भाजपा के पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी को हराकर बस्ती की जनता अपने पैर में कुल्हाड़ी मारी है। वर्तमान सांसद राम प्रसाद को जीताकर जनता अपनी भड़ास भले ही मिटा लिया हो पर उसे कुछ भी नहीं मिला। बस्ती का विकास जो विगत दस साल से अवाध गति से चल रही थी वह उसी स्थान पर पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो गया है। शहर की सड़कें मालवीय और स्टेशन मार्ग पैदल चलनेमें भी दिक्कत है। बड़े बन कम्पनी बाग का चौड़ीकरण कच्छप गति से चल रहा है। कटरा आदि कई मोहल्ले में पानी की सप्लाई लगभग साल भर से अवरुद्ध है। शहर की लाइट का आना जाना लगा रहता है लेकिन दिन भर लाइट जलती रहती है। देश के विकास और पहचान में बस्ती जिले में शून्यता आ गई है।
विपक्षी की जीत में विकास रुका
इतिहास गवाह है, जब भी विपक्ष को कोई जीता तो जिले के विकास का नुकसान हुआ है।इसीलिए बार-बार यही कहा जाता रहा है कि उसी को जिताइए जिसकी केंद्र या राज्य में सरकार हो। सरकार विहीन जनप्रतिनिधि जनता और जिले के विकास के लिए कुछ नहीं कर पाते। पांच साल तक यही रोते रहते हैं कि अगर उनकी सरकार होती तो कुछ करते। विपक्ष के जन प्रतिनिधि की दौड घर से सदन और सदन से घर तक रह जाती हैं। कुछ छोटे मोटे धरना प्रदर्शन तक ये सिमट जाते हैं। इनके हिस्से में सिर्फ अपनी अपनी सांसद, विधायक या पार्षद वाली निर्धारित निधियां का बन्दर बांट रह जाता है।जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज तक ना उठाता होऔर कार्यालय तक ना जा आता हो, उससे जनता और क्या उम्मीद करें?
जिले की जनता को क्या मिला
भाजपा प्रत्याशी किसलिए और क्यों हारे और सपा प्रत्याशी कैसे और क्यों जीते? यह पुरानी बात हो गई है। नई बात यह है, कि हरीश द्विवेदी को हराकर और राम प्रसाद चौधरी को जीताकर जिले की जनता को क्या मिला? जो विपक्ष का सांसद भरष्टाचार और अराजकता के खिलाफ आवाज ना उठा सके और विकास भवन स्थित अपने कैम्प कार्यालय में नियमित जनता दरबार ना लगा सके, उससे जनता क्या उम्मीद कर सकती है ? सपा के तीनों विधायक तो यह जब से जीते हैं, तभी से यह रोना रोते आ रहे हैं, कि भाजपा की सरकार में उनकी कोई सुनने वाला नहीं, अब तो इन तीनों के साथ सुर में सुर मिलाने के लिए सांसद भी शामिल हो गए हैं । अब तो भाजपा वाले और भी नहीं सुनेगें।
सांसद और विधायक क्या करेंगे
एक सांसद और तीनों विधायक क्या करेंगे सवाल उठ रहा है कि आखिर में एक सांसद और तीनों विधायक क्या करेंगे? इसका मतलव यह हुआ है, कि तीनों विधायक और सांसद सिर्फ अपने निधि से ही जो विकास और भ्रष्टाचार करना होगा, वही कर पाएगें। सच यह है, कि यह लोग जनता को बेवकूफ बनाने के लिए रोना रो रहे हैं। इनसे कोई यह पूछे कि क्या भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ यह भी सही है कि अगर दोनों के स्थान पर और कोई मजबूत विकल्प होता तो कहानी कुछ और होती।
पूर्व भाजपाध्यक्ष का रोल
अगर श्री दया शंकर मिश्र सपा में नहीं गए होते और अपनी टीम के साथ पूरी उर्जा सपा को जीताने में नहीं लगाते तो परिणाम कुछ और होता। जिस तरह भाजपा प्रत्याशी को हराने में सपा के लोगों का हाथ रहा, ठीक उसी तरह सपा प्रत्याशी को जीताने में श्री मिश्र का हाथ रहा। पूर्व भाजपा अध्यक्ष दयाशंकर मिश्र के रुप में जो जिलो के लोगों को विकल्प के रुप में मिला भी था, उन्हें भी कुछ लोगों ने अपने फायदे के लिए छीन तो लिया। पर छीनने वाले को भी फायदा नहीं हुआ। जनता अवश्य एक ऐसे नेता से वंचित हो गई, जिसकी प्रशसा विपक्ष भी करता था। जनता का यह भी मानना है, कि आवाज उठाने के लिए भी भाजपा की ही जरुरत पड़ेगी। यह लोग तब तक रोना रोते रहेगे, जब तक इनकी सरकार नहीं बन जाती, फिर तो यह लूटपाट में ही पूरी तरह से लग जाएगे।
घर से सदन और सदन से घर तक
अब बस्ती के सांसद और विधायक लोगों की दौड़ घर से सदन और सदन से घर तक ही सीमित रह गई है। जिलो के विकास और जनहित समस्याओं की तो उसे जनता भूल ही जाए तो बेहतर होगा। सवाल उठ रहा है कि जिस जिले में सपा के तीन विधायक और एक साँसद हो और वह लोग जिले का विकास ना कर सके, या फिर जनता की समस्याओं का निस्तारण ना करा सके, भ्रटाचार को लेकर सड़क पर ना उतर सके।
मजबूत विपक्ष के होने का क्या लाभ
ऐसे मजबूत विपक्ष के होने का क्या लाभ? धीरे-धीरे लोगों को अब यह समझ में आने लगा कि उन्होंने हरीश द्विवेदी को हराकर और राम प्रसाद चौधरी को जिताकर गलत ही किया है। जिले की अधिकाश जनता यही कह रही है कि जनता के लोगों को हरीश द्विवेदी को हराना था, तो हरा दिया, राम प्रसाद चौधरी को जीताना था तो जीता दिया। अब चाहे इसका खामियाजा जिले की जनता धोखे में रहे या फिर भ्रष्टाचार बढ़े, इससे हराने और जीताने वालों से कोई सरोकार नहीं रहा। आज भी अगर जिले में उप चुनाव हो जाए तो परिणाम चौकाने वाला रहेगा। सपा का सफाया भी हो सकता है।
भ्रष्टाचार और विकास में सन्तुलन
लोग कहते हैं कि हरीश द्विवेदी के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा, लेकिन यह भी सच है कि इसी भ्रष्टाचार के बीच उन्होंने जितना भी हो सका जिले का विकास किया, जनता को सांसद के होने का यह हमेशा एहसास कराते रहे। इन्होंने जिले को कभी भी सांसद विहीन होने का एहसास नहीं होने दिया। भले ही इस विकास में उनके लोगों का हित छिपा रहा। यह भी सच है, कि पूरे देश में बस्ती की पहचान बनाने में हरीश द्विवेदी का बड़ा योगदान रहा, खेल सहित अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से जिस तरह यह देश के बड़े-बड़े नेताओं को लेकर बस्ती की धरती पर लाए, उसी के कारण बस्ती की पहचान बनी। सांसद महाकुंभ खेल सफल कराने का श्रेय पूरे देश में इन्हीं को जाता है। रिंग रोड जैसा प्रोजेक्ट लाने का क्रेडिट इन्हीं को मिला, मेडिकल कालेज में सुविधा बढ़ाने के लिए भी हरीश जी सदा जाने जायेंगे। आस पास के अन्य जिलों के सांसद सपना ही देखते रहे। उपलब्धता और सरलता अगर विपक्ष को सीखना है, तो वह भाजपा के पूर्व सांसद हरीश जी से सीख सकते हैं।
विपक्ष को जीताना सही नहीं
आज यह जिले के कोने-कोने में कही और जा रही है, कि उन लोगों ने जिस उम्मीद के साथ राम प्रसाद चौधरी को जीताया, वह उम्मीद अभी तक पूरा नहीं हुआ, बल्कि इन्होंने अपने होने का एहसास अभी तक जनता को नहीं कराया। रही बात तीनों विधायकों को तो इन तीनों की जीत में भी भाजपा वालों का ही सहयोग रहा। कहना गलत नहीं होगा, कि अगर भीतरघात का खेल ना होता तो जिला सपा विहीन रहता। जीते की हुए सपा का एक भी विधायक और सांसद ऐसा नहीं हैं, जो अपने दम पर चुनाव जीत सके। चारों की जीत में पार्टी का अपना काम और भाजपा के भीतरवालों का का अधिक योगदान रहा। भाजपा अभी तक एक भी भीतर घातियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाई, जब कि चुनाव समाप्त ही वड़े जोर-पोर से यह कहा जा रहा था, कि भीतर घातियों की पहचान हो गई है,जिसे से लेकर मंडल स्तर की जा रही है, जल्द ही भीतर घातियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। यही बात 2022 के कम विधान सभा चुनाव में भी पार्टी ने कहा था, अगर उसी समय कार्रवाई कर दी गई होती तो 2024 में भीतर घातियों की संख्या ना बढ़ती, और तब शायद भाजपा प्रत्याशी को हार ना होती।
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