अक्षय वट :- यह गया - बोधगया मुख्य मार्ग पर माढ़नपुर से थोड़ी दूरी पर चाहरदीवारी से घिरे विस्तृत पक्के आँगन के मध्य शोभायमान वटवृक्ष ब्रह्म सरोवर के पास स्थित है। यहां सर्व सिद्धिदायक एक अति प्राचीन और विशाल वटवृक्ष हैं जिसे बोधिवृक्ष कहा जाता है। इससे उत्तर बटेश्वर महादेव का मंदिर है । इसका रोपण ब्रह्मा ने स्वर्ग से लाकर किया। बाद में जगद्जननी सीता के आशीर्वाद से अक्षयवट की महिमा जगद विख्यात हुई। मुक्तिप्रद तीर्थ गया में जिस स्थान पर अंतिम पिंड होता है वह अक्षयवट ही है। विशाल जड़ों से युक्त बड़े क्षेत्र में विस्तृत अक्षय वट के प्रथम दर्शन से ही इसकी प्राचीनता का सहज अनुमान लग जाता है।
मगध की श्रेष्ठ धरोहर श्री विष्णुपद मंदिर और ब्रह्मयोनि पर्वत के साथ साथ आदि शक्तिपीठ महामाया मंगला गौरी के एक सीध में स्थित अक्षयवट के पास वृद्ध प्रपिता माहेश्वर मंदिर, रुक्मणी तालाब, गदालोल दधिकुल्या और मधुकुल्या तीर्थ वेदी प्रमुख हैं। प्राच्यकाल में गया क्षेत्र में जिन 360 पिंड वेदियों का उल्लेख मिलता है उसमें से 56 वेदियाँ यहीं अक्षयवट के चतुर्दिक विराजमान थीं।
सीता का आशीर्वाद प्राप्त वृक्ष
प्राचीन ग्रंथों में वटवृक्ष से संबंधित एक रोचक कथा मिलती है। रामायणकाल में जब माता सीता के साथ श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण को लेकर गया आए तो दोनो भाई श्राद्ध तर्पण सामग्री लाने बाजार चले गए। इसी बीच आकाशवाणी हुई कि शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है। इसी भय से माता सीता ने दशरथ जी के विचार से वटवृक्ष, फल्गु नदी, गऊ माता तथा केतकी पुष्प को साक्षी मानते हुए अपने श्वसुर को पिंडदान दे दिया। राम और लक्ष्मण के वापस लौटने पर प्रथम तीनो साक्ष्यों ने श्री राम लक्ष्मण के पूछने पर झूठ बोल दिया केवल अक्षयवट ने ही सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रखी। क्रुद्ध हो माता सीता ने फल्गु को बिना पानी की नदी अर्थात् अंतः सलिला, गऊ को कलयुग में श्रद्धा तथा केतकी पुष्प को शुभकार्यों से वंचित होने का श्राप दे दिया। अक्षयवट को सत्य संभाषण हेतु अक्षय होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। यही कारण है कि कितनी भी गर्मी क्यों न हो अक्षयवट सदैव हराभरी रहता है।
सफल विदाई
श्राद्ध समाप्ति के बाद यहां पर गयापाल पंडे के द्वारा सफल विदाई दी जाती है।
अक्षयवट वृक्ष को अंतिम क्रिया का स्थल माना गया है। अक्षयवट स्थित पिंडवेदी पर श्राद्धकर्म कर पंडित द्वारा दिए गए सफल रूप में संपन्न होने के बाद ही श्राद्धकर्म को पूर्ण या सफल माना जाता है।यह परंपरा त्रेता युग से ही चली आ रही है। अक्षयवट के निकट भोजन करने का भी अपना अलग महत्व है। अक्षयवट के पास पूर्वजों को दिए गए भोजन का फल कभी समाप्त नहीं होता।
पास की अन्य वेदियां
1.वृद्ध प्रपिता माहेश्वर मंदिर
वृद्ध प्रपिता माहेश्वर मंदिर गया, बिहार में स्थित एक प्राचीन भगवान शिव को समर्पित मंदिर है, जहाँ भगवान प्रपिता महेश्वर को पिंडदान (मृतकों की शांति के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान) के साक्षी देवता माना जाता है. इसे गया का सबसे प्राचीन शिव मंदिर भी कहा जाता है, और इसका उल्लेख अग्नि पुराण में भी मिलता है। इस मंदिर का नाम वृद्ध प्रपिता माहेश्वर महादेव है, जो गया में तीन पीढ़ियों के महादेव के रूप में विराजमान हैं, जैसे प्रपिता वृद्ध महेश्वर महादेव अक्षयवट के पास, आदि पिता महेश्वर महादेव शीतला मंदिर में, और मार्कंडेय महादेव मंगला गौरी के पास स्थित हैं।
2.रुक्मणी तालाब
रुक्मिणी सरोवर
शहर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित अक्षयवट वेदी के पास रुक्मिणी सरोवर स्थित है. अक्षयवट वेदी पर भीड़ अधिक रहने से श्रद्धालु इस सरोवर में आकर पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण का कर्मकांड करते हैं. इस स्थल पर कर्मकांड करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को अक्षयवट वेदी पर कर्मकांड करने जैसे फल की प्राप्ति होती है, वह यहां भी मिलती है।
गया के माडनपुर मोहल्ले में स्थित रुक्मणी तालाब एक पवित्र स्थान है, जहाँ मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी रुक्मणी के स्नान के लिए इसका निर्माण कराया था। इस तालाब में स्नान करने से महिलाओं को संतान सुख प्राप्त होता है, और संतान प्राप्ति के लिए यहाँ स्नान के बाद महिलाएं पास के अक्षय वट वृक्ष से लिपटकर अपनी मनोकामनाएं करती हैं। यह तालाब द्वापर युग से मौजूद है और पितृपक्ष मेले में भी इसका महत्व है।
3.गदालोल दधिकुल्या
गदालोल दधिकुल्या एक गया तीर्थ का स्थान है, जो कि मधुकुल्या तीर्थ के साथ प्रमुख है। यह तीर्थ गया क्षेत्र में है और में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ यहाँ आने की कथा प्रचलित है। जनश्रुति के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता गया आए थे, जो इस स्थान से जुड़ा हो सकता है।
4.मधुकुल्या तीर्थ वेदी
"मधुकुल्या तीर्थ वेदी" का संबंध गया (बिहार) में पिंडदान के लिए अक्षय वट से है, जहाँ पुत्र अपने पितरों के नाम पर अक्षत और फूल चढ़ाते हैं;इस वृक्ष पर पितरों को अक्षत, बेलपत्र, और जल चढ़ाया जाता है, जो उनकी आत्मा की शांति के लिए होता है, खासकर विष्णुपाद मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद।
5.गदालोल वेदी:-
अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है। गदालोल-लोल शब्द का अर्थ तालाब होता हैं। इस वेदी की कहानी है कि यहां गदा नाम का असुर पुराकाल में वज्र से दृढ़ तपस्वी एवं दानवीर था।देव कार्य के लिए ब्रह्माजी के मांगने पर उसने अपनी अस्थियां भी दान में दे दी थीं। उन्ही अस्थियों से विश्वकर्मा जी ने गदा बना स्वर्ग में रख दिया। उसी काल मे हेति नाम का दैत्य बड़ा बलवान हुआ, उसने देवताओं को जीत कर स्वर्ग का राज्य छीन लिया। दैत्य हेति को मारकर राज्य दिलाने की विनती देवताओं ने भगवान विष्णु से की।भगवान ने कहा कि हमे कोई ऐसा अस्त्र दो, जिससे उसे हम मार सके, क्योंकि उसने वरदान पा लिया है कि हम वर्तमान किसी अस्त्र से नहीं मरेंगे। तब देवताओं ने स्वर्ग में रखी वही गदा दे दी, भगवान ने उसी गदा से हेति को मार दिया. इसके बाद जिस स्थान पर वह गदा धोया गया, उसे गदालोल वेदी कहा गया है। गदाधर करने से भगवान भी “ गदाधर” नाम से प्रसिद्ध हुए। इस गदालोल वेदी में पिंडदान करने से तथा स्वर्ण पिवत्रीदान करने से पितरों को सदगति होती है।
6.गौ प्रचार वेदी
मंगलागौरी मन्दिर के पास स्थित है।मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी मंदिर पश्चिमी दिशा में स्थित है। पिंडवेदी में एक धर्मशिला में स्थित है। धर्मशिला पर गाय कई पैर का निशान है। जहां पिंडदान किया जाता है। यहां ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था. उन्होंने यहां यज्ञ के दौरान गायों को जिस पर्वत पर रखा था, उसे गौचर वेदी कहा गया. यहां पर्वत पर गायों के खुर के निशान आज भी हैं, यहां ब्रह्मा जी पंडा को सवा लाख गौ दान किया था. ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं. मान्यता हैं यहां ब्राह्मण को भोजन कराने से एक करोड़ ब्राह्मण भोजन कराने का फल मिलता है।जहां पिंडदान किया जाता है। गौप्रचार वेदी एक धर्मशिला पर स्थित है। जहां काफी संख्या में गाय के पैर का निशान है। धर्मशिला के पास पिंडदानी बैठक कर्मकांड करते है। वहीं चबूतरे में भी बैठक कर कर्मकांड किया जाता है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं चारों धाम की यात्रा कर गया जी के तथ्यों से अवगत हुआ है।
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