श्रीमद्भागवत महापुराण भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है।भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है।इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है।इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति,सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग,अनुग्रह-मार्ग,द्वैत,अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है,जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है।इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है।परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता ‘श्रीवेदव्यास’ को माना जाता है।
अठारह (१८) पुराणों में भागवत महापुराण नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है।पुराणों की गणना में भागवत को अष्टम (८वां) पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत १२:७:२३)।श्रीभागवतमहा पुराण में महर्षि सूत जी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं।साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं।श्रीसूत जी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी।इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं।प्रथम स्कन्ध में सभी अवतारों का सारांश रूप में वर्णन किया गया है।भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है।स्वयं भागवत में कहा गया है:-
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित्॥
श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है।उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है,उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती,अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।यह गोपनीय-रहस्यात्मक पुराण है।यह भगवत्स्वरूप का अनुभव कराने वाला और समस्त वेदों का सार है।संसार में फँसे हुए जो लोग इस घोर अज्ञानान्धकार से पार जाना चाहते हैं,उनके लिये अध्यात्मिक तत्त्वों को प्रकाशित कराने वाला यह एक अद्वितीय दीपक है।वास्तव में उन्हीं पर करुणा करके बड़े-बड़े मुनियों के आचार्य श्रीशुकदेव जी ने इसका वर्णन किया है।मैं उनकी शरण ग्रहण करता हूँ।मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ भगवान के अवतार नर- नारायण ऋषियों को, सरस्वती देवि को और श्री व्यासदेव जी को नमस्कार करके सब संसार और अन्तःकरण के समस्त विकारों पर विजय प्राप्त कराने वाले इस श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ करना चाहिये।श्रीमद्भागवत महापुराण के बारह स्कंधों का संक्षिप्त वर्णन कथा सार के रूप में निम्नवत प्रस्तुत किया जा रहा है:-
१-प्रथम स्कंध:-
प्रथम स्कंध में उनतीस अध्याय हैं जिनमें शुकदेव जी ईश्वर भक्ति का माहात्म्य सुनाते हैं।भगवान के विविध अवतारों का वर्णन,देवर्षि नारद के पूर्वजन्मों का चित्रण,राजा परीक्षित के जन्म,कर्म और मोक्ष की कथा,अश्वत्थामा का निन्दनीय कृत्य और उसकी पराजय,भीष्म पितामह का प्राणत्याग,श्रीकृष्ण का द्वारका गमन,विदुर के उपदेश,धृतराष्ट्र,गान्धारी तथा कुन्ती की वन गमन एवं पाण्डवों का स्वर्गारोहण के लिए हिमालय में जाना आदि घटनाओं का क्रमवार कथानक के रूप में वर्णन किया गया है।
द्वितीय स्कंध:-
द्वितीय स्कंध का प्रारम्भ भगवान के विराट स्वरूप वर्णन से होता है।इसके बाद विभिन्न देवताओं की उपासना,गीता का उपदेश,श्रीकृष्ण की महिमा और ‘कृष्णार्पणमस्तु‘ की भावना से की गई भक्ति का उल्लेख है।इसमें बताया गया है कि सभी जीवात्माओं में ‘आत्मा’ स्वरूप कृष्ण ही विराजमान हैं।पुराणों के दस लक्षणों और सृष्टि-उत्पत्ति का उल्लेख भी इस स्कंध में मिलता है।
तृतीय स्कंध:-
यह स्कंध उद्धव और विदुर जी की भेंट के साथ प्रारम्भ होता है।इसमें उद्धव जी श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं तथा अन्य लीला चरित्रों का उल्लेख करते हैं।इसके अतिरिक्त विदुर और मैत्रेय ऋषि की भेंट,सृष्टि क्रम का उल्लेख,ब्रह्मा की उत्पत्ति,काल विभाजन का वर्णन,सृष्टि-विस्तार का वर्णन,वराह अवतार की कथा,दिति के आग्रह पर ऋषि कश्यप द्वारा असमय दिति से सहवास एवं दो अमंगलकारी राक्षस पुत्रों के जन्म का शाप देना जय-विजय का सनत्कुमार द्वारा शापित होकर विष्णुलोक से गिरना और दिति के गर्भ से ‘हिरण्याक्ष’ एवं ‘हिरण्यकशिपु’ के रूप में जन्म लेना,वराह अवतार द्वारा हिरण्याक्ष का वध, कर्दम-देवहूति का विवाह,तथा कर्दम-देवहूति के पुत्र कपिल मुनि के रूप में भगवान का अवतार सांख्य शास्त्र का उपदेश आदि का वर्णन इस स्कंध में किया गया है।इसके बाद नन्दबाबा ने भेंट की जो-जो सामग्री दी थी वह उनको, वसुदेवजी,बलरामजी और राजा उग्रसेन को दे दी॥
चतुर्थ स्कंध:-
चतुर्थ स्कंध की प्रसिद्धि ‘पुरंजनोपाख्यान’ के कारण बहुत अधिक है।इसमें पुरंजन नामक राजा और भारतखण्ड की एक सुन्दरी का रूपक दिया गया है।इस कथा में पुरंजन भोग-विलास की इच्छा से नवद्वार वाली नगरी में प्रवेश करता है।वहाँ वह यवनों और गंधर्वों के आक्रमण से माना जाता है।रूपक यह है कि नवद्वार वाली नगरी यह शरीर है।युवावस्था में जीव इसमें स्वच्छंद रूप से विहार करता है।लेकिन कालकन्या रूपी वृद्धावस्था के आक्रमण से उसकी शक्ति नष्ट हो जाती है और अन्त में उसमें आग लगा दी जाती है।रूपक को स्पष्ट करते हुए नारद जी कहते हैं- “पुरंजन देहधारी जीव है और नौ द्वार वाला नगर यह मानव देह है (नौ द्वार- दो आँखें,दो कान,दो नासिका छिद्र,एक मुख,एक गुदा,एक लिंग)।अविद्या तथा अज्ञान की माया रूपी वह सुन्दरी है।उसके दास सेवक दस इन्द्रियाँ हैं।इस नगर की रक्षा पंचमुखी सर्प करते हैं।ग्यारह सेनापति,पाप और पुण्य के दो पहिए,तीन गुणों वाली रथ की ध्वजा,त्वचा आदि सात धातुओं का आवरण तथा इन्द्रियों द्वारा भोग शिकार का प्रतीक है।काल की प्रबल गति एवं वेग ही शत्रु गंधर्व चण्डवेग है।उसके तीन सौ साठ गंधर्व सैनिक वर्ष के तीन सौ साठ दिन एवं रात्रि हैं,जो शनै:-शनै: आयु का हरण करते हैं।पाँच प्राण वाला मनुष्य रात-दिन उनसे युद्ध करता रहता है और हारता रहता है।काल भयग्रस्त जीव को ज्वर अथवा व्याधि से नष्ट कर देता है।इस रूपक का भाव यही है कि मनुष्य अपनी इन्द्रियों के उपभोग से निरन्तर भोग-विलास में पड़कर अपने शरीर का क्षय करता रहता है।वृद्धावस्था आने पर शक्ति क्षीण होकर अनेक रोगों से ग्रस्त एवं नष्ट हो जाता है।परिजन उसके पार्थिव शरीर को आग की भेंट चढ़ा देते हैं।
पंचम स्कंध:-
पाँचवें स्कंध में प्रियव्रत,अग्नीध्र,राजा नाभि,ऋषभदेव तथा भरत आदि राजाओं के चरित्रों का वर्णन है।यह भरत जड़ भरत है,शकुन्तला पुत्र नहीं।भरत का मृग मोह में मृग योनि में जन्म, फिर गण्डक नदी के प्रताप से ब्राह्मण कुल में जन्म तथा सिंधु सौवीर नरेश से आध्यात्मिक संवाद आदि का उल्लेख है।इसके पश्चात पुरंजनोपाख्यान की भाँति भवाटवी का वर्णन किया गया है जिसमे रूपक द्वारा प्राणियों के संसार रूपी भवसागर में मोह रुपी दल-दल का सुन्दर वर्णन किया गया है।इसके बाद भरत वंश तथा भुवन कोश का वर्णन है।भारत का भौगोलिक वर्णन तथा भगवान विष्णु का स्मरण शिशुमार नामक ज्योतिष चक्र द्वारा करने की विधि बताई गई है।अंत में अट्ठाइस प्रकार के नरकों रौरव नर्क का वर्णन यहाँ किया गया है।
षष्ठ स्कंध:-
षष्ठ स्कंध में ‘नारायण कवच’ और पुंसवन व्रत विधि का वर्णन जनोपयोगी दृष्टि से किया गया है।पुंसवन व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।व्याधियों,रोगों तथा ग्रहों के दुष्प्रभावों से मनुष्य की रक्षा होती है।एकादशी एवं द्वादशी के दिन इसे अवश्य करना चाहिए।
इस स्कंध का प्रारम्भ कान्यकुब्ज ब्राह्मण अजामिल उपाख्यान से होता है।अपनी मृत्यु के समय अजामिल अपने पुत्र ‘नारायण’ को पुकारता है।उसकी पुकार पर भगवान विष्णु के दूत आते हैं और उसे परमलोक ले जाते हैं।भागवत धर्म की महिमा बताते हुए विष्णु-दूत कहते हैं कि चोर,शराबी,मित्र-द्रोही, ब्रह्मघाती, गुरु-पत्नीगामी और चाहे कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो,यदि वह भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करता है तो उसके कोटि-कोटि जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।किन्तु इस कथन में अतिशयोक्ति दिखाई देती है।परस्त्रीगामी और गुरु की पत्नी के साथ समागम करने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता।यह तो जघन्य पाप है।ऐसा व्यक्ति रौरव नरक में ही गिरता है।इसी स्कंध में दक्ष प्रजापति के वंश का भी वर्णन प्राप्त होता है।नारायण कवच के प्रयोग से इन्द्र को शत्रु पर भारी विजय प्राप्त होती है।इस कवच का प्रभाव मृत्यु के पश्चात भी रहता है।इसमें वृत्रासुर राक्षस द्वारा देवताओं की पराजय, दधीचि ऋषि की अस्थियों से वज्र निर्माण तथा वृत्रासुर के वध की कथा भी दी गई है।
सप्तम स्कंध:-
सप्तम स्कंध में भक्तराज प्रह्लाद और हिरण्यकश्यपु की कथा विस्तारपूर्वक है।नृसिंह अवतार की कथा इसके अतिरिक्त नवधा भक्ति,धर्म,त्याग,तथा निस्पृहता आदि की चर्चा की गई है।
अष्टम स्कंध:-
इस स्कंध में ग्राह द्वारा गजेन्द्र के पकड़े जाने पर विष्णु द्वारा गजेन्द्र उद्धार की कथा का रोचक वृत्तान्त है।इसी स्कन्ध में समुद्र मन्थन और मोहिनी रूप में विष्णु द्वारा अमृत बांटने की कथा भी है।देवासुर संग्राम और भगवान के ‘वामन अवतार‘ की कथा भी इस स्कंध में है।अन्त में ‘मत्स्यावतार‘ की कथा यह स्कंध समाप्त हो जाता है।
नवम स्कंध:-
पुराणों के एक लक्षण ‘वंशानुचरित’ के अनुसार, इस स्कंध में वैवस्वत मनु एवं उनके पाँच पुत्रों के वंश-इक्ष्वाकु वंश,निमि वंश,चंद्र वंश,विश्वामित्र वंश तथा पुरू वंश,भरत वंश,मगध वंश,अनु वंश,द्रह्यु वंश,तुर्वसु वंश और यदु वंश आदि का वर्णन प्राप्त होता है।राम,सीता आदि का भी विस्तार से विश्लेषण किया गया है।उनके आदर्शों की व्याख्या भी की गई है।
दशम स्कंध:-
यह स्कंध दो खण्डों- ‘पूर्वार्द्ध’ और ‘उत्तरार्द्ध’ में विभाजित है।इस स्कंध में श्रीकृष्ण चरित्र विस्तारपूर्वक है।प्रसिद्ध ‘रास पंचाध्यायी‘ भी इसमें प्राप्त होती है। ‘पूर्वार्द्ध’ के अध्यायों में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर अक्रूर जी के हस्तिनापुर जाने तक की कथा है। ‘उत्तरार्द्ध’ में जरासंध से युद्ध,द्वारकापुरी का निर्माण,रुक्मिणी हरण, श्रीकृष्ण का गृहस्थ धर्म,शिशुपाल वध आदि का वर्णन है।यह स्कंध पूरी तरह से श्रीकृष्ण लीला से भरपूर है।इसका प्रारम्भ वसुदेव देवकी के विवाह से प्रारम्भ होता है।भविष्यवाणी,कंस द्वारा देवकी के बालकों की हत्या,कृष्ण का जन्म,कृष्ण की बाल लीलाएं,गोपालन,कंस वध,अक्रूर जी की हस्तिनापुर यात्रा, जरासंध से युद्ध, द्वारका पलायन,द्वारका नगरी का निर्माण, रुक्मिणी से विवाह,प्रद्युम्न का जन्म,शम्बासुर वध,स्यमंतक मणि की कथा,जांबवती और सत्यभामा से कृष्ण का विवाह, उषा-अनिरुद्ध का प्रेम प्रसंग,बाणासुर के साथ युद्ध तथा राजा नृग की कथा आदि के प्रसंग आते हैं।इसी स्कंध में कृष्ण-सुदामा की मैत्री की कथा भी दी गई है।
एकादश स्कंध:-
एकादश स्कंध में राजा जनक और नव योगेश्वर (नौ योगियों के) संवाद द्वारा भगवान के भक्तों के लक्षण गिनाए गए हैं।ब्रह्मवेत्ता दत्तात्रेय महाराज यदु को उपदेश देते हुए उनके द्वारा बनाए गए चौबीस गुरु पृथ्वी,वायु आकाश,जल,अग्नि,चन्द्रमा,सूर्य,कबूतर,वैश्या,कुंवारी कन्या आदि से प्राप्त शिक्षाओं की विस्तृत चर्चा की।आगे उद्धव को शिक्षा देते हुए अठ्ठारह प्रकार की सिद्धियों का वर्णन किया गया है।इसके बाद ईश्वर की विभूतियों का उल्लेख करते हुए वर्णाश्रम धर्म,ज्ञान योग,कर्मयोग और भक्तियोग का वर्णन है।
द्वादश स्कंध:-
इस स्कंध में राजा परीक्षित के बाद के राजवंशों का वर्णन भविष्यकाल में किया गया है।इसका सार यह है कि १३८ वर्ष तक राजा प्रद्योतन,फिर शिशुनाग वंश के दास राजा, मौर्य वंश के दस राजा १३६ वर्ष तक,शुंग वंश के दस राजा ११२ वर्ष तक, कण्व वंश के चार राजा ३४५ वर्ष तक, फिर आन्ध्र वंश के तीस राजा ४५६ वर्ष तक राज्य करेंगे।इसके बाद आमीर,गर्दभी,कड, यवन,तुर्क,गुरुण्ड और मौन राजाओं का राज्य होगा। मौन राजा ३०० वर्ष तक और शेष राजा एक हज़ार निन्यानवे वर्ष तक राज्य करेंगे।इसके बाद वाल्हीक वंश और शूद्रों तथा म्लेच्छों का राज्य हो जाएगा।धार्मिक और आध्यात्मिक कृति के अलावा शुद्ध साहित्यिक एवं ऐतिहासिक कृति के रूप में भी यह पुराण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
॥श्री कृष्ण:शरणं मम॥
No comments:
Post a Comment