Sunday, October 5, 2025

मेरी चारों धाम यात्रा (बिहार- 3)✍️आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


         14 सितंबर 2025
ब्रह्म कुंड को प्रस्थानआज ब्रह्म कुंड प्रेतशिला रामशिला और बोधगया पिंडा पारने के लिए हम सब लोग अलग-अलग ऑटो रिक्शा से निकले थे। सबसे पहले ब्रह्म कुंड और प्रेत सिला की वेदी आई। बड़े वाहन आगे जाने नहीं पा रहे थे। हमारा आते रिक्शा आगे बढ़ा।एक इंटर कालेज के प्रांगड़ में पुलिस कंट्रोल रूम तथा ऑटो स्टैंड बनाया गया था। मुख्य पिंडा स्थल भीड़ से खचाखच भरा हुआ था। हम लोग ब्रह्म कुंड से बाहर नीचे खेत और झाड़ियां के तरफ में, जहां लोग पहले से ही पिंडा पर रहे थे ,वहां अपनी टोली के साथ पहुंचे । अपनी-अपनी आसनी बिछाई और समान निकाल कर तैयारी कर दो दो वेदियों प्रेत शिला और ब्रह्म कुंड का पिण्ड दान की तैयारी कर ली। मनोज पंडित ने अनुष्ठान कराया । इसी बीच कुछ स्थानीय पंडित भी आए। उनसे बताया गया की लखन लाल हमारे तीर्थ पुरोहित है तो वह बगल हट गए और अनुष्ठान में कोई व्यवधान नहीं डाला। बाद में इनमें से एक स्थानीय पंडा आकार पूरी टीम को संबोधित कर दक्षिना पाने के जुगाड़ में कुछ बोलने लगा, जिसे भीड़ ने अनसुना कर दिया और वह वापस लौट गया। हम लोग अपना-अपना पिंडा उठाकर ब्रह्म कुंड में डालने के लिए आए । जहां कुंड के रखवाले ने पिंडा डालने से रोका और पिंडा को पास के गौशाला वाले बूथ पर जमा करने को कहा।

प्रेत शिला को प्रस्थान
यहां से निकलने के बाद ऊपर की तरफ सब बढे ।कुछ लोग सत्तू लेकर प्रेत शिला पर चढ़े। हम भी कुछ सीढ़ियां चढ़े और पहाड़ी के एक साइड में सत्तू उड़ा कर वापस लौट लिए । क्योंकि हमसे पहाड़ पर चढ़ा नहीं जा रहा था । कुछ लोग पालकी से ऊपर जा रहे थे । पालकी वाला प्रति यात्री से ₹2000 का डिमांड कर रहा था। हम लोग नीचे आके धर्मशाला के पास छाया में बैठकर ग्रुप के और लोगों के आने का इंतजार करने लगे । बहुत देर प्रतीक्षा के बाद सब लोग लौटे। 

राम शिला को प्रस्थान 
हरी-भरी पवित्र भूमि के बीच, जहाँ पौराणिक कथाओं की प्राचीन गूँज हवा के हर झोंके में गूँजती है, रामशिला पहाड़ी एक ऐसी यात्रा का वादा करती है जो लौकिक दायरे से परे है। ऐसा माना जाता है कि इसी पवित्र ढलान पर, भगवान राम ने स्वयं पवित्र पिंडदान (अपने पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं के लिए किया जाने वाला एक प्राचीन अनुष्ठान) किया था, जिससे इस पहाड़ी का नाम भक्ति के इतिहास में हमेशा के लिए अंकित हो गया।
       प्रेत शिला से लौट कर अपने ऑटो स्टैंड में बैठकर रामशिला के लिए प्रस्थान किया। इस स्थल पर समय बहुत लग गया। धूप बहुत तेज थी। हम रामशिला के मूल स्थान पर नहीं पहुंचे अभी तो पास के एक विद्यालय के प्रांगण में जहां ऑटो स्टैंड भी था और लोग पिंडा पार रहे थे, पहुंचे । अपने अपने आसन जमाके प्रक्रिया शुरू की। एकाएक मौसम बदलने लगा बादल चढ़ने लगा। मंत्र उच्चारण में तेजी लाई गई ।जल्दी-जल्दी प्रक्रिया पुरी की जाने लगी लेकिन पूरी ना हो सकी। तीर्थ यात्री पानी में भीगने लगे और सामान इधर-उधर बिखर गया। हमारे कुछ सामग्री छूट गई। बाद में अपना अपना पिंडा लेकर उसी स्कूल के बरामदे में आश्रय लेनापड़ा। कपड़े भीग गए थे। सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया था।कोई कहीं छिपा था कोई कहीं छुपा था।           बाद में पानी कम हुआ तो हाथ में लिया हुआ पंडा इस पानी में बहा दिया गया। ठंडी और बारिश से हम लोग बेहाल हो गए थे ।आगे बोधगया जाने का प्लान निरस्त करना पड़ा और वापस अपने होटल आ गये।काफी बारिश होने से आज का आधा दिन होटल में आराम कर के बिताना पड़ा।

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