Wednesday, February 2, 2022

शुकदेव जी के दैहित्र ब्रह्मदत्त और पारीख ब्राह्मण। (भागवत प्रसंग 11)

        
शुकदेव जी के दैहित्र ब्रह्मदत्त और पारीख ब्राह्मण
 (भागवत प्रसंग 11)
डा. राधे श्याम द्विवेदी
शुकदेव मुनि के पत्नी एवं बच्चे:-
गृहस्थ जीवन ना अपनाने के कारण व्यासजी ने उन्हें जनक जी के पास भेजा था। मिथिला से लौटकर उन्‍होंने पिता की आज्ञा से शुकदेवजी का स्‍वर्ग में वभ्राज नाम के सुकर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया वहिंषद जी की पुत्री पीवरी से विवाह किया था। विवाह के समय शुकदेव जी 25 वर्ष के थे। उन्होंने मनुष्य जन्म के चारो ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण, और मनुष्य ऋण से मुक्ति प्राप्त की और अपने पिता वेदव्यास जी की आज्ञा प्राप्त कर सुमेरु पर्वत गए । हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम बन्दरपुंछ है। यह चोटी उत्तराखंड के उत्तर काशी जिले में स्थित है। इसे कछुए की पीठ भी कहा जाता है। इसे सुमेरु भी कहते हैं। वहाँ उन्होंने ईश्वर के चरणों में ध्यान लगाकर अपने भौतिक शरीर का त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया । पुराणों में शुकदेव के बारह पुत्रों और एक कन्या के जन्म का वर्णन मिलता है । सभी पुत्र धर्म के मार्ग पर चलने वाले सिद्ध साधक थे ।
        कहते हैं कि शुकदेवजी अजर अमर हैं और वे समय-समय पर श्रेष्ठ पुरुषों को दर्शन देकर उन्हें अपने दिव्य उपदेशों के द्वारा कृतार्थ करते हैं। आज भी शुकदेव जी निराकार रूप में इस जगत मे विद्यमान है ।उनके द्वारा वर्णित किया गया श्रीमद्भागवत महापुराण सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है । लोग इस दिव्य ग्रंथ का पाठन और श्रवण कर अपना जीवन सार्थक करते है ।
           पीवरी से शुकदेव जी के 12 महान तपस्‍वी पुत्र हुए जिनके नाम भ‍ूरिश्रवा, प्रभु, शम्‍भु, कृष्‍ण और गौर, श्‍वेत कृष्‍ण, अरुण और श्‍याम, नील, धूम वादरि एवं उपमन्‍यु थे। जिनके गुरुकृत नाम क्रमश: भारद्वाज, पराशर(द्वितीय), कश्‍यप, कौशिक, गर्ग, गौतम, मुदगल, शाण्डिल्‍य, कौत्‍स, भार्गव, वत्‍स एवं धौम्‍य हुए और कीर्तिमती नामक एक योगिनी पतिधर्म पालन करने वाली कन्‍या। कीर्तिमती का विवाह भारद्वाज वंशज काम्पिल्‍य नगर के राजा अणुह से हुआ। महान योगी ब्रह्मदत्त जी को कीर्तिमती ने जन्‍म दिया। देवी भागवत में निम्‍न वृत्तांत दिया गया है-
“पितरों की एक सौभाग्‍यशाली कन्‍या थी। इस सुकन्‍या का नाम पीवरी था। योग पथ के पथिक होते हुए भी शुकदेव जी ने उसे अपनी पत्‍नी बनाया। उस कन्‍या से उन्‍हें चार पुत्र हुए कृष्‍णख्‍ गौर प्रभ, भूरि और देवश्रुत। कीर्ति नाम की एक कन्‍या हुई। परम तेजस्‍वी शुकदेव जी ने विभ्राज कुमार महामना अणुह के साथ इस कन्‍या का विवाह कर दिया। अणुह के पुत्र ही ब्रह्मदत्त हुए। शुकदेव जी के दोहित्र ब्रह्मदत्त बड़े प्रतापी राजा हुए। साथ ही ब्रह्म ज्ञानी भी थे। नारद जी ने उन्‍हें ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया था।
         हरिवंश पुरण में शुकदेव जी की संतान के सम्‍बंध में जो वर्णन किया गया है उसके अनुसार-
स तस्‍यां पितृकन्‍यायां पीवयां जनयिष्‍यति।
कन्‍यां पुत्रांश्‍च चतुरो योगाचार्यान महाबलान।।
कृष्‍णं गौरं प्रभुं शम्‍भुं कृत्‍वीं कन्‍यां तथैव च।
ब्रह्मदत्तस्‍य जननीं महिर्षी त्‍वणुहस्‍य च।।
अर्थ: – वे ही शुकदेव पितरों की कन्‍या पीवरी में कृष्‍ण, गौर, प्रभु और शम्‍भु इन चार महाबली योगाचार्य पुत्रों तथा ब्रह्मदत्त की जननी और अणुह की पत्‍नी कृत्‍वी नामवाली कन्या को उत्‍पन्‍न करेंगे।”
           पुराणें में यह आख्‍यान भी आता है – वृहस्‍पति जी ने ब्रह्मा जी के पास जा शुकदेव जी का किसी योग्‍य कन्‍या से विवाह करने की प्रार्थना की। उन्‍होंने वर्हिषद की कन्‍या पीवरी को, इनके योग्‍य मान इसके साथ विवाह करने की आज्ञा दी। वर्हिषद “स्‍वर्ण” में वभ्राज नाम के सुंदर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया थे, जिनकी पूजा सभी देवगण, राक्षस, यक्ष, गन्‍धर्व, नाग, सुपर्ण और सर्प भी करते हैं।” वर्हिषद को ऋषि पुलस्‍त्‍य के आशीर्वाद से एक पुत्री प्राप्‍त हुई थी। जिसका नाम पीवरी रखा गया। इस कन्‍या ने ब्रह्माजी की तपस्‍या की थी और ब्रह्माजी से उसने वेदों के ज्ञाता, ज्ञानी, योगी और अपने योग्‍य वर पाने का वरदान पाया था। ब्रह्माजी की आज्ञा से इसी पीवरी नामक कन्‍या के सा‍थ शुकदेवजी ने ब्राह्म विधि से विवाह किया। इस पीवरी को योग-माता और धृतवृता (पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली) शब्‍दों से भी पुकारा जाता है। विवाह के समय शुकदेव जी की आयु 25 वर्ष की थी। शुकदेव जी गृहस्‍थ आश्रम में रहकर तपस्‍या और योग मार्ग का अनुसरण करने लगे।
        कूर्म पुराण के अनुसार शुकदेव जी के पांच पुत्र और एक पुत्री थी।
शुकस्‍याsस्‍याभवन् पुत्रा: पञ्चात्‍यन्‍ततपस्विन:।
भूरिश्रवा: प्रभु: शम्‍भु: कृष्‍णो गौरश्‍च पण्‍चम:।
कन्‍या कीर्तिमतती चैव योगमाता धृतवृता।।
शुकदेव जी के महान तपस्‍वी पांच पुत्र थे। जिनके नाम भरिश्रवा, प्रभु, शम्‍भु, कृष्‍ण और गौर थे और एक कन्‍या जिसका नाम कीर्तिमती था जो योगिनी और पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली थी।
          सौर पुराण के अनुसार-
भूरिश्रवा: प्रभु: शम्‍भु: कृष्‍णो गौरश्‍च पण्‍चम:।
कन्‍या कीर्तिमती नाम वंशायैते प्रकीर्तिता:।।
भूरिश्रवा, प्रभु, शम्‍भु, कृष्‍ण और गौर नाम के पांच पुत्र थे। तथा कीर्तिमती नामक एक कन्‍या थी। ये सब ही अपने वंश की कीर्ति बढ़ाने वाले थे। कन्‍या कीर्तिमती भारद्वाज वंश काम्पिल्‍य नगर के नृप अणुह जी को ब्‍याही गई थी। महान योगी और सब जीवों को बोली समझने वाले ब्रह्मदत्त जी का जन्‍म इसी कीर्तिमती के उदर से हुआ था।
        ब्रह्माण्‍ड पुराण में शुकदेव जी के किस-किस नाम वाले कितने पुत्र-पुत्री हुए- उसका वर्ण निम्‍न प्रकार है-
काल्‍यां पराशराज्‍जज्ञे कृष्‍णद्वैपायन: प्रभु:।
द्वैपायनादरण्‍यां वै शुको जज्ञे गुणान्वित।। ।।92।।
भूरिश्रवा प्रभु: शम्‍भु: कृष्‍णौ गौरश्‍च पण्‍चम:।
कन्‍या कीर्तिमती चैव योगमाता धृतव्रता।। ।।93।।
जननी ब्रह्मदत्तस्‍य पत्‍नी सात्‍वणुहस्‍य च।
श्‍वेता कृष्‍णाश्‍च गौराश्‍च श्‍यामा धूम्रास्‍तथारुणा।। ।।94।।
नीलो वादरिकश्‍चैव सर्वे चैते पराशरा:।
पाराशराणामष्‍टौ ते पक्षा: प्रोक्‍ता महात्‍मनाम्।। ।।95।।
अर्थ- परशर मुनि से काली(सत्‍यवती) में कृष्‍ण- द्वैपायन उत्‍पन्‍न हुए। कृष्‍णद्वैपायन से आरणी में सर्वगुण सम्‍पन्‍न शुकदेव उत्‍पन्‍न हुए। शुकदेव से पीवरी से भूरिश्रवा, प्रभु, शम्‍भु, कृष्‍ण, गौर और कीर्तिमती कन्‍या जो अणुह ऋषि को ब्‍याही थी; जिसके ब्रह्मदत्त उत्‍पन्‍न हुआ (जो योग शास्‍त्र का प्रधान आचार्य था) और श्‍वेत, कृष्‍ण, गौरश्‍याम, धूम्र, अरुण, नील बादरि ये पुत्र और उत्‍पन्‍न हुए।
          हरिवंशोपपुराण के पर्व 1 अध्‍याय 18 में भी लिखा है-
ये तानुत्पाद्य धर्मात्‍मा ये योगाचार्यान्‍महाब्रतान्।
श्रुत्‍वा स्‍वजनकाद्धर्मान् व्‍यासादमितबुद्धिमान।। ।।54।।
महायोगी ततो गन्‍ता पुनर्नावर्तिनीं गतिम्।
यत्तत्‍पदमनुद्विग्‍नमव्‍ययं ब्रह्म शास्‍वतम्।। ।। 55।।
इस प्रकार महायोगी शुकदेव जी पूर्वोक्‍त 12 पुत्र और एक पुत्री को उत्‍पन्‍न करके अपने पिता वेदव्‍यास से मोक्ष धर्मों को सुनकर उस वैकुण्‍ठ लोक में जाएंगे, जिसमें जाकर कभी नहीं लौटते और जिसमें जाकर नित्‍य सुख के भागी होकर मुक्‍त हो जाते हैं।
ऊपर लिखे हुए प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि शुकदेव जी के 12 पुत्र और 1 कन्‍या कीर्तिमती उत्‍पन्‍न हुई। कन्‍या का तो विभ्राज के पुत्र अणुह के स‍ाथ विवाह कर दिया और 12 पुत्रों को विद्या पढ़ाने के लिए 12 ऋषियों के पास भेज दिया। जिन ऋषियों के पास विद्या पढ़ने के लिए शुकदेव जी ने अपने 12 पुत्रों को भेजा था, उनके नाम आगे दिए गये हैं।
शुकस्‍याप्‍यभवान्‍पुत्रा द्वादशैव महातपा:।
पीवर्यां पितृकन्‍यायां द्वादशादित्‍यसन्निभा:।। ।।4।।
भ‍ूरिश्रवा प्रभु: शंभु: कृष्‍णो गौरश्‍च पंचम: ब्रह्माण्‍ड।
श्‍वेत: कृष्‍णश्‍च गौरश्‍च श्‍यामो धूम्रस्‍तथैवच।। ।।5।।
वादरिश्‍चोपन्‍युश्‍च सर्वे चैते पाराशरा:।
कन्‍या कीर्तिमती चैव योगमाता धृतव्रता।। ।।6।।
शुकदेव जी के पितृ – कन्‍यापीवरी नाम की स्‍त्री से द्वादश पुत्र उत्‍पन्‍न हुए। (1) भूरिश्रवा (2) प्रभु (3) शंभु (4) कृष्‍ण (5) गौर (6) श्‍वेत (7) कृष्‍ण (8) गौर (9) श्‍याम (10) धूम्र (11) बादरि (12) उपमन्‍यु। ये सब पराशर के वंश में है।
जननी ब्रह्मदत्तस्‍य पत्‍नी सा त्‍वणुहस्‍य च।
नामान्‍तरणि चैतेषां कृतानि गुरुभिस्‍तदा।। ।।7।।
भारदाजस्‍तु प्रथमो द्वितीयस्‍तु पराशर:।
तृतीय: कश्‍यपो नाम्‍ना कौशिकस्‍तु चतुर्थक:।। ।।8।।
गर्गश्‍च पंचमो ज्ञेय उपमन्‍युस्‍तु षष्‍ठक:।
सप्‍तमों वत्‍स नामावै शाण्डिल्‍यश्‍चाष्‍टम: स्‍मृत:।। ।।9।।
भार्गवों नवमो नाम मुद्गलो दशम: स्‍मुत:।
एकादशों गौतमश्‍च द्वादश: कौत्‍सनामक:।। ।।10।।
अध्‍यापयञ्छि‍ष्‍यगणान् व्‍यास: पौत्रांश्‍च वीर्यवान्।
उवास हिमवस्‍पृष्‍ठे पारार्श्‍यो महामुनि:।। ।।11।।
कीर्तिमती नाम की कन्‍या योग विद्या की ज्ञाता और पतिव्रता धर्म को धारण करने वाली थी। इसका विवाह अणुह नाम के ऋषि के साथ हुआ था। जिसके ब्रह्मदत्त नाम का योगविद्या का ज्ञाता पुत्र हुआ। पितृकन्‍या पीवरी से शुकदेव क पूर्वोक्‍त द्वादश पुत्र हुए। इनके गुरुओं ने इनके जो दूसरे नाम रखे वे इस प्रकार हैं-
(1) भरद्वाज (2) पराशर (3) कश्‍यप (4) कौशिक (5) गर्ग (6) उपमन्‍यू (7) वत्‍स (8) शाण्डिल्‍य (9) भार्गव (10) मुद्गल (11) गौतम (12) और कौत्‍स।
शुकदेव जी ने गुहस्‍थाश्रम में रहकर चारों ऋणों से मुक्ति प्राप्‍त की तथा पिताजी की आज्ञा से सुमेरू पर्वत पर गये जहां जप, ध्‍यान करते हुए मोक्ष को प्राप्‍त हुए। इस प्रकार उपरोक्‍त प्रमाणों से सिद्ध है कि शुकदेव जी के 12 पुत्र एवं कन्‍या हुई।कीर्तिमति को शुक वंश में प्रसिद्ध होने के कारण ब्रह्मदत्त जी भी पराशर के पक्ष में गये।
पारीक ब्राह्मण इनके वंशज :-
पारीक शब्‍द के बारे में कहा जाता है पार ऋषि का नाम पराशर जी है इसलिए उनके वंशज पारीक हैं। शुकदेव जी के 12 पुत्रों के नाम पर ही पारीक ब्राह्मणों के 12 गोत्र हैं। पारीक ब्राह्मणों के 9 अवंटक या नख हैं, गोत्र ये है ,- भारद्वाज, कश्‍यप, वत्‍स, उपमन्‍यु, कौशिक, गर्ग, शान्डिलय, गौतम, कौत्‍स, पराशर, भार्गव तथा मुद्गल। पारीकों की कुल माताएं 22 हैं ।
महातपस्‍वी ज्ञानी ब्रह्मदत्त :-
ब्रह्मदत्त पांचालदेशीय कांपिल्य नगर का एक राजा, जो भागवत के अनुसार नीप राजा का पुत्र था। विष्णु, मत्स्य एवं वायु में इसे अणुह राजा का पुत्र कहा गया है । इसकी माता का नाम कीर्तिमती अथवा कृत्वी था, जो शुकदेव की कन्या थी । देवल ऋषि की कन्या सन्नति इस की पत्नी थी । किन्तु भागवत में इसकी पत्नी का नाम गो दिया गया है । भागवत एवं विष्णु में इसके पुत्र का नाम विष्वक्सेन दिया गया है । किन्तु मत्स्य एवं वायु में इसके पुत्र का नाम क्रमशः युगदत्त, एवं युगसूनु दे कर, इसके पौत्र का नाम विष्वक्सेन बताया गया है । महाभारत में इसके पुत्र का नाम सर्वसेन बताया गया है । इसके भवन में निवास करनेवाली पूजनी नामक चिडिया के बच्चों को इसका पुत्र सर्वसेन ने मारा, अतएव पूजनी ने भी सर्वसेन की ऑखे फोड डाली । पश्चात् पूजनी ने इसका राजभवन छोडना चाहा । राजा ब्रह्मदत्त ने उसे रहने लिये काफी आग्रह किया । किन्तु अपने शत्रु के घर रहने से उसने इन्कार कर दिया । राजभवन छोडते ते समय पूजनी का एवं इसका तत्त्वज्ञान संबंधी संवाद हुआ था। इसने जैगीषव्य ऋषि से योगविद्या प्राप्त कर, योगतंत्र नामक ग्रंथ का निर्माण किया था । महाभारत के अनुसार, सुविख्यात वैदिक आचार्य कण्डरीक के वंश में इसका जन्म हुआ था, एवं उसीके वंश में उत्पन्न हुआ । कण्डरीक नामक अन्य एक पुरुष इसका मंत्री था । मस्त्य में बाभ्रव्य पांचाल सुबालक एवं कण्डरीक को क्रमशः इसका मंत्री एवं मंत्रीपुत्र कहा गया है । यह स्वयं वेदशास्त्रविद्‍ था, एवं इसने अथर्ववेद के एवं कण्डरीक ने सामवेद के क्रमपाठ की रचना की थी । अथर्ववेद संहिता का पदपाठ एवं शिक्षा की भी इसने रचना की थी । योगाचार्य गालव इसका मित्र था, एवं इसने सात जन्मों के जन्ममृत्यसंबंधी दुःखों का बारबार स्मरण कर के योगजनित ऐश्वर्य प्राप्त किया था । इसने ब्राह्मणों को ‘शंखनिधि’ दे कर ब्रह्मलोक भी प्राप्त किया था । समस्त प्राणियों एवं पक्षियो की बोली इसे अवगत थी । भीष्म का पितामह प्रतीप राजा का यह समकालीन था ।
        ब्रह्मदत्त का दूसरा नाम पितृवर्ती था। श्राद्धकल्‍प में किए जाने वाले श्‍लोकों के पाठ से ब्रह्मदत्त जी का घनिष्‍ठ संबंध है। इन श्‍लोकों के पाठ से पितरों की तृप्‍ती मानी जाती है। ब्रह्मदत्त जी का विवाह देवल ऋषि की कन्‍या सन्‍नति से हुआ था। 
 ब्रह्मदत्त जी ने काशीराज की नौ कन्‍याओं से विवाह किये थे, जिससे 103 खांप पारीकों की उत्‍पति हुई। चार सौ वर्षों पूर्व इस वंश में 108 शाखाएं थी वर्तमान काल में अनुमान से 80 ही हैं। महातपस्‍वी और ज्ञानी ब्रह्मदत्त शुकदेव की इच्‍छानुसार पराशर के वंश में गये। उस पक्ष में जाने से ही (पुत्री का धर्मानुसार) ब्रह्मदत्त और उनकी सन्‍तान 'पाराक्‍य' कहलाए। इसी का अपभ्रंश 'पारीक' है। 


                                

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