श्रीमद्भागवत प्रथम स्कन्ध प्रथम अध्याय ( प्रसून /प्रसंग 31) प्रस्तोता आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी
श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध में उन्नीस अध्याय हैं | प्रथम स्कंध मंगलाचरण के साथ प्रारम्भ होता है इसमें वेदव्यास जी कहते है – ‘सत्यं परं धीमहि’ अर्थात परम सत्य रूप परमात्मा का हम ध्यान करते है | यहाँ वेदव्यास जी ने भगवान की किसी विग्रह का वर्णन नहीं किया है। राम, कृष्ण, शिव आदि किसीभी भगवान का नाम नहीं लिया है | केवल सत्य स्वरुप परमात्मा का मैं ध्यान करता हूँ, ऐसा लिखा है। भक्त, साधक किसी भी आराध्य का ध्यान कर ले, जिसमें उसकी श्रद्धा हो, आस्था हो वे सब सत्य- स्वरुप परमात्मा के ही विविध रूप है |
मंगलाचरण
जिससे इस जगत् की सृष्टि, स्थिति और प्रलय होते हैं- क्योंकि वह सभी सद्रूप पदार्थों में अनुगत है और असत् पदार्थों से पृथक् है; जड़ नहीं, चेतन है; परतन्त्र नहीं, स्वयं प्रकाश है; जो ब्रह्मा अथवा हिरण्यगर्भ नहीं, प्रत्युत उन्हें अपने संकल्प से ही जिसने उस वेद ज्ञान का दान दिया है; जिसके सम्बन्ध में बड़े- बड़े विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं; जैसे तेजोमय सूर्य रश्मियों में जल का, जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम होता है, वैसे ही जिसमें यह त्रिगुणमयी जाग्रत्-स्वप्न-सुषुप्तिरूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी अधिष्ठान-सत्ता से सत्यवत् प्रतीत हो रही है, उस अपनी स्वयं प्रकाश ज्योति से सर्वदा और सर्वथा माया और माया कार्य से पूर्णतः मुक्त रहने वाले परम सत्य रूप परमात्मा का हम ध्यान करते हैं।
महामुनि व्यासदेव के द्वारा निर्मित इस श्रीमद्भागवत महापुराण में मोक्ष पर्यन्त फल की कामना से रहित परम धर्म का निरूपण हुआ है। इसमें शुद्धान्तःकरण सत्पुरुषों के जानने योग्य उस वास्तविक वस्तु परमात्मा का निरूपण हुआ है, जो तीनों तापों का जड़ से नाश करने वाली और परम कल्याण देने वाली है। अब और किसी साधन या शास्त्र से क्या प्रयोजन। जिस समय भी सुकृति पुरुष इसके श्रवण की इच्छा करते हैं, ईश्वर उसी समय अविलम्ब उनके हृदय में आकर बन्दी बन जाता है।
रस के मर्मज्ञ भक्तजन! यह श्रीमद्भागवत वेदरूप कल्प वृक्ष का पका हुआ फल है। श्रीशुकदेव रूप तोते के मुख का सम्बन्ध हो जाने से यह परमानन्दमयी सुधा से परिपूर्ण हो गया है। इस फल में छिलका, गुठली आदि त्याज्य अंश तनिक भी नहीं है। यह मुर्तिमान् रस है। जब तक शरीर में चेतना रहे, तब तक इस दिव्य भगवद् रस का निरन्तर बार-बार पान करते रहो। यह पृथ्वी पर ही सुलभ है।
सृष्टि की रचना उसका पालन तथा संघार करने वाला परमात्मा जो कण-कण में विद्यमान है जो सबका स्वामी है जिसकी माया से बड़े-बड़े ब्रह्मा आदि देवता भी मोहित हो जाते हैं | जैसे तेज के कारण मिट्टी में जल का आभास होता है उसी तरह परमात्मा के तेज से यह मृषा संसार सत्य प्रतीत हो रहा है |
उस स्वयं प्रकाश परमात्मा का हम ध्यान करते हैं | सभी प्रकार की कामनाओं से रहित जिस परमार्थ धर्म का वर्णन इस भागवत महापुराण में हुआ है , जो सत पुरुषों के जानने योग्य है फिर अन्य शास्त्रों से क्या प्रयोजन जो भी इसका श्रवण की इच्छा करते हैं भगवान उसके ह्रदय में आकर बैठ जाते हैं |
यह भागवत वेद रूपी वृक्षों का पका हुआ फल है तथा सुखदेव रूपी तोते की चोंच लग जाने से और भी मीठा हो गया है ,इस फल में छिलका गुठली कुछ भी नहीं है इस रस का पान आजीवन बार-बार करते रहें |
कथा प्रारम्भ
शौनकादि ऋषियों ने भगवत्प्राप्ति की इच्छा से सहस्र वर्षों में पूरे होने वाले एक महान् यज्ञ का अनुष्ठान किया। भगवान विष्णु एवं देवताओं के परम पुण्य क्षेत्र नैमिषारण्य में सूतजीको आसन पर विराजमान कराकर शौनकादिक ऋषियों ने उनसे बड़े जिज्ञासा पूर्वक पूछा कि सूतजी! कलियुग में मनुष्यों का कल्याण करने वाली कथा हमें सुनाइये ! ऐसी कथा जो मनुष्यों को जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा दिला कर मोक्ष प्रदान कर सके |
ऋषियों ने कहा- सूतजी! आप निष्पाप हैं। आपने समस्त इतिहास, पुराण और धर्म शास्त्रों का विधिपूर्वक अध्ययन किया है तथा उनकी भलीभाँति व्याख्या भी की है। वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ भगवान बादरायण ने एवं भगवान के सगुण-निर्गुण रूप को जानने वाले दूसरे मुनियों ने जो कुछ जाना है- उन्हें जिन विषयों का ज्ञान है, वह सब आप वास्तविक रूप में जानते हैं। आपका हृदय बड़ा ही सरल और शुद्ध है, इसी से आप उनकी कृपा और अनुग्रह के पात्र हुए हैं। गुरुजन अपने प्रेमी शिष्य को गुप्त-से-गुप्त बात भी बता दिया करते हैं। आयुष्मान्! आप कृपा करके यह बतलाइये कि उन सब शास्त्रों, पुराणों और गुरुजनों के उपदेशों में कलियुगी जीवों के परम कल्याण का सहस साधन आपने क्या निश्चय किया है? नैमिषारण्य नामक वन में सोनकादि अठ्ठासी हजार ऋषियों ने भगवत प्राप्ति के लिए एक महान अनुष्ठान किया और उसमें श्री सूत जी महाराज से प्रश्न किया कि हे ऋषिवर आप सभी पुराणों के ज्ञाता हैं, उन शास्त्रों में कलयुग के जीवों के कल्याण के लिए सार रूप थोड़ी में क्या निश्चय किया है | उसे सुनाइए भगवान श्री कृष्ण बलराम ने देवकी के गर्भ से अवतरित होकर क्या लीलायें की उनका वर्णन कीजिए |
इति प्रथमो अध्याय
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