Thursday, October 2, 2025

गयाजी के तीर्थ (4) सूर्य कुण्ड और दक्षिणार्थ सूर्य मन्दिर ✍️आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी


विष्णु पद से लगभग थोड़ी दूर पर यह "सूर्यकुंड'’ सरोवर और दक्षिणार्थ सूर्य मंदिर स्थित है। यह सरोवर अति प्राचीन है।लगभग 292 फीट लंबा और 156 फुट चौड़ा यह सरोवर है।इस सरोवर में स्नान से लोगों की बीमारियां दूर होती है।देशभर के कोने-कोने से श्रद्धालु सूर्यकुंड सरोवर में स्नान करने और सूर्य मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं और अपने कष्टों से छुटकारा पाते हैं।

विष्णुपद मंदिर के पास सूर्यकुंड (दक्षिण मानस) सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन यहां कर्मकांड का विधान है. जानकारों के अनुसार सूर्यकुंड सरोवर में तर्पण करने वाले तीर्थयात्रियों के पितरों को सूर्य लोक की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष मेले के मुख्य क्षेत्र में स्थित होने से यह सरोवर साल भर साफ-सुथरा रहता है।

ऐसा माना जाता है कि इस कुंड का जल सूर्य देव की कृपा से पवित्र हुआ था। सूर्य कुंड में साल में दो बार मेले के दौरान पर्यटक आते हैं। यह व्यापक रूप से प्रचलित मान्यता है कि इस कुंड में पवित्र स्नान करने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं। यहां पर कई पर्वतीय दरारें हैं, जिनसे गर्म झरने निकलते हैं, तथा श्रद्धालुओं द्वारा यहां डुबकी लगाने की प्रथा है।पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग स्नान क्षेत्र उपलब्ध हैं ।

उत्तर मानस सरोवर

शहर के मध्य क्षेत्र में फल्गु नदी के तट पर पिता माहेश्वर मोहल्ले में उत्तर मानस सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को यहां भी पिंडदान व तर्पण का विधान बताया गया है. वायु पुराण में भी इस सरोवर की चर्चा है. इस सरोवर में तर्पण करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को जन्म-मरण यानी जीवन चक्र से छुटकारा मिल जाता है.

दक्षिण मानस वेदी:- 

यह वेदी विष्णुपद क्षेत्र में सूर्य कुंड के पास स्थित है। गया में दक्षिण मानस वेदी पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है, जो कि विष्णुपद मंदिर के पास स्थित है. मान्यता है कि उत्तर मानस वेदी में पिंडदान करने के बाद मौन धारण कर दक्षिण मानस जाना चाहिए और यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं. सूर्यकुंड, जो कि दक्षिण मानस के नाम से भी प्रसिद्ध है, में तीन तीर्थ हैं, जहां अलग-अलग पिंडदान करने से पितरों को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है और वे निरोग हो जाते हैं।

दुर्लभ है ये सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर तीनों लोको में दुर्लभ है।भगवान ब्रह्माजी द्वारा गयासुर के शरीर पर यज्ञ के समय भगवान सूर्यनारायण इस स्थान पर पधारे थे। वायु पुराण से लेकर कई धर्मशास्त्रों से इस मंदिर का जिक्र है। यहां सच्चे मन से भगवान सूर्य की पूजा करने से पुत्र, पौत्र, धन, ऐश्वर्य, आयु व आरोग्य प्राप्त होता हैं। यहां भगवान सूर्य की काला हीरा पत्थर से निर्मित करीब चार फीट की प्रतिमा विराजमान है। 

अपनी दोनों पत्नियों के साथ सूर्य देव

इस स्थान पर भगवान सूर्य अपनी दोनों पत्नी संध्या व छाया के साथ सात अश्व वाले एक चक्केदार रथ पर विराजमान है। प्रभु के हाथों में शंख, चक्र, गदा और अष्टकमल हैं। इस मंदिर के ठीक सामने एक सरोवर है, जिसमें तीन तीर्थ स्थल समाहित हैं। इस सरोवर को ही सूर्यकुंड कहा गया हैं। यह मंदिर तीनों लोको में दुर्लभ है। यहां सूर्य नारायण खड़े स्वरूप में हैं। ये मरने वालों को भी जीवित करने वाले यह सूर्य हैं। 

     यहाँ पिंडदान करने से आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। सूर्य कुंड का जल अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसमें स्नान करने से पापों का नाश होता है। पितृ पक्ष अवधि पिंडदान और तर्पण के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। लाखों श्रद्धालु सूर्य कुंड पर एकत्रित होते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। इस दौरान सूर्य कुंड और उसके आसपास के क्षेत्रों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है और विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। लोग अपने परिजनों और पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनकी आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

आध्यात्मिक उत्थान का केंद्र 

सूर्य कुंड न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है।यहाँ ध्यान और चिंतन करने से आध्यात्मिक शांति और संतुष्टि प्राप्त होती है। कुंड के पवित्र जल और शांत वातावरण में ध्यान करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त होता है। यह स्थल उन आत्माओं के लिए एक माध्यम का काम करता है जो इस दुनिया से जा चुकी हैं और जो अभी भी जीवित हैं। इस प्रकार, सूर्य कुंड जीवन और मृत्यु के बीच एक सेतु का काम करता है, जो आत्माओं को शांति और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।

दुर्लभ सूर्य मंदिर 

मान्यता है कि यह सूर्य मंदिर तीनों लोको में दुर्लभ है। भगवान ब्रह्माजी द्वारा गयासुर के शरीर पर यज्ञ के समय भगवान सूर्य नारायण इस स्थान पर पधारे थे। वायु पुराण से लेकर कई धर्मशास्त्रों से इस मंदिर का जिक्र है। यहां सच्चे मन से भगवान सूर्य की पूजा करने से पुत्र, पौत्र, धन, ऐश्वर्य, आयु व आरोग्य प्राप्त होता हैं। यहां भगवान सूर्य की करीब चार फीट की प्रतिमा विराजमान है। 

तीनों प्रहर के रूप में सूर्य देव

यहां भगवान भास्कर तीनों प्रहर के रूप में मौजूद हैं। संभवत देश का यह पहला स्थान गया है, जहां भगवान भास्कर की प्रतिमा तीनों प्रहर के रूप में मौजूद है. गया के विष्णुपद क्षेत्र में चंद मीटरों की दूरी पर यह तीनों प्रतिमाएं स्थापित है. 

पितामहेश्वर में उदयीमान सूर्य

बताया जाता है, कि पिता महेश्वर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा उदयीमान सूर्य के रूप में जाने जाते हैं. 

ब्राह्मणी घाट में अपराहन के भास्कर

वही ब्राह्मणी घाट में अपराहन के भगवान भास्कर स्थापित हैं. इसे भगवान भास्कर की मध्यकालीन प्रतिमा माना जाता है. यहां भगवान सूर्य सपरिवार मौजूद हैं. 

सूर्यकुंड समीप संध्या के भास्कर

वहीं, सूर्यकुंड समीप सूर्य मंदिर में संध्या प्रहर के भगवान भास्कर के रूप में भगवान सूर्य मौजूद हैं.

फिरोज शाह तुगलक ने जीर्णोद्धार कराया

गया के सूर्यकुंड में स्थित भगवान सूर्य की प्रतिमा काफी प्राचीन है. कुछ जानकार बताते हैं, कि मुगल शासकों ने भी इस सूर्य मंदिर की महिमा को माना है. यही वजह है, कि 1372 ईस्वी में जीर्णोद्धार का काम दिल्ली के शासक फिरोज़ शाह तुगलक के शासन के दौरान होने की बात बताई जाती है.

सूर्यकुंड सरोवर में हैं तीन तीर्थ :  

प्राचीन काल में सूर्यकुंड में तीन ऋषि तपस्या करते थे। यहां तीन ऋषियों के नाम पर तीन कुंड है। इसमें दक्षिणार्क, कनखल और उदीची तीर्थ है। 

कनखल तीर्थ में स्नान से शरीर सोने की तरह शुद्ध होता है। 

दक्षिणार्क में स्नान से आरोग्यवान होते है सूर्य कुंड के पश्चिम में एक सूर्य नारायण की चतुर्भुज मूर्ति है, इसे दक्षिणार्क कहते हैं।

उदीची तीर्थ में स्नान से सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। यानि सूर्यकुंड के जल में तीन पावन तीर्थ समाहित हैं, जो इसकी महिमा को और बढ़ाता है।

छठ में सांयकाल अर्घ्य की प्रधानता महापर्व छठ में सांयकाल अर्घ्य की यहां प्रधानता है। यहां छठ व्रती अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देती है, साथ ही भगवान सूर्य नारायण का दर्शन पूजन करती है। 

इस मन्दिर के बारे में इस लिंक से और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है -- 

https://www.instagram.com/reel/C0HWF-zSVfu/?igsh=amJiZjN6bmt6aXho


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं चारों धाम की यात्रा कर गया जी के तथ्यों से अवगत हुआ है।

वॉट्सप नं.+919412300183

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