15 सितंबर 2025
आज सीता कुंड, राम गया, विष्णु पद और बोधगया पिंडा पारने के लिए हम सब लोग अलग- अलग ऑटो रिक्शा से निकले थे। सबसे पहले सीता कुण्ड और और राम गया दो वेदियों का संयुक्त रूप में एक साथ पिंडदान किया। सीता कुंड, गया में स्थित एक पवित्र जलस्रोत है, जो माता सीता की तपस्या और पवित्रता से जुड़ा हुआ है। यह स्थल धार्मिक आस्था का केंद्र है और यहाँ पितृ पक्ष,मकर संक्रांति व रामनवमी जैसे पर्वों पर विशेष स्नान का महत्व माना जाता है। कुंड के पास एक छोटा मंदिर भी स्थित है, जिसमें काले पत्थर से महाराज दशरथ का हाथ बना हुआ है। यहां पर बालू का तीन पिंडा बना कर अर्पित किया जाता है। मूल मंदिर पर भीड़ ज्यादा होने के कारण फल्गु नदी के तट पर ऊंचे-नीचे कीचड़ भरे जगह पर लोग यह रस्म निभा रहे थे। यहां उस समय में साफ सफाई संतोषजनक नही थी। फाल्गु नदी के तट पर सुरक्षा के लिहाज से बांस की बल्लियां लगाई गई है। इसके घाट कच्चे भी है। झाड़ झंखाड़ प्रायः चारों तरफ दिखाई दे रही थी।
राम गया वेदी
सीता कुण्ड के पास एक शिला है जो भरताश्रम की वेदी कही जाती है। इसी को राम गया कहते हैं। यहां मतंग ऋषि का चरण चिन्ह भी बना हुआ है तथा अनेक देव मूर्तियां हैं। यही श्रद्धालु पूजा- अर्चना करते हैं। माता सीता द्वारा पिंडदान करने की बात सुनकर भगवान श्रीराम काफी क्रोधित हुए थे । उन्होंने जौ का आटा व अन्य सामग्री का पिंड बनाकर स्वयं पिता राजा दशरथ का पिंडदान कर्मकांड के साथ किया। जो आज राम गया वेदी के नाम से जानी जाती है। यहां आज भी लोग जौ का आटा व अन्य सामग्री का पिंड बनाकर पिंडदान करते हैं।सीता कुण्ड और राम गया वेदी के पिंडा एक साथ अर्पित किए जाते हैं। इन दोनों वेदियों का कर्म कांड सीता जी के शाप के कारण गयापाल पंडा को नहीं है। इसे अयोध्या क्षेत्र का पंडा सम्पन्न कराते हैं। ये पंडे भी अपने मन के मुताबिक अपने साथ लाए गए श्रद्धालुओं से दान और डांड वसूल करते हैं। स्वैच्छिक दान यहां भी नहीं चलाया जाता है। पुरोहित यजमान की हैसियत देखकर संकल्प कराते हैं,और कई यजमानों को मोलभाव व मिन्नतें करते भी देखा गया।
विष्णु पद मंदिर
सीता कुण्ड और राम गया वेदी से तर्पण और पिंडदान करके कुछ हल्का जलपान कर ऑटो से हमारी टोली विष्णु पद मंदिर के लिए प्रस्थान की। ग्रुप में 35 40 लोग होने के कारण कही भी जाने और पहुंचने में लोगों को सहेजना पड़ता है। इस मामले में हमारे गृह जनपद के आए पुरोहित श्री चतुर्भुजी महराज का नेटवर्क बहुत सटीक रहता था। जो पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया और सकुशल वापसी के लिए प्रयासरत रहते थे।ऑटो रिक्शा से विष्णु पद के महान तीर्थ की ओर हम लोग गए यह स्थान वाकई दिव्य साफ-सुथरा और सारी सुविधाओं से युक्त था। सीता कुण्ड के विपरीत दिशा में फल्गु नदी के किनारे पक्के घाट रोशनी की व्यवस्था शामियाने कनात आदि देखे गए। यह फल्गु नदी के तट ब्रह्मयोनी पहाड़ी पर स्थित एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल है, जहाँ भगवान विष्णु के पदचिह्न अंकित हैं।गया में पिंडदान करने वाले लाखों श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन करते हैं।
हम लोग सीढीओ से छत पर चढ़कर खुले प्रांगण में मंदिर के पीछे वाले भाग में पिंडदान और तर्पण किया। यहां एक साथ पांच बेदियों का पिंडदान हुआ। बाद में पिंड को एकत्र कर विष्णु मंदिर के गर्भ गृह में श्री हरि के श्री चरणों पर चढ़ाया गया इसके लिए लंबी-लंबी कतारें ,पुलिस की व्यवस्था, पूरी साफ सफाई और कूलर पंखे भी चलते देखे गए। मंदिर की भव्यता अक्षुण्ण बनी रही।
हम लोग सीढीओ से छत पर चढ़कर खुले प्रांगण में मंदिर के पीछे वाले भाग में पिंडदान और तर्पण किया। यहां एक साथ पांच बेदियों का पिंडदान हुआ। बाद में पिंड को एकत्र कर विष्णु मंदिर के गर्भ गृह में श्री हरि के श्री चरणों पर चढ़ाया गया इसके लिए लंबी-लंबी कतारें ,पुलिस की व्यवस्था, पूरी साफ सफाई और कूलर पंखे भी चलते देखे गए। मंदिर की भव्यता अक्षुण्ण बनी रही।
पिंडदानियों ने कर्मकांड के बाद विष्णु चरणों के दर्शन और पूजन भी किया जाता है। यहां पुलिस द्वारा सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था होती है। यह गया के सर्वाधिक व्यवस्थित मंदिरों की श्रेणी में आता है।
बोधगया के लिए प्रस्थान
बोध गया मंदिर के पीछे पत्थर का चबूतरा है जिसे बौद्ध सिंहासन कहते हैं। इसी स्थान पर बैठकर गौतम बुद्ध ने तपस्या की थी और यही बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।ज्ञान और मोक्ष के इसी संगम ने गया को मुक्तिधाम बना दिया । यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए ज्ञान का सागर है और हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए मोक्ष का द्वार है । बोधगया स्थित विभिन्न पिंड वेदियो पर कर्मकांड का विधान है। इस मंदिर में पितृ पक्ष में पिंडा पारने के कारण प्रवेश उचित नहीं था। इसी मन्दिर से पहले जगन्नाथमंदिर का विशाल प्रांगण था जिसके पिछले अहाते को पिण्ड दान के लिए प्रयुक्त किया जा रहा था। पक्के फर्श पर अनेक टोलियों
अपनी अपनी बारी का इंतजार कर अपने अपने पुर्वजों को पिण्ड दान और तर्पण कर रहे थे। हमारी टीम को मनोज पंडित तर्पण करा रहे थे। कभी कभी दूसरे टीम के पण्डित की लघु ध्वनि विस्तारक यंत्र दूसरे टीम को सही कमांड सुनने में व्यवधान डाल देता था और यात्री को असमंजस की उपस्थित दे देता था।
बोधगया रोड पर अम्बा गाँव के पूर्वी भाग में शरस्वती वेदी ,मातंगवापी वेदी, धर्मार्णय वेदी और बोधितरु वेदी सहित 5 वेदियों पर तर्पण का काम एक ही बार में बोध गया वाले वेदी से सम्पन्न किया गया।
सभी चढ़ाए गए पिण्ड एक जगह कोने में इकट्ठा कर लिए जाते थे और सफाई कर्मी उसे साफ कर अगले पारी के लिए स्थल तैयार कर देते थे।
संयोग से आज का पिंडदान शुष्क माहौल में निपट गया था। यद्यपि कल की तरह आज भी मौसम खराब हो गया था और लौटते समय बारिश होने लगी थी।
No comments:
Post a Comment