श्रीमदभागवतपुराण माहात्म्य द्वितीयोsध्यायः( प्रसंग 24)
डा. राधे श्याम द्विवेदी
सूतजी नैमिषारण्य नाम में श्रीमद भागवत महापुराण को अपने शिष्यों (शौनक जी आदि)को सुना रहे है।आगे सूतजी कहते है --
भक्ति के करुणामय वचन सुनकर नारद जी को बड़ी करुणा हुयी। वे कहते है की कलियुग में इनकी उपेक्षा होने के कारण तुम्हारे ये (भक्ति) पुत्र उत्साहहीन और वृद्ध हो गए है। फिर भी तुम चिंता न करो। मैं इनके नवजीवन का कुछ उपाय सोचता हूँ।
वे भक्ति के पुत्रो ज्ञान और वैराग्य को हिला डुला कर जगाने लगते है। फिर उनके कान में आवाज़ देते है कि – ओ ज्ञान! जल्दी जागो। ओ वैराग्य ! जल्दी जागो। फिर उन्होंने वेदधव्नि, वेदांतघोष, और बार बार गीतापाठ करके उन्हें जगाया। इससे वे जैसे तैसे जोर लगाकर उठे। लेकिन आलस्य के कारण बार -बार जम्भाई लेने लगे। उनके बाल बगुले के तरह सफ़ेद हो गए थे। भूख प्यास के मारे दोनों दुर्बल सा हो फिर से सो गए तो नारद जी को बड़ी चिंता हुई। सोचने लगे की इनकी नींद और सबसे बड़ी इनकी वृदावस्था कैसे दूर हो? क्या उपाय किया जाए?
सोच सोच कर दुखी होने लगे। और श्री नारायण को याद करने लगे। मैं तीर्थों में भ्रमण करता हुआ संतो से पूछता हुआ यहां आया हूं। यहां सौभाग्य से सनकादि के दर्शन हुए अब आप कृपा करके बताएं।
श्लोक- मा• 2.13
नारद जी बोले, हे!भक्ति कलयुग के समान कोई युग नहीं है, मैं तेरी घर-घर में स्थापना करूंगा ।
भक्ती बोली, हे नारद ! आप धन्य है। मेरे में आपकी इतनी प्रीति है |
इसके बाद नारदजी ने ज्ञान बैराग को जगाने का प्रयास किया। उनके कान कान के पास मुंह लगाकर बोले-- हे ज्ञान जागो , हे वैराग्य जागो और उन्हें वेद और गीता का पाठ सुनाया, किंतु ज्ञान बैराग कुछ जमुहायी लेकर वापस सो गए ।
नारद जी ब्रह्मा के तेजस्वी पुत्र है। उन्हें दुखी जानकर, उस समय एक आकाशवाणी हुयी – हे मुने! खेद मत करो, तुम्हारा यह उद्योग (कार्य) निसंदेह सफल होगा। देवर्षि इसके लिए तुम सत्कर्म करो। वह कर्म तुम्हे संतशिरोमणि महानुभाव बतायेगे। उस सत्कर्म का अनुष्ठान करते ही क्षणभर में ही ज्ञान और वैराग्य की नींद और वृद्धवस्था चली जाएगी। सर्वत्र भक्ति का प्रसार हो जायेगा।
नारद जी बोले – इस आकाशवाणी ने मार्ग तो बताया है , लेकिन वह भी गुप्त है। यह नहीं बताया की कौन सा सत्कर्म करना है? और वो संत शिरोमणि कौन है और कहाँ मिलेंगे जो इसके बारे में बताएँगे?
इतना सोच कर नारद मुनि अपने कार्य करने के लिए निकल पड़ते है। वो प्रत्येक तीर्थ में जा जाकर मुनियो और ऋषियों से इस बारे में पूछते। सभी उनकी बात को ध्यान से सुनते पर कुछ भी उत्तर देने में असमर्थ थे। कुछ इसे असाध्य बताते ,तो कुछ मौन हो जाते।
त्रिलोक में हाहाकार मच गया। सभी कानाफूसी करने लगे कि देवर्षि नारद के वेदधव्नि, वेदांतघोष, और बार बार गीता पाठ करने से भी भक्ति के पुत्र ज्ञान और वैराग्य नहीं उठ सके। तो भला अब क्या उपाय सकता है? स्वयं देवर्षि नारद को इस विषय में ज्ञान नहीं है। इस त्रिलोक कौन वह संतो का संत, शिरोमणि और ज्ञानी है जो मार्ग दर्शन करेगा ?
नारद जी जिन -जिन संतो से पूछते वो सब इसे असाध्य ही बताते तो नारद जी बड़े व्याकुल हो गए। उन्होंने सोचा अब मैं तप करूँगा, तभी इसका समाधान निकलेगा।
लेकिन तभी उनके सामने करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्वी सनकादि मुनि प्रकट हुए।
कौन है सनकादि ऋषि? इस बारे में जान ले।
जब नौ सृष्टि की रचना करके ब्रह्मा जी को संतुष्टि न मिली तब उन्होंने मन में नारायण का ध्यान कर मन से दशम सृष्टि सनकादि मुनियों की उत्पति की थी ,जो साक्षात् भगवान ही थे। सनकादि ऋषि (सनकादि = सनक + आदि) से तात्पर्य ब्रह्मा के चार पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार से है। ये ब्रह्मा की अयोनिज संताने हैं ,जो १० सृष्टियों में से ही गिने जाते हैं। ये प्राकृतिक तथा वैकृतिक दोनों सर्गों से हैं। इनकी आयु सदैव पाँच वर्ष की रहती है।
ब्रह्मा जी नें उन बालकों से कहा था कि पुत्र जाओ सृष्टि करो। सनकादि मुनियों नें ब्रह्मा जी से कहा “पिताश्री! क्षमा करें। हमारे हेतु यह माया तो अप्रत्यक्ष है। हम भगवान की उपासना से बड़ा किसी वस्तु को नहीं मानते हैं। अतः हम चारो भाई जाकर उन्हीं की भक्ति करेंगे।”
सनकादि मुनि वहाँ से चल पड़े। वे वहीं जाया करते हैं जहाँ परमात्मा का भजन होता है। नारद जी को इन्होंने श्रीमद भागवत सुनाया था तथा ये स्वयं भगवान शेष से भागवत श्रवण किये थे। पुराणों में उनकी विशेष महत्ता वर्णित है।
नारद जी ने जैसे ही सनकादि ऋषि को देखा तो समझ गए कि त्रिलोक में इनसे बड़ा संत शिरोमणि कोई नहीं है। यही है जो मेरे साधन का उपाय कर सकते है।
इस पर नारद जी बोले सारे ग्रंथों का मूल तो वेद है , फिर श्रीमद्भागवत से उनके कष्ट की निवृत्ति कैसे होगी ?
कुमार बोले--
मूल धूल में रहत है , शाखा में फल फूल ।
फल फूल तो शाखा में ही लगते हैं ।
नारद जी बोले – महात्मन ! ये मेरा सौभाग्य है कि आपका यहाँ आगमन हुआ है। आप विद्वानों के विद्वान है, कृपया मेरे समस्या का उपाय बताये।
यह सुन नारद जी बोले--(श्लोक- मा• 2.13)
अनेक जन्मों के पुण्य उदय होने पर सत्संग मिलता है। तब उसके अज्ञान जनित मोह और मद रूप अहंकार का नाश होकर विवेक उदय होता है |
ज्ञान बैराग व भक्ति का दुख कैसे दूर होगा ? नारद जी ने पूछा।
कुमार बोले, हे नारद !आप चिंता ना करें। उपाय तो सरल है उसे आप जानते भी हैं । इस कलयुग में ही श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा सुनाई थी । वही ज्ञान बैराग के लिए उपाय है |
सनकादि ऋषि द्वारा ज्ञान और वैराग्य के लिए उपाय –
सनकादि ऋषि बोले – देवर्षि नारद! आप चिंता न करे। आप मन में प्रसन्न हो, क्योंकि ज्ञान और वैराग्य के उद्धार का एक सरल उपाय है। नारद जी! द्रव्ययज्ञ, तपोयज्ञ, योगयज्ञ और ज्ञानयज्ञ ये चारो ही मुक्ति का मार्ग है। जो स्वर्गादि कराने वाले है।
लेकिन पंडितो ने ज्ञानयज्ञ को ही सत्कर्म का सूचक माना है। और उस ज्ञानयज्ञ का साधन यह श्रीमद भागवत ही है। जिसका गान शुकादि महानुभावो ने किया है। इसके द्वारा ही ज्ञान और वैराग्य को बल मिलेगा। सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िये भाग जाते है वैसे ही श्रीमद भागवत की धवनि से कलियुग के सारे दोष नष्ट हो जाते है। तब प्रेमरस प्रवाहित करने वाली भक्ति अपने ज्ञान और वैराग्य पुत्रो के साथ प्रत्येक घर और व्यक्ति के ह्रदय में क्रीड़ा करेगी। यह भागवत पुराण वेदो के समान है। श्री व्यासदेव ने इसे भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की स्थापना के लिए प्रकाशित किया है।
नारद जी ने कहा – हे महानुभावो! मैं समझ गया। आप निरन्तर ही शेष जी के सहस्त्र मुख्य से गाये हुए श्री भगवदकथा का ही रसपान करते रहते है। मैं ज्ञान और वैराग्य के लिए वैसा ही उपाय करुगा।
इति द्वितीयो अध्यायः
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