पतित पावनी माँ सरयू नदी रूप में अवतरित होकर सदियोँ से मानव कल्याण करती आ रही है। अयोध्या बहुत समय तक कौसल राज्य की राजधानी हुआ करती थी। महाकाव्य रामायण के अनुसार राम का जन्म यहीं हुआ था। संतों का कहना है कि धर्म की पुरानी किताबों में भी इस शहर का नाम अयोध्या ही मिलता है । फैजाबाद एक ऐसा शहर रहा है, जो कई बार बनता बिगड़ता रहा है, कभी इसने अपना चरमोत्कर्ष देखा है तो कभी उपेक्षाएं भी झेली हैं। शायर सैय्यद शमीम अहमद शमीम ने फैजाबाद शहर के लिए लिखा है–
“सभ्यताओं का इसे शीशमहल कहते हैं। कुछ ऐसे हैं जो जन्नत का बदल कहते हैं।”
अनेक नाम:-
अयोध्या के कई ऐतिहासिक और पौराणिक नाम मिलते हैं, जिनमें अयोध्या, पूर्वदेश,साकेत, कोसल, कोसलपुर, कौशलानंदनी, उत्तर कोसल,धर्मपुर, अवधपुरी, रघुवरपुर, रामनगरी, और उत्तमपुरी और आदि बारह नाम प्रमुख हैं। ये सभी नाम शहर के प्राचीन इतिहास और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। इसका उल्लेख बौद्ध और जैन ग्रंथों के साथ-साथ हिंदू धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।
फ़ैज़ = फ़ायदा से बना फैजाबाद नाम:-
अयोध्यापुरी में फ़ैज़ाबाद शहर की स्थापना अवध के पहले नबाव सआदत अली खान ने 1730 में अपनी राजधानी बनाकर की थी और अयोध्या का नाम बदलकर फ़ैज़ाबाद कर दिया था। यह ऐसी जगह है, जहाँ से सबको फ़ैज़ (फ़ैज़ का मतलब फ़ायदा) हो रहा है। इस तरह इस जगह का नाम फ़ैज़ से फ़ैज़ाबाद हो गया। ऐसी जगह, जहाँ सबको आराम और फ़ायदा मिल रहा था, सबकी ख़्वाहिशें पूरी हो रही हो उसे फैजाबाद कहा गया है।
फ़ैज़ाबाद से रहा नवाबों का रिश्ता :-
उस दौर में दिल्ली पर मुग़ल बादशाहों का शासन था। मुग़ल शासक अलग-अलग रियासतों की ज़िम्मेदारी सूबेदारों को सौंपते थे। ये सूबेदार ही रियासत से जुड़े फ़ैसले लेते थे। इसी क्रम में साल 1722 ई. में अवध रियासत की ज़िम्मेदारी सआदत ख़ान को सौंपी गई थी। इन सूबेदारों को नवाब कहा जाता है। इनका ओहदा नवाब वज़ीर का था, जो प्रधानमंत्री के बराबर का पद होता था । अवध के सबसे पहले नवाब वज़ीर को दिल्ली दरबार से सआदत ख़ान को 'बुरहान-उल-मुल्क' का ख़िताब मिला था। उनका असली नाम मीर मोहम्मद अमीन था। वे 1722 से 1739 तक नवाब वज़ीर रहे, मगर उन्होंने यहाँ ज़्यादा समय नहीं बिताया था। उस समय लड़ाइयों का दौर रहा था। सआदत ख़ान एक लड़ाके थे। वे ज़्यादातर समय जंग के मैदान में ही रहते थे। शुरू में वे सरयू के तट पर तम्बू में दरबार लगाना शुरू किया था।बाद में जरूरत के मुताबिक यहां कई भवनों का निर्माण शुरू किया गया था।
कलकत्ता फोर्ट
फैजाबाद सैन्य मुख्यालय बना :-
नवाब सफदरजंग ने 1739-54 में इसे अपना सैन्य मुख्यालय यहां बनाया।इसके बाद शुजाउद्दौला ने फैजाबाद में किले का निर्माण कराया था। यह वह दौर था जब यह शहर अपनी बुलंदियों पर था।लखनऊ से इसकी दूरी सिर्फ130 किमी थी, लेकिन इसे छोटा कोलकाता भी कहा जाता था क्योंकि नवाब उधर से होते हुए यहां आए थे और अपनी तहजीब और रंग ढंग भी लेते आए थे।
सफ़दरजंग ने डाली थी आधुनिक फ़ैज़ाबाद की नींव :-
1739 में सआदत ख़ान की मौत के बाद उनके दामाद, जो उनके भांजे भी थे, दूसरे नवाब वज़ीर बने।उनका असली नाम मिर्ज़ा मोहम्मद मुक़ीम था।'सफ़दरजंग' नाम उन्हें दिल्ली दरबार से ख़िताब में मिला था। सफ़दरजंग ने भी अवध में बहुत कम समय बिताया था, क्योंकि उन पर कई और ज़िम्मेदारियाँ भी थीं।मोहम्मद मुक़ीम ज़्यादातर समय बाहर रहते थे। फिर भी उन्होंने फ़ैज़ाबाद में बहुत-सी इमारतों की नींव रखी थी। यह भी कह सकते हैं कि आधुनिक फ़ैज़ाबाद की नींव उनके काल में ही पड़ी।
शुजाउद्दौला ने किया था फ़ैज़ाबाद का विकास:-
शुजाउद्दौला का समय एक तरह से फैजाबाद के लिए स्वर्णकाल कहा जा सकता है। उस दौरान फैजाबाद ने जो समृद्धि हासिल की वैसी दोबारा नहीं कर सका। फ़ैज़ाबाद में विकास का ज़्यादातर काम शुजाउद्दौला के काल में ही हुआ था। बड़े-बड़े बगीचे, महल और ऐतिहासिक स्थल, जो अब ख़त्म हो चुके हैं, ये सब उनके ही दौर में बने थे। उन्होंने इसे व्यापार का केंद्र बना दिया था। उस दौर में यहां कई इमारतों का निर्माण हुआ जिनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं।
सुजा-उद्-दौला के उत्तराधिकारी असफ-उद-दौला ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाई। उपर्युक्त नवाबों के शासन काल के दौरान फैजाबाद में कई स्मारकीय भवन बनाए गए, जिनमें से गुलाबबाड़ी, बहू वेगम का मकबरा, बनीखानम की कब्र और हाजी इकबाल की कब्र आदि निशानियां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के केन्द्रीय संरक्षित स्मारक है।
-:फैजाबाद की प्रमुख निशानियां :-
दिलकुशा कोठी :-
अवध के तीसरे नवाब शुजा-उद-दौला, जो 1754 से 1775 तक नवाब थे, ने बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों द्वारा पराजित होने के बाद 1752 के आसपास यहां दिलकुशा कोठी का निर्माण किया था।
दिलकुशा बंगला1752 में अवध के दूसरे नवाब सफ़दरजंग की मृत्यु हो गई।उनके बाद उनके बेटे शुजाउद्दौला अवध के तीसरे नवाब वज़ीर बने थे। शुजाउद्दौला का परिवार दिलकुशा की पहली मंज़िल पर रहता था। पिछले दो नवाबों के उलट, शुजाउद्दौला ने फ़ैज़ाबाद में काफ़ी समय बिताया था । उन्हीं के दौर में कच्चे बंगले के रूप में इसका निर्माण हुआ और यह दिलकुशा बंगला बन गया।
इस दो-मंज़िला इमारत की हर मंज़िल पर क़रीब 10 कमरे थे। कोठी की पहली मंज़िल पर नवाब शुजाउद्दौला और उनका परिवार रहता था, जबकि निचली मंज़िल पर उनके दरबार के लोग रहते थे , जहाँ से वे रियासत से जुड़े फ़ैसले करते थे।
सैनिकों के लिए कैंटोनमेंट एरिया :-
शुजाउद्दौला के सैनिक भी दिलकुशा के परिसर में रहते थे।कोठी के चारों तरफ़ सैकड़ों बैरक बने थे, जिनमें सैनिक रहते थे। इसी स्थल को पहले अंग्रेजों और बाद में भारतीय सेना ने अपना कैंटोनमेंट क्षेत्र बनाया था। प्रशासनिक कामों में लगे कर्मियों के रहने के लिए कोठी के बाहरी इलाक़े को रिहायशी इलाक़े में विकसित कर दिया गया था। वहाँ पुरानी सब्ज़ी मंडी, टकसाल, दिल्ली दरवाज़ा, रकाब- गंज, हंसु कटरा जैसी जगहें बनाई गई थीं।
एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक:-
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) की मॉन्यूमेंट्स की सूची में उस समय फ़ैज़ाबाद की 57 जगहें थीं, इनमें बाग, क़िले, मक़बरे जैसी जगहें हैं, लेकिन इनमें से कुछ ही को संरक्षित करके रखा गया है। वर्तमान में संरक्षित स्मारकों की ये संख्या घट कर आठ रह गई हैं ।
फैजाबाद (अब अयोध्या) जिले के केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में पांच ऐतिहासिक नबाबी और तीन अयोध्या पौराणिक टीले : मणि पर्वत,कुबेर पर्वत और सुग्रीव पर्वत के अयोध्या के धर्म स्थल असंरक्षित प्रकिया में हैं। इसके अलावा अन्यानेक गैर संरक्षित स्मारक भी अपना खास मुकाम बनाए रखे हैं।
1.बेनी खानम का मकबरा फैजाबाद
बनी खानम का मकबरा नवाबी काल का एक महत्वपूर्ण स्मारक है। बनी खानम नवाब नजम-उद्-दौला की पत्नी थीं। यह मकबरा बनी खानम के गुलाम अल्मस अली खां ने बनवाया था। इस इमारत का निर्माण १८ वीं सदी के उत्तरार्द्ध में किया गया। इस मकबरे का भूतल आयाताकार है जिस पर निर्मित वर्गाकार कक्ष के मध्य में कब्र स्थित है। गुम्बद पूर्णतया गुलाब बाड़ी शैली में बना है। इसके निर्माण में लखौरी ईंटो और गचकारी का प्रयोग किया गया है, परन्तु फर्श का निर्माण पत्थरों से किया गया है। फैजाबाद के रेतिया स्थित आकाशवाणी के पास बनीखानम का मकबरा ऐतिहासिक धरोहर व पुरातत्व संरक्षित है। वक्फ बनी खानम मकबरा, 1359 फसली के अभिलेख में भी दर्ज है।
2.गुलाब बाड़ीऔर शुजाउद्दौला का मकबरा फैजाबाद:-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित एकमात्र विरासत गुलाब बारी (गुलाबों का बगीचा) है, जो विभिन्न प्रकार के फूलों और एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के लिए जाना जाता है। गुलाबबाड़ी नवाबी वास्तुशैली का सुन्दर नमूना है। इस चारबाग शैली में निर्मित बगीचे को सफदर जंग ने बनवाया था। नवाब के शासनकाल के दौरान महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों की मेजबानी के लिए गुलाब बारी काइस्तेमाल किया जाता था। वास्तुकला की इस्लामी शैली में निर्मित, भव्य मकबरा यूपी में सबसे अच्छी तरह से डिजाइन किए गए स्मारकों में से एक है।गुलाब बाड़ी में दो बाहरी प्रांगण एवं एक मुख्य प्रांगण है। बाहरी प्रांगण में प्रवेश के लिए मेहराबदार दो सुन्दर दरवाजे हैं। दूसरे प्रांगण में प्रवेश हेतु भी भव्य प्रवेश द्वार है। मुख्य द्वार के उत्तर ओर बाहरी दीवार से लगी एक मस्जिद तथा उसके दक्षिण की तरफ एक दो मंजिला इमारत है जिसे बनाने का ध्येय अज्ञात है। यह संभवतः इमामबाड़ा है। बगीचे के चारों ओर पानी की नालियां हैं। मकबरा त्रितलीय है जिस पर गुम्बद निर्मित है। प्रथम तल एक बड़ा वर्गाकार चबूतरा है , जिस पर एक बड़ा वर्गाकार केन्द्रीय कक्ष है । जिसके चारों ओर छोटे वर्गाकार और आयताकार कक्ष और स्तम्भ युक्त बरामदे हैं। कब्र केन्द्रीय कक्ष में स्थित है। यह ऊँची छत से युक्त छोटा वर्गाकार केन्द्रीय भाग है जिसके ऊपर गोलाकार गुम्बद के साथ वातायन बने हैं।
प्रवेश द्वार पर राष्ट्रीय प्रतीक के साथ एक बड़ा स्तंभ है। कहा जाता है कि यह देश का अकेला ऐसा मकबरा है, जहां पर भारत सरकार ने अशोक स्तंभ लगवाया था। इसके साथ एक सुव्यवस्थित पैदल मार्ग, जिसके दोनों ओर लहराते नारियल के पेड़ लगे हैं, जो एक प्राचीन धनुषाकार प्रवेश द्वार की ओर जाता है। बगीचे में एक सुंदर मस्जिद और एक छोटा सा प्रहरीदुर्ग भी है जो इसके ठीक बगल में खड़ा है। मकबरे के धनुषाकार मार्ग से घूमने पर एक आकर्षक अनुभव होता है।
यह विशाल बगीचा शुजाउद्दौला और उनके परिवार की कब्रों को घेरे पूरे क्षेत्र में फैला है। इस बगीचे को सन् 1775 में स्थापित किया गया था और इसमें कई प्रजातियों के गुलाब पाये जाते हैं। गुलाब के पौधों को बड़ी सतर्कता के साथ लगाया गया है और पूरे बगीचे को पारलौकिक दृश्य प्रदान करता है। इसी परिसर में एक इमामबाड़ा या इमाम की कब्र भी स्थित है जो स्वंय में एक आकर्षण है।
बागवानी करती है आकर्षित
गुलाब बाड़ी परिसर की खूबसूरती में यहां की बागवानी चार चांद लाती है। इमारत के चारों तरफ गुलाबों की बागवानी की गई है, जिसमें बेहद खूबसूरत अनेक प्रकार के गुलाब के पौधे लगाए गए हैं।इस बाग में लाल, गुलाबी, पीले, सफेद रंग के गुलाब खिलते हैं। जब यहां गुलाब के फूल खिलते हैं तो वह यहां आने वाले हर पर्यटक का दिल जीत लेते हैं।
शुजा-उद्-दौला का मकबरा:-
1775 ई० में जब नवाब शुजा-उद्-दौला की मृत्यु हुई तो उन्हे इसी मकबरे में दफनाया गया। इस मकबरे का निर्माण अनेक चरणों में किया गया। यह अच्छे अनुपात में निर्मित एक प्रभावशाली भवन है। इसमें प्रवेश करने के लिए दो बड़े वाह्य प्रवेशद्वार हैं और तीसरा द्वार मकबरे तक ले जाता है। यह लखौरी ईंटों से निर्मित है जिस पर चूने का प्लास्टर किया गया है।
3.बहू-बेगम का मकबरा फैजाबाद:
बहूबेगम का मकबरा मिनी ताजमहल के रूप में पहचाना जाता है। यह शुजाउद्दौला की रानी उन्मत्तुज़ोहरा बानो बेगम के लिए बनाया गया स्मारक है । बहू बेगम का मकबरा वर्ष 1816 में निर्मित किया गया था। बहू बेगम का मकबरा सफेद संगमरमर से बना है और 42 मीटर ऊँचा है। बहू बेगम के मकबरे के ऊपर से शहर का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। इसे पूरे अवध में अपनी तरह का सबसे बेहतरीन और अनोखा माना जाता है। मकबरा मुगल स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इतिहास गवाह है कि सन् 1816 में इस मकबरे को ताजमहल की भव्यता के साथ बनाने का प्रयास किया गया था। चन्द्रमा की दूधिया रौशनी में सफेद संगमरमर अपनी चमक धारण कर लेता है और ऐसा लगता जैसे कि मकबरे को अमरत्व की चमक मिल जाती है।
उनमातुज्जोहरा बानो बेगम ने अपने जीवन-काल में ही इसकी तामीर शुरू करा दी थी लेकिन पूरा होने के पहले ही उनका इंतकाल हो गया है। उनके वजीर दराब अली खां ने इसे पूरा कराया था । मकबरे के स्थापत्य शैली की शानदार विशेषता है कि भीषण गर्मी में भी यहां शीतलता का अनुभव होता है। उस वक्त इसके निर्माण में करीब 3 लाख रुपये की लागत आई थी। ऐतिहासिक धरोहर व पुरातत्व संरक्षित बहू बेगम का मकबरा भी वक्फ बोर्ड की सूची में शामिल है । बहू बेगम जो नवाब शुजा-उद्-दौला की पत्नी और नवाब आसफ-उद्-दौला की मां थी,की मृत्यु 1816 ई० में हुई थी।
यह मकबरा भी कई चरणों में बना। इसकी शुरुआत उनके सलाहकार द्वारा 1816 ई० में की गई। बाद में इसका निर्माण अन्य संरक्षकों ने किया। स्मारक में बाहरी प्रांगण और मुख्य प्रांगण है। बाहरी प्रांगण आकार में बड़ा और आयताकार है। इसमें प्रवेश के लिए एक भव्य मेहराबदार प्रवेशद्वार है, जिसमें कई कमरे बने हैं। द्वार के चारों तरफ दीवारों के सहारे आवास हेतु कमरे बने हैं। पूर्व दिशा में एक अन्य द्वार है तथा तीसरा द्वार दक्षिण में है जिससे होकर मुख्य प्रांगण में प्रवेश किया जा सकता है। यह वृहद चतुर्भुजाकार प्रांगण एक बाह्य दीवार से घिरा है जिसके कोनों पर अष्टकोणीय बुर्ज बने हैं। इसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में दो छोटे मेहराबदार द्वितलीय मंडप बने हैं। मकबरे के भूतल पर बहुत बड़ा चबूतरा बना है। इसके मध्य में वर्गाकार कक्ष है, जिसके चारोंओर वर्गाकार औरआयताकार कक्षों की श्रृंखला और संकरे गलियारे बने हैं। इस तल का मध्य भाग पत्थरों से निर्मित बिना अलंकरण के है, लेकिन इसका बाहरी भाग ईंटो से बना और अलंकृत है। किनारों पर मेहराबदार इसका अष्टकोणीय मण्डप हैं। मकबरे की छत सुन्दर पुष्प वल्लरियों से अलंकृत है। यह मकबरा सम्भवतः नवाबी काल के सबसे सुन्दर मकबरों में से एक है। इस इमारत की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है।
4.सदरजहाँ बेगम के हिजड़े हाजी इकबाल का मकबराः-हाजी इकबाल के मकबरे का निर्माण एक ऊंचे चबूतरे पर बुर्जयुक्त चहारदीवारी के अन्दर किया गया है, जो इसे अन्य इमारतों से अलग किलानुमा बनाता है। यह एक अष्टकोणीय संरचना है, जिसका निर्माण लखौरी ईंटों एवं चूने के प्लास्टर से किया गया है। केन्द्रीय गुम्बद के चारों तरफ छोटे-छोटे अन्य गुम्बद भी बने हैं। इस परिसर के पश्चिम की ओर 18वीं सदी ई० में बनी एक मस्जिद भी स्थित है। हाजी इकबाल का मकबरा, मस्जिद और उन्हें घेरने वाला पूरा परिसर एक संरक्षित स्मारक है।
5.सूफी संत खातून 'बड़ी बुआ' की कब्र एवं यतीमखाना:-
अयोध्या में महिला सूफी संतों के कुछ लोकप्रिय दरगाहों में से एक बड़ी बुआ की दरगाह है, इन्हें बड़ी बीबी, बड़ी बुआ और बड़ी किताब भी कहा जाता है जो शेख नसीरुद्दीन चिराग-ए दिल्ली की बहन है। बड़ी किताब को प्रसिद्ध सूफी संत खातून की कब्र कहा जाता है। बड़ी किताब बहुत अल्लाह वाली थी। हर तरह की इबादत करती थी । बादमें उसका नाम बहुत धूमिल हो गया और हिंदू-मुस्लिम सब उनके दर पर ज्ञान मन यादगार बने रहे।
ना कोई आलिम रहेगा ना जालिम:-
ये महिला संत देखने में भी खूबसूरत थीं।सुंदरता के कारण निकाह के कई प्रस्ताव मिलने के बावजूद, उन्होंने खुद को गरीबों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। लोगों के मुताबिक, स्थानीय मौलवियों ने बीबी के निकाह से इंकार करने के कारण उन्हे बहुत परेशान किया था। कहते हैं पुरानी खूबसूरती पर फैजाबाद के शहर कोतवाल फिदा हो गए थे। कोतवाल, जो बीबी की ओर आकर्षित हुआ था, ने उन्हें एक दूत के माध्यम से निकाह का प्रस्ताव भेजा। जब उसने दूत से बात करने से मना कर दिया और सीधे कोतवाल से मिलने की जिद की तो वह उसके घर पहुंच गया। जब कोतवाल से पूछा कि वे उनसे शादी क्यों करना चाहते हैं, तो कोतवाल ने कहा कि उसे उसकी आँखों से प्यार है। किंवदंती है कि उसने अपनी आँखें बाहर निकालकर कोतवाल को सौंप दिया। इससे कोतवाल हैरान रह गया। बड़ी बुआ ने सावधान करते हुए कहा, “याद रखो कि फैज़ाबाद में अब ना कोई आलिम रहेगा ना जालिम।” कहते उसी के बाद फैजाबाद से उजड़ाना शुरू हुआ और नवाब आसफुद्दौला फैजाबाद की जगह नोएडा को अपनी राजधानी बना लिया गया। यह महसूस करते हुए कि बीबी कोई साधारण महिला नहीं हैं, बल्कि खुदा की सच्ची भक्त हैं, कोतवाल साहब ने बड़ी बीबी के चरणों में गिर गए और दया की भीख माँगी।अजीबो-गरीब सी खामोशी पसरी नजर आई। फैजाबाद के चौक से खरीदकर किसी को फूल चढ़ाने के लिए लाया गया। फूल लेकर चले तो फूल प्रतिष्ठित होने से पहले ही मुरझा गए।
यतीम-ख़ाना ,मस्जिद और मदरसा :-
उनकी याद में बीबी की कब्र के पास बना एक अनाथालय अनाथों को शरण देता है और उन्हें मुफ्त शिक्षा प्रदान करता है। इसके साथ ही साथ यहां मस्जिद और मदरसा भी बना हुआ है जिसमें गरीब यतीम को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है।
–: कई मोहल्ले बसाए गए थे:-
1765 में उन्होंने चौक शब्जी मंडी और तिरपौलिया का निर्माण कराया और बाद में इसके दक्षिण में अंगूरीबाग और मोतीबाग, और शहर के पश्चिम में आसफबाग और बुलंदबाग का निर्माण कराया गया ।
पुरानी सब्ज़ी मंडी:-
चौक पुरानी सब्जी मंडी की उत्तर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की एक पुरानी शब्जी मण्डी रही है।इस मण्डी के शब्जी और फल की आपूर्ति सरकारी और गैर सरकारी सभी लोगों के लिए की जाती रही है। पुराने लोगों का कहना है कि जब शाही परिवार के लोग इस बाजार में प्रवेश करते हैं तो दुकानदार दुकान छोड़ देते थे। केवल लड़कियां और औरतें ही दुकान पर रहती हैं।
टकसाल चौराहा :-
यह माता के मन्दिर के पास है। इस जगह के पास हैं: फैजाबाद शहर, धारा रोड चौराहा अयोध्या , रिकाबगंज चौराहा , श्री परशुराम चौराहा , फ़तेहगंज चौराहा आदि स्थित है। नबाब के समय में यहां सिक्के ढाले जाते थे।
दिल्ली दरवाज़ा :-
पुराने समय में इसी दरवाजे से दिल्ली की तरफ कूच किया जाता था। अब वह दरवाजे वाली संरचना नहीं दिखाई पड़ती है। यह वार्ड घंटाघर चौक से भी सटा हुआ है, जो क्षेत्र में पर्यटकों के मध्य बहुत प्रसिद्द है।इस वार्ड में आने वाले मोहल्लों में दिल्ली दरवाजा, खुर्द महल, अंगूरी बाग़ कॉलोनी, दीवानी मिसल आंशिक सम्मिलित हैं। परिणाम स्वरूप फैजाबाद नगर परिषद् के 29 / 38 वार्ड में से एक दिल्ली दरवाजा वार्ड भी अयोध्या नगर निगम का हिस्सा बन गयाहै। इस इलाके का परिसीमन उत्तर में विश्राम घाट से पालिका सीमा परिक्रमा रोड तक, दक्षिण में अंगूरीबाग चौराहा के सामने से गुदड़ी बाजार चौराहा तक, पूर्व में गुदड़ी बाजार चौराहा से विश्राम घाट तक, पश्चिम में अंगूरीबाग स्कूल के सामने से राज शिशु मन्दिर रोड से नाला पुलिया से शिवमन्दिर बाएं हिस्से तक फैला हुआ है।
रकाबगंज, चौराहा :-
रिकाबगंज चौराहा के पास हैं: श्री परशुराम चौराहा , टकसाल चौराह , G.I.C. तिराहा अयोध्या , पुष्पराज चौराहा , नियावां चौराहा अयोध्या आदि स्थित है।यह एक व्यवसायिक क्षेत्र के रूप में आज भी देखा जा सकता है।
हंसु कटरा:-
गुदड़ी बाजार और सैन्य मन्दिर के मध्य नियावां मोहल्ले में यह कटरा स्थित है। इसके एक तरफ चौक शब्जी मंडी तो दूसरी ओर परिक्रमा मार्ग भी देखा जा सकता है।
चौक :-
1765 में अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने चौक के चारों तरफ प्रवेश द्वारों पर हेरिटेज गेट का निर्माण कराया था।अब योगी सरकार इन गेटों का कायाकल्प करवाने जा रही है। नवाबी दौर में इस द्वार को बनाने के लिए जिस पदार्थ का उपयोग किया गया था उसी पदार्थ का उपयोग यानी की चूना और सुर्खी से ही चारों गेटों का सुंदरीकरण किया जाएगा।
फैजाबाद में घंटाघर
घंटाघर का अर्थ है 'घड़ी का घर'। यह शहर के केंद्र में स्थित एक विशाल मीनार है। यह इमारत फैज़ाबाद का मुख्य बिंदु है क्योंकि शहर के भीतर की सभी दूरियाँ इसी मीनार से मापी जाती हैं। मुख्य चौक के नाम से भी जाना जाने वाला यह क्षेत्र सब्ज़ियों और मसालों का मुख्य बाज़ार भी है।
त्रिपोलिया शाही बाजार :-
त्रिपोलिया नाम से मुगलकाल में चर्चित बाजार को वर्तमान में चौक के नाम से जाना जाता है । मुगल नवाब शुजाउद्दौला ने फ़ैज़ाबाद को अवध की राजधानी बनाने के बाद शहर के बीचोबीच एक शाही बाजार की स्थापना की। तीन तरफ ऊंची दीवारों से त्रिपोलिया बाजार से घिरा है। वर्तमान में यहां घंटाघर है। पुराने लोगों का कहना है कि जब शाही परिवार के लोग इस बाजार में प्रवेश करते हैं तो दुकानदार दुकान छोड़ देते थे। केवल लड़कियां और औरतें ही दुकान पर रहती हैं।
फैजाबाद संग्रहालय
फैजाबाद संग्रहालय, फैजाबाद के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इस संग्रहालय में ऐतिहासिक और पौराणिक वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित है। इस सुव्यवस्थित संग्रहालय में न केवल शहर के इतिहास और संस्कृति को देखने और समझने का अवसर मिलेगा, बल्कि सदियों पुराने फैजाबाद के लोगों के जीवन को भी समझने का अवसर मिलेगा। बर्तन, कटलरी, युद्ध के हथियार, चाँदी के बर्तन, रोज़मर्रा की चीज़ें और ऐसी ही कई चीज़ें यहाँ प्रदर्शित हैं। फैजाबाद के इतिहास को जानने के लिए यह ज़रूर देखने लायक जगहों में से एक है।
-: बाग-बगीचे :-
नवाबकालीन बाग-बगीचे लालबाग, अंगूरीबाग, आसफ बाग, मोतीबाग, जवाहिरबाग भले ही खत्म हो गए हों पर उनकी जगह बनी इमारतें शहर को खूबसूरत बना रही हैं।
लालबाग :-
लालबाग को शुजाउद्दौला ने स्थापित कराया था। फैजाबाद में लालबाग वर्तमान में मकबरा है जो एक वास्तुशिल्प स्मारक है, जो उत्तर मुगल काल की वास्तुकला का उदाहरण है और यह लगभग 1801 ई में बना था। यह फैजाबाद के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। यह उत्तर मुगल काल की वास्तुकला शैली को दर्शाता है।यह छोटी छोटी मेहराबें और लटकते छज्जों से युक्त हैं। यह मुगल स्थापत्य कला की जटिल डिजाइन और भव्य प्रवेश द्वार संरचनाओं को प्रदर्शित करता है।
अंगूरीबाग :-
नियावां चौक रोड, अंगूरी बाग के पास यह इलाका लगता है । कभी अंगूर की बाग वाली इस भूमि में बाग तो उजड़ चुके हैं। अब आवासीय कालोनी बन कर रह गई है।
आसफ बाग :-
यह अवध के नवाब आसफ-उद-दौला के समय से संबंधित है, जिन्होंने फैजाबाद में कई निर्माण कराए थे। यह संभावना है कि "आसफ बाग" आसफ-उद-दौला से जुड़ा कोई बगीचा, बाग या स्थापत्य संबंधी स्थल हो सकता है, क्योंकि वे फैजाबाद के प्रमुख नवाबों में से एक थे और उन्होंने लखनऊ राजधानी स्थानांतरित करने से पहले शहर में कई शानदार इमारतें बनवाई थीं।
कंपनी गार्डन : -
सरयू नदी के किनारे गुप्तार घाट से सटे, कंपनी गार्डन, ब्रिटिश शासन के दौरान निर्मित एक वनस्पति उद्यान है। यह एक सुव्यवस्थित, विशाल उद्यान है जो हरियाली के बीच स्थित है। इसमें कई एकड़ में फैला एक बाग भी है। यहाँ से पौधे और पेड़ भी खरीदे जा सकते हैं। बक्सर के युद्ध के बाद नवाब शुजा-उद-दौला द्वारा निर्मित कलकत्ता किले के अवशेष भी पैदल दूरी पर हैं।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
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