Friday, August 8, 2025

भारत अमेरिका का बिगड़ता सम्बन्ध, मजबूत होगा भारत # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


अमेरिका और रूस विश्व की दो महान प्रभावशाली ताकतें रही हैं। भारत इन दोनों से बाहर रहा है और निर्गुट वाले रास्ते को अपनाया था। बाद में चीन और पाकिस्तान के हस्तक्षेप और बार - बार भारत पर युद्ध थोपने के कारण भारत को रूस की मदद लेने को बाध्य होना पड़ा था। अमेरिका शुरू से ही पाकिस्तान को अपने छत्र - छाया में रखता चला आया है। उसे आर्थिक मदद और हथियार सप्लाई करता रहा। बीच - बीच में अमेरिका भारत से जुड़ने का भी प्रयास किया परन्तु उसकी चाल दोगली रही। उसने कई बार भारत को नीचा दिखाने का प्रयास भी किया और उस पर अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिबंध भी लगाया। 

     इन दिनों अमेरिका और भारत पर पुनः इतिहास दोहरा रहा है । एक बार फिर अमेरिका 'दादागिरी' और दबाव की राजनीति पर उतर आया है। भारत ने भी पहले की तरह अब भी यह साफ कर दिया है कि वह किसी भी वैश्विक ताकत के आगे नहीं झुकेगा। भारत अपने देश के लोगों के हितों को सर्वोपरि रखेगा।

इतिहास के आइने में भारत और अमेरिका के संबंध:- 

भारत और अमेरिका के संबंध, एक जटिल और बहुआयामी रिश्ता रहा है जो 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से यह शनै: शनै: विकसित हुआ है। आज, इनमें रणनीतिक साझेदारी है जो विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है, जिसमें व्यापार, रक्षा, प्रौद्योगिकी और क्षेत्रीय सुरक्षा आदि शामिल है। भारत और अमेरिका के बीच एक जटिल और गतिशील साझेदारी है जो विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर आधारित है। दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध न केवल उनके द्विपक्षीय हितों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

1947 से पहले की स्थिति :- 

भारत शताब्दियों गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अफगानी , मुस्लिम आक्रांता और अंग्रेजों ने इसका खूब दोहन किया। इसे लूटा और जबरन अपनी संस्कृति थोपने का प्रयास भी किया है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को खूब लूटा खासूटा गया।भारत और अमेरिका के बीच पहले से कोई औपचारिक संबंध नहीं थे, लेकिन अमेरिका ने भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन व्यक्त किया था।

शीत युद्ध का दौर में :- 

शीत युद्ध के दौरान, भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण थे, क्योंकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई थी, जबकि अमेरिका सोवियत संघ के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा था। अमेरिका ने भारत को झुकाने की अनेक कोशिश की है। बीते 60 साल में 1965, 1971, 1974 और 1998 इन चार बड़े मोड़ों पर अमेरिका ने अपनी ताकत दिखाई, भारत पर प्रतिबंध लगाए, तरह तरह की धमकियां दीं गई। पर हर बार भारत ने दृढ़ता,आत्मसम्मान और पूरी मजबूती के साथ जवाब दिया है। 

वर्ष 1965 का दौर में : - 

उन दिनों भारत खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर नहीं हो पाया था।अमेरिका से भारत में लाल रंग का घटिया क्वालिटी का गेहूं आयात हो रहा था । भारत पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने गेहूं रोकने की धमकी दी, भारत ने आत्मसम्मान को चुना। भारत-पाक युद्ध 1965 के बीच जब भारत खाद्य संकट से जूझ रहा था, तब अमेरिका 'PL-480' स्कीम के तहत भारत को गेहूं देता था। लेकिन युद्ध रोकने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने गेहूं बंद करने की धमकी दी। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवाब दिया कि ''हम भूखे रह सकते हैं, लेकिन आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेंगे।" और इसी समय 'जय जवान, जय किसान' का नारा गूंजा था और देश एकजुट हुआ था।

वर्ष 1971 का दौर में : - 

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को हराया था। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अमेरिका पूरी तरह पाकिस्तान के साथ खड़ा था। राष्ट्रपति निक्सन और हेनरी किसिंजर ने भारत पर कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाने की पूरी कोशिश की। यहां तक कि अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी तक भेज दिया गया। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी झुकी नहीं। भारत ने निर्णायक जीत दर्ज की और बांग्लादेश का निर्माण कराया।

वर्ष 1974 का पोखरण-1 परमाणु परीक्षण का दौर :- 

पोखरण-1 के परमाणु परीक्षण पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए थे ,  भारत इस बार भी रुका नहीं था।भारत ने पहली बार राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था । जवाब में अमेरिका ने तकनीकी सहायता, परमाणु ईंधन और आर्थिक सहयोग पर प्रतिबंध लगा दिए। फिर भी श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वदेशी तकनीक और वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता के सहारे देश का परमाणु कार्यक्रम जारी रखा था।

1998 में पोखरण-2 का परीक्षण :- 

1998 में भारत द्वारा किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण के समय भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण थे। परीक्षण के बाद, अमेरिका ने भारत पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसमें कुछ रक्षा सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर रोक लगाना, अमेरिकी ऋण और क्रेडिट गारंटी को रोकना, और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा भारत को वित्त पोषण का विरोध करना शामिल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था -"हम घुटने नहीं टेकेंगे।" भारत ने पोखरण-2 परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अमेरिका बौखला गया था और उसने भारत के विरुद्ध व्यापक प्रतिबंध लगाए थे। विश्व बैंक से आर्थिक मदद रोक दी गई, सैन्य उपकरणों की बिक्री पर रोक लगाई गई। तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दो टूक कहा कि "भारत की सुरक्षा के लिए जो जरूरी होगा, हम करेंगे। चाहे अमेरिका माने या न माने।"

भारत का स्पष्ट रुख:- 

भारत ने इन प्रतिबंधों का दृढ़ता से विरोध किया था और अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा था। कुछ ही महीनों बाद अमेरिका को समझ में आ गया कि भारत को अलग- थलग नहीं किया जा सकता।  1999 में प्रतिबंध हटने लगे थे। भारत और अमेरिका के बीच संबंध 2000 के दशक में नाटकीय रूप से सुधर गए, और दोनों देश अब एक रणनीतिक साझेदारी में बदल गए थे।

बिल क्लिंटन का युग:- 

2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए। दोनों देशों के संबंधों में सुधार दिखने लगा था। 9/11 केआतंकी हमलों के बाद, अमेरिका ने भारत पर लगाए गए कुछ प्रतिबंधों को हटा भी दिया था। 

ऐतिहासिक परमाणु समझौता सम्पन्न:- 

बाद में, 2008 में, दोनों देशों ने एक ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया युग शुरू हुआ। 

2000 के बाद के समय:

2000 के बाद, दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से सुधरने लगे। व्यापार, रक्षा, और रणनीतिक सहयोग में वृद्धि हुई। देश के विकास की गाड़ी काफी कुछ पटरी पर आ गई थी।

वर्तमान परिपेक्ष्य:- 

आज, भारत और अमेरिका एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार हैऔर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था । अमेरिका भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक प्रमुख स्रोत है। दोनों देशों ने स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिए कई पहल हुए हैं।

रक्षा सहयोग - संबंध:- 

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ रहा है, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा उपकरण खरीदना शामिल है।अमेरिका हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक सहयोग:- 

भारत और अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग में भी सहयोग कर रहे हैं, जिसमें नासा और इशरो की साझेदारी और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम शामिल हैं। दोनों देशों ने महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर सहयोग को मजबूत करने के लिए एक पहल की है। अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र और पेशेवर रहते हैं, और शिक्षा दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ रहा है, जिसमें फिल्म, संगीत और कला शामिल हैं।

विविध क्षेत्रों में अमेरिका - भारत का सम्बन्ध:- 

भारत-अमेरिका संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बढ़ते समान हितों के आधार पर एक प्रमुख रणनीतिक गठबंधन के रूप में विकसित हुए हैं। दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं ने सहयोग के लिए निरंतर गति प्रदान की है, जबकि लगातार विस्तारित हो रहे संवाद ढांचे ने जुड़ाव के लिए दीर्घकालिक आधार तैयार किया है। अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है, जो रणनीतिक समर्थन, आर्थिक अवसर, रक्षा सहयोग और तकनीकी प्रगति प्रदान करता है। मजबूत द्विपक्षीय संबंध भारत के वैश्विक प्रभाव, सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ाते हैं। भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सहयोग में व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, उच्च प्रौद्योगिकी, असैन्य परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुप्रयोग, स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य सहित कई क्षेत्र शामिल हैं। दोनों देशों में लोगों के बीच सक्रिय संपर्क और राजनीतिक समर्थन द्विपक्षीय संबंधों को पोषित करते हैं।

वर्ष 2009 में हुआ और सुधार :- 

दोनों देशों ने वर्ष 2009 में 'रणनीतिक साझेदारी' समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों ने वर्ष 2020 में 'व्यापक वैश्विक रणनीतिक सहयोग' समझौते को मंजूरी दी, जो 15 वर्षों के अंतराल के बाद हुआ, जिससे अमेरिका- भारत संबंधों में सुधार हुआ है।

भारत पर एक तरफा टैरिफ ,अमेरिका के दादागिरी के आठ प्रमुख कारण:- 

अमेरिका ने भारत पर पहले 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाकर व्यापार बढ़ाने का दबाव बनाया। यह नया टैरिफ़ पहले से लागू 25 प्रतिशत टैरिफ़ के साथ जुड़कर कुल शुल्क 50 फीसदी टैरिफ कर दिया है। अतिरिक्त टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो जाएगा। सवाल है कि अमेरिका टैरिफ़ को लेकर ख़ासकर भारत को ही निशाना क्यों बना रहा है, जबकि रूस से तेल खरीदने के मामले में चीन, भारत से कहीं आगे है।

      भारत से एक्सपोर्ट होने वाले सामानों पर लगने वाले भारी टैरिफ से इनकी बिक्री में दिक्कत आ सकती है। 50 फीसदी टैरिफ़ लगने से भारत का अमेरिका को होने वाला एक्सपोर्ट घट जाएगा, फलत: भारत में नौकरियां चली जा सकती है।इससे देश में बेरोजगारी बढ़ेगी और मंदी का दौर आ सकता है। इसका असर दूसरे उद्योग धंधों पर भी पड़ेगा, उत्पादन कम होगा,इससे हरेक उद्योग प्रभावित होंगे और हरेक सेक्टर में नौकरियां जा सकती हैं।

     जिन देशों में टैरिफ कम लगाया गया है, उनके सामानों की पहुंच अमेरिका के बाजार में बढ़ सकती है। भारत पर भारी टैरिफ लगाने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा लगातार रूस से तेल का आयात करना कारण बताया है। 

       ट्रंप के भारत से चिढ़ने के पीछे सिर्फ तेल आयात ही वजह नहीं है, बल्कि कई अन्य कारण भी हैं। भारत अपनी पुरानी मित्रता और देशहित को ऊपर रखते हुए रूस से लगातार तेल आयात में लगा हुआ है, जिसकी वजह से भारत पर भारी टैरिफ लगाया गया है। अमरीका के प्रायः हर राष्ट्रपति साम्राज्यवादी रहा है। पर ओबामा जार्ज बुश और क्लिंटन कुछ उदारवादी रहे। ट्रंप और बाइडन बिल्कुल विपरीत स्वभाव वाले रहे। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप के भारत से चिढ़ने के पीछे सिर्फ तेल आयात ही वजह नहीं है, बल्कि आठ अन्य कारण भी हैं।

1.भारत ने रूस से तेल लेना बंद नहीं किया :- 

ट्रंप की कई चेतावनियों को दरकिनार करते हुए भारत ने अब तक रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया है। ट्रंप का दावा है कि भारत न सिर्फ सस्ते में रूस से तेल आयात कर रहा है, बल्कि उन्हें अन्य देशों को भारी कीमत पर बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा रहा है। इसके लिए ट्रंप ने भारत पर टैरिफ रूपी जुर्माना भी लगाया है। भारत ने भी तुरंत जवाब देते हुए साफ कर दिया , “जो कदम देशहित में होगा, वह भारत उठाता रहेगा।”

2.ब्रिक्स को लेकर नाराज़गी :- 

ब्रिक्स, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. इसमें भारत समेत चीन, रूस, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के अलावा ईरान, इथियोपिया, इंडोनेशिया, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हैं।ये सभी देश डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के पक्ष में हैं, जो राष्ट्रपति ट्रंप को बिल्कुल पसंद नहीं है। वे समय-समय पर ब्रिक्स देशों को 100 प्रतिशत तक टैरिफ़ लगाने की धमकी देते आए हैं। उनका यह भी कहना है कि अगर ब्रिक्स देशों ने अपनी करेंसी चलाने की कोशिश की तो उन्हें अमेरिका से व्यापार को अलविदा कहने के लिए तैयार रहना होगा।

3.सीज फायर का क्रेडिट न दिया जाना:- 

भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए कई दिनों तक संघर्ष चला था। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पीओके और पाकिस्तान में जबरदस्त हमले किए थे। हालांकि, चार दिन के बाद दोनों देशों में सीजफायर हो गया था, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम करवाने का दावा किया। वे 30 से ज्यादा बार कह चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाक के बीच संघर्षविराम करवाया, लेकिन भारत सरकार ने साफ किया कि यह भारत और पाक के बीच डीजीएमओ स्तर पर हुआ। इसमें किसी भी तीसरे देश का कोई रोल नहीं है। ओर पाकिस्तान सरकार ने ट्रंप को सीजफायर क बार क्रेडिट दिया है। जानकारों की मानें तो ट्रंप के भारत से चिढ़ने की एक वजह भारत द्वारा सीज फायर का क्रेडिट न दिया जाना भी है।

4.ऑपरेशन सिंदूर' रोकने का श्रेय न मिलना :- 

ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई की थी. हालांकि बाद में दोनों देशों ने संघर्ष विराम का एलान किया था।राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि सीजफायर उन्होंने कराया है, जबकि भारत ने साफ़ किया है कि इसमें अमेरिका की भूमिका नहीं है। जम्मू- कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष में बदल गया था।

5.चीन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी:

2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली चीन यात्रा करने जा रहे हैं। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट में शामिल होने के लिए पीएम मोदी चीन जाएंगे। यह दौरा 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होगा।पिछले साल अक्तूबर में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात की थी। जून, 2025 में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बीजिंग भी पहुंचे थे. उसके बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर भी चीन गए थे।

6.भारत ने नोबेल दिए जाने की मांग नहीं की :- 

ट्रंप की लंबे समय से इच्छा है कि इस बार का शांति का नोबेल पुरस्कार उन्हें ही दिया जाए। इसके चलते वे दुनियाभर के युद्धों में खुद ही बीच में कूद पड़ते हैं और उसे रुकवाने का दावा करते हैं। भारत - पाकिस्तान से इतर, इजरायल-ईरान, इजरायल-हमास, थाइलैंड-कंबोडिया जैसे युद्ध रुकवाने का भी ट्रंप दावा कर चुके हैं। इजरायल, कंबोडिया और पाकिस्तान जैसे देशों ने आधिकारिक रूप से ट्रंप को नोबेल दिए जाने की मांग की है, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया है। भारत ने दो टूक कहा है कि ऐसे सवाल वाइट हाउस से ही पूछे जाने चाहिए, नाकि भारत से। ऐसे में ट्रंप को इससे मिर्ची लगना तय है।

7. रूस-यूक्रेन युद्ध ना रुकवा पाना:- 

अमेरिका अन्य पश्चिमी देशों की तरह शुरुआत से ही इस युद्ध में यूक्रेन की तरफ है। इसके चलते उसने रूस पर पहले तो कई कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन जब उसका भी कोई असर नहीं पड़ा तो यूक्रेन को खुलकर हथियारों और आर्थिक मदद करने लगा। इसके बाद जब ट्रंप राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस युद्ध को रुकवाने के लिए पूरी जी-जान लगा दी। कभी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से बात की तो कभी पुतिन को फोन लगा दिया। लेकिन उनकी तमाम कोशिशें भी काम नहीं कर सकीं और रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन में बमबारी करने से पीछे नहीं हटा। ऐसे में भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना भी अमेरिका को बुरा लग गया और अब वह भारी टैरिफ लगाकर रूस से तेल खरीदने से रोकना चाहता है।

8.कृषि और डेयरी बाजार तक अधिक पहुंच बढ़ाना चाहता है अमेरिका:- 

अमेरिका कई सालों से भारत के साथ ट्रेड डील करने की कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी यह कोशिश हुई थी, लेकिन बात नहीं बनी।ट्रंप का मानना है कि भारत के साथ ट्रेड डील अमेरिका के लिए भारतीय बाज़ारों को खोलने का काम करेगी, लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है।

    अमेरिका भारत में कृषि और डेयरी बाजार बहुत बड़ा है और अमेरिका भी इसका लाभ लेना चाहता है। भारत और अमेरिका के बीच कई महीनों से ट्रेड डील पर बातचीत चल रही है, लेकिन भारत किसी भी हाल में अमेरिका के कृषि और डेयरी प्रोडक्ट्स वाली मांगों को मानने को तैयार नहीं है। अमेरिका भारत से मक्का, सेब, सोयाबीन समेत तमाम चीजों पर टैरिफ कम करने कीमांग कर रहा है और अपने डेयरी प्रोडक्ट्स पर भी डील चाहता है। लेकिन इससे भारत के किसानों को नुकसान हो सकता है और यही वजह है कि भारत सरकार किसी भी कीमत पर समझौता करने के मूड में नहीं है। इसकी एक झलक पीएम मोदी ने अभी हाल ही में एक बयान के जरिए कर दी है। ट्रंप को जवाब देते हुए पीएम मोदी ने साफ साफ कहा है - “हमारे लिए किसान हित सर्वोच्च प्राथमिकता है और भारत पशु-पालकों, मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा।” इसी वजह से भारत और अमेरिका के बीच व्यापार डील रुकी हुई है।

     उक्त परिस्थितियां यदि इसी प्रकार नहीं रहेगी। कोई उदारवादी नेतृत्व उभरेगा और दोनों देश के मध्य बराबरी का समुचित तालमेल बैठाएगा। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो दोनों देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती और विकास का पहिया अवरुद्ध हो सकता है। इससे भारत और मजबूती से उभरेगा।



 लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।



Sunday, August 3, 2025

भारतीय संस्कृति में सौभाग्य और सुचिता का प्रतीक: सिन्दूर # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

पीले मिश्रित लाल रंग को सिंदूरी रंग कहा जाता है। यह रंग नारंगी और लाल के बीच का होता है। इसे कुमकुम भी कहा जाता है, जो आमतौर पर हिंदू महिलाओं द्वारा उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सिंदूर को अबीर और गुलाल के रूप में भी जाना जाता है, जो होली जैसे त्योहारों में उपयोग किए जाते हैं । इसके अलावा, इसे "नाग-संभूत" या "नागज" भी कहा जाता है, क्योंकि कुछ मान्यताओं के अनुसार इसकी खोज नागों द्वारा की गई थी।

सिंदूर का इतिहास:- 

शिव पुराण में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने वर्षों तक शिव जी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था। उन्होंने कहा  कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी उसकी पति को सौभाग्य और लंबीआयु की प्राप्ति होगी। धार्मिक मतों के अनुसार सबसे पहले माता पार्वती ने ही सिंदूर लगाया था और तभी से ये परंपरा चल पड़ी। सिंदूर को देवी पार्वती से जोड़ा जाता है, और इसे पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि के लिए लगाया जाता है। यह माना जाता है कि इसे लगाने से देवी पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। 

नवपाषाण काल में सिंदूर का प्रयोग:- 

बलूचिस्तान के मेहरगढ़ गहराई में मिली नवपाषाण काल की महिला कारीगरों की मूर्ति से प्रतीत होता है कि उस समय के महिलाओं के बालों के बीच में सिन्दूर जैसा रंग लगाया जाता था। सिंदूर भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है। सिंदूर का प्रयोग और इसका सांस्कृतिक महत्व हजारों वर्षों से प्रचलित है। विवाहित स्त्रियाँ अपनी माँग में सिन्दूर भरने की यह प्रथा लगभग 8000 वर्ष पूर्व से ही प्रचलित है।

हड़प्पा - मोहनजोदड़ो की सभ्यता :- 

सिंदूर का उपयोग हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता में भी देखा गया है, जहाँ खुदाई में स्त्रियों की मूर्तियों के मांग में सिंदूर के निशान पाए गए हैं। यह प्रमाणित करता है कि सिंदूर का प्रयोग भारत में बहुत पुराने समय से हो रहा है।इस सभ्यता सबसे बड़ी स्थल राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान महिलाओं के सजने संवरने को लेकर काफी चीजें मिलीं हैं ।           पत्थर की मालाएं, मिट्टी,तांबा व फियांस से बनीं चूड़ियां, कंगन, सोने के आभूषण, मिट्टी की माथे की बिंदी, सिंदूर दानी, अंगूठी, कानों की बालियां आदि प्रमुख हैं। इससे ये पता चल जाता है कि महिलाएं लगभग आठ हजार साल पहले भी सिंदूर लगाती थीं और सजने संवरने के लिए कंगन-चूड़ी, अंगूठी, बिंदी आदि का उपयोग करती थीं। पता चलता है कि पुराने जमाने में हल्दी, फिटकिरी, या चूने से सिंदूर को बनाया जाता था।  इस सभ्यता से भी कुछ ऐसे सबूत मिलते हैं जो बताते हैं कि सिंदूर लगाने की परंपरा तब भी थी।  जिनमें महिलाओं की मांग में सिंदूर लगाने के साक्ष्य हैं। इस काल से जुड़ी देवियों की कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिनके सिर के बीच में एक सीधी रेखा है और उस पर लाल रंग भरा गया है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह और कुछ नहीं बल्कि सिंदूर है। 

पारंपरिक सिन्दूर का उपयोग :- 

हल्दी और फिटकरी या चूने, या अन्य सामग्री से बनाया गया था।  लाल सीसा और सिन्दूर के विपरीत, ये अपराध नहीं होते हैं।  कुछ व्यावसायिक सिन्दूर के बारीक कणों के मसाले मौजूद होते हैं, जिनमें से कुछ मानक के अनुसार निर्मित नहीं होते हैं और उनमें सीसा हो सकता है। सिंदूर का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से औषधीय कारणों से भी किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में, हिंदू धर्म में ऐतिहासिक जड़ों वाली चिकित्सा पद्धति में, लाल सिंदूर पाउडर में औषधीय गुण होते हैं जो महिलाओं को लाभ पहुंचाते हैं, जिसमें उनकी कामोत्तेजना को बढ़ाने के लिए रक्त प्रवाह को सक्रिय करना शामिल है - यही कारण है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को इसे लगाने की अनुमति नहीं रही है।

सिंदूर का आध्यात्मिक महत्व :- 

सिंदूर का महत्व भारतीय समाज में अत्यधिक है। यह केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। विवाहित स्त्रियों के लिए सिंदूर एक शुभ संकेत है। मांग में भरने का अर्थ होता है कि वह स्त्री विवाहित है और अपने पति की लंबी आयु और समृद्धि की कामना करती है। सिंदूर का लाल रंग शक्ति और उर्वरता का प्रतीक है, जो स्त्रियों की ऊर्जा और जीवंतता को दर्शाता है।

सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक:- 

सिंदूर विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक है। यह माना जाता है कि सिंदूर लगाने से पति की रक्षा होती है और वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। सिंदूर लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, ऐसा माना जाता है। 

सिंदूर का सांस्कृतिक महत्त्व :- 

सिंदूर का सांस्कृतिक महत्त्व भी अत्यधिक है। हिंदू धर्म में, विवाह के समय पति द्वारा पत्नी की मांग में सिंदूर भरना एक महत्वपूर्ण रस्म है, जो उन्हें आधिकारिक रूप से पति-पत्नी घोषित करता है। यह रस्म भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों में थोड़े-बहुत भिन्न रूपों में प्रचलित है, लेकिन इसका मूल अर्थ वही रहता है। विवाहित स्त्रियाँ प्रतिदिन अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं, जिसे वे अपने पति के प्रति समर्पण और सम्मान के रूप में देखती हैं। इसकेअलावा, विशेष अवसरों और त्योहारों पर भी सिंदूर का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। छठ पूजा में माताएं बहुत लंबे शिर के बीचोबीच मांग से नाक तक सिन्दूर लगाती हैं और छठ माता से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

विभिन्न साहित्यिक ग्रंथों में सिंदूर का उल्लेख:

प्राचीन भारतीय साहित्य में सिन्दूर का उल्लेख विभिन्न संदर्भों में मिलता है, जिसमें धार्मिक, सौंदर्य, और वैवाहिक प्रथाएं शामिल हैं। हालांकि सिन्दूर को स्पष्ट रूप से विवाह के प्रतीक के रूप में उल्लेख करने की प्रथा मध्यकाल में अधिक स्पष्ट हुई, प्राचीन साहित्य में इसका उपयोग सौभाग्य, शक्ति, और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में देखा जाता है।

वैदिक साहित्य (1500-500 ईसा पूर्व)में सिन्दूर का प्रयोग :- 

लाल रंग के पदार्थों का सामान्य उल्लेख है, जिसे विवाहित महिलाओं के अलंकरण से जोड़ा गया है। कन्या के मांग में पहले सिन्दूर उसके शादी के दिन पति द्वारा सजाया जाता है जिसे हिंदूविवाह में सिंदूर दान कहा जाता है। सिन्दूर के संबंध में कुछ वैदिक धारणा भी है कि इसे लगाने के बाद पति को अपनी पत्नी का रक्षक बनना होता है तथा उसे हर सुख दुःख का साथी भी बनना पड़ता है। 

    ऋग्वेद और अथर्ववेद में सिन्दूर का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन लाल रंग के पदार्थों (जैसे गेरू, कुमकुम, या हरिद्रा) का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और सौंदर्य प्रसाधन में वर्णित है। उदाहरण के लिए, अथर्ववेद (6.138) में सौभाग्य और प्रजनन से संबंधित मंत्रों में लाल रंग के पदार्थों का उल्लेख है, जिसे सिन्दूर से जोड़ा जा सकता है।

पंच-सौभाग्य में समलित:- 

सिंदूर को वैदिक काल में पंच-सौभाग्य में शामिल किया गया था। पंच सौभाग्य बालों पर पुष्प, मंगल सूत्र, पैर की उंगली में छल्ले, चेहरे पर हल्दी और सिंदूर को कहा गया है। गृह्यसूत्र (वैदिक अनुष्ठान ग्रंथ) में विवाह संस्कारों के दौरान सौंदर्य प्रसाधनों और मांगलिक चिह्नों का उल्लेख है, जिसमें लाल रंग का उपयोग सिन्दूर के रूप में हो सकता है। सौभाग्य वती स्त्री के लिए मांगलिक प्रथाओं का उल्लेख मिलता है ।)

(संदर्भ: ऋग्वेद (10.85, विवाह सूक्त) 

महाकाव्य: रामायण और महाभारत (500 ईसा पूर्व-300 ईस्वी) में सिंदूर का महत्व:- 

सिंदूर लगाने का चलन प्राचीन काल से चला रहा है और इसका संबंध माता पार्वती व देवी सीता से भी जुड़ता है। वाल्मीकि रामायण में सीता के सौंदर्य प्रसाधन का वर्णन है, जिसमें लाल रंग के पदार्थों (संभवतः सिन्दूर या कुमकुम) का उपयोग मस्तक पर किया गया है। उदाहरण के लिए, सुंदरकांड (5.15) में सीता के मांगलिक अलंकरण का उल्लेख है, जो सिन्दूर से संबंधित हो सकता है। सिंदूर का उल्लेख रामायण काल में भी किया गया था। माना जाता है कि माता सीता नित दिन शृंगार के रूप में सिंदूर का प्रयोग करती थीं। बिंदी की तरह, सिंदूर का महत्व सिर के केंद्र में तीसरे नेत्र चक्र (उर्फ अजना चक्र) के पास इसके स्थान से उपजा है। मस्तिष्क से अजना चक्र की निकटता इसे एकाग्रता, इच्छा और भावनात्मक विनियमन से जोड़ती है। जो लोग चक्रों की शक्ति में विश्वास करते हैं, उनके लिए इस स्थान पर सिंदूर लगाने का अर्थ है एक महिला की मानसिक ऊर्जा को अपने पति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उपयोग करना।

       एक कथा के अनुसार, हनुमान जी ने जब मां सीता को सिंदूर लगाते हुए देखा और तो जिज्ञासावश उनसे यह पूछा लिया कि वह हर दिन सिंदूर क्यों लगाती हैं? तब जानकी जी ने उन्हें बताया कि वह भगवान श्री राम की लंबी आयु के लिए मांग में सिंदूर भरती हैं और भगवान श्री राम इससे प्रसन्न होते हैं। तब श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान जी ने अपने प्रभु को प्रसन्न करने के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर का लेप लगा लिया था। इसलिए वर्तमान काल में भी हनुमान जी की पूजा में सिंदूर का प्रयोग निश्चित रूप से किया जाता है। ऐसा करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

द्रौपदी की सिंदूरी मांग सजाने की कहानी:- 

प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में, पांडवों की पत्नी द्रौपदी , हस्तिनापुर में घटने वाली घटनाओं से लेकर घृणा और विध्वंस तक, अपना सिन्दूर लिखा हुआ है । विवाह और सौभाग्य के संदर्भ में मांग में लाल रंग लगाने की प्रथा का संकेत है। द्रौपदी ने चीरहरण के गुस्से में बाल खोल दिए थे और सिंदूर नहीं पोछा। कहा जाता है कि उसके बाद सिंदूर भी नहीं लगाया था। द्रौपदी ने चीरहरण का बदला पूर होने पर महाभारत युद्ध में दुशासन के खून से बाल धोए थे और उसके बाद लाल सिंदूर से मांग सजाया था।

( संदर्भ:आदिपर्व, 1.189)।   

      ललिता सहस्रनाम और सौंदर्य लहरी ग्रंथों में सिन्दूर के प्रयोग का अक्सर उल्लेख किया गया है । सौंदर्य लहरी में प्राचीन कला कृतियाँ वर्णित हैं - 

तनोतु क्षेमं नः तव

वदना सौन्दर्यलहरी

परिवह-स्त्रोतः शरणिरिव सीमन्त-सारणीः।

वहन्ती सिन्दूरं प्रबल 

काबरी भारतीमिरा-

द्विशां बृंदैर बंदी-कृतमिव 

नवीनार्का किरणम् ॥

(हे माँ, आपके केशों के बीच की वह रेखा,जो एक चैनल की तरह दिखती है,जिसके माध्यम से आपके प्राकृतिक की तेज़ लहरें उतरती हैं,और जो दोनों तरफ से आयोजित होती है,आपका सिंदूर, जो उगते सूरज की तरह है,आपके शत्रुओं के सैनिकों की तरह काले बालों का उपयोग करके, हमारी रक्षा करें और हमें शांति दें।

(-आदि शंकराचार्य,सौंदर्य लहरी,पृष्ठ 44)

दांपत्य जीवन में सिंदूर का महत्व:- 

शास्त्रों में बताया गया है कि जिन सुहागिन महिलाओं द्वारा मांग में सिंदूर लगाया जाता है, उन्हें पति की अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। साथ ही समूचे परिवार को संकटों से छुटकारा मिल जाता है। नवरात्रि व दीपावली में मां दुर्गा और माता लक्ष्मी की उपासना में भी सोलह शृंगार में सिंदूर का स्थान श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, सिंदूर का प्रयोग करने से माता सती और मां पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ दांपत्य जीवन में सुख और समृद्धि आती है। प्राचीन साहित्य में सिन्दूर का उपयोग मुख्य रूप से सौंदर्य और धार्मिक संदर्भों में है, लेकिन विवाह से इसका संबंध पुराणों और महाकाव्यों में अधिक स्पष्ट है। मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत में सिन्दूर को विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य और पति की दीर्घायु से जोड़ा गया है, जो इसे विवाह के प्रतीक के रूप में स्थापित करता है।

जैन धर्म में सिंदूर :- 

जैन महिलाएं सिन्दूर लगाती हैं, पूर्वोत्तर शहरों में। जैन ननों को यह अपने बालों या कपड़ों पर लगाना पसंद है। सिन्दूर की देवियों की वैधानिक स्थिति के दर्शन के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, कई स्थानीय कला कृतियाँ, सिन्दूर देवियों को भी सिन्दूर लगाती हैं।

(- संदर्भ: रामायण और महाभारत में विवाहित स्त्रियों के अलंकरण।)

पुराण (300-1000 ईस्वी) में सिन्दूर के संदर्भ :- 

मार्कण्डेय पुराण और कामसूत्र में सिंदूर को सौभाग्य और वैवाहिक जीवन से जोड़ते हैं। मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत पुराण में सिन्दूर को माता पार्वती और अन्य देवियों के साथ जोड़ा गया है। सिन्दूर को देवी पूजा में चढ़ाया जाता था, और इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था। मार्कण्डेय पुराण (चंडी सप्तशती) में सिन्दूर के उपयोग को वैवाहिक सुख और पति की दीर्घायु से जोड़ा गया है।

     विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भी कुमकुम और सिन्दूर जैसे पदार्थों का उल्लेख पूजा और सौंदर्य के संदर्भ में है, जो विवाहित स्त्रियों की प्रथाओं से संबंधित है।  

(- संदर्भ: मार्कण्डेय पुराण (7.2) में देवी पूजा और सिन्दूर का उल्लेख।)

काव्य और नाटक (200 ईसा पूर्व- 1000 ईस्वी) में सिन्दूर:- 

कालिदास के साहित्य : जैसे कुमार - संभवम और रघुवंशम में स्त्रियों के सौंदर्य प्रसाधन में लाल रंग के पदार्थों (सिन्दूर या कुमकुम) का उल्लेख है। उदाहरण के लिए, कुमार संभवम (7.12) में पार्वती के मस्तक पर लाल रंग के अलंकरण का वर्णन है, जो सिन्दूर से जोड़ा जा सकता है।

      भास और शूद्रक जैसे नाटककारों के नाटकों (जैसे मृच्छ कटिकम्) में विवाहित स्त्रियों के मांग में लाल रंग लगाने की प्रथा का उल्लेख मिलता है, जो सामाजिक और वैवाहिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।  

(- संदर्भ: कालिदास की रचनाओं में सौंदर्य वर्णन।)

कामसूत्र और अन्य स्मृति ग्रंथ (200- 400 ईस्वी) में सिन्दूर का उल्लेख :- 

वात्स्यायन का कामसूत्र में सौंदर्य प्रसाधनों और अलंकरणों का विस्तृत वर्णन है, जिसमें सिन्दूर और कुमकुम जैसे लाल रंग के पदार्थों का उपयोग विवाहित स्त्रियों के लिए वर्णित है (अध्याय 4)। यह सौभाग्य और आकर्षण का प्रतीक माना जाता था। मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति में विवाहित स्त्रियों के लिए विशिष्ट अलंकरणों का उल्लेख है, जिसमें मांगलिक चिह्न (संभवतः सिन्दूर) शामिल हो सकते हैं।  

(- संदर्भ: कामसूत्र (4.1) में सौंदर्य प्रसाधन।)

भक्ति साहित्य (600-1000 )ईस्वी में सिंदूर :- 

भक्ति काल के दौरान, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, आलवार और नयनार संतों के तमिल भक्ति साहित्य में सिन्दूर और कुमकुम का उल्लेख देवी पूजा और वैवाहिक सौभाग्य के संदर्भ में है। उदाहरण के लिए, तिरुक्कुरल में सौभाग्यवती स्त्री के अलंकरणों का वर्णन है, जो सिन्दूर से संबंधित हो सकता है। मध्यकालीन साहित्य (जैसे भक्ति काव्य और क्षेत्रीय साहित्य) में सिन्दूर का उपयोग विवाह के प्रतीक के रूप में और अधिक स्पष्ट हो जाता है।

(- संदर्भ: तमिल भक्ति साहित्य में सौंदर्य और पूजा।)

सिंदूरी शाम के विविध उल्लेख:- 

यह एक बहुत ही लोकप्रिय वाक्यांश है जिसका उपयोग अक्सर कविता, गीत और कला में किया जाता है, विशेष रूप से सूर्यास्त के समय के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए। श्रीप्रकाश पाण्डेय की एक रचना दृष्टव्य है - 

धड़कन में संगीत प्यार का

होंठों पर तुम्हारा नाम

सूरज ने भी रच दी देखो

वहां नभ पर सिन्दूरी शाम 

घर-घर गूंजी एक कहानी

बस्ती-बस्ती फैली ये बात

पलकों पर चाँद सजाने में

यहां कट गयी सारी रात

शब्दों से गीतों को ढलने में

कितना दर्द हुआ बदनाम।

रहे प्रतीक्षा रत जीवन भर

मंजिल तक ना पहुंचे पास

सांस-सांस पर नाम तुम्हारा

पल-पल मिलने की आस

राहों में यादों के जंगल

भटकन सुबह और शाम।

पूनम श्रीमाली की ये पंक्तियां भी दिल को छू लेती हैं - 

शाम सिंदूरी , ये डूबता सूरज और ये सिंदूरी नज़ारा ,

ये झील का किनारा ..!!

ये खूबसूरत कुदरती  नज़ारा

उस पर ये खामोशी और ख्वाब तुम्हारा।

ऐसे कैसे जाने देंगे प्रियतम

अभी तो शुरू हुआ है 

(तुम्हें सोचना) हमारा ..…....!!

संस्कृति में सिन्दूर:- 

सिन्दूर से जुड़ी हैं कई भारतीय फ़िल्में और नाटक, थीम थीम इस स्मारक का महत्व- गिर्द घूमती है। इनसे सिंदूर (1947),सिंदूरम(1976),रक्त सिंधुरम (1985 ), सिंदूर(1987) और सिंदूर तेरे नाम का सीरीज़, (2005- -2007) शामिल हैं। 

ऑपरेशन सिंदूर 2025 :- 

अभी हाल ही 2025 में  भारतीय सशस्त्र बल ने पहलगाम हमले का जवाब पाकिस्तान पर मिसाइल हमले करके दिया। पहलगाम हमलों में पुरुष हिंदू क्रॉटल की मौत के संदर्भ में, मिसाइल हमले को ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया था। आतंकियों ने सिंदूर उजाड़ी तो हमने बदले के लिए ऑपरेशन सिंदूर से करारा जवाब दिया । भारत ने सबसे पहले सिंधु नदी का पानी रोक कर आतंक पर चुप्पी साधी पाकिस्तान सरकार को जगाया। उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकियों को राख करने का काम किया। ये संयोग समझिए या कुछ और…जो सिंधु और सिंदूर आज पाकिस्तान के लिए काल बने हैं। 

सिंदूर का वैज्ञानिक दृष्टिकोण:- 

सिंदूर का प्रयोग केवल धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से नहीं किया जाता, बल्कि इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का ब्रह्मरंद्र यानी मस्तिष्क का उपरी भाग बहुत ही संवेदनशील और कोमल होता है। ऐसे में सिंदूर लगाने से विद्युत ऊर्जा पर नियंत्रण पाई जा सकती है और इससे नकारात्मक विचार दूर रहते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि सिंदूर लगाने से सिर दर्द, अनिद्रा, मस्तिष्क से जुड़ा रोग समाप्त हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि सिंदूर के प्रयोग से चेहरे पर जल्दी झुर्रियां भी नहीं पड़ती है और बढ़ती उम्र के संकेत दिखाई नहीं देते हैं।

       सिंदूर हल्दी और चूने के मिश्रण से बनाया जाता है, जो शरीर के लिए फायदेमंद होता है। यह माना जाता है कि सिंदूर लगाने से तनाव और मानसिक दबाव को कम करने में मदद मिलती है।इससे रक्त चाप तथा पीयूष ग्रंथि भी नियंत्रित होती है। सिंदूर में पाए जाने वाले पारंपरिक घटक, जैसे हल्दी और पारा, स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं। हल्दी एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक है, जबकि पारा रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।

निष्कर्ष :- 

प्राचीन भारतीय साहित्य में सिन्दूर का उल्लेख सौंदर्य प्रसाधन, धार्मिक अनुष्ठान, और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में मिलता है। वैदिक साहित्य में लाल रंग के पदार्थों का सामान्य उल्लेख है, जबकि रामायण, महाभारत, और पुराणों में इसे विवाहित स्त्रियों के अलंकरण से जोड़ा गया है। मार्कण्डेय पुराण और कामसूत्र जैसे ग्रंथ सिन्दूर को सौभाग्य और वैवाहिक जीवन से जोड़ते हैं, जो विवाह प्रतीक के रूप में इसकी प्रारंभिक भूमिका को दर्शाता है। मध्यकालीन साहित्य में यह प्रथा और स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार सिंदूर भारतीय समाज और संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इसका इतिहास, महत्व और सांस्कृतिक महत्त्व हमें हमारे पुरखों से विरासत में मिला है, जिसे हमें संजोकर रखना चाहिए। सिंदूर का प्रयोग केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि स्त्रियों के जीवन में  जीवन में सौभाग्य, प्रेम और शक्ति का प्रतीक है। यह न केवल एक श्रृंगार है, बल्कि विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य, प्रेम, समर्पण और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। 


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

 मोबाइल नंबर +91 8630778321; 

वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)

Saturday, August 2, 2025

चरित्र हनन पर सनातन संतों की मुहिमआचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य , राधाबल्लभ सम्प्रदाय के मनीषी सन्त प्रेमानंद जी के बाद अब साध्वी ऋतंभरा के प्रवचन ने आम जनमानस में नई मुहिम छोड़ रखी है। अब एक पति, पिता और भाई भी इन तथ्यों को नजरंदाज नहीं कर सकते हैं। जो खून के रिश्ते वाले ये आत्मीयजन नहीं कर सके उसे कुछ सनातन ऋषियों- संतों और प्रेमियों ने कर के दिखा दिया है।

साध्वी ऋतम्भरा की मुहिम:- 

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद जी महाराज के बाद अब साध्वी ऋतंभरा का युवा युवतियों  पर दिए बयान से चर्चा बढ़ गई है। रीलबाज महिलाओं को लेकर साध्वी ऋतंभरा ने बयान काफी चर्चा में हैं। उन्होंने हिंदू लड़कियों के पहनावे और अन्य चीजों पर एक प्रवचन के दौरान कटाक्ष किया।उन्होंने खासकर रील बनाने वाली और छोटे पहनने वाली लड़कियों को निशाने पर लिया। साध्वी जी ने कहा कि “ये देखकर शर्म आती है कि लड़कियों पैसा कमाने के लिए कैसे-कैसे गंदे काम करती हैं।उनके पिता और पति ये बर्दाश्त कैसे कर लेते हैं।” उन्होंने कहा कि नंगे होकर और गंदे ठुमके लगाकर पैसा कमाओगे। जिस घर के अंदर गंदी कमाई आती है, तो पितर, पितर लोक में तड़पने लगते हैं। मर्यादित जीवन होना चाहिए। हे भारत की देवियों तुम चाहो तो कर सकती हो । तुम चाहो तो राक्षसों के घर में देवताओं को जन्म दे सकती हो। तुमने प्रहलाद का जन्म हिरणाकश्यप के घर देकर यह सिद्ध भी कर दिया है । तुमने कयाधू बनकर हिरण्यकशिपु के घर में प्रह्लाद को जन्म दिया । अगर तुम न चाहो तो विश्रवा ऋषि के घर में रावण जैसा राक्षस पैदा हो सकता है।

अनिरुद्धाचार्य ने कहा था :- 

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के लड़कियों की उम्र को लेकर बड़बोलेपन शब्द बोल दिए थे, जिस पर जमकर बवाल हुआ था। उनके कुछ शब्द कुछ लोगों को आपत्ति जनक लगे थे। अपनी फजीहत देखकर  बाद में उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी थी । उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि वह महिलाओं का अपमान नहीं कर सकते। उन्होंने सफाई में कहा कि उनका बयान आम महिला पर ना होकर कुछ महिला पर था। उनका कहना था कि उनका बयान ऐसी लड़कियों के लिए था जो पराये पुरुष के लिए अपने पति को मार देती हैं।

प्रेमानंद जी महाराज ने कहा था :-आजकल के समय में लोगों के चरित्र में हो रही गिरावट को लेकर चिंता जताते हुए प्रेमानंद जी कहा था कि 'शादी के परिणाम अच्छे आएंगे कैसे? आजकल बच्चे और बच्चियों का चरित्र पवित्र नहीं है?माताओं- बहनों का पहले रहन-सहन देखो।हम अपने गांव की बता रहे हैं। वह बूढ़ी थीं, लेकिन इतने नीचे तक पल्लू था।' कहा, 'आजकल के बच्चे कैसी पोशाकें पहन रहे हैं? कैसा आचरण कर रहे हैं? एक लड़के से ब्रेकअप। फिर दूसरे से व्यवहार। फिर दूसरे से ब्रेकअप और फिर तीसरे से व्यवहार। व्यवहार- व्यभिचार में परिवर्तित हो रहा है, कैसे शुद्ध होगा?

      प्रेमानंदजी महाराज ने चरित्र के पीछे खानपान और व्‍यभिचार का उदाहरण देते हुए कहा, 'मान लो हमें चार होटल का भोजन खाने की आदत पड़ गई है, तो घर की रसोई का भोजन अच्छा नहीं लगेगा। इसी तरह जब चार पुरुष से मिलने का आदत पड़ गई है, तो एक पति को स्वीकार करने की हिम्मत उसमें नहीं रह जाएगी। लड़कों के संदर्भ में भी उन्‍होंने यही बात कही। उन्होंने कहा, 'जब चार लड़कियों से व्यभिचार करता है तो वह अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं रहेगा। उसे चार से व्यभिचार करना पड़ेगा, क्योंकि उसने आदत बना ली है। हमारी आदतें खराब हो रही हैं।' 

       कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी, मनीषी सन्त प्रेमानंद जी और साध्वी ऋतंभरा द्वारा लड़कियों पर दिए गए बयान के बाद एक बार फिर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। जहां एक ओर रील बनाने वाली महिलाओं की लोग आलोचना कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उनके समर्थन में भी लोग दिखाई दे रहे हैं। वायरल हो रहे वीडियो पर विरोध और समर्थन में तरह-तरह के कमेंट आने लगे  हैं।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।