Friday, November 26, 2021

भागवत प्रसंग (19 ) भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की कथा

श्रीमद्भागवत पुराण की कथा भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की त्रिवेणी है। इस पावन कथा के श्रवण से प्रभु के चरित्र में अनुराग बढने से भक्ति व ज्ञान बढ़ता है और मन सहित दसों इन्द्रियों के नियंत्रण से उत्पन्न वैराग्य से जीवन की त्रिवेणी सहज ही पार कर लेता है। वह माता राधा से भक्ति की प्रेरणा लेकर भगवान कृष्ण की उपासना करें। श्रीकृष्ण जो जीव को सहज ही विषय वासनाओं से हटाकर परमात्मा तत्व की ओर आकर्षित कर लेता है। जैसा कि व्यासजी ने भागवत में वंदना में कहा है - कृष्णम् वन्दे जगत्पते।
कथा व्यास ने भगवद चरित्र की अमृत वर्षा करते हुए कलयुग के आगमन पर भक्ति के तरुणी रूप में आकर अपने पुत्र ज्ञान वैराग्य के बूढ़े अशक्त होने की व्यथा पर नारद मुनि से बिलखने और समाधान का उपाय पूछने के प्रसंग और कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित पर शाप के प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया। 
यहाँ हम जानेगे की – कलयुग की शुरुआत में कैसे मा एमकेता भक्ति तो एक युवती के रूप में है, लेकिन उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य वृद्ध हो गए है। जानने के लिए पढ़ते है। 
द्वापरयुग समाप्त होने के बाद, जब कलयुग का प्रारम्भ हुआ तो पृथ्वी पर चारो तरफ का बातावरण अशांत हो गया था। उस समय नारद ऋषि पृथ्वी का हाल जानने के लिए विचरने लगे। उन्होंने देखा की – बेचारे जीव पृथ्वी पर केवल पेट भरने के लिए जी रहे है। वे सब
असत्यभाषी, मंदबुद्धि, भाग्यहीन, आलसी, और उपदव्री हो गए है। जो साधु संत कहे जाते है वो पाखंडी हो गए है। इसलिए जो वास्तव में साधु संत है उन्हें कंदराओं और हिमालय में छुपना पड़ा है, लोग उन्हें भी हेय की दॄष्टि से देखने लगे है। और तो और कलयुग में लोगो के
सभी घरो में शकुनि की तरह साले सलाहकार बने हुए है। द्वापरयुग में एक शकुनि था पर कलयुग में घर घर शकुनि है जो बहन के घर खाता है। लोग पुत्रियों का विक्रय करने लगे, ब्राह्मण पैसा लेकर वेद पढ़ते है, स्त्रियाँ वैश्यावृति को भी समान कार्य समझती है।
इस तरह नारद ऋषि कलयुग के दोष देखते देखते दुखी हो रहे थे। और वे विचरते विचरते उसी यमुना तट पर पहुंचे जहाँ कभी श्री कृष्ण अपने सखायो के साथ बाल लीला किया करते थे। वहां उन्होंने एक बहुत ही बड़ा आश्चर्य देखा। वहां एक स्त्री बड़े खिन्न मन से बैठी हुयी
है। उसके पास दो वृद्ध पुरुष अचेत अव्स्था में पड़े जोर जोर से साँस ले रहे है। वह तरुणी स्त्री उनकी सेवा करते करते उन पुरुषो को कभी चेतना देना का प्रयास करती तो कभी उनके आगे रोने लगती। वह अपने रक्षक को दसो दिशाओं में बार बार ढूढ़ रही थी। उसके चारोओर
सेकड़ो स्त्रियाँ पंखा झूला रहा थी।
मै यह कौतुहल देखकर उसके पास चला गया, तो वह स्त्री मुझे देखते ही उठ खड़ी हुयी। और व्याकुल होकर बोली।
स्त्री बोली – महात्मन ! जरा रुकिए, और मेरी चिंता को दूर कीजिये। आपका दर्शन मनुष्य को दुर्लभ है, आज आपके दर्शन से कुछ शांति मिली है। आपके वचन सुनकर और भी शांति मिलेगी।
नारद ऋषि का देवी भक्ति से परिचय –
नारद जी कहते है – ये देवी ! आप कौन है ? ये दोनों पुरुष कौन है और ये सभी स्त्रियाँ कौन है ? तुम हमें विस्तार से अपने दुःख का कारण कहो!
स्त्री ने कहा – मेरा नाम भक्ति है। ये ज्ञान और वैराग्य नाम के मेरे पुत्र है। समय के प्रभाव से इनका ये हाल है। और ये देवियाँ सभी पवित्र नदियाँ है। जो मेरी सेवा कर रही है। लेकिन फिर भी मुझे सुख शांति नहीं है। क्युकी घोर कलयुग के प्रभाव से पाखंडियो ने मुझे अंग
भंग कर दिया है। इसी कारण में निर्बल और निस्तेज हो गयी हु और इसी कारण ये हाल मेरे पुत्रो का हुआ है। वृन्दावन ने मुझे फिर से एक स्त्री का रूप दिया है, लेकिन मेरे पुत्र अभी भी बूढ़े है। इसलिए कोई स्थान पर जाना चाहती हु जो इनको भी तेज़ दे सके। क्युकी होना
तो ये चाहिए था की माता बूढी हो और पुत्र तरुण पर यहाँ में तरुण हो गयी और पुत्र वृद्ध है, जो मेरे दुःख का कारण है।
तब नारद ऋषि बोले – साध्वी ! मेने ज्ञान दृष्टि से इस कलयुग में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का हाल जान लिया है। लेकिन तुम्हे विषाद नहीं करना चाहिए। श्री हरी तुम्हारा कल्याण करेंगे। में जानता हु तुम्हारे पुत्रो को इस कलयुग में कोई नहीं पूछता। इसलिए इनका बुढ़ापा
नहीं छूट रहा है। लेकिन इस वृन्दावन में इनको कुछ आत्मसुख मिल रहा है इसलिए ये सोते से जान पड़ते है।
भक्ति ने कहा – हे ऋषिवर! राजा परीक्षित ने इस पापी कलयुग को क्यों पृथ्वी पर स्थान दिया। इसके आते ही सभी वस्तुओं का सार न जाने का लुप्त हो गया। करुणामय श्री हरी से यह अधर्म कैसे देखा जाता है? कृपया संदेह को दूर करे।
नारद जी कहा – देवी सावधान होकर सुनो! यह दारुण कलयुग है। इसी से इस समय सदाचार, योगमार्ग, और तप आदि सभी लुप्त हो गए है। जिसका प्रमुख कारण सत्पुरषो का दुखी होना और दुष्ट सुखी हो रहे है।
ऐसे समय में जिस व्यक्ति के पास धैर्य है वही सबसे बुद्धिमान, ज्ञानी और पंडित है। पृथ्वी अब प्रति वर्ष शेष जी के लिए अब भार बन रही है। अब यह छूने योग्य तो क्या अब यह देखने योग्य भी नहीं रह गयी है। अब किसी को पुत्रो के साथ तुम्हारा दर्शन नहीं होता। मनुस्यो से उपेक्षित होकर तुम्हारा ये हाल है। वृन्दावन के सयोग से तुम फिर से तरुणी हो गयी हो, अतः यह वृन्दावन धाम धन्य है। जहाँ कण कण में भक्ति नृत्य कर रही है।
परन्तु तुम्हारा इन पुत्रो को यहाँ भी कोई ग्राहक नहीं है। इसलिए इनका बुढ़ापा नहीं छूट रहा है। यह तो इस युग का स्वाभाव ही है इसमें किसी का दोष नहीं है। इसी से श्री हरि भगवान् सब कुछ देखकर भी सब सह रहे है।
भक्ति ने कहा – पुत्रो की यह दशा जानकर बड़ा दुःख हुआ की कलयुग में अब लोग ज्ञान और वैराग्य को नहीं चाहते। इसलिए मेरे पुत्रो की यह दशा है वे वृद्ध है और में युवती।
देवर्षि आप धन्य है ! मेरा बड़ा सौभाग्य था की आपके दर्शन हुए। संसार में साधुओं का दर्शन बड़े भाग्य से होता है। अब मुझे कुछ शांति मिली है। आप सर्वमंगलमय ब्रह्मा जी के पुत्र है। में आपको नमस्कार करती हु।
                         (क्रमशः कड़ी 20 जारी )


भागवत प्रसंग (18) भक्ति का दुःख दूर करने के लिए नारद ऋषि का प्रयत्न

श्रीमदभागवत जी के महात्म के द्वितीय अध्याय में भगवान के परमप्रिय भक्त नारद जी नें भक्ति के कष्टों से निवारण के लिये जो प्रयास अथवा उद्योग किये उनका वर्णन है, अब तक की कथा इस प्रकार थी कि नारद जी जो परमात्मा का कीर्तन करते हुए समस्त लोकों में भृमण किया करते हैं वो नारद जी प्रथ्वी लोक में पहुंचते हैं और प्रथ्वी जहां युग परिवर्तित हो चुका था अर्थात द्वापर समाप्त हो चुका था और कलियुग का प्रारम्भ हो चुका था नारद जी पृथ्वी पर परिवर्तित स्थितियों से व्यथित हो गये, उन्होने देखा कि पृथ्वी पर अधर्म बढ चुका था मनुष्य भौतिकता से गृसित होकर सिर्फ़ भोग में आसक्ति से लिप्त हो चुका था, इन्द्रियों के आधीन होकर मनुष्य निकृष्ट से नीकृष्ट कर्म करने में आतुर था I 
नारद जी भृमण करते करते वृन्दावन पहुंच जाते हैं वहां वो भक्ति तथा उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य की दयनीय स्थिति देखते हैं और उनकी वार्ता भक्ति से होती है जो अपनी सारी व्यथा से उनको अवगत कराती है, नारद जी भक्ति से सब जान कर तथा ज्ञान और वैराग्य नामक उसके बेटों को मूर्छित तथा बृद्ध देखकर भक्ति से कहते हैं, "देवी तुम तो परमात्मा को परम प्रिय हो फ़िर तुम क्यों अपनी परिस्थिति से घबरा रही हो, क्या परमात्मा पर तुम्हें भरोशा नहीं रहा जो तुम इतनी चिन्तित और अधीर हो रही हो I तुम चिन्ता से मुक्त होकर भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों का चिन्तन करो I
यहां बहुत ही सावधानी पूर्वक इस बात को समझने की आव्श्यकता है कि नारद जी जो भक्ति मार्ग के परम आचार्य हैं ध्रुव और प्रहलाद जी के मार्गदर्शक हैं और उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यहां भक्ति के सम्मुख नारद जी एक परम रहस्य उद्घाटित कर रहे हैं कह रहे हैं, "जगत की चिन्ता छोड़ जगदीश श्रीकृष्ण का चिन्तन करना चाहिये I
नारद जी भक्ति से कह रहे हैं कि परमात्मा श्रीकृष्ण जिन्होने कौरवों के अत्याचारों से द्रोपदी की रक्षा की थी तथा गोपसुन्दरियों के प्रेम में उन्हें सनाथ किया था, देवी तुम तो भक्ति हो परमात्मा कृष्ण की अत्यन्त प्रिय हो वो तो अपने भक्त के प्रेम में नीच से नीच जगह पर भी चले जाते हैं I
नारद जी बोले देवी सतयुग, त्रेतायुग तथा द्वापर युग में ज्ञान और वैराग्य ही मुक्ति के साधन थे अर्थात इन तीनों युगों में मनुष्य ज्ञान और वैराग्य के माध्यम से मुक्ति अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर पाता था, परन्तु देवी आज इस कलियुग में सिर्फ़ परमात्मा की प्रेमा भक्ति ही मनुष्य को मोक्ष प्रदान कर सकती है, देवी आज इस कलियुग में सिर्फ़ तुम ही एक माध्यम हो मनुष्यों के मोक्ष प्राप्ति की इसी कारण परमात्मा ने तुम्हें अपने सत्य स्वरूप से निर्मित किया है, देवी तुम तो परमात्मा श्रीकृष्ण की परमप्रिय हो, देवी याद करो एक बार तुमने भगवान श्रीकृष्ण से पूचा था कि क्या करूं तो परमात्मा श्रीकृष्ण ने तुम्हे आदेश दिया था कि मेरे भक्तों का पोषण करो और देवी तुमने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा को स्वीकार कर लिया इससे भगवान तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हुए और भगवान ने मुक्ति को तुम्हारी सेवा के लिये एक दासी के रूप में नियुक्त किया और ज्ञान - वैराग्य तुम्हे पुत्र के रूप में प्रदान किये थे I तभी से हे देवी तुम अपने साक्षात स्वरूम में परमात्मा के वैकुण्ठ लोक में उनके भक्तों का पोषण करती हो इस धरती तो तो तुम मात्र भक्तों की पुष्टि के लिये छाया रूप में हो I
हे देवी तुम मुक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य के संग इस धरती पर सतयुग, त्रेता तथा द्वापरयुग में आनन्द पूर्वक रही परन्तु कलयुग के कारण तुम्हारी दासी मुक्ति दम्भ और पाखंड से गृसित हो गई जिसे तुमने स्वयं आज्ञा देकर वैकुण्ठ भेज दिया, आज भी तुम्हारी दासी मुक्ति इस धरती पर तुम्हारे स्मरण करने से आती है और चली जाती है, परन्तु तुमने अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य को आज भी अपने पास रख रखा है, आज कलयुग में तुम्हारे पुत्रों की उपेक्षा हो रही है जिससे उत्साहहीन हो गये हैं तथा इनकी शक्ति क्षीण हो गई है और ये बृद्ध से हो गये हैं परन्तु हे देवी तुम चिन्तित मत हो मैं तुम्हारे पुत्रों की पुष्टि के लिये उपाय का विचार करता हुं I
नारद जी ने पुनः भक्ति को सम्बोधित करते हुए कहा, "ये देवी कलि अत्यन्त महत्वपूर्ण युग है इसके समान कोई भी युग नहीं था, इस युग में मैं तुम्हें प्रत्येक मनुष्य के हृदय में स्थापित कर दुंगा और इस कलियुग में पापी भी यदि भक्ति करेंगे तो उन्हें भी परमात्मा की कृपा प्राप्ति होगी और वह भी वैकुण्ठ प्राप्त कर सकेंगे I जिनके हृदय में प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करेगी वे शुद्ध हृदय और शुद्ध अन्तःकरण वाले हो जायेंगे, ऐसे व्यक्ति स्वप्न में भी यमराज से भयभीत नहीं होते, जिनके हृदय में परमात्मा श्री कृष्ण की प्रेमाभक्ति होती है उन्हें भूत प्रेत पिशाच निशाचर आदि स्पर्श भी नहीं कर सकते I परमात्मा को कलियुग में यज्ञ, तप, वेदाध्यन, ज्ञान तथा कर्म से प्रसन्न नहीं किया जा सकता अपितु प्रेम भक्ति से परमात्मा को वश में किया जा सकता है, गोपियां इसका स्पष्ट प्रमाण हैं, शास्त्रों में प्रमाण है कि भक्त का तिरस्कार करने से ऋषि दुर्वासा को कष्ट भोगना पड़ा था I परमात्मा स्वयं कहते हैं, "मैं अपने भक्त के आधीन हुं" इसलिये व्रत, तीर्थ, योग, यज्ञ, और ज्ञानचर्चा आदि की आवश्यकता नहीं है सिर्फ़ एक मात्र भक्ति ही मुक्ति प्रदायनी है I
सूत जी शौनकादि से कह रहे हैं कि नारद के मुख से भक्ति की चर्चा सुनकर भक्ति के समस्त अंग पुनः पुष्ट हो गये, वो बिल्कुल स्वस्थ और युवा सी दिखने लगी और भक्ति ने नारद जी से कहना प्रारम्भ किया, "हे नारद जी आप परमात्मा के परम भक्त हैं और आपकी मुझमें अर्थात भक्ति में अनन्य प्रेम हैं आप अत्यंन्त कृपालू हैं आपने मेंरा समस्त दुःख क्षण मात्र में दूर कर दिया परन्तु महाराज मेरे पुत्र ज्ञान और वैराग्य अभी भी अचेत हैं मेरा आपसे पुनः निवेदन है आप इनकी चेतना के लिये प्रयास करें I 
भक्ति के इस प्रकार के वचनों को सुनकर नारद जी करुणा से भर गये उन्होने भक्ति के पुत्रों को अपने हांथ से हिलाडुला कर जगाने का प्रयास किया उन्हें वेदपाठ सुनाया, बार बार गीता पाठ भी किया, किन्तु ज्ञान और वैराग्य सिर्फ़ मात्र जम्हाई ही ले सके उन्होने अपने नेत्र तक नहीं खोले I
निरन्तर अचेत रहने के कारण वो दोनो अत्यंन्त दुर्बल हो गये थे उनकी दयनीय दशा देखकर नारद जी अत्यंन्त दुखी हुए और उन्हेने परमात्मा का स्मरण कर उनसे ज्ञान और वैराग्य के पुनरुद्धार के लिये निवेदन किया I
परमात्मा को नारद जी अत्यंन्त प्रिय हैं और प्रिय इसलिये हैं कि नारद जी सदैव दूसरों के कल्याण के लिये प्रयासरत रहते हैं दूसरों के लिये दया और करूणा के भाव से भरे रहते हैं, इसलिये परमात्मा ने नारद जी आकाशवाणी के माध्यम से कहा, "इनके कल्याण के लिये तुम एक सत्कर्म करों और वह सत्कर्म तुम्हे संतशिरोमणि बतलाएंगे"
आकाशवाणी सुनने के पश्चात नारद जी अत्यन्त दुबिधा में पड़ गये कारण यह कि उन्हें आकाशवाणी की बात स्पष्ट समझ में नहीं आई, नारद जी सोच में पड़ गये कि उन्हें वह सत्कर्म बताने वाले संतशिरोमणि कहां मिलेंगे I
इसके बाद नारद जी ज्ञान वैराग्य को अचेत अवस्था में छोड़ कर चल पड़्ते हैं और संतशिरोमणि की खोज में समस्त त्तीर्थों पर भृमण करते हैं परन्तु उन्हे ऐसा कोई संत नहीं मिला जो ज्ञान वैराग्य के कल्याण के लिये सत्कर्म बता पाता, नारद जी अत्यंन्त चिंन्तित थे और वो बद्रिकाश्रम गये वहां उन्हेने तप करने का निश्चय किया I तभी नारद जी वहां अत्यंन्त तेजश्वी सनकादि मुनिश्वर दिखाई दिये, सनादिमुनि देखने में पांच-पांच वर्ष के बालक से प्रतिक होते थे परन्तु वे परम ज्ञानी और परम तपश्वी थे, नारद जी ने उन्हें देख उनसे निवेदन किया, "हे महात्माओं मेरा परम सौभाग्य उदय हुआ है जिसके फ़लस्वरूप आप लोगों के दर्शन मुझे सुलभ हुए हैं, और नारद जी ने आकाशवाणी का पुण वृत्तंन्त उन्हें कह सुनाया, और बोले ये महात्माओं मैं आपके श्रीमुख से उस सत्कर्म के विषय में जानना चाहता हुं जिससे ज्ञान वैराग्य और भक्ति का कल्याण हो सके तथा जिससे सभी वर्णों में भक्ति की प्रतिष्ठा भी हो सके"
नारद जी वचनों को सुनकर सनकादि मुनियों ने कहा, "हे देवर्षि नारद, आप प्रसन्न हों चिन्ता से मुक्त रहें आपने दूसरों के उद्धार के हेतु से जिस सत्कर्म को जानने की इच्छा प्रकट वह एक सरल उपाय है और पूर्व ही विद्यमान है, आप तो संत शिरोमणि हैं विरक्तों में सूर्य के समान हैं, हे नारद जी, ऋषियों ने पूर्व से ही अत्यन्त मार्ग बताए हुए जो सिर्फ़ स्वर्ग मात्र की प्राप्ति कराते हैं अर्थात सभी साधन सिर्फ़ भोग की प्राप्ति तक सीमित हैं परन्तु परमात्मा की प्राप्ति जिस सत्कार्म से होती है वह गुप्त है और उसे आपके परम स्नेह के कारण हम बतलाते हैं आप प्रसन्न भाव से श्रवण करें I
सनकादि ने कहा. "नारद जी इस धरती पर जितने भी यज्ञ आदि अनुष्ठान लोग करते हैं वो सभी स्वर्ग अर्थात भोग की प्राप्तिका साधन मात्र हैं जैसे द्रव्य यज्ञ अर्थात धन द्वारा किये जाने वाल यज्ञ, तप यज्ञ, योग यज्ञ तथा स्वाध्याय ध्यान समाधि आदि ये सभी सिर्फ़ स्वर्ग आदि की उपलब्धि करा सकतेहैं श्री मदभागवत जी का पारायण अर्थात पाठ, श्रवण आदि से मनुष्य में भक्ति प्रगाढ होती है ज्ञान और वैराग्य की पुष्टि होती है, जिस प्रकार सिंह की गर्जना सुनकर लोमड़ी- भेड़िये आदि भाग जाते है उसी तरह कलियुग में भागवत जी सानिध्य में रहने वालों के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं I यहां एक बात स्पष्ट करना अत्यंन्त आवश्यक है, कि भागवत की का पाठ करने श्रवण करने तथा मनन करने से मनुष्य के हृदय में परमात्मा श्री कृष्ण के लिये भावभक्ति का प्रागट्य होता है और मनुष्य का पूर्ण प्रेम परमात्मा कृष्ण के प्रति हो जाता है वह निरन्तर परमात्मा कृष्ण के चिंतन में रहते हुए जीवन जीने लगता है, धीरे धीरे ज्ञान और वैराग्य उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं I
श्री मद्भागवत जी की कथा समस्त वेद-पुराण आदि के सार से निर्मित है जिस तरह फ़ल के अन्दर से प्राप्त होने वाला रस उस वृक्ष की जड़ से प्रारम्भ होकर तनों और डालियों के माध्यम से होता हुआ फ़ल में जाता है और फ़ल में जाकर वह रसता अथवा मधुरता को प्राप्त हो जाता है, परन्तु जड़ और तनों में मैजूद रस फ़ल के रस से मिन्न होता है उसी तरह समस्त वेद और पुराणादि वृक्ष के जड़ तनों आदि से हैं और भागवत जी उस मधुर फ़ल के समान हैं I
जिस तरह दूध में घी रहता है परन्तु दूध में घी का स्वाद अनुभव नहीं होता है, एक निश्चित और जटिल प्रक्रिया के पश्चात ही दूध से घी प्राप्त हो पाता है, जिस प्रकार चीनी गन्ने के अन्दर तो रहती है परन्तु एक प्रक्रिया के पश्चात ही चीनी ना निर्माण गन्ने के रस द्वारा ही किया जा सकता है श्रीमदभागवत जी समस्त वेदों और पुराणों के मूल तत्व द्वारा निर्मित घी अथवा शर्करा के समान हैं I
पूर्व काल का वृत्तांन्त है कि गीता- पुराणादि के रचनाकार श्री वेदाव्यास जी स्वयं महान गृन्थों की रचना करने के पश्चात भी संतुष्ट नहीं थे उनके अन्दर खिन्नता थी तथा अज्ञानता से दुखित थे उस समय नारद जी आपने स्वयं व्यास जी को चार श्लोकों के माध्यम से मार्गदर्शित किया था उन्हें आपने ही उपदेश दिया था जिसके सुनते ही व्यास जी चुन्तामुक्त हो गये थे, नारद जी श्री मदभागवत जी का श्रवण समस्त दुखों और शोकों से मुक्ति प्रदान कराने वाला है अतः आप उन्हें अर्थात ज्ञान वैराग्य को श्रीमदभागवत जी का श्रवण कराएं, जिसके श्रवण करने से अज्ञान रूपी मोह और मद का नाश होता है तथा वैराग्य प्रकट होता है ज्ञान और वैराग्य श्रीमदभागवत जी के श्रवण से पुनः पुष्ट होंगे I
                       ( क्रमशः कड़ी 19 जारी )


भागवत प्रसंग (17 ) धुंधुकारी और गोकर्ण के जन्म की कथा

प्राचीन काल में तुंगभद्रा नदी के तटपर बसे एक सुन्दर नगर में आत्मदेव नाम का एक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। उसका विवाह धुंधुली नामक एक उच्च कुल की सुन्दर कन्या से हुआ था। ‘विष रस भरा कनक घट जैसे’ की उक्ति को चरितार्थ करने वाली धुंधुली जितनी ही सुन्दर थी, उसका स्वभाव उतना ही दुष्ट, लोभी, ईर्ष्यालु व क्रूर था। कलहकारिणी पत्नी के साथ रहकर भी आत्मदेव अपनी गृहस्थी सन्तोषपूर्वक चला रहे थे। किन्तु विवाह के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी इस दम्पति को कोई सन्तान नहीं हुई। इसके लिए किये गये सभी उद्यम, यज्ञ- अनुष्ठान, व पुण्य-कर्म निष्फल रहे। अन्ततः हताश होकर प्राणत्याग की मंशा से आत्मदेव ने अपना घर छोड़ दिया।
अज्ञात दिशा में जा रहे आत्मदेव को मार्ग में एक सरोवर मिला। उसी के तटपर व्यथित हृदय बैठ गये। तभी एक तेजस्वी सन्यासी वहाँ से गुजर रहे थे। आत्मदेव को इसप्रकार दुःखी देखकर उन्होनें चिन्ता का कारण पूछा। आत्मदेव ने अपनी एकमात्र चिन्ता को सविस्तार बताया तो उस योगनिष्ठ तेजस्वी सन्यासी ने उसके ललाट को देखकर बताया कि – “निश्चित रूप से तुम्हारे मस्तक की रेखाएं बताती हैं कि तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार तुम्हें सन्तान की प्राप्ति नहीं हो सकती।इसलिए यह विचार छोड़कर सन्तोष कर लो, और भगवत् भजन करो।”
आत्मदेव ने जब हठपूर्वक यह कहा कि बिना सन्तान के जीवित रहने की उसे कोई इच्छा नहीं है तो उस तेजमय सन्यासी ने दयावश उसे एक दिव्य फल दिया और उसे पत्नी को खिला देने का निर्देश देकर चले गये।
आत्मदेव घर लौट आये और सारी कहानी बताकर वह फल पत्नी को खाने के लिए दे दिया; किन्तु उस दुष्टा ने सन्तानोत्पत्ति में होने वाले शारीरिक कष्ट, और उसके बाद पालन-पोषण की भारी जिम्मेदारी से बचने के लिए उस फल को खाने के बजाय कहीं छिपा दिया और आत्मदेव से झूठ में कह दिया कि उसने फल खा लिया है।
कुछ दिनों बाद धुंधुली की बहन मृदुली उससे मिलने आयी। हाल-चाल बताने में धुंधुली ने अपने झूठ के बारे में उसे बता दिया और भेद खुलने की चिन्ता भी व्यक्त करने लगी।
मृदुली ने अपनी बहन को चिन्तित देखकर एक योजना बना डाली। उसने कहा कि वह अपने गर्भ में पल रहे शिशु के पैदा होने के बाद उसे सौंप देगी। उस समय तक धुंधुली गर्भवती होने का स्वांग करती रहे। घर के भीतर पर्दे में रहते हुए ऐसा करना बहुत कठिन तो था नहीं। यह भी तय किया गया कि मृदुली अपने प्रसव के बारे में यह बता देगी कि जन्म के बाद ही उसका पुत्र मर गया।
योजना पर सहमति बन जाने के बाद मृदुली ने यह भी सलाह दिया कि उस दिव्य फल को तत्काल गोशाला में जाकर किसी गाय को खिला दिया जाय ताकि गलती से भी वह किसी के हाथ न लगे।
उसके बाद योजना के मुताबिक ही सबकुछ किया गया। मृदुली ने पुत्र-जन्म के तुरन्त बाद उसे अपने पति के हाथों ही धुंधुली के पास भेंज दिया और इधर उसकी मृत्यु हो जाने की सूचना फैला दी।
अपने घर में पुत्र के जन्म का समाचार पाकर आत्मदेव परम प्रसन्न हो गए और अन्न-धन इत्यादि का दान करने लगे। एक दिन धुंधुली ने अपनी दुर्बलता और खराब स्वास्थ्य, तथा अपनी सद्यःप्रसूता बहन के पुत्रशोक की कहानी एक साथ सुनाकर योजना के मुताबिक उसे घर बुलाने की मांग रख दी। आत्मदेव के समक्ष एक ओर बीमार और कमजोर पत्नी से उत्पन्न पुत्र को न मिल पाने वाला अमृत-तुल्य मातृ-सुख था तो दूसरी ओर पुत्र शोक में डूबी मृदुली का अतृप्त मात्रृत्व था। उन्हें पत्नी की मांग सहज ही उचित लगी और वे मृदुली को बुलाने स्वयं चले गये।
आत्मदेव ने मृदुली के घर जाकर अपने पुत्र के पालन-पोषण के लिए मृदुली को साथ ले जाने की याचना की। वह तो मानो तैयार ही बैठी थी। आत्मदेव का अनुरोध सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। मृदुली पुत्र का पालन पोषण करने आत्मदेव के साथ धुंधुली के पास आ गयी। बालक का नाम धुंधुली के नाम पर धुंधुकारी रखा गया।
उधर जिस गाय को वह दिव्य फल खिलाया गया था, उसके पेट से एक दिव्य बालक का जन्म हुआ जो अत्यन्त तेजस्वी था। आत्मदेव उस श्वेतवर्ण के बालक को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा स्वयं उसके पालन-पोषण का निश्चय किया। बालक के कान गाय के समान देखकर उसका नाम गोकर्ण रख दिया गया।इस प्रकार दोनो बालक एक ही साथ पाले गये। बड़ा होने पर एक ही साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल भेंजे गये; लेकिन वहाँ दोनो के संस्कार विपरीत दिशाओं में प्रस्फुटित हुए। विलक्षण प्रतिभा का धनी गोकर्ण गुरुकुल में अनुशासित रहकर वेदों और शास्त्रों का अध्ययन करते हुए परम ज्ञानी और तत्ववेत्ता बन गया; जबकि बुरे संस्कारों से उद्भूत धुंधुकारी अपनी उद्दण्डता और तामसिक प्रवृत्तियों के कारण निरन्तर अज्ञान के अन्धकार में समाता चला गया।
धुंधुकारी की मुक्ति कथा:-
भागवत कथा को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करने से जन्म जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है। श्रीमद भागवत कथा के श्रवण से महापापी का भी उद्धार हो गया। कथा व्यास ने बताया कि धुंधुकारी अति दुष्ट था। उसके पिता आत्मदेव भी उसके उत्पातों से दुखी होकर वन में चले गए थे। धुंधुकारी वेश्याओं के साथ रहकर भोगों में डूब गया और एक दिन उन्हीं के द्वारा मार डाला गया। अपने कुकर्मों के फलस्वरूप वह प्रेत बन गया और भूख प्यास से व्याकुल रहने लगा। एक दिन व्याकुल धुंधुकारी अपने भाई गोकर्ण के पास पहुंचा और संकेत रूप में अपनी व्यथा सुनाकर उससे सहायता की याचना की। इसलिए धुंधुकारी की मुक्ति के लिए गया श्राद्ध पहले ही कर चुके थे। लेकिन इस समय प्रेत रूप में धुंधुकारी को पाकर गया श्राद्ध की निष्फलता देख उन्होंने पुन: विचार विमर्श किया। अंत में स्वयं सूर्य नारायण ने गोकर्ण को निर्देश दिया कि श्रीमद्भागवत का पारायण कीजिए। उसका श्रवण मनन करने से ही मुक्ति होगी। श्रीमद् भागवत का पारायण हुआ। गोकर्ण वक्ता बने और धुंधुकारी ने वायु रूप होने के कारण एक सात गांठों वाले बांस के भीतर बैठकर कथा का श्रवण मनन किया। 
भागवत कथा में बांस की स्थापना :-
जब महात्मा गोकर्ण जी ने महाप्रेत धुंधुकारी के उद्धार के लिए श्रीमद् भागवत की कथा सुनायी थी, तक धुंधुकारी के बैठने के लिए कोई बांस की अलग से व्यवस्था नहीं की थी । बल्कि उसके बैठने के लिए एक सामान्य आसान ही बिछाया गया था ।महात्मा गोकर्ण जी ने धुंधुकारी का आह्वान किया और कहा -
"भैया धुंधुकारी ! आप जहाँ कहीं भी हों, आ करके इस आसान पर बैठ जाईये । यह भागवत जी की परम् पवित्र कथा विशेषकर तेरे लिए ही हो रही है । इसको सुनकर तुम इस प्रेत योनि से मुक्त हो जाओगे ।
 अब धुंधुकारी का कोई शरीर तो था नहीं, जो आसन पर स्थिर रहकर भागवत जी की कथा सुन पाते । वह जब जब आसन पर बैठने लगता, हवा का कोई झोंका आता और उसे कहीं दूर उड़ाकर ले जाता । ऐसा उसके साथ बार-बार हुआ ।वह सोचने
लगा कि ऐसा क्या किया जाये कि मुझे हवा उड़ा ना पाए और मैं सात दिन तक एक स्थान पर बैठकर भागवत जी की मंगलमयी कथा सुन पाऊँ, जिससे मेरा उद्धार हो जाये और मेरी मुक्ति हो जाये । वह सोचने लगा कि मेरे तो अब माता-पिता भी नहीं हैं, जिनके भीतर प्रवेश करके या उनके माध्यम से मैं कथा
सुन पाता । वो भी मेरे ही कारण मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं ।मेरे परिवार का तो कोई सदस्य भी नहीं बचा, जिनके माध्यम से मैं भागवत जी की मोक्षदायिनीकथा सुन पाऊँ । अब तो सिर्फ मेरे सौतेले भाई महात्मा गोकर्ण ही बचे हैं । जिनका जन्म गऊ माता के गर्भ से हुआ है । लेकिन उनके अन्दर मैं कैसे प्रवेश कर सकता हूँ, क्योंकि वो तो पवित्र व्यास पीठ पर बैठकर मुझे
परमात्मा की अमृतमयी कथा सुनाने के लिए उपस्थित हैं ।वह धुंधुकारी महाप्रेत ऐसा विचार कर ही रहा था कि उसने देखा जहाँ व्यास मंच बना हुआ है, वहाँ बांस का एक बगीचा भी है और उसकी नजर एक सात पोरी के बांस पर पड़ी । यह सोचकर कि बांस में हवा का प्रकोप नहीं होगा, सो वह बांस के अन्दर प्रवेश कर गया और बांस की पहली पोरी में जाकर बैठ गया ।पहले
दिन की कथा के प्रभाव से बांस की पहली पोरी चटक गयी । धुंधुकारी दूसरी पोरी में जाकर बैठ गया । दूसरे दिन की कथा के प्रभाव से दूसरी पोरी चटक गयी । धुंधुकारी तीसरी पोरी में जाकर बैठ गया । ऐसे ही प्रतिदिन की कथा के प्रभाव से क्रमशः बांस की एक-एक पोरी चटकती चली गयीऔर जब अन्तिम सातवें दिन की कथा चल रही थी तो धुंधुकारी महाप्रेत भी अन्तिम सातवीं पोरी में ही बैठा हुआ था । अब जैसे ही अन्तिम सातवें दिन भागवत जी की कथा का पूर्ण विश्राम हुआ तो बांस बीच में से दो फाड़ हो गया और धुंधुकारी महाप्रेत देवताओं के समान शरीर धारण करके प्रकट हो गया ।उसने हाथ जोड़कर बड़े ही विनय भाव से महात्मा गोकर्ण जी का धन्यवाद किया
और कहा - "भैया जी ! मैं आपका शुक्रिया किन शब्दों में करुँ ? मेरे पास तो शब्द भी नहीं हैं । आपने जो परमात्मा की मंगलमयी पवित्र कथा सुनाई, देखो उस महाभयंकर महाप्रेत योनि से मैं मुक्त हो गया हूँऔर मुझे अब देव योनि प्राप्त हो गयी है । आपको मेरा बारम्बार प्रणाम् तभी सबके देखते-देखते धुंधुकारी के लिए भगवान के धाम से सुन्दर विमान आया और धुंधुकारी विमान में बैठकर भगवान के धाम को चले गए ।सही मायने में सात पोरी का बांस और कुछ नहीं, हमारा अपना शरीर ही है । हमारे शरीर में मुख्य सात चक्र हैं ।मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहद चक्र,विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र ।यदि किसी योग्य गुरु के सानिध्य में रहकर प्राणायाम का अभ्यास करते हुए मनोयोग से सात दिन की कथा सुनें तो उसको आत्म ज्ञान प्राप्त हो जाता है और उसकी कुण्डलिनी शक्ति पूर्णरुप से जागृत हो जाती है । इसमें कोई शक नहीं है । यह सात पोरी का बांस हमारा ही शरीर है। इसी प्रकार भागवत कथा में सात दिनों में एक-एक करके बांस की सातों गांठे फट गईं। धुंधुकारी भागवत के श्रवण मनन से सात दिनों में सात गांठे फोड़कर, पवित्र होकर, प्रेत योनि से मुक्त होकर भगवान के वैकुंठ धाम में चला गया।
                  ( क्रमशः कड़ी 18 जारी)

Thursday, November 25, 2021

महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज( कैली )बस्ती में डा. सौरभ द्विवेदी द्वारा प्रथम बार चमत्कारिक एलआरएस सर्जरी सम्पन्न

बस्ती। महसों के 40 वर्षीय युवक लल्लू का पैर चोट लगने से दो साल पहले खराब हो गया था। बस्ती के अनेक स्थानों पर कई सर्जरी कराने से यह ठीक नहीं हुआ। जब कैली महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कालेज बस्ती के युवा सर्जन डा. सौरभ द्विवेदी को पता चला तो उन्होंने इलीजारो रसियन टेक्नालॉजी से लिंब रीकांसट्रेक्सन सर्जरी( अंग पुनर्निर्माण सर्जरी ) सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। जो इस कालेज में प्रथम बार हुई है। रोगी को प्रधानमंत्री द्वारा संचालित आयुष्मान भारत योजना का लाभ उपलब्ध कराया गया है।इस उपचार में खराब अंग का सुधार और पुनः संरचना भी होती है। अगर अंग छोटा हो जाता है तो उसे पुनः पूर्ववत निर्मितकर बढ़ाया भी जाता है।

प्रमुख प्रक्रियाएं और सामान्य जानकारी :
‌यह शरीर के अंग के कार्य को बहाल करने के लिए की
‌जाने वाली एक प्रक्रिया है जिसे चोट, सर्जरी, चिकित्सा स्थिति, जन्म दोष या आघात के कारण काम करना बंद कर दिया गया है। सिर से पैर की अंगुली तक, इसका उपयोग कई प्रकार की स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है। सर्जरी प्रभावित शरीर के अंगों के कार्य को बहाल करने के बारे में है। ये सर्जरी मुख्य रूप से ऊतक को शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में स्थानांतरित करके क्षति को ठीक करने में मदद करती है।
पुनर्निर्माण सर्जरी के प्रकार:-
विभिन्न प्रकार की पुनर्संरचनात्मक सर्जरी से व्यक्ति को उस समस्या को सुधारने में मदद मिल सकती है जिससे वे पीड़ित हो सकते हैं।
1.पैरों और हाथों के लिए सर्जरी
हाथ और पैर दैनिक गतिविधि के लिए महत्वपूर्ण हैं और प्रत्येक रोगी के लिए सामान्य कार्य की बहाली महत्वपूर्ण है। यह सर्जरी आघात, ट्यूमर, जाल की उंगलियों या उंगलियों या जन्मजात असामान्यताओं के मामले में की जाती है।
2.घाव की देखभाल
यह सर्जरी उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो गंभीर रूप से जल गए हैं या कट गए हैं। यदि घाव गंभीर है, तो मरीज को पुनर्निर्माण सर्जरी से पहले मलबे (मृत ऊतक को हटाने) से गुजरना पड़ता है। मलबे के बाद, पुनर्निर्माण प्रक्रियाएं जैसे त्वचा ड्राफ्ट, आदि का प्रदर्शन किया जाता है।
पुनर्निर्माण शल्यचिकित्सा में फ्लैप प्रक्रियाएं (माइक्रोसर्जरी):-
इस सर्जरी में शरीर के एक स्थान से दूसरे क्षेत्र में स्वस्थ ऊतक का परिवहन शामिल है जो कुछ त्वचा या कंकाल का समर्थन खो चुका है। ये प्रक्रिया उन हिस्सों पर की जाती है जो चोट या पुरानी बीमारी से प्रभावित हुए हैं।
3.चेहरे की सर्जरी:-
चेहरे की पुनर्निर्माण सर्जरी एक व्यक्ति के चेहरे को बहाल करने में मदद करने के लिए की जाती है, जो उस गंभीर घटना के बाद उस व्यक्ति के चेहरे को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देता है।
4.स्तन पुनर्निर्माण:-
यह प्रक्रिया उन महिलाओं के लिए उपलब्ध है जो कुछ चिकित्सीय स्थितियों के कारण द्विपक्षीय मास्टेक्टॉमी (दोनों स्तनों को हटाने) से गुजर चुकी हैं। यह त्वचा, स्तन ऊतक और हटाए गए निप्पल को प्रतिस्थापित करके स्तनों को बहाल करने में मदद कर सकता है।
क्या पुनर्निर्माण सर्जरी प्लास्टिक सर्जरी से अलग है?
 पुनर्निर्माण सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी अक्सर एक दूसरे का उपयोग किया जाता है। हालांकि, दोनों के बीच कुछ अंतर हैं जो उन्हें अलग करते हैं। अपनी शारीरिक बनावट को सुधारने के लिए किसी व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं को बढ़ाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की जाती है। जबकि, पुनर्निर्माण संबंधी चिकित्सा शारीरिक विकृति को सुधारने के लिए की जाती है जो किसी दुर्घटना या जन्म के बाद से हो सकती है। प्लास्टिक सर्जरी एक मरीज की पसंद है, कोई है जो स्वेच्छा से उस संपूर्ण स्वरूप को प्राप्त करना चाहता है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। दूसरी ओर, डॉक्टर की सलाह पर पुनर्निर्माण सर्जरी की जाती है।
दूसरे प्रकार की सर्जरी की कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं, लेकिन अंत में, दोनों सर्जरी में शल्य क्रिया की आवश्यकता होती है और समान जटिलताएं हो सकती हैं।


Monday, November 22, 2021

कृषि कानून की वापसी कई नए सवाल भी डा. राधे श्याम द्विवेदी

 
      गुरुनानक जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की है।देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी ने किसानों से अब घर लौटने की अपील की और कहा कि इस कानून को खत्म करने प्रक्रिया शीतकालीन सत्र में शुरू हो जाएगी। पीएम मोदी ने कहा कि हमारी तपस्या में ही कमी रही होगी, जिसकी वजह से हम कुछ किसानों को नहीं समझा पाए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा 'पांच दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में मैंने किसानों की मुश्किलों, चुनौतियों को बहुत करीब से अनुभव किया है।'

            कृषि कानूनों के संदर्भ में पीएम मोदी ने कहा कि बरसों से ये मांग देश के किसान, देश के कृषि विशेषज्ञ, देश के किसान संगठन लगातार कर रहे थे। पहले भी कई सरकारों ने इस पर मंथन किया था। इस बार भी संसद में चर्चा हुई, मंथन हुआ और ये कानून लाए गए। किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि कानून लाए गए थे। मकसद ये था कि देश के किसानों को, खासकर छोटे किसानों को, और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले। लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया।   

               उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।

           पीएम मोदी ने कहा कि एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे। उन्होंने कहा कि आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फैसला लिया है। जीरो बजट खेती यानि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने के लिए।
          तीनों कृषि कानून वापसी के पीएम नरेंद्र मोदी के फैसले के बाद किसानों ने टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर जश्न मनाया। किसानों ने कहा कि गुरुपर्व पर यह उनके संघर्ष की जीत है। किसान संगठनों ने आंदोलन वापस होने पर कुंडली बॉर्डर पर लड्डू बांटे।
         भाकियू नेता शमशेर सिंह दहिया ने कहा कि यह किसानों की बहुत बड़ी जीत है। इसमें संयुक्त मोर्चे को बहुत बहुत बधाई है। एक साल बाद देर आए दुरुस्त आए प्रधानमंत्री ने आखिरकार किसानों की मांगें मान ली है, क्योंकि यह एक सच्ची लड़ाई थी।
नए उठते कुछ सवाल :-
1. जनाकांक्षाओं का नाम दे दबाव बनाया गया:-
    यह शुभ संकेत नहीं कि संसद से पारित कानून सड़क पर उतरे लोगों की जिद से वापस होने जा रहे हैं। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसा न हो, अन्यथा उन तत्वों का दुस्साहस ही बढ़ेगा, जो मनमानी मांगें लेकर सड़क पर आ जाते हैं। तुष्टिकरण और उन्माद हटे। अगर भारत माता के शरीर पर इतना बड़ा घाव करके भी हम कुछ नहीं सीख पाये, तो यह हम सबका दुर्भाग्य ही होगा। लोकतंत्र में लोगों की इच्छाओं का सम्मान होना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जोर-जबरदस्ती को जनाकांक्षाओं का नाम दे दिया जाए। यह बिल्कुल ठीक नहीं कि किसानों और खासकर छोटे किसानों का भला करने वाले कृषि कानून सस्ती राजनीति की भेंट चढ़ गए। इन कानूनों की वापसी आम किसानों की जीत नहीं, एक तरह से उनकी हार ही है, क्योंकि वे जहां जिस मुकाम जिस हाल में थे,आज भी वहीं खड़े दिखने लगे हैं।
2. किसान आन्दोलन सिर्फ विरोध के लिए खड़ा किया गया :-
    कृषिआन्दोलन को करीब से देखने और उसका विश्लेषण करने वाले बताते हैं कि यह किसान आन्दोलन सिर्फ सरकार के विरोध के लिए खड़ा किया गया था, जिसके लिए फंडिंग विदेशों से भी आती थी। पूरे आन्दोलन के दौरान कई बार देश में अस्थिरता लाने के कई प्रयास भी हुए, कुछ में आन्दोलनकारी सफल हुए तो कुछ में विफल। चाहे वो इस साल की शुरूआत में लाल किले में खालिस्तानी झंडा फहराने में कामयाब हुए तथाकथित किसानों का मामला हो, या फिर देश में टूलकिट के माध्यम से एक विशेष जंग छेड़ने की तैयारी। कई उतार-चढ़ाव आये पर किसान आन्दोलन पनपता रहा। और इसी की आड़ में सुलगती रही विपक्षी दलों की राजनीति की आग। अंततः इनका एक मकसद कनून वापसी से पूरा हो गया।अब वे अपने विरोध के नए नए प्रतिमान खोज लेंगे।
3.संविधान व राष्ट्र के संघीय ढांचे के विपरीत:-
     इस मामले को इतना समय देना और कुछ अलग तरह के किसानों के दबाव में आने के कारण ये निर्णय लेना पड़ा लगता है। कई राज्यों के चुनाव में भी यह फैक्टर प्रभाव कारी रहा। लगता है भाजपा उत्तर प्रदेश और पंजाब आदि पांच राज्यों के आसन्न चुनाव में डैमेज कंट्रोल बचाने के लिए यह निर्णय लेना पड़ा। सरकार पर आगे और तरह के दबाव भी आ सकते हैं। सीएए और यूएपीए का विरोध, संविधान बचाओ देश बचाओ और भी तरह तरह के नारे देकर विपक्ष अपनी जमीन बचाने में लगा है। टिकैत , जयंत सिंह, ममता,शरद पवार तथा शिवसेना आदि जिन्हें खोने के लिए कुछ भी नहीं है।इसलिए यह प्रयोग देश संविधान और राष्ट्र के संघीय ढांचे के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है। इस कानून की वापसी से भारतीय गणतंत्र, भारतीय संविधान और उन असंख्य जनता का अपमान हुवा है जिन्होंने भारी बहुमत से सरकार को अपना जनमत दिया था। जहां पूरी बहस और वैधानिक प्रक्रिया के ज़रिए कानून बना था।जिसे अक्षम विपक्ष ने काले कानून की संज्ञा देकर खुद का वजूद मिटा दिया है। अब संसद में सारे घटना क्रम की सफाई देकर विशेषज्ञों की राय से नया कानून निर्मित किया जा सकता है जिसमें टुकड़े टुकड़े गैंग,बार्डर सील करने और लाल किले पर देश का अपमान करने वाले तत्व को दूर रखना होगा।

             











Saturday, November 20, 2021

प्रकृति प्रेम को समर्पित बाल सोम गौतम कृत तरुमंगल लघुकाव्य/ समीक्षक डा. राधेश्याम द्विवेदी

स्व. बाल सोम गौतम का जन्म श्रावण शुक्ला द्वितीया संवत 1985 विक्रमी/1 दिसम्बर 1929 ., उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के सल्टौआ गोपालपुर व्लाक के खुटहन नामक गांव के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनकी ससुराल टिनिच के पास शिवपुर में है और वे वहां भी रहते थे। जीवन के अन्तिम दिनों में टिनिच में रहते हुए उन्होने साहित्य की साधना की है। उन्होने गन्ना विभाग में सुपरवाइजर पद की नौकरी कर बस्ती बहराइच तथा गोण्डा जनपद में काफी भ्रमण तथा कार्य किया है। वह 31मार्च 1984 को स्वेक्षा से सेवा मुक्त हुए थे। उन्होनेमौलश्रीनामक मासिक पत्रिका का संपादन भी किया है। वे उच्चकोटि के गीतकार थे तथा देश के अनेक ख्यातित कवियों के सानिध्य में रह चुके हैं।  नवोदितों को प्रायः मार्ग दर्शन करते रहते थे। 20 नवम्बर 2016 को टिनिच बाजार स्थित सरस्वती सदन में उन्होने जीवन की अंतिम सांसे ली। स्व. बालसोम जी के साथ ज्यादा तो नहीं मिला किन्तु श्रीचन्द की दुकान पर उठते बैठते तथा बस्ती जिले में विधि की पढ़ाई के दौरान हो जाया करती थी। उनके साथ कुछ कवि सम्मेलनों में भी जाने का अवसर मिला था। सरस्वती सदन टिनिच की गोष्ठी में भी भाग लेने का अनेक अवसर मिला। वे चाय की दुकान पर या अवकाश के दिनों में अपनी कुछ पंक्तियां घटनायें अवश्य सुनाया करते थे। उनके साथ खुनियाव इटवा सिद्धार्थ नगर, अठदमा राजा साहब तथा नौगढ़ वर्तमान सोनभद्र में जाने का अवसर अवश्य मिला था। आवास विकास कालोनी बस्ती स्थित उनके आवास पर अनेक बार उनका सानिध्य मिला। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों भ्रष्टाचार से आजिज होकर समय पूर्व अवकाश लेकर साहित्य साधना में लीन हो गये थे। वे अपने किसी शुभचिन्तक को कभी भी निराश नहीं करते थे। सरल तपस्यवियों की तरह जीवन यापन करने वाले बाल सोम जी बहुत ही सुलझे हुए इन्सान थे।   
                                                             

  मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम

बाल सोम गौतम का “तरुमंगल” एक लघु काव्य, जो अभी विगत दिनों प्रकाशित हुआ है, इसमें पर्यावरण से सम्बन्धित अनेक सरल गीतों का संकलन किया गया है। वे बहुत ही प्रकृति प्रेमी इन्सान थे। “मौलश्री” नामक पत्रिका का नाम भी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है। उनके टिनिच आवास एक सुन्दर उपवन में बना हुआ है। उन्होंने वैसे तो गीतों की बहुत बड़ी सीरीज लिख छोड़ी है। वह अनगिनत कविताओं के सुप्रसिद्ध रचनाकार रहे हैं। हम उनके पावन स्मृति को सादर नमन करते हैं । उनके कुछ की पक्तियां नमूना स्वरुप यहां प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हॅू –

 

हम चाहे रहें न रहें ये रहें, नित ही द्रुम द्वारे हरे हरे ये।
रहें द्वारे हमारे हमेशा बने, द्रुम देव दुलारे हरे हरे ये।
तने यों ही रहें सर ऊॅचां किये,सदियों तरु सारे हरे हरे ये।
सदा शीतल छांह गहाये रहें, तरु प्यारे हमारे हरे हरे ये।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
ये भले महरुम जबान से हैं, पर पूरित आंख से कान से हैं।
अनजान से ये दिखते हैं भले, नहीं वंचित किन्तु ये ज्ञान से हैं।
कम पूज्य न वेद कुरान से ये, घट के न किसी भगवान से हैं।
वरदान से हैं मिले प्राणियों को, तरु ये हमको प्रिय प्रान से हैं।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम 
जहां वृक्ष लता न सुखी सरिता, न ही शीतल मंद बयार जहां।
खगवृन्द करें न कलोल जहां, न ही गुंजित मेघ मल्हार जहां ।
न तो नाचते मोर न श्याम घटा, छटा सावन की न फुहार जहां ।
कहो कैसे भला वहां कोई टिके, न हो वृक्ष घना छतनार जहां।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
घर चाहे बने न बने अपना, कर लेंगे गुजारा इन्हीं के तले।
सच बोलते हैं हम लेंगे बिता, यह जीवन सारा इन्हीं के तले।
रह लेगा सुखी से मजे में यहीं,परिवार हमारा इन्हीं के तलें।
जो मरें तो इन्हीं विटपों के तले, जनमें जो दुबारा इन्हीं के तले।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
बसने को वहां मन क्यों न कहे,सुमनों का जहां सुनिवास रहे।
चरने को सदा हिरनों के लिए,चहु ओर हरी हरी घास रहे।
कभी धूप खुली कभी छांव घनी, नदी-ताल भी आस ही पास रहे।
मन क्यों न रमें उस ठौर जहां,तरु संग विहंग विलास रहे।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम 
ले टिकोरे खड़ी अमराई जहां, वहां न पिकी का निवास रहे।
कहो कूके न क्यों वहां प्यारी पिकी, जहां हाजिर हर्ष-हुलास रहे।
सुमनों से सजी हो दिशाए जहां,पसरा चहु ओर सुबास रहे।
मधुपों की जमात जमीं हो जहां, वहा क्यों न जमा मधुमास रहे।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
यदि चाहते वंशी रहे बजती, सुख चैन की रात उजाली रहे।
न हो खाली खजाना खुशी का कभी,नित खेलती होंठ पे लाली रहे।
मन की अमराई न सूनी रहे,सदा कूंकती कोयल काली रहे।
घरती को ढ़को तरु पललवों से, चहुं ओर सजी हरियाली रहे।।
मौलश्री वृक्ष के लिए इमेज परिणाम
चलो भागो कटेरों अभी यहां से, कभी लौट दुबारा न आना यहां।
तरुओं को तरेरता जो भी उसे, पड़ता दृग दोऊ गवाना यहां।
इस ओर न झांकना भूल के भी, मत सूरत स्याह दिखाना यहां।
कभी आना ही आना पड़े यदि तो,यह काला कुठारा न लाना यहां।।8II
tree के लिए इमेज परिणाम
पृथ्वी पर तत्व महत्व के ये, यह सत्य कदाचिद् जाना नहीं।
यह वृक्ष तुम्हारे भी तो हैं हितू, लगता है इन्हें पहचाना नहीं।
पर सेवा व्रती इन पादपों को, दुख दे अपकीर्ति कमाना नहीं।
कहलाना कृतघ्न नहीं निजको, इन्हें कष्ट कभी पहुंचाना नहीं।।9II
pakar tree के लिए इमेज परिणाम
हित हेतु सभी तनधारियों के, अवतार लिये अवनी पर ये।
विहगों को न केवल मात्र विहार,आहार भी देते विरादर ये।
बट पीपर गूलर पाकर ये, बनें यों ही रहे निशिवासर ये।
कटने नहीं देंगे कदापि इन्हें, कट जायें भले अपना सर ये।।10II
pakar tree के लिए इमेज परिणाम
चिर मौनव्रती सब योगी यती, तपधारी सभी तरु न्यारे हैं ये।
ऋषियों मुनियों को रहे प्रिय ये,नहीं केवल देव-दुलारे हैं ये।
प्रिय हैं इनके उनके सबके, नहीं मात्र हमारे तुम्हारे हैं ये।
धरती को सजाए संवारे हुए,बड़े भोले हैं ये बड़े प्यारे हैं ये।।11II
pakar tree के लिए इमेज परिणाम
सुख देते समान सदा सबको, महिपाल स्वरुप महीं पर ये।
प्रतिपालक कीट पतंग के भी, नभ चूम रहे बट-पीपर ये।
सदा देते ही देते रहे हैं हमें, हमसे कुछ लेते नहीं पर ये।
सुरलोक में भी प्रिय पूजित हैं, नहीं केवल पूज्य यहीं पर ये।।12II
fruit tree के लिए इमेज परिणाम
विश्राम के हेतु घड़ी दो घड़ी, सकुचाना नहीं चले आना यहां।
चले आना यहां बड़े शौक से तू,भरपूर छंहाना-जुड़ाना यहां।
पर घ्यान रहे इस बात का भी,मत ढ़ेला से हाथ छुआना यहां।
फल बीन के खाना मना नहीं है पर झोर के एक न खाना यहां।।13II
fruit tree के लिए इमेज परिणाम
सुनना चुपचाप पखेरुओं का , कलगायन शोर मचाना नहीं।
खुश होकर नाच भी लेना भले, पर ताली थपोड़ी बजाना नहीं।
हृदयंगम ये भी रहे कि यहां, कभी आकर जाल विछाना नहीं।

करना ना भयंकर भूल कभी, इन्हें गुल्ता-गुलेल दिखाना नहीं।।14II

                                       fruit tree के लिए इमेज परिणाम


                                                                          समाप्त