Monday, February 28, 2022

अयोध्या में सोलह में से बच सके हैं सात श्रीहरि के मंदिर डा. राधे श्याम द्विवेदी

अयोध्या में सोलह में से बच सके हैं सात श्रीहरियों के मंदिर 

डा. राधे श्याम द्विवेदी

श्रीहरि विष्णु ने रक्ष संस्कृति के विनाश के लिए अयोध्या में राजा दशरथ के यहां श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। यह अवातर त्रेता युग में हुआ था लेकिन इसके पहले भी श्री हरि के अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा ८४ कोस में लेने से जुड़े होने के संकेत हैं।अयोध्या में प्राचीन काल में हरि अर्थात भगवान विष्णु के 16 मंदिर अति प्रसिद्ध मंदिर थे. कालांतर में अयोध्या में चक्रहरि चंद्रहरि धर्महरि विष्णुहरि ,गुप्तहरि, पुण्यहरि ,बिल्लहरि हरि स्थान बचे हैं।इन स्थानों की स्थिति वर्तमान वर्तमान में अत्यंत दयनीय हो चुकी है . यह  माना जाता है कि ये सप्त हरि स्थानों का अस्तित्व और प्रमाण 12वी शताब्दी से पूर्व से रहा है ।

प्रथम: विष्णु हरि मन्दिर अयोध्या :-

त्रेतायुग में श्री हरि विष्णु का रामावतार सर्वविदित है। लंकाधिपति रावण के आतंक से ऋषि, महर्षियों व मानव कल्याण के लिए श्रीराम के रूप में अयोध्या में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में अवतार लिया। राम अवतार वाला वह विष्णुहरि मंदिर कई बार बना और विलुप्त हुआ  है।  इसके पुरातात्विक प्रमाण विष्णु हरि शिलालेख संस्कृत भाषा में पाया गया है। यह शिलालेख उत्तर प्रदेश  के अयोध्या में वर्तमान श्री राम जन्म भूमि स्थल में पाया गया है। । यह गोविंदचंद्र नामक राजा के एक सामंत, अनयचंद्र द्वारा मंदिर के निर्माण को रिकॉर्ड करता है।  इसमें अनयचंद्र के वंश का एक स्तुति भी शामिल है। इसकी तारीख का हिस्सा गायब है, और इसकी प्रामाणिकता विवाद का विषय रही है। कहा जाता है कि यह शिलालेख अयोध्या में बाबरी मस्जिद के मलबे के बीच पाया गया था। जो 1992 में हिंदू कार्यकर्ताओं के एक समूह ने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। इसमें दावा किया था कि मुस्लिम शासक बाबर ने जन्मस्थान को चिह्नित करने वाले एक हिंदू मंदिर को नष्ट करने के बाद मस्जिद का निर्माण किया था।  जो हिंदू देवता राम ( विष्णु का एक अवतार )  से सम्बन्धित था। लोगों का मानना है कि एक मंदिर बाबरी मस्जिद स्थल पर ही अस्तित्व में अपने दावे के सबूत के रूप में शिलालेख पर विचारनीय है। इसे 12 वीं सदी के राजा की  गहड़वाल राजा गोविंदचंद्रा के रूप में पहचान हुई है। श्लोक 21 में हरि मंदिर का निर्माण की बात कही जाती है।          

श्लोक 21 में कहा गया है कि उपरोक्त शासक (अनयचंद्र या मेघसूता) ने "सांसारिक आसक्तियों के सागर" (यानी मोक्ष या मोक्ष प्राप्त ) को पार करने का सबसे आसान तरीका खोजने के लिए, विष्णु-हरि के इस खूबसूरत मंदिर को बनवाया था । मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े तराशे हुए पत्थरों के खंडों का उपयोग करके किया गया था। किसी पूर्ववर्ती राजा ने इस पैमाने पर मंदिर नहीं बनाया था। शिखर ( शिखर मंदिर के) एक सुनहरा साथ सजी हुई थी कलश ( कुपोला ) है।

द्वितीय:  चक्र हरि मन्दिर गुप्तार घाट, अयोध्या  

भगवान विष्णु नेअपने चक्र पर  अयोध्या नगरी बसाई थी। विष्णु की भी प्रिय नगरी रही है अयोध्या। स्कंदपुराण में अगस्त्य ऋषि अयोध्या को विष्णुपुरी कहकर संबोधित करते हैं। स्कंद पुराण में ही लिखा है कि अयोध्या की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने अपने चक्र पर की थी।  स्कंद पुराण में ही लिखा है कि अयोध्या की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने अपने चक्र पर की थी। अयोध्या का ‘अ‘ कार ब्रह्मा, ‘य‘ विष्णु और ‘घ‘ कार रुद्र का स्वरूप है। पौराणिक कथाएं बताती हैं कि ब्रह्मा से जब मुन ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की जब बात कही तो ब्रह्मा और मनु के साथ विश्वकर्मा को भेजा गया। उसी समय विष्णु के मन में राम के अवतार के रूप में अयोध्या में जन्म लेने की लालसा जगी। विश्वकर्मा ने इस नगर का निर्माण किया। वशिष्ठ ने राम अवतार के लिए इसका चयन किया। स्कंद प्रराण के वैष्णव खंड में इस बात का जिक्र मिलता है कि भगवान विष्णु को अयोध्या के वासी जान ब्रह्मा अपना लोक छोड़कर अयोध्या आ गये थे।देवासुर संग्राम के दौरान विष्णु ने सरयू तट पर तपस्या की थी।आज की राम जन्मभूमि से बामुश्किल पांच सौ मीटर दूर चक्रतीर्थ का अस्तित्व है। चक्रधारी का संपूर्ण क्षेत्र किसी मलिन बस्ती की तरह उपेक्षित पड़ा है। कहा जाता है बहुत समय पूर्व विष्णु शर्मा नाम के ब्राह्मण की तपस्या से प्रकट हुए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से तीर्थ की रचना की। अयोध्या के गुप्तार घाट पर स्थित गुप्त हरि और चक्र हरि मंदिर इसके गवाह हैं।

श्रीचक्रहरि का पीठ:- अयोध्या से पश्चिम सरयू तट पर गुप्तार घाट स्थित है। स्कंद पुराण में इसे श्रीगुप्तहरि और श्रीचक्रहरि का पीठ स्थान माना है। एक अन्य कथा के मुताबिक इसी स्थान पर भगवान विष्णु के हाथ से छूटकर सुदर्शन चक्र गिरा था, इसलिए इसका एक नाम श्रीचक्रहरि भी है। मौके पर इस भवन के भूतल पर भगवान राम के चरण चिंह्न बने हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम मानव अवतार के रूप में सरयू नदी में डुबकी लगाने से पूर्व अपने खड़ाऊं को यहीं पर उतारा था। प्रथम तल पर स्थित मंदिर को चक्रहरि मंदिर के रूप में मान्यता है। यहां पर भगवान विष्णु की मूर्ति श्रीचक्रहरि के रूप में मौजूद है। श्रीहरि के दर्शन से सभी प्रकार के दोष व पाप शांत होते है। चक्र हरजी मंदिर, फैजाबाद में गुप्‍तार घाट पर सरयू नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर दो कारणों से हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। पहला यह है कि भगवान विष्‍णु की चक्र धारण किए हुए मूर्ति भक्‍तों के बीच सदैव रहस्‍य की भावना उत्‍पन्‍न करता है, क्‍योंकि साधारण तौर पर माना जाता है कि भगवान विष्‍णु केवल युद्ध क्षेत्र में ही सुदर्शन चक्र को धारण किया करते है ताकि वह दुष्‍टों का संहार कर सके। भगवान विष्‍णु को चक्र धारण किए हुए  देखना एक दुर्लभ दृश्‍य है।  इस मंदिर में अन्‍य देवताओं की मूर्ति भी रखी हुई हैं। सरयू नदी के किनारे पर स्थित यह मंदिर बेहद शांत और शांति भरा वातावरण प्रदान करता है।

तृतीय: श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर ,अयोध्या

"श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर” वर्तमान में, सरयू नदी के दक्षिण, नयाघाट से फैजाबाद, राजमार्ग पर स्थिति तुलसी उद्यान से लगभग 500 मीटर पूरब दिशा में, डेरा बीबी मोहल्ले में, बेतिया राज्य के मंदिर के बग़ल मैं है। नयाघाट से मंदिर की सीधी दूरी लगभग एक किमी. होगी। पौराणिक गाथाओं के अनुसार, स्वंय भगवान विष्णु ने इस मंदिर की स्थापना की थी और धर्मराज जी को दिये गये वरदान के फलस्वरुप ही धर्मराज जी के साथ इनका नाम जोड़ कर इस मंदिर को ‘श्री धर्म-हरि मंदिर’ का नाम दिया है। श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्महरि मंदिर कहा गया है। किवदंति है कि विवाह के बाद जनकपुर से वापिस आने पर श्रीराम-सीता ने सर्वप्रथम धर्महरि चित्रगुप्त जी के ही दर्शन किये थे। धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्महरि चित्रगुप्त राजदरबार के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता। अयोध्या के इतिहास में उल्लेख है कि सरयू के जल प्रलय से अयोध्या नगरी पूर्णतया नष्ट हो गर्इ थी और विक्रमी संवत के प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य ने जब अयोध्या नगरी की पुनस्र्थापना की तो सर्वप्रथम श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर की स्थापना कराया था।   एक किदवंती यह भी हैं कहा जाता हैं,जब भगवान राम रावण को मार कर राजतिलक के लिये अयोध्या लौट रहे थे।भरत जी उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे  थे। तब भरत जी ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजने की व्यवस्था करने को कहा। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं। ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी-देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा चित्रगुप्त जी नहीं दिखाई दे रहे है, इस पर जब उनकी खोज हुई। खोज में जब चित्रगुप्त जी नहीं मिले,तब पता चला कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त जी को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये।इधर भगवान चित्रगुप्त सब जान तो चुके थे, और इसे भी नारायण के अवतार प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे। फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम दवात को उठा कर किनारे रख दिया। सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से वापस लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे।  प्राणियों का  लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ स्वर्ग/ नरक भेजना है।भगवान विष्णु ने  था इस मंदिर की स्थापना किया था।  गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमा याचना की। श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि श्री चित्रगुप्त भगवान जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता अयोध्या यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।

चतुर्थ: चंद्रहरि महादेव मन्दिर, अयोध्या

चंद्रहरि को 16 हरियों में चौथा स्थान प्राप्त है। चंद्रहरि स्वर्गद्वार स्थित राम की पैड़ी पर  सुरक्षित अवस्था में है। इस मंदिर में भी कुल 5 मंदिर हैं. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में चंद्रहरि भगवान विराजमान हैं, जबकि उसके दाहिने ओर मंदिर में भगवान राधा-कृष्ण, बाईं ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर है. द्वादश ज्योतिर्लिंग एक विशाल अर्घ्य के ऊपर है और वह भी मूर्ति में साक्षात ओमकार का दर्शन कराता है। चंद्रजी मंदिर का पावन वैभव अति विशिष्ट है. अयोध्या के विभिन्न कोणों पर स्थित सप्त हरि में चंद्रहरि को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही मंदिर के परिसर में स्थित मुख्य गर्भगृह में विराजमान काले कसौटी के एक ही पत्थर में 11 मूर्तियां विराजित हैं। ये मूर्तियां अति महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। माना जाता है इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नित्य दर्शन से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। स्वर्ग द्वार राम पैडी के पास स्थित प्राचीन चन्द्र हरि मंदिर है। इस स्थान पर यह मंदिर भगवान चन्द्रमा द्वारा स्थापित किया गया था। इसका महत्व कई धार्मिक ग्रंथो व पुराणों में वर्णित है। सैकड़ों वर्षों पूर्व इस मंदिर को महाराज विक्रमादित्य द्वारा पुनः जीर्णोद्धार किया गया। तब से लेकर आज भी यह मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में भगवान चंद्र्हरेश्वर के साथ बारह ज्योतिर्लिंग स्थापित है।

एक प्राचीन कुआं :-  इस मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुआं भी है। इसके जल के स्नान से चर्म रोग ठीक होते हैं, लेकिन मुगल काल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा और महत्ता के कारण लगने वाले मेले और जुटने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसे बंद करवा दिया गया. वर्तमान में कूप के ऊपर लोहे का मोटा चद्दर रखकर उसे बंद किया गया है। स्कंध पुराण में स्थान के महत्व बताया है कि स्वर्ग द्वार में इस मंदिर में प्रवेश करने मात्र से जन्म जन्मान्तरो के पाप नष्ट हो जाते है। तथा लिखा है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु की परम शक्ति व गूढ़ स्थान है। मनुष्य भगवान विष्णु का व्रत धारण कर विष्णु लोक आकांक्षा रख कर जिस प्रकार का धर्म फल पाता है वैसा अन्य किसी स्थान पर नहीं प्राप्त होती है। इस मंदिर में स्थापित कुएं के जल से स्नान कर वस्त्र व आनाज दान करने से बड़ा फल मिलता है। इस मंदिर की परंपरानुसार प्रत्येक वर्ष के एक माह तक धनुर्मास महोत्सव का आयोजन होता है। जिसे श्री गोदाम्बा पर्व कहा जाता है।


पंचम: पुण्य हरि मंदिर, पुनहद, पूरा बाजार अयोध्या

अयोध्या के सप्तहरि तीर्थों में एक पुण्यहरि कुंड भी है। इसे पुण्य हरि तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरा बाजार ब्लाक के खानपुर के पुनहद में स्थित है। इसी के नाम पर इस स्थान का नाम पुनहद पड़ा। गांव में मान्यता है कि श्रीराम वन से लौटने के पश्चात अयोध्या में प्रवेश के पहले सभी भाई यहीं पर मिले थे। इसीलिए इसे बंधुबाबा स्थान भी कहा जाता है।

षष्टम: विल्ब् हरि मंदिर बिल्हरघाट, अयोध्या

अयोध्या धाम में राजा दशरथ के समाधि स्थल बिल्व हरि घाट पर बिल्वे सर महादेव का प्राचीन मंदिर है।इसकी स्थापना भगवान राम ने बिल्व नामक राक्षस का वध करने के बाद किया था।अधिकमास में यँहा कथा,पूजन का विशेष महत्व है।


गुप्त हरि मन्दिर गुप्तार घाट अयोध्या :-

अयोध्या से पश्चिम सरयू तट पर गुप्तार घाट स्थित है। स्कंद पुराण में इसे श्रीगुप्तहरि और श्रीचक्रहरि का पीठ स्थान माना गया है। जब दैत्यों ने देवों को पराजित करके स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था तो देवताओं की प्रार्थना पर श्रीहरि विष्णु भगवान ने देवताओं को शक्ति प्रदान करने के लिए यहीं पर घोर तपस्या की थी। इसीलिए इसका नाम श्रीगुप्तहरि माना गया।   

No comments:

Post a Comment