ब्रजभूमि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ताजनगरी आगरा से करीब 40 किलोमीटर दूर जगनेर एक छोटा सा शहर और एक नगर पंचायत है। जहां लगभग 1000 वर्ष पुराना जगनेर का ऐतिहासिक किला है।यह शहर एक पहाड़ी किले के चारों ओर फैला हुआ है। जो पत्थर के खदान और सरसों तेल निकासी के लिए भी प्रसिद्ध है। जगनेर का किला जमीनी स्तर से ऊपर 122 मीटर की दूरी पर एक तेज़ पहाड़ी पर स्थित और बाहर की ओर फैला हुआ है। अरावली के पर्वतों के बीच ऊंचे टीले पर निर्मित इस विशाल दुर्ग को आज काफी कुछ समय के थपेड़ों ने धूमिल कर दिया है।
ग्वाल बाबा मन्दिर व छतरी:-
किले में एक जाग मन्दिर है जो जहाँ राजस्थान के भाट-चारण परम्परा का जाग जाति की बहुल्यता का बोध कराती है। यह एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है, जहां ग्वाल बाबा की समाधि है। सदियों पहले गुफा में रहते के नाम पर इस घर का नाम पर ‘’ग्वाल बाबा’’ नाम रखा गया है । जहां ग्वाल बाबा का मशहूर मंदिर भी है। यह आगरा जिले के दक्षिण राजस्थान में की नोक पर आगरा शहर से ही लगभग 57 किमी दूर स्थित है। किले में ही राजा जयपाल सिंह ने संत ग्वाल बाबा की छत्री और समाधि का निर्माण करवाया था जो आज भी यहां मौजूद है और हर वर्ष संत ग्वाल बाबा की याद में यहां ब्राह्मण समाज द्वारा मेले का अयोजन कराया जाता है, जिसमें सभी वंश, कुल धर्म के लोग श्रद्धा से ग्वाल बाबा के समाधि पर मत्था टेकते है।
प्रवेश द्वारएतिहासिक किला:-
जगनेर का एतिहासिक किला-राजस्थान सीमा से लगा आगरा जनपद का सीमावर्ती कस्बा आगरा से कागारौल के रास्ते में तांतपुर जाने वाली सड़क पर बना है जो आगरा से लगभग 36 मील दूरी पर स्थित है। ‘आल्ह खंड’ रचयिता राजा जगन सिंह का नाम पर जगनेर बसा है। किले के भग्नावेष की प्रथम दृष्टि डालते ही ऐसा लगता है कि यह किला अपने अन्दर कोई बड़ा इतिहास छुपाये बैठा है। किले की सुनियोजित वास्तु- प्रणाली कर दिग्दर्शन से ऐसा लगता है कि महोबा नरेश आल्हा-ऊदल के मामा राजा राव जयपाल ने 12वीं शताब्दी में इसे बहुत ही सुरुचि पूर्ण ढंग से इसे बनवाया था। यहां लाल पत्थर की शिला पर उत्कीर्ण है कि इसे जगन पंवार ने बनवाया था। इसकी पुष्टि कर्निघंम की पुस्तक पूर्वी राजस्थान के यात्रा वृत्त से भी होती है।
इस दुर्ग की निर्माणशैली कुछ कुछ राजस्थान के सिरमौर गढ़ चित्तौड़ से मिलती जुलती है। पश्चिम छोर से पहाड़ी पर चढ़ा जा सकता है जहाँ एक बावड़ी भी है। अन्य दिशाओं से दुरगम्य प्रतीत होता है। जगनेर बस्ती की ओर से लम्बी घुमावदार पत्थर की अनगढ़ सीढि़यों की श्रृंखला प्रतीत होती है। हिन्दू भवननिर्माण शैली की विशेषताओं से युक्त इस किले में मन्दिर के अतिरिक्त शासकीय आवास, सैन्य गृह एवं सैन्य सामग्री प्रकोष्ठ के भग्नावेष भी देखे जा सकते हैं ।
परकोटा
एतिहासिकता
इस दुर्ग का की नींव 12वीं शताब्दी में चंद्रवंशी क्षत्रिय अहीर राजा जयपाल सिंह ने रखी थी। अहीर संस्कृत शब्द आभीर का प्राकृत रूप है जिसका अर्थ निडर होता है। जो हर तरफ से डर को दूर कर सकता है। आभीर ( निडर ) व्यापारी होते है। अहीर महाराज यदु के वंशज हैं जो एक ऐतिहासिक चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा थे। यह आल्हा और ऊदल के सगे मामा श्री भी थे। आल्हा और ऊदल का समय 12वीं शताब्दी का माना जाता है, जो राजा परमाल के शासनकाल में चंदेल राजाओं के सेनापति थे। आल्हा चन्देल राजा परमर्दिदेव (परमल ) के एक महान सेनापति थे, जिन्होंने 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई लड़ी थी, जो “आल्हा-खण्ड” ग्रन्थ में अमर हो गए। आल्हा ऊदल का, असली मामा श्री उनके राजा जयपाल सिंह थे जो बहुत उदार थे।
विभिन्न जातियों का वर्चस्व
जब देश में राजपूत शासकों के छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों का अभ्युदय हुआ था इससे पूर्व यदु जन-जाति के वंशजों के अधीन था। यदु राज्य कभी स्वतंत्र और कभी केन्द्रीय सत्ता के अधीन रहे। राजपूत शासकों के समय जगनेर परमारों और चंदेलों के अधिकार में था। किन्तु जगनेर के स्वतंत्र शासक बैनीसिंह ने पृथ्वीनाथ चैहान निरन्तर युद्ध किया । गुर्जर प्रतिहारों के पतन के पश्चात् परमारों और चन्देलों का अभ्युदय हुआ। उनकी शक्ति प्रतिदिन बढ़ती गयी। निरन्तर युद्ध और प्रतिस्पर्धा का शिकार जगनेर का किला भी बना रहा। मेवाड़ के शासकों ने परमार को पराजित कर बिजौली की ओर खदेड़ कर उनके द्वारा पुनः अधिकार करने का प्रयास किया। कुतुबद्दिन ऐबक और इल्तुमिश ने राजस्थान पर विजय कर जगनेर के शासक को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। किन्तु यहाँ के वीर राजपूत अपनी अस्मिता के लिए निरन्तर युद्धरत् रहे। 1510 ई0 में इसे मुगलों ने जीत कर अकबर ने जगनेर के दुर्ग पर मुस्लिम सूबेदार नियुक्त किया। जिसके द्वारा इस किले में ‘लाल पत्थर का मेहराबदार द्वार’ बनवाया। किले में उत्कीर्ण एक लेख से ज्ञात होता है कि अकबर ने राजस्थान विजय के लिए केन्द्र जगनेर को ही बनाया। यहाँ पर्याप्त मात्रा में अस्त्र-शस्त्र सैनिक एवं खाद्य सामग्री रखी जाती थी। यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में है।जगनेर किला को राजा जगन सिंह ने बनाया था। उसने वर्ष 1550 में राज्य स्थापित किया और किला वर्ष 1573 में बनकर तैयार हुआ। मुगलों ने 1603 में राजा जगन सिंह को मरवा दिया। उसके बाद से यह किला मुगलों के कब्जे में ही रहा।
दुर्ग का अंदरूनी भागअरावली पर्वतमाला
यह क्षेत्र की अरावली पर्वतमाला शाखा से घिरा है। आज भी यहां के तांतपुर गांव में पत्थर मंडी मशहूर है। मुगल साम्राज्य के पश्चात जगनेर के दुर्ग ने जाट, मराठे और अग्रेजों का सत्ता-सघर्ष देखा। आल्हा ऊदल की माताश्री रानी देवल के ही सगे ज्येष्ठ भ्राता श्री थे जयपाल सिंह रहे। कहा जाता है कि शिकार खेलने ग्वालियर से आगरा आए जयपाल सिंह ने आगरा के वातावरण से प्रभावित हो यहीं पर अपने निवास हेतु एक किले के निर्माण कराया और किले के परकोटे के बीच में ही अपने छोटे से राज्य की नगरी बसाई।इस किले को पहले जयगढ़ के नाम से भी जाना जाता था। बाद में जब राजाजयपाल सिंह की पीढ़ी में प्रतापी राजा जगन सिंह ने जन्म लिया तब उनके शासन में यह किला जगनेर कहलाया। जगनेर नाम राजा "जगन सिंह" के नाम पर पड़ा है, जो 13वीं शताब्दी के शासक थे। उनकी पत्नी का नाम रानी जमुना कंवर था। वह आगरा के आसपास है कि समय की बहुत सुंदर रानी थी।‘ आगरा गजेटियर’ के अनुसार जगनेर को पहले इस क्षेत्र को ऊँचाखेड़ा कहते थें।कर्नल टाड के अनुसार ‘नेर’ का अर्थ है चारों ओर से प्राचीरबद्ध नगर जैसे बीकानेर, सांगानेर, चंपानेर, अजमेर, बाड़मेर अत्यंत संरक्षित नगर थे और जिन्हें बाद में किले का स्वरुप प्रदान किया।यादव राजवंश के पश्चात इस दुर्ग पर चंदेल, परमार, मुग़ल आदि कई राजवंशों की सत्ता रही।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
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