Monday, October 13, 2025

मेरी चारोंधाम यात्रा (विंध्याचल यूपी - 2)✍️आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी



              23 सितंबर 2025

                प्रातः गंगा स्नान

23 सितंबर के प्रातः विंध्याचल के अष्टभुजी मां के अंचल में बस पहुंची । जहां से ऑटो रिक्शा करके गंगा स्नान और विंध्यवासिनी मां के दर्शन के लिए प्रस्थान किया। यह मंदिर मिर्जापुर जिले के विंध्याचल कस्बे में पवित्र गंगा नदी के किनारे स्थित है और यह सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।जहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां कई घाटों का निर्माण और विकास किया जा रहा है, जैसे दीवान घाट, पक्का घाट, अखाड़ा घाट और बालू घाट। 

विंध्यवासिनी देवी मंदिर का दर्शन
विंध्याचल दुनिया का एकमात्र स्थान है, जहाँ देवी के तीनों रूपों - लक्ष्मी , काली और सरस्वती - के लिए अलग-अलग मंदिर हैं: विंध्यवासिनी (लक्ष्मी) मानी जाती है।अष्टभुजा (सरस्वती) के रूप में कृष्ण की योग माया के रूप में पूजी जाती हैं । भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास- स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरि को जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्।  
हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी। 
मां की शाश्वत पीठ:- 
इस लिंक से इस पीठ की महत्ता स्पष्ट हो जाता हैं - 
https://www.facebook.com/share/r/1ExDTupZFF/

सृष्टि के प्रारंभ से मां की अवस्थिति 
श्रीमद्देवीभागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजीने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचल पर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ।
       माँ विंध्यवासिनी माँ दुर्गा का स्वरूप कुल देवी है जो रक्षा करने वाली देवी के साथ- साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ इसके अलावा, दुनिया भर में बसे करोड़ों हिंदू मां विंध्याचल वाली के आशीर्वाद में आस्था रखते हैं और वे मां विंध्यवासिनी के आशीर्वाद के लिए विंध्याचल मंदिर आते हैं।
भारतीय मानक समय रेखा पर अवस्थिति
माँ विंध्यवासिनी महिषासुर मर्दिनी विंध्याचल बिल्कुल गंगा नदी के तट पर है। विंध्याचल के बारे में रोचक तथ्य यह है कि वर्तमान भारतीय मानक समय रेखा, जो सम्पूर्ण भारत का समय क्षेत्र निर्धारित करती है, देवी 'विंध्यवासिनी' की मूर्ति से होकर गुजरती है।
वन्य क्षेत्र में युद्ध
प्राचीन काल में विंध्याचल क्षेत्र में शेर, हाथी और अन्य जानवर निवास करते थे। मध्य युग में कुख्यात और हत्यारे पिंडारी गुंडे, हिंदू और मुसलमान दोनों, विंध्याचल की देवी 'विंध्यवासिनी' की पूजा करते थे।
विंध्याचल विश्व का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां देवी के तीनों रूपों, लक्ष्मी, काली और सरस्वती, को समर्पित विशिष्ट मंदिर हैं। देवी दुर्गा और दानव राजा महिषासुर के बीच बहुत प्रसिद्ध युद्ध विंध्याचल में हुआ था। शास्त्रों के अनुसार, विंध्याचल शहर को देवी दुर्गा का निवास स्थान भी माना जाता है । इस स्थान के पास, अन्य देवताओं को समर्पित कई मंदिर पाए जा सकते हैं। 

स्नान पूर्व यात्रा विवरण 
बस पार्किंग से सरकारी बस स्टैंड आकर लोग फ्रेश हुए। फिर गलियों से होकर गंगा घाट पहुंचे। घाट पर निर्माण कार्य होने से अभी सुविधाएं ठीक नहीं हो पाई हैं।
जब से मन्दिर में सुधार हुआ तब से नागरिक सुविधाए अस्त व्यस्त हो गई है। पुराना मुख्य मार्ग को वीवीआईपी सुविधा के लिए घेर लिया गया है। आम श्रद्धालु ज्यादा समय में कष्ट पूर्ण स्थिति में गंगा स्नान और मंदिर परिसर तक पहुंच पाते हैं। मन्दिर से भी पुलिस वाले घुसते ही खींच कर बाहर निकाल देते हैं।

मां की पूजा का एक विजुअल देखा जा सकता है - 
https://www.facebook.com/share/r/1BgqYkwb8t/

मंदिर दर्शन करके हमारी टोली के सभी लोग एकत्र हो गए। फिर नाश्ता पानी करके में सवारी करके नीचे बस पार्किंग पर आए।
अष्टभुजी देवी मंदिर
ऐसा कहा जाता है कि देवी ने राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद विंध्यांचल को रहने के लिए चुना था। विंध्यांचल के मंदिरों में हजारों भक्तों को देखा जा सकता है और नवरात्रि के दिनों में यह संख्या और भी बढ़ जाती है । इस उत्सव के दौरान पूरे शहर को दीपों और फूलों से सजाया जाता है। 
अष्टभुजा माता की महिमा
अष्टभुजा माता देवी दुर्गा का एक दिव्य और शक्तिशाली रूप हैं, जिनकी आठ भुजाएँ होती हैं। यह स्वरूप माँ की अपार शक्ति, करुणा, और भक्तों की रक्षा के प्रतीक के रूप में पूजनीय है। माता अष्टभुजा विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के विंध्याचल में स्थित विंध्यवासिनी देवी के रूप में प्रसिद्ध हैं, जहाँ भक्तगण दूर-दूर से माता के दर्शन करने आते हैं।

अष्टभुजा माता की विशेषताएँ:

1. आठ भुजाएँ: माँ की आठ भुजाएँ शक्ति, साहस, रक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक हैं।
2. अस्त्र-शस्त्र धारण: माता अपने हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र जैसे त्रिशूल, तलवार, चक्र, गदा, धनुष-बाण आदि धारण करती हैं, जो उनके शक्ति-स्वरूप को दर्शाते हैं।
3. राक्षसों का नाश: माता अष्टभुजा भक्तों की रक्षा करने और अधर्म का नाश करने के लिए जानी जाती हैं।
4. संकटों से मुक्ति: भक्तों का मानना है कि माता की उपासना से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

अष्टभुजा माता की कथा:
कंस के हाथों से छूट कर यशोदा मां की कन्या आसमान में चली गई और भविष्यवाणी कर कंस को आगाह करती गई की तुम्हारा कल जन्म ले चुका है। इस समय कन्या विंध्याचल में आकर अष्टभुजी स्वरूप में ,जो मां सरस्वती जी का स्वरूप है ,विराजमान हो गई । एक अन्य पौराणिक कथा के संदर्भ में महिषासुर मर्दिनी के रूप में भी अष्टभुजी मां की परिकल्पना की गई है। जब महिषासुर और अन्य दैत्यों ने स्वर्गलोक और पृथ्वी पर आतंक मचाया, तब देवी ने अष्टभुजा रूप में अवतार लिया और उन दुष्ट शक्तियों का संहार किया। उनकी महिमा का वर्णन दुर्गा सप्तशती और अन्य धर्मग्रंथों में किया गया है।

अष्टभुजी मां दर्शन के लिए प्रस्थान 
बस पार्किंग पर आकर अष्ट भुजी मां के दर्शन के लिए प्रस्थान किए। शुरू में सीढ़ियों से चढ़ कर गए पर बाद में रोपवे के सहारे मन्दिर पर चढ़े और उतर कर 
दर्शन किए। मन्दिर सकरा है। पुजारी श्रद्धालुओं को खींच कर जबरन संकल्प करवाते देखे गए और इससे श्रद्धालु गिर भी जा रहे हैं। गर्भ गृह में पुजारी अपनी मनमानी व्यवस्था करते है। सरकारी पुलिस का कोई रोल नहीं हो पाता था।
         दर्शन कर पुनः रोपवे के जरिए हम लोग वापस लौट आए। जहां सभी यात्री एकत्र होकर चित्रकूट धाम के लिए प्रस्थान किए। समय की कमी के कारण काली खोह के दर्शन का कार्य क्रम स्थगित हो गया। इसकी महत्ता कम नहीं है।
कालीखोह (कालीगुफा)
काली खोह मंदिर विंध्याचल, उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में स्थित एक पवित्र गुफा मंदिर है, जो देवी महाकाली को समर्पित है. यह मंदिर विंध्याचल त्रिकोण का हिस्सा है और विंध्यवासिनी मंदिर से लगभग 2-2.5 किमी की दूरी पर है. इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि माता काली की प्रतिमा खेचरी मुद्रा में है, जिसका मुख ऊपर की ओर खुला हुआ है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि माँ ने रक्तबीज राक्षस का संहार करते समय उसका रक्त पीने के लिए अपना मुख विशाल कर लिया था. गुफा मंदिर: यह मंदिर एक प्राचीन गुफा के अंदर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि माँ काली ने राक्षस रक्तबीज का संहार किया था, और उसका रक्त पीने के लिए अपना मुख विशाल कर लिया था, जिससे यह रूप बना।: यह मंदिर तंत्र साधना के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है, और देश-विदेश से तांत्रिक यहाँ साधना करने आते हैं. यह मंदिर विंध्याचल त्रिकोण के तीन प्रमुख धामों में से एक है, जिसमें विंध्यवासिनी मंदिर और अष्टभुजा धाम भी शामिल हैं।


No comments:

Post a Comment