कान्यकुब्ज ब्राह्मण का इतिहास
यह एक बड़ा और प्राचीन ब्राह्मण समुदाय है जिसका नाम कन्नौज से जुड़ा है। उत्तर भारत के कन्नौज और उसके आसपास के क्षेत्रों में इनकी उपस्थिति का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। ये ब्राह्मण केवल धार्मिक कर्मकांड तक सीमित नहीं रहे, बल्कि शिक्षा, साहित्य और समाज सेवा में भी अद्वितीय योगदान देने वाले विद्वान रहे हैं। उनकी विद्या का दायरा वेदों और उपनिषदों से लेकर धर्मशास्त्र, पुराण और संस्कृत साहित्य तक फैला हुआ है। उनके ज्ञान की गहराई और अभ्यास ने उन्हें समाज में सम्मान और उच्च प्रतिष्ठा दिलाई।
विद्या और शिक्षा में योगदान
कन्यकुब्ज ब्राह्मण विद्या के क्षेत्र में अत्यंत उत्कृष्ट रहे हैं। उनकी विद्या केवल शास्त्र तक सीमित नहीं, बल्कि उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज में ज्ञान और नैतिक मूल्यों का प्रचार किया। वेद और उपनिषद: ये ब्राह्मण चारों वेदों में पारंगत हैं और इनका गहन अध्ययन करते हैं। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद व अथर्ववेद में उनकी महारत अद्वितीय मानी जाती है।धर्मशास्त्र और पुराण: धार्मिक विधियों और पुराणों में उनकी जानकारी गहन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषणात्मक है। संस्कृत साहित्य में अनेक ग्रंथों का रचनात्मक और भाष्यात्मक योगदान समाज में उनका अमूल्य योगदान दर्शाता है। गुरुकुल परंपरा में कन्यकुब्ज ब्राह्मण शिक्षा की परंपरा में गुरुकुल प्रणाली के प्रमुख स्तंभ रहे, जहां छात्र शास्त्र, धर्म और जीवन मूल्यों का अध्ययन करते थे।
साहित्य में कान्यकुब्ज के निम्न नाम उपलब्ध हैं- 'कन्यापुर' (वराहपुराण), 'महोदय','कुशिक','कोश', 'गाधिपुर' 'कुसुमपुर' (युवानच्वांग) और 'कण्णकुज्ज' (पाली)भाषा में मिलता है। कन्यकुब्ज ब्राह्मणों की विद्या, धार्मिक परंपरा और सामाजिक योगदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। उनके ऐतिहासिक योगदान, साहित्यिक कार्य और धार्मिक ज्ञान ने न केवल हिन्दू समाज बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया है।
कान्यकुब्ज ब्राह्मण का इतिहास प्राचीन शहर कन्नौज से जुड़ा है, जिसे प्राचीन काल में 'कन्या- कुब्ज' कहा जाता था। पुराणों में कथा है कि पुरुरवा के कनिष्ठ पुत्र अमावसु ने कान्यकुब्ज राज्य की स्थापना की थी। कुशनाभ इन्हीं का वंशज था। इनकी उत्पत्ति की कहानी राजा कुशनाभ के सौ कुब्ज (कुबड़ी) कन्याओं से जुड़ी है, जिन्होंने वायुदेव के श्राप को अस्वीकार कर दिया था, और बाद में राजा ब्रह्मदत्त के स्पर्श से उनका श्राप दूर हुआ। यह वैदिक युग में एक महत्वपूर्ण शिक्षण और सांस्कृतिक केंद्र था। कन्यकुब्ज ब्राह्मण समाज के लोग हिंदू धर्म के परंपरागत वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। वे वैदिक अनुष्ठानों, यज्ञों और मंत्रों के अध्ययन और आचार-विचार में विशेष स्थान रखते हैं। यह क्षेत्र कई समृद्ध राजवंशों का घर रहा, जैसे कि गुप्त, हर्षवर्धन और प्रतिहार आदि ,जो कन्नौज से शासित थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण हर्षवर्धन जैसे साम्राज्यों के दौरान अपने उत्कर्ष पर थे और भारत के कई हिस्सों में फैल गए थे।
सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण ‘कान्यकुब्ज’
ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण ‘कान्यकुब्ज’ माने जाते हैं। कान्यकुब्ज में दो शब्द हैं। 'कान्य' और 'कुब्ज' अर्थात् सौ कुबड़ी कन्याओं से जिनकी उत्पत्ती हुई, वे कान्यकुब्ज कहलाए। सुप्रसिद्ध आप्टे के विशाल कोष में भी लिखा है कि कन्नौज का नाम ‘कान्यकुब्ज’ है। प्रत्युत 'रामायण' के बालकाण्ड में इस विषय का विस्तृत वर्णन मिलता है। जब राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र साथ लेकर सिद्धाश्रम से लौटते हैं, तब कुश राजा के राज्य में पहुँचकर राम ने विश्वामित्र से पूछा -
"भगवन्! कोन्वयं देशः? "
अर्थात् 'इस देश का क्या नाम है।' तब विश्वामित्र ने बताया कि "मेरा जन्म देश यही है और यह देश ब्राह्मणों की उत्पत्ति का केन्द्र है। ये सारे ब्राह्मण क्षत्रियों की सन्तान हैं।" इस प्रकार ‘वर्णसंकर’ का संकेत भी दे दिया था।
ब्रह्मयोनिर्महा नासीत् कुशोनाम महातपः।
अल्किष्टव्रतधर्मज्ञः सज्जन प्रतिपूजकः॥
अर्थात् "कुश नाम का महातपस्वी राजा ‘ब्रह्मयोनि’ था। उसके वैदर्भी नाम की स्त्री से कुशाम्ब, कुशनाभ आदि चार पुत्र पैदा हुए। कुशाम्ब ने कौशाम्बी बसाया, जिसको आजकल ‘कोसम’ कहते हैं और कुशनाभ क्षत्रिय राजा ने घृताची नाम की स्त्री से सौ सुन्दर कन्याएँ पैदा कीं।
कुशनाभस्तु राजार्षिः कन्याशत मनुत्तमम्।
जनयामास धर्मात्मा घृताच्यां रघुनन्दन॥
ये कन्याएँ वायु दोष से कुबड़ी हो गयीं। इन कुबड़ी सौ कन्याओं का विवाह चूली के पुत्र ब्रह्मदत्त से हुआ। ब्रह्मदत्त ब्राह्मण था। उसके स्पर्श मात्र से सभी कन्याओं का कुबड़ापन दूर हो गया।
स्पृष्ट मात्रे तदा पाणौ
विकुब्जाः विगत ज्वराः।
युक्तं परमया लक्ष्म्या
बभौ कन्याशतं तदा॥
कान्यकुब्ज ब्राह्मण एक अंतर्विवाही ब्राह्मण समुदाय है,जो मुख्य रूप से उत्तरी भारत में पाया जाता है। उन्हें विंध्य के उत्तर के मूल निवासी पंच गौड़ा ब्राह्मण समुदायों में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का गोत्र और विस्तार
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के अधिकतम 26 गोत्र है ,परन्तु 19 गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा है। कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के गोत्र है –
1-कात्यायन
2-शांडिल्य
3-भार्गव
4- वत्स
5-भरद्वाज
6-भारद्वाज –( भरद्वाज ऋषि के शिष्य का नाम भारद्वाज था। )
7- कश्यप
8-काश्यप
9-कश्यपा
10-कौशिक
11- गौतम
12- गर्ग
13-धनञ्जय
14-कविस्तु
15-उपमन्यु
16-वशिष्ठ
17 -संकृत
18-परासर
19- सावर्ण
कान्यकुब्ज ब्राह्मण निमनलिखित उपनामो का प्रयोग करते हैं 1) उपाध्याय 2) अग्निहोत्री 3) बाजपेयी 4) दीक्षित 5) शुक्ल 6) त्रिवेदी 7) अवस्थी 8) पाठक 9) तिवारी 10) त्रिपाठी 11) दुबे (द्विवेदी) 12) चौबे (चतुर्वेदी) 13) मिश्रा 14) पांडे 15) पांडेय
समय के साथ, कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने कन्नौज और अवध क्षेत्र से बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और महाराष्ट्र जैसे अन्य क्षेत्रों में प्रवास किया। औपनिवेशिक काल के दौरान, कई कान्यकुब्ज ब्राह्मण बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों में जमींदार बने, जैसा कि पीलीभीत और हरदोई में देखा गया। अपने उत्कर्ष काल में कान्यकुब्ज जनपद की सीमाएँ कितनी विस्तृत थीं, इसका अनुमान स्कन्दपुराण से और प्रबंध चिंतामणि के उस उल्लेख से होता है जिसमें इस प्रदेश के अंतर्गत छत्तीस लाख गाँव बताए गए हैं। शायद इसी काल में कान्यकुब्ज के कुलीन ब्राह्मणों की कई जातियाँ बंगाल में जाकर बसी थीं। आज के संभ्रांत बंगाली इन्हीं जातियों के वंशज बताए जाते हैं।
कान्यकुब्ज से अलग हुआ
सरयूपारीण ब्राह्मण
यह कान्यकुब्ज समुदाय की ही एक शाखा है। इनके अलग होने का कारण एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार श्रीराम द्वारा रावण वध के बाद श्री राम जी को ब्रह्म हत्या का पाप लगा और प्रायश्चित स्वरूप जी यज्ञ करना चाहिए तो कुछ ब्राह्मणों ने सीधे मना न करने के बावजूद सरजू स्नान के बहाने सरयू के दूसरे तट पर आ गए और वहीं बस गई इस प्रकार वे सरजू पारी ब्राह्मण हो गए। जब उन्होंने ब्राह्मणों से यज्ञ करवाया तो कुछ ब्राह्मण स्नान के बहाने सरयू नदी पार कर दूसरी ओर चले गए और उन्होंने यज्ञ में भाग नहीं लिया।ऋषियों और ब्राह्मणों ने राम को ब्रह्म हत्या का दोषी माना पर इससे ज्यादा पाप और ब्राह्मणों की हत्या रावण ने कराया था लेकिन उसके बारे में किसी ऋषि ने कोई टिप्पणी नहीं की।राक्षस राज रावण ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बावजूद , अन्य ऋषि मुनियों और वेदपति ब्राह्मणों को खास तौर पर मरवाया करता था , कभी किसी ब्राह्मण ने उसे प्रायश्चित करने नहीं कहा न उसे कभी ब्रह्म हत्या का पाप ही लगा।
कान्यकुब्ज मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। सरयूपारीण ब्राह्मण, कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की ही एक शाखा हैं, जिनका नामकरण सरयू नदी पार के निवास के कारण हुआ है। सरयूपारीण मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीस गढ़ और झारखंड जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। सरयूपारीण ब्राह्मण, कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की ही एक शाखा हैं, जिनका नामकरण सरयू नदी पार के निवास के कारण हुआ है।
सरयूपारीण या सरवरिया ब्राह्मण
सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयुपार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। इसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं।