569/?mibextid=rS40aB7S9Ucbxw6v
    कथा कोई भी कहे लेकिन गरिमा के साथ। बेहतर यही होगा जो व्यास पीठ पर बैठने का अधिकारी हो, जिसे शास्त्र का ज्ञान हो, जो मर्यादा में रह सके, वह कहे।
कथा के दौरान विवाद:- 
भागवत कथा के दौरान जमकर विवाद हो गया था। कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके साथी संत कुमार यादव के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। मारपीट के बाद संत यादव का सिर भी मुड़वा दिया गया था। 
कथाकारों की जाति और आचरण अशिष्ट :- 
आयोजन के दौरान कुछ ग्रामीण युवकों ने की जाति और आचरण को लेकर आपत्ति जताई। इन्होंने जाति छिपाकर कथा कही और महिला से छेड़खानी की। आचार्यों ने महिलाओं के साथ अशिष्टता भी की ।
आरोप लगाया गया कि कथावाचकों ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर कथा का आयोजन कराया था ,जबकि वह अन्य जाति से हैं। इसी विवाद ने तूल पकड़ा और कुछ लोगों ने कथावाचकों के साथ मारपीट शुरू कर दी। इतना ही नहीं, उनकी इच्छा के विरुद्ध उनके बाल भी काट दिए गए। इस अमानवीय कृत्य का वीडियो किसी ने बना लिया, जो बाद में सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया।
वीडियो वायरल होने पर पुलिस एक्शन
वीडियो के वायरल होने के बाद क्षेत्र में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई. स्थानीय लोगों और धार्मिक संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा की और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
पुलिस चार आरोपियो को गिरफ्तार किया:- 
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए। सेल ने वायरल वीडियो का संज्ञान लिया और मामले की जांच शुरू की।पीड़ित कथावाचकों की तहरीर पर संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए चार आरोपियों आशीष (21 वर्ष), उत्तम (19 वर्ष), प्रथम उर्फ मनु (24 वर्ष) और निक्की (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया। इनमें निक्की पर कथावाचकों के बाल जबरन काटने का मुख्य आरोप है।
अखिलेश ने कानून व्यवस्था बिगाड़ा:- 
इस मामले पर सियासत भी तेज है। अखिलेश यादव जहां इस मामले में शास्त्र सम्मत बातों को नजरंदाज करते हुए सभी ब्राह्मण समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने अपने कथाकारों को सम्मानित करते हुए बीस बीस हजार रुपए का इनाम भी दिया है।उनके गुंडे क्षेत्र की फिजा खराब करने में लगे हैं। मजबूरी में ब्राह्मण महा सभा को भी इसके बीच में कूदना पड़ा। अब पीड़ित यादव कथाकार ना होकर क्षेत्र की ब्राह्मण जनता हो गई है। जो कानून के दायरे में गुण दोष के हिसाब से कार्यवाही का पक्षधर है। सपा पीडीए के लोग योगी सरकार पर हमले बोल रहे हैं तो वहीं बीजेपी के लोग भी अखिलेश यादव पर हमलावर है। 
कथाकार भी हुए भूमिगत :- 
जब यजमान की पत्नी ने अशिष्टता की शिकायत की तो कथाकारों के पास दो दो आधार कार्ड मिले,जिसे अपनी सुविधा के अनुसार बदल कर वे अपने काम को अंजाम देते थे।प्रशासन के संज्ञान में आते ही इन पर मुकदमे दर्ज हो गए और ये लोग भूमिगत होकर कानूनी कार्यवाही से बचते हुए भागते फिर रहे हैं।
व्यासपीठ का अधिकारी
ब्राह्मण ही होता है:- 
गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित श्री मदभागवत के भाग 1 के महात्म्य भागवत पुराण की महिमा के छठे भागवत सुनने की प्रक्रिया नामक अध्याय के 20 वें और 23वें श्लोक में कथाकार के गुण और चरित्र को स्पष्ट रूप लिखा गया है -
श्लोक-20
विरक्तो वैष्णवो विप्रो 
वेदशास्त्रविशुद्धिकृत्।
दृष्टान्तकुशलो धीरो वक्ता कार्योऽतिनिःस्पृहः ॥
(चुना गया व्याख्याता भगवान विष्णु का उपासक ब्राह्मण होना चाहिए , जिसने संसार का त्याग कर दिया हो, तथा जो वेदों और शास्त्रों के कठिन विषयों को समझाने में सक्षम हो , (विषय को स्पष्ट करने में) उचित उदाहरण देने में निपुण हो, तथा लोभ और लालसा से पूर्णतः मुक्त बुद्धिमान वक्ता हो।)
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। वे सब कुछ जानते हुए अनाधिकार चेष्टा में लगे थे । न तो उन्हें वेद का ज्ञान था ना शास्त्र का। वे लोभी, लालची,कामी और फूहड़ नौटंकी बाज ज्यादा थे।)
श्लोक-21
अनेकधर्मविभ्रान्ताः 
स्त्रैणाः पाखण्डवादिनः। 
शुकशास्त्रकथोच्चारे 
त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः ॥
(जो व्यक्ति स्वयं धर्म के विभिन्न मार्गों से भ्रमित हैं, स्त्रियों में अत्यधिक आसक्त हैं, पाखण्ड को मानते हैं, वे भले ही विद्वान क्यों न हों, भागवत के पाठ के भी अयोग्य हैं।)
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। वायरल वीडियो में उनके 
फिल्मी गानों की पैरोडी उनके इस गुण को लक्षित कर रहे हैं)
श्लोक-22
वक्तुः पार्श्वे सहायार्थमन्यः 
स्थाप्यस्तथाविधः ।
पण्डितः संशयच्छेत्ता 
लोकबोधनतत्परः ।।
( भागवत के) व्याख्याता के साथ तथा उसकी सहायता के लिए , व्याख्याता के समान योग्यता वाला एक अन्य विद्वान ब्राह्मण, जो (श्रोताओं के) संदेहों का समाधान करने में समर्थ हो तथा लोगों को ज्ञान देने में तत्पर हो, को स्थापित करना चाहिए।)
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। उनका सहयोगी भी अपने आचार्य की ही तरह योग्यता में नगण्य रहा)
श्लोक-23
वक्त्रा क्षौरं प्रकर्तव्यं 
दिनादर्वाग्वताप्तये। 
अरुणोदयेऽसौ निर्वर्त्य 
शौचं स्नानं समाचरेत् ॥
(निर्धारित सप्ताह में भागवत का पाठ और व्याख्या करने का) पवित्र व्रत पूरा करने के लिए , (प्रस्तावित) व्याख्याता को पिछले दिन मुंडन करवाना चाहिए। भोर होने पर, उसे अपने सुबह के कामों से निपटकर स्नान करना चाहिए।
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। कथा के पूर्व उनके शिर में पूरे बाल थे। यद्यपि उन्हें अपने परीक्षित की तरह बाल एक दिन पूर्व ही मुड़ा लेना चाहिए।)
अमर किशोर प्रसाद सिंह :- 
श्री अमर किशोर प्रसाद सिंह ने मेरे फेसबुक पृष्ठ पर ब्राह्मण के विद्वता पर जोर देते हुए एक बहुत ही सार्थक टिप्पणी जोड़ी है जिसे मैं यहां साभार उद्धृत कर रहा हूं - 
"ब्रह्म समान जिसका आचरण एवं विचार है, बह ब्राह्मण है। जो श्रोता को संसार से मोह भंग करा कर, भगवान् के चरणों में अनुराग बढ़ा दे, बही व्यासपीठ का अधिकारी है। जो अपनी ही सूरत और जेब चमकाने में लगा है, कथा के पूर्व व्यूटीपार्लर जाना, लट बिखेरना, जो श्रोता के मनोमस्तिस्क अपनी छवि बिठा रहा, बह भगवान् की मूरत हृदय में कहाँ से बिठा पायेगा।"
कानून अपनी सही प्रक्रिया में :- 
जिस तरह से प्रदेश की सरकार ने गंभीरता के साथ कदम उठाया और ऐसे शांति भंग करने वालों को गिरफ्तार किया है । अब निश्चित बात है कि जब कोई बात होती है तो दूसरा दल उसमें राजनीति ढूंढता है ताकि उनको फायदा हो सके। उनकी वोटों का ध्रुवीकरण हो सके ।


Tuesday, July 1, 2025

1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस। डा. राधेश्याम द्विवेदी


राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 1 जुलाई को भारत के लोगों द्वारा मनाया जाता है । भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस एक बड़ा जागरुकता अभियान है जो सभी को मौका देता है डॉक्टरों की भूमिका, महत्व और जिम्मेदारी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के साथ ही साथ चिकित्सीय पेशेवर को इसके नजदीक आने और अपने पेशे की जिम्मेदारी को समर्पण के साथ निभाने के लिये प्रोत्साहित करता है। संपूर्णं चिकित्सीय पेशे के लिये सम्मान प्रकट करने के लिये डॉ बिधान चन्द्र रॉय की याद में इस दिन को मनाया जाता है।
     राष्ट्रीय चिकित्सीय दिवस के रुप में हर वर्ष 1 जुलाई को पहचान और मनाये जाने के लिये 1991 में भारतीय सरकार द्वारा डॉक्टर दिवस की स्थापना हुई थी। भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ बिधान चन्द्र रॉय (डॉ.बी.सी.रॉय) को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिये 1 जुलाई को उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर इसे मनाया जाता है।उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना में हुआ था। रॉय साहब ने अपनी डॉक्टरी की डिग्री कलकत्ता से पूरी की और 1911 में भारत लौटने के बाद अपनी एमआरसीपी और एफआरसीएस की डिग्री लंदन से पूरी की और उसी वर्ष से भारत में एक चिकित्सक के रुप में अपने चिकित्सा जीवन की शुरुआत की। बाद में उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से एक शिक्षक के रुप में जुड़ गये और इसके बाद वो कैंपबेल मेडिकल स्कूल गये और उसके बाद कारमाईकल मेडिकल कॉलेज से जुड़ गये। वो एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे और नामी शिक्षाविद् होने के साथ ही एक स्वतंत्रता सेनानी के रुप में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी से जुड़े। बाद में वो भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेता बने और उसके बाद पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री बने। 4 फरवरी 1961 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। इस दुनिया में अपनी महान सेवा देने के बाद 80 वर्ष की आयु में 1962 में अपने जन्मदिवस के दिन ही उनकी मृत्यु हो गयी। उनको सम्मान और श्रद्धंजलि देने के लिये वर्ष 1976 में उनके नाम पर डॉ.बी.सी. रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार की शुरुआत हुई।
राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस क्यों मनाया जाता है:-
डॉ बिधान चन्द्र रॉय पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री होने के साथ ही प्रसिद्ध और किंवदंती चिकित्सक को सम्मान देने के लिये 1 जुलाई को पूरे भारत भर में हर वर्ष राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस को मनाया जाता है। भारत में ये एक महान रीति है जो अपने महत्वपूर्णं भूमिका और जिम्मेदारी के साथ ही हर एक के जीवन में चिकित्सक की वास्तविक जरुरत को पूरा करने में मदद करती है। डॉक्टर्स की बहुमूल्य सेवा, भूमिका और महत्व के बारे में आम जन को जागरुक करने के लिये इस जागरुकता अभियान का वार्षिक उत्सव मदद करता है। भारत की विशाल जनसंख्या कई तरीकों से चिकित्सक और उनके गुणवत्तापूर्णं उपचार पर निर्भर करती है जो उपाय और उपचार के तरीकों में उल्लेखनीय सुधार और प्रगति को दिखाता है। अपने पेशे की ओर समर्पण की कमी के कारण अपने गिरते करियर से उठने के लिये भारत के सभी डॉक्टर्स के लिये ये एक आँख खोलने वाला और प्रोत्साहन के तरीके के रुप में डॉक्टर्स दिवस का वार्षिक उत्सव साबित हुआ है। कई बार सामान्य और गरीब लोग गैर-जिम्मेदार और गैर-पेशेवर के हाथों में फँस जाते हैं जो कई बार डॉक्टरों के खिलाफ लोगों की हिंसा और विद्रोह का कारण बन जाता है। जीवन बचाने वाले चिकित्सीय पेशे की ओर जिम्मेदारी को समझने के लिये तथा सभी डॉक्टर्स को एक ही जगह पर आकृष्ट करने के लिये ये जागरुकता अभियान एक महान रास्ता है। संपूर्णं पेशेवर डॉक्टरों के लिये सम्मान के दिन के रुप में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस उत्सव को चिन्हित किया जाता है जो मरीजों के जीवन को बचाने में अपना सारा बेहतरीन प्रयास लगा देते हैं। चिकित्सक दिवस अर्थात् एक पूरा दिन जो मेडिकल पेशे खासतौर से डॉक्टरों के प्रयासों और भूमिका को याद करने के लिये समर्पित हो। ये एक दिन है उन्हें ढ़ेर सारा धन्यवाद कहने का जिन्होंने अपने मरीजों का अनमोल ध्यान रखा, उन्हें लगाव और प्यार दिया।
राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे समारोह:- 
चिकित्सकों के योगदान के साथ परिचित होने के लिये सरकारी और गैर-सरकारी स्वास्थ्य सेवा संबंधी संगठन के द्वारा वर्षोँ से राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस उत्सव मनाया जा रहा है। इस उत्सव को मनाने के लिये स्वास्थ्य सेवा संबंधी संगठन के कर्मचारी विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम और क्रियाकलाप आयोजित करते हैं। “उत्तरी कलकत्ता और उत्तर-पूर्व कलकत्ता समाज कल्याण संगठन” चिकित्सक दिवस के भव्य उत्सव को मनाने के लिये हर साल बड़ा कार्यक्रम आयोजित करती है। चिकित्सा पेशे के विभिन्न पहलूओं के बारे चर्चा करने के लिये एक चर्चा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जैसे स्वास्थ्य परीक्षण उपचार, रोकथाम, रोग की पहचान करना, बीमारी का उचित इलाज आदि। बेहतर और स्वस्थ सामाजिक विकास के लिये समुदायों में डॉक्टरों के द्वारा भी चक्रिय चिकित्सा सेवाओं को प्रोत्साहन और बढ़ावा दिया जाता है। आमजनों के बीच में बिना पैसे के गुणवत्तापूर्णं चिकित्सीय सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य देख-भाल संस्थानों के द्वारा सार्वजनिक जगहों और कई स्वास्थ्य केन्द्रों पर मुफ्त चिकित्सीय परीक्षण कैंप लगाए जाते हैं। वरिष्ठ नागरिक और गरीब लोगों के बीच स्वास्थ्य पोषण पर बातचीत और स्थायी बीमारी जागरुकता, स्वास्थ्य परामर्श, स्वास्थ्य स्थिति को आँकने के लिये सामान्य प्रदर्शन टेस्ट कैंप भी आयोजित किये जाते हैं। सभी के जीवन में डॉक्टर के बहुमूल्य भूमिका के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये मुफ्त खून जाँच, आकस्मिक खून सूगर जाँच, इसीजी, इइजी, ब्लड प्रेशर जाँच आदि क्रिया-कलाप आयोजित किये जाते हैं। समर्पित मेडिकल पेशे की ओर ज्यादा युवा विद्यार्थियों को बढ़ावा देने के लिये स्कूल और कॉलेज स्तर पर कुछ गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती है। चिकित्सक मुद्दे पर चर्चा, प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, खेल क्रियाएँ, रचनात्मक ज्ञान के लिये विद्यार्थियों के लिये वैज्ञानिक औजारों का उपयोग, मेडिकल पेशे को मजबूत और ज्यादा जिम्मेदार बनाने के लिये नयी और असरदार शैक्षणिक रणनीतियों को लागू करना। मेल के द्वारा ग्रीटिंग संदेश, उन्हें फूलों का गुच्छा या बुके देकर, इ-कार्ड, सराहना कार्ड, अभिवादन कार्ड वितरण करने के द्वारा 1 जुलाई को मरीज अपने डॉक्टर का अभिवादन करते है। मेडिकल पेशे की ओर डॉक्टर के उस दिन के महत्व और योगदान को याद करने के लिये डॉक्टर्स दिवस के द्वारा घर या नर्सिंग होम पर, अस्पाताल में पार्टी और डीनर स्वास्थ्य केन्द्र पर आयोजित किये जाते हैं, तथा खास सभाएँ होती हैं।
डॉक्टर अपने पेशे से चिंतित :- 
आजकल व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो चुके चिकित्सकों को भी अब अपने पेशे को लेकर चिंता सताने लगी है। हालाँकि इस पेशे में बढ़ती व्यवसायिकता से सीनियर डॉक्टर काफी आहत हैं। लेकिन कुछ ऐसे डॉक्टर भी है जो अभी भी डॉक्टर पेशे के रूप में सेवाभाव जिंदा है। उन्हें फिर पुराने समय के लौटने की उम्मीद है। डॉ. राम शर्मा के अनुसार बीमारी का कारण स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव है। उन्होंने कहा कि बीमारी के इलाज से बेहतर उसका बचाव करना है। इसके लिए सभी ब्लड शुगर व उच्च रक्तचाप की जाँच अनिर्वाय रूप से करानी चाहिए। डॉ. लखन सिंह का कहना है कि पुराने दिनों में हर फील्ड के लोग रुपए कमाने की अंधी दौड़ में शामिल होते थे, लेकिन डॉक्टरी पेशा इससे अछूता था। इसलिए डॉक्टरों को काफी सम्मान मिलता था। वर्तमान में स्थिति कुछ और ही है। इसके अलावा शासकीय सेवा से जुड़े डॉक्टर अभी भी सीमित संसाधनों के बाद भी अपने कर्तव्य को ईमानदारी के साथ पूरा कर रहे हैं। डॉ. पंकज के अनुसार डॉक्टर होना सिर्फ एक काम नहीं है, बल्कि चुनौतीपूर्ण वचनबद्धता है। उन्होंने कहा कि युवा डॉक्टरों को डॉ. बिधानचंद्र राय की तरह जवाबदारी पूरी कर डॉक्टरी पेशे को बदनाम होने से बचाने के लिए पहल करनी होगी। डॉ. सरिता अग्रवाल का कहना है कि यह दिन यह विचार करने के लिए है कि डॉक्टर हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वर्तमान में डॉक्टर पुराने सम्मान को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं। डॉक्टरों को अपनी जवाबदारियों का पालन ईमानदारी से करना सीखना होगा। डॉक्टरों की एक छोटी-सी भूल भी रोगी की जान ले सकती है।
जनता के विश्वास की डोर है डॉक्टर :- 
वर्तमान में डॉक्टरी ही एक ऐसा पेशा है, जिस पर लोग विश्वास करते हैं। इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी डॉक्टरों पर है। डॉक्टर्स डे स्वयं डॉक्टरों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह उन्हें अपने चिकित्सकीय प्रैक्टिस को पुनर्जीवित करने का अवसर देता है। सारे डॉक्टर जब अपने चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत करते हैं तो उनके मन में नैतिकता और जरूरतमंदों की मदद का जज्बा होता है, जिसकी वे कसम भी खाते हैं। इसके बाद कुछ लोग इस विचार से पथभ्रमित होकर अनैतिकता की राह पर चल पड़ते हैं। डॉक्टर्स डे के दिन डॉक्टरों को यह मौका मिलता है कि वे अपने अंतर्मन में झाँके, अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझें और चिकित्सा को पैसा कमाने का पेशा न बनाकर मानवीय सेवा का पेशा बनाएँ, तभी हमारा यह डॉक्टर्स डे मनाना सही साबित होगा। 


Monday, June 30, 2025

बेशर्म राजनीति#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


शायरीइन से उम्मीद न रख 
हैं ये सियासत वाले
ये किसी से भी कहीं 
मोहब्बत नहीं करने वाले।।

सेकुलर के नाम पर 
बहुमत को गाली देने वाले।
अपना उल्लू सीधा करते 
औरों को हलालने वाले।।

ना कोई जाति, ना कोई मज़हब, 
ना कोई धर्म है।
ना समाज, ना कोई इनका 
सामाजिक कर्म है।।

राष्ट्रधर्म था सर्वोपरि
 जिनके लिए वह कोई और थे
आज़ कल के नेताओं की
 राजनीति बहुत बेशर्म है।।

हमारे कुछ इने गुने लोगों की 
करतूत तो देखो।
हर तरफ़ जातिवाद की 
आग सुलगा रखी है।।

और क्या कहें इस देश की 
बेशर्म राजनीति को 
पूरे देश दुनिया की 
बुनियाद हिला रखी है।।

बेशर्म नेताओं की 
बेशर्म राजनीति हो गई ।
इनके हाथों से 
समाज की दुर्गति हो गई ।।

वक्त रहते ही  
सोई जनता को जागना होगा।
जनता को लूटना 
नेताओं की नीति हो गई ।।

बेशर्म राजनीति ने 
समाज को काट छांट दिया
हर वर्ग हर धर्म को 
जाति पातीओ में बांट दिया।।

पढ़े लिखे नहीं 
केवल कहने को डिग्री ले लिया।
बॉयमनस के बीज 
घोलते रहे जिंदगानी जो दिया।।

Thursday, June 26, 2025

69वें जन्म दिवस पर विशेष: आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी ‘नवीन’


नाम राधेश्याम द्विवेदी है मेरा उपनाम 
पुस्तकालय सूचनाधिकारी काम करता।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग मेरा 
आगरा मण्डल से जीवन यापन होता ।।
भारद्वाज गोत्र सरयूपारीय विप्र हूं मै
बुद्ध जन्मस्थली पावन बस्ती में रहता ।।

संक्षिप्त जीवनवृति ;- 
27 जून 1957 ई. को जन्मे डा.राधेश्याम द्विवेदी ने अवध विश्व विद्यालय फैजाबाद से बी.ए.और बी.एड. की डिग्री, गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी), एल.एल.बी.,सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का शास्त्री, साहित्याचार्य, ग्रंथालय विज्ञान की (B.Lib.Sc.) डिग्री तथा “संस्कृतपंच महाकाव्येषु प्रमुख नायिकानाम् चरित्र चित्रणम तुलनात्मकम अध्ययनमच” संस्कृत साहित्य की विद्यावारिधि Ph.D. ) की डिग्री उपार्जित किया है।आगरा विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास से एम.ए.डिग्री तथा ’’बस्ती का पुरातत्व : प्रारंभ से छठी शताब्दी ई तक” विषय पर दूसरी पी.एच.डी. उपार्जित किया। डा. हरी सिंह गौड़ सागर विश्व विद्यालय से पुस्तकालय विज्ञान का मास्टर डिग्री(MLIS) प्राप्त किया।आप बस्ती जिले के न्यायालयों में 1979 से 1987 तक अधिवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं दी। राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं (लेख कहानी कविता और बाल साहित्य) प्रकाशित होती रही। बस्ती से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक ‘अगौना संदेश’ के तथा ‘नवसृजन’ त्रयमासिक का प्रकाशन व संपादन भी किया। 12 मार्च 1987 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वडोदरा/आगरा मण्डल में Asstt. Librarian. Gr 1 तथा 2014 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा मण्डल आगरा में Assistant Library and Information Officer (राजपत्रित)पद पर कार्य कर चुके हैं। 
प्रकाशित कृतिःइन्डेक्स टू एनुवल रिपोर्ट टू द डायरेक्टर जनरलआफ आकाॅलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया” भारत सरकार, 1930-36 (1997) पब्लिस्ड बाई डायरेक्टर जनरल, आकालाजिकल सर्वेआफ इण्डिया, न्यू डेलही। अनेक राष्ट्रीय पोर्टलों में नियमित रिर्पोटिंग कर रहे हैं।
Pravakta.com से सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। Poorvanchalmedia.com में बस्ती जिले के ब्यूरो चीफ के रूप में सफलता पूर्वक कार्य किए। 
Hindimedia.in पर अब भी आप देखे जा सकते हैं।
liveaaryaavatt.com पर अब भी आप की रचनाएं देखी जा सकती हैं।
BNTlive.com पर भी आप नियमित देखे जा सकते हैं। उगता भारत, वॉयस ऑफ बस्ती, विजयदूत आदि के आप नियमित लेखक हैं ।आकाश वाणी गोरखपुर और आगरा से समय समय पर रचनाएं प्रसारित हुई। 
अप्रकाशित रचनाएं:- 
भार्गव वंश का उद्भव तथा भगवान परशुराम की लोक रंजक लीलायें”
22 अध्याय में तथ्य परक ऐतिहासिक विश्लेषण किया गया है।
आगरावली :- 
इस संग्रह में आगरा के स्मारकों को दर्शाती कविताओं की संख्या अभी सात है। ये कविताएं आगरा में सेवा के आखिरी दिनों में लिखी गई है। 
शाश्वत मूल्यों की रचनावली :- 
इस संग्रह में कुल कविताओं की संख्या लगभग 30 है। 
राष्ट्रीय राजनीतिक रचनाएं :- 
इस संग्रह में कुल कविताओं की संख्या लगभग 36 है। 
ग्राम्यालोक :- 
इस संग्रह में कुल कविताओं की संख्या लगभग 17 है। 
श्रृंगारिक नगमे :- 
इस संग्रह में कुल कविताओं की संख्या लगभग 44 है। वियोग शृंगार के 20 रचनाएं हैं।
     इस समय इतिहास के अदभुत रहस्य rsdwivedi.com ब्लॉग पर अपने विचार रखते रहते हैं। स्मृति शेष डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' के “ बस्ती मण्डल के छन्दकार” तृतीय भाग के प्रकाशन की योजना में प्रयत्नरत हैं।
पता स्थाई: ग्राम मरवटिया पाण्डेय, पोस्ट बरहटा थाना कप्तान गंज जिला बस्ती 272131
वर्तमान पता: 8/ 2785,निकट लिटिल फ्लावर स्कूल, आनन्द नगर,कटरा, जिला बस्ती 272001
(मोबाइल नंबर: 8630778321
वर्डसप नम्बर: 9412300183)
(ईमेल: rsdwivediasi@gmail.com)


विश्व के एक विकसित देश पर कुछ छड़िकाएं #आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी



1.समरथ को नहीं दोष गुसाईं ।

सत्य सनातन और पुरातन बात हई 
तुलसी ने मानस रामायण में कहई।
शुभ अरु असुभ सलिल सब बहई।
सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई॥
समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाईं।
रबि पावक सुरसरि की नाईं॥


 2. पिछलग्गू बना बेस बनाता है।

एक समरथी दबदबा बनाने के लिए 
बादशाहत को जबरन बनाता है।
विश्व के दो मतावलंबी देशों में
हथियार सप्लाई कर उकसाता है।
सहायता के नाम पर दबाव डाल
पिछलग्गू बना अपना बेस बनाता है।।


3.फूट डाल हथियार सप्लाये ।

खुद ही कातिल खुद ही मसीहा 
खुद नोबल को लेना चाहे ।
अदभुत है इनकी दरियादिली
फूट डाल हथियार सप्लाये ।
उकसाकर लड़ाई लड़बाएं 
मध्यस्थता का स्वांग रचाये।।




Tuesday, June 24, 2025

भारतीय संसदीय इतिहास के कालेअध्याय के 50 साल#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

आपातकाल क्या है?

यह किसी देश के संविधान या कानून के अंतर्गत कानूनी उपायों और धाराओं को संदर्भित करता है जो सरकार को असाधारण स्थितियों, जैसे युद्ध, विद्रोह या अन्य संकटों, जो देश की स्थिरता, सुरक्षा या संप्रभुता तथा भारत के लोकतंत्र के लिये खतरा पैदा करते हैं, पर त्वरित एवं प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाता है।

50 साल पहले क्या थी परिस्थितियां:- 

मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।

संसद में भारी बहुमत की सरकार रही:- 

1967 और 1971 के बीच, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ ही संसद में भारी बहुमत को अपने नियंत्रण में कर लिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बजाय, प्रधानमंत्री के सचिवालय के भीतर ही केंद्र सरकार की शक्ति को केंद्रित किया गया।

उच्च न्यायालय द्वारा 6 साल के लिए बेदखल :- 

12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप सिद्ध हुए लेकिन आदतन श्रीमती गांधी ने उन्हें स्वीकार न करके न्यायपालिका का उपहास किया । राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था। इंदिरा गांधी जी के अपील पर 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी ।1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचैनी दिखी। यह सब हुआ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 

25 जून 1975 को आपातकाल घोषित:- 

इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 25 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

21 महीने रहा ये काला आपात काल:- 

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी।

आपातकाल की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकता था,:- 

38वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975: इसके द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को न्यायिक समीक्षा से मुक्त कर दिया गया।

प्रेस पर सेंसरशिप:- 

1975 के आपातकाल के दौरान, सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया, राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया, और जबरन नसबंदी जैसे कई मनमाने फैसले लिए। सरकार ने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं पर सेंसरशिप लगा दी, जिससे वे सरकार की आलोचना नहीं कर पा रहे थे. 

गिरफ्तारियां:

सरकार ने राजनीतिक विरोधियों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार कर लिया. राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया, और नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया। यह भारत के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है। 

जबरन नसबंदी:

1976 में, संजय गांधी के नेतृत्व में, सरकार ने बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया, जिसमें लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध देश भर में अनिवार्य पुरुष नसबंदी का आदेश दिया। इस पुरुष नसबंदी के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था। इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी कराई गयी। कार्यक्रम के कार्यान्वयन में संजय गांधी की भूमिका की सटीक सीमा विवादित है। रुखसाना सुल्ताना एक समाजवादी थीं जो संजय गांधी के करीबी सहयोगियों में से एक होने के लिए जानी जाती थींऔर उन्हें पुरानी दिल्ली के मुस्लिम क्षेत्रों में संजय गांधी के नसबंदी अभियान के नेतृत्व में बहुत कुख्याति मिली थी।

संविधान का दुरुपयोग:- 

आपातकाल लगाने के लिए संविधान के कुछ प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया, जिससे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, जिससे सरकार को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के लोगों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की अनुमति मिल गई. 

मीसा और डीआईआर का दुरुपयोग:- 

आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) और रक्षा और आंतरिक सुरक्षा नियम (डीआईआर) जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया गया ताकि लोगों को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार किया जा सके और उन्हें हिरासत में रखा जा सके. 

लोकतंत्र का दमन:- 

आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र को गहरा आघात पहुंचाया और सरकार की आलोचना करने वाली आवाजें दबा दी गईं. आपातकाल के दौरान हुई इन मनमानीयों के कारण, इसे भारत के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है. 


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

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Monday, June 23, 2025

मेजर डा.अभिषेक द्विवेदी के 44वें जन्म दिन पर सस्नेह हार्दिक शुभकामनाएं और आशीर्वाद


तुम पास रहो या दूर रहो 
या अपने कामों में व्यस्त रहो।
हम मात पिता की यादों में 
हर पल तुम ही तुम रहते हो।।
तुम फूलो फलों खुश भी रहो 
मेरी चिन्ता कभी मत करना।
हम सूखे दरख़्त हैं इस युग के 
हमे उसकी मर्जी तक रहना।।
भवसागर पार करे या डुबो दे 
सब अच्छा ही अच्छा करता है।
अब उसका ही सहारा है सबको 
जो जिसको आए करता है।।
तेरी बाग रहे सदा हरी व भरी
तुम सबको छाया फल देते रहना।
जीवन जो कुछ भी मिला तुझे
उसको धन्यवाद देते रहना।।
उस कठिन समय में संघर्ष
कुछ कर्म विशेष करने रहना।
इस दुनिया में कुछ स्थाई नहीं
सत्कर्म में सदैव लगे रहना।।