भारतवर्ष
में अवध व कोशल का
नाम किसी से छिपा नहीं
है। भगवान राम का चरित्र आज
न केवल सनातन धर्मावलम्बियों
में अपितु विश्व के मानवता के
परिप्रेक्ष्य में बड़े आदर व सम्मान के
साथ लिया जाता है। उनके जन्म भूमि को पावन करने
वाली सरयू मइया की महिमा पुराणों
में भी मिलती है
तथा राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त आदि हिन्दी कवियों ने बखूबी व्यक्त
किया है। हो क्यों ना,
आखिर मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के चरित्र से
जो जुड़ा है। परन्तु क्या किसी पुराणकार या परवर्ती साहित्यकार
ने राम को धरा पर
अवतरण कराने वाले मखौड़ा नामक पुत्रेष्ठि यज्ञ स्थल और उसको पावन
करने वाली सरस्वती ( मनोरमा ) के अवतरण व
उनके वर्तमान स्थिति के बारे में
सोचा है ?
पूर्वी
उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद
के मूल निवासी कवि, पत्रकार तथा दिनमान पत्रिका के भूतपूर्व संपादक
स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपने गांव
के निकट बहने वाली ’’कुआनो नदी का दर्द” विषय
पर कविताओं का एक सिरीज
लिखकर उसे जीवंत बना दिया है। ठीक इसी प्रकार इस क्षेत्र की
सुवावान, बिसुही, कुवानो , टेहरी, मनोरमा, आमी, रोहिणी, रवई, मछोई ,गोरया, कठनइया, परासी, सिकरी, राप्ती व बूढ़ी राप्ती
अन्य छोटी बड़ी अनेक नदिया अपनी बदहाल स्थिति में आंसू बहाते हुए अपना दिन गुजार रही हैं। ये सब नदियां
बरसात के दिनों में
ही हंसती खिलखिलाती देखी जाती हैं और इनमें से
कुछ तो महाभयंकर तांडव
भी कर डालती हैं।
लेकिन इनमें से कुछ आज
या तो गन्दा नाला
बन गई हैं या
विल्कुल सूख सी गई हैं।
इनके उल्लेख पुराणों व बौद्ध साहित्य
में मिलने के बावजूद ना
तो किसी साहित्यकार ने और ना
किसी सरकारी मशीनरी - पर्यटन, संस्कृति या धमार्थ विभाग
ने इस तरफ कोई
ध्यान दिया है। इनमें कुछ विलुप्त हो गई हैं
और कुछ विलुप्त के कागार पर
हैं । आज मैं
इनमें मनोरमा जिसे मनवर भी कहा जाता
है , के बारे में
आप सबका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा।
उत्तर कोशल का बस्ती एवं
गोरखपुर का सरयूपारी क्षेत्र
प्रागैतिहासिक एवं प्राचीन काल से मगध, काशी,
कोशल तथा कपिलवस्तु जैसे ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरों से जुड़ा रहा
है। मयार्दा पुरूषोत्तम भगवान राम तथा भगवान बुद्ध के जन्म व
कर्म स्थलों को भी यह
अपने अंचलों में समेट रखा है। महर्षि धौम्य, अरूणि, उद्दालक , विभाण्डक श्रृंगी, वशिष्ठ, कपिल, कनक, तथा क्रकुन्छन्द जैसे महान सन्त गुरूओं के आश्रम कभी
यहां की शोभा बढ़ाते
रहे हैं। हिमालय के ऊॅचे-नीचे
वन सम्पदाओं को समेटे हुए
,बंजर, चारागाह, नदी-नालो,ं झीलों-तालाबों
की विशिष्टता से युक्त एक
आसामान्य प्राकृतिक
स्थल रहा है।
इटियाथोक का मनोरमा मदिर व गौतम वंश के महान उन्नायक अरूणि उद्दालक का आश्रम:-
सरस्वती जी ब्रह्मा जी
के चेहरे से उत्पन्न हुई
थीं। इस कारण उन्हे
ब्रह्मा जी की पुत्री
कहा जाता है। बाद में ब्रह्मा जी ने उन्हे
बताया था कि वह
विद्वानों की जिह्वा , पृथ्वीलोक
पर नदी बनकर तथा स्वयं ब्रह्मा जी के साथ
रह सकती हैं। ब्रह्म पुराण के अध्याय 43 के
अनुसार सरस्वती जी ने ब्रह्मा
जी की तीनों शर्तो
को स्वीकार कर लिया था
और तदनुरूप् रहना शुरू कर दिया था।
उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले
में उत्तर दिशा में राप्ती व बूढ़ी राप्ती
तथा दक्षिण में घाघरा नदी बहती हैं। इनके बीच में अनेक छोटी नदियां बहती है। राप्ती के दक्षिण सूवावान
उसके दक्षिण कुवानो फिर क्रमशः विसुही, मनवर, टेहरी,सरयू तथा घाघरा बहती है। गोण्डा जिला मुख्यालय से 19 किमी. की दूरी पर
इटिया थोक नामक जगह स्थित है। यहां उद्दालक ऋषि का आश्रम मनोरमा
मंदिर तथा तिर्रे नामक एक विशाल सरोवर
है। इस स्थान की
उत्पत्ति महाभारत के शल्य पर्व
अध्याय 38 श्लोक 25 व अध्याय 33 तथा
पुरानिक इनसाइक्लोपीडिया पृ. 84 में वर्णित है। अयोदधौम्य गौतम वंश के एक प्राचीन
ऋषि थे। इनके तीन प्रमुख शिष्य थे- अरूणि, उपमन्यु तथा वेद। अरूणि पांचाल देश में रहते थे। एक दिन गुरू
ने खेत बांधने के लिए भेजा
था। इसे वह स्वय टूटे
बंाध की जगह लेटकर
रोका था। इस पर प्रसन्न
होकर गुरू ने अपने शिष्य
का नाम उद्दालक रख दिया था।
पहले उन्हे अरूणि उद्दालक कहा जाता था बाद में
उद्दालक ही कहा जाने
लगा। उपमन्यु उनका दूसरा शिष्य कुएं में गिर गया था। उसने भी अपनी परीक्षा
में सफलता प्राप्त कर
लिया था।
उद्दालक ऋषि ने अपने यज्ञ
स्थल पर सरस्वती नदी
को प्रकट होने की इच्छा की
थी। पुरानिक इनसाइक्लोपीडिया पृ. 48, 803 के अनुसार ऋषि
के प्रभाव को देखते हुए
सरस्वती नदी वहां प्रकट हुई थी। ऋषि ने मनोरमा नाम
दिया था। यह भी कहा
जाता है कि तिर्रे
तालाब के पास उन्होंने
अपने नख से एक
रेखा खीचंकर गंगा का आहवान किया
तो गंगा सरस्वती ( मनोरमा ) नदी के रूप में
अवतरित हुई थीं। सरस्वती नदी को ब्रह्मा के
चेहरे से उत्पन्न होने
के कारण ब्रह्मा की पुत्री भी
कहा जाता है।उन्होंने ब्रहमाजी से अपना नाम
पूछा तो ब्रह्मा जी
ने बताया था- तुम्हारा नाम सरस्वती है। तुम तीन जगह रह सकती हो-
1. विद्वानों के जिह्वा के
अग्रभाग पर तुम नृत्य
करोगी। 2. पृथ्वी लोक में नदी के रुप समाज
का कल्याण करोगी। 3. मेरे साथ निवास करोगी। सरस्वती ने इन शर्तों
को स्वीकार कर लिया था।
इटियाथोक
के पास स्थित उद्यालक के आश्रम के
पास एक विशाल मेले
का आयोजन किया जाता है। जहां विशाल संख्या में श्रद्धालु पवित्र सरोवर तथा मनोरमा नदी में स्नान करते हैं तथा सौकड़ों दुकाने दो दिन पहले
से ही सज जाती
हैं। चीनी की मिठाई, गट्टा,
बरसोला तथा जिलेबी आदि यहां की मुख्य मिष्ठान
हैं।
उद्दालक
के दो सन्तानें बतायी
जाती है। पुत्र श्वेतकेतु और पुत्री सुजाता।
श्वेतकेतु ब्रह्म विद्या में निपुण थे। उद्दालक के शिष्य कहोड़
से सुजाता की शादी हुई
थी। इस दम्पति से
अष्टावक्र नामक विद्वान पुत्र उत्पन्न हुआ था।
एक अन्य उल्लेख
में आया है कि उद्दालक
ऋषि के पुत्र नचिकेता
ने मनवर नदी से थोड़ी दूर
तारी परसोइया नामक स्थान पर ऋषियों एवं
मनीषियों को नचिकेता पुराण
सुनाया था। नचिकेता पुराण में मनोरमा महात्म्य का वर्णन इस
प्रकार किया है-
अन्य क्षेत्रे कृतं पापं काशी क्षेत्रे विनश्यति।
काशी क्षेत्रे कृतं पापं प्रयाग क्षेत्रे विनश्यति।
प्रयाग क्षेत्रे कृतं पापं मनोरमा विनश्यति।
मनोरमा कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति।।
पुराणों में इसे सरस्वती की सातवीं धारा
भी कहा गया है। मूल सरस्वती अपने वास्तविक स्वरूप को खोकर विलुप्त
हो चुकी हैं, परन्तु मनोरमा के रूप में
आज भी हम लोगों
को अपना स्वरूप दिखलाकर दर्शन कराती हैं। इसके नाम के बारे में
यह जनश्रुति है कि जहां
मन रमे वही मनोरमा होता है। जहां मन का मांगा
वर मिले उसे ही मनवर कहा
जाता है। चूंकि ऋषि के मन के
संकल्प व इच्छा की
पूर्ति करते हुए सरस्वती जी ने यहां
अवतरण किया था। इसलिए उनका मनोरमा व मनवर नाम
पूर्णतः उनके अवतरण की घटना की
पुष्टि भी करता है।
इसकी पवित्र धारा मखोड़ा धाम से बहते हुए
ण् आगे जाती है। गोण्डा के तिर्रे ताल
से निकलने वाली यह नदी बस्ती
जिले की सीमा पर
सीकरी जंगल के सहारे पूर्व
दिशा में अनियमित धाराओं के रूप में
बहती है। गोण्डा के चिगिना में
नदी तट पर राजा
देवी बक्स सिंह का बनवाया प्रसिद्ध
मन्दिर स्थित है। गोण्डा परगना और मनकापुर परगना
के बीच कुछ दूर यह पूर्व दिशा
में बहने के बाद यह
बस्ती जिले के परशुरामपुर विकास
खण्ड के समीप बस्ती
जिले में प्रंवेश करती है। इसके दोनों तरफ प्रायः जंगल व झाड़ियां उगी
हुई हैं। बिंदिया नगर के पास इसमे
मंद मंद बहने वाली चमनई नामक एक छोटी नदी
मिल जाती है। यहां यह पूर्व के
बजाय दक्षिण की ओर बहना
शुरू कर देती है।
जो मनकापुर और महादेवा परगना
का सीमांकन भी करती है।
इस मिलन स्थल से टिकरी जंगल
के सहारे यह दक्षिण पश्चिम
पर चलती है। यह नदी दलदली
तथा गच के पौधों
से युक्त रहा करती है। ये दोनो नदियां
नबाबगंज उत्तरौला मार्ग को क्रास करती
हैं जहां इन पर पक्के
पुल बने है। इसकी एक अलग धारा
छावनी होकर रामरेखा बनकर सरयू या घाघरा में
मिलकर तिरोहित हो जाती है।
और मूल धारा अमोढा परगना के बीचोबीच परशुरामपुर,
हर्रैया, कप्तानगंज , बहादुरपुर एवं कुदरहा आदि विकासखण्डों तथा नगर पूर्व एवं पश्चिम नामक दो परगनाओं से
होकर बहती हुई गुजरती है। यह हर्रैया तहसील
के बाद बस्ती सदर तहसील के महुली के
पश्चिम में लालगंज में पहुचकर कुवानो नदी में मिलकर तिरोहित हो जाती है।
पौराणिक स्थलः-
मखौड़ा धाम:-पौराणिक संदर्भ में एक उल्लेख मिलता
है कि एक बार
उत्तर कोशल में सम्पूर्ण भारत के ऋषि मुनियों
का सम्मेलन हुआ था। इसकी अगुवाई ऋष् िउद्दालक ने की थी
। वे सरयू नदी
क उत्तर पश्चिम दिशा
में टिकरी बन प्रदेश में
तप कर रहे थे।
यही उनकी तप स्थली थी।
पास ही मखौड़ा नामक
स्थल भी था। मखौड़ा
ही वह स्थल हैं
जहां गुरू वशिष्ठ की सलाह से
तथा श्रृंगी ऋषि की मदद से
राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ
करवाया था। जिससे उन्हें रामादि चार पुत्र पैदा हुए थे। उस समय मखौड़ा
के आस पास कोई
नदी नहीं थी। यज्ञ के समय मनोरमा
नदी का अवतरण कराया
गया था। वर्तमान समय में यह धाम बहुत
ही उपेक्षित है। मन्दिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं। नदी के घाट टूटे
हुए हैं। 84 कोसी परिक्रमा पथ पर होने
के बावजूद इसका जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा
है।
श्रृंगीनारी आश्रमः- महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋषि
श्रृंगी का श्रृंगीनारी आश्रम
भी यही पास ही में है
,जहां त्रेता युग में ऋषि श्रृंगी ने तप किष्या
था। वे देवी के
उपासक थे। इस कारण इस
स्थान को श्रृंगीनारी कहा
गया है। यह भी कहा
जाता है कि श्रृंगी
ऋषि ने सरस्वती देवी
का आह्वान मनोरमा के नाम से
किया था। इससे वहां मनोरमा नदी की उत्पत्ति हुई
थी। यहां हर मंगल को
मेला लगता है। यहां दशरथ की पुत्री शान्ता
देवी तथा ऋषि का मंदिर व
समाधियां बनी है। आषाढ माह के अन्तिम मंगलवार
को यहां बुढवा मंगल का मेला लगता
है। माताजी को हलवा और
पूड़ी का भोग लगाया
जाता है। मां शान्ता यहां 45 दिनों तक तप किया
था। वह ऋषि के
साथ यहां से जाने को
तैयार नहीं हुई और यही पिण्डी
रूप में यही स्थाई रूप से जम गई
थीं।
पंन्डूलघाटः- यह
महाभारतकालीन स्थल है । यहां
अपने बनवास के समय पाण्डवों
ने विश्राम किया था।पहले यहां विशाल टीला हुआ करता था जो नदी
क कटान तथा सिंचाई विभाग द्वारा बंधा बनवाने से नष्ट हो
गया । पाण्डव आख्यान
के आधार पर पण्डूल घाट
में चैत शुक्ला नवमी को विशाल मेले
का आयोजन किया जाता है। पास ही में झुंगीनाथ
का एतिहासिक शिव मंदिर पर शिवरात्रि में
विशाल मेला लगता है। यहां लक्ष्मीनारायण तथा दुर्गा मंदिर भी स्थित है।
हर्रैया तहसील के मखौड़ा सिंदुरिया
मैरवा, श्रृंगीनारी, टेढ़ा घाट, सरौना ज्ञानपुर ओझागंज , पंडूलघाट , कोटिया आदि होकर यह आगे बढती
है। इसे सरयू का एक शाखा
भी कही जाती है। अवध क्षेत्र के 84 कोसी परिक्रमा पथ पर इस
नदी के तट के
मखौड़ा तथा श्रृंगीनारी आदि भी आते हैं।
मनोरमा नदी के तटों पर
अनेक सरोवर तथा मन्दिर आज भी देखे
जा सकते हैं। किसी समय में यहां पूरा का पूरा जल
भरा रहता था। यह नदी बहुत
ही शालीन नदी के रूप में
जानी जाती है। यह अपने तटों
को सरयू तथा राप्ती जैसे कटान नहीं करती है। इससे बस्ती जिले के दक्षिणी भाग
में सिंचाई की जाती रही
है।
ताम्रपाषाणकालीन नरहन संस्कृति के स्थल:- ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक अवशेष इस नदी के
तलहटी में ज्यादा सुरक्षित पाये गये है। गुलरिहा घाट, तेंदुवा , गोभिया , मदाही , बनवरिया घाट तहसील हर्रैया में तथा लालगंज, गेरार व चन्दनपुर तहसील
बस्ती में ताम्र पाषाणकालीन नरहन संस्कृति के अवशेष वाले
स्थल हैं। यहां काले व लाल पात्र
,लाल पात्र, उत्तरी काले चमकीले पात्र तथा धूसर पात्र आदि प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा आज भी इस
नदी को आदर के
साथ पूजा जाता है। लालगंज मे जहां यह
कुवानों में मिलकर खत्म हो जाती है
वहां भी चैत शुक्ला
पूर्णिमा को विशाल मेले
का आयोजन किया जाता है।
शुंग व कुषाणकालीन स्थलः- हर्रैया का अजनडीह, अमोढ़ा,
इकवार, उज्जैनी, बकसरी, बइरवा घाट, पकरी चैहान या पण्डूलघाट ,पिंगेसर
तथा अन्य अनेक स्थलों से शुंग व
कुषाण काल के पुरातात्विक प्रमाण
तथा अनेक पात्र परम्पराये प्राप्त हुई है।
स्वतंत्रता आन्दोलन स्थलः- मनोरमा की शाखा रामरेखा
के तट पर स्थित
छावनी तथा मूल मनोरमा तट पर बहादुरपुर
विकासखण्ड में स्थित महुआडाबर नामक गांवों में 1857 का स्वतंत्रता आन्दोलन
का विगुल फूंका गया था। बाद में इस क्षेत्र की
चेतना को देखते हुए
अगे्रजों ने 1865 में बस्ती को जिला घोषित
कर स्थिति को नियंत्रण किया
था।
वर्तमान
समय में गोण्डा से लेकर लालगंज
तक यह एक गन्दे
नाले का रूप ले
रखा है। जल प्रदूषण के
कारण इसका रंग मटमैला हो गया है।
इसके अस्तित्व पर खतरे के
बादल मंड़रा रहे हैं। जहां इसकी धारा मन्द हो गई है
वहां इसका स्वरूप विल्कुल बदल गया है। चांदी की तरह चमकने
वाला धवल जल आज मटमैला
नाला जैसा बन गया है।
इस नदी की महत्ता को
दर्शाने के लिए उत्तर
प्रदेश सरकार के कैविनेट मंत्री
श्री राज किशोर सिंह जिनका यह चुनाव क्षेत्र
भी है, के नेतृत्व में
मनोरमा महोत्सव का आयोजन करती
है। यह उत्सव हर्रैया
तहसील परिसर में सर्दियों में मनाया जाता हैं। केवल शिवाला घाट की सफाई हो
पाती हैं। अन्य घाट व नदी पहले
जैसी ही सूखी तथा
रोती हुई ही दिखाई देती
है। कोई अधिकारी उन तक झाकने
तक नहीं जाता। यदि दोनो जिलों के तहसील के
राजस्व अधिकारियो तथा नदी के दोनो तरफ
स्थित प्रधान व पंचायत अधिकारियो
व सरकारी व निजी विद्यालयों
के अध्यापकों की मीटिंग व
कार्यशाला आयोजित किया जाता तो अपेक्षाकृत अधिक
कामयाबी मिलती। यद्यपि मनवर की महत्ता विषयक
कुछ वार्ताये तो की जाती
है। पर्यावरण व जल संरक्षण
आदि विषयों पर गोष्ठी का
आयेजन किया जाता है परन्तु आपेक्षित
परिणाम दिखाई नहीं पड़ता है।
यह
आश्चर्य की बात है
कि हजारों वर्षों से कल कल
करके बहने वाली इस क्षेत्र की
बड़ी व छोटी नदियांे
का अस्तित्व एकाएक समाप्त होने लगा है। पर्यावरणवेत्ता इसके अनेक कारण बतलाते है। जलवायु में परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप, नदियों के पानी को
बांध बनाकर रोकना, बनों का अंधाधुंध कटाई,
गलेसियरों का सिकुड़ना आदि
कुछ एसे भौगोलिक कारण है जिस पर
यदि तत्काल ध्यान ना दिया गया
तो यह नदी भी
इतिहास की वस्तु हो
जाएगी। नदियों में वैसे जल कम आ
रहा है। इनमें मानवीय हस्तक्षेप को तो जन
जागरूकता तथा सरकारी प्रयास के कम किया
जा सकता है। आज सबसे ज्यादा
मानवीय प्रदूषण इसके विलुप्त होने का कारण बना
हुआ है। इसमें डाले जा रहे गन्दे
व प्रदूषित पानी न केवल इसके
अस्तित्व को अपितु इससे
सदियों से पल रहे
जीव जन्तुओं व वनस्पतियों के
लिए भी खतरा बन
रहे हैं। नदी के तटो पर
भूमिगत श्रोतों का दोहन होने
से भी इसके लिए
पानी जमाकर साल भर अनवरत बहने
में कठिनाई आती है। यह इस क्षेत्र
के निवासियों के लिए भी
शुभ संकेत नहीं है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को और सतर्कता
के साथ नई प्राकृतिक श्रोतों
की सुरक्षा के लिए प्रभावी
कदम उठाना चाहिए। नदी के धाटियों में
अंधाधुध कटान से बचाया जाना
चाहिए तथा वरसात के पहले इसमें
जमीं हुई सिल्ट को निकालने का
भी प्रयत्न किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं इन
नदियों को परिवहन के
साधन के रूप में
विकसित किया जाना चाहिए। इससे इसके जल की संरक्षा
होगी और इसके अवैेध
गतिविधियों पर नजर भी
रखी जा सकेगी। नदियों
का जल गर्मियों में
पम्पिंग सेट से निकालने की
मनाही होनी चाहिए। इस पर सदा
निगाह रखी जानी चाहिए कि इसका अवैध
दोहन व उत्खनन न
हो सके।