विश्वेश्वर वत्स पाल का जन्म सन्तकबीर
नगर ;उत्तर प्रदेशद्ध के नगर पंचायत हरिहरपुर में फागुन कृष्ण 13 संवत 1880 विक्रमी
को हुआ था। विश्वेश्वर वत्स पाल राजा महसों
के राज्य के वंशज थे। वे एक समृद्धशाली तालुक्केदार थे। विश्वेश्वर वत्स पाल साहित्यिक
वातावरण में पले थे । विश्वेश्वर वत्स पाल जी के लड़के का नाम रंगपाल था। रंगपालजी अपने
पिताजी व कुल के बारे में बीर विरुद में इस प्रकार लिखते है -
क्षत्रिय प्रवर सूर्यवंश राम चन्द्र कुल
ठाकुर प्रसाद पाल वीर वर दानिये।
ईश्वरी प्रसाद पाल तिनके तनय अरु
तिनके विश्वेश्वर बक्श पाल जानिये।
तिनको है सुत रंगपाल नाम धाम ग्राम
हरिहरपुर सरवार देश मानिये।
ग्रंथ बीर विरुद बखान्यो विक्रमीय शुभ
सम्बत उन्नीस सौ उन्यासी सुख खानिये।।
विश्वेश्वर वत्स पाल का रहन सहन रजवाड़ों
जैसा था। उपहार नामक संदर्भ ग्रंथ में उनके बारे में लिखा है बाबू विश्वेश्वर वत्स
पाल ब्रज भाषा के प्राचीन शैली के अपने समय के श्रेष्ठ कवि थे।वे सभी रसाों में रचना
करते थे। आपकी भाषा प्रसाद गुण पूर्ण एवं मनोहारी तथा अलंकारिक होती थी।
आप श्रृंगार रस के मर्मी कवि थे। संगीत
के प्रति उनका अटूट अनुराग था।जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उनके पुत्र रंगपाल पर पड़ा उनका एक मात्र श्रृंगार शतक रचना मिलती हैं इसमें
लगभग 125 छन्द बताये जाते है। “उपहार” में प्रकाशित एक छन्द इस प्रकार है -
कहिये
क्यों विसेसर और ई और छनै छन तौ छवि छैली परै।
सहजैसीं
सिंगारन व नियरे जू निकाई रती मुरझैली परै।
विहरैं
सखियां संग आंगना मैं विहंस दुति दामिनी मैली परै
बलिचन्द
की चांदनी पै छिटकी मुख चंद की चांदनी फैली परै।।
“बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान”
नामक शोध प्रवंध में बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि डा. मुनिलाल उपाध्याय ”सरस” ने
लिखा है लिखा है “ विश्वेश्वर वत्स पाल सुकवि ऊंचे हैं। ब्रज भाषा
का शव्द शव्द अपने में सरस और रसासिक्त है। छन्दों की सुधराई और कथ्य कला का शिल्प
विधान बड़ा ही मनोहारी है। बाबू विश्वेश्वर वत्स पाल का ही प्रभाव रहा कि रंगपालजी बस्ती
छन्द परम्परा के मानक स्तम्भ के रुप में प्रकाशित हुए।“