Tuesday, October 14, 2025

मेरी चारोंधाम यात्रा ( प्रयाग, उत्तर प्रदेश-4) ✍️आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी



        24 सितंबर 2025

गया पिंडा प्रयाग मुंडा
24 के दोपहर को चित्रकूट से निकलने के
बाद करीब 5 बजे शाम को प्रयाग संगम पर बस लग गई। गया पिंडा प्रयाग मुंडा एक धार्मिक कहावत है जिसका अर्थ है कि पितरों के मोक्ष के लिए प्रयागराज में मुंडन कराकर और पिंडदान करके गया में श्राद्ध कर्म करना चाहिए। यह अनुष्ठान पितृ ऋण से मुक्ति पाने और पितरों को शांति दिलाने का एक महत्वपूर्ण तरीका माना जाता है। प्रयागराज में मुंडन और पिंड दान करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति मिलती है।पितरों को पिंडदान के तीन सूत्रों में पूजन का विधान है। प्रयाग मुंडे, काशी पिंडे, गया दंडे। यानि सबसे पहले प्रयागराज में जाकर बाल मुंडवाने की प्रथा है। इसके बाद काशी के पिशाचमोचन में पिंडदान करने के बाद गया में पितरों को बैठाने का विधान है। ऐसा करने के बाद भी पितर आपको फल देते है. इसके साथ ही साथ पुनः प्रयाग में मुंडन का विधान है। प्रयाग के संगम पर श्रद्धालु पिंडदान और तर्पण करते हैं और त्रिवेणी की धारा में डुबकी लगाकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरो की आत्मा धरती पर भूख प्यास में भटकती रहती हैं और अपनी संतानों द्वारा प्राप्त पिंडदान से तृप्त होती है।
       "गया पिंडे प्रयाग मुंडे" का महत्व एवं पुण्य है। ऐसी मान्यता है कि प्रयाग में विष्णु का स्थिर निवास, काशी में ढूंढी (विष्णु स्वरूप) और गया में चरण मौजूद है.इसलिए हमेशा इन तीनों स्थान पर पितरों को संतुष्ट करने के लिए अनुष्ठान आवश्यक है सिर्फ एक स्थान गया में ही करना उचित नहीं है. हमारे साथ के सभी तीर्थ यात्रियों ने फटाफट नाई से मुंडन कराया।

त्रिवेणी संगम पर स्नान 
त्रिवेणी संगम प्रयागराज (इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का पवित्र मिलन स्थल है। यह हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है, जहाँ माना जाता है कि स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पाप धुल जाते हैं। यह भक्तों को शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। हम लोग दिन के उजाले में संगम पर स्नान किए। सूर्य देव को अर्ध दिए और फिर अपने बस पर वापस लौट आए।

600-700 साल पुराना है हनुमान जी का मंदिर

इस मंदिर का इतिहास 600-700 साल पुराना माना जाता है। इस मंदिर को लेटे हुए हनुमान मंदिर,  किले वाले हनुमानजी, लेटे हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी या श्री बड़े हनुमान जी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि संत समर्थ गुरु रामदास जी ने यहां हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी। वहीं कुछ का ये भी कहना है कि इस मूर्ति को एक व्यापारी ने स्थापित किया था।

       संगम स्नान के बाद हम लोगों ने संगम तट पर स्थित लेटे हनुमान जी का दर्शन करने गया यहां हनुमान जी और उनके मानस पुत्र मकरध्वज दोनों लेते अवस्था में थे उन्हें प्रसाद चढ़ा के मंदिर से बाहर निकाल और बाहर पीपल के पेड़ पर दीपक प्रज्वलित किया यहां के बाद सीधे-सीधे पड़ाव पर गया गया जहां भजन आदि की व्यवस्था थी काफी देर इंतजार के बाद भोजन तैयार हुआ और बस के हेडलाइट की रोशनी में भजन किया गया।

      भोजन करके लोग आराम हम लोग फरमा रहे थे क्योंकि रात में अयोध्या नहीं पहुंचाना चाह रहे थे, बल्कि सुबह पहुंचने की कोशिश कर रहे थे। इसी बीच बारिश होने लगी और लगभग 10 : 00 बजे प्रयागराज की धरती को छोड़ना पड़ गया।




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