Monday, December 30, 2024

शृंगार रस के कवि : पण्डित राम नारायण चतुर्वेदी (बस्ती के छंदकार 25)# आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


पंडित राम नारायण चतुर्वेदी का जन्म बैसाख कृष्ण 12, संवत् 1944 विक्रमी को उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के हैसर बाजार-धनघटा नगर पंचायत के ग्राम सभा मलौली में हुआ था। यह क्षेत्र इस समय वार्ड नंबर 6 में आता है। जो पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर है । इनके पिता पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी जी थे। यह बस्ती मण्डल का एक उच्च कोटि का कवि कुल घराना रहा है। पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे - प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। पंडित राम नारायण जी का रंग परिषद में भी बड़ा आदर और सम्मान हुआ करता था। घनाक्षरी और सवैया छंदों की दीक्षा उन्हें रंगपाल जी से मिली थी। वे भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे। राम नारायण की शिक्षा घर पर ही हुई थी। इनके चार पुत्र बांके बिहारी, ब्रज बिहारी, वृन्दावन बिहारी और शारदा शरण थे। जिनमें ब्रज बिहारी ब्रजेश और शारदा शरण मौलिक अच्छे कवि रहे। 
पंडित राम नारायण जी अंग्रेजी राज्य में असेसर (फौजदारी मामलों में जज / मजिस्ट्रेट को सलाह देने के लिए चुना गया व्यक्ति) के पद पर कार्य कर रहे थे। एक बार असेसर पद पर कार्य करते हुए उन्होंने ये छंद लिखा था जिस पर जज साहब बहुत खुश हुए थे - 
दण्ड विना अपराधी बचें कोऊ,
दोष बड़ों न मनु स्मृति मानी।
दण्ड विना अपराध लहे कोऊ, 
सो नृप को बड़ा दोष बखानी।
राम नारायण देत हैं राय,
असेसर हवै निर्भीक है बानी।
न्याय निधान सुजान सुने,
वह केस पुलिस की झूठी कहानी।।
ब्रज भाषा और शृंगार रस
कवि राम नारायण जी ब्रज भाषा के शृंगार रस के सिद्धस्थ कवि थे। सुदृढ़ पारिवारिक पृष्ठभूमि और रंगपाल जी का साहश्चर्य से उनमें काव्य कला की प्रतिभा खूब निखरी है। उनका अभीष्ट विषय राधा- कृष्ण के अलौकिक प्रेम को ही अंगीकार किया है। शृंगार की अनुपम छटा उन्मुक्त वातावरण में इस छंद में देखा जा सकता है। एक छंद द्रष्टव्य है - 
कौन तू नवेली अलबेली है अकेली बाल,
फिरौ न सहेली संग है मतंग चलिया।
फूले मुख कंज मंजुता में मुख नैन कंज,
मानो सरकंज द्दव विराजे कंज कलिया।
करकंज कुचकंज कंजही चरण अरु 
वरन सुकन्ज मंजु भूली कुंज अलियां।
तेरे तनु कंज पुंज मंजुल परागन के,
गंध ते निकुजन की महक उठी गालियां।।
घनाक्षरी का नाद-सौष्ठव
सुकवि राम नारायण की एक घनाक्षरी का नाद सौष्ठव इस छंद में देखा जा सकता है- 
मंद मुस्काती मदमाती चली जाती कछु,
नूपुर बजाती पग झननि- झननि- झन ।
कर घट उर घट मुख ससीलट मंजु,
पटु का उडावै वायु सनन- सनन- सन।
आये श्याम बोले वाम बावरी तु बाबरी पै,
खोजत तुम्हें हैं हम बनन- बनन- बन।
पटग है झट गिरे घट-खट सीढ़िन पै,
शब्द भयो मंजु अति टनन-टनन- टन।।
वैद्यक शास्त्रज्ञ
सुकवि राम नारायण जी कविता के साथ साथ वैद्यक शास्त्र के भी ज्ञाता थे। उनके द्वारा रचित आवले की रसायन पर एक छंद इस प्रकार देखा जा सकता है - 
एक प्रस्त आमले की गुठली निकल लीजै,
गूदा को सुखाय ताहि चूरन बनाइए।
वार एक बीस लाइ आमला सरस पुनि,
माटी के पात्र ढालि पुट करवाइए।
अन्त में सुखाद फेरि चुरन बनाई तासु,
सम सित घृत मधु असम मिलाइये।
चहत जवानी जो पै बहुरि बुढ़ापा माँहि,
दूध अनुपात सो रसायन को खाइये।।
ज्योतिष के मर्मज्ञ 
सुकवि राम नारायण जी को कविता , वैद्यकशास्त्र के साथ साथ ज्योतिष पर भी पूरा कमांड था। उनके द्वारा रचित एक छंद नमूना स्वरूप देखा जा सकता है- 
कर्क राशि चन्द्र गुरु लग्न में विराजमान,
रूप है अनूप काम कोटि को लजावती।
तुला के शनि सुख के समय बनवास दीन्हैं 
रिपु राहु रावन से रिपुवो नसावाहि।
मकर के भौम नारि विरह कराये भूरि,
बुध शुक्र भाग्य धर्म भाग्य को बढ़ावहीं ।
मेष रवि राज योग रवि के समान तेज,
राम कवि राज जन्म पत्रिका प्रभावहीं।।
ब्रजभाषा की प्रधानता 
इस परम्परागत कवि से तत्कालीन रईसी परम्परा में काव्य प्रेमी रीतिकालीन शृंगार रस की कविता को सुन-सुन कर आनंद लिया करते थे। कवि राम नारायण भोजपुरी क्षेत्र में जन्म लेने के बावजूद भी ब्रजभाषा में ही कविता किया करते थे। उनका रूप-सौंदर्य और नख-सिख वर्णन परंपरागत हुआ करता था। उन्होंने पर्याप्त छंद लिख रखें थे पर वे उसे संजो नहीं सके। कविवर ब्रजेश जी के अनुसार पंडित रामनारायण जी चैत कृष्ण नवमी सम्बत 2011 विक्रमी को अपना पंच भौतिक शरीर को छोड़े थे । 
बस्ती के छंदकार शोध ग्रन्थ के भाग 1 के पृष्ठ 122 से 126 पर स्मृतिशेष डॉक्टर मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' जी ने पंडित राम नारायण जी के जीवन वृत्त और कविता कौशल पर विस्तार से चर्चा किया है।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)



















Wednesday, December 25, 2024

एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी (बस्ती के छंदकार 24)#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

श्रीनारायण चतुर्वेदी का नाम सुनते ही उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में जन्मे महान कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेेखक का स्वरूप आंखों के सामने आ जाता है जिनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी अपने समय के संस्कृत भाषा के नामी विद्वान थे।उनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से हुई थी। जो स्वतंत्रता से पूर्व उन्होंने सन् 1926 से 1930 तक जिनेवा में भारतीय शैक्षिक समिति के प्रमुख तथा कई वर्षो तक उत्तर प्रदेश सरकार के शैक्षिक विभाग के भी प्रमुख रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उन्होंने आल इंन्डिया रेडियो के उप महानिदेशक (भाषा) के रूप में तैनात रहकर हिंदी भाषा विज्ञान के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुये सेवानिवृत हुये थे।

बस्ती के पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी 

इटावा के अलावा एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के मलौली गाँव में प्रसिद्ध साहित्यिक कुल में भी हुआ था जिसमें अभी तक ज्ञात सात उच्च कोटि के छंदकार अवतरित हुए हैं। इस पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी का जन्म कार्तिक कृष्ण 15,संवत् 1938 विक्रमी को दीपावली के दिन हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ था । जो अब नवगठित नगर पंचायत हैसर बाजार-धनघटा के वार्ड नंबर 6 में आता है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचो बीच है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । 

छः भाइयों में सबसे कुशाग्र 

    श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था।  जिनके छः पुत्र थे - प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। ये सभी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश' के भाई थे। श्री नारायण बचपन में बड़े प्रतिभाशाली थे। अपने छः भाइयों में श्रीनारायण इतने कुशाग्र थे कि कोई भी भाई इनसे तर्क वितर्क नहीं कर पाता था। संस्कृत, फारसी, आयुर्वेद और ज्योतिष पर इनका पूर्ण नियंत्रण था। वे महीनों सरयू नदी और गंगा नदी के तट पर कल्प वास किया करते थे। 

अनेक लहरियों के मध्य "सरयू लहरी "

पदमाकर जी के गंगा लहरी की भांति श्री नारायण जी ने 109 छंदों की "सरयू लहरी" लिखा था जो दुर्भाग्य बस गायब हो गया। इससे पहले महाकवि सूरदास ने साहित्य लहरी नामक 118 पदों की एक लघु रचना लिखी है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया गया है। इसी प्रकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने प्रेम लहरी, जम्मू के जाने-माने साहित्यकार प्रियतम चंद्र शास्त्री की शृंगार लहरी रचना है। बद्री नारायण प्रेमधन की लालित्य लहरी आदि लहरी रचनाएँ रही हैं। मूलतः लहरियों में धारा प्रवाह या भाव प्रभाव रचनाओं की अभिव्यंजना मिलती है। इसी तरह भारतेंदु हरिश्चंद्र' ने भी “सरयूपार की यात्रा” नामक एक यात्रा वृतांत लिखा है है। जिसका रचनाकाल 1871 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

रीतिकालीन शृंगार का प्रस्फुटन

श्रीनारायण चतुर्वेदी रीतिशास्त्र के ज्ञाता थे। उन्होंने देव बिहारी और चिन्तामणि के छंदों को कंठस्थ कर लिया था। लोग घण्टों उनके पास बैठ कर श्रृंगार परक रचना का रसास्वादन किया करते थे। उन्हें भाषा ब्रज, छंद मनहरन और सवैया प्रिय था। उनका श्रृंगार रस का एक छंद (डा मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' कृत 'बस्ती के छंदकार' भाग 1, पृष्ठ 13 - 14 के अनुसार ) द्रष्टव्य है - 

कंज अरुणाई दृग देखत लजाई खंग 

समता न पायी चपलायी में दृगन की।

वानी सरसायी दीन धुनिको लजायी पिक,

समता न पायी वास किन्हीं लाजवन की।

जंघ चिकनाई रम्भा खम्भ हू न पायी नाभि,

भ्रमरी भुलाई मन नीके मुनिजन की।

बुद्धि गुरुवायी श्री नारायण की जाती फंसि,

देखि गुरुवायी बाल उरज सूतन की।।

एक अन्य छंद भी द्रष्टव्य है

बाल छबीली तियान के बीच सो बैठी प्रकाश करै अलगै।

चंद विकास सो हांसी हरौ उपमा कुच कंच कलीन लगै।

दृग की सुधराई कटाछन में श्रीनारायण खंज अली बनगै।

मृदु गोल कपोलन की सुषमा त्रिवली भ्रमरी ते मनोज जगै।

     श्रीनारायण कवि का यह छंद शृंगार की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। ये मलौली के कवि परम्परा के प्रथम चरण के अंतिम कवि थे।

      आचार्य डॉक्टर राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)










Sunday, December 22, 2024

शृंगार रस के कवि भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश’(बस्ती के छंदकार 23)#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत 1930 विक्रमी में 
हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ है । यह वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश’ के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश' जी के पिता कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे - प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। राम नारायण उच्च स्तर के छंदकार रह चुके हैं। उनका रंग परिषद में बड़ा सम्मान था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे।
भास्कर प्रसाद शृंगार रस के कवि 
साहित्य के अनुसार नौ रसों में से एक रस जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है और प्रधान माना जाता है । जब पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के मन में रति नाम का स्थायी भाव जागृत होकर आस्वादन के योग्य हो जाता है, तो इसे शृंगार रस कहते हैं. शृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है. यह नौ रसों में से एक है।
जाको थायी भाव रस, सो शृंगार सुहोत। मिलि विभाव अनुभाव पुनि संचारिन के गोत। 
इसमें नायक - नायिका के परस्पर मिलन के कारण होने वाले सुख की परिपुष्टता दिखलाई जाती है । इसका स्थायी भाव रति है । आलंबन विभाव नायक और नायिका हैं । उद्दीपन विभाव सखा, सखी, वन, बाग आदि, विहार, चंद्र- चंदन, भ्रमर, झंकार, हाव भाव, मुसक्यान तथा विनोद आदि हैं । यही एक रस है जिसमें संचारी विभाव, अनुभाव सब भेदों सहित होता है; और इसी कारण इसे रसराज कहते हैं । इसके देवता विष्णु अथवा कृष्ण माने गए हैं और इसका वर्ण श्याम कहा गया है । यह दो प्रकार का होता है—एक संयोग और दूसरा वियोग या विप्रलंभ । नायक नायिका के मिलने को संयोग और उनके विछोह को वियोग कहते हैं ।
     शृंगार रस की प्रधानता मुख्यतः रीतिकाल में है। हिंदी साहित्य में कविवर बिहारीलाल जी शृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे। शृंगार रस के लोकप्रिय कवि बिहारी लाल का नाम हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में अधिकांशतः शृंगार रस का प्रयोग किया है । इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपनी कृतियों में गागर में सागर भर दिया है। उनकी लिखी हुई शृंगार रस कविता इस प्रकार है - 
तुम बिन हम का हो सजनी,
तुम बिन हम का
परुष समान पुरुष में तुमने,
भर दी अपनी कोमलता,
बेतरतीब पड़े जीवन में,
लाई तुम सुगढ सँरचना,
छोड्के निज घर बार,
सजाया, दूर नया सन्सार हो सजनी
तुम बिन हम का हो सजनी,
तुम बिन हम का।

बिहारी का शृंगार रस से परिपूर्ण एक और दोहा दृष्टव्य है -
"बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनु हँसे , दैन कहै , नटि जाय।।"
"कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सों बात॥"
"पतरा ही तिथी पाइये, वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौई रहे, आनन-ओप उजास॥"
" अंग अंग नग जगमगत दीपसिखा सी देह।
दिया बुझाय ह्वै रहौ, बड़ो उजेरो गेह॥"
" तंत्रीनाद, कवित्त-रस, सरस राग, रति-रंग।
अनबूड़े बूड़े , तिरे जे बूड़े सब अंग।।”

        मलौली धनघटा सन्त कबीर नगर निवासी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी शृंगार रस के बड़े कवि थे। 52 छंदों की  "शृंगार बावनी"  इनकी रचना बताई जाती है। यह ब्रज भाषा में लिखा गया है। सभी मनहरन और घनाक्षरी छंद में लिखे गए हैं। एक छंद (डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' कृत 'बस्ती के छंदकार' भाग 1, पृष्ठ 13 के अनुसार ) द्रष्टव्य है - 
प्यारी सुकुमारी की बड़ाई मै कहां लौ करौ, रति तन कोटिन निकाई परयो हलके।
सुन्दर गुलाब कंज मंजुल सुपांखुरिन 
धोए पद कंजन में जात परे झलके।
कंच कुच भार को सम्हारि न सकत अंग,चौंकि चौंकि उठति सुरोज कंज दल के। 
ऐसी सुकुमारता दिनेश जी कहां लौ कहूं, गड़िजात पांव में बिछौना मखमल के।।
    इस छंद में अतिशयोक्ति बिहारी जी की नायिकाओं से भी बढ़कर है। दिनेश जी रईस परम्परा के कवि थे जहां रीतिशास्त्र के भरमीआचार्यों का सम्पर्क बड़ी सुगमता से उपलब्ध हो जाता रहा। यही कारण रहा है कि इनके अधिकांशतः छंद शृंगार की वल्लरी में भौतिक शृंगार की अभिव्यंजना तक सीमित रह सके।
      शृंगार बावनी की तरह शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। रतन बावनी (लगभग 1581ई. ) केशवदास की सबसे पहली रचना रही है। इसी से मिलता जुलता शृंगार मंजरी को केशव दास ने लिखा था। श्री नागरी देव जी ने श्रृंगार रस का पद इस प्रकार लिखा है - 
विहरत विपिन भरत रंग ढुरकी।
हरषि गुलाल उडाइ लाडिली, सम्पति कुसमाकरकी॥ 
कसुंभी सारी सोधें भीनी, ऊपर बंदन भुरकी।
चोली नील ललित अञ्चल चल, झलक उजागर उरकी॥ 
मृदुल सुहास तरल दृग कुंडल, मुख अलकावलि रुरकी।
श्रीनागरीदासि केलि सुख सनि रही, मैंन ललक नहिं मुरकी॥ 

         आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)




रीतिकालीन कवि श्री बलराम चतुर्वेदी (बस्ती के छंदकार संख्या 22)#आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


(साभार :शोध प्रबंध - "बस्ती के छंदकार" लेखक: आचार्य डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' )
          
       रीति कालीन परम्परा के सुकवि बलराम चतुर्वेदी श्रावण शुक्ल 5 संवत् 1922 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में बलराम चतुर्वेदी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । यहां मलौली हॉस्पिटल और कई अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी बने हुए हैं। यहां पर नगर पंचायत का कार्यालय बन रहा है। 
बलराम चतुर्वेदी श्री रामगरीब चतुर्वेदी 'गंगाजन' के गाँव में पैदा हुए थे। ये राम गरीब चतुर्वेदी 'गंगाजन' के प्रपौत्र रहे हैं । इनके पिता का नाम बेनी दयाल चतुर्वेदी था। ये तीन भाई थे - घन श्याम, ईशदत्त और बेनीशंकर इनके छोटे भाई थे। इनके छंदों पर रीति कालीन परम्परा का प्रभाव था। फुटकर छंदों के अतिरिक्त हनुमान शतक इनका बहु चर्चित कृति थी। उन्होंने 111 छंदों में हनुमान जी की स्तुति की है। उनकी भाषा ओजपूर्ण ब्रज भाषा है। छंदों में लालित्य है और काव्य में ओज। सभी छंद भक्ति से परिपूर्ण थे,परन्तु पांडुलिपि गायब हो गई है। कवि बलराम चतुर्वेदी मृत्यु संवत् 1997 विक्रमी को हुई थी। 
                पंचमुखी हनुमान 
       जीवन में कभी-कभी ऐसी परेशानियां आ जाती हैं कि व्यक्ति बिल्कुल निराश हो जाता है। उसे समझ नहीं आता कि आखिर किस तरह से अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाया जाया। ज्योतिष के मुताबिक घर में हनुमान जी की पंचमुखी तस्वीर लगाने से घर पर किसी तरह की विपत्ति नहीं आती है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। उनके स्मरण मात्र से हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी हनुमान के पांचों मुख का अलग-अलग महत्व है। इसमें भगवान के सारे मुख अलग-अलग दिशाओं में होते हैं। पूर्व दिशा की ओर हनुमान जी का वानर मुख है जो दुश्मनों पर विजय दिलाता है।पश्चिम दिशा की तरफ भगवान का गरुड़ मुख है जो जीवन की रुकावटों और परेशानियों को खत्म करते हैं। उत्तर दिशा की ओर वराह मुख होता है जो प्रसिद्धि और शक्ति का कारक माना जाता है। दक्षिण दिशा की तरफ हनुमान जी का नृसिंह मुख जो जीवन से डर को दूर करता है।आकाश की दिशा की ओर भगवान का अश्व मुख है जो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। 
पंचमुखी हनुमान जी के विग्रह से संबंधित सुकवि बलराम चतुर्वेदी का एक छंद द्रष्टव्य है - 
पूरब बिकट मुख मरकट संहारे शत्रु 
दक्षिण नरसिंह जानें दानव वपुश को।
पश्चिम गरुण मुख सकल निवारै विष
उत्तर बाराह आनें सर्प दर्प सुख को। 
ऊर्ध्व हैग्रीव पर यंत्र मंत्र तन्त्रन को 
करत उच्चांट बलराम दीह दुख को।
बूत करतूत सुनि भागे जगदूत भूत 
बंदों सो सपूत पवन पूत पंच मुख को।।

        आचार्य डा.राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)