सर्व धर्म समभाव वाली अयोध्या
अयोध्या सप्तपुरियों में एक है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध कौन नहीं रींझा। सिखों का पवित्र ब्रह्मकुंड है। मस्लिमों के हजरत नूंह का रिश्ता यही से बताया जाता है। शीश पैगंबर की मजार है। जैन धर्म के छह तीर्थांकरों की जन्मभूमि है। बौद्ध दार्शनिक अश्वघोष यहीं पैदा हुए। महात्मा बुद्ध ने कई चतुर्मास यहां किए। रामजन्म भूमि है, हनुमानगढ़ी है, कनक भवन है, दशरथ महल है, अशर्फी भवन है। न जाने कितने ऐसे स्थल है जों अपने में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। भारतीय पुरातत्व सूची में एक साथ तीन स्मारकों को दर्ज किया गया है जिसमें पहला मणि पर्वत, दूसरा कुबेर पर्वत व तीसरा सुग्रीव पर्वत है।
कुबेर नवरत्न टीला :-
कुबेर नवरत्न टीला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षित स्मारकों में से एक था लेकिन अब इसे संरक्षित स्मारकों की सूची से हटा दिया गया है। फिर भी स्मारकों की सूची में कुबेर पर्वत का नाम नहीं हटाया गया। लखनऊ सर्किल के अन्तर्गत संरक्षित स्मारकों की सूची में क्रमांक 64 से 69 तक दर्ज संरक्षित स्मारक अयोध्या के हैं। इनमें क्रमांक 64 में एक साथ तीन स्मारकों को दर्ज किया गया है जिसमें पहला मणि पर्वत, दूसरा कुबेर पर्वत व तीसरा सुग्रीव पर्वत है।
स्मारकों की सूची से नहीं हटा नाम:-
पत्रावली की जांच से पता चला कि कुबेर पर्वत/कुबेर नवरत्न टीला को संरक्षित स्मारकों की लिस्ट से बाहर करने की संस्तुति सारनाथ सर्किल के निदेशक ने पहले ही कर दी है लेकिन हेड क्वार्टर का आदेश यहां नहीं आया है। इसके लिए पत्राचार किया गया है। अयोध्या क्षेत्र अब सारनाथ सर्किल के बजाय लखनऊ सर्किल में शामिल हो गया है।
अवस्थिति :-
कुबेर नवरत्न टीला अयोध्या में राम मंदिर के पास स्थित एक प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थल है, जिसे धन के देवता कुबेर ने भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित करके पूजा की थी। "नवरत्न" नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ भगवान शिव के साथ-साथ पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, कुबेर और नंदी सहित नौ देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब पांच दशक पूर्व यहां से भगवान शिव की बारात निकाली जाती थी। लेकिन अयोध्या पर आतंकी हमला होने के बाद यह सिलसिला रूक गया। अब यह स्थान श्री रामजन्म भूमि अयोध्या यात्रा का एक अभिन्न अंग माना जाता है और राम मंदिर के साथ ही इसका दर्शन भी किया जा सकता है।
पौराणिक विरासत है कुबेर टीला :-
राम जन्मभूमि परिसर में रामलला के मंदिर निर्माणके अंतर्गत आता है। इसी परिसर में पौराणिक महत्व का कुबेर टीला स्थित है। ग्रंथ रुद्रयामल के अनुसार युगो पूर्व यहां धन के देवता कुबेर का आगमन हुआ था। उन्होंने रामजन्म भूमि के निकट ऊंचे किले पर शिवलिंग की स्थापना की थी। कालांतर में यहां मां पार्वती, गणेश, नंदी, कुबेर सहित नौ देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गई। एडवर्ड अयोध्या तीर्थ विवेचना सभा ने रामनगरी के चौरासी कोस की परिधि में जिन 148 पौराणिक स्थलों को चिह्नित किया था उसमें कुबेर टीला भी शामिल है। इस टीले पर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर था। यह मंदिर कुबेरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था। यहां प्रत्येक महाशिवरात्रि को मेला लगता था और भगवान शिव शंकर की बारात भी निकाली जाती थी। सात जनवरी 1993 को श्रीरामजन्म भूमि परिसर के अधिग्रहण के बाद भी परम्परा अखंड रही । तीर्थ क्षेत्र की ओर से इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया गया है। कुबेरेश्वर महादेव शिवालय का जीर्णोद्धार हुआ है।
पक्षीराज जटायु की मूर्ति का निर्माण :-
कुबेर नवरत्न टीले पर पक्षीराज जटायु की भी मूर्ति लगाई गई है। श्रीरामजन्म9 भूमि तीर्थ क्षेत्र की ओर से यह घोषणा की गयी थी कि जटायु की मूर्ति तांबे से बनाई जाएगी लेकिन मूर्ति का निर्माण तांबे से नहीं बल्कि मार्बल से ही हो गया है। मूर्ति के निर्माण पूरा होने के बाद इसके ऊपर तांबे का पत्तल चढ़ाई गई है । टीले के आधार की मिट्टी को हटाकर सुरक्षा दीवार बनाई गई है, इसके साथ ही ऊपर जाने के लिए कंक्रीट का रैंप बनाया गया है। इस रैंप से शीर्ष तक कार ले जाई जा सकती है। पिछले साल कुबेर टीला पर पक्षीराज जटायू की प्रतिमा लगायी गयी थी, जिसका अनावरण पीएम मोदी ने किया था। कांस्य से बनी यह भारी-भरकम मूर्ति दिल्ली से बनाकर अयोध्या लायी गयी थी। इस मूर्ति का निर्माण प्रसिद्ध मूर्तिकार 98 वर्षीय राम वांजी सूरत ने किया है। उन्होंने इसे अपने बेटे अनिल, जिनकी उम्र 65 साल है, के साथ मिलकर तैयार किया था।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
(वॉट्सप नं.+919412300183)
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